Writer- मदनगोपाल शर्मा

दुकान का काम समाप्त कर के रमेश तेजी से घर की ओर चला जा रहा था. आसमान में कालेकाले बादल छाए हुए थे अत: वर्षा आने से पहले ही वह घर पहुंच जाना चाहता था. तभी अचानक तेज वर्षा होने लगी. रमेश वर्र्षा से बचने के लिए फुटपाथ के पास बनी अपने मित्र राकेश की दुकान की ओर दौड़ा. दुकान के बाहर लगी परछत्ती के नीचे एक बूढे़ सज्जन पहले से ही खड़े थे. परछत्ती बहुत छोटी थी. वर्षा के पानी से उन का केवल सिर ही बच पा रहा था. रमेश का ध्यान उस बूढे़ आदमी की ओर नहीं गया. वह सीधा दौड़ता हुआ आया और राकेश के  पास जा कर दुकान में बैठ गया.

थोड़ी देर में वर्षा और तेज हो गई. रमेश का ध्यान उन बूढ़े सज्जन की ओर गया. वह तुरंत उठा और उन के पास आ कर विनम्रता से बोला, ‘‘यहां तो आप पूरी तरह भीग जाएंगे. कृपया भीतर आ कर बैठिए.’’ बूढे़ आदमी को ठंड भी लग रही थी, पर उन्होंने भीतर चलने से मना किया, लेकिन रमेश के बारबार आग्रह करने पर वे भीतर आ गए और अंदर आ कर एक कुरसी पर बैठ गए.

रमेश ने सामान्य शिष्टाचार के नाते उन्हें चाय भी पिला दी तथा उन की भीगी कमीज को सुखाने का भी प्रयास किया.

बूढ़े सज्जन ने रमेश से पूछा, ‘‘क्यों भाई, क्या आप मुझे जानते हो?’’

रमेश ने जवाब दिया, ‘‘जी नहीं, मैं ने तो आप को कभी देखा भी नहीं. वैसे मैं एक दुकान पर काम करता हूं. वहां भी मैं ने कभी आप को नहीं देखा.’’ धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला चल निकला. बातोंबातों में बूढ़े ने रमेश की दुकान का पता, उस का वेतन, घर के हालात आदि का पता किया. लेकिन उस ने अपना परिचय नहीं दिया. केवल इतना ही कहा, ‘‘टहलने निकला था, बरसात होने लगी. यहां पानी से बचने के लिए रुक गया.’’ धीरेधीरे पानी कम हुआ. रमेश और बूढ़े सज्जन दोनों निकल कर सड़क पर आ गए. दोनों कुछ दूर तक एकसाथ चले. मानो दोनों को अलगअलग दिशाओं में जाना था. रमेश ने कहा, ‘‘मैं आप को घर तक छोड़ देता हूं. रात का समय है. देर भी काफी हो गई है.’’

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बूढे़ ने रमेश को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘मैं अकेला ही चला जाऊंगा, आप को कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है.’’

बात आईगई हो गई. रमेश अपने स्वभाव अनुसार समय पर दुकान पर जाता और मेहनत व लगन से काम करता. एक दिन वह दुकान के बाहर खड़ा, दुकान खुलने का इंतजार कर रहा था कि  वही बूढ़े सज्जन वहां से निकले. दोनों ने एकदूसरे को देखा और एकदूसरे को अभिवादन किया. रोज की तरह दुकान खुली. रमेश ने अपना काम शुरू कर दिया. वह 10वीं कक्षा तक पढ़ा था, पर दुकान पर हर तरह का काम, जैसे सफाई, सामान तोलना, सामान उठाना और हिसाबकिताब करना पड़ता था. लेकिन वह सब काम पूरी निष्ठा से करता था. उस के काम से दुकान का मालिक बड़ा संतुष्ट था. शाम को दुकान बंद होने का समय हो गया था. तभी एक सज्जन दुकान पर आए. उन के आते ही दुकान का मालिक खड़ा हो गया और उन की बड़ी आवभगत करने लगा. रमेश के साथ काम करने वाले लड़कों ने बताया, ‘‘यह नगर के बहुत बड़े उद्योगपति का लड़का सुरेश है.’’

सुरेश ने दुकानदार से पूछा, ‘‘आप के यहां कोई रमेश नाम का लड़का काम करता है?’’

‘‘जी हां, काम करता है, वह है, रमेश,’’ दुकानदार ने झट इशारा करते हुए उत्तर दिया.

सुरेश ने कुछ तेज स्वर में कहा, ‘‘आप को रमेश को अपने यहां से नौकरी से निकालना होगा.’’ दुकानदार ने आव देखा न ताव, तुरंत रमेश को अपने पास बुला कर आदेश दिया, ‘‘रमेश, कल से तुम नौकरी पर मत आना, अपना हिसाब आज ही कर लो.’’ रमेश भौचक्का रह गया. उस ने साहस जुटा कर पूछा, ‘‘पर मेरी गलती क्या है?’’ दुकानदार नाराज हो कर बोला, ‘‘गलतीवलती कुछ नहीं. सुरेशजी ने कहा और हम ने तुम्हें नौकरी से तुरंत निकाल दिया.’’ सुरेश ने दुकानदार को बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने हमारे पिताजी के साथ कुछ गड़बड़ की है. उस की तुम्हें सजा भी मिलेगी. पिताजी सामने गाड़ी में बैठे हैं.’’ रमेश कुछ समझ न पाया, ‘‘मैं ने तो कभी किसी के साथ बुरा बरताव किया ही नहीं. आखिर, मुझे किस बात की सजा मिल रही है? नौकरी छूट जाने पर मेरी बूढ़ी मां का क्या होगा, जिस का मैं एकमात्र सहारा हूं?’’ रमेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

सुरेश ने रमेश का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए सड़क के उस पार ले गया, जहां उस की कार खड़ी थी और उस में एक बूढ़े सज्जन बैठे हुए थे. रमेश ने देखा कि वह बूढ़े सज्जन वही हैं, जो उस दिन राकेश की दुकान पर मिले थे.

रमेश ने संयमित हो कर पूछा, ‘‘मैं ने तो आप के साथ कोई बुरा बरताव नहीं किया. फिर मुझे यह सजा क्यों दी जा रही है?’’

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बूढ़े सज्जन ने कहा, ‘‘बेटे, सजा अभी मिली कहां है. सजा तो अब मिलेगी. कल से आप की नौकरी हमारे यहां और वेतन भी 10 हजार रुपए महीना.’’

रमेश ने फौरन कहा, ‘‘मैं इस योग्य नहीं हूं. कृपया मुझे क्षमा करें.’’

बूढ़े सज्जन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की योग्यता मैं ने परख ली है. उस योग्यता की सजा के रूप में यह नौकरी दे रहा हूं. अब दुकानदार से अपना हिसाब कर लीजिए और मेरे साथ चलिए. आज हम आप के घर चलेंगे. आप की माताजी से मिलेंगे और आप की सुयोग्यता उन्हें बताएंगे.’’ उस के बाद रमेश के पास उस अनोखी सजा को सहर्ष स्वीकार करने के अलावा कोई चारा न था.

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