ऐसी जुगुनी : भाग 1

‘‘अगर तुम आजीवन सुखी रहना चाहती हो तो अपनी ससुराल वालों, खासकर अपनी ननदों और देवरों से भरसक दूरी बनाए रखो. मैं उन्हें पहली नजर में ही पहचान गया था कि वे एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस किस्म के लोग हैं. यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो वे हरामखोरनिठल्ले एक दिन तुम्हारे सीने पर मूंग दलेंगे. इतना ही नहीं, वे दरिद्रजन तुम्हारा सारा हक भी मार लेंगे. तुम्हारे दकियानूस पति की बेवकूफी का वे पूरा फायदा उठाएंगे,’’ शांताराम ने अपनी नवब्याहता बहन को समझाने और ससुराल वालों के खिलाफ उस के मन में जहर की पहली डोज डालने की कोशिश की.

उस ने फिर कहा, ‘‘तुम्हें गलती से हम ने ऐसे परिवार में ब्याह दिया है जहां एक भाई कमाता है, बाकी तोंद पर हाथ फेरते हुए, बस, डेढ़ सेर खाते हैं. तेजेंद्र के सिवा तो वहां कोई कुछ करता ही नहीं. मां पहले ही कालकवलित हो चुकी है और बाप रिटायर्ड हो चुका है जिस का घर से कुछ भी लेनादेना नहीं है जबकि बड़ा भाई अपने परिवार में बीवीबच्चों के साथ मस्त है. किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. सब आपस में लड़मर रहे हैं. एक बात मैं कहूं, यह परिवार कई प्रकार से कमजोर है और तुम इस कमजोरी का खूब फायदा उठा सकती हो. आखिर, पढ़ीलिखी लड़की हो. कम से कम अपनी अक्ल का थोड़ा तो इस्तेमाल करो और इस परिवार का बेड़ा गर्क करो.’’

नाम तो उस का ज्योतिंद्रा था पर सब उसे जुगुनी ही कहते थे. जुगुनी भौंहें चढ़ाती हुई मुसकरा उठी, ‘‘भैया, मैं अब कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. इन 7 दिनों में ही सबकुछ देख चुकी हूं, सब समझ चुकी हूं. अब मुझे क्या करना है, यह भी तय कर चुकी हूं. देखना, मैं ससुराल में इतनी साजिश रचूंगी और इतनी तिकड़म आजमाऊंगी कि तेजेंद्र खुदबखुद उन से दूरी बना कर रहने लगेगा. तेजेंद्र तो मेरी तरेरती निगाहों के आगे कठपुतली की तरह नाचता फिरेगा. और हां, ससुरालियों के मन में भी एकदूसरे के प्रति इतना जहर भरूंगी कि वे एकदूसरे के जानीदुश्मन बन जाएंगे.’’

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शांताराम बहन के इस अंदाज में शेखी बघारने पर फख्र करते हुए आश्चर्य से भर उठा, ‘‘ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारी छठी इंद्रिय काम करने लगी है. पहले तो तुम गधी थी. तो भी मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि तुम्हारा पति कमअक्ल और लकीर का फकीर है. थोड़ाबहुत साहित्य क्या लिख लेता है, वह खुद को तुलसीदास और शेक्सपियर समझने लगा है. पर, वह है पूरा डपोरशंख. खुद को भौतिकवाद से दूर रखने का पाखंड खूब कर लेता है. दरअसल, तुम्हारे सारे ससुराल वाले कंजूस और लीचड़ हैं. तुम्हारा तेजेंद्र भी दांत से पैसा दबाए रखता है. ऐसे लोग कूपमंडूक होते हैं और उन्हें विरासत, परंपरा, तहजीब जैसी गैरजरूरी बातों से ज्यादा लगाव होता है. उसे समझाना होगा कि अब उस का अपना परिवार है और इसी के लिए जीना व मरना है. मांबाप और भाईबहन के लिए जिंदगी तबाह करने की जरूरत नहीं है. वे कमीने तो उस की शादी के बाद से ही पराए हो गए हैं. अब उस के अपने हैं तो केवल हम ससुराल वाले,’’ जुगुनी उस की हर बात पर ध्यान देती हुई संजीदा होती जा रही थी.

बेशक, ससुराल में कदम रखते ही नई बहू के तेवर तीखे हो गए. अभी हफ्ताभर ही तो हुआ है जुगुनी और तेजेंद्र की शादी हुए. तेजेंद्र के भाईबहनों ने उस की शादी में बड़े उत्साह से सभी कामों को अंजाम दिया था और नए रिश्तेदारों के साथ वे बड़ी गंभीरता व शालीनता से पेश भी आ रहे थे.

बहनों में बड़ी, नंदिनी तो इतनी खुश थी कि वह पंख उग आए गौरैये के चूजे की भांति घर से बाहर तक फुदकती फिर रही थी, और जो भी मिलता उस से कहती जा रही थी- ‘अब घर में मां के बाद उन की कमी को मेरी दूसरी भाभी पूरी करेंगी. हम सब उन्हें भाभी नहीं भाभीमां कह कर पुकारेंगे. इतने मिलजुल कर और प्यार से रहेंगे कि अपने मतलबी रिश्तेदारों और जिगरी दोस्तों के मन में भी हमारे लिए बेहद ईर्ष्या पैदा हो जाएगी.’

उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘भैया, अभी भाभी को मुंबई मत ले जाना. जब महीनेभर बाद अगली बार आना, तो ले जाना. अभी तो हमें इन से दिल से दिल मिला कर मेलजोल बढ़ाना है.’’

पर, जुगुनी को नंदिनी का प्रस्ताव बिलकुल अटपटा सा लगा. उस ने तुरंत तेजेंद्र को बैडरूम में ले जा कर समझाया, ‘‘अभी मैं यहां बिलकुल नहीं रहूंगी. क्या हम हनीमून पर नहीं चलेंगे? अगर हनीमून पर नहीं जाना है तो मुझे मुंबई अपने साथ ले चलो, वरना, मुझे कुछ समय के लिए मायके में ही छोड़ दो. जब दोबारा मुंबई से आना तो मुझे अपने साथ ले जाना. लेकिन, मेरा निर्णय कान खोल कर सुन लो, मैं यहां हरगिज नहीं रहने वाली.’’

तेजेंद्र चिंता में पड़ गया. उसे जुगुनी का स्वभाव एकदम अटपटा सा लग रहा था. बहरहाल, उस ने सोचा कि अभी जुगुनी को ऐसे नाखुश करना उचित नहीं होगा. सो, उस ने नंदिनी को समझाया कि वह अभी जुगुनी को यहां रुकने के लिए न कहे और वह मान भी गई. पर, जुगुनी तो मन ही मन खुश हो रही थी कि तेजेंद्र तो बड़ी सहजता से उस की बात मान लेता है. बेवकूफ है तो क्या हुआ, अपने परिवार वालों के बीच मुझे अहमियत तो देता है, गोबरगणेश कहीं का…

उस के बाद वह मुंबई के लिए अपनी अटैचियां व जरूरी सामान पैक करने लगी.

विवाह के समय मायके से जो उपहार मिले थे, जब तेजेंद्र उन्हें घर पर ही छोड़ कर जुगुनी के साथ मुंबई जाने को तैयार होने लगा तो वह एकदम से बौखला उठी, ‘‘तेजेंद्र, यह तो तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. क्या मेरे घर वालों ने इतने ढेर सारा दानदहेज, गिफ्ट वगैरा तुम्हारे निठल्ले भाईबहनों को ऐश करने के लिए दिए हैं? कम से कम टीवी, फ्रिज और बैड तो अपने साथ ले चलो.’’

तेजेंद्र ने जुगुनी से अचानक ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं की थी. लिहाजा, उस ने ठंडे दिमाग से उसे समझाया, ‘‘जुगुनी, मुझे तुम मिल गई, यह मेरे लिए बहुतकुछ है. सामान को तो गोली मारो. बहरहाल, इतना ढेर सारा सामान लाद कर हम मुंबई जाएंगे तो कैसे जाएंगे? इन्हें यहीं छोड़ दो. वहां हम अपने बलबूते पर सैटल होंगे और ये सारे सामान खुद खरीदेंगे. तुम्हें तो पता ही है, मेरी अच्छी तनख्वाह है. इन से कहीं बेहतर क्वालिटी के सामान वहां किस्तों में खरीद लेंगे.’’

जुगुनी इतराने लगी, ‘‘अच्छा, क्या मेरे मायके से आए सामान एवन क्वालिटी के नहीं हैं?’’

तेजेंद्र समझ गया कि जुगुनी और उस के परिवार वाले दुनियादारी व सामान के पीछे जान भी दे सकते हैं. छोटे शहरों के लोगों में विलासिता के साजोसामान खरीदने की ललक तीव्र होती है. उसे एहसास हो गया कि जुगुनी के मन में क्या चल रहा है. वह समझ गया कि जुगुनी के लिए मानवीय रिश्तों की कोई खास अहमियत नहीं है.

लिहाजा, उस पल तेजेंद्र के चेहरे पर आए हावभाव को पढ़ कर जुगुनी को लगा कि अभी उसे ऐसा अडि़यल रुख नहीं अपनाना चाहिए. वह कोई तरकीब सोचने लगी ताकि उस पर कोई दोष भी न आए और उस के मन की मुराद भी पूरी हो जाए. यानी उस के मायके का सारा सामान और उपहार उस के कब्जे में आ जाए. उस ने एकांत में जा कर झट मायके अपनी अम्मा को फोन लगाया तथा उन्हें सारी बात से अवगत कराया और मुंबई रवाना होने से पहले उन्हें और बाबूजी को मिलनेजुलने के बहाने फोन पर ही ठीक एक दिन पहले बुला लिया.

अम्मा ने आते ही कमर कस ली. ‘‘जुगुनी, तुम बिलकुल फिक्र मत करना. देखो, मैं किस तरह से सारा दानदहेज तुम्हारे साथ मुंबई भिजवाती हूं. एक तो इन लीचड़ ससुरालियों ने दहेज की सारी रकम ऐंठ ली, दूसरे, अब वे सारा दानदहेज और गिफ्ट भी हजम कर लेना चाहते हैं.’’

अम्मा ने बाबूजी को बरगलाना शुरू कर दिया, ‘‘अजी सुनते हो, अब कान में रुई डाल कर सोना बंद करो. देखो, तुम्हारी गाढ़े पसीने की कमाई पर गैरों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है.’’

बाबूजी के कान खड़े हो गए, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि जुगुनी की शादी में जो सामान तुम ने इतने जतन कर के दिए हैं, तेजेंद्र उन्हें अपने भाईबहनों को सौंप कर खाली हाथ ही मुंबई जा रहा है. अब भला, मेरी बिटिया टीवी, फ्रिज के बगैर एक पल को भी कैसे रह पाएगी? तेजेंद्र तो रोज ड्यूटी बजाने औफिस को चला जाया करेगा जबकि मेरी गुडि़या घर में अकेली दीवारों पर रेंगती छिपकलियां देख कर ही सारा समय काटेगी. तेजेंद्र के भाईबहन दहेज के सामान पर जोंक की तरह चिपके हुए हैं. उस ने तो दहेज में मिला स्कूटर पहले ही अपने भाई प्रेमेंद्र के हवाले कर दिया है.’’

बाबूजी अपनी पत्नी के बहकावे में आने से पहले थोड़ीबहुत जो समझदारी दिखा सकते हैं वह उस से बातें करने के बाद पलभर में उड़नछू हो जाती है. उन्होंने अम्मा को समझाने की कोशिश की, ‘‘अभी कुछ ऐसा बखेड़ा खड़ा मत करो क्योंकि अभी शादी को हफ्ताभर ही तो हुआ है. अगर मैं तेजेंद्र के पापा से इस बारे में कुछ कहूंगा तो यह अच्छा लगेगा क्या? आखिर, यह तुम्हारा घर नहीं, बिटिया का ससुराल है.’’

अम्मा तुनक उठी, ‘‘अजी, ऐसा अच्छाभला सोचने लगोगे तो ससुराल में तुम्हारी बिटिया का जीना दूभर हो जाएगा. कल को ये लोग उस का गला भी घोंट सकते हैं. तेजेंद्र के घर वाले कितने कमीने हैं, इस बात का सुबूत देने की जरूरत नहीं है. उन के हौसले को बढ़ने से पहले ही तोड़ना होगा. सांप के फन उठाने से पहले ही उसे कुचल देना होगा. वरना, एक दिन तुम्हारी बेटी को चिथड़ा पहना कर वापस मायके भेज दिया जाएगा. तलाक तक की नौबत आ जाएगी. हो सकता है कि वे उसे जिंदा फूंकने का दुस्साहस भी करें, हां.’’

उस के शब्द सुन कर तो बाबूजी ऐसे चिहुंक उठे जैसे किसी पहाड़ी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो. वे अच्छी तरह समझ रहे थे कि उन की पत्नी उन्हें जुगुनी के ससुराल वालों के खिलाफ बरगला रही है. उन्होंने मांबेटी दोनों को दुनियाभर के चमचमाते सामान के पीछे पागल होते पहले भी देख रखा है. पर, उन्हें यकीन है कि जुगुनी की अम्मा ने जो मन में ठान लिया है, वह उसे पूरा कर के ही दम लेगी. और अगर उन्होंने उस के मनमुताबिक नहीं किया, तो वह उन्हें चैन से जीने न देगी, खानापीनासोना सब हराम हो जाएगा.

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वे उधेड़बुन में खो गए. चलो, तेजेंद्र के पापा से बात कर ही लेते हैं. भले ही उन्हें और उन के परिवारजनों के गले से मेरी बात नीचे न उतरे, पर उन्हें तो मनाना ही होगा कि वे दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के साथ रवाना कर दें. वरना जुगुनी की अम्मा उन की जान खा जाएगी. उन के परिवार वालों को बुरा लगता है तो लगने दो. जुगुनी को भी इस दो कौड़ी की ससुराल में कहां रहना है? उसे तो मुंबई महानगर में अपनी जिंदगी गुजारनी है तेजेंद्र के साथ.

बाबूजी का मन अभी भी हिचक रहा था. रात को अम्मा ने उन्हें गहरी नींद से जगा कर फिर उन पर दबाव बनाया, ‘‘पौ फटते ही तेजेंद्र के बड़ेबुजुर्गों से बात कर लेना क्योंकि कल शाम की ही ट्रेन से जुगुनी और तेजेंद्र को मुंबई के लिए कूच करना है.’’

सो, सुबह जब बाबूजी उठे तो वे हिम्मत बटोर कर, चाय की चुसकी लेते हुए तेजेंद्र के पापा से मुखातिब हुए, ‘‘भाईसाब अब आप का बेटा तेजेंद्र घरवाला गृहस्थ बन गया है. मुंबई में अपनी बीवी के साथ रहेगा. उस के यहां यारदोस्तों का आनाजाना होगा. इस बार अपनी दुलहन ले कर पहुंचने पर, वे उस से पूछेंगे कि तेजेंद्र, ससुराल से तुम्हें क्या मिला है, तब तेजेंद्र उन से क्या कहेगा कि दहेज तो बाप के घर छोड़ आया हूं. बस, बीवी ले कर आया हूं? वे तो समझेंगे कि बिटिया का बाप तो कंगला है जिस ने उसे एक धेला भी नहीं दिया. मुफ्त में अपनी बेटी उस के गले मढ़ दी.

‘‘सच, यह सोच कर मेरा दिल शर्म से डूबा जा रहा है. बेटी के बाप की तो नाक ही कट जाएगी. सो, मेरी आप से विनती है कि तेजेंद्र को अपने साथ कुछ सामान जैसे टीवी, फ्रिज वगैरा ले जाने की इजाजत जरूर दे दीजिए जिन्हें वह अपने महल्ले वालों और दोस्तों को दिखा सके कि हां, किसी फटीचर खानदान में उस की शादी नहीं हुई है.’’

बाबूजी ने दोनों हाथ जोड़ कर अपनी बात को इतने सलीके से पेश किया था कि तेजेंद्र के पापा से प्रतिक्रिया में कुछ भी कहते नहीं बना. वे हकला उठे, ‘‘मुझे इस में क्या आपत्ति हो सकती है?’’

वहां उपस्थित तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र भी बोल उठा, ‘‘हां हां, अगर भाईसाहब ये सामान खुद ले जाने में सक्षम हों तो इस से अच्छी बात क्या हो सकती है. हम तो सोच रहे थे कि भाभीजी का सामान हम खुद धीरेधीरे मुंबई पहुंचा देंगे. इसी बहाने मुंबई भी आनाजाना बना रहेगा.’’

जुगुनी ने सोचा, ‘अगर दहेज का सामान अभी हमारे साथ चला जाएगा तो इन कमीनों द्वारा फुजूल में मुंबई आ कर मेरा दिमाग खराब करने से छुटकारा भी मिल जाएगा.’

उस वक्त बाबूजी अम्मा का मुंह ताकने लगे जैसे कि कह रहे हों कि तुम तो कह रही थी कि दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के घर वाले हड़पना चाहते हैं जबकि वे सभी सारे सामान को तेजेंद्र के साथ सहर्ष भेजने को तैयार हैं.

अम्मा ने उन के हावभाव को कनखियों से देखा और मुंह बिचका लिया. तुम्हें जो मगजमारी करनी है, वह करो. हमें तो दहेज का सामान बस मुंबई रफादफा करना है.

सो, कुछ मामूली उपहारों को छोड़ कर बाकी सामान धीरेधीरे 2-3 खेपों में मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया. तेजेंद्र मायूस हो गया, यह सोचते हुए कि मेरे घर वाले सोच रहे होंगे कि तेजेंद्र भौतिकवादी हो गया है. उसे अपने घर वालों से ज्यादा निर्जीव वस्तुओं से प्यार हो गया है.

वैसे तो, वह शादी से पहले ऐसी मानसिकता वाले लोगों की नुक्ताचीनी करने से बाज नहीं आता था. भाइयों में सब से छोटे भाई गजेंद्र ने सभी को समझाया, ‘‘भैया सुलझे हुए विचारों के भले आदमी हैं. वे स्वार्थी कभी नहीं हो सकते. उन्हें तो मर्यादित जीवन और अच्छे संस्कारों से हमेशा प्यार रहा है. स्वार्थपरता से तो उन्हें सख्त नफरत है. इसलिए हमें उन के बारे में कोई अनापशनाप धारणा नहीं बनानी चाहिए.

वे हम से और हमारी पारिवारिक संस्कृतियों से हमेशा जुड़े रहे हैं. हां, भाभीजी के बारे में अभी मैं कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि भविष्य में वे अपने ससुराल में क्या गुल खिलाएंगी. पर, यह तो तय है कि वे भारत में पाकिस्तान बनवा कर ही दम लेंगी.’’

तेजेंद्र के विवाह के चिह्न के तौर पर घर में कुछ भी उपलब्ध न रहने के कारण उस की तीनों बहनें नंदिनी, मीठी और रोशनी कुछ समय तक सदमे में थीं. शादी के उल्लास और चहलपहल के बाद अचानक छाए सन्नाटे से घर का कोनाकोना भांयभांय कर रहा था. उन की मां तो डेढ़ साल पहले ही डाक्टर की गलत दवा के कारण मौत का शिकार हो चुकी थीं. मां की असामयिक मौत के बाद, पापा गुमसुम रहने लगे थे.

बड़े भाई कमलेंद्र अपनी एकल पारिवारिक व्यवस्था में ही इस तरह उलझ गए थे जैसे उन का इस के सिवा दुनिया में कुछ और है ही नहीं. ऐसे में, परिवार को तेजेंद्र से ही बड़ी उम्मीदें थीं. उन्हें उन से आर्थिक मदद से अधिक मानसिक संबल की अपेक्षा थी. प्रेमेंद्र कोचिंग इंस्टिट्यूट चला कर अपनी और अपनी बहनों की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी कर ही लेता था. पापाजी के पैंशन के रुपए भी काम में आ जाते थे.

इस दरम्यान, जुगुनी की अम्मा का मुंबई आनाजाना अधिक बढ़ गया था. वह जुगुनी को ससुराल से भरसक दूरी बनाए रखने के लिए सचेत करती रहती थी. इस के लिए नएनए तौरतरीके भी वह उसे बताती रहती थी.

एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘अगर तेजेंद्र के मन में अपने भाईबहनों के प्रति लगाव बना रहेगा तो उसे उन की आर्थिक मदद भी करनी पड़ेगी. सो, तुम्हारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि उन के बीच संबंधों में दरार बढ़ती जाए. अभी तो उस की तीनों बहनें अनब्याही हैं. उन की शादी के लिए तेजेंद्र को ही पैसे खर्च करने पड़ेंगे. उस के पापा और कमलेंद्र तो कुछ भी करने से रहे. देखो, कमलेंद्र कितनी होशियारी से उन से कन्नी काट गया है. दरअसल, तुम्हें तो दूल्हा कमलेंद्र जैसा मिलना चाहिए था.’’

अम्मा कमलेंद्र का गुणगान करते हुए तेजेंद्र के नाम पर रोरो कर अपना माथा पीटती. एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘कुछ ऐसे गंभीर हालात पैदा करो कि तेजेंद्र की बहनें कुंआरी ही बूढ़ी हो जाएं. इस से तुम्हें फायदे होंगे-एक तो तेजेंद्र को उन की शादी पर पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे, दूसरे, तेजेंद्र के कमीने परिवार की सारे समाज में थूथू हो जाएगी.

‘‘जिस घर में बेटियां और बहनें अविवाहित रह जाती हैं, समाज में उसे बड़ी नीची निगाह से देखा जाता है. उस के बाद तुम अपनी सहेलियों और जानपहचान वालों में भाईबहन के रिश्ते के बारे में कुछ गंदी अफवाहें फैला देना. देखना, सारे के सारे सदमों से न केवल बीमार होंगे बल्कि दुश्ंिचताओं में पड़ कर पीलिया से ग्रस्त हो कर दम भी तोड़ देंगे.’’

पर, तेजेंद्र ने तो संकल्प ले रखा था कि वह अपने सहोदरों की जीवननैया पार लगा कर ही दम लेगा. इस बीच, प्रेमेंद्र ने तेजेंद्र को नंदिनी की शादी से संबंधित बातचीत करने और इस बाबत अन्य बंदोबस्त करने के लिए आने का आग्रह किया. जब अम्मा को इस बारे में पता चला तो उस ने जुगुनी को दिनरात बरगलाया, ‘‘बिटिया, तेजेंद्र को किसी भी कीमत पर नंदिनी की शादी के बारे में बातचीत करने के लिए उस के घर मत जाने देना.’’

इस तरह जिस शाम तेजेंद्र को ट्रेन पकड़नी थी, जुगुनी दहेज के मुद्दे पर उस से झगड़ बैठी. उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘जब तक तुम दहेज में मिला स्कूटर प्रेमेंद्र से छीन कर वापस नहीं लाओगे, तुम्हें तुम्हारे कमबख्त भाईबहनों के पास जाने नहीं दूंगी.’’ फिर, उस ने उस के पर्स से रिजर्वेशन टिकट निकाल कर फाड़ कर चिंदीचिंदी कर दिया. झगड़े पर उतारू औरत के सामने वह बेबस हो गया.

दूसरी और तीसरी बार भी जब वह नंदिनी के लिए लड़का देखने जाने की तैयारी में था तो जुगुनी ने उसे इसी तरह घर न जाने के लिए मजबूर कर दिया. तेजेंद्र तो जुगुनी के जोरजोर से शोर मचाने के कारण ही सहम जाता था, महल्ले वालों में शोर मच जाएगा तो उसी की बदनामी होगी. गलती भले ही औरत की हो, दुनिया पुरुष को ही दोषी ठहराती है.

जुगुनी ने उस की कमजोर नस पहचान ली थी और जबजब वह किसी ऐसे ही निहायत जरूरी काम से अपने पैतृक घर जाने का मन बनाता, जुगुनी शोर मचाने लगती और तेजेंद्र खामोश हो कर बैठ जाता. वह उस की कमजोर नस पर हाथ रख देती.

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बहरहाल, हर बात में तूतूमैंमैं उन के दांपत्य जीवन का रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था. जुगुनी तो मुंहफट थी ही, लेकिन जब उग्र होती तो गालीगलौज भी करने लगती. ऐसे में, तेजेंद्र अपना माथा पीट कर अपने बुरे समय को कोसता रहता. उस ने तो अपने ही क्षेत्र की लड़की से सिर्फ इसलिए शादी की थी कि उस की आदतें, रहनसहन आदि उसी की तरह होंगे जिस से रिश्तेदारी निभाने में कोई अड़चन नहीं आएगी. वह मुंबई में रह रहा होगा जबकि उस का और उस की पत्नी का परिवार सुखदुख में एकदूसरे के साथ होगा.

मुंबई में ही उस के लिए कितने ही शादी के प्रस्ताव आए थे. पर, उस ने सब से न कर दिया कि शादी करूंगा तो अपने ही क्षेत्र की किसी संस्कारी लड़की से, वरना नहीं करूंगा.

तेजेंद्र के पापा सेहत से और अपने अक्खड़ स्वभाव से इस लायक नहीं थे कि वे अपनी जिम्मेदारियों को निबटाते. कुल मिला कर वे अपने गृहस्थ जीवन के प्रति उदासीन हो गए थे. यह सोच कर कि मेरे सारे बेटे तो इतने बड़े और समझदार हो ही गए हैं कि वे उन की जिम्मेदारियों को भलीभांति निभा सकें.

इस बीच, तेजेंद्र ने मुंबई से फोन कर के अपने हाथ खड़े कर दिए, ‘‘प्रेमेंद्र, तुम्हारी भाभी मुझे तुम लोगों के लिए कुछ भी करने की इजाजत नहीं देतीं. इसलिए मैं तुम लोगों के लिए कुछ भी न कर पाने के लिए मजबूर हूं.’’

थकहार कर प्रेमेंद्र ने खुद नंदिनी के लिए एक रिश्ता तय किया, वह भी बड़ी अफरातफरी में क्योंकि उस की उम्र शादी के लिहाज से ज्यादा हो रही थी. नंदिनी की शादी हुई, पर अफसोस कि सफल नहीं रही. यह सब हताशा में उठाए गए कदमों के कारण हुआ. किसी को क्या पता था कि जिस लड़के के साथ नंदिनी का विवाह हुआ है, उस का पहले से ही किसी औरत के साथ नाजायज संबंध है जिस से उस की एक संतान भी है.

अम्मा को जब जुगुनी से यह बात पता चली तो वह फूली न समाई, ‘‘चलो, उस कमीने परिवार की बरबादी शुरू हो गई है. अब उन की बरबादी का मंजर हम तसल्ली से देखेंगे. कमीने प्रेमेंद्र को खुद पर कितना गरूर था. हमारे दहेज का स्कूटर हथियाने का उसे अब अच्छा दंड मिला है. उस की बहनों ने भी दहेज का सामान कब्जा कर बहती गंगा में खूब हाथ धोया. अब उन की मांग में कभी सिंदूर नहीं सजेगा, यह मेरी साजिश है. उन सब का ऐसा सत्यानाश हो कि वे फिर कभी आबाद न हो सकें और तेजेंद्र का सारा खानदान मटियामेट हो जाए.’’

एक दिन अम्मा ने जुगुनी को फोन पर बतलाया, ‘‘देखना, नंदिनी को जल्दी ही ससुराल से खदेड़ दिया जाएगा और वह घर आ कर बैठेगी. अब उस का दूसरा ब्याह न हो सकेगा क्योंकि यह सब मेरे ही टोनेटोटके का असर है. मैं एक डायन के भी संपर्क में हूं जिस ने अपने कर्मकांडों से तेजेंद्र के परिवार को नेस्तनाबूद करने का मुझ से वादा किया है.’’

जुगुनी खुश थी कि उस की अम्मा उस के रास्ते के सारे कांटे हटा कर उस की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई है. वैसे भी, वह अकेले यह सब कैसे कर पाती? टोनेटोटकों और औघड़बाजी के बारे में तो उसे इतना ज्ञान भी नहीं है जितना अम्मा को है. इसी वजह से अम्मा का मुंबई आनाजाना बढ़ गया. उस का मुंबई आने का तो उद्देश्य ही था कि येनकेनप्रकारेण तेजेंद्र का अपने परिवार से मोहभंग करा कर उसे ऐसी हालत में छोड़ा जाए जैसे धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. आखिरकार, वह अपनी बीवी के ही तलवे चाटेगा.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

दिल का तीसरा कोना

एक हसीना एक दीवाना : पहला भाग

जिस कामिनी को पूरे 3 साल तक कहांकहां नहीं ढूंढ़ा, वह एक दिन अचानक खुद सामने आ जाएगी, प्रभात ने ऐसा कभी नहीं सोचा था. प्रभात एक सरकारी बैंक में अफसर था. उस दिन वह अपने काम में मसरूफ था कि किसी औरत की आवाज कानों में सुनाई पड़ी, तो उस ने मुड़ कर देखा. कामिनी बोली, ‘‘कैसे हो प्रभात?’’

प्रभात ने सिर उठा कर देखा, तो वह खुशी से झूम उठा. उस के  सामने उस की प्रेमिका कामिनी खड़ी थी. प्रभात का दिल हुआ कि वह लोकलाज की परवाह न करते हुए कामिनी को बांहों में भर ले, मगर वह ऐसा न कर सका. उस से पूछा, ‘‘मुझे छोड़ कर तुम कहां चली गई थीं?’’

‘‘मेरे लिए तुम अब भी तड़प रहे हो? क्या तुम ने अब तक शादी नहीं की?’’ कामिनी ने पूछा.

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी चाहत तुम हो, फिर मैं किसी और के साथ शादी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘ऐसी बात है, तो मैं तुम्हारी चाहत जरूर पूरी करूंगी. मैं यहां एक काम से आई थी. तुम्हें देख कर तुम्हारे पास आ गई. मेरा घर पास में ही है. तुम ऐसा करो कि अपना काम खत्म कर के मेरे साथ चलो. वहां पर आराम से बातें करेंगे. बैंक में मेरा जो काम है, वह किसी दूसरे दिन कर लूंगी.’’

प्रभात ने कामिनी को ऊपर से नीचे तक बडे़ ही गौर से देखा. गुलाबी रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह बड़ी खूबसूरत दिख रही थी. प्रभात का उसे पाने के लिए मन मचल गया.

प्रभात ने कहा, ‘‘तुम कहो, तो मैं अभी छुट्टी ले कर चलूं?’’

यह सुन कर कामिनी मुसकरा उठी, फिर बोली, ‘‘इतने उतावले क्यों हो रहे हो? अब तो तुम्हारी चाहत पूरी हो ही जाएगी. फिलहाल तो तुम अपना काम निबटा लो. मैं कहीं बैठ जाती हूं.’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि तुम बैंक में किस काम से आई थीं?’’

‘‘अपना काम शुरू करने के लिए मुझे इस बैंक से अच्छाखासा लोन लेना है. मगर अभी तो तुम मेरे घर चलो.’’

इस के बाद कामिनी सोफे पर जा कर बैठ गई. प्रभात अपना काम खत्म करने में लग गया.

प्रभात बिहार के एक गांव का रहने वाला था. गांव के स्कूल से 12वीं जमात पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह शहर के कालेज में दाखिल हुआ, तो वहां कामिनी से उस की मुलाकात हुई.

कामिनी भी 12वीं जमात पास करने के बाद 2 दिन पहले ही कालेज में दाखिल हुई थी. कामिनी इतनी ज्यादा खूबसूरत थी कि प्रभात अपने दिल पर काबू न रख सका. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह हर हाल में उस से शादी करेगा. फिर तो उसी दिन से वह उस के आगेपीछे लट्टू की तरह नाचने लगा था.

ऐसी बात नहीं थी कि कामिनी की खूबसूरती पर सिर्फ प्रभात ही मरता था. कालेज के ज्यादातर लड़के उस पर अपनी जान छिड़कते थे, मगर बाजी प्रभात के हाथ लगी. 6 महीने बाद प्रभात को लगा कि अगर उस ने अपने दिल की बात कामिनी से नहीं कही, तो कोई दूसरा लड़का बाजी मार ले जाएगा.

आखिरकार हिम्मत कर के एक दिन प्रभात ने कामिनी से कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं. ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं, मगर शादी मैं तभी करूंगी, जब मुझे कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘मैं भी अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी कोई बहन नहीं है. हमारे पास खेती के लिए 80 एकड़ से ज्यादा की जमीन है. उस से हमारा गुजारा मजे से हो जाएगा, फिर तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत है?’’ प्रभात ने पूछा.

‘‘मैं गुजारा नहीं करना चाहती, शानशौकत की जिंदगी जीना चाहती हूं. फिर तुम जिस जमीन की बात कर रहे हो, वह तुम्हारी नहीं तुम्हारे पुरखों की है. मैं चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति अपने पैरों पर खड़ा हो.’’

‘‘ठीक है, मैं किसानी नहीं करूंगा. गे्रजुएशन होने के बाद मैं कहीं नौकरी कर लूंगा. मगर तुम क्यों नौकरी करना चाहती हो?’’

‘‘मैं अपने पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती. मैं खुद पैरों पर खड़ी हो कर अपनी जरूरतें पूरी करना चाहती हूं, इसलिए मैं ने तय किया है कि मैं उसी से शादी करूंगी, जो मेरे रास्ते में दीवार नहीं खड़ी करेगा.’’

‘‘अगर तुम मुझ से प्यार करते हो और मुझ से शादी करना चाहते हो, तो तुम्हें मेरी नौकरी मिलने तक इंतजार करना होगा.’’

प्रभात कामिनी की बात सुन कर राजी हो गया. उस दिन के बाद से प्रभात ने शादी की बात कभी नहीं की. पहले की तरह दोनों एकदूसरे से मिलते रहे. इस तरह ढाई साल बीत गए.

इस के बाद प्रभात मुसीबत में फंस गया. हुआ यह कि एक दिन अचानक उस के पिता ने उसे एक लड़की दिखा कर उस से शादी करने के लिए कहा.

प्रभात कामिनी के सिवा किसी और से शादी नहीं करना चाहता था, इसलिए लड़की के घर से अपने घर आते ही उस ने पिता को कामिनी के बारे में सबकुछ बता दिया.

प्रभात ने अपने पिता को यह चेतावनी भी दी कि अगर कामिनी से उस की शादी नहीं हुई, तो वह खुदकुशी कर लेगा.

प्रभात के पिता ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, मगर समझदार थे. वे बेटे का जुनून समझ गए. 2-3 दिनों तक सोचने के बाद उन्होंने प्रभात से कहा, ‘‘पहले कामिनी से मुझे मिलाओ. उस से बात करने के बाद ही उस के घर वालों से बात करूंगा.’’

यह सुन कर प्रभात खुश हो गया. वह उसी दिन कामिनी से बात कर लेना चाहता था, मगर उस दिन कामिनी कालेज नहीं आई थी. प्रभात ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच औफ था.

प्रभात परेशान हो गया. उस ने बारबार कामिनी को फोन किया, मगर उस का फोन नहीं लगा. अगले दिन भी कामिनी कालेज नहीं आई, तो उस की परेशानी और बढ़ गई.

प्रभात ने कामिनी की 3-4 सहेलियों से बात की. सभी ने यही कहा कि कामिनी का फोन स्विच औफ है, इसलिए पता नहीं कि वह कालेज क्यों नहीं आ रही है.

तीसरे दिन भी कामिनी कालेज नहीं आई, तो प्रभात उस के घर चला गया.

कामिनी का अपना घर दूरदेहात में था. शहर में वह बूआ के साथ रहती थी. बूआ का घर कालेज से 5 किलोमीटर दूर था. कामिनी बस से कालेज आतीजाती थी.

कामिनी की बूआ से प्रभात बहाने से मिला. बूआ ने बताया कि कामिनी की मां की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, इसलिए उसे गांव आना पड़ा.

कामिनी को देखे बिना प्रभात को चैन नहीं मिलने वाला था, इसलिए बूआ से गांव का पता ले कर अगले दिन ही वह मोटरसाइकिल से उस के गांव चला गया.

कामिनी का गांव शहर से 60 किलोमीटर दूर था. गांव की एक बुजुर्ग औरत की मदद से प्रभात कामिनी से एक सुनसान जगह पर मिला.

कामिनी के आते ही प्रभात उस पर बरस पड़ा था, ‘‘फोन पर असलियत बता दी होती, तो मुझे इतना परेशान नहीं होना पड़ता. जानती हो कि एक दिन भी मैं तुम्हें नहीं देखता हूं, तो बेचैन हो जाता हूं. तुम ने अपना फोन भी बंद कर रखा है.’’

कामिनी ने समझाबुझा कर पहले प्रभात का गुस्सा शांत किया, उस के बाद कहा, ‘‘मैं ने फोन बंद नहीं किया था. शहर से गांव आते समय हाथ से छूट कर मोबाइल फोन जमीन पर गिर जाने के चलते खराब हो गया था. तब से बंद पड़ा है. अब शहर जा कर ही फोन को ठीक कराऊंगी.’’

‘‘अच्छा… अब तुम जाओ. यह शहर नहीं गांव है. अगर किसी ने तुम्हारे साथ मुझे देख लिया और मेरे घर वालों को बता दिया, तो मेरी पढ़ाई बंद कर दी जाएगी. तब मेरा सपना भी पूरा नहीं होगा.

‘‘अगर मेरा सपना पूरा नहीं होगा, तो मैं तुम से शादी नहीं कर पाऊंगी. 3-4 दिन बाद मां की तबीयत बिलकुल ठीक हो जाएगी, तो मैं कालेज आ जाऊंगी.’’

कामिनी वहां से चली जाना चाहती थी, लेकिन प्रभात ने उसे जाने नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘दरअसल, मैं तुम्हें एक बात बताने आया हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे बारे में अपने मातापिता को बता दिया है. वे तुम से मिलना चाहते हैं. तुम से बात करने के बाद ही वे तुम्हारे घर वालों से शादी की बात करेंगे.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम? मैं ने पहले ही तुम्हें बताया था कि मैं शादी तभी करूंगी, जब मुझे कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘अभी शादी करने के लिए मैं कहां कह रहा हूं. तुम मेरे पिता से मिल लो, बात कर लो. शादी तभी करना, जब तुम्हें नौकरी मिल जाए.’’

‘‘मैं अभी तुम्हारे घर वालों से नहीं मिलूंगी. तुम भी मेरे घर वालों से मिलने की कोशिश मत करो. अगर ऐसा करोगे, तो मैं तुम से संबंध तोड़ लूंगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि हम कितने गरीब हैं. मेरे पिता बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं. मेरे पिता के पास कुछ नहीं है. वे मजदूरी कर के परिवार को पाल रहे हैं. मेरी 3 और बहनें हैं. वे तीनों मुझ से छोटी हैं. उन के प्रति भी मेरी जिम्मेदारी है.’’

उस के बाद कामिनी रुकी नहीं. प्रभात ठगा सा वहीं खड़ा रह गया. उस रात प्रभात को नींद नहीं आई. कामिनी की बात से उसे एहसास हो गया था कि वह 4-5 साल से पहले शादी नहीं करेगी.

कामिनी के घर से लौटने के बाद प्रभात ने शादी करने की उस की शर्त पिता को बता दी.

पिता ने बगैर देर किए अपना फैसला प्रभात को सुना दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘अब तुम कामिनी को हमेशाहमेशा के लिए भूल जाओ.

‘‘जिस लड़की को मैं ने तुम्हें दिखाया है, 5-6 महीने में उस से शादी कर लो और गे्रजुएशन के बाद खेती में जुट जाओ. अपनी जमीन रहते तुम्हें नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

प्रभात कामिनी से ही शादी करना चाहता था, मगर पिता का विरोध भी नहीं करना चाहता था. वह कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहता था, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

कामिनी से शादी करने का प्रभात को  जब कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा, तो उस ने कामिनी से जिस्मानी रिश्ता बनाने का फैसला किया. उसे लगा कि रिश्ता हो जाने के बाद कामिनी अपनी शर्त भूल जाएगी और उस से शादी कर लेगी.

(क्रमश:)

क्या प्रभात कामिनी के साथ जिस्मानी रिश्ता बना पाया? इतने साल बाद कामिनी और प्रभात का इश्क क्या रंग लाया? पढि़ए अगले अंक में…

माध्यम: भाग 1

लेखिका- कुसुम गुप्ता

बंबई से आए इस पत्र ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. दोपहर को पत्र आया था, तब प्रदीप दफ्तर में थे. अब रात के 9 बज गए हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए.

फाड़ कर फेंक दूं इसे? डाक विभाग पर दोष लगाना बड़ा सरल है. बाद में कभी प्रदीप या उन की मां ने इस विषय को उठाया तो मैं कह दूंगी कि वह पत्र मुझे कभी मिला ही नहीं.

या फिर प्रदीप से सीधी बात कर ली जाए. जैसेतैसे उन्हें छुट्टी मिली है. छुट्टी यात्रा भत्ता ले कर वह दक्षिण भारत की यात्रा पर जा रहे हैं. सिर्फ हम दोनों. बंगलौर, ऊटी, त्रिवेंद्रम, कोवलम और कन्याकुमारी. पिछले कई दिनों से तैयारियां चल रही हैं और परसों सुबह की गाड़ी से हमें रवाना हो जाना है. प्रदीप को इस पत्र के बारे में बताया तो संभव है कि हमारे पिछले 2 वर्ष के वैवाहिक जीवन में प्रथम बार यह यात्रा कार्यक्रम स्थगित हो जाए.

फिर मन इस मानवीय आधार पर पूरे प्रसंग की विवेचना करने लगा. प्रदीप की मां मेरी सास हैं. सास और मां में क्या अंतर है? कुछ भी तो नहीं. उन की बाईं टांग में प्लास्टर चढ़ा है. स्नानागार में फिसल गईं. टखने और घुटने की हड्डियों में दरार आ गई है. गनीमत हुई कि वे टूटी नहीं. उन्हें 3 सप्ताह तक बिस्तर पर विश्राम करने की सलाह दी गई है.

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घर पर कौन है? प्रदीप के पिता, छोटा भाई और सीमा. अरे, सीमा कहां है? उस का तो पिछले वर्ष विवाह हो गया. पत्र में लिखा है कि सीमा को बुलाने के लिए दिल्ली फोन किया था पर उस की सास ने अनुमति नहीं दी. सीमा की ननद अपना पहला जापा करने मायके आई हुई है. सास का गठिया परेशान कर रहा है. उधर सीमा का पति किसी विभागीय परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा है.

प्रदीप के भाई ने पत्र लिखा है. मांजी ने ही लिखवाया है. यह भी लिखा है कि घर के कामकाज में बड़ी दिक्कत हो रही है. नौकरानी भी छुट्टी कर गई है.

घर की इस दुर्दशा का वर्णन पढ़ कर मेरा अंतर द्रवित हो गया. मैं ने सोचा, संकट के समय अपने बच्चे ही तो काम आते हैं. मांजी चाहती हैं कि मैं उन की सेवा के लिए औरंगाबाद से बंबई आ जाऊं. पर शालीनता या संकोचवश उन्होंने लिखवाया नहीं. उन्हें पता है कि हम लोग 2 सप्ताह की छुट्टी ले कर घूमने जा रहे हैं.

एक मन किया, छुट्टी का सदुपयोग दक्षिण भारत की यात्रा नहीं, संकटग्रस्त परिवार की सेवा कर के किया जाए. पर तभी मन कसैला सा हो गया. शादी के पहले वर्ष में मेरे साथ मांजी ने जो व्यवहार किया था उस की कटु स्मृति आज तक मुझे छटपटाती है.

तब प्रदीप बंबई में ही नियुक्त थे. मैं अपने सासससुर के साथ ही रह रही थी. एक दिन नासिक से पिताजी का पत्र आया था. लिखा था कि कौशल्या बीमार है. उसे टायफाइड हुआ और बाद में पीलिया. डाक्टरों ने 4 हफ्ते पूर्ण विश्राम की सलाह दी है. वह बेहद परेशान है. पर मैं और तेरा छोटा भाई उस की देखभाल कर लेते हैं. खाना पकाने में दिक्कत होती है. पर पेट भरने के लिए कुछ कच्चापक्का बना ही लेते हैं. कभी दूध, डबलरोटी ले लेते हैं, कभी बाजार से छोलेभठूरे ले आते हैं.

पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. घर की ऐसी दुर्दशा. मेरा दिल किया कि मैं उड़ कर नासिक पहुंच जाऊं. शादी के बाद, पूरे 1 वर्ष में केवल रक्षाबंधन पर मैं 1 दिन के लिए अपने घर गई थी. प्रदीप साथ में थे.

मैं ने मांजी से घर जाने के लिए कहा तो वह संवेदनशून्य स्वर में बोलीं, ‘शादी के बाद लड़की को बातबेबात मायके जाना शोभा नहीं देता. उसे तो सिर्फ एक बार, और वह भी किसी त्योहार पर ही मां के घर जाना चाहिए.’

‘मांजी, मां को पीलिया हो गया है. घर में…’

‘बहू, घर में यह मामूली हारीबीमारी तो चलती रहती है. इस तरह छोटेमोटे बहाने से मायके की तरफ लपकना अच्छा लगता है?’ मांजी ने विद्रूप स्वर में ताना कसा.

‘पर भाई और पिताजी को ठीक से खाना नहीं मिल रहा है…’

‘देखो बहू, उस घर को भूल जाओ. अब तो तुम्हारा घर यह है. तुम्हारा पहला फर्ज बनता है हम लोगों की सेवा.’

‘मांजी, यह तो ठीक है पर जरा सोचिए, जिन मांबाप ने जन्म दिया, जिन्होंने पालपोस कर इतना बड़ा किया, शादीब्याह किया, क्या कोई लड़की उन्हें एकदम भुला सकती है? यह तो खून का अटूट संबंध है. इसे भुलाना संभव नहीं,’ मैं भावावेश में कह गई.

‘बहू, हमारे भी मांबाप थे. हमारे भी खून के संबंध थे. पर एक बार इस घर की चौखट के अंदर कदम रखा नहीं कि एक झटके से मायके को भूल गए. यह तो जग की रीति है. शादी होती है. सात फेरों के साथ लड़की का नया रिश्ता जुड़ता है. पुराना रिश्ता टूट जाता है. ऐसा ही होता आया है.’

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‘वह तो ठीक है, मांजी. लड़की का कर्तव्य है कि वह सासससुर, पति, बच्चों की सेवा करे पर इस का यह अर्थ नहीं कि वह अपने जन्मदाताओं के सुखदुख में भी काम न आए. यह कैसी एकांगी विचारधारा है?’

‘जो शादीशुदा लड़कियां हर समय मायके वालों के चक्कर में पड़ी रहती हैं वे ससुराल में किसी को सुखी नहीं रख सकतीं. 2 घरों की एकसाथ देखभाल असंभव है.’

‘मांजी, क्या दोनों के बीच कोई संतुलन…’

‘मीना, तुम बहुत बहस करती हो, मानती हूं, तुम पढ़ीलिखी हो पर इस का यह मतलब नहीं कि…’

‘मैं बहस नहीं कर रही हूं. मैं 1 हफ्ते के लिए नासिक जाने की आज्ञा मांग रही हूं.’

‘मैं कुछ नहीं जानती. तुम जानो और तुम्हारा पति.’

मांजी का उखड़ा स्वर, फूला मुंह और मटकती हुई गरदन क्या मेरी प्रार्थना की अस्वीकृति के साक्षी नहीं थे? मेरा मन बुझ गया. क्या यह क्रूरता और हृदयहीनता नहीं? अपने स्वार्थ के लिए संबंधियों के सुखदुख में भागीदारी न करना क्या उचित है?

उद्विग्न और निराश मैं चुप लगा गई. जी में तो आया कि मांजी के इस अनुचित व्यवहार के विरुद्ध विरोध का झंडा खड़ा कर दूं.

कहूं, ‘कल को आप की बेटी का विवाह होगा. आप को कोई तकलीफ हो और आप उसे बुलाएं और उस के ससुराल वाले न भेजें तो आप को कैसा महसूस होगा, जरा सोचिए.’

मैं ने आगे बहस नहीं की. उस से कुछ नहीं होना था. केवल धैर्य, सहिष्णुता तथा उदारता के आधार पर ही हम पारिवारिक शांति स्थापित कर सकते हैं. वही मैं ने किया.

पर मेरे अंदर की घुटन को अभिव्यक्ति मिली रात में. जब हम दोनों बिस्तर पर अकेले थे तब प्रदीप ने मेरी उदासी का कारण पूछा था. मैं ने पूरा किस्सा उन्हें सुना दिया. सुन कर वह हंसे और बोले, ‘मांजी के इन विचारों का मैं स्वागत करता हूं.’

‘आप क्यों नहीं करेंगे? अरे, घुटना पेट की तरफ मुड़ता है. एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं आप दोनों.’

‘नहीं श्रीमतीजी, मांजी की बात में सार है. विवाह के बाद इतनी जल्दी पतिपत्नी विरह की अग्नि में जलें, कोई मां ऐसा चाहेगी.’

‘आप सोचते हैं, किसी लड़की के मांबाप. भाईबहन भूखे रहें और वह मिलन के गीत तू मेरा चांद, मैं तेरी चांदनी… गाती रहे.’

इस बार प्रदीप गंभीर हो गए. बोले, ‘भई, नाराज क्यों होती हो? अगर जाना चाहती हो तो ठीक है. कल सुबह मांजी को पटाने की कोशिश करेंगे.’

‘मैं जाऊं या न जाऊं, इस से कोई खास अंतर नहीं पड़ता पर मांजी का यह व्यवहार, संवेदनाशून्य, क्रूर और एकांगी नहीं है क्या? आप ही बताइए?’

‘हर व्यक्ति अपने हिसाब से काम करता है. मां ने जो कुछ कहा और किया वह उन का दृष्टिकोण है, जीवनदर्शन है. और यह दर्शन बनता है हमारी अतीत की अनुभूतियों से. मीना, शायद तुम्हें विश्वास न हो पर यह सच है कि मां एक ऐसे परिवार से आईं जहां लड़की का विवाह एक मुक्ति का एहसास माना जाता था और दोबारा मायके आना अभिशाप.’

‘वह क्यों?’ मैं ने उत्सुक हो कर पूछा.

‘इसलिए कि मां के मायके में 11 बहनभाई थे. 8 बहनें और 3 भाई. नानानानी एकएक लड़की की शादी करते और दोबारा उस का नाम नहीं लेते. मां भी इस घर में आईं. भीड़, अभाव और विपन्नता से शांति, समृद्धि और सुख के माहौल में एक बार इस घर में आईं तो फिर मुड़ कर उस घर को नहीं देखा. बस, शादीब्याह के मौके पर गईं या न गईं.’

‘वह तो ठीक है, पर…’

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‘सच कहूं,’ प्रदीप ने कहा, ‘हम लोग ननिहाल जाते तो वहां पर मां का कोई खास स्वागत नहीं होता. हम लोग एक तरह से उन पर बोझ बन जाते. ज्यादा काम, मेहमानदारी पर खर्चा और लौटने पर बेटी और बच्चों को उपहार देने का संकट.’

‘ठीक है, प्रदीप, मैं मांजी की मनोदशा समझ गई. पर वह यह क्यों नहीं सोचतीं कि उन की और मेरी स्थिति में आकाशपाताल का अंतर है. उन के मायके में संकट में घर का काम करने के लिए और बहनें थीं. मैं अकेली हूं. उन को पीहर में एक बोझ समझा जाता था पर मेरा मेरे घर में अभूतपूर्व स्वागत होता है, आप स्वयं देख चुके हैं.’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

माध्यम: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- माध्यम: भाग 1

लेखिका- कुसुम गुप्ता

‘ठीक है. मैं कल सुबह मांजी से बात करूंगा,’ कह कर प्रदीप ने मुझे अपने अंक में समेट लिया. शारीरिक उत्तेजना और रासरंग की बाढ़ में मेरे अंतर की समस्त कड़वाहट डूब गई.

अगले दिन सुबह मैं तो रसोईघर में नाश्ता बनाने में व्यस्त थी और मांबेटा बाहर मेरे नासिक जाने के प्रश्न पर ऐसी गंभीरता से विचार कर रहे थे जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ में निरस्त्रीकरण पर बहस.

मैं नाश्ता ले कर बाहर आई तो महसूस किया जैसे प्रदीप विजय के द्वार पर पहुंच गए हैं. मां उन से कह रही थीं, ‘बीवी का गुलाम हो गया है. उसी के स्वर में बोलने लगा है.’

मुझे देख, उन्होंने बनावटी गुस्से से कहा, ‘बहू, तू 2 हफ्ते के लिए नासिक चली जाएगी तो इस घर और प्रदीप की देखभाल कौन करेगा?’

‘आप जो हैं, मांजी,’ मेरे मुंह से अनायास निकल गया.

मैं नासिक गई. पहुंच कर देखा, मां पीली पड़ गई थीं. एकदम अशक्त और असहाय. पिताजी कैसे उलझे और अस्तव्यस्त से लग रहे थे…और भाई क्लांत. मुझे देखते ही तीनों के चेहरे खिल गए. एक मुक्ति, निश्चिंतता का भाव उन के मुख पर उभर आया.

‘तू आ गई, बेटी. अब कोई चिंता नहीं. तेरे बिना तो यह घर खाने को दौड़ता है, मैं बिस्तर पर पड़ गई. घर के रंगढंग ही बिगड़ गए,’ मां ने उदास स्वर में कहा.

काश, मेरी सास होतीं उस समय और देख पातीं उन लोगों के मुख पर उभरती संतुष्टि, कृतज्ञता तथा संकटमुक्ति की अनुभूति को.

‘‘मीना, क्या बात है? आज तो शाम से तुम गौतम बुद्ध हो गई हो. एकदम समाधिस्थ, चिंतन में डूबी.’’

प्रदीप ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर झकझोर दिया. मैं अतीत की गलियों से लौट कर, वर्तमान के राजपथ पर आ गई. हां, मैं सचमुच खो गई थी. 3 विकल्प थे मेरे सामने. 2 में बेईमानी, संवेदनशून्यता और क्रूरता थी.

अनायास मैं ने दोपहर को बंबई से आया पत्र प्रदीप की ओर बढ़ा दिया. उलझे हुए हावभाव का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने मुझ से पत्र लिया और गौर से पढ़ने लगे. मेरी दृष्टि प्रदीप के मुख पर टिकी थी. कुछ पल पूर्व की प्रफुल्लता उन के चेहरे से काफूर हो गई और उस का स्थान ले लिया, चिंता, ऊहापोह, उलझन और उदासी ने.

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पत्र पढ़ कर प्रदीप ने मेरी तरफ याचक दृष्टि से ताका और बोले, ‘‘यह तो सब गड़बड़ हो गया. अब क्या करना है?

‘‘सीमा की ससुराल वाले भी कमाल के लोग हैं. मायके में इतनी परेशानी है. पर उन्हें तो अपने बेटे के इम्तिहान और बेटी के जापे की चिंता है, बहू की मां चाहे मरे या जिए, उन की बला से.’’

‘‘प्रदीप, हर सास ऐसे ही सोचती है. याद है, पिछले साल, आप का औरंगाबाद तबादला होने से पहले मेरे घर से चिट्ठी आई थी.’’

‘‘मैं ने तुम्हें भेजा था.’’

‘‘हां, प्रदीप. आप ने समझदारी से काम लिया था. पर मैं ने आप को एक बात नहीं बताई.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मांजी ने मुझ से बड़ी कड़वी बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि जो लड़कियां बातबेबात मायके दौड़ती हैं, उन का अपना घर कभी सुखी नहीं रह सकता. लड़की की मां, बेटी की समस्याओं के लिए ससुराल वालों की आलोचना करती है, लड़की को भड़काती है. ससुराल वालों के प्रति उन के मन में वितृष्णा उत्पन्न करती है. फल यह होता है कि लड़की अपने घर जा कर स्थापित नहीं हो पाती.’’

‘‘मीना, उस को छोड़ो. अब बताओ, क्या करना है?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘करना क्या है? हमें कल सुबह ही बंबई रवाना होना है.’’

‘‘और छुट्टी का क्या होगा?’’

‘‘प्रदीप, घूमनेफिरने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है. हम मांजी को बीमार और पिताजी तथा भैया को इस संकट में छोड़ कर सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते हैं? मायका हो या पति का घर, बच्चों तथा बहूबेटी का मांबाप, सासससुर की सेवा करना प्रथम कर्तव्य है.’’

‘‘और यह जो सामान बंधा हुआ है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उसे भी बंबई लिए चलते हैं.’’

प्रदीप ने मेरी ओर अनुराग भरी दृष्टि डाली. क्या उस में केवल स्नेह था? नहीं, उस में प्रशंसा, गर्व, खुशी और संतोष सब का संगम था.

अगले दिन दोपहर बाद करीब साढ़े 3 बजे हम लोग बंबई पहुंच गए. अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के हमें आया देख कर मां, पिताजी और छोटे भैया के चेहरों पर सूर्योदय के बाद की सी चमक आ गई. वे कितने खुश, मुग्ध और चिंतारहित से लगने लगे थे.

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मैं ने मांजी की दशा देखी तो अपने निर्णय की बुद्धिमत्ता का विचार आत्मतुष्टि उत्पन्न कर गया. वास्तव में वह काफी तकलीफ में थीं. साथ ही घर पूरी तरह से अस्तव्यस्त हो चुका था.

‘‘बहू आ गई. अब कोई चिंता नहीं,’’ यह थी पिताजी की प्रतिक्रिया. उन्होंने चैन की सांस ली.

‘‘भाभी, आप अचानक कैसे आ गईं?’’ मेरे देवर ने घोर आश्चर्य से पूछा.

‘‘बहू, तुम लोग तो दक्षिण भारत की यात्रा पर जाने वाले थे?’’ मांजी ने पूछा.

‘‘हां, मांजी. पर मातापिता की सेवा तो हम सब का प्रथम कर्तव्य है. आप की दुर्घटना की सूचना पा कर हम सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते थे?’’

मांजी कुछ नहीं बोलीं. केवल उन की आंखों में नमी उभर आई.

हमारे आगमन से घर में नवजीवन का संचार हो गया. मैं ने आते ही घर के संचालन की बागडोर संभाल ली. सफाई, धुलाई, रसोईघर का काम, खाना बनाना, मांजी की सेवा और समयसमय पर उन को दवा तथा खानपान देना.

3-4 दिन में ही घर का कायाकल्प हो गया.

चौथे दिन मांजी के मुख से निकल ही गया, ‘‘घर को पुरुष नहीं, औरत ही चला सकती है, चाहे वह बहू हो या बेटी.’’

मैं क्या कहती? शब्दों में नहीं, गरदन को हिला कर मैं ने मांजी के कथन से अपनी सहमति प्रकट कर दी.

‘‘सीमा की ससुराल वाले बड़े मतलबी और स्वार्थी हैं. जोत रखा होगा मेरी बेटी को. 4 दिन पहले ननद के बेटी हुई है. जच्चा का कितना काम फैल जाता है. सास की निर्दयता तो देखो, उसे इतना भी खयाल नहीं कि बहू की मां की टांग टूट गई है और घर पर कोई नहीं है देखभाल करने वाला…’’

मांजी की भुनभुनाहट सुन कर मुझे अंदर से खुशी हुई. इनसान पर जब बीतती है तब उसे पता चलता है. पिछले वर्ष मांजी को क्या हुआ? तब वह सास थीं और आज? केवल मां.

7वें दिन एक अप्रत्याशित घटना घटी. शाम के 7 बजे अचानक, बिना किसी पूर्व सूचना के सीमा आ धमकी. साथ में था अशोक, उस का पति.

घर में खुशी की धूम मच गई. मांजी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. बेटी और दामाद का अनायास आगमन निश्चित रूप से अभूतपूर्व सुख का क्षण था.

हमें देख कर वे दोनों चौंके. उन्होंने हमारे वहां होने की कल्पना तक नहीं की थी.

‘‘चिट्ठी पा कर दौड़े चले आए बेचारे. 1 सप्ताह से बहू ऐसी सेवा कर रही है कि बस पूछो मत,’’ मांजी के स्वर में सच्ची प्रशंसा थी.

‘‘भाभी, कितनी छुट्टियां बची हैं तुम्हारी?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘यही 8-10 दिन,’’ मैं ने एक दीर्घ निश्वास छोड़ कर कहा.

‘‘ठीक है. कल खिसको यहां से. अब मैं संभालती हूं यह मोरचा,’’ सीमा बोली.

‘‘पर अब आरक्षण वगैरह कैसे मिलेगा?’’ प्रदीप के स्वर में निराशा थी.

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‘‘भैया, मतलब तो छुट्टी और सैरसपाटे से है. दक्षिण नहीं जा सकते तो गोआ चले जाओ. बसें जाती हैं. वहां ठहरने के लिए जगह मिल ही जाएगी. कैलनगूट तट की सुनहरी बालू में अर्धनग्न लेट कर मस्ती मारो,’’ सीमा एक सांस में कह गई.

प्रदीप ने मेरी तरफ देखा और मैं ने उस की तरफ.

‘‘हां, बहू. अब सीमा आ गई है. तुम लोग कल चले जाओ. क्यों छुट्टियां बरबाद करते हो,’’ कह कर मांजी ने सीमा से पूछा, ‘‘क्यों री, तेरी सास ने तुझे कैसे छोड़ दिया?’’

‘‘पिताजी की चिट्ठी पढ़ कर उन्होंने खुद कहा कि मैं तुरंत बंबई जाऊं. उन्होंने तो पहले भी मना नहीं किया था. वह तो मुझे ही कहने का साहस नहीं हुआ. इन के इम्तिहान, मंजू बहनजी का जापा और फिर यह भी आप को देखने के लिए चिंतित हो गए.’’

मांजी के मुख पर रुपहली आभा बिखर गई. वह भावातिरेक से कांपने लगीं फिर कुछ क्षण बाद बोलीं, ‘‘सचमुच, मेरे बच्चे और संबंधी इतने उदार, कृपालु और प्रेमी हैं. कितना खयाल रखते हैं हमारा.’’

‘‘बहू,’’ मांजी ने मुझे संबोधित कर के कहा, ‘‘6 मास पूर्व के अपने आचरण पर मैं लज्जित हूं. पहले जमाने में परिवार के अंदर लड़कियों की सेना होती थी. एक गई तो दूसरी उस का स्थान ले लेती थी. पर आज? हम दो, हमारे दो. एकमात्र लड़की चली जाए तो बहुत खलता है. उस पर वह हारीबीमारी, सुखदुख में काम न आए तो बड़ा भावनात्मक कष्ट होता?है,’’ कह कर मांजी ने थकान के कारण आंखें बंद कर लीं.

‘‘आप आराम कीजिए, मांजी,’’ कह कर हम सब बगल के कमरे में चले गए और गप्पें मारने लगे.

मुझे अपने निर्णय पर संतोष था. साथ ही अगले दिन गोआ जाने का मन में उत्साह था. संभवत: मेरे लिए सब से ज्यादा गौरव की बात थी, मेरे अपने घर में मानवीय संबंधों के आधारभूत मूल्यों की पुन: स्थापना…शायद इस का माध्यम मैं ही थी.

एक हसीना एक दीवाना

एक हसीना एक दीवाना : आखिरी भाग

पिछले अंक में आप ने पढ़ा:

3 साल बाद अपनी प्रेमिका कामिनी को देख कर प्रभात हैरान था. प्रभात ने बताया कि उस ने अभी तक शादी नहीं की है. कामिनी ने उसे अपने घर बुलाया और उस की हर चाहत पूरी करने का भरोसा दिलाया. दरअसल, प्रभात की कामिनी से पहली मुलाकात कालेज में हुई थी. वह उस से प्यार करने लगा था, लेकिन तब कामिनी ने उस से कहा था कि वह नौकरी मिलने के बाद ही शादी करना चाहेगी. इस के बाद वह प्रभात के प्रस्ताव को बारबार टालती रही. इस से परेशान प्रभात ने कामिनी के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने का फैसला किया.
अब पढ़िए आगे…

कामिनी गांव से लौट कर शहर आ गई. वह रोज कालेज आनेजाने लगी, तो प्रभात पहले की तरह उस से मिलनेजुलने लगा. कामिनी को प्रभात ने यह कह कर यकीन दिला दिया था कि जब वह कहेगी, तभी उस से शादी करेगा.

3 महीने बाद प्रभात को शहर में 3-4 घंटे के लिए एक फ्लैट मिल गया. फ्लैट उस के दोस्त का था. उस दिन उस के घर वाले कहीं बाहर गए हुए थे. दोस्त ने सुबह ही फ्लैट की चाबी प्रभात को दे दी थी. उस दिन प्रभात कालेज के गेट पर समय से पहले ही जा कर खड़ा हो गया. कामिनी आई, तो उसे गेट पर ही रोक लिया. वह बहाने से अपने दोस्त के फ्लैट में ले गया.

प्रभात ने जैसे ही फ्लैट के दरवाजे पर अंदर से सिटकिनी लगाई, कामिनी चौंक गई. वह उस की तरफ घूरते हुए बोली, ‘‘तुम ने दरवाजा बंद क्यों किया?’’ ‘‘मुझे तुम से जो बात करनी है, वह दरवाजा बंद कर के ही हो सकती है. बात यह है कामिनी कि जब तक मैं तुम्हें पा नहीं लूंगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा. तुम तो अभी शादी नहीं करना चाहती, इसलिए मैं चाहता हूं कि शादी से पहले तुम मुझ से सुहागरात मना लो. इस में हर्ज भी नहीं है, क्योंकि एक न एक दिन तुम मेरी पत्नी बनोगी ही.’’

प्रभात के चुप होते ही कामिनी बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो क्या? ऐसा करना सही नहीं है. मैं अपना तन शादी के बाद ही पति को सौंपूंगी. इस की कोई गारंटी नहीं है कि मेरी शादी तुम से ही होगी, इसलिए अभी मेरा जिस्म पाने की ख्वाहिश छोड़ दो.’’ ‘‘प्लीज, मान जाओ कामिनी. मैं अब मजबूर हो गया हूं. देखो, तुम्हें अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए प्रभात कामिनी के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा.

कामिनी जोर लगा कर उस की पकड़ से छूट गई और बोली, ‘‘मैं तुम्हारा इरादा समझ गई हूं. तुम्हें यह लगता है कि मेरे साथ जोरजबरदस्ती करोगे, तो मजबूर हो कर मैं अपना मकसद भूल जाऊंगी और तुम से शादी कर लूंगी. मगर ऐसा हरगिज नहीं होगा. ‘‘अगर तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे, तो मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी. मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी. उस के बाद तुम्हारा क्या होगा, यह तुम खुद सोच सकते हो. तुम जेल चले जाओगे, तो क्या तुम्हारी जिंदगी बरबाद नहीं हो जाएगी?’’

रेप के खतरे से कामिनी डर गई थी और बचने का तरीका ढूंढ़ने लगी थी. कुछ देर चुप रहने के बाद कामिनी प्रभात को समझाने लगी, ‘‘मेरी मानो तो अभी सब्र से काम लो. 3 महीने बाद हमारे इम्तिहान होंगे. उस के 2-3 महीने बाद रिजल्ट आएगा. फिर हम बैठ कर आपस में बात कर लेंगे.

‘‘मैं जानती हूं कि तुम हर हाल में मुझे पाना चाहते हो. मैं तुम्हारी ख्वाहिश जरूर पूरी करूंगी. मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगी. मैं तुम्हें प्यार करती हूं, तो तुम से ही शादी करूंगी न.’’ कामिनी ने प्रभात को तरहतरह से समझाया, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. उस दिन उस के साथ सैक्स करने का इरादा छोड़ कर उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं. रिजल्ट आने तक मैं शादी के लिए तुम्हें परेशान नहीं करूंगा, लेकिन तुम्हें भी मेरी एक बात माननी होगी.’’

‘‘कौन सी बात?’’ कामिनी ने पूछा. ‘‘मेरे पिता से मिल कर तुम्हें यह कहना होगा कि गे्रजुएशन पूरी करने के बाद तुम मुझ से शादी कर लोगी. नौकरी की तलाश नहीं करोगी.’’

कुछ सोच कर कामिनी प्रभात की बात मान गई. 2 दिन बाद प्रभात के साथ कामिनी उस के घर गई. उस के मातापिता से उस ने वह सबकुछ कह दिया, जो प्रभात चाहता था. साथ ही, उस ने उस के पिता से यह भी कहा कि अभी वे उस के घर वालों से न मिलें. रिजल्ट आने के बाद ही मिलें.

प्रभात के मातापिता ने भी कामिनी की बात मान ली. उस के बाद सबकुछ पहले की तरह चलने लगा. इम्तिहान के बाद कामिनी गांव चली गई. उस के बाद प्रभात उस से मिल न सका.

गांव जाते समय कामिनी ने उस से कहा था कि वह उस से मिलने कभी गांव न आए. अगर वह गांव में आएगा. तो उस की बहुत बदनामी होगी. वह उस से फोन पर बात करती रहेगी. रिजल्ट मिलने के एक महीने बाद वह अपने पिता को रिश्ते की बात करने के लिए उस के घर भेज देगी. प्रभात ने उस की बात मान ली. वह उस से मिलने उस के घर कभी नहीं गया.

प्रभात ने सोचा था कि रिजल्ट लेने कामिनी आएगी, तो उसी दिन वह उस से भविष्य की बात कर लेगा. मगर उस का सोचा नहीं हुआ. रिजल्ट लेने कामिनी कालेज नहीं आई. उस का कोई रिश्तेदार आया था और रिजल्ट ले कर चला गया.

प्रभात फर्स्ट डिवीजन में पास हुआ था, जबकि कामिनी सिर्फ पास हुई थी. बधाई देने के लिए प्रभात ने कामिनी को फोन किया, पर उस का फोन स्विच औफ था.

रिजल्ट मिलने के एक दिन पहले तक कामिनी का फोन ठीक था. प्रभात ने उस से बात की थी. अचानक उस का फोन क्यों बंद हो गया, यह वह समझ नहीं पाया. प्रभात कामिनी से तुरंत मिलना चाहता था, मगर वह उस के गांव इसलिए नहीं गया कि उस ने मना कर रखा था. वह उस के साथ वादाखिलाफी नहीं करना चाहता था.

कई दिनों तक प्रभात ने फोन पर कामिनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. एक महीना बीत गया. वादे के मुताबिक कामिनी ने अपने मातापिता को प्रभात के घर नहीं भेजा, तो एक दिन वह उस के गांव चला गया.

पहली बार जिस औरत के सहयोग से प्रभात कामिनी से मिला था, वह सीधे उसी के घर गया. उस औरत से प्रभात को पता चला कि रिजल्ट मिलने के कुछ दिन बाद कामिनी को मुंबई में नौकरी मिल गई थी. अभी वह मुंबई में है. कामिनी मुंबई में कहां रहती थी, उस औरत को इस की जानकारी नहीं थी.

कामिनी के बिना प्रभात रह नहीं सकता था, इसलिए बेखौफ उस के घर जा कर उस के मातापिता और बहनों से मिला. अपनी और कामिनी की प्रेम कहानी बता कर प्रभात ने उस के पिता से कहा, ‘‘कामिनी को मैं इतना प्यार करता हूं कि अगर उस से मेरी शादी नहीं हुई, तो मैं पागल हो कर मर जाऊंगा. मुंबई में वह कहां रहती है? उस का पता मुझे दीजिए. मैं उस से पूछूंगा कि उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’’

कामिनी का पता देना तो दूर उस के पिता ने दुत्कार कर प्रभात को घर से निकाल दिया. घर आ कर प्रभात ने कामिनी का सारा सच पिता को बता दिया. उस के पिता प्रभात को बरबाद होता नहीं देखना चाहते थे. उन्होंने जल्दी ही उस की शादी करने का फैसला किया. आननफानन उस के लिए लड़की तलाश कर शादी भी पक्की कर दी.

प्रभात के दिलोदिमाग से कामिनी अभी गई नहीं थी. उसे लग रहा था कि अगर वह कामिनी से शादी नहीं करेगा, तो जरूर पागल हो कर रहेगा, इसलिए उस ने मुंबई जा कर कामिनी को ढूंढ़ने की सोची. प्रभात जानता था कि उस ने अपने दिल की बात पिता को बता दी, तो वे खुदकुशी करने की धमकी दे कर शादी करने के लिए मजबूर कर देंगे.

शादी में 2 दिन बच गए, तो किसी को कुछ बताए बिना प्रभात घर से मुंबई चला गया. वहां एक दोस्त के घर में रह कर प्रभात ने नौकरी की तलाश के साथसाथ कामिनी की तलाश भी जारी रखी. 6 महीने बाद प्रभात को एक सरकारी बैंक में नौकरी मिल गई, लेकिन कामिनी का पता नहीं चला.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच उस ने चिट्ठी लिख कर अपने पिता को यह बता दिया था कि वह मुंबई में सहीसलामत है. कामिनी से शादी करने के बाद ही वह घर आएगा. 3 साल बाद अचानक प्रभात का ट्रांसफर कोलकाता हो गया. 2 महीने से वह कोलकाता की एक शाखा में अफसर था और इस बात से बेहद चिंतित था कि अब वह कामिनी की तलाश कैसे करेगा?

आज अचानक कामिनी खुद ही उस के पास आ गई. शाम के साढ़े 5 बजे प्रभात की छुट्टी हुई, तो वह कामिनी के पास गया. कामिनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अब चलें?’’

‘‘हां, चलो.’’ बैंक से कुछ ही कदम पर कामिनी का घर था. पैदल चलतेचलते प्रभात ने पूछा, ‘‘रिजल्ट आने के बाद तुम मुझ से शादी करने वाली थीं, फिर मुझे बिना बताए घर से चली क्यों गई थीं?’’

‘‘तुम तो जानते ही थे कि मैं अपने पैरों पर खड़ी होने के बाद ही शादी करना चाहती थी. उस दिन तुम मेरे साथ जिस्मानी हरकत करने पर उतारू हो गए थे, इसलिए मुझे तुम से झूठा वादा करना पड़ा था. ‘‘मैं जानती थी कि रिजल्ट आने के बाद शादी के लिए तुम मुझ पर दबाव डालोगे, इसलिए रिजल्ट निकलने के कुछ दिन बाद ही अपने मामा के पास मुंबई चली गई थी. मेरे मामा वहां एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं.

‘‘मामा के पास रह कर ही मैं ने नौकरी पाने की कोशिश की, तो 7-8 महीने बाद मुझे प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. पर पोस्टिंग मुंबई में न हो कर कोलकाता हुई. तब से मैं कोलकाता में ही हूं.’’ बात करतेकरते कामिनी घर पहुंच गई. दरवाजा बंद था. ताला खोलने के बाद कामिनी बोली, ‘‘तुम्हारी पूर्व प्रेमिका के घर में तुम्हारा स्वागत है.’’

‘‘पूर्व क्यों? आज भी तुम मेरी प्रेमिका हो. तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता. जब तक मैं तुम्हें पा नहीं लूंगा, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा,’’ कहते हुए प्रभात अंदर आ गया. ‘‘ऐसी बात है, तो आज मैं पहले तुम्हारी चाहत पूरी करूंगी, उस के बाद कोई बात करूंगी.’’

दरवाजा अंदर से बंद करने के बाद प्रभात की आंखों में आंखें डाल कर कामिनी बोली, ‘‘तुम बैडरूम में जा कर मेरा इंतजार करो. मैं कपड़े बदल कर जल्दी आती हूं.’’ ‘‘मतलब, शादी से पहले ही तुम अपना सबकुछ मुझे सौंप दोगी?’’

‘‘हां,’’ कामिनी चुहलबाजी करते हुए बोली. यह सुन कर प्रभात हैरान था. कामिनी में हुए बदलाव की वजह वह समझ नहीं पा रहा था.

प्रभात को हैरत में देख कामिनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘आज मैं तुम्हारी चाहत पूरी कर देना चाहती हूं, तो तुम्हें हैरानी हो रही है?’’ ‘‘हैरानी इसलिए हो रही है कि पहले मैं कभीकभी तुम्हें चूम लेता था, तो तुम यह कह कर डांट देती थीं कि शादी से पहले यह सब करोगे, तो मिलनाजुलना तो दूर बात करना भी बंद कर दूंगी, फिर अचानक आज तुम ने अपना सबकुछ मेरे हवाले करने का मन कैसे बना लिया?’’

‘‘तुम ने अब तक शादी नहीं की और न ही मेरी तलाश बंद की. इसी वजह से तुम पर मेरा प्यार उमड़ पड़ा है. वैसे, तुम नहीं चाहते हो, तो कोई बात नहीं है. हम यहीं बैठ कर बात कर लेते हैं,’’ कामिनी बोली. प्रभात हाथ आए मौके को गंवाना नहीं चाहता था. पता नहीं, कामिनी का मन कब बदल जाए, इसलिए उस ने झट से कह दिया, ‘‘मैं क्यों नहीं चाहूंगा. तुम्हें पाने के लिए ही तो मैं 3 साल से दरदर भटक रहा था. तुम बताओ कि बैडरूम किधर है?’’

‘‘चलो, मैं साथ चलती हूं,’’ कामिनी के साथ प्रभात बैडरूम में चला गया. वह उसे बांहों में भर कर उस के गालों व होंठों को दीवानों की तरह चूमने लगा. कामिनी उसे सहयोग करने लगी. प्रभात की बेकरारी बढ़ गई, तो उस ने कामिनी के सारे कपड़े उतार दिए.

मंजिल पर पहुंच कर सांसों का तूफान जब थम गया, तो प्रभात ने कहा, ‘‘तुम्हें पा कर आज मेरा सपना पूरा हो गया कामिनी.’’ ‘‘यही हाल मेरा भी है प्रभात. तुम्हारा हक तुम्हें दे कर कितनी खुशी मिली है, यह मैं बता नहीं सकती.’’

‘‘ऐसी बात है, तो तुम मुझ से शादी कर लो. अब मैं तुम से जुदा नहीं रह सकता.’’ ‘‘मैं भी अब कहां तुम से जुदा रहना चाहती हूं. मैं खुद तुम से शादी करना चाहती हूं, मगर इस में एक अड़चन है.’’

‘‘कैसी अड़चन?’’ ‘‘दरअसल, बात यह है कि मैं प्राइवेट नौकरी से खुश नहीं हूं. नौकरी छोड़ कर मैं खुद की एक फैक्टरी लगाना चाहती हूं. इस के लिए मैं ने एक जगह भी देख रखी है. बस, मुझे पैसों की जरूरत है.

‘‘मैं लोन मांगने के लिए ही बैंक गई थी. वहां तुम मुझे मिल गए. अब अगर तुम मेरी मदद कर दोगे, तो मुझे जरूर लोन मिल जाएगा.’’ ‘‘कितना लोन चाहिए?’’

‘‘कम से कम 5 करोड़ का.’’ ‘‘5 करोड़? तुम पागल हो गई हो क्या? बिना गारंटर के कोई भी बैंक इतनी बड़ी रकम नहीं देता.’’

‘‘क्या तुम मेरे लिए गारंटर बन नहीं सकते?’’ ‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि बैंक में गारंटर के कागजात ही तो दिखाने हैं. वे तुम नकली बना लो. तुम बैंक में काम करते ही हो. तुम्हारे लिए ऐसा करना कोई मुश्किल नहीं होगा.’’ बात करतेकरते अचानक कामिनी ने प्रभात को बांहों में भर लिया और बोली, ‘‘तुम मुझे लोन दिला दोगे, तो मैं फिर कभी तुम से कुछ नहीं मांगूंगी.’’

प्रभात चिंता में पड़ गया. प्रभात को परेशान देख कामिनी बोली, ‘‘अगर तुम लोन नहीं दिलाना चाहते हो, तो कोई बात नहीं. मैं यह समझ कर अपने दिल को समझा लूंगी कि तुम्हें मुझ से नहीं, मेरे जिस्म से प्यार था. मेरा जिस्म पाने के बाद तुम ने मुझ से किनारा कर लिया.’’

प्रभात ने मन ही मन तय किया कि वह हर हाल में बैंक से कामिनी को लोन दिला कर यह साबित कर देगा कि वह उस के जिस्म का नहीं, बल्कि उस के प्यार का भूखा है. उस ने नकली गारंटर बनने का फैसला किया. बैंक में अकसर ऐसा किया जाता है, जब पैसा महफूज हो. प्रभात ने ऐसा किया भी. नकली गारंटर बना कर 2 महीने में उस ने कामिनी को बैंक से 5 करोड़ रुपए का लोन दिला दिया.

5 करोड़ रुपए पा कर कामिनी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. 2 महीने तक तो ठीक रहा, पर उस के बाद प्रभात के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. कामिनी प्रभात से कम मिलने लगी. लोन का ब्याज नहीं आ रहा था. सारा पैसा निकाल लिया गया था.

कामिनी को लोन दिलाने के 4 महीने बाद बैंक के अफसरों को सचाई का पता चल गया. नतीजतन, प्रभात को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. उस पर मुकदमा चला सो अलग. एक दिन प्रभात ने कामिनी से शादी करने के लिए कहा, तो उस ने शादी करने से साफ मना कर दिया. कामिनी ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें एक सचाई बता रही हूं…’’

‘‘क्या?’’ प्रभात ने पूछा. ‘‘सचाई यह है कि मैं ने तुम्हें कभी प्यार ही नहीं किया. दरअसल, मैं प्यारमुहब्बत में यकीन नहीं करती. कालेज लाइफ में तुम मेरे आगेपीछे घूमने लगे थे, तो टाइम पास के लिए मैं ने तुम्हारा साथ दिया था, पर तुम से प्यार नहीं किया था.

‘‘दरअसल, मेरी मंजिल रुपए कमाना है. होश संभालते ही मैं भरपूर दौलत की मालकिन बनने का सपना देखने लगी थी. सपना पूरा करने के लिए मैं कुछ भी करगुजरने के लिए तैयार थी. इस के लिए मैं कोई शौर्टकट रास्ता ढूंढ़ रही थी कि बैंक में तुम मिल गए और मुझे रास्ता दिखाई पड़ गया. ‘‘मुझे तुम से जो पाना था, मैं पा चुकी हूं. अब तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. तुम मुझ से जो चाहते थे, मैं भी वह तुम्हें दे चुकी

हूं, इसलिए अब हम दोनों के बीच कुछ नहीं रहा. ‘‘तुम से कमाए पैसों से मैं अपनी जिंदगी संवार लूंगी. तुम भी अपनी जिंदगी के बारे में सोचो, अब तुम मुझ से कभी मिलने की कोशिश मत करना.’’

प्रभात यह सुन कर हैरान रह गया. कोई हसीना इतनी खतरनाक भी हो सकती है, वह नहीं जानता था. अब कामिनी से कोई बात करना बेकार था, इसलिए प्रभात चुपचाप उस के घर से बाहर आ गया. कामिनी से उस का मोह भंग हो गया था और वह जल्दी अपने घर लौट जाना चाहता था.

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