अंजाम: भाग 1

रात के 2 बज गए थे. बहुत कोशिश के बाद भी प्रोफेसर मुकुल बनर्जी को नींद नहीं आई. पत्नी सुचित्रा नींद के आगोश में थी. मुकुल ने उसे नींद से जगा कर फिर से अनुनयविनय करने का विचार किया. उन्हें लग रहा था कि जब तक संबंध नहीं बनाएंगे, नींद नहीं आएगी. इस के लिए वह शाम से ही बेकल थे.

सोने से पहले उसे अपनी भावना से अवगत भी कराया था. लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था.

बोली, ‘‘बहुत थकी हूं. आप को तो पता है कल कंपनी के काम से 10 दिन के लिए इटली जा रही हूं. सुबह 6 बजे तक नहीं उठूंगी तो फ्लाइट नहीं पकड़ पाऊंगी. प्लीज सोने दीजिए.’’

उन्होंने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. वह सो गई. बाद में उन्होंने भी सोने की कोशिश की किंतु नींद नहीं आई.

26 वर्ष पहले जब उन्होंने सुचित्रा से विवाह किया था तो वह 24 वर्ष की थी. उन से 2 साल छोटी. तब वह ऐसी न थी. जब भी अपनी इच्छा बताते थे, झट से राजी हो जाती थी. उत्साह से साथ भी देती थी.

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उस के साथ हंसतेखेलते कैसे वर्षों गुजर गए, पता ही नहीं चला. इस बीच उन की जिंदगी में बेटा गौरांग और बेटी काकुली आए.

गौरांग 2 साल पहले पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया था. 4 साल का कोर्स था. काकुली उस से 4 वर्ष छोटी थी. मां को छोड़ कर कहीं नहीं गई, वह कोलकाता में ही पढ़ रही थी.

सुचित्रा में बदलाव साल भर पहले से शुरू हुआ था. तब तक वह कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट बन चुकी थी.

वाइस प्रेसीडेंट बनने से पहले औफिस से शाम के 6 बजे तक घर आ जाती थी. अब रात के 10 बजे से पहले शायद ही कभी आई हो.

कपड़े चेंज करने के बाद बिस्तर पर ऐसे गिर पड़ती थी जैसे सारा रक्त निचुड़ गया हो.

ऐसी बात नहीं थी कि वह उसे सिर्फ रात में ही मनाने की कोशिश करते थे. छुट्टियों में दिन में भी राजी करने की कोशिश करते थे, पर वह बहाने बना कर बात खत्म कर देती थी.

कभी बेटी का भय दिखाती तो कभी नौकरानी का. कभीकभी कोई और बहाना बना देती थी.

ऐसे में कभीकभी उन्हें शक होता था कि उस ने कहीं औफिस में कोई सैक्स पार्टनर तो नहीं बना लिया है.

ऐसे विचार पर घिन भी आती थी. क्योंकि उस पर उन का पूरा भरोसा था.

कई बार यह खयाल भी आया कि सुचित्रा उन की पत्नी है. उस के साथ जबरदस्ती कर सकते हैं, लेकिन कभी ऐसा किया नहीं.

लेकिन आज उन की बेकरारी इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने सीमा लांघ जाने का मन बना लिया.

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उन्होंने सोचा, ‘एक बार फिर से मनाने की कोशिश करता हूं. इस बार भी राजी नहीं हुई तो जबरदस्ती पर उतर जाऊंगा.’

उन्होंने नींद में गाफिल सुचित्रा को झकझोर कर उठाया और कहा, ‘‘नींद नहीं आ रही है. प्लीज मान जाओ.’’

सुचित्रा को गुस्सा आया. दोचार सुनाने का मन किया. पर ऐसा करना ठीक नहीं लगा. उस ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘दिल पर काबू रखने की आदत डाल लीजिए, प्रोफेसर साहब. जबतब दिल का मचलना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मेरा दिल हर पल उतावला रहता है तो मैं क्या करूं? ऐसा लगता है कि अब तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता…’’

‘‘यह आप का भ्रम है. सच यह है कि औफिस से आतेआते बुरी तरह थक जाती हूं.’’

‘‘रात के 10 बजे घर आओगी तो थकोगी ही. पहले की तरह शाम के 6 बजे तक क्यों नहीं आ जातीं?’’

‘‘आप समझते हैं कि मैं अपनी मरजी से देर से आती हूं. बात यह है कि पहले वाइस प्रेसीडेंट नहीं थी. इसलिए काम कम था. जब से यह जिम्मेदारी मिली है, काम बढ़ गया है.’’

‘‘जिंदगी भर ऐसा चलता रहेगा तो मैं कहां जाऊंगा. मेरे बारे में तो तुम्हें सोचना ही होगा.’’ उन की आवाज में झल्लाहट थी.

स्थिति खराब होते देख सुचित्रा ने झट से उन का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से कहा, ‘‘नाराज मत होइए. वादा करती हूं कि इटली से लौट कर आऊंगी तो पहले आप की सुनूंगी, फिर औफिस जाऊंगी. फिलहाल आप सोने दीजिए.’’

सुचित्रा फिर सो गई. वह झुंझलाते हुए करवटें बदलने लगे. चाह कर भी जबरदस्ती न कर सके. जबरदस्ती करना उन के खून में था ही नहीं.

तन की ज्वाला शांत हुए बिना मन शांत होने वाला नहीं था. इसलिए उन्होंने सुचित्रा से बेवफाई करने का मन बना लिया.

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वह समझ गए थे कि कारण जो भी हो, सुचित्रा अब पहले की तरह साथ नहीं देगी. कुछ न कुछ बहाना बनाती रहेगी.

उन्होंने जब ऐसी स्त्रियों को याद किया जो बिना शर्त, बिना हिचक संबंध बना सकती थी तो पहला नाम रूना का आया.

उस से पहली मुलाकात शादी समारोह में हुई थी. 4 महीना पहले सुचित्रा की सहेली की बेटी की शादी थी. वह उस के साथ समारोह में गए थे.

पार्टी में काफी भीड़ थी. 10-15 मिनट बाद सुचित्रा बिछड़ गई. उस के बिना मन नहीं लगा तो बेचैन हो कर उसे ढूंढने लगे. 20-25 मिनट बाद मिली तो उन्होंने उलाहना दिया, ‘‘कहां चली गई थीं? ढूंढढूंढ कर परेशान हो गया हूं.’’

उस के साथ एक महिला भी थी. उस की परवाह किए बिना उन्हें झिड़कते हुए बोली, ‘‘मैं क्या 18-20 की हूं कि किसी के डोरे डालने पर उस के साथ चली जाऊंगी. आप भी अब 53 के हो गए हैं. इस उम्र में 18-20 वाली बेताबी मत दिखाइए, नहीं तो लोग हंसेंगे.’’

उस के बाद वह उस महिला के साथ चली गई. वह ठगे से खड़े रह गए. सुचित्रा ने उन के वजूद को उस ने पूरी तरह नकार दिया था.

अपनी बेइज्जती महसूस की तो वह भीड़ से अलग अकेले में जा कर बैठ गए. पत्नी से अपमानित होने के दर्द ने मन को भिगो दिया, आंखों से आंसू छलक आए.

आंसू पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकालने की सोच ही रहे थे कि अचानक एक युवती अपना रुमाल बढ़ाती हुई बोली, ‘‘आंसू पोंछ लीजिए, प्रोफेसर साहब.’’

युवती की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. सलवार सूट से सुसज्जित लंबी कदकाठी थी. सुंदरता कूटकूट कर भरी थी.

उन्होंने कहा, ‘‘आप को तो मैं जानता तक नहीं. रुमाल कैसे ले लूं?’’

‘‘पहली बात यह कि मुझे आप मत कहिए. आप से छोटी हूं. दूसरी बात यह कि यह सच है कि आप मुझे नहीं जानते, पर मैं आप को खूब अच्छी तरह से जानती हूं.’’

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युवती ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आप की पत्नी ने कुछ देर पहले आप के साथ जो व्यवहार किया था, वह किसी भी तरह से ठीक नहीं था. इस से पता चल गया कि प्यार तो दूर, वह आप की इज्जत भी नहीं करती.’’

उन्हें लगा कि वह 50 हजार के सूटबूट, 1 लाख की हीरे की अंगूठी, गले में सोने की कीमती चेन और विदेशी कलाई घड़ी से अवश्य सुसज्जित हैं, पर उस युवती की सूक्ष्म दृष्टि ने भांप लिया है कि वजूद का तमाम हिस्सा जहांतहां से रफू किया हुआ है.

युवती से किसी भी तरह की घनिष्ठता नहीं करना चाहते थे. इसलिए झटके से उठ कर खड़े हो गए.

भीड़ की तरफ बढ़ने को उद्यत ही हुए थे कि युवती ने हाथ पकड़ कर फिर से बैठा दिया और कहा, ‘‘आप का दर्द समझती हूं. पत्नी को बहुत प्यार करते हैं, इसीलिए उस की बुराई नहीं सुनना चाहते. पर सच तो सच होता है. देरसबेर सामना करना ही पड़ता है.’’

युवती की छुअन से 53 साल की उम्र में भी उन के दिल की घंटी बज उठी. युवती खुद उन से आकर्षित थी, अत: उस का दिल तोड़ना ठीक नहीं लगा. न चाहते हुए भी उन्होंने उस का परिचय पूछ ही लिया.

उस ने अपना नाम रूना बताया. मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती थी. ग्रैजुएट थी. अब तक अविवाहित थी.

मातापिता, भाईबहन गांव में रहते थे. शहर में अकेली रहती थी. पार्कस्ट्रीट में 2 कमरे का फ्लैट ले रखा था.

रूना ने बताया, ‘‘पहली बार आप को पार्क में मार्निंग वाक करते देखा था. आप की पर्सनैलिटी पर मुग्ध हुए बिना न रह सकी थी. लगा था कि आप अधिक से अधिक 40 के होंगे. आप की पत्नी ने आज आप को उम्र का अहसास कराया तो पता चला कि 53 के हैं. पर देखने में आप 40 से अधिक के नहीं लगते.’’

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फेसबुक से निकली मौत

फेसबुक से निकली मौत: भाग 1

22 जून, 2019 की सुबह पुणे शहर के पौश इलाके में स्थित मुढ़वा की रहने वाली 40 वर्षीय राधा अग्रवाल घर से अपनी स्कूटी ले कर निकली थी. उस ने घर पर बताया था कि वह अपनी सहेलियों के साथ साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में घर लौट आएगी. घर से निकलते समय वह अपने सारे गहने पहने हुई थी. जब वह 25 जून तक नहीं लौटी तो पति किशोरचंद्र अग्रवाल ने उस का फोन मिलाया. लेकिन राधा का फोन स्विच्ड औफ मिला.

राधा के 16 वर्षीय बेटे मानव अग्रवाल ने इस बारे में अपनी मां की सहेलियों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह तो शिरडी गई ही नहीं थी, न ही उन्हें राधा के शिरडी जाने की कोई जानकारी है.

राधा की सहेलियों से यह जानकारी मिलने पर परिवार के लोग परेशान हो गए. चूंकि उस दिन राधा अग्रवाल गहने पहन कर गई थी, इसलिए उन की चिंता और भी बढ़ गई. 25 जून की शाम को ही मानव अग्रवाल अपने 3-4 सगेसंबंधियों के साथ थाना मुढ़वा पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद थानाप्रभारी संपतराव भोसले को अपनी मां के लापता होने की विस्तार से जानकारी दे दी.

राधा अग्रवाल शहर के करोड़पति रियल एस्टेट कारोबारी किशोरचंद्र अग्रवाल की पत्नी थी. मानव अग्रवाल की बात सुन कर थानाप्रभारी भी आश्चर्य में पड़ गए कि आशा अग्रवाल आखिर अपनी मरजी से कहां चली गई.

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बहरहाल, उन्होंने राधा अग्रवाल की डिटेल्स लेने के बाद मानव को भरोसा दिया कि पुलिस उन्हें अपने स्तर से ढूंढने की कोशिश करेगी.

चूंकि मामला एक प्रतिष्ठित परिवार की महिला से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने राधा अग्रवाल की गुमशुदगी की काररवाई शुरू कर दी. उन्होंने फोटो सहित उस का हुलिया पुणे शहर के सभी पुलिस थानों को भिजवा दिया. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने मामले की जांच के लिए एसआई अमोल गवली, स्वप्निल पाटील, हैडकांस्टेबल कैलाश चह्वाण, निलेश जगताप, श्रीनाथ जाधव, अमोल चह्वाण और एस.ए. काकड़े को शामिल कर एक टीम बनाई. पुलिस टीम अपने स्तर से राधा अग्रवाल को तलाशने लगी.

जांच में पता चला कि राधा अग्रवाल शादी के पहले से ही खुले विचारों वाली थी. वह किसी प्रकार के बंधनों को नहीं मानती थी. शादी के बाद उसे परिवार भी वैसा ही मिला था. घर में उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. अभाव केवल एक यह था कि पति का ज्यादा संग नहीं मिल पाता था, क्योंकि पति किशोरचंद्र अग्रवाल अपने रियल एस्टेट कारोबार में ज्यादा व्यस्त रहते थे. एक बेटा था जो पढ़ाई कर रहा था.

सोशल मीडिया पर रहने का शौक

राधा के पास भले ही रुपएपैसों की कमी नहीं थी, लेकिन वह पति का साथ चाहती थी जो उसे नहीं मिल पाता था. वह कसे हुए बदन की सुंदर महिला थी. एक युवक की मां होने के बाद भी उस का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. यही वजह थी कि राधा ने अपना मन बहलाने के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो कुछ ही दिनों में उस के हजारों फालोअर्स और सैकड़ों दोस्त बन गए थे.

राधा ने घूमने के लिए एक स्कूटी ले रखी थी, जिस से वह अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने जाया करती थी. वह तरहतरह के पोज में खींचे गए अपने फोटो फेसबुक पर डाल दिया करती थी, जिस से उसे काफी प्रशंसा मिलती थी. सोशल मीडिया से जुड़ने के बाद राधा अग्रवाल के चेहरे पर अकसर चमक दिखाई देती थी. वह अपनी इस जिंदगी से काफी खुश रहने लगी थी.

यह जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी को इस बात का पूरा भरोसा हो गया कि राधा अग्रवाल की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है, जिस का परदा उठाना जरूरी है. पुलिस ने राधा अग्रवाल का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो अंतिम लोकेशन पुणे के ही भोसले नगर, रेंज हिल इलाके की मिली.

पुलिस वहां पहुंच गई और इधरउधर खोजबीन करने लगी. वहां पर एक स्कूटी मिली, जो राधा अग्रवाल की ही थी. पुलिस ने स्कूटी की डिक्की खोल कर देखी तो उस में राधा का मोबाइल फोन मिला. फोन डिस्चार्ज हो चुका था.

जब मोबाइल को चार्ज कर औन किया किया तो वाट्सऐप और फेसबुक पर महिला और युवक दोस्तों की लंबी फेहरिस्त देख पुलिस टीम हैरान रह गई. राधा अग्रवाल के फोन पर जिस नंबर से आखिरी बार बातचीत हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह नंबर आनंद निगम का निकला, जो कर्नाटक का रहने वाला था.

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पुलिस टीम उस के घर पहुंच गई लेकिन वह घर से फरार मिला. परिवार वालों से पूछताछ कर के आखिरकार पुलिस उस के पास पहुंच ही गई. आनंद निगम को हिरासत में ले कर पुलिस पुणे लौट आई.

आनंद निगम से थाने में पूछताछ की जानी थी, इसलिए सूचना पा कर डीसीपी सुहास बाबचे और एसीपी सुनील देशमुख भी थाना मुढ़वा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के सामने थानाप्रभारी संपतराव भोसले ने आनंद निगम से राधा अग्रवाल के बारे में पूछताछ की तो पहले तो वह यही कहता रहा कि राधा अग्रवाल नाम की किसी महिला को नहीं जानता.

लेकिन पुलिस ने जब वाट्सऐप और फेसबुक पर उस की और राधा की चैटिंग दिखाई तो वह सहम गया. वह चाह कर भी अपना झूठ नहीं छिपा सका. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह राधा अग्रवाल की हत्या कर चुका है.

हत्या की बात सुनते ही पुलिस चौंक गई. आनंद से उस की लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि लाश ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में है. हत्या करने के बाद वह उस के सभी गहने और नकदी ले भागा था.

पुलिस को किसी भी तरह राधा अग्रवाल की बौडी बरामद करनी थी. उसे संशय था कि कहीं जंगली जानवरों ने शव को नष्ट न कर दिया हो. इसलिए पुलिस आनंद निगम को ले कर 12 जुलाई, 2019 को ताम्हिणी वर्षा घाट के जंगल में जा पहुंची.

लेकिन जंगल में राधा अग्रवाल के केवल अस्थिपंजर और कपड़े मिले. उस का मांस जंगली जानवर नोंचनोंच कर खा चुके थे. पुणे पुलिस ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से कंकाल बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस आनंद निगम को ले कर पुणे लौट आई.

पूछताछ करने पर आनंद निगम ने राधा अग्रवाल की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी.

आनंद की अपनी कहानी

31 वर्षीय आनंद निगम मूलरूप से कर्नाटक का रहने वाला था. उस के पिता का नाम शिवाजी निगम था. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक छोटी बहन थी. परिवार की माली स्थिति साधारण थी.

जब उस के पिता का निधन हो गया तो घर की जिम्मेदारी आनंद पर आ गई. वह रोजीरोटी की तलाश में परिवार के साथ पुणे आ गया और वहां की वृंदावन कालोनी के तापकीर नगर में रहने लगा.

पुणे में रहते हुए उस की मां ने एक दूसरे आदमी का हाथ पकड़ लिया था. बहन जवान हुई तो उस ने भी लवमैरिज कर ली. इस के बाद आनंद ने भी अंतरजातीय विवाह कर अपना घर बसा लिया. समय गुजरता गया और वह 2 बच्चों का बाप बन गया.

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फेसबुक से निकली मौत: भाग 2

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अपनी रोजीरोटी के लिए उस ने एक पुरानी कार ले ली और लोगों को कार चलाना सिखाने लगा. उस के पास ड्राइविंग सीखने के लिए ज्यादातर महिलाएं आती थीं. व्यवहारकुशल होने के नाते अधिकतर महिलाएं उस के प्रभाव में आ जाती थीं, जो उस की दोस्त बन जाती थीं. वह उन से फेसबुक, वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग किया करता था, जिस का असर उस के व्यवसाय पर पड़ने लगा था.

यह बात जब उस की पत्नी को मालूम हुई तो उस ने उसे आड़ेहाथों लिया. विवाद इतना बढ़ा कि उसे अपना कार ड्राइविंग का धंधा बंद करना पड़ा. इस के बाद उसे परिवार चलाने के लिए कोई काम तो करना ही था. उस ने अपने जानपहचान वालों और दोस्तों से ब्याज पर पैसे ले कर भोसले नगर के रेंज हिल इलाके में एक टी-स्टाल शुरू कर दिया. स्टाल पर वह बीड़ीसिगरेट भी बेचता था.

इस काम में उस की मां भी मदद किया करती थी. पूरा दिन खपाने के बाद भी इस काम में कोई खास आमदनी नहीं हो पाती थी. घर का खर्च भी बमुश्किल चलता था. ऐसे में उसे कर्ज उतारना भी मुश्किल हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उस का कर्ज बढ़तेबढ़ते 2 लाख के करीब पहुंच गया. वह इसी चिंता में रहता कि कर्ज कैसे उतारे.

आनंद सोशल साइट्स पर एक्टिव रहता था. एक दिन उस ने फेसबुक पर राधा अग्रवाल का प्रोफाइल देखा तो उस पर मोहित हो गया. उस ने बिना देर किए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. राधा अग्रवाल ने भी आनंद निगम का फोटो देखते ही उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

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हालांकि राधा अग्रवाल और आनंद निगम की उम्र में काफी अंतर था. राधा अग्रवाल आनंद निगम से करीब 10 साल बड़ी थी. लेकिन दोनों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों की चैटिंग के दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई और धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे.

राधा अग्रवाल के पास पैसों की कमी नहीं थी. खर्च करने के लिए उस के पास पैसा ही पैसा था. जबकि कहीं आनेजाने के लिए स्कूटी थी. वह आनंद निगम के संपर्क में आ कर कुछ इस प्रकार फिसली कि अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं को भी लांघ गई. जब भी मौका मिलता, दोनों पुणे शहर के किसी भी होटल में जा कर मौजमजे कर लेते थे.

समय अपनी गति से चल रहा था. राधा अग्रवाल अब पूरी तरह से आनंद निगम पर आंख मूंद कर भरोसा करने लगी थी. आनंद निगम उस से जो भी कहता, उसे वह तहेदिल से स्वीकार करती थी. आनंद निगम को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि राधा पूरी तरह उस की दीवानी है, तो उस ने अपने ऊपर चढ़े कर्जे को उतारने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली.

वैसे तो राधा अग्रवाल लाख दो लाख रुपए उसे ऐसे ही दे सकती थी. लेकिन आनंद अपने ऊपर किसी प्रकार का बोझ नहीं रखना चाहता था. इस से रिश्ता खराब होने पर राधा अग्रवाल भी उस से अपना पैसा मांग सकती थी. यही सब सोच कर वह सिर्फ अपनी योजना पर ध्यान देने लगा.

योजना को अंजाम देने के लिए एक दिन उस ने राधा से कहा, ‘‘राधा, तुम इतनी खूबसूरत हो कि अगर किसी मैगजीन में तुम्हारे फोटो भेजे जाएं तो वे कवर पेज पर छप सकते हैं.’’

यह सुन कर खुश होते हुए राधा बोली, ‘‘सच!’’

‘‘हां, क्या तुम ने अपने फोटोजेनिक चेहरे को कभी गौर से नहीं देखा?’’ आनंद बोला,  ‘‘देखो, मैं चाहता हूं कि किसी नैचुरल जगह पर तुम्हारा फोटोशूट कर के फोटो मैगजीन वगैरह में भेजे जाएं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए तैयार हूं.’’ राधा बोली.

‘‘तो ठीक है, तुम कल अपने सारे गहने पहन कर आ जाओ. हम पुणे से कहीं दूर चलेंगे.’’

राधा उस पर आंखें मूंद कर भरोसा करती ही थी. इसलिए 22 जून की सुबह अपने सारे गहने पहन कर घर से निकली. घर वालों से उस ने कह दिया कि वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूटी से साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में लौट आएगी.

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इस के बाद वह स्कूटी ले कर आनंद द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गई. आनंद वहां पहले ही खड़ा था. वहां से आनंद ने राधा की स्कूटी संभाली और राधा उस के पीछे चिपक कर बैठ गई.

राधा छली गई ग्लैमर के चक्कर में

दोनों आपस में हंसीमजाक करते हुए कब पुणे से 80 किलोमीटर दूर निकल गए, पता ही नहीं चला. और जब पता चला तो वह ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में पहुंच गए थे. आनंद निगम को अपनी योजना के अनुसार वह जगह उपयुक्त लगी. उस ने स्कूटी एक तरफ खड़ी कर दी. इस के बाद उस ने राधा से फोटो सेशन के लिए तैयार होने को कहा.

राधा अग्रवाल खुशीखुशी अपना फोटो सेशन कराने के लिए तैयार हो गई. सड़क से कुछ दूर जंगल में जा कर आनंद अलगअलग ऐंगल से उस के फोटो खींचने लगा. फिर आनंद ने राधा से एकदो हौरर फोटो खींचने के लिए अनुरोध किया. हौरर फोटो सेशन करने के लिए आनंद ने राधा की सहमति से पहले उस की आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथपैर बांध कर फोटो खिंचवाने को कहा.

राधा उस के कहने के अनुसार करती रही. हाथपैर बांधने के बाद आनंद ने उस के सारे गहने उतार कर अपने पास रख लिए. इस के बाद उस ने साथ छिपा कर लाए गए तेज धारदार चाकू से राधा अग्रवाल का गला रेत दिया. राधा अग्रवाल की एक मार्मिक चीख निकल कर निर्जन जंगल में खो गई.

राधा अग्रवाल की हत्या करने के बाद आनंद निगम ने उस का मोबाइल फोन स्कूटी की डिक्की में रख दिया. उस के हैंडबैग से नोटों से भरा पर्स निकाल लिया और स्कूटी ले कर पुणे की तरफ लौट पड़ा था. ताम्हिणी वर्षा घाट से कुछ दूर आनंद ने पर्स से सारे पैसे निकालने के बाद उसे भी फेंक दिया.

इस के बाद वह घोरपेड़ फाटक पर आ कर एक पान की दुकान पर रुका. वहां पर उस ने एक सिगरेट पी.

वहां से आनंद निगम अपने घर न जा कर सीधे अपने टी-स्टाल पर पहुंचा. उस समय रात का एक बजा था. चारों तरफ सन्नाटा था. उस ने राधा की स्कूटी अपने टी-स्टाल के पीछे खड़ी कर चाकू टी-स्टाल के अंदर छिपा दिया. फिर वह निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

2 दिन निकल जाने के बाद राधा अग्रवाल के लूटे गए गहनों में से 7 तोले सोने के गहनों को वह अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपा कर रख आया. बाकी बचे गहनों को ज्वैलर्स के यहां बेच कर अपना कर्ज उतार दिया. इतना करने के बाद वह पुणे शहर को छोड़ कर कर्नाटक में अपने गांव निकल गया.

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आनंद निगम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू और राधा अग्रवाल के गहने बरामद कर लिए. उसे भादंवि की धारा 302, 201, 363, 364(ए) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे पुणे की यरवडा जेल भेज दिया गया.

-कथा में किशोरचंद्र और मानक नाम परिवर्तित हैं.

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जमीन जायदाद के लालची हत्यारे रिश्तेदार !

कहते हैं, जर जोरू और जमीन खून खराबे हत्या के सबसे बड़े कारण होते हैं और यह कहावत गलत भी नहीं है. अक्सर धन दौलत की लालच में लोग अपने ही “रिश्तेदारों” का “कत्ल” कर देते हैं अथवा करवा देते हैं. और जब कानून के लंबे हाथ उनकी गर्दन तक पहुंचते हैं तो जिंदगी भर जेल के सीखचों के पीछे चक्की पीसकर अपनी जिंदगी और परिजनों का जीवन नर्क बना देते हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिला पेंड्रा में एक युवक ने अपनी सगी नानी को जमीन जायदाद  के कारण लालच के फेर में स्वयं गला दबा कर मार दिया और सोचा कि आगे की जिंदगी ऐश में कटेगी. मगर वह आज जेल में अपनी उस सोच पर सर पीट रहा है जो उसने अपनी नानी को मारने का दुष्कर्म किया था.

मामला गौरेला थाना क्षेत्र के मेडुका गांव का है, जहां रहने वाली कौशल्या बाई थाना पहुंचकर अपराध दर्ज कराया कि उनकी नानी सास ललिया बाई काशीपुरी 10 सितंबर के सुबह 7 बजे घर से खेत देखने के लिए जाने को कह कर घर से निकली थी. रात तक नानी सास घर वापस नहीं आई तो यह अपने नाना ससुर चंदन काशीपुरी को और गांव के अन्य रिश्तेदारों को बताया. आस-पास रिश्तेदारी में पता किए लेकिन  वह नहीं मिली.

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18 सितंबर  को सुबह कोटवार ने बताया कि रेंजराभार रतनजोत प्लाट में मानव हड्डी और साड़ी, कपड़ा पड़ा है, जो ललिया बाई के जैसे लग रही है. तब यह अपने परिवार सहित प्लाट में जा कर देखी, जो साड़ी, कपड़ा, हाथ की चूड़ीवाला, चप्पल आदि देखकर पहचाने कि यह उसके नानी सास ललिया बाई की ही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने शव के बचे अवशेष को पोस्टमार्टम और जांच के लिए भेज दिया. पुलिस जांच में जब आगे बढ़ने लगी तो जो तथ्य सामने आए वे बहुत चौकानेवाले निकले.

और नानी का गला दबा दिया

पुलिस ने हमारे संवाददाता को जानकारी दी कि प जांच में मृतका के शव का निरीक्षण पर प्रथम दृष्टया हत्या का अपराध होना पाया गया. पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के द्वारा मृतका की मृत्यु गला दबाने से होना बताया. थाना गौरेला में अपराध कायम कर विवेचना में लिया गया. पुलिस जांच में पता चला कि मृतका का नाती राज कुमार उर्फ अमृत लाल  उसी दिन से लापता था  पुलिस ने उसे संदिग्ध माना और हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की.

पूछताछ में उसने सनसनीखेज जानकारी दी की शिवप्रसाद निवासी गोरखपुर के यहां से 10 सितंबर को खेत देखने के बाद नानी आई थी. जिसे साइकिल से गोरखपुर से लेकर कियोस्क बैंक लालपुर गया, ललिया बाई के खाता जांच में पता चला कि खाते में सिर्फ 39 रुपया ही था. तब उसे घर लेकर जाते समय रेंजराभार के रतनजोत प्लाट में कहै कि सब पैसा खाते से निकाल के खा गई और जमीन भी नहीं बेच रही है, उसी गुस्से में साइकिल से गिरा कर गला दबा दिया और प्लॉट में ले जाकर अपने पास में रखे अंगोछे से गला दबा कर हत्या कर दी और झाड़ियों में लाश छिपाकर फरार हो गया. पुलिस ने आरोपी की निशान देही से घटना में प्रयुक्त कपड़ा, साइकिल बरामद कर ली . आरोपी राजकुमार उर्फ अमृतलाल उम्र  40  निवासी मेडुका को गिरफ्तार कर जिला जेल भेज दिया है.

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लालच बुरी बला

पंचतंत्र हो या हितोपदेश अथवा जीवन की हर पढ़ाई में यही शिक्षा मिलती है कि लालच बुरी बला होती है मगर अक्सर लोग लोभ में आकर कानून को अपने हाथ में उठा लेते हैं और यही नहीं लोभ लालच में आकर के स्वयं अपने हाथों से अपने ही चिर परिचित रिश्तेदारों का मर्डर कर देते हैं या फिर करवा दिया करते हैं और अंततः भंडाफोड़ होने पर जेल जाकर अपनी जिंदगी को नष्ट कर देते हैं। पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह बताते हैं कि उनके 20 वर्ष के कार्यकाल में अनेक प्रकार ऐसे सामने आए हैं जिसमें रिश्तेदारों ने रिश्तेदारों का लालच में खून बहाया दिया और छोटी सी बात को लेकर अपने सुखद जीवन को नर्क बना लिया, मेरी तो सदैव यही सलाह है कि लोग अपनी मेहनत पर भरोसा रखें, दूसरों की संपत्ति पर कुदृष्टि डालने वाले अंततः दुखी होते हैं.

पीछा : भाग 3

लेखक- अंजुम फारुख

शेख मजीद बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप के आने से 10 मिनट पहले अफजाल बेग ने दरवाजे पर दस्तक दी थी. मैं ने अपनी जगह बैठेबैठे उसे अंदर आने की इजाजत दे दी. मैं समझा था कि वेटर होगा. अफजाल बेग अंदर दाखिल होते ही चाकू लहराता हुआ मेरी ओर बढ़ा. संयोग से आप ने मुझे पहले ही सचेत कर दिया था, इसलिए मैं पिस्तौल हाथ में लिए बैठा था.’’

‘‘बेचारा अफजाल.’’ सबइंसपेक्टर सलीम की आवाज में दुख और अफसोस था.

‘‘आप उसे बेचारा कह रहे हैं..?’’ शेख मजीद ने सबइंसपेक्टर सलीम को घूर कर देखा और कहा, ‘‘क्या मतलब है आप का?’’

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‘‘मेरा मतलब है, हमें यहां आने में देर हो गई वरना हम उसे बचा लेते.’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने रहस्यमय अंदाज में कहा, ‘‘लेकिन इस का कातिल कानून की गिरफ्त से बच नहीं सकता.’’

शेख मजीद ने नागवारी से कहा, ‘‘मैं आप को बता चुका हूं कि यह आदमी मुझे कत्ल करने के लिए चाकू लहराता हुआ मेरी ओर लपका था. मैं ने अपनी सुरक्षा के तहत इस पर गोली चला दी. यह कत्ल नहीं, बचाव का कदम था.’’

इंसपेक्टर जावेद कुछ बेचैनी महसूस कर रहा था. वह कोई बात कहना चाहता था कि सबइंसपेक्टर सलीम ने हाथ उठा कर उसे रोक दिया और बोला, ‘‘सर, हमें बताया गया है कि मकतूल अफजाल बेग पिछले 2 महीनों से शेख मजीद का पीछा कर रहा था. मेरा सुझाव है कि यह मामला जरा उलट कर के तो देखें. यह भी संभव है कि शेख मजीद ही अफजाल बेग का पीछा कर रहा हो.’’

इंसपेक्टर जावेद ने सहमति के अंदाज में अपना सिर हिलाया. शेख मजीद का चेहरा सफेद पड़ गया.

सबइंसपेक्टर सलीम ने मजीद से कहा, ‘‘संभव है कि वे पत्र तुम्हें अफजाल बेग ने भेजे हों. लेकिन यह संभावना ज्यादा ठीक लगती है कि पत्रों का चक्कर तुम्हारी अपनी कारस्तानी हो. क्योंकि मैं समझता हूं कि अफजाल बेग तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था, बल्कि तुम उस का पीछा कर रहे थे.’’

‘‘क्या बकवास है?’’ शेख मजीद के गले से गुर्राहट निकली, ‘‘अगर वे पत्र मैं ने खुद लिखे होते तो मुझे पुलिस की मदद लेने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मैं बताता हूं,’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस के चेहरे पर अपनी नजरें जमा दीं, ‘‘20 अगस्त को तुम ने स्ट्रीट लेन में साफिया नाम की एक लड़की का कत्ल किया था.

उस लड़की ने तुम्हें धोखा दिया होगा, बेवफाई की होगी या उस से तुम्हारी दुश्मनी रही होगी, इसलिए तुम उस का कत्ल करने को मजबूर हो गए होगे. अफजाल बेग ने तुम्हें कत्ल करते या उस गली से निकलते देख लिया होगा.’’

शेख मजीद गुस्से से सबइंसपेक्टर सलीम को घूरने लगा. उस की बड़ीबड़ी सुर्ख आंखें स्थिर सी हो गई थीं.

सबइंसपेक्टर सलीम ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘संभव है, अफजाल बेग ने तुम्हें हत्या करते न देखा हो, लेकिन तुम समझे कि वह तुम्हें देख चुका है, इसलिए तुम ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया. शाम के समाचार पत्रों में साफिया के कत्ल की खबर छपी थी और अफजाल बेग का उस में ऐसा कोई बयान नहीं था कि यह कत्ल उस के सामने हुआ है. लेकिन तुम इस संबंध में अपने दिमाग से शक न निकाल सके.

‘‘तुम्हें यह डर सताने लगा कि कभी न कभी अफजाल बेग पुलिस को सूचना अवश्य देगा, इसलिए उस का जिंदा रहना तुम्हारे लिए खतरनाक था. जब तुम्हें मालूम हुआ कि अफजाल बेग देश की सैर करने जा रहा है तो तुम ने भी एक योजना बना ली. तुम ने खुद अपने नाम से पत्र भेजे और देश भर में उस का पीछा करना शुरू कर दिया.

‘‘तुम शक्की आदमी हो, तुम्हें ख्वाब में भी अफजाल बेग दिखाई देता होगा. तुम ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते थे कि अगर वह तुम्हारे हाथों मारा जाए तो तुम उस कत्ल को अपने बचाव की कोशिश साबित कर सको.’’

‘‘दिलचस्प कहानी है.’’ शेख मजीद ने कुटिल स्वर में कहा, ‘‘अगर मैं ने किसी लड़की का कत्ल किया होता तो क्या तुम्हें अफजाल बेग तक पहुंचने का मौका देता, क्योंकि तुम्हारे अनुसार वह मेरे अपराध का चश्मदीद गवाह था.’’

‘‘तुम्हें थोड़ाबहुत तो खतरा मोल लेना ही था.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारे लिए सब से ज्यादा खतरनाक बात यह थी कि कहीं अफजाल बेग तुम्हें पहचान न ले. उस का पीछा करते समय तुम ने इस बात का खयाल रखा था कि उस के सामने न आने पाओ.

‘‘तुम बराबर उसे कत्ल करने का मौका तलाशते रहे. लेकिन तुम्हें शायद यह मालूम नहीं था कि अफजाल बेग की दूर की नजर बहुत कमजोर थी. उस ने तुम्हें गली में नहीं देखा होगा. अगर देखा भी होगा तो पहचाना नहीं होगा.’’

शेख मजीद ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पास इस इलजाम का कोई ठोस सबूत है?’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने लाश को छुआ तो नहीं…’’

‘‘नहीं.’’ शेख मजीद बोला.

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‘‘बहुत अच्छे. अब मैं तुम्हें बताता हूं कि यह सब कुछ कैसे हुआ?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस की आंखों में आंखें डाल दीं, ‘‘तुम ने किसी तरह अफजाल बेग को अपने कमरे में बुलाया और उसे कुरसी पेश की. फिर जैसे ही वह कुरसी पर बैठा, तुम ने उस पर गोली चला दी और उस के हाथ में चाकू पकड़ा दिया.’’

शेख मजीद जोर से चीखा, ‘‘नहीं, यह झूठ है.’’ उस के होंठों तथा माथे पर तनाव की लकीरें खिंच गई थीं.

सबइंसपेक्टर सलीम ने इंसपेक्टर जावेद से कहा, ‘‘सर, याद करें जब अफजाल बेग थाने में आया था तो उस ने कुरसी पर बैठते समय अपने पतलून की दोनों मोरी ऊपर खींच ली थीं. बिलकुल यही बात यहां भी दिखाई दे रही है और…’’

फिर उस ने वाक्य को पूरा किए बिना उछल कर शेख मजीद की कलाई पकड़ ली. शेख मजीद मेज पर पड़ा पिस्तौल उठाने की कोशिश कर रहा था.

सबइंसपेक्टर सलीम ने शेख मजीद की कलाई मरोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम खतरनाक आदमी हो, तुम्हें आजाद नहीं छोड़ा जा सकता. वैसे अगर तुम पिस्तौल उठाने में सफल हो जाते तो भी मेरा कुछ न बिगड़ता. इंसपेक्टर जावेद तुम्हें पहले ही शूट कर देते. लेकिन यह सजा तुम्हारे लिए ठीक नहीं होती. इस तरह अफजाल बेग को इंसाफ नहीं मिलता.’’

इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘हां, अब तुम अफजाल बेग की हत्या करने की बात स्वीकार करोगे, फिर तुम्हें इसलामाबाद भेज दिया जाएगा. वहां साफिया नाम की लड़की और अफजाल बेग की हत्या के आरोप में तुम पर मुकदमा चलेगा. तुम्हारा बचना नामुमकिन है.’’ इंसपेक्टर जावेद की बात सुन कर शेख मजीद का चेहरा धुआंधुआं हो गया और उस का सिर झुक गया.

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प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

पीछा : भाग 2

लेखक- अंजुम फारुख

शेख मजीद थाने से चला गया. फोन पर बात करने के बाद इंसपेक्टर जावेद ने सबइंसपेक्टर जाकिर से कहा, ‘‘आप तत्काल रौयल होटल चले जाएं. वह मोटा आदमी अफजाल बेग होटल की लौबी में बैठा हुआ है. आप उसे यहां ले आएं. अभीअभी मेरी उस होटल के मैनेजर से बात हुई है.’’

आधे घंटे बाद सबइंसपेक्टर जाकिर, अफजाल बेग नाम के उस आदमी को अपने साथ ले आया, जो देखने में मोटा और गोलमटोल सा था. उस ने स्टील के फ्रेम वाला चश्मा लगा रखा था. उस के शरीर पर कीमती कपड़े थे, जो बहुत ढीलेढाले थे.

इंसपेक्टर जावेद ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस ने कुरसी पर बैठने से पहले अपनी पतलून की दोनों मोरी ऊपर खींची ताकि आराम से बैठ सके. अफजाल बेग ने इंसपेक्टर जावेद से पूछा कि उसे यहां क्यों बुलाया गया है.

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इंसपेक्टर जावेद, शेख मजीद द्वारा दिए गए पत्रों से तिथिवार उन स्थानों की सूची बना चुका था, जहांजहां मजीद गया था. वह अफजाल बेग से बोला कि आप इन तिथियों को क्वेटा, कराची, हैदराबाद, मुलतान और लाहौर गए थे.

‘‘जी हां,’’ अफजाल बेग की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘क्या आप बता सकते हैं कि आप ने ये सफर किस उद्देश्य से किए?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस से पूछा.

अफजाल बेग के दोनों हाथ उस की तोंद पर थे. वह बिलकुल शांत भाव से कुरसी पर बैठा था. लेकिन जब वह बोला तो उस के स्वर में थोड़ी सी लड़खड़ाहट थी, ‘‘सर, मैं इसलामाबाद की अफजाल ऐंड कंपनी का मालिक हूं. यह फर्म मेरे सहयोगी अच्छी तरह चला रहे हैं. मैं ने शादी नहीं की है, इसलिए मुझ पर परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. अत: मैं आजकल अपने देश की सैर करने के लिए निकला हूं. क्या अपने देश की सैर करना कोई अपराध है?’’

‘‘बिलकुल नहीं जी. लेकिन हमें शिकायत मिली है कि आप एक युवक का पीछा कर रहे हैं.’’ सबइंसपेक्टर सलीम, जोकि एक जासूस भी था, ने उस का चेहरा गौर से देखते हुए पूछा.

‘‘पीछा..? नहीं सर, मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा हूं. क्या उस युवक ने कोई वजह बताई है कि मैं उस का पीछा क्यों कर रहा हूं. मेरे पास रुपएपैसे की कोई कमी नहीं है. मुझे किसी का पीछा करने की क्या जरूरत है?’’  वह हलकी सी नाराजगी के साथ बोला.

सबइंसपेक्टर जावेद भी अफजाल बेग का बारीकी से निरीक्षण कर रहा था. उस ने शेख मजीद द्वारा दिए गए पत्रों में से एक पत्र निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया और उस के चश्मे के शीशों को घूरता हुआ बोला, ‘‘आप ने यह पत्र उसे क्यों भेजा था?’’

‘‘यह पत्र मैं ने नहीं भेजा, आप को गलतफहमी हुई है.’’ अफजाल बेग के स्वर में आत्मविश्वास था.

वह खड़ा हो कर थोड़ा सा आगे झुका, फिर बोला, ‘‘आप ने बेवजह मेरा समय बरबाद किया. अब मुझे इजाजत दीजिए.’’

इंसपेक्टर जावेद ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की. वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया.

अफजाल बेग के जाने के बाद इंसपेक्टर जावेद, सबइंसपेक्टर सलीम से बोला, ‘‘आप इस मामले में क्या कहते हैं?’’

‘‘मैं इसे इत्तफाक समझने के लिए तैयार नहीं हूं. कोई आदमी मात्र इत्तफाकन पूरे देश में किसी का पीछा नहीं कर सकता.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने कहा.

‘‘पत्रों की धमकियों से स्पष्ट होता है कि यह कत्ल आदि का मामला है.’’ सबइंसपेक्टर जाकिर बोला.

‘‘मेरा भी यही खयाल है.’’ इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘मैं इसलामाबाद पुलिस को ईमेल कर रहा हूं. संभव है, हमें वहां से शेख मजीद या अफजाल के बारे में कोई अच्छी सूचना मिल जाए.’’

‘‘एक बात खासतौर से मालूम करना.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने मेज पर पड़े पत्रों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘20 अगस्त को इसलामाबाद की किसी गली में कोई कत्ल तो नहीं हुआ था.’’

ईमेल का जवाब 2 घंटे बाद ही आ गया. उस में लिखा था— अफजाल बेग एक बहुत बड़ी व्यापारिक कंपनी का मालिक है. उस की उम्र 53 साल है. वह स्टील के फ्रेम वाला चश्मा लगाता है और अविवाहित है. उस की कंपनी काफी उन्नति कर चुकी है. कारोबार की देखभाल अब उस के कर्मचारी करते हैं. आजकल वह देश भ्रमण पर निकला है. पुलिस के पास उस के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है.

शेख मजीद का इसलामाबाद में टेक्सटाइल्स का कारोबार है. वह अकसर अपने कारोबार के सिलसिले में एक जगह से दूसरी जगह आताजाता रहता है. उस की उम्र 27 साल है. उस के पास काफी पैसा है. वह इधरउधर पैसे खर्च करता रहता है. मजीद के खिलाफ भी इसलामाबाद पुलिस के पास कोई शिकायत नहीं है.

20 अगस्त को दोपहर ढाई बजे स्ट्रीट लेन में साफिया नामक एक लड़की का कत्ल कर दिया गया था. उस घटना का न तो कोई चश्मदीद गवाह मिला और न ही कातिल का पता चल पाया.

अफजाल बेग और शेख मजीद का इस मामले से कोई संबंध नजर नहीं आता. अगर आप को कुछ पता चला हो तो सूचना दें.

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तभी शेख मजीद का फोन आ गया. उस की आवाज लरज रही थी, ‘‘मुझे अभीअभी एक पत्र और मिला है. उस में सिर्फ इतना लिखा है ‘आखिर तुम ने पुलिस को बता ही दिया.’ अब बताइए, क्या करूं?’’

‘‘मजीद साहब, आप वह पत्र संभाल कर रखिए और यह बताइए कि आप ने इसलामाबाद में स्ट्रीट लेन का नाम सुना है?’’ इंसपेक्टर जावेद ने पूछा.

‘‘जी हां, स्ट्रीट लेन वहां की एक गली है. वहीं के एक गैराज में मैं अपनी कार खड़ी करता हूं. स्ट्रीट लेन से तो मैं रोजाना गुजरता हूं.’’ शेख मजीद ने फोन पर कहा.

‘‘क्या 20 अगस्त को भी आप वहां से गुजरे थे? याद कर के बताइए.’’

‘‘एक मिनट…हां, याद आया. पहला पत्र मिलने से एक दिन पहले की बात है. मैं उधर से ढाई बजे के करीब गुजरा था.’’

इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘ओह! अब समझ में आया कि अफजाल बेग आप का पीछा क्यों कर रहा है. आप होटल के कमरे से बाहर मत निकलिएगा. मैं आ रहा हूं.’’

रौयल होटल के अहाते में कार मोड़ते ही इंसपेक्टर जावेद और सबइंसपेक्टर सलीम को किसी गड़बड़ का अहसास हो गया. होटल के अंदर से किसी की चीखें सुनाई दे रही थीं. बहुत से लोग होटल के प्रवेशद्वार पर एकत्र हो गए थे. वेटर आदि कर्मचारी भी भीड़ में शामिल थे. होटल के मैनेजर ने इंसपेक्टर जावेद से कहा, ‘‘अच्छा हुआ, आप आ गए इंसपेक्टर साहब. कमरा नंबर 77 में एक आदमी का कत्ल कर दिया गया है.’’

पुलिस इंसपेक्टर जावेद, होटल का मैनेजर और सबइंसपेक्टर सलीम लोगों को एक तरफ हटाते हुए आगे बढ़ गए.

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कमरा नंबर 77 में शेख मजीद मौजूद था. वह उन्हें देखते ही उठ खड़ा हुआ. उस के चेहरे से बदहवासी झलक रही थी. मजीद के ठीक सामने कालीन पर अफजाल बेग औंधा पड़ा हुआ था. उस की पतलून की दोनों मोरी ऊपर उठी हुई थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पीछा : भाग 1

लेखक- अंजुम फारुख

इंसपेक्टर जावेद पेशावर के एक थाने में अपने 2 सहयोगियों सबइंसपेक्टर सलीम और सबइंसपेक्टर जाकिर के साथ बैठा किसी केस पर बातें कर रहा था, तभी एक युवक थाने में दाखिल हुआ. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह बहुत परेशान दिखाई दे रहा था. इंसपेक्टर जावेद ने युवक से पूछा, ‘‘कहिए जनाब, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं.’’

युवक बोला, ‘‘जी, मेरा नाम शेख मजीद है. मैं इसलामाबाद में रहता हूं और मेरा टेक्सटाइल्स का कारोबार है. मैं अपने कारोबार के सिलसिले में अकसर एक जगह से दूसरी जगह आताजाता हूं.’’

‘‘वो तो ठीक है, मजीब साहब. आप पहले अपनी समस्या बताएं.’’ सबइंसपेक्टर जाकिर ने शेख मजीद से पूछा.

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शेख मजीद कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘मैं इसी पौइंट पर आ रहा हूं. मैं जहां कहीं भी आताजाता हूं, एक आदमी मेरा पीछा करता रहता है.’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने कागजकलम संभाल लिया था, वह शेख मजीद से बोला, ‘‘उस का हुलिया बताइए?’’

‘‘वह छोटे कद का गोलमटोल सा आदमी है और स्टील के फ्रेम का चश्मा लगाता है. वह पिछले 2 महीने से किसी भूत की तरह मेरा पीछा कर रहा है. मुझे उस से बचा लीजिए इंसपेक्टर साहब.’’

शेख मजीद की बातें सुन कर इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘आप बिलकुल परेशान मत होइए. सब ठीक हो जाएगा. आप अपनी बात जारी रखें.’’

शेख मजीद बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, अगर वह आदमी सिर्फ मेरा पीछा कर रहा होता, तो मुझे ज्यादा परेशानी नहीं होती. लेकिन मेरा पीछा करने के साथसाथ उस के पत्रों का सिलसिला भी जारी है. मेरा खयाल है, वह कोई बहुत खतरनाक आदमी है और कभी भी मौका पा कर मुझे नुकसान पहुंचा सकता है.’’

‘‘आप शुरू से पूरी बात बताएं.’’

‘‘सर, इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब मैं एक दिन अपने मकान की दूसरी मंजिल पर बैठा मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था. अचानक एक पत्थर खिड़की का शीशा तोड़ता हुआ मेरी मेज के निकट आ गिरा. मैं ने घबरा कर पत्थर की ओर देखा, तो मेरी नजरें उस से चिपक कर रह गईं. क्योंकि पत्थर के साथ कागज की एक पर्ची भी बंधी थी.’’ फिर शेख मजीद ने अपनी जेब से वह पर्ची निकाल कर इंसपेक्टर जावेद की ओर बढ़ा दी.

इंसपेक्टर जावेद ने पर्ची को बहुत गौर से देखा. पर्ची किसी सस्ती नोटबुक से फाड़ी गई थी और उस के अक्षरों को किसी समाचार पत्र से काटकाट कर शब्दों का रूप दिया गया था. पर्ची में सिलवटें पड़ी हुई थीं. उस पर्ची पर दिनांक 20 अगस्त भी अंकित था, जो समाचार पत्र से काट कर चिपकाया गया था.

पर्ची पर लिखा था ‘कल तुम ने गली में जो कुछ देखा है, उसे भूल जाओ. तुम्हारी याद्दाश्त तुम्हारे लिए हानि की वजह बन सकती है. मैं तुम्हारी निगरानी करता रहूंगा.’

उस पर्ची को देखने के बाद इंसपेक्टर जावेद ने उसे दोनों सबइंसपेक्टरों की ओर बढ़ा दिया.

सबइंसपेक्टरों ने पूछा, ‘‘मजीद साहब, आप ने गली में क्या देखा था?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं ने कुछ देखा हो तभी न. इसीलिए पत्र का मतलब मेरी समझ में नहीं आया.’’ शेख मजीद बोला, ‘‘पहले मुझे लगा था कि किसी बच्चे की शरारत होगी. मगर जब मैं ने खिड़की से झांक कर बाहर देखा तो कोई बच्चा नजर नहीं आया. हां, गली में एक युवक और युवती जरूर आपस में बातें कर रहे थे.

‘‘उन से कुछ ही दूरी पर एक पुलिस वाला टहलता हुआ जा रहा था और एक खंभे के पास छोटे कद का एक गोलमटोल सा आदमी खड़ा था. उस ने स्टील के फ्रेम का चश्मा लगा रखा था. उस के हाथ में चहलकदमी करने वाली छड़ी थी. मेरी निगाहें उसी आदमी पर जम कर रह गईं.’’

शेख मजीद कुछ देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘‘उस आदमी का चेहरा मेरे दिलोदिमाग में इस तरह बैठ गया कि मुझे घबराहट होने लगी. मुझे लगा कि मैं खतरे में हूं, इसलिए मुझे यह शहर छोड़ देना चाहिए. इसी के मद्देनजर मैं ने हवाई जहाज से क्वेटा जाने की सीट बुक करवा ली.

‘‘अगले दिन मैं हवाई जहाज में सवार हुआ और अपनी सीट पर सो गया. एयरपोर्ट पर हवाई जहाज से उतरते समय मैं ने देखा कि वह गोलमटोल सा आदमी भी उतर रहा है. यह देखते ही मेरी सांस रुक गई. पहले तो मैं ने समझा कि यह इत्तफाक हो सकता है, लेकिन जब दूसरे दिन होटल के कमरे में दरवाजे के नीचे से एक पत्र फेंका गया तो मुझे कुछ सोचना पड़ा.’’

शेख मजीद ने वह पत्र इंसपेक्टर जावेद की ओर बढ़ा दिया. यह पत्र भी अखबार से अक्षरों को काट कर, फिर कागज पर चिपका कर तैयार किया गया था. पत्र में लिखा था ‘खामोशी में ही भलाई है.’

इंसपेक्टर जावेद उस पत्र को मेज पर रख कर बोला, ‘‘आप अपनी बात जारी रखें, मजीद साहब.’’

‘‘इस वाक्य ने मुझे बुरी तरह डरा दिया था.’’ शेख मजीद बोला, ‘‘मैं जल्दीजल्दी होटल बदलता रहा. क्या बताऊं कहांकहां भटकता फिरा. मैं ने कराची के एक होटल में कमरा ले लिया. वहां एक हफ्ता आराम से रहा. मैं ने समझा था कि मुझे उस आदमी से छुटकारा मिल गया.

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‘‘लेकिन यह मेरी गलतफहमी थी. जल्द ही मुझे कुरियर से एक पत्र मिला. यह पत्र भी पहले के 2 पत्रों जैसा था. उस में लिखा था ‘याद रखो, तुम्हें वह सब भूलना है.’ उस पत्र से मैं दहल गया.’’

शेख मजीद कुछ क्षण के लिए रुका, फिर इंसपेक्टर जावेद की ओर देखते हुए आगे बोला, ‘‘उसी दिन डाइनिंग हाल में नाश्ते के समय वह आदमी मुझे फिर दिखाई दिया. वह मेरी मेज से 10 फुट दूर एक मेज पर बैठा था. मेरे बैठते ही वह उठ कर बाहर जाने लगा. मैं ने उस आदमी के बारे में पूछा कि वह कौन है तो पता चला कि उस का नाम अफजाल है और वह कमरा नंबर 402 में ठहरा हुआ है.

‘‘नाश्ता करने के बाद मैं रिसैप्शन पर गया और कस्टमर्स का रजिस्टर देखा. मुझे पता चला कि उस ने 10 मिनट पहले होटल छोड़ दिया है.’’ शेख मजीद अपनी कहानी सुना रहा था या दर्द बयां कर रहा था, उस के चेहरे से समझना मुश्किल था.

‘‘मजीद साहब, इन पत्रों को ले कर आप ने पुलिस से संपर्क तो किया होगा.’’ इंसपेक्टर जावेद ने पूछा.

‘‘नहीं.’’ शेख मजीद ने कहा.

‘‘क्यों?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘मैं इन पत्रों को उस आदमी का पागलपन समझ रहा था. मैं सोच रहा था कि वह एक दिलचस्प खेल खेल रहा है कि क्या मैं उस से पीछा छुड़ा पाता हूं या नहीं. इसलिए मैं ने तब पुलिस से संपर्क नहीं किया. लेकिन जब देखा कि मामला गंभीर हो रहा है तो मैं ने आज थाने की शरण ली.’’

शेख मजीद ने आगे बताया, ‘‘उस के बाद मैं हैदराबाद, मुलतान और लाहौर गया. हर जगह हर शहर में उस आदमी की शक्ल दिखाई दी. कई बार तो मैं जिस होटल में ठहरता था, वह वहां भी नजर आ जाता था. यही नहीं, उस के द्वारा भेजे जाने वाले पत्रों का सिलसिला भी जारी रहा.

‘‘कई पत्रों में सिर्फ उस दिन की तारीख लिखी होती. मैं चाहता था कि उस आदमी से मिल कर साफसाफ बात कर लूं. लेकिन फिर मैं ने सोचा कि अगर उस ने पत्रों के बारे में इनकार कर दिया तो मैं क्या कर लूंगा. इसी तरह अगर उस ने पीछा करने की बात भी नकार दी तो क्या होगा. शेख मजीद की बात जारी थी.

उस ने कहा, ‘‘कल मैं यहां (पेशावर) के रौयल होटल में ठहरा. मुझे यहां भी अपने कमरे में पहले जैसा एक पत्र मिला, जिस में लिखा था, ‘तुम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ, मेरी नजरों से छिप नहीं सकते.’ ऐसी स्थिति में मुझे आप के पास आना पड़ा.’’

‘‘क्या तुम्हें अफजाल बेग होटल में दिखाई दिया?’’ सबइंसपेक्टर जाकिर ने शेख मजीद से पूछा.

‘‘अभी तक मैं ने उसे रौयल होटल में नहीं देखा है, लेकिन मैं ने एक वेटर से मालूम किया है कि अफजाल बेग नाम का आदमी वहीं ठहरा है. आप मेहरबानी कर के मुझे उस आदमी से बचाएं.’’ शेख मजीद ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया.

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‘‘ठीक है, हम देखते हैं, आप की क्या मदद की जा सकती है.’’ इंसपेक्टर जावेद ने कहा और फोन उठा कर कहीं बात करने लगा.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

चाइल्ड पॉर्नोग्राफी का संजाल

छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के शहरों में लगातार “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” के मामलों मैं आश्चर्यजनक रूप से तेजी देखी जा रही है. पुलिस द्वारा भी लगातार कार्रवाई की जा रही है. छत्तीसगढ़ के रायपुर में चाइल्ड पोर्नोग्राफी का एक और वीडियो अपलोड किया गया . इस पर गोल बाजार थाना, रायपुर पुलिस ने प्राथमिक रपट दर्ज की है. खास बात यह कि इस दफा वीडियो वाईफाई के जरिये अपलोड किया जा रहा है. परिणाम स्वरूप आरोपियों की तलाश करने में पुलिस के पसीने निकल रहे हैं . छत्तीसगढ़ की राजधानी  रायपुर में “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” के अब तलक बारह प्रकरण दर्ज हो चुके हैं, जिसमें से दस कथित आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार करके कड़ी कार्रवाई की है.

छत्तीसगढ़ में चाइल्ड पोर्नोग्राफी का संजाल कुछ इस तरह फैला है कि आरोपी  लगातार हाईटेक टेक्नोलॉजी का उपयोग कर वीडियो अपलोड कर रहे है. खास तकनीक की बात यह है कि इसमें कभी वीडियो शेयर कर तो कभी वाईफाई का इस्तेमाल कर वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है. परिणाम स्वरूप अपराधियों को पता लगाने में पुलिस हलाकान परेशान ज्यादा होती है.

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हमारे पुलिस सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ में 30 से ज्यादा मामलों में गिरफ्तारी ऐसे मामलों में की गई है. उपरोक्त मामले में बंजारी मार्केट के एक युवक ने इंटरनेट कनेक्शन से अश्लील वीडियो सोशल मीडिया में पोस्ट किया . इसे कई लोगों को फॉरवर्ड भी किया गया. इसमें एक “बालिका” की अश्लील क्लिपिंग है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में  प्रदेश में कार्रवाई की जा रही है. पुलिस  प्रदेश में 30 से ज्यादा मामलों में गिरफ्तारी भी कर चुकी है.

यहां यह जानना जरूरी होगा कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने छत्तीसगढ़ पुलिस को 80 पोर्न वीडियो की रिपोर्ट भेजी थी,जो सोशल मीडिया में वायरल हुई थी. इन 80 वीडियो को राज्य के नंबर से पोस्ट किया गया था. इसमें 12 मोबाइल नंबर रायपुर के थे, जबकि 40 मोबाइल नंबर दूसरे राज्य के पाए गए उन्हें संबंधित राज्यों की पुलिस को भेज दिया गया है. पुलिस जहां इस मामले में गम भी दिखाई देती है वही उसके सामने चुनौतियां दोहरी हो जाती हैं जब समाज में जागरूकता की कमी के कारण कानून के भय के ना होने के कारण निरंतर चाइल्ड पोर्नोग्राफी जारी दिखाई देती है.

किशोरों की संदिग्ध भूमिका

छत्तीसगढ़ की राजधानी में एक छात्र को अश्लील वीडियो अपलोड करने के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया  है. उसने  एक बच्चे की अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड की थी. जिसे बहुतेरे लोगो द्वारा देखा और शेयर किया गया. बताया जा रहा है की पुलिस ने यह कार्रवाई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से मिली जानकारी के आधार पर की है.

पुलिस द्वारा बताए गए तथ्यों के अनुसार, टाटीबंध, राय पुर निवासी युवक रवि कुमार ( बदला हुआ नाम)   खरोरा स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी में बीबीए द्वितीय वर्ष का छात्र है.उसने  एक बच्चे का अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया था.जो काफी वायरल हुआ था.

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एनसीआरबी की टीम ऐसे लोगों पर नजर रखे हुए थी और उनके आईपी अड्रेस ट्रैक कर रही थी. टीम ने प्रदेश में लगभग 40 लोगों को चिन्हित किया है जिन्होंने पोर्नोग्राफी को वायरल किया है. गिरफ्तार युवक के फ़ोन के आईपी एड्रेस से ही उसके लोकेशन का पता लगाकर उसे गिरफ्तार किया गया. अब पुलिस बाकी के मामलों की भी छानबीन कर रही है. इस तरह कुल मिलाकर के युवाओं का इसमें शामिल होना उनकी वर्कर संदिग्ध भूमिका का सामने आना दोनों ही चिंता का सबब है.

सोशल मीडिया का दुरुपयोग जारी आहे

दरअसल, जबसे सोशल मीडिया का आगाज हुआ है चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के मामलों में तेजी आ गई है जिसे रोक पाना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने है.

छत्तीसगढ़ की रायपुर पुलिस ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म में अश्लील वीडियो  अपलोड करने वाले एक आरोपी को  गिरफ्तार किया है. आरोपी पर यह कार्रवाई एनसीआरबी (NCRB) से मिले मोबाइल नंबर के आधार पर रायपुर की कोतवाली पुलिस ने की है.आरोपी का नाम पुलिस अधिकारियों द्वारा कैलाशपुरी निवासी प्रकाश राज (बदला हुआ नाम) है. आरोपी ने  सोशल मीडियो में वीडियो अपलोड किया था.

यह है पूरा मामला

एनसीआरबी ने सोशल मीडिया में अश्लील वीडियो अपलोड करने वाले मोबाइल नंबर धारको की डिटेल सभी प्रदेशों को भेजी थी. छत्तीसगढ़ पुलिस को 80 मोबाइल नंबरों का पता चला था, जिससे सोशल मीडिया में अश्लील वीडियो अपलोड किया गया था. प्रदेश में इन नंबरों के आधार पर 11वीं कार्रवाई हुई है.  गिरफ्त में आए आरोपी ने बच्चे का अश्लील वीडियो  सोशल मीडिया में अपलोड किया था. चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर रमाकांत श्रीवास विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि किशोर जो युवा होने की दहलीज पर पांव रखने की अवस्था मैं होते हैं उन्हें ऐसे समय में उन्हें शिक्षित एवं कानून की जानकारी देना अनिवार्य है. सरकार को चाहिए कि पाठ्यक्रम में सोशल मीडिया और अन्य महत्वपूर्ण मसले पर विधि सम्मत सामग्री शामिल करें. अन्यथा युवा वर्ग यह गलती करता रहेगा और समाज में चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसा नासूर बना रहेगा.

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