मर्यादाओं का खून : भाग 2

कुछ ही दिनों में विनीता ने अपने काम और व्यवहार से अपने पति, सासससुर को प्रभावित किया. विनीता का पति व जेठ सबेरा होते ही खेत पर चले जाते थे, जबकि ससुर वंशलाल ड्यूटी करने थाना बिंदकी जाता था. वह शाम को 7 बजे के बाद ही लौटता था. कभी वह शराब पी कर घर आता तो कभी घर पर बैठ कर पीता था.

विनीता को शराब से नफरत थी, पर वह मना भी नहीं कर सकती थी. वैसे भी पूरे घर पर ससुर का ही राज था. उस की इजाजत के बिना कोई कुछ काम नहीं कर सकता था. कृषि उपज का हिसाबकिताब तथा अन्य खर्चों का लेखाजोखा भी वही रखता था. अगर विनीता को जेब खर्च के लिए पैसे की जरूरत होती थी, तो वह भी ससुर से ही मांगती थी. बात उन दिनों की है, जब विनीता की जेठानी रमा मायके गई हुई थी. घर की साफसफाई से ले कर खाना पकाने तक की जिम्मेदारी विनीता पर थी.

इधर कुछ दिनों से विनीता घूंघट के भीतर से ही अनुभव कर रही थी कि ससुर वंशलाल जब खाना खाने बैठता है, तो उस की नजर उस के चेहरे पर ही जमी रहती है. वह उस के खाना पकाने की तारीफ करता, साथ ही ललचाई नजरों से उसे देखता भी था. विनीता समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ससुरजी के मन में चल क्या रहा है.

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उन्हीं दिनों एक शाम विनीता रसोई में खाना पका रही थी कि ससुर वंशलाल आ पहुंचा. वह नशे में था. ससुर को देख कर विनीता ने सिर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया और पूर्ववत अपने काम में लगी रही.

औपचारिकता के नाते उस ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप को किसी चीज की जरूरत है क्या?’’

‘‘विनीता, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है.’’ पीछे से वंशलाल ने विनीता के कंधे पर हाथ रखा और उसे धीमेधीमे दबाते हुए बोला, ‘‘खुशबू से भूख जाग गई है.’’

ससुर के इस व्यवहार से विनीता सकपका गई. पिता समान कोई ससुर ऐसे मस्ताने अंदाज में बहू का कंधा नहीं दबाता. विनीता के मन में यह खयाल भी सिर पटकने लगा कि ससुर का इशारा किस खुशबू की तरफ है, भोजन की खुशबू या उस के बदन की खुशबू. उस को कौन सी भूख जागी है, पेट की या कामनाओं की.

विनीता असहज हो चली थी वह अपने कंधे से उस का हाथ हटाना ही चाह रही थी कि वंशलाल ने खुद ही हाथ हटा लिया और एकदम से उस के सामने आ कर बोला, ‘‘बहू, जिन हाथों से तुम लजीज और खुशबूदार खाना बनाती हो, जी चाहता है उन हाथों को चूम लूं.’’

इसी के साथ वंशलाल ने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे होंठोें से लगा कर दनादन चूमने लगा.

विनीता हतप्रभ रह गई कि ससुर यह क्या कर रहा है. कहीं उस के मन में सचमुच पाप तो नहीं. विनीता के मस्तिष्क में विचारों की उथलपुथल चल ही रही थी कि वंशलाल ने खुद ही उस का हाथ छोड़ दिया. उस के बाद वह हंस कर बोला, ‘‘किसी दिन मैं फिर तुम्हारे हाथ के साथ होंठ भी चूमूंगा.’’

विनीता ने सोच लिया कि सब लोग इत्मीनान से खाना खा लेंगे तो वह सास माया को ससुर की करतूत बताएगी. लेकिन उस की यह इच्छा तब अधूरी रह गई, जब सास खाना खा कर चारपाई पर लेटी और थोड़ी ही देर में गहरी नींद के आगोश में समा गई.

सास की नसीहत

अगले दिन जब पति, जेठ व ससुर अपनेअपने काम पर चले गए, तब विनीता सास के पास जा बैठी, ‘‘अम्मा मुझे आप से एक जरूरी बात करनी है.’’

माया देवी हंसी, ‘‘एक नहीं चार बात करो बहू. मैं तो यही चाहती हूं कि तुम खूब बात करो. तुम्हारा मन बहल जाएगा और मेरा भी समय कट जाएगा.’’

‘‘अम्मा, मन बहलाने व समय काटने वाला मुद्दा नहीं है,’’ विनीता आहिस्ता से बोली, ‘‘मुझे जो कहना है, वह बात बहुत गंभीर है.’’

माया देवी भी संजीदा हो गई, ‘‘बोलो बहू, क्या बात है?’’

विनीता ने सिर झुका कर मर्यादित शब्दों में ससुर की करतूत कह डाली.

माया देवी ने पैनी निगाहों से बहू को देखा फिर बोली, ‘‘मनीष के बाबू ने नशे में कंधे पर हाथ धर दिया होगा और हाथ चूम लिया होगा. बस इतनी सी बात पर तुम शिकायत ले कर आ गई.’’

‘‘अम्मा…’’ विनीता के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई, ‘‘मेरा खयाल था कि इस शिकायत से आप बाबूजी को मर्यादा का पाठ पढ़ाओगी, लेकिन आप तो उन्हें शह दे रही हो.’’

‘‘चुपऽऽ’’ माया देवी ने विनीता को डांट दिया, ‘‘एक तो जिस के पैसे का खातीपहनती है, जिस के घर में रहती है, सुबहसुबह उस की बुराई करने बैठ गई और दूसरे अम्माअम्मा किए जा रही है. उठ यहां से और अपना काम कर.’’ माया देवी ने विनीता को हड़काया.

आंखों में आंसू लिए विनीता, सास के पास से उठ गई. उस की आंखें ही नहीं बरस रही थीं, दिल भी रो रहा था. सास की उदासीनता ने विनीता की घबराहट और बढ़ा दी थी.

वह सोचने लगी अपनी अस्मत की हिफाजत के लिए उसे खुद ही कुछ करना होगा. लगभग एक सप्ताह तक ससुर ने कोई हरकत नहीं की तो विनीता थोड़ा निश्चिंत हो गई. सोचा कि शायद उसे कोई गलतफहमी हो गई हो. ससुर के मन में पाप नहीं है. पाप होता तो चुप हो कर नहीं बैठता.

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किंतु दूसरे सप्ताह के शुरू में ही विनीता की गलतफहमी दूर हो गई.

हुआ यह कि रोज की तरह विनीता शाम को खाना पका चुकी तो वह अपने कमरे में आ कर बैड पर लेट गई. वह आंखें बंद किए हुए लेटी थी, तभी उसे किसी के आने की आहट हुई. विनीता ने झट से आंखें खोल दीं, देखा सामने ससुर वंशलाल खड़ा मुसकरा रहा था.

ससुर को देख कर विनीता घबरा गई और बैड से उठ कर खड़ी हो गई. उस ने सिर पर साड़ी का पल्लू डालते हुए पूछा,  ‘‘बाबूजी खाना लगा दूं क्या?’’

‘‘नहीं, मुझे पेट की नहीं शरीर की भूख सता रही है. आज मैं इस भूख को शांत करूंगा.’’ कहते हुए वंशलाल ने विनीता को अपनी बांहों में भर लिया.

इज्जत पर आए संकट को देख विनीता ने जोर लगा कर खुद को छुड़ाया और बोली, ‘‘बाबूजी, आप नशे में हैं, इसलिए समझ नहीं पा रहे हैं कि आप को मुझ से ऐसी शर्मनाक बात नहीं करनी चाहिए.’’

वंशलाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई, ‘‘विनीता, नशे में ही आदमी सच बोलता है.’’

विनीता जानती थी कि ससुर वंशलाल अपनी बेशर्मी से बाज नहीं आने वाला, लिहाजा उस ने उस के सामने से हट जाने में ही अपनी भलाई समझी. कन्नी काट कर वह दूसरे कमरे में जा पहुंची.

वहां वह सोचने लगी कि अब इस पूरे मामले को पति की जानकारी में लाना जरूरी हो गया है. वरना ससुर का हौसला इसी तरह बढ़ता रहा, तो वह उस की काया ही नहीं, आत्मा तक को मैली कर देगा.

पति को बता दी पूरी कहानी

रात को कमरा बंद कर के विनीता पति के साथ बिस्तर पर लेटी तो वह उदास थी. मनीष ने उदासी का कारण पूछा तो विनीता की आंखों से गंगाजमुना बह निकली. हिचकियां लेते हुए उस ने पूरी दास्तान सुना दी फिर मनीष के कंधे पर सिर टिका कर बोली, ‘‘बाबूजी के मन में पाप समाया है. मेरी इज्जत खतरे में है. यहां रही तो मेरे तन पर अमिट दाग लग जाएगा. तुम दूसरा मकान ले लो. अब हम अलग रहेंगे.’’

मनीष ने कंधे से विनीता का सिर हटा कर उस के आंसू पोंछे, ‘‘अब मेरी समझ में आया कि नशे की झोंक में बाबूजी तुम्हारी इतनी तारीफ क्यों किया करते थे, उन का मन डोला हुआ था तुम पर.’’

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‘‘इसीलिए तो मैं तुम से कह रही हूं,’’ विनीता उत्साहित हो कर बोली, ‘‘बाबूजी मेरी इज्जत पर हाथ डालें, उस से पहले ही तुम अपनी घरगृहस्थी अलग कर लो.’’ वह बोली.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मुकेश अंबानी के फेर में 65 लाख की ठगी

आज जब शिक्षा का प्रचार प्रसार अपने सबाब पर है और सोशल मीडिया में ठगी को लेकर के लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा हो, ऐसे में पुलिस विभाग में पदस्थ एक नगर सैनिक से कोई यह कह कर 65 लाख रुपए ठग ले कि मैं मुकेश अंबानी बोल रहा हूं और तुम्हें 2  करोड़ कीमत लकी लॉटरी का ईनाम मिलने वाला है तो आप क्या कहेंगे?

जी हां! यह कोई कपोल कल्पित कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है. छत्तीसगढ़ के न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर जिला मे यह वाकया घटित हुआ है और पुलिस मामले की जांच में लग गई है और आरोपियों को तलाश रही है.

जियो कंपनी का मालिक मुकेश अंबानी कहकर बिलासपुर जिले के नगर सैनिक से धीरे-धीरे करके 65 लाख रुपए  ठग लिए गए हैं.

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सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि बिलासपुर जिला में सप्ताह भर से बिलासपुर की पुलिस “साइबर क्राइम” रोकने और लोगों को इनके प्रति जागरूक करने का अभियान चला रही है. और एक नगर सैनिक का यह उदाहरण सनसनीखेज रूप में सामने आया है. जो बताता है कि आज के समाज में शिक्षित लोग   भी किस तरह ठगे जा सकते हैं.

इस मामले में ठग ने स्वयं को मुकेश अंबानी बताते हुए नगर सैनिक को पहले लक्की ड्रा में 25 लाख रुपए देने का वादा किया फिर  रजिस्ट्रेशन तो कभी जीएसटी के नाम पर  रुपए ठगते रहा. जब कथित मुकेश अंबानी ने देखा यह नगर सैनिक तो उसके जाल में फंस गया है तो मूलधन सहित और 2 करोड़ रुपए वापस करने का झांसा दिया जिसमें बिलासपुर पुलिस का एक वर्दीधारी नगर सैनिक चक्रव्यूह में फंसता चला गया और धीरे-धीरे 65 लाख रुपए अपने परिवार की जमा पूंजी गवा बैठा.

पूरी तरह लुटने के बाद आया होश!

जब घर परिवार की सारी पूंजी लुट गई तो नगर सैनिक को होश आया और पहुंच गया अपने ही थाने अपनी रिपोर्ट लिखाने.

पीड़ित की शिकायत पर सिटी कोतवाली बिलासपुर पुलिस ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.

यह सच्ची कहानी है बिलासपुर छत्तीसगढ़ के सीपत थाना क्षेत्र के ग्राम हरदाडीह निवासी जनकराम पटेल की.  24 जनवरी 2020 को उनके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आया. कॉल करने वाले ने सबसे पहले उसे बधाई दी और बताया कि वह मुकेश अंबानी बोल रहा है  उसने कहा कि छत्तीसगढ़ से जियो के लकी कस्टमर होने की वजह से उसको 25 लाख रुपए का विजेता घोषित किया गया है. अब इस रकम को पाने के लिए नगर सैनिक ने 12 हजार रुपए ठग के बताए बैंक खाते में जमा कर दिए.ठगों ने किसी विराट सिंह नाम के व्यक्ति का खाता नम्बर दिया था. नगर सैनिक  जनक ने 1 फरवरी को नेहरू चौक के पास की एक दुकान से विराट सिंह के खाते में नेट बैंकिंग के माध्यम से पैसे ट्रांसफर कर दिए.इसके बाद अलग अलग नंबरों से वाट्सअप कॉल और सामान्य कॉल आते रहे और नगर सैनिक से लक्की ड्रा की रकम पाने के एवज में रकम जमा करने के लिए कहा जाता रहा. कुछ दिन बाद ठगों ने नगर सैनिक को अपनी बातों में फंसाकर 2 करोड़ रुपये दिलाने का वादा कर दिया. बातों में आकर नगर सौनिक ने किश्तों में कुल 65 लाख रुपए ठगों को सौप दिए.

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समय व्यतीत होता चला गया, तब जाकर बुरी तरह लूट चुके जनक राम पटेल को होश आया. अब जब नगर सैनिक को इनाम की रकम मिलने का आसरा नहीं रहा  तो उन्हें संदेह हुआ और अपनी रकम वापस मांगी, लेकिन ठग गोलमोल जवाब देता रहा. यह भी कहा कि किसी से  कुछ कहा या ज्यादा सवाल किए तो उसे पैसे नही मिलेंगे. अब पुलिस सभी फोन नम्बर और खातों की जांच कर रही है.

लालच बुरी बला

पंचतंत्र हो या फिर हमारे समाज की कोई भी व्यावहारिक पाठशाला. जहां हमेशा यही बताया जाता है कि लालच बुरी बला होती है और इसमें समझदार व्यक्ति को कभी भी नहीं फंसना चाहिए. मगर इसके बावजूद आज के पढ़े लिखे नौजवान किस तरह सोशल मीडिया के संजाल में आकर छोटे-छोटे लालच में आकर अपने जीवन की परिवार की कमाई को लुटा बैठते हैं.

यह हम अक्सर देख रहे हैं. बिलासपुर की इस सनसनीखेज घटना मे भी यही सब हुआ है. पुलिस विभाग के अधिकारी विवेक शर्मा कहते हैं कि ठगी का शिकार कोई भी हो सकता है वह पुलिस वाला भी हो सकता है और कोई राजनेता भी, कोई वकील भी और कोई मीडिया कर्मी भी. ऐसे में आवश्यकता है सिर्फ और सिर्फ जागरूकता की और लालच के फंदे में नहीं फंसने के संकल्प की.

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 1

मध्य प्रदेश का जिला बैतूल. बैतूल का जिला मुख्यालय कालापाठा. 27 जुलाई, 2020 को कालापाठा स्थित जज आवासीय कालोनी एक घर से रोनेधोने की चीखोपुकार से थर्रा उठी. रुदन ऐसा कि किसी का भी दिल दहल जाए.

रोने की आवाजें बैतूल के जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) महेंद्र कुमार त्रिपाठी के घर से आ रही थीं. लोग वहां पहुंचे तो पता चला महेंद्र त्रिपाठी और उन के जवान बेटे अभियान राज त्रिपाठी की अचानक मृत्यु हो गई थी.

खबर सनसनीखेज थी. जरा सी देर कालोनी में रहने वाले तमाम जज और मजिस्ट्रैट वहां आ गए.

सूचना मिली तो पुलिस अधिकारियों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी जज साहब के घर पहुंच गए. यह खबर बड़ी तेजी से पूरे बैतूल में फैल गई.

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जज साहब के परिवार में कुल 4 सदस्य थे. वह और उन की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और 2 बेटे अभियान राज त्रिपाठी व आशीष राज त्रिपाठी. 4 में से अब 2 बचे थे पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटा बेटा आशीष राज. पत्नी और बेटा महेंद्र त्रिपाठी और अभियान राज त्रिपाठी के शवों को देख बिलखबिलख कर रो रहे थे. महेंद्र त्रिपाठी व उन के बड़े बेटे के कफन में लिपटे शव देख कर उन की पत्नी की समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उन की खुशियों को कौन सा ग्रहण लग गया कि देखते ही देखते हंसतीखेलती जिंदगी मातम में बदल गई.

घटनाक्रम की शुरुआत 20 जुलाई, 2020 को तब हुई थी, जब रात करीब साढ़े 10 बजे पूरे त्रिपाठी परिवार ने डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खाया था. बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की पत्नी अपने मायके इंदौर में थी.

खाना खाने के कुछ देर बाद छोटे बेटे आशीष को उल्टियां होने लगीं. थोड़ी देर बाद महेंद्र त्रिपाठी व उन के बड़़े बेटे अभियान के पेट में भी दर्द होने लगा. आशीष को 2-3 बार उल्टियां हुई. उस के बाद पिता व बड़े भाई के पेट में भी दर्द बढ़ता गया तो पूरा परिवार चिंता में डूब गया.

चिंता इस बात की थी कि कहीं खाने की वजह से कोई फूड पौइजनिंग हो गई हो. मिसेज त्रिपाठी ने कुल 6 चपाती बनाई थीं, जिस में से एक रोटी आशीष ने खाई थी. बाकी 5 चपातियां आधीआधी महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे ने खा ली थीं. मिसेज त्रिपाठी ने दाल के साथ सुबह के रखे बासी चावल खाए थे. उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई थी.

आमतौर पर घर में जब किसी को खाने के कारण फूड पौइजनिंग होती है या पेट दर्द होता है, तो लोग घरेलू उपचार पर ध्यान देते हैं. मिसेज त्रिपाठी ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने पति और दोनों बेटों को गर्म पानी में हींग और नींबू घोल कर दे दिया. इस से छोटे बेटे आशीष की तबीयत में सुधार हुआ और उस की उल्टियां बंद हो गईं. लेकिन जज साहब और उन के बड़े बेटे का दर्द कुछ देर के लिए कम जरूर हुआ, मगर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ.

चूंकि शाम के खाने में इस्तेमाल सब्जी व दाल सुबह की बनी थी, जिन क ा इस्तेमाल सुबह के खाने में भी हुआ था. इसलिए उन से किसी तरह की फूड पौइजनिंग की संभावना कम ही थी, वैसे भी इन का इस्तेमाल शाम के खाने में मिसेज त्रिपाठी ने भी किया था और वे पूरी तरह ठीक थीं. लिहाजा सब्जी और दाल से कोई बीमारी हुई होगी, इस की आशंका कम ही थी. मिसेज त्रिपाठी ने रोटी ताजी बनाई थीं. घर में जितने भी लोग बीमारी हुए थे उन्होंने रोटी ही खाई थीं. रोटियां खाने के बाद ही सब की तबियत खराब हुई थी.

रात के करीब डेढ़ बजे जज साहब और बड़े बेटे की तबियत जब ज्यादा खराब होने लगी तो मिसेज त्रिपाठी ने डाक्टर को फोन कर के घर पर बुला लिया. 21 जुलाई की अलसुबह करीब 3 बजे डाक्टर घर आया और उस ने त्रिपाठी व उन के बेटों को देखा. खाने के बारे में पूछा तो मिसेज त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने क्या खाया था.

आशंका इसी बात की थी कि खाने से फूड पौइजनिंग हुई होगी. डाक्टर ने तीनों को दवा मिला कर लिक्विड पीने को दिया और उल्टी करवाई, जिस के बाद उन्हें दवाइयां दीं.

बिगड़ती गई दोनों की हालत

अगली दोपहर तक आशीष तो पूरी तरह ठीक हो गया. लेकिन जज साहब व उन के बड़े बेटे की तबियत वैसी ही बनी रही. इसी तरह 21 व 22 जुलाई का पूरा दिन व रात गुजर गए, सब का घर में ही इलाज चलता रहा. लेकिन 23 जुलाई को जज साहब व उन के बड़े बेटे की तबियत कुछ जयादा ही खराब होने लगी.

जिला चिकित्सालय के डा. आनंद मालवीय को घर बुला कर दिखाया तो उन्होंने उन दोनों को पाढर जिला अस्पताल, बैतूल में भरती करवा दिया. दोनों को ही आईसीयू में रखा गया. लेकिन इस के बावजूद जज साहब व उनके बेटे की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.

वैसे भी सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों की इतनी कमी होती है कि गंभीर बीमारियों को काबू में करने के लिए कभीकभी बहुत समस्या हो जाती है. पाढर जिला अस्पताल में भी यही हालत थी. जज साहब और उन के बड़े बेटे की स्थिति जिस तरह तेजी से बिगड़ रही थी, उसे देखते हुए डाक्टरों ने परिवार वालों को सलाह दी कि दोनों को नागपुर के प्रसिद्ध एलेक्सिस अस्पताल में भरती करवा दिया जाए.

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घर वालों ने डाक्टरों की बात मान कर 25 जुलाई को महेंद्र त्रिपाठी व अभियान को एंबुलेंस से ले जा कर नागपुर के एलेक्सिस अस्पताल में भरती करवा दिया, जहां दोनों के सभी तरह के टेस्ट शुरू हो गए. बापबेटे को गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया. लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी. 25 जुलाई की शाम को पहले अभियान की मौत हो गई.

फिर 26 जुलाई को सुबह करीब साढ़े 4 बजे महेंद्र त्रिपाठी की भी मौत हो गई.

बापबेटे की एक साथ मौत त्रिपाठी परिवार पर वज्रपात था. चूंकि मामला एक जज और उन के बेटे की मौत से जुड़ा था. इसलिए अस्पताल की तरफ से एमएलसी बना कर नागपुर के मानकापुर पुलिस थाने को भेज दी गई. पुलिस ने अस्पताल में पहुंच कर आशीष त्रिपाठी के बयान दर्ज किए और आवश्यक काररवाई के बाद उन के इलाज के सभी दस्तावेज अपने कब्जे में ले लिए.

दोनों मृतक पितापुत्र का इंदिरा गांधी मैडिकल कालेज नागपुर में विधिवत पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक बोर्ड द्वारा किया गया. आवश्यक जांच के लिए बैतूल पुलिस के अनुरोध पर डाक्टरों ने विसरा तथा सिर के बाल और हाथ के नाखून सुरक्षित कर लिए.

नागपुर पुलिस ने यह प्रकरण अपराध संख्या शून्य पर अकाल मृत्यु की धारा 174 में दर्ज कर लिया . साथ ही दोनों की मौत से जुड़ी पुलिस डायरी तथा अन्य साक्ष्य व सैंपल बैतूल पुलिस को सौंप दिए. क्योंकि अपराध का न्यायिक क्षेत्र मध्य प्रदेश का बैतूल ही था.

दूसरी तरफ महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के शव का पोस्टमार्टम करवा कर जिला प्रशासन ने शव परिजनों के सुपुर्द कर दिए. परिवार वाले शवों को पहले बैतूल में उन के सरकारी आवास पर ले गए, जहां उन की पहचान वालों ने शव के अंतिम दर्शन किए. इस के बाद परिवार वाले बापबेटे के शव को अंतिम संस्कार के लिए कटनी में उन के पैतृक गांव ले गए, जहां 26 जुलाई की शाम को उन का अंतिम संस्कार कर कर दिया गया.

लेकिन बापबेटे की मौत में सब से बड़ा पेंच ये था कि आखिर खाने में ऐसा क्या था कि जिसे खाने के बाद उन की तबियत खराब हो गई. चूंकि मामला एक जज और उन के बेटे की संदिग्ध परिस्थिति में हुई मौत से जुड़ा था, इसलिए बैतूल के एसपी सिमाला प्रसाद ने अपने मातहतों को बुला कर निर्देश दिया कि जांचपड़ताल और मामले की तह में जाने के लिए किसी तरह की कोताही न बरती जाए.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 4

अचानक संध्या सिंह के दिमाग में इन मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए एक साजिश कुलांचे मारने लगी. उस ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर एक ऐसी साजिश रची, जिस से वह महेंद्र त्रिपाठी से लिए गए पैसे लौटाने से भी बच सकती थी और उन के परिवार से उस का इंतकाम भी पूरा हो जाता.

इस साजिश को अंजाम देने के लिए उस ने अपने ड्राइवर संजू और संजू के फूफा देवीलाल निवासी काशीनगर, छिंदवाड़ा, मुबीन खान निवासी छिंदवाड़ा और कमल तथा बाबा उर्फ रामदयाल को तैयार कर लिया.

संध्या जानती थी कि महेंद्र त्रिपाठी तंत्रमंत्र और पंडितों पर बहुत विश्वास करते हैं. उस ने त्रिपाठीजी की इसी कमजोरी का लाभ उठाया. उस ने साथियों की मदद से सांप का विष हासिल कर लिया. फिर उस ने सर्प विष मिला आटा खिला कर महेंद्र त्रिपाठी व उन के परिवार को खत्म करने की योजना बनाई.

इस षडयंत्र को अंजाम देने के लिए संध्या कुछ दिन पहले बाबा उर्फ रामदयाल को ले कर छिंदवाडा से बैतूल पहुंची और वहां सर्किट हाउस में महेंद्र त्रिपाठी को मुलाकात के लिए बुलवाया. संध्या ने रामदयाल से महेंद्र त्रिपाठी का परिचय एक पहुंचे हुए तांत्रिक के रूप में कराया.

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उस ने उन्हें बताया कि बाबा ऐसे तांत्रिक हैं, जो उन के घर की आबोहवा देख कर पहचान लेंगे कि घर में किस तरह की कलह है. फिर बाबा अपने तंत्रमंत्र से घर में होने वाली कलह को दूर कर देंगे.

एडीजे महेंद्र त्रिपाठी संध्या के झांसे में आ कर बाबा रामदयाल को अपने घर ले गए. जहां बाबा ने घर के हर कोने में जा कर कुछ मंत्र पढ़ने का नाटक किया और जज साहब से कहा कि वह अपने घर में रखा थोड़ा सा आटा एक पौलीथिन में ला कर उन्हें दें. जज साहब ने वैसा ही किया. उस आटे को ले कर बाबा चला गया और कहा कि वह उस आटे को अभिमंत्रित कर के जल्द ही उन को वापस भिजवा देगा.

महेंद्र त्रिपाठी थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के थे. लिहाजा वे संध्या सिंह के झांसे में आ गए थे. बाबा रामदयाल ने उस आटे को ला कर संध्या सिंह को दे दिया, जो त्रिपाठीजी ने पौलीथिन में भर कर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया था. 2 दिन उस आटे को अपने पास रख कर संध्या सिंह ने उस में सांप का विष मिला दिया.

20 जुलाई, 2020 को दोपहर में इसी आटे को ले कर संध्या सिंह अपने ड्राइवर संजू और कमल को ले कर बैतूल पहुंची. कमल को उस ने बैतूल में मुल्ला पैट्रोल पंप के पास उतार दिया. संध्या सिंह अपने ड्राइवर को ले कर कार से सर्किट हाउस बैतूल पहुंची, जहां पहले से एडीजे महेंद्र त्रिपाठी मौजूद थे.

वहां करीब एक घंटे तक संध्या महेंद्र त्रिपाठी के साथ एक बंद कमरे में रही. यहां संध्या सिंह ने उन्हें यह बात समझाने में सफलता हासिल कर ली कि उन का दिया हुआ ये आटा बाबा ने मंत्रपूरित किया है. बाबा की पूजा वाला ये आटा उन के सारे कष्टों का निवारण कर देगा. इतना ही नहीं परिवार में उन के संबंधों के कारण जो कलह हो रही थी, वह भी खत्म हो जाएगी. बस, उन्हें इस आटे को घर के आटे में मिलाना है और इस से बनी हुई रोटियां पूरे परिवार को खानी हैं.

संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी की यह आखिरी मुलाकात थी. उन्होंने घर आ कर आटा अपनी पत्नी को दिया और उन्हें उस आटे को घर के आटे में मिला कर रोटी बना कर सब को खिलाने के लिए कहा.

मंत्रपूरित आटे की रोटियां

बस उसी रात इसी आटे की रोटियां खाने के बाद एडीजे महेंद्र त्रिपाठी और उन के दोनों बेटों की तबियत खराब हो गई और बाद में महेंद्र त्रिपाठी तथा बड़े बेटे अभियान की मौत हो गई थी.

संध्या से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के चालक संजू, उस के फूफा देवीलाल, मुबीन खान और कमल को गिरफ्तार कर लिया . पुलिस बाबा उर्फ रामदयाल नाम के उस तथाकथित तांत्रिक की भी तलाश कर रही है, जिस ने झाड़फूंक कर जहरीला आटा संध्या को दिया था.

महेंद्र त्रिपाठी को न तो संध्या सिंह के इरादों का पता था और न ही यह कि उस कथित मंत्रपूरित आटे में जहर मिला है. हालांकि एडीजे त्रिपाठी और उन के बेटे की हत्या की मुख्य आरोपी संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के संबंधों को ले कर पुलिस कुछ भी साफ कहने से बचती रही. पुलिस का यही कहना है कि दोनों की 10 साल से दोस्ती थी.

लेकिन एक न्यायिक अधिकारी की एक अकेली रहने वाली महिला से दोस्ती, उस से एकांत में होने वाली मुलाकातें, इस दोस्ती के कारण त्रिपाठी के अपने परिवार से कलह और अपने पद के प्रभाव से संध्या के एनजीओ को प्रोजैक्ट दिलवाने जैसी बातें साफ इशारा करती हैं कि दोनों के रिश्ते एकदूसरे के लिए कितने खास थे.

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एसपी सिमाला प्रसाद के मुताबिक, त्रिपाठी की फैमिली में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था और एडीजे दंपति में मनमुटाव था. संध्या ने इसी का फायदा उठाया. संध्या सिंह को पता था कि महेंद्र त्रिपाठी धर्मकर्म को बहुत मानते हैं और तंत्रमंत्र तथा पूजापाठ की बातों पर बहुत यकीन करते हैं इसीलिए उस ने उन के पूरे परिवार का खात्मा करने के लिए ऐसी चाल चली कि काम भी हो जाए और किसी को पता भी न चले कि इस काम को किस ने अंजाम दिया है.

लेकिन संयोग से इस हादसे में महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी जहां खाना नहीं खाने के कारण बच गईं, वहीं उन का छोटा बेटा कम खाने के कारण मामूली रूप से ही बीमार हुआ. इस साजिश की कडि़यां जुड़ती गईं और फूड पौइजनिंग का साधारण सा मामला हत्या की एक अनोखी कहानी में बदल गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संध्या सिंह से बरामद कार की तलाशी ली तो उस में रखे कुछ बैग में तंत्रमंत्र की सामग्री मिली. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने सभी छहों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है.

कहानी पुलिस की जांच व आरोपियों तथा पीड़ित परिवार के बयानों पर आधारित

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 3

मूलरूप से मध्य प्रदेश के सिंगरौली की रहने वाली संध्या सिंह की शादी रीवा के एक संपन्न परिवार के व्यक्ति संतोष सिंह से हुई थी. लेकिन स्वच्छंदता से जीवन व्यतीत करने वाली पढ़ीलिखी संध्या की अपनी ससुराल वालों और पति से अनबन रहने लगी. शादी के कुछ समय बाद वह अपने पति के साथ रीवा से छिंदवाड़ा आ गई. उस ने वहां दुर्गा महिला शिक्षा समिति नाम से एक एनजीओ संचालित करना शुरू कर दिया.

बाद में संध्या सिंह की महत्त्वाकांक्षाएं उड़ान भरने लगीं. वह देर रात तक पार्टियों में अपना वक्त बिताने लगी तो संतोष सिंह से उस का मनमुटाव शुरू हो गया और संतोष सिंह संध्या से अलग हो गए और अपने शहर वापस चले गए. इस के बाद संध्या सिंह खुला और एकाकी जीवन बसर करने लगी. इसी दौरान 10 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की नियुक्ति छिंदवाड़ा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के पद पर हो गई. महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी मध्य प्रदेश के एक सरकारी विभाग में नौकरी करती थीं. उन के दोनों बेटे भी उन्हीं के साथ भोपाल में रहते थे. कभी त्रिपाठी अपने परिवार से मिलने भोपाल चले जाते थे तो कभी उन का परिवार मिलने के लिए उन के पास आ जाता था. एक तरह से महेंद्र त्रिपाठी छिंदवाड़ा में अकेले रहते थे.

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तैनाती के कुछ महीने बाद ही एक समारोह में संध्या सिंह की मुलाकात जज महेंद्र त्रिपाठी से हुई. त्रिपाठी और संध्या सिंह दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए और पहली ही मुलाकात में उन की दोस्ती हो गई. ये दोस्ती इस कदर आगे बढ़ी कि कुछ ही दिनों में उन के रिश्ते आत्मीय हो गए.

दरअसल संध्या सिंह को लगा कि न्यायिक अधिकारी होने के कारण उसे महेंद्र कुमार त्रिपाठी के बडे़ लोगों के साथ रसूख का लाभ मिल सकता है और उन के जरिए वह अपने एनजीओ के लिए बहुत से लाभ ले सकती है.

इंसान भले ही किसी भी पेशे से जुड़ा हो लेकिन प्रकृति का एक नियम है कि जब वह किसी महिला के आकर्षण या रूप जाल में फंस जाता है तो उस का विवेक काम करना बंद कर देता है. वह इस बात को भी भूल जाता है कि वह जिस पेशे से जुड़ा है, उस की मर्यादा क्या है.

संध्या के जाल में फंसे जज साहब

जैसे ही महेंद्र त्रिपाठी की संध्या सिंह के साथ आसक्ति बढ़ी तो संध्या की तरक्की भी होने लगी. उस ने अब त्रिपाठीजी को अपनी तरक्की की सीढ़ी बना कर पूरी तरह अपने आकर्षण के जाल में फंसा लिया था. उस ने त्रिपाठीजी से आर्थिक मदद ले कर कपड़ों का कारोबार भी शुरू कर दिया था.

संध्या सिंह ने दुर्गा महिला शिक्षा समिति के नाम से जो एनजीओ बना रखा था, उस के लिए वह त्रिपाठीजी के सहयोग से सरकारी प्रोजेक्ट भी हासिल करने लगी. चूंकि उस वक्त त्रिपाठीजी छिंदवाड़ा में सीजेएम जैसे महत्त्वपूर्ण ओहदे पर तैनात थे. संध्या सिंह ने छिंदवाड़ा की उसी हाउसिंग बोर्ड कालोनी में किराए का मकान भी ले कर अपना निवास बना लिया, जहां सीजेएम महेंद्र कुमार त्रिपाठी रहते थे.

उन दिनों नगर निगम छिंदवाड़ा ने त्रिपाठीजी के कहने पर संध्या सिंह को आजीविका मिशन के तहत प्रशिक्षण देने का लाखों रुपए का एक प्रोजेक्ट भी दिया था. इस के अलावा संध्या सिंह महेंद्र त्रिपाठी के रसूख का इस्तेमाल कर जम कर फायदे उठाने लगी.

संध्या सिंह और महेंद्र त्रिपाठी के बीच के दोस्ताना रिश्तों की भनक उन की पत्नी व परिवार के दूसरे सदस्यों को भी लग गई थी. जिस के कारण उन के घर में कलह रहने लगी. इसी दौरान 2 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की पदोन्नति हो गई और वे एडीजे बन कर छिंदवाड़ा से बैतूल आ गए.

महेंद्र त्रिपाठी के बैतूल आ जाने के बाद संध्या सिंह की मुश्किलें बढ़ गईं. उन के ज्यादा व्यस्त रहने की वजह से न तो आसानी से उस की उन से मुलाकात हो पाती थी और न ही वह उन से कोई फायदा ले पाती थी.

हां, इतना जरूर था कि वह महेंद्र त्रिपाठी से मिलने के लिए महीने में 1-2 बार बैतूल आती रहती थी. एडीजे त्रिपाठी उस के लिए सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था करा देते थे. जहां 1-2 दिन उन से मिलने के बाद वह वापस चली जाती थी.

लेकिन संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के इस मेलजोल की खबर भी उन के परिवार तक पहुंचने लगी, जिस के कारण उन की अपनी पत्नी व बच्चों से कलह होती रहती थी. आखिरकार महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी ने अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए कुछ महीने पहले अपनी नौकरी से वीआरएस ले लिया और वे जज साहब के पास बैतूल आ कर रहने लगीं. इस दौरान बड़ा बेटा अभियान भी इंदौर से उन्हीं के पास बैतूल आ कर रहने लगा. वह बैतूल में नौकरी की तलाश कर रहा था. छोटा बेटा आशीष पहले से ही मां के पास रहता था.

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इधर 4 महीने से जब से महेंद्र त्रिपाठी का परिवार उन के पास आया था, तब से संध्या सिंह का न तो महेंद्र त्रिपाठी से मिलनाजुलना होता था, न ही त्रिपाठीजी उस की आर्थिक मदद करते थे. इतना ही नहीं, अब महेंद्र त्रिपाठी ने अपने बच्चों को सैटल करने के लिए संध्या सिंह से अपने दिए पैसों का हिसाबकिताब लेना भी शुरू कर दिया था. वे संध्या से अकसर कहते थे कि उन्हें अपने बच्चों को कामधंधा कराना है, इसलिए वह उन से लिए गए पैसे वापस करे.

पिछले 10 सालों में महेंद्र त्रिपाठी से संध्या सिंह की दोस्ती आत्मीयता की इस हद तक पहुंच गई थी कि 4 महीने की दूरी उसे सालों की दूरी सी लगने लगी. अब वह महेंद्र त्रिपाठी से कतई दूर नहीं रहना चाहती थी. जबकि महेंद्र त्रिपाठी उस से दूरी बनाना चाहते थे.

जब महेंद्र त्रिपाठी से उस ने कटेकटे रहने और दूरी बनाने का कारण पूछा तो उन्होंने साफ कह दिया कि उस की वजह से उन के परिवार में कलह रहने लगी है, लिहाजा अब वे एकदूसरे से दूर ही रहे तो अच्छा है, साथ ही उन्होंने संध्या से उन पैसों की मांग फिर से कर दी जो संध्या ने उन से लिए थे.

संध्या नहीं लौटाना चाहती थी जज साहब के पैसे

इन बातों से उपजे तनाव से संध्या सिंह को लगने लगा कि अगर उसे महेंद्र त्रिपाठी का पैसा लौटाना पड़ा तो कहां से इंतजाम करेगी. वैसे भी अब उसे महेंद्र त्रिपाठी से अपनी दोस्ती पहले जैसी होने की कोई उम्मीद नहीं बची थी.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास का शिकार जज परिवार : भाग 2

27 जुलाई को इस मामले में जिलाधिकारी बैतूल व जिला न्यायाधीश के आदेश पर एसपी सिमाला प्रसाद ने एक एसआईटी का गठन कर जांच का काम शुरू करवा दिया. विशेष जांच दल ने एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की विषाक्त भोजन खाने से हुई मौत के मामले की जांच शुरू कर दी.

विशेष जांच दल ने घटना की शुरुआत से सारे साक्ष्यों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया. बैतूल पुलिस को जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे के अस्पताल में भरती होने की पहली सूचना 24 जुलाई को पाढर अस्पताल बैतूल द्वारा मिली थी, जिस के बाद चौकी प्रभारी ने जज महेंद्र त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी के बयान लिए थे. दोनों ने आशंका जताई थी कि उन्हें रोटियां खाने से फूड पौइजनिंग हुई है. जिस आटे की रोटियां बनी थीं, उस में वह आटा भी शामिल था जो जज साहब को उन की एक महिला मित्र ने दिया था.

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एसआईटी ने शुरू की जांच

विशेष जांच दल ने जज साहब व उन के बेटे द्वारा दिए गए बयान चौकी प्रभारी से ले लिए. साथ ही जांच दल ने नागपुर में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी अपने कब्जे में ले ली, जिस में आशंका व्यक्त की गई थी कि दोनों की मौत खाने में तीक्ष्ण जहर मिला होने की वजह से हुई थी.

विशेष जांच दल ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी और छोटे बेटे आशीष त्रिपाठी के बयान भी कलमबद्ध किए. उन दोनों ने यही बताया कि जज साहब की एक महिला मित्र संध्या सिंह ने किसी तांत्रिक से अभिमंत्रित करा कर ये आटा दिया था, जिसे संध्या के बताए अनुसार घर के आटे में मिला कर रोटियां बनाई गई थीं ताकि घर में सुखसमृद्धि आ सके.

‘‘क्या वो आटा अभी भी आप के पास है?’’ एसपी सिमाला प्रसाद ने जज महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी से पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन खाने के बाद से हम ने उस आटे का इस्तेमाल ही नहीं किया है. सारा आटा ज्यों का त्यों रखा है.’’ मिसेज त्रिपाठी के बताने के बाद विशेष जांच दल ने उस आटे को अपने कब्जे में ले कर उसी दिन जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया.

इसी दौरान जांच दल को पता चला कि 21 जुलाई को जब विषाक्त खाना खाने से जज महेंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई थी, तब उन्होंने अपने कई जानकारों से फोन पर बात की थी.

पुलिस ने महेंद्र त्रिपाठी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उन तमाम लोगों से बातचीत की तो उन्होंने भी यही बताया कि उन की एक दोस्त संध्या सिंह ने उन्हें जो आटा दिया था, घर के आटे में उस के मिश्रण से बनी रोटियां खाने के बाद ही उन की और उन के बेटों की तबियत खराब हुई थी.

पुलिस को काल डिटेल्स में संध्या सिंह नाम की एक महिला का नंबर भी मिला, जिसे इलाज के दौरान जज साहब ने कई बार काल की थी. लेकिन किसी भी काल पर बहुत लंबी बात नहीं हुई थी.

जज त्रिपाठी के छोटे बेटे आशीष राज ने भी पुलिस को बयान दिया कि जब उन के पिता व भाई को नागपुर के अस्पताल में शिफ्ट किया जा रहा था तो पिता ने रास्ते में उसे बताया था कि वह आटा उन की परिचित महिला संध्या सिंह ने दिया था, जिसे घर के आटे में मिला कर बनी रोटियां खाने से सब की तबियत खराब हुई थी. उन्होंने बताया था कि उस आटे की पूजा किसी पंडित ने की थी.

विशेष जांच दल को अब तक इस बात के पर्याप्त सुबूत मिल चुके थे कि एडीशनल सेशन जज महेंद्र त्रिपाठी व उन के बेटे की मौत विषाक्त आटे से बनी रोटियां खाने से हुई थी. अभी तक की जांच में संध्या सिंह नाम की महिला मुख्य किरदार के रूप में सामने आई थी. विशेष जांच दल ने एसपी सिमाला सिंह के निर्देश पर बैतूल के थाना गंज में 27 जुलाई, 2020 की सुबह जज त्रिपाठी व उन के बेटे की अकाल मृत्यु के मामले को अपराध क्रमांक 26 / 2020 पर दर्ज कर लिया. लेकिन जब इस मामले में साक्ष्य एकत्र हो गए तो इसे हत्या की धारा 302, 323, 307, 120बी में पंजीकृत किया गया.

इस मामले में मुख्य किरदार संध्या सिंह थी, इसलिए विशेष जांच दल ने उस की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से बड़ी परेशानी यह थी कि महेंद्र त्रिपाठी न्यायिक अधिकारी थे, उन का परिवार भी संध्या सिंह के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं दे रहा था, मसलन वह कौन है, कहां रहती है और उस के दिए गए आटे को उन्होंने क्यों इस्तेमाल किया.

इस के अलावा पुलिस टीम यह भी नहीं समझ पा रही थी कि जज साहब के घर में आखिर ऐसी कौन सी कलह थी जिसे दूर करने के लिए वह पंडित या तांत्रिक का मंत्रपूरित आटा घर ले आए और उन्हें उस की बनी रोटियां खाने को विवश होना पड़ा.

सवाल अनेक थे, लेकिन उन का जवाब किसी के पास नहीं था इसलिए पुलिस ने सारा ध्यान संध्या सिंह पर फोकस कर दिया क्योंकि उस से पूछताछ करने के बाद ही इन सवालों का जवाब मिल सकता था.

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पुलिस लगातार संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करने में लगी थी क्योंकि वही एक जरिया था, जिस के माध्यम से उस तक पहुंचा जा सकता था. संध्या सिंह का मोबाइल लगातार बंद मिल रहा था. बीचबीच में वह औन होता और फिर बंद हो जाता था. पुलिस ने जब मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो वह हाउसिंग बोर्ड कालोनी छिंदवाड़ा स्थित एक मकान की मिली. इस के बाद पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, तो वहां ताला लगा मिला.

मिल गई संध्या

पुलिस टीम संध्या सिंह तक पहुंचने के लिए लगातार काम करती रही. 30 जुलाई की शाम के समय संध्या सिंह के मोबाइल की लोकेशन रीवा में मिली. छिंदवाड़ा में भटक रही पुलिस टीम को तुरंत रीवा भेजा गया, जहां संयोग से संध्या अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद थी. पुलिस उन सभी को हिरासत में ले कर बैतूल लौट आई. संध्या सिंह की टाटा इंडिगो कार एमपी28 सीबी-3302 भी पुलिस ने जब्त कर ली थी.

संध्या सिंह की उम्र करीब 50 साल थी. पहनावे और बातचीत से वह एक आधुनिक महिला लग रही थी. शुरुआती पूछताछ में संध्या सिंह एसपी सिमाला प्रसाद से ले कर पूरे जांच दल को इधरउधर की बातें बना कर समय खराब करती रही. उस ने पुलिस को बताया कि एडीजे त्रिपाठी से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन उन की मौत से उस का कोई संबध नहीं है.

लेकिन पुलिस ने जब उस के सामने उस के खिलाफ मौजूद सारे सुबूत रखे तो उस ने कबूल कर लिया कि उसी ने सर्प विष मिला आटा एडीजे त्रिपाठी को दिया दिया था. संध्या सिंह ने बताया कि उस का इरादा पूरे त्रिपाठी परिवार को खत्म करने का था. संध्या सिंह के साथ जो 5 अन्य लोग पकड़े गए थे, वे भी हत्या की इस साजिश में शामिल थे.

संध्या सिंह कौन थी, जज साहब से उस की जानपहचान कैसे हुई तथा उस ने उन्हें परिवार के साथ मारने के लिए जहरीला आटा क्यों दिया, यह सब जानने के लिए पुलिस ने संध्या सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो सारे सवालों का जवाब मिल गया.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस की भूलभुलैया : भाग 3

हाजी गफूर ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया और उसे लाइब्रेरी में ले आए. वहां उन्होंने अपने कातिल को सिगार भी पेश किया. उन दोनों के बीच चीनी मिल के स्टौक के मामले में बातचीत होती रही. कातिल ने हाजी गफूर को कोई पेशकश की, जिसे उन्होंने क्षमा याचना के साथ नकार दिया.

ऐसी स्थिति में कातिल उठ खड़ा हुआ. वहां उस ने एक मुगरी देखी थी. वह मुगरी उठा कर हाजी साहब के पीछे जा पहुंचा और उन के सिर पर जोर से प्रहार किया. ऐसी स्थिति में उन का सिर फट गया और खून बहने लगा.

लगातार खून बहने से उन की मौत हो गई. उस के बाद कातिल ने संदूकची में से सारी रकम निकाल ली. ऐसा उस ने मात्र गलतफहमी पैदा करने के लिए किया, अन्यथा उसे करेंसी नोटों की कोई जरूरत नहीं थी.’’ कह कर इंसपेक्टर अलीम राहत अली की ओर देखने लगा. राहत अली की निगाहें उसी पर जमी हुई थीं.

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कुछ देर चुप रहने के बाद इंसपेक्टर अलीम बोला, ‘‘अब समस्या यह है राहत साहब कि मो. रऊफ यानी हाजी गफूर का भाई सिगार नहीं पीता. हाजी गफूर का सेकेट्री रफीक खान और चीनी मिल का मैनेजर मो. लतीफ कभीकभार ही सिगार पीते हैं. सलीम अहमद पाइप पीता है जबकि कातिल सिगरेट पीने वाला व्यक्ति था.’’

राहत अली ने इंसपेक्टर अलीम की बात का कोई जवाब नहीं दिया. इंसपेक्टर अलीम आगे बोला, ‘‘वस्तुत: सिगार पीने वाला व्यक्ति सिगार के एक सिरे को अपने दांतों से काटता है और फिर सावधानीपूर्वक अपने दांत सिगार के दूसरे सिरे में गड़ा देता है. ऐसी स्थिति में सिगार उस के मुंह से नहीं गिर सकता.

लेकिन सिगरेट पीने वाला व्यक्ति सिगरेट को अपने होठों से दबाता है, दांतों से नहीं. उस रात जो व्यक्ति हाजी गफूर साहब से मिलने के लिए लाइब्रेरी में आया, वो सिगरेट पीने का आदी था, इसलिए उस ने सिगार के सिरे को दांतों से नहीं दबाया था. दूसरी बात यह है कि कातिल बाएं हाथ से काम करने का आदी है.’’

‘‘अच्छा, क्या सलीम अहमद बाएं हाथ से काम करता है?’’ राहत अली ने बेचैनी से पूछा.

‘‘नहीं, सलीम अहमद बाएं हाथ से काम नहीं करता.’’ इंसपेक्टर अलीम ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘बल्कि आप बाएं हाथ से काम करते हो. दूसरी बात आप सिगार पीने के आदी भी नहीं हो, क्योंकि आप सिर्फ सिगरेट पीते हो. इसलिए आप यह बात भूल गए थे कि सिगरेट पीने का तरीका अलग है और सिगार पीने का अलग.’’

‘‘आप मुझ पर यह आरोप लगा रहे हैं कि मैं ने हाजी गफूर साहब का कत्ल किया है.’’ राहत अली गुस्से से कांपता हुआ खड़ा हो गया.

‘‘मैं माफी चाहता हूं राहत साहब.’’ इंसपेक्टर अलीम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सारी बातें और घटनाएं बताई हैं और यह सब आप की ही ओर इशारा कर रही हैं.’’

राहत अली तेज स्वर में बोला, ‘‘सवाल यह है कि मैं हाजी गफूर साहब का कत्ल क्यों करूंगा. इस कत्ल के पीछे कोई उद्देश्य तो होना चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे पास चीनी मिल के पैंतालिस प्रतिशत शेयर हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने शांत स्वर में कहा, ‘‘तुम कई साल से हाजी गफूर पर दबाव डाल रहे थे कि वह तुम्हें 50 फीसदी से ज्यादा शेयर दे दें, ताकि तुम चीनी मिल के मामले में आदेश देने की पोजीशन में आ जाओ. हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ वैसे भी मौजमस्ती में पड़ा रहने वाला आदमी है. बाद में तुम उसे बरगला कर उस का हिस्सा भी खरीद लेते.’’ यह कह कर इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर घूर कर देखा, राहत अली ने अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया.

‘‘सच का सामना करो राहत अली.’’ इंसपेक्टर अलीम बोला, ‘‘इस तरह मुंह मोड़ने से कुछ नहीं होगा. जब तुम हाजी गफूर से मिलने गए तो खासतौर पर दस्ताने पहन कर गए थे.’’

‘‘मैं ने पर्स छीने जाने की सूचना दे कर कोई अपराध नहीं किया.’’ राहत अली गुस्से से बोला.

‘‘हां तुम तंबाकू वाले स्टाल पर गए जरूर थे, ताकि लोगों को यह दिखा सको कि हाजी गफूर के कत्ल के समय तुम तंबाकू वाले के स्टाल पर थे. दूसरे तुम मेरे पास भी इसलिए आए थे, ताकि मेरा ध्यान तुम्हारी तरफ न जा सके. मेरे पास आने की एक वजह यह भी थी कि तुम हाजी गफूर के कत्ल के सिलसिले में पुलिस की कारर्रवाई से पूरी तरह बाखबर रहना चाहते थे.’’

राहत अली कुछ देर तक इंसपेक्टर अलीम को देखता रहा, फिर उस पर खांसी का दौरा पड़ गया. खांसतेखांसते राहत अली ने अपना सीना थाम लिया, तभी पल भर में उस के हाथ में पिस्तौल आ गया और उस ने इंसपेक्टर अलीम की ओर तान दिया.

फिर कुटिल शब्दों में बोला, ‘‘तुम बहुत बुद्धिमान हो इंसपेक्टर, मगर तुम्हारी यह बुद्धिमानी तुम्हें  मरने से नहीं बचा सकेगी. अपनी जगह से हिलने की कोशिश मत करना.’’

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लेकिन इंसपेक्टर अलीम ने एक अजीब हरकत की. मेज पर जिस जगह उस ने अपना एक हाथ रखा हुआ था, वहीं ऐश ट्रे भी रखी थी. उस ने पलक झपकते ही वह ऐश ट्रे उठाई और राहत अली की तरफ उछाल दी. राहत अली को हिलने का भी मौका नहीं मिल सका.

ऐश ट्रे की राख ने उसे अचानक अंधा सा कर दिया था. राहत अली ने अंधाधुंध दो फायर किए. तभी कोई वजनी चीज उस के सिर पर लगी और उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

जब राहत अली की आंख खुली तो उस ने अपने आप को हवालात में पाया. कुछ ही देर बाद इंसपेक्टर अलीम राहत अली के सामने खड़ा था.

‘‘राहत अली! तुम इतने खतरनाक होगे, यह मैं सोच भी नहीं सकता था.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘तुम ने अपने हिसाब से बहुत अच्छी योजना बनाई थी, लेकिन कोई भी अपराधी कानून की नजर से ज्यादा देर तक नहीं बच पाता.’’

राहत अली ने इंसपेक्टर अलीम की बात का कोई जवाब नहीं दिया. इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘तुम बराबर मेरे पास आते रहे और मुझे धोखा देते रहे. तुम ने दो बार मुझ पर फायर किए. एक बार कब्रिस्तान में और दूसरी बार मेरे ही दफ्तर में… तुम बाहर से गोली चला कर अपने स्कूटर से भाग गए.’’

‘‘हां, यह सब ठीक है.’’ राहत अली उदास हो कर बोला, ‘‘लेकिन इस में उस सिगार का बड़ा रोल है. अगर वह तुम्हारे हाथ न आता, तो तुम मुझे कभी नहीं पकड़ सकते थे. मैं ने इस योजना में बड़ी सावधानी बरती थी. कहीं कोई झोल नहीं छोड़ा था. लेकिन उस सिगार ने मुझे जेल तक पहुंचा दिया.’’

‘‘मगर एक बात तुम्हें माननी पड़ेगी.’’ इंसपेक्टर अलीम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सिगार के बारे में मुझे इतना कुछ नहीं मालूम था, जितना मैं ने तुम्हें बताया. समझ लो, मैं ने अंधेरे में तीर चलाया था, जो इत्तेफाक से निशाने पर लग गया.’’

इंसपेक्टर अलीम की बात सुन कर राहत अली उसे देखता रह गया.

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पुलिस की भूलभुलैया : भाग 2

इंसपेक्टर अलीम ने जेब से रुमाल निकाला और उस की मदद से मुगरी को पकड़ कर उठाया. वह बड़े ध्यानपूर्वक उस का निरीक्षण करता रहा. फिर उस ने उसे वापस टोकरी में डाल दिया और मेज की तरफ बढ़ा. तभी थाने से उस के स्टाफ के अन्य लोग भी आ गए और अपने काम में जुट गए.

उसी समय उस की नजर ऐशट्रे में पड़े एक अधजले सिगार पर पड़ी. उस ने तत्काल उसे उठा लिया और राहत अली से पूछा, ‘‘क्या आप सिगार पीते हैं?’’ उस का सवाल अचानक था.

‘‘कभीकभार…!’’ राहत अली ने जवाब दिया.

वह 3 तलों वाला हवाना का सिगार था जो गहरे रंग का था. सिगार के नाम की पट्टी हटा दी गई थी, जबकि मेज की दराज में मौजूद सभी सिगारों पर वह पट्टी लगी थी और गोल्डन सील भी थी. हर सिगार पर साइड में एक निर्धारित ट्रेड मार्क था. जिस में ग्रेट लीगेशन लिखा था. यह एक महंगा सिगार था.

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कुछ देर बाद इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली को जाने की इजाजत दे दी. उसी रात जब इंसपेक्टर अलीम थाने के अपने बाहरी कमरे में अकेला बैठा ताश खेल रहा था तो कोई स्कूटर सवार वहां आया और उस पर गोली चला कर भाग गया लेकिन गोली इंसपेक्टर के कान को छूती हुई गुजर गई. वह बालबाल बच गया था.

उस घटना के दस दिन बाद शाम को 6 बजे इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली को फोन कर के थाने आने के लिए कहा. उस ने बताया कि छीने जाने वाले पर्स के बारे में कुछ मालूमात हासिल हुई है.

राहत अली हाजी गफूर की रायल चीनी मिल में पैंतालिस प्रतिशत का शेयर होल्डर था. उसे अखबारों और न्यूज चैनलों से यह ज्ञात हो गया था कि हाजी गफूर की हत्या की तफतीश शुरू हो गई है. किसी गुमनाम कातिल ने उन के सिर पर उसी मुगरी से जबरदस्त चोट मारी थी जिस से हाजी गफूर की तत्काल मृत्यु हो गई थी.

राहत अली जब थाना पहुंच कर इंसपेक्टर अलीम से मिला तो वह किसी केस की फाइल देख रहा था. राहत अली को देखते ही इंसपेक्टर ने अपने हवलदार को बुला कर कहा, ‘‘गब्दू को ले आओ.’’

कुछ देर बाद एक लंबाचौड़ा, बुझे चेहरे वाला आदमी कमरे के अंदर दाखिल हुआ. इंसपेक्टर अलीम ने उसे देखते ही राहत अली से पूछा, ‘‘क्या यही वह आदमी है जिस ने आप का पर्स छीना था.’’

राहत अली ने गौर से उस आदमी को देखा और ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘और यह पर्स…’’ इंसपेक्टर अलीम ने एक पुराना पर्स राहत अली के सामने रखते हुए कहा, ‘‘यह आप का है?’’

‘‘नहीं…’’ इस बार भी राहत अली ने इनकार कर दिया.

‘‘ठीक है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने हवलदार को इशारा किया और वह उस आदमी को ले कर वापस चला गया.

‘‘हाजी गफूर के केस में मैं ने अपनी तफतीश का दायरा तंग कर दिया है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘अब मेरी नजर में सिर्फ 6 लोग शक के दायरे में हैं. इन में से दो अभी लाए जाने वाले हैं.’’

‘‘ठीक है.’’ राहत अली ने सहजतापूर्वक कहा.

‘‘मेरी लिस्ट में जो 6 लोग हैं, उन में हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ और हाजी गफूर का सेकेट्री रफीक खान सब से ऊपर हैं. उन दोनों के अलावा मोहतरमा हिना, एक व्यापारी सलीम अहमद, चीनी मिल का मैनेजर मो. लतीफ और एक अन्य व्यक्ति मेरी लिस्ट में हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने आगे बताया, ‘‘हाजी गफूर और मो. रऊफ में प्राय: लड़ाई होती थी. एक हफ्ते पहले उन दोनों में अच्छाखासा विवाद हुआ था. मो. रऊफ अपने भाई हाजी गफूर पर पूरी तरह आश्रित था.’’

‘‘और रफीक खान पर शक की क्या वजह है?’’ राहत अली ने पूछा.

‘‘वह यह जानता है कि गफूर साहब उस संदूकची में विदेशों के करेंसी नोट रखते थे…’’ अभी इंसपेक्टर अलीम की बात पूरी नहीं हुई थी कि एक सिपाही कमरे में आया और उस ने इंसपेक्टर अलीम के कान में कुछ कहा तो वह झटके से उठते हुए बोला, ‘‘राहत साहब! अभी मैं ने आप को बताया था कि मुझे एक व्यापारी सलीम अहमद पर भी शक है. सलीम अभी कब्रिस्तान में नजर आया था. मुझे कुछ गड़बड़ लगती है. मैं वहां जा रहा हूं. क्या आप मेरे साथ चलना पसंद करेंगे.’’

5 मिनट बाद इंसपेक्टर अलीम और राहत अली कब्रिस्तान पहुंच गए. दोनों लोग कब्रों के बीच से होते हुए पेड़ों के साए में आगे बढ़े. वहां अंधेरा छाया था. इंसपेक्टर अलीम ने कहा, ‘‘राहत साहब, आप उधर से आगे बढ़ें और मैं इधर से जा रहा हूं. लेकिन जरा सावधान रहना.’’

राहत अली तुरंत आगे बढ़ गया. लेकिन अंधेरे में सौ गज तक आगे बढ़ने के बाद वह वापस हो गया. इस प्रकार वह एक दायरे में आ गया था. एकाएक कब्रिस्तान में फायर की आवाज सुनाई दी. राहत अली ने वहां से फौरन दौड़ लगा दी और किसी से जा टकराया. वह इंसपेक्टर अलीम था जिस पर किसी ने फायर किया था. इंसपेक्टर अलीम के बाएं हाथ में गोली लगी थी जिस में से खून बह रहा था.

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राहत अली ने पूछा, ‘‘ये क्या हुआ इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘कुछ नहीं, वह गोली मार कर भाग गया. लेकिन मैं ठीक हूं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने अपना रूमाल राहत अली को देते हुए कहा, ‘‘लो, इसे जख्म पर बांध दो.’’ थोड़ी देर बाद वे दोनों कब्रिस्तान से बाहर निकले और शीघ्र ही थाने पहुंच गए.

दूसरे दिन इंसपेक्टर अलीम के बुलावे पर राहत अली पुन: थाने पहुंच गया. इंस्पेक्टर अलीम ने उस से कहा, ‘‘कल मैं ने आप को कुछ लोगों के बारे में बताया था. अब बारी आती है मोहतरमा हिना की. वह एक सुंदर युवती है और कुछ ही समय में गफूर साहब के काफी निकट आ गई थी.’’

दरअसल, गफूर साहब ने शुरू में कुछ गलतियां की थीं, जो मोहतरमा हिना को मालूम हो गई थीं. वह उन्हीं को ले कर हाजी गफूर को ब्लैकमेल कर रही थी. लेकिन वह काफी सतर्क रहती थी.’’ यह कह कर इंसपेक्टर अलीम कुछ देर के लिए रुका. फिर आगे बोला, ‘‘गफूर साहब के सिर पर लकड़ी की मुगरी से प्रहार कर के उन्हें मारा गया है और यह काम किसी स्त्री का नहीं हो सकता. क्योंकि यह काम शक्तिशाली आदमी ही कर सकता है.’’

‘‘अच्छा…तो फिर?’’ राहत अली बोला.

‘‘मुझे चीनी मिल के मैनेजर मो. लतीफ पर शक है. वह घोड़ों पर शर्तें लगाने की वजह से तबाह हो चुका है. संभव है कि वह गफूर साहब के पास गया हो और कुछ पैसे मांगे हों, मगर इनकार करने पर उस ने…’’ इंसपेक्टर अलीम की बात सुन कर राहत अली खामोशी से बैठ गया.

‘‘अब रह जाता है सलीम अहमद.’’ इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि कब्रिस्तान में उसी ने मुझ पर फायर किया था.’’

‘‘तो क्या सलीम अहमद ने ही हाजी गफूर को कत्ल किया है?’’ राहत अली ने पूछा.

‘‘नहीं, शायद मैं ऐसा ही सोचता, मगर सिगार की वजह से मुझे अपना खयाल बदलना पड़ा.’’

‘‘सिगार? क्या मतलब है आप का?’’ राहत अली ने सहजतापूर्वक कहा.

‘‘हां… ग्रेट लीगेशन का वही सिगार, जो मुझे गफूर साहब की लाइब्रेरी में मिला था.’’ इंसपेक्टर अलीम ने जवाब दिया, ‘‘वह सिगार जिस आदमी ने पिया, वही हाजी गफूर का कातिल है.’’

‘‘तब तो फौरन उस सिगार पर से उंगलियों के निशान आप को चैक कराने चाहिए.’’ राहत अली ने गंभीरतापूर्वक कहा.

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‘‘यही तो समस्या है कि सिगार पर किसी की उंगलियों के निशान नहीं मिले, क्योंकि कातिल ने दस्ताने पहन रखे थे.’’ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद इंसपेक्टर अलीम ने आगे कहा, ‘‘6 बजे के करीब हाजी गफूर साहब लाइब्रेरी से निकल कर डाइनिंग रूम में जाने वाले थे, तभी बाग के दरवाजे पर उन्हें कातिल मिला.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुलिस की भूलभुलैया : भाग 1

जब राहत अली थाने में दाखिल हुआ तो उसे इंसपेक्टर अलीम अपनी सीट पर अकेला बैठा दिखाई दिया. इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मेरा नाम राहत अली है. मैं अपने पर्स के छीने जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

‘‘कब और किसने छीना है आप का पर्स?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘मैं आप को पूरी बात बताता हूं,’’ राहत अली बोला, ‘‘लगभग आधे घंटे पहले मैं अलआजम स्क्वायर की मेन मार्केट की एक दुकान पर तंबाकू लेने के लिए रुका था. उस समय वहां अन्य लोग भी खड़े थे, लेकिन मैं उस गुंडे को नहीं देख सका, जो मेरे पीछे आ कर खड़ा हो गया था.

जब मैं अपना पर्स खोलने वाला था, तभी उस ने झपट्टा मार कर मेरा पर्स छीन लिया और दौड़ कर पल भर में भीड़ में गायब हो गया. मेरे पर्स में 20 हजार, 4 सौ रुपए थे.’’

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राहत अली की बात सुन कर इंसपेक्टर ने अपनी मेज की दराज से एक कागज निकाला और पेन उठा कर एक साथ कई सवाल कर डाले, ‘‘उस गुंडे का हुलिया? उस की उम्र? आप के पर्स में रुपयों के अलावा और क्या था? क्या इस राहजनी का कोई चश्मदीद गवाह है?’’

राहत अली के जवाब इंसपेक्टर अलीम ने लिखने शुरू कर दिए. अचानक उस की मेज पर रखा फोन बजने लगा. उस ने रिसीवर उठा कर कान में लगा लिया. कुछ देर तक वह दूसरी तरफ से बोलने वाले व्यक्ति की आवाज सुनता रहा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, मैं आता हूं.’’

फोन बंद कर के इंसपेक्टर अलीम ने राहत अली की ओर देखा, तो उस ने कहा, ‘‘मेरा संबंध ग्रीन बिल्डिंग से है. गफूर साहब के मार्फत कई बार आप का नाम सुन चुका हूं. रायल चीनी मिल में गफूर साहब के साथ शेयर होल्डर हूं.’’

‘‘अच्छा! गफूर साहब तो चीनी के बहुत बड़े व्यापारी हैं.’’ इंसपेक्टर अलीम ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आप उन से आखिरी बार कब मिले थे?’’

‘‘बुध की शाम को…क्यों? खैरियत तो है?’’ राहत अली ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘कुछ गड़बड़ लगती है.’’ इंसपेक्टर अलीम ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘आप जरा मेरे साथ ग्रीन बिल्डिंग तक चलें.’’

हाजी गफूर रायल चीनी निर्यात कंपनी का मालिक था. उस का औफिस ग्रीन बिंल्डिग में था. उस बिल्डिंग में हाजी गफूर ने अन्य कामों के औफिस भी स्थापित कर रखे थे तथा अनेक तल किराए पर दे रखे थे.

ग्रीन बिल्डिंग के निकट ही उस का लाल टाइलों वाला 4 मंजिला मकान था. इंस्पेक्टर अलीम राहत अली को पुलिस जीप में बिठा कर हाजी गफूर के घर की ओर चल पड़ा.

आधे घंटे बाद इंसपेक्टर अलीम ने हाजी गफूर के घर के ड्राइव वे में अपनी जीप रोक दी. वे दोनों जीप से उतर कर घर में दाखिल हुए जहां हाजी गफूर का भाई मो. रऊफ इंसपेक्टर अलीम का इंतजार कर रहा था. रऊफ की उम्र पचास साल से ज्यादा थी.

उस के बोलने का अंदाज अलग था. वह बोलतेबोलते गहरी सांसें लेने लगता था. वह उन दोनों को सीधा लाइब्रेरी में ले गया. इंस्पेक्टर अलीम ने देखा वहां बिछे लाल कालीन पर एक मेज के पीछे चौड़े कंधों वाला एक आदमी पड़ा था, जिस की दाढ़ी सफेद थी. उस के जिस्म पर सफेद शलवारकमीज थी.

सिर के पिछले हिस्से पर एक बड़ा सा घाव था. सिर की हड्डी टूटी हुई थी और वहां से खून निकल कर चेहरे से टपकता हुआ लाल कालीन में समा गया था. हाजी गफूर की आंखें खुली हुई थीं. वह मर चुके थे.

‘‘ये तो हाजी गफूर साहब हैं.’’ राहत अली ने आगे बढ़ कर चौंकते हुए कहा, ‘‘ये… इन्हें किसने… कत्ल… कर दिया है?’’

उसी समय पैंटशर्ट पहने एक आदमी आगे आया. वह एक लंबे कद का सुंदर युवक था. वह धीरे से बोला, ‘‘मेरा नाम रफीक खान है और मैं गफूर साहब का सैकेट्री हूं. मैं ने ही आप को फोन किया था. हम में से किसी ने भी किसी चीज को हाथ नहीं लगाया है.’’

रफीक खान की बात सुन कर इंसपेक्टर अलीम ने सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़ कर हाजी गफूर की लाश का निरीक्षण करने लगा. उस ने मेज को भी गौर से देखा. फिर वह एक कुर्सी पर बैठ कर रफीक खान से बोला, ‘‘मुझे शुरू से विस्तारपूर्वक बताओ.’’

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‘‘गफूर साहब दिन के 2 बजे अपने किसी मित्र से मिल कर घर लौटे,’’ रफीक खान बताने लगा, ‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि वे आज औफिस नहीं जाएंगे और सभी दफ्तरी फाइलें घर पर ही देखेंगे. जब वे काफी थके होते थे तो प्राय: ऐसा ही करते थे. फिर उन्होंने मुझ से तीन लैटर लिखवाए और आगे काम करने से इनकार कर दिया. दरअसल उन्हें 3 लोगों से अलगअलग व्यापार संबंधी बातें करनी थीं. जब मैं आधे घंटे बाद यहां आया तो वे मर चुके थे.’’

इंस्पेक्टर अलीम ने पूछा, ‘‘गफूर साहब किन लोगों से व्यापार संबंधी भेंट करने वाले थे.’’

‘‘मुझे सिर्फ एक मुलाकाती के बारे में मालूम है,’’ रफीक खान ने बताया, ‘‘किसी मोहतरमा हिना को 4 बजे यहां आना था.’’

इंसपेक्टर अलीम ने मुड़ कर हाजी गफूर के भाई मो. रऊफ की तरफ देखा. न जाने क्यों रऊफ के चेहरे पर अपने भाई की मौत का कोई गम नजर नहीं आ रहा था. इंसपेक्टर अलीम ने रऊफ से पूछा, ‘‘क्या हाजी गफूर साहब का कोई दुश्मन था?’’

‘‘वैसे तो कारोबारी दुनिया में सभी के दुश्मन होते हैं, मगर हाजी गफूर साहब का कोई दुश्मन नहीं था.’’ मो. रऊफ ने बताया, ‘‘मेरी और भाई साहब की मुलाकात सिर्फ खाने की मेज पर होती थी. हम दोनों के पास एकदूसरे से मिलने, बातें करने या विभिन्न समस्याओं पर बहस करने की फुरसत नहीं थी.’’

लाइब्रेरी में एक बड़ी अलमारी भी थी, जिस के ऊपर दो गोताखोरों की मूर्तियां रखी थीं. उन दोनों ने बीच में एक संदूकची पकड़ रखी थी. वह कला का एक शानदार नमूना था. इंसपेक्टर अलीम की नजरें उस पर जम कर रह गई थीं. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर अलीम ने पुन: बड़ी बारीकी से पूरी लाइब्रेरी का निरीक्षण किया और लाश की जेबों की तलाशी ली.

एक जेब में से चाबियों का एक गुच्छा मिला. इंसपेक्टर ने सब से छोटी चाबी का चुनाव कर के उसे मूर्तियों वाली संदूकची की सूराख में दाखिल किया. जब उस ने चाबी घुमाई तो संदूकची का ताला खुलने की आवाज आई. संदूकची के अंदर साफसुथरे कागजों और दस्तावेजों को बड़े सलीके से रखा गया था.

इंसपेक्टर अलीम ने रफीक खान से पूछा, ‘‘ये क्या है मिस्टर सेकेट्री?’’

‘‘हाजी साहब हर देश के करेंसी नोट भी इस में रखते थे. एक हजार से पांच हजार डौलर मूल्य के. लेकिन अब वे नोट दिखाई नहीं दे रहे हैं. सिर्फ कागजात हैं.’’ रफीक खान ने संदूकची को गौर से देखते हुए कहा.

फिर इंसपेक्टर अलीम ने दोबारा पूरे 25 मिनट तक उस कमरे की एक कोने से दूसरे कोने तक तलाशी ली. उस ने देखा कि बिजली का पंखा अभी तक चल रहा था. उस ने किताबों की शेल्फ भी देखी.

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इंसपेक्टर अलीम ने कई किताबें निकालीं और वापस उसी जगह रख दीं. उस ने लाइब्रेरी के कोने में रखा ग्लोब भी घुमाया. वहां एक सुंदर रद्दी की टोकरी भी पड़ी थी, जो बहुत बड़ी थी. उस टोकरी में लकड़ी का एक डंडा पड़ा हुआ था जिस पर मुगरी की तरह का सिर भी था. ऐसे डंडे पोलो खेलने वाले लोग बैट के रूप में प्रयोग करते हैं.

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