
छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में एक ऐसी ही घटना घटित हुई है जिसे देखने पर विचार करना पड़ता है कि शराब किस तरह छत्तीसगढ़ के गरीब आदिवासियों को बर्बाद कर रही है. एक “शराब विक्रेता” आदिवासी महिला के घर शराब पीने के लिए गए एक वृद्ध को अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया. गांव के ही युवक से अवैध संबंध रखने वाली इस महिला के पति ने अपने भाई के साथ पत्नी की हत्या करने हमला कर दिया… लेकिन नशे में धुत्त होकर सोए वृद्ध को अपनी पत्नी समझकर टांगिया से वार कर वृद्ध पिअकड़ को वहीं ढेर कर दिया. यही नहीं पास में ही सोया प्रेमी भी उनके गुस्से का शिकार हुआ लेकिन शोर मचाकर जान बचा नौ दो ग्यारह हो गया.
इस संपूर्ण हत्याकांड में महत्वपूर्ण यह बात रही की शराब बेचकर जीवन यापन करने वाली पत्नी दूसरे कमरे में सोने के कारण बाल बाल बच गई. शायद इसीलिए कहते हैं जाकर राखे साइयां मार सके ना कोई.
पति पत्नी और “वो” का किस्सा
छत्तीसगढ़ के औघोगिक जिला कोरबा के आदिवासी बाहुल्य पाली थाना क्षेत्र के ग्राम बांधाखार स्थित नीम चौक निवासी वृद्ध चमरा सिंह नामक व्यक्ति की विगत 17 सितंबर को रक्त रंजित लाश गांव के मीना बाई कोल के घर में मिली थी. इस मामले की गुत्थी पुलिस ने अंततः सुलझा ली . थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने हमारे संवाददाता को बताया कि मृतक के पुत्र मनोहर सिंह मरावी (35 वर्ष) के द्वारा उसके पिता की 16 सितंबर की रात 7-8 बजे घर से निकलने और अधिकतर मीना बाई कोल के यहां जाकर शराब पीने के लिए जाने व घर वापस नहीं लौटने की सूचना दी गई थी.
17 सितंबर को सुबह 8 बजे ग्राम सरपंच तानू सिंह मरावी ने मनोहर को उसके पिता के मीना बाई के घर में लहूलुहान मृत हालत में पड़े होने की सूचना दी. मनोहर सिंह वहां पहुंचा तो मीना बाई के घर के एक कमरे में चमरा सिंह मृत पड़ा था और उसके सिर पर गंभीर चोट थी. मीना बाई और पड़ोसी घायल शिव सिंह वहां कुर्सी पर बैठे मिले.शिव सिंह के गले, पीठ और सीने में चोट थी. मामले में पुलिस ने जब मीना बाई व शिव सिंह से पूछताछ की तो संपूर्ण मामला सामने आ गया – घटना की रात मीना का पति गोरेलाल (45 वर्ष )और उसका भाई मूरित राम कोल( 30 वर्ष) दोनों पिता सुरूज लाल, है निवासी ग्राम बांधाखार शराब के नशे में धुत्त होकर मीना की हत्या करने की नीयत घर पहुंचे थे.
जांच अधिकारी राठौर ने बताया कि दोनों भाई कमरे में घुसे जहां औंधे मुंह वृद्ध चमरा सिंह सोया हुआ था और पास ही शिव सिंह सोया था.वृद्ध को अपनी पत्नी मीना समझकर गोरेलाल ने टांगी से लगातार 3 वार किया तो तत्काल उसकी मौत हो गई. इसके बाद शिव सिंह का गला काटने टांगी चलाया लेकिन शिव की नींद उचट गई और बचाव किया. उसके कंधे व गर्दन में जख्म आए हैं. शिव ने जोर-जोर से शोर मचाया तो गोरेलाल व मूरित राम भाग निकले.इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मीना बाई अपने मकान के ही एक अन्य कमरे में बच्चे के साथ सोई हुई थी. थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त टांगी को जब्त कर दोनों को जेल दाखिल कराया.बताया गया कि महिला का उसके पति गोरेलाल से वैवाहिक संबंध ठीक नहीं था.
पत्नी की शराब बेचने वाले अन्य हरकतों से गोरेलाल परेशान भी रहता था .उसने शिव सिंह के साथ पत्नी को आपत्तिजनक हालत में पकड़ भी लिया था तब दोनों घर से भाग गए थे. इस मामले में गोरेलाल ने पंचायत भी बुलाई पर पत्नी ने पंचायत की बात नहीं मानी और अपने पति को ही घर से मारपीट कर निकाल दिया. अपने घर में रह रहे गोरेलाल ने सबक सिखाने की ठान रखी थी और 16 सितंबर को शिव सिंह के संबंध में पता चला कि वह उसके घर जाने वाला है तब उसे खत्म करने के लिए गोरेलाल ने अपने भाई मूरित राम से मदद मांगी और सनसनीखेज वारदात कर डाली. पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के अनुसार उनके 20 वर्ष के कार्यकाल में अनेक घटनाओं को उन्होंने निकट से देखा है जिसमें अवैध संबंधों के कारण हत्याएं हुई जिसके मूल में शराब भी एक कारक रहा. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बीके शुक्ला बताते हैं कि आदिवासी बाहुल्य होने के कारण छत्तीसगढ़ में शराब एक बहुत बड़ा कारण हत्या का मैं मानता हूं अच्छा हो सरकार इस पर अंकुश लगाने का निर्णय ले.
कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.
पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.
लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’
यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.
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प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.
हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.
घर का मुख्य दरवाजा बंद था. कुछ देर दरवाजा पीटने पर प्रतीक्षा ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल चुगली कर रहे थे कि वह किसी के साथ हमबिस्तर थी.
प्रतीक्षा को धकेल कर यशवंत घर के अंदर पहुंचा तो वहां संग्राम सिंह मौजूद था. वह जल्दीजल्दी कपडे़ पहन रहा था. चारपाई पर तुड़ामुड़ा बिस्तर कुछ देर पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. यह सब देख कर यशवंत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह संग्राम सिंह को पकड़ने दौड़ा तो वह भाग गया.
संग्राम सिंह तो भाग गया, पर प्रतीक्षा कहां जाती. यशवंत सिंह बीवी की बेवफाई से इतना आहत हुआ कि उस ने उसे मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो वह बड़े भाई रवींद्र के घर चला गया.
वहां उस का सामना मां से हुआ तो वह समझ गई कि जरूर कोई बात है. कमला ने उसे कुरेदा तो यशवंत पहले तो टाल गया लेकिन ज्यादा कुरेदने पर उस ने मां को सब कुछ बता दिया. कमला को बहू के चरित्र पर शक तो था, लेकिन बात यहां तक पहुंच गई होगी, उसे उम्मीद नहीं थी.
यशवंत सिंह के बड़े भाई रवींद्र सिंह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. इज्जत पर आंच आते देख कर वह संग्राम सिंह के मामा फूल सिंह से मिले और उन्हें संग्राम की हरकतों की जानकारी दी. फूल सिंह ने संग्राम की तरफ से माफी मांगते हुए उसे समझाने का भरोसा दिया. इस के बाद फूल सिंह ने संग्राम सिंह को फटकारा और समझाया. संग्राम सिंह ने मामा से वादा किया कि आइंदा वह प्रतीक्षा से नहीं मिलेगा.
लेकिन मामा से किया वादा संग्राम सिंह ज्यादा दिन निभा नहीं पाया. एक शाम जब वह प्रतीक्षा के घर के सामने से गुजर रहा था तो प्रतीक्षा दरवाजे पर दिख गई.
उस ने जब मुसकरा कर इशारे से उसे बुलाया तो संग्राम अपने कदमों को रोक नहीं पाया.
उस समय प्रतीक्षा घर में अकेली थी. पति खेत पर था और बच्चे ननिहाल में. प्रतीक्षा ने यार को उलाहना दिया, ‘‘तुम तो मुझे बिलकुल ही भुला बैठे. अपना सिम भी बदल दिया. मैं ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नंबर नहीं लगा. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’
‘‘ऐसा न कहो भाभी, भला मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. अगर निष्ठुर जमाना बीच में न आया होता तो मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लेता. रही बात सिम बदलने की तो मैं खुद परेशान हूं. मामा ने मेरा फोन तोड़ दिया था. अब मैं ने दूसरा फोन खरीद लिया है.’’
बातोंबातों में संग्राम और प्रतीक्षा मानव तन की कंदराओं तक पहुंच गए. बदकिस्मती से तभी यशवंत सिंह घर आ गया. उसे घर के अंदर किसी पुरुष के हंसने की आवाज सुनाई दी. गुस्से में दरवाजा धकेल कर वह अंदर घुस गया.
कमरे में संग्राम सिंह को देख कर वह उस पर टूट पड़ा. प्रतीक्षा ने रोकने की कोशिश की तो उस ने संग्राम को छोड़ कर प्रतीक्षा को पीटना शुरू कर दिया. मौका पाते ही संग्राम भाग निकला. उस रोज यशवंत सिंह ने प्रतीक्षा की इतनी पिटाई की कि उस के बदन पर स्याह निशान उभर आए. उस का चलनाफिरना भी दूभर हो गया.
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रोजरोज की टोकाटाकी और पति की बेरहम पिटाई से प्रतीक्षा यशवंत सिंह से नफरत करने लगी. उस ने घर का कामकाज भी छोड़ दिया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए कमला ने बहूबेटे को समझाया, लेकिन वह दोनों के बीच का तनाव कम करने में नाकाम रही.
जब कई दिनों तक प्रतीक्षा घर से बाहर नहीं निकली तो एक रोज दोपहर के वक्त संग्राम सिंह प्रतीक्षा से मिलने उस के घर पहुंच गया.
उसे देखते ही प्रतीक्षा उस पर बरस पड़ी, ‘‘अब क्यों आए हो यहां? उस दिन मुझे पिटता देख नामर्दों की तरह भाग गए. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’
‘‘भाभी, मैं क्या करता, तुम्हीं बताओ?’’
‘‘जो तुम्हारी चाहत को पीट रहा था, उस का टेंटुआ दबा देते.’’ प्रतीक्षा सिसक पड़ी, ‘‘जानते हो उस कमीने ने मेरे जिस्म पर कितने निशान बना दिए हैं. ये देखो.’’ कहते हुए प्रतीक्षा ने अपनी पीठ और जांघ उघाड़ दी. शरीर पर पिटाई के लाललाल निशान साफ दिख रहे थे.
प्रतीक्षा संग्राम से लिपट गई, ‘‘संग्राम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम्हारी खातिर मुझे बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है और पिटना भी पड़ता है. वह तुम्हें ठिकाने लगाने की सोच रहा है. इस से पहले कि दुश्मन वार करे, तुम उस पर वार कर दो. दिखा दो कि तुम असली मर्द हो.’’
प्रतीक्षा के आंसुओं ने संग्राम सिंह का दिल दहला दिया. उस ने आव देखा न ताव, प्रतीक्षा से वादा कर दिया कि वह उस की मांग से सिंदूर मिटा कर रहेगा. संग्राम के इस वादे से प्रतीक्षा उस के सीने से लग गई.
इस के बाद उसी रोज दोनों ने एक खतरनाक योजना बना ली. योजना के तहत संग्राम सिंह हुसैनगंज गया और बाजार से कीटनाशक पाउडर (जहरीला पदार्थ) खरीद लाया और प्रतीक्षा को थमा दिया.
21 मार्च, 2020 की रात 8 बजे प्रतीक्षा ने खाना बनाया. यशवंत सिंह खाना खाने बैठा तो प्रतीक्षा ने उस की दाल में जहरीला पाउडर मिला दिया. खाना खाने के कुछ देर बाद यशवंत सिंह मूर्छित हो कर चारपाई पर पसर गया. उस के बाद प्रतीक्षा ने फोन कर संग्राम सिंह को घर बुला लिया. योजना के तहत वह अपने साथ तेज धार वाली कुल्हाड़ी लाया था.
प्रतीक्षा और संग्राम सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां यशवंत सिंह बेसुध पड़ा था. संग्राम सिंह ने एक नजर यशवंत पर डाली और फिर उस की गरदन पर कुल्हाड़ी का भरपूर प्रहार कर दिया. पहले ही वार से उस की आधी गरदन कट गई. खून की धार बह निकली और वह छटपटाने लगा.
उसी समय प्रतीक्षा ने उस के पैर दबोच लिए और संग्राम ने उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद वह मय कुल्हाड़ी वहां से फरार हो गया. अपना सुहाग मिटाने के बाद प्रतीक्षा ने रात 10 बजे शोर मचाया तो उस के जेठजेठानी, सास और पड़ोसी आ गए.
प्रतीक्षा ने सब को बताया कि बदमाश घर में घुस आए और उन्होंने उस के पति यशवंत सिंह की हत्या कर दी. उस के बाद प्रतीक्षा ने अपने मोबाइल से डायल 112 को सूचना दी.
सूचना पाते ही पुलिस आ गई. चूंकि मामला हत्या का था तो डायल 112 पुलिस ने सूचना थाना हुसैनगंज पुलिस को दे दी.
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थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू की तो अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.
23 मार्च, 2020 को थाना हुसैनगंज पुलिस ने अभियुक्ता प्रतीक्षा सिंह और अभियुक्त संग्राम सिंह को फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
शादी के बाद प्रतीक्षा यशवंत सिंह की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया. यशवंत सिंह जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं उस के मांबाप इस बात से खुश थे कि बेटे का घर बस गया. प्रतीक्षा और यशवंत सिंह का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीतने लगा. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा 2 बेटों अजस और तेजस की मां बन गई.
प्रतीक्षा बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. विवाह के बाद उस के स्वभाव में कामुकता भी शामिल हो गई थी. जब तक यशवंत सिंह में जोश रहा, वह प्रतीक्षा की कामनाओं को दुलारता रहा. लेकिन जब बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं तो उस के जोश में भी कमी आ गई. जबकि प्रतीक्षा की कामुकता बेलगाम होने लगी थी.
अब यशवंत सिंह की भोगविलास में कोई खास रुचि नहीं रह गई थी. लिहाजा प्रतीक्षा ने भी हालात से समझौता कर लिया. बच्चों को संभालना, उन की देखभाल करना और घरगृहस्थी के कामों में जुटे रहना उस की दिनचर्या में शामिल हो गए.
पिछले कुछ समय से प्रतीक्षा महसूस कर रही थी कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस का जीवन भी ठीक से बीत रहा है. लेकिन अंदर से वह उत्साहहीन हो गई है. मन में न कोई उमंग है न कोई तरंग. मस्ती नाम की चीज तो उस के जीवन में मानो बची ही नहीं थी.
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दूसरी ओर प्रतीक्षा जब मायके जाती और अपनी सहेली माया को देखती तो सोचती कि माया भी 2 बच्चों की मां है. घर के सारे काम भी उसे ही करने पड़ते हैं. फिर भी हर वक्त उस के होंठों पर मुसकान सजी रहती है. बढ़ती उम्र के साथ माया की खूबसूरती घटने के बजाए बढ़ती जा रही थी.
प्रतीक्षा ने एकाध बार माया से दिनोंदिन निखरती उस की खूबसूरती, सेहत और जवानी के बारे में पूछा भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती. लेकिन अगली बार जब वह मायके गई और माया से मिली तो उस ने अपनी चुस्तीफुरती का राज बता दिया.
बातचीत के दौरान माया ने बताया कि जिस औरत की जिस्म की भूख शांत नहीं होती, वह कांतिहीन हो जाती है. शायद तुम्हारी भी यही समस्या है. तुम्हारा पति तुम्हारा साथ नहीं देता क्या? मेरा पति भी तुम्हारे जैसा था, पर मैं उस के सहारे नहीं रही. मैं ने खुद ही अपना इंतजाम कर लिया, जिस से आज मैं बेहद खुश हूं.
माया प्रतीक्षा के गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली, ‘‘प्रतीक्षा, मेरी सलाह है कि जिंदगी को अगर मस्ती से भरना है तो खुद ही कुछ करना होगा.
तुम्हारी ससुराल में मोहल्ले पड़ोस में कोई न कोई तो ऐसा होगा, जिस की नजर तुम पर, मेरा मतलब तुम्हारी कोमल काया पर हो. उसे देखो, परखो और उसी से दिल के तार जोड़ लो. तुम भी मस्त हो जाओगी.’’
माया की सलाह प्रतीक्षा को मन भाई. मायके से ससुराल लौट कर माया की बातें उस के दिलोदिमाग को मथती रहीं. रात को सोने के लिए प्रतीक्षा बिस्तर पर लेटती उस की आंखों में नींद उतरती थी. वह सोचने लगी, माया ठीक कहती है सेहत, जवानी और खूबसूरती का फार्मूला उसे भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए, अन्यथा समय से पहले ही बूढ़ी हो जाएगी.
जीवन में उमंग भरने के लिए प्रतीक्षा का मन पतन की ओर अग्रसर हुआ तो उसे माया की यह बात भी याद आई कि मोहल्ले पड़ोस में कोई तो होगा, जो तुम पर दिल रखता होगा. प्रतीक्षा का मन इसी दिशा में सोचने लगा. इस के बाद उसे पहला व आखिरी नाम याद आया, वह संग्राम सिंह का था.
संग्राम सिंह मूलरूप से फतेहपुर जिले के थाना मलवां में आने वाले गांव नसीरपुर बेलवारा का रहने वाला था. बचपन से ही वह चांदपुर में अपने मामा के घर रहता था. मामा की कोई संतान नहीं थी.
संग्राम सिंह 25-26 साल का गबरू जवान था, उस की शादी नहीं हुई थी. उस का घर प्रतीक्षा के घर से कुछ ही दूरी पर था. संग्राम सिंह किसान तो था ही, ट्यूबवेल का मैकेनिक भी था.
जब कभी यशवंत सिंह का ट्यूबवेल खराब हो जाता था तब ठीक करने के लिए उसे ही बुलाया जाता था. मोहल्ले के नाते संग्राम सिंह यशवंत सिंह को भैया और प्रतीक्षा को भाभी कहता था.
संग्राम सिंह का प्रतीक्षा के घर आनाजाना था. वह आता तो था यशवंत सिंह से मिलने, लेकिन उस की नजरें प्रतीक्षा के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थीं. चायपानी देने के दौरान प्रतीक्षा की नजर संग्राम सिंह से टकराती तो वह मुसकरा देता था.
इस के अलावा वह प्रतीक्षा के घर के आसपास चक्कर भी लगाया करता था. प्रतीक्षा से आमनासामना होता तो वह कहता, ‘‘भाभी, कोई काम हो तो मुझे बताना.’’ पुरुष की नीयत को औरत बहुत जल्दी पढ़ लेती है. प्रतीक्षा ने भी संग्राम सिंह की आंखों में अजीब सी प्यास देखी थी. उस ने उस की हरकतों पर गौर किया तो उसे लगा कि संग्राम मन ही मन उसे चाहता है. संग्राम सिंह की अनकही चाहत से प्रतीक्षा को अजीब से सुख की अनुभूति हुई.
उसे लगा कि संग्राम कुंवारा है, मिल जाए तो उस के जीवन में बहार ला सकता है. अपने जीवन में बहार लाने के लिए प्रतीक्षा ने संग्राम को अपने प्रेम जाल में फंसाने का फैसला कर लिया.
संग्राम सिंह अकसर दोपहर के समय प्रतीक्षा के घर वाली गली का चक्कर लगाता था. दूसरे दिन प्रतीक्षा घर का कामकाज निपटा कर दरवाजे पर जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर में संग्राम आता दिखाई दिया.
प्रतीक्षा को देख कर संग्राम के होंठ हिले तो प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. संग्राम पास आया तो उस ने रोज की तरह पूछा, ‘‘भाभी, कोई काम तो नहीं है?’’
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‘‘है न,’’ प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘भीतर आओ तो बताऊं.’’
संग्राम प्रतीक्षा के पीछेपीछे भीतर आ कर चारपाई पर बैठ गया. प्रतीक्षा ने उस की आंखों में देखते हुए सवाल किया, ‘‘संग्राम, तुम मुझे देख कर मुसकराते रहते हो, क्यों?’’
संग्राम सिंह सकपका गया, मानो चोरी पकड़ी गई हो. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है. आप को भ्रम हुआ होगा.’’
प्रतीक्षा चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए बोली, ‘‘प्यार करते हो और झूठ भी बोलते हो. अगर तुम यों ही झूठ बोलते रहे तो प्यार का सफर कैसे पूरा करोगे?’’
संग्राम की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘भाभी, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’
प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘करती तो नहीं थी, पर अचानक ही प्यार हो गया.’’
‘‘ओह भाभी, आप कितनी अच्छी हो.’’ संग्राम ने चारपाई से उठ कर प्रतीक्षा को गले से लगा लिया.
संग्राम सिंह इतनी जल्दी मुट्ठी में आ जाएगा, प्रतीक्षा ने कल्पना तक नहीं की थी. वह जान गई कि संग्राम के मन में नारी तन की चाह है. प्रतीक्षा संग्राम से जिस्म की भूख मिटाना चाहती थी. उस से जिंदगी भर नाता जोड़े रखने का उस का कोई इरादा नहीं था.
मन की मुराद पूरी होते देख प्रतीक्षा मन ही मन खुश हुई. लेकिन उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘संग्राम, यह क्या गजब कर रहे हो, दरवाजा खुला है. कोई आ गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. छोड़ो मुझे.’’
‘‘छोड़ दूंगा भाभी, लेकिन पहले वादा करो कि मेरी मुराद पूरी करोगी.’’
‘‘रात को आ जाना, खेतों पर सिंचाई का काम चल रहा है. तुम्हारे भैया रात को ट्यूबवेल पर होंगे. अभी छोड़ो.’’
खुले दरवाजे से सचमुच कोई कभी भी आ सकता था. फिर प्रतीक्षा उसे रात को आने का निमंत्रण दे ही रही थी, इसलिए संग्राम ने उसे छोड़ दिया और मुसकराते हुए चला गया.
रात 10 बजे यशवंत सिंह सिंचाई के लिए खेतों पर चला गया. उस के जाने के बाद संग्राम सिंह आ गया. प्रतीक्षा उस का ही इंतजार कर रही थी. यशवंत सिंह था नहीं और बच्चे सो चुके थे. इसलिए प्रतीक्षा निश्चिंत थी. दरवाजे पर दस्तक सुनते ही उस ने दबे पांव उठ कर दरवाजा खोल दिया. संग्राम अंदर आ गया तो वह उसे दूसरे कमरे में ले गई.
देह मिलन के लिए दोनों ही बेताब थे. कमरे में पहुंचते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए. संग्राम सिंह ने प्रतीक्षा के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ शुरू की तो प्रतीक्षा की प्यासी देह कामनाओं की आंच से तप कर पिघलने लगी. उस के उत्साहवर्धन ने खेल को और भी रोमांचक बना दिया. बरसों बाद प्रतीक्षा का तनमन जम कर भीगा था. उस ने तय कर लिया कि अब संग्राम का दामन कभी नहीं छोड़ेगी.
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उस रात के बाद संग्राम और प्रतीक्षा एकदूसरे के पूरक बन गए. पहले तो प्रतीक्षा संग्राम को रात में ही बुलाती थी, लेकिन फिर वह दिन में भी आने लगा. जिस दिन यशवंत सिंह को बाजार से सामान लेने जाना होता, उस दिन प्रतीक्षा फोन कर संग्राम को घर बुला लेती. मिलन कर संग्राम चला जाता. बाजार से वह प्रतीक्षा का सामान भी ले आता था.
21 मार्च, 2020 की रात. 11 बजे उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना हुसैनगंज को सूचना मिली कि चांदपुर गांव में एक युवक की हत्या कर दी गई है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने वारदात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और पुलिस टीम के साथ चांदपुर पहुंच गए.
पता चला किसानी करने वाले बाबू सिंह के बेटे यशवंत सिंह की हत्या हुई है. जब पुलिस पहुंची तब बाबू सिंह के घर के बाहर भीड़ जमा थी.
राकेश कुमार भीड़ को हटा कर उस जगह पहुंचे, जहां यशवंत सिंह की लाश पड़ी थी. घर के अंदर मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह मौजूद थी और किचन में बरतन साफ कर रही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेपीटने लगी.
थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो दहल उठे. यशवंत सिंह की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के गले को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी घाव थे. मृतक के मुंह से झाग भी निकला था, जिस से लग रहा था कि हत्या से पहले उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया गया होगा. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.
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राकेश कुमार सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा भी आ गए.
पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को बुलवा लिया और खुद घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम भी साक्ष्य जुटाने में लग गई.
घटना के समय मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह घर में मौजूद थी. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस से पूछताछ की. प्रतीक्षा ने बताया कि रात 9 बजे के आसपास 2 बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में दाखिल हुए. एक बदमाश के हाथ में कुल्हाड़ी थी, दोनों मुंह ढके थे. पति ने लूटपाट का विरोध किया तो बदमाशों ने कुल्हाड़ी से वार कर पति को मौत के घाट उतार दिया.
हत्या करने के बाद दोनों भाग गए. उन के भाग जाने के बाद उस ने शोर मचाया तो घर के बाहर भीड़ जुट गई. इस के बाद उस ने मोबाइल से 112 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी थी.
घटनास्थल पर मृतक यशवंत सिंह का बड़ा भाई रवींद्र सिंह मौजूद था. पुलिस अधिकारियों ने उस से घटना के संबंध में जानकारी चाही तो वह फूटफूट कर रोते हुए बोला, ‘‘सर, मेरा छोटा भाई यशवंत सीधासादा किसान था. करीब 5 साल पहले उस ने प्रतीक्षा से शादी की थी.
‘‘प्रतीक्षा चरित्रहीन औरत है. उस के नाजायज संबंध संग्राम सिंह से हैं. संग्राम सिंह नसीरपुर बेलवारा गांव का रहने वाला है, लेकिन यहां चांदपुर में उस का ननिहाल है, इसलिए वह इसी गांव में रहता है और खेती करता है. यशवंत सिंह प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के नाजायज रिश्तों का विरोध करता था. शक है, प्रतीक्षा सिंह ने अपने प्रेमी संग्राम के साथ मिल कर यशवंत की हत्या कराई है.’’
बेटे के शव के पास मां कमला गुमसुम बैठी थीं. पुलिस अधिकारियों ने जब उसे कुरेदा तो दर्द आंसुओं के रूप में बह निकला, ‘‘साहब, बहू बदचलन है. मेरे बेटे को खा गई. यशवंत ने कई बार प्रतीक्षा की बदचलनी की शिकायत की थी, तब मैं ने उसे समझाया भी था. लेकिन वह नहीं मानी.’’
इन जानकारियों के बाद प्रतीक्षा सिंह संदेह के दायरे में आ गई. यशवंत सिंह की हत्या लूट के लिए नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान व्यवस्थित था. बक्सों के ताले भी नहीं टूटे थे. अगर हत्या लूट के इरादे से होती तो घर का सारा सामान बिखरा मिला होता, बक्सों के ताले टूटे पड़े होते, नकदी जेवर गायब होते.
पुलिस अधिकारी समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है. अत: उन्होंने संग्राम सिंह को पकड़ने के लिए उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.
उस की सुरागसी के लिए पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिर लगा दिए. आला कत्ल (कुल्हाड़ी) बरामद करने के लिए सीओ कपिलदेव मिश्रा ने प्रतीक्षा सिंह के घर की तलाशी कराई.
तलाशी के दौरान पुलिस को रबड़ के दस्ताने मिले, जिन पर खून लगा था. ये दस्ताने वैसे ही थे, जिन्हें पहन कर डाक्टर औपरेशन करते हैं. उन्हें पुलिस ने सबूत के तौर पर सुरक्षित रख लिया.
सबूत हाथ लगते ही पुलिस अधिकारियों ने प्रतीक्षा सिंह को हिरासत में ले लिया. उस का मोबाइल फोन भी पुलिस ने ले लिया. इस के बाद यशवंत की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दी गई.
प्रतीक्षा सिंह को पुलिस कस्टडी में थाना हुसैनगंज लाया गया. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के कई अश्लील फोटो मिले. फोन में संग्राम सिंह का मोबाइल नंबर भी सेव था. उस ने घटना के पहले संग्राम सिंह से बात भी की थी. इन सबूतों से स्पष्ट हो गया कि संग्राम सिंह से प्रतीक्षा सिंह के नाजायज संबंध थे. दोनों ने मिल कर यशवंत की हत्या की थी.
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एसपी ने प्रतीक्षा सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गई और पति की हत्या कर जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने प्रतीक्षा के माध्यम से संग्राम सिंह को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया.
प्रतीक्षा सिंह के मोबाइल में संग्राम सिंह का नंबर सेव था. प्रशांत वर्मा ने प्रतीक्षा की बात संग्राम सिंह से कराई, जिस से पता चला कि वह चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी के ट्यूबवेल की कोठरी में छिपा है और सवेरा होते ही कहीं सुरक्षित जगह पर चला जाएगा.
यह पता चलते ही एसपी प्रशांत वर्मा के आदेश पर थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने सुबह 4 बजे छापा मारा और संग्राम सिंह को चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी की ट्यूबवेल की कोठरी से मय आलाकत्ल गिरफ्तार कर लिया और उसे ले कर थाने लौट आए.
थाने पर एसपी प्रशांत वर्मा ने संग्राम सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.
संग्राम सिंह ने बताया कि यशवंत सिंह की पत्नी प्रतीक्षा के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस का पति इस रिश्ते का विरोध करता था. प्रतीक्षा के उकसाने पर उस ने यशवंत सिंह की हत्या की थी.
चूंकि प्रतीक्षा सिंह और उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई थी. अत: थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने मृतक के भाई रवींद्र सिंह को वादी बना कर भादंसं की धारा 302, 120बी के तहत प्रतीक्षा सिंह और संग्राम सिंह के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वासना में अंधी एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने खुद अपने हाथों से अपना सुहाग मिटा दिया.
फतेहपुर शहर के थाना सदर कोतवाली के क्षेत्र में एक मोहल्ला है हरिहरगंज. चंद्रभान सिंह इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं प्रतीक्षा, अंजू और एक बेटा रूपेश. चंद्रभान सिंह बिजली विभाग में काम करता था. उस के मासिक वेतन से परिवार का भरणपोषण होता था. वह सीधासादा मेहनतकश इंसान था. चंद्रभान की बड़ी बेटी प्रतीक्षा 20 साल की हो चुकी थी. वैसे तो प्रतीक्षा के चाहने वाले कई थे, पर जिस पर उस की नजर थी वह पड़ोस में रहने वाला युवक था.
एक रोज जब पड़ोसी युवक ने प्रतीक्षा से प्यार का इजहार किया तो प्रतीक्षा ने उस की चाहत स्वीकार कर ली. फलस्वरूप प्रतीक्षा और वह युवक प्यार की कश्ती में सवार हो गए. चंद्रभान को जब बेटी की करतूत पता चली तो उस ने उस के बहकते कदमों को रोकने के लिए उस की शादी कर देने का फैसला कर लिया.
चंद्रभान सिंह ने प्रतीक्षा के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. उस की तलाश यशवंत सिंह पर जा कर खत्म हुई. यशवंत सिंह के पिता बाबू सिंह फतेहपुर जिले के हुसैनगंज थानाक्षेत्र के गांव चांदपुर के रहने वाले थे.
बाबू सिंह के परिवार में पत्नी कमला के अलावा 2 बेटे रवींद्र सिंह और यशवंत सिंह थे. उन के दोनों बेटों की शादियां हो चुकी थीं और दोनों भाई अलगअलग मकान में रहते थे.
दोनों के बीच जमीनजायदाद का बंटवारा भी हो चुका था. लेकिन शादी के 3 साल बाद यशवंत सिंह की पत्नी का निधन हो गया था. बाबू सिंह किसी तरह बेटे का घर बसाना चाहते थे. चंद्रभान जब अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आए तो उन्होंने खुशीखुशी रिश्ता स्वीकार कर लिया.
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एक तो यशवंत सिंह दुहेजवा था, दूसरे वह प्रतीक्षा से 8 साल बड़ा भी था, लेकिन शरीर से गठीला और दिखने में स्मार्ट था. चंद्रभान ने यशवंत सिंह को अपनी बेटी प्रतीक्षा के लिए पसंद कर लिया. रिश्ता तय होने के बाद सन 2015 के जनवरी माह की 5 तारीख को प्रतीक्षा का विवाह यशवंत सिंह के साथ हो गया.