चाहत का संग्राम

चाहत का संग्राम : भाग 3

कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.

पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.

लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’

यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.

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प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.

हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.

घर का मुख्य दरवाजा बंद था. कुछ देर दरवाजा पीटने पर प्रतीक्षा ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल चुगली कर रहे थे कि वह किसी के साथ हमबिस्तर थी.

प्रतीक्षा को धकेल कर यशवंत घर के अंदर पहुंचा तो वहां संग्राम सिंह मौजूद था. वह जल्दीजल्दी कपडे़ पहन रहा था. चारपाई पर तुड़ामुड़ा बिस्तर कुछ देर पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. यह सब देख कर यशवंत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह संग्राम सिंह को पकड़ने दौड़ा तो वह भाग गया.

संग्राम सिंह तो भाग गया, पर प्रतीक्षा कहां जाती. यशवंत सिंह बीवी की बेवफाई से इतना आहत हुआ कि उस ने उसे मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो वह बड़े भाई रवींद्र के घर चला गया.

वहां उस का सामना मां से हुआ तो वह समझ गई कि जरूर कोई बात है. कमला ने उसे कुरेदा तो यशवंत पहले तो टाल गया लेकिन ज्यादा कुरेदने पर उस ने मां को सब कुछ बता दिया. कमला को बहू के चरित्र पर शक तो था, लेकिन बात यहां तक पहुंच गई होगी, उसे उम्मीद नहीं थी.

यशवंत सिंह के बड़े भाई रवींद्र सिंह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. इज्जत पर आंच आते देख कर वह संग्राम सिंह के मामा फूल सिंह से मिले और उन्हें संग्राम की हरकतों की जानकारी दी. फूल सिंह ने संग्राम की तरफ से माफी मांगते हुए उसे समझाने का भरोसा दिया. इस के बाद फूल सिंह ने संग्राम सिंह को फटकारा और समझाया. संग्राम सिंह ने मामा से वादा किया कि आइंदा वह प्रतीक्षा से नहीं मिलेगा.

लेकिन मामा से किया वादा संग्राम सिंह ज्यादा दिन निभा नहीं पाया. एक शाम जब वह प्रतीक्षा के घर के सामने से गुजर रहा था तो प्रतीक्षा दरवाजे पर दिख गई.

उस ने जब मुसकरा कर इशारे से उसे बुलाया तो संग्राम अपने कदमों को रोक नहीं पाया.

उस समय प्रतीक्षा घर में अकेली थी. पति खेत पर था और बच्चे ननिहाल में. प्रतीक्षा ने यार को उलाहना दिया, ‘‘तुम तो मुझे बिलकुल ही भुला बैठे. अपना सिम भी बदल दिया. मैं ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नंबर नहीं लगा. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘ऐसा न कहो भाभी, भला मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. अगर निष्ठुर जमाना बीच में न आया होता तो मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लेता. रही बात सिम बदलने की तो मैं खुद परेशान हूं. मामा ने मेरा फोन तोड़ दिया था. अब मैं ने दूसरा फोन खरीद लिया है.’’

बातोंबातों में संग्राम और प्रतीक्षा मानव तन की कंदराओं तक पहुंच गए. बदकिस्मती से तभी यशवंत सिंह घर आ गया. उसे घर के अंदर किसी पुरुष के हंसने की आवाज सुनाई दी. गुस्से में दरवाजा धकेल कर वह अंदर घुस गया.

कमरे में संग्राम सिंह को देख कर वह उस पर टूट पड़ा. प्रतीक्षा ने रोकने की कोशिश की तो उस ने संग्राम को छोड़ कर प्रतीक्षा को पीटना शुरू कर दिया. मौका पाते ही संग्राम भाग निकला. उस रोज यशवंत सिंह ने प्रतीक्षा की इतनी पिटाई की कि उस के बदन पर स्याह निशान उभर आए. उस का चलनाफिरना भी दूभर हो गया.

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रोजरोज की टोकाटाकी और पति की बेरहम पिटाई से प्रतीक्षा यशवंत सिंह से नफरत करने लगी. उस ने घर का कामकाज भी छोड़ दिया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए कमला ने बहूबेटे को समझाया, लेकिन वह दोनों के बीच का तनाव कम करने में नाकाम रही.

जब कई दिनों तक प्रतीक्षा घर से बाहर नहीं निकली तो एक रोज दोपहर के वक्त संग्राम सिंह प्रतीक्षा से मिलने उस के घर पहुंच गया.

उसे देखते ही प्रतीक्षा उस पर बरस पड़ी, ‘‘अब क्यों आए हो यहां? उस दिन मुझे पिटता देख नामर्दों की तरह भाग गए. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘भाभी, मैं क्या करता, तुम्हीं बताओ?’’

‘‘जो तुम्हारी चाहत को पीट रहा था, उस का टेंटुआ दबा देते.’’ प्रतीक्षा सिसक पड़ी, ‘‘जानते हो उस कमीने ने मेरे जिस्म पर कितने निशान बना दिए हैं. ये देखो.’’ कहते हुए प्रतीक्षा ने अपनी पीठ और जांघ उघाड़ दी. शरीर पर पिटाई के लाललाल निशान साफ दिख रहे थे.

प्रतीक्षा संग्राम से लिपट गई, ‘‘संग्राम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम्हारी खातिर मुझे बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है और पिटना भी पड़ता है. वह तुम्हें ठिकाने लगाने की सोच रहा है. इस से पहले कि दुश्मन वार करे, तुम उस पर वार कर दो. दिखा दो कि तुम असली मर्द हो.’’

प्रतीक्षा के आंसुओं ने संग्राम सिंह का दिल दहला दिया. उस ने आव देखा न ताव, प्रतीक्षा से वादा कर दिया कि वह उस की मांग से सिंदूर मिटा कर रहेगा. संग्राम के इस वादे से प्रतीक्षा उस के सीने से लग गई.

इस के बाद उसी रोज दोनों ने एक खतरनाक योजना बना ली. योजना के तहत संग्राम सिंह हुसैनगंज गया और बाजार से कीटनाशक पाउडर (जहरीला पदार्थ) खरीद लाया और प्रतीक्षा को थमा दिया.

21 मार्च, 2020 की रात 8 बजे प्रतीक्षा ने खाना बनाया. यशवंत सिंह खाना खाने बैठा तो प्रतीक्षा ने उस की दाल में जहरीला पाउडर मिला दिया. खाना खाने के कुछ देर बाद यशवंत सिंह मूर्छित हो कर चारपाई पर पसर गया. उस के बाद प्रतीक्षा ने फोन कर संग्राम सिंह को घर बुला लिया. योजना के तहत वह अपने साथ तेज धार वाली कुल्हाड़ी लाया था.

प्रतीक्षा और संग्राम सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां यशवंत सिंह बेसुध पड़ा था. संग्राम सिंह ने एक नजर यशवंत पर डाली और फिर उस की गरदन पर कुल्हाड़ी का भरपूर प्रहार कर दिया. पहले ही वार से उस की आधी गरदन कट गई. खून की धार बह निकली और वह छटपटाने लगा.

उसी समय प्रतीक्षा ने उस के पैर दबोच लिए और संग्राम ने उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद वह मय कुल्हाड़ी वहां से फरार हो गया. अपना सुहाग मिटाने के बाद प्रतीक्षा ने रात 10 बजे शोर मचाया तो उस के जेठजेठानी, सास और पड़ोसी आ गए.

प्रतीक्षा ने सब को बताया कि बदमाश घर में घुस आए और उन्होंने उस के पति यशवंत सिंह की हत्या कर दी. उस के बाद प्रतीक्षा ने अपने मोबाइल से डायल 112 को सूचना दी.

सूचना पाते ही पुलिस आ गई. चूंकि मामला हत्या का था तो डायल 112 पुलिस ने सूचना थाना हुसैनगंज पुलिस को दे दी.

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थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू की तो अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

23 मार्च, 2020 को थाना हुसैनगंज पुलिस ने अभियुक्ता प्रतीक्षा सिंह और अभियुक्त संग्राम सिंह को फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत का संग्राम : भाग 2

शादी के बाद प्रतीक्षा यशवंत सिंह की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया. यशवंत सिंह जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं उस के मांबाप इस बात से खुश थे कि बेटे का घर बस गया. प्रतीक्षा और यशवंत सिंह का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीतने लगा. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा 2 बेटों अजस और तेजस की मां बन गई.

प्रतीक्षा बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. विवाह के बाद उस के स्वभाव में कामुकता भी शामिल हो गई थी. जब तक यशवंत सिंह में जोश रहा, वह प्रतीक्षा की कामनाओं को दुलारता रहा. लेकिन जब बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं तो उस के जोश में भी कमी आ गई. जबकि प्रतीक्षा की कामुकता बेलगाम होने लगी थी.

अब यशवंत सिंह की भोगविलास में कोई खास रुचि नहीं रह गई थी. लिहाजा प्रतीक्षा ने भी हालात से समझौता कर लिया. बच्चों को संभालना, उन की देखभाल करना और घरगृहस्थी के कामों में जुटे रहना उस की दिनचर्या में शामिल हो गए.

पिछले कुछ समय से प्रतीक्षा महसूस कर रही थी कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस का जीवन भी ठीक से बीत रहा है. लेकिन अंदर से वह उत्साहहीन हो गई है. मन में न कोई उमंग है न कोई तरंग. मस्ती नाम की चीज तो उस के जीवन में मानो बची ही नहीं थी.

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दूसरी ओर प्रतीक्षा जब मायके जाती और अपनी सहेली माया को देखती तो सोचती कि माया भी 2 बच्चों की मां है. घर के सारे काम भी उसे ही करने पड़ते हैं. फिर भी हर वक्त उस के होंठों पर मुसकान सजी रहती है. बढ़ती उम्र के साथ माया की खूबसूरती घटने के बजाए बढ़ती जा रही थी.

प्रतीक्षा ने एकाध बार माया से दिनोंदिन निखरती उस की खूबसूरती, सेहत और जवानी के बारे में पूछा भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती. लेकिन अगली बार जब वह मायके गई और माया से मिली तो उस ने अपनी चुस्तीफुरती का राज बता दिया.

बातचीत के दौरान माया ने बताया कि जिस औरत की जिस्म की भूख शांत नहीं होती, वह कांतिहीन हो जाती है. शायद तुम्हारी भी यही समस्या है. तुम्हारा पति तुम्हारा साथ नहीं देता क्या? मेरा पति भी तुम्हारे जैसा था, पर मैं उस के सहारे नहीं रही. मैं ने खुद ही अपना इंतजाम कर लिया, जिस से आज मैं बेहद खुश हूं.

माया प्रतीक्षा के गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली, ‘‘प्रतीक्षा, मेरी सलाह है कि जिंदगी को अगर मस्ती से भरना है तो खुद ही कुछ करना होगा.

तुम्हारी ससुराल में मोहल्ले पड़ोस में कोई न कोई तो ऐसा होगा, जिस की नजर तुम पर, मेरा मतलब तुम्हारी कोमल काया पर हो. उसे देखो, परखो और उसी से दिल के तार जोड़ लो. तुम भी मस्त हो जाओगी.’’

माया की सलाह प्रतीक्षा को मन भाई. मायके से ससुराल लौट कर माया की बातें उस के दिलोदिमाग को मथती रहीं. रात को सोने के लिए प्रतीक्षा बिस्तर पर लेटती उस की आंखों में नींद उतरती थी. वह सोचने लगी, माया ठीक कहती है सेहत, जवानी और खूबसूरती का फार्मूला उसे भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए, अन्यथा समय से पहले ही बूढ़ी हो जाएगी.

जीवन में उमंग भरने के लिए प्रतीक्षा का मन पतन की ओर अग्रसर हुआ तो उसे माया की यह बात भी याद आई कि मोहल्ले पड़ोस में कोई तो होगा, जो तुम पर दिल रखता होगा. प्रतीक्षा का मन इसी दिशा में सोचने लगा. इस के बाद उसे पहला व आखिरी नाम याद आया, वह संग्राम सिंह का था.

संग्राम सिंह मूलरूप से फतेहपुर जिले के थाना मलवां में आने वाले गांव नसीरपुर बेलवारा का रहने वाला था. बचपन से ही वह चांदपुर में अपने मामा के घर रहता था. मामा की कोई संतान नहीं थी.

संग्राम सिंह 25-26 साल का गबरू जवान था, उस की शादी नहीं हुई थी. उस का घर प्रतीक्षा के घर से कुछ ही दूरी पर था. संग्राम सिंह किसान तो था ही, ट्यूबवेल का मैकेनिक भी था.

जब कभी यशवंत सिंह का ट्यूबवेल खराब हो जाता था तब ठीक करने के लिए उसे ही बुलाया जाता था. मोहल्ले के नाते संग्राम सिंह यशवंत सिंह को भैया और प्रतीक्षा को भाभी कहता था.

संग्राम सिंह का प्रतीक्षा के घर आनाजाना था. वह आता तो था यशवंत सिंह से मिलने, लेकिन उस की नजरें प्रतीक्षा के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थीं. चायपानी देने के दौरान प्रतीक्षा की नजर संग्राम सिंह से टकराती तो वह मुसकरा देता था.

इस के अलावा वह प्रतीक्षा के घर के आसपास चक्कर भी लगाया करता था. प्रतीक्षा से आमनासामना होता तो वह कहता, ‘‘भाभी, कोई काम हो तो मुझे बताना.’’ पुरुष की नीयत को औरत बहुत जल्दी पढ़ लेती है. प्रतीक्षा ने भी संग्राम सिंह की आंखों में अजीब सी प्यास देखी थी. उस ने उस की हरकतों पर गौर किया तो उसे लगा कि संग्राम मन ही मन उसे चाहता है. संग्राम सिंह की अनकही चाहत से प्रतीक्षा को अजीब से सुख की अनुभूति हुई.

उसे लगा कि संग्राम कुंवारा है, मिल जाए तो उस के जीवन में बहार ला सकता है. अपने जीवन में बहार लाने के लिए प्रतीक्षा ने संग्राम को अपने प्रेम जाल में फंसाने का फैसला कर लिया.

संग्राम सिंह अकसर दोपहर के समय प्रतीक्षा के घर वाली गली का चक्कर लगाता था. दूसरे दिन प्रतीक्षा घर का कामकाज निपटा कर दरवाजे पर जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर में संग्राम आता दिखाई दिया.

प्रतीक्षा को देख कर संग्राम के होंठ हिले तो प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. संग्राम पास आया तो उस ने रोज की तरह पूछा, ‘‘भाभी, कोई काम तो नहीं है?’’

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‘‘है न,’’ प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘भीतर आओ तो बताऊं.’’

संग्राम प्रतीक्षा के पीछेपीछे भीतर आ कर चारपाई पर बैठ गया. प्रतीक्षा ने उस की आंखों में देखते हुए सवाल किया, ‘‘संग्राम, तुम मुझे देख कर मुसकराते रहते हो, क्यों?’’

संग्राम सिंह सकपका गया, मानो चोरी पकड़ी गई हो. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है. आप को भ्रम हुआ होगा.’’

प्रतीक्षा चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए बोली, ‘‘प्यार करते हो और झूठ भी बोलते हो. अगर तुम यों ही झूठ बोलते रहे तो प्यार का सफर कैसे पूरा करोगे?’’

संग्राम की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘भाभी, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘करती तो नहीं थी, पर अचानक ही प्यार हो गया.’’

‘‘ओह भाभी, आप कितनी अच्छी हो.’’ संग्राम ने चारपाई से उठ कर प्रतीक्षा को गले से लगा लिया.

संग्राम सिंह इतनी जल्दी मुट्ठी में आ जाएगा, प्रतीक्षा ने कल्पना तक नहीं की थी. वह जान गई कि संग्राम के मन में नारी तन की चाह है. प्रतीक्षा संग्राम से जिस्म की भूख मिटाना चाहती थी. उस से जिंदगी भर नाता जोड़े रखने का उस का कोई इरादा नहीं था.

मन की मुराद पूरी होते देख प्रतीक्षा मन ही मन खुश हुई. लेकिन उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘संग्राम, यह क्या गजब कर रहे हो, दरवाजा खुला है. कोई आ गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. छोड़ो मुझे.’’

‘‘छोड़ दूंगा भाभी, लेकिन पहले वादा करो कि मेरी मुराद पूरी करोगी.’’

‘‘रात को आ जाना, खेतों पर सिंचाई का काम चल रहा है. तुम्हारे भैया रात को ट्यूबवेल पर होंगे. अभी छोड़ो.’’

खुले दरवाजे से सचमुच कोई कभी भी आ सकता था. फिर प्रतीक्षा उसे रात को आने का निमंत्रण दे ही रही थी, इसलिए संग्राम ने उसे छोड़ दिया और मुसकराते हुए चला गया.

रात 10 बजे यशवंत सिंह सिंचाई के लिए खेतों पर चला गया. उस के जाने के बाद संग्राम सिंह आ गया. प्रतीक्षा उस का ही इंतजार कर रही थी. यशवंत सिंह था नहीं और बच्चे सो चुके थे. इसलिए प्रतीक्षा निश्चिंत थी. दरवाजे पर दस्तक सुनते ही उस ने दबे पांव उठ कर दरवाजा खोल दिया. संग्राम अंदर आ गया तो वह उसे दूसरे कमरे में ले गई.

देह मिलन के लिए दोनों ही बेताब थे. कमरे में पहुंचते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए. संग्राम सिंह ने प्रतीक्षा के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ शुरू की तो प्रतीक्षा की प्यासी देह कामनाओं की आंच से तप कर पिघलने लगी. उस के उत्साहवर्धन ने खेल को और भी रोमांचक बना दिया. बरसों बाद प्रतीक्षा का तनमन जम कर भीगा था. उस ने तय कर लिया कि अब संग्राम का दामन कभी नहीं छोड़ेगी.

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उस रात के बाद संग्राम और प्रतीक्षा एकदूसरे के पूरक बन गए. पहले तो प्रतीक्षा संग्राम को रात में ही बुलाती थी, लेकिन फिर वह दिन में भी आने लगा. जिस दिन यशवंत सिंह को बाजार से सामान लेने जाना होता, उस दिन प्रतीक्षा फोन कर संग्राम को घर बुला लेती. मिलन कर संग्राम चला जाता. बाजार से वह प्रतीक्षा का सामान भी ले आता था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

चाहत का संग्राम : भाग 1

21 मार्च, 2020 की रात. 11 बजे उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना हुसैनगंज को सूचना मिली कि चांदपुर गांव में एक युवक की हत्या कर दी गई है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने वारदात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और पुलिस टीम के साथ चांदपुर पहुंच गए.

पता चला किसानी करने वाले बाबू सिंह के बेटे यशवंत सिंह की हत्या हुई है. जब पुलिस पहुंची तब बाबू सिंह के घर के बाहर भीड़ जमा थी.

राकेश कुमार भीड़ को हटा कर उस जगह पहुंचे, जहां यशवंत सिंह की लाश पड़ी थी. घर के अंदर मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह मौजूद थी और किचन में बरतन साफ कर रही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेपीटने लगी.

थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो दहल उठे. यशवंत सिंह की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के गले को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी घाव थे. मृतक के मुंह से झाग भी निकला था, जिस से लग रहा था कि हत्या से पहले उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया गया होगा. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

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राकेश कुमार सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को बुलवा लिया और खुद घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम भी साक्ष्य जुटाने में लग गई.

घटना के समय मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह घर में मौजूद थी. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस से पूछताछ की. प्रतीक्षा ने बताया कि रात 9 बजे के आसपास 2 बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में दाखिल हुए. एक बदमाश के हाथ में कुल्हाड़ी थी, दोनों मुंह ढके थे. पति ने लूटपाट का विरोध किया तो बदमाशों ने कुल्हाड़ी से वार कर पति को मौत के घाट उतार दिया.

हत्या करने के बाद दोनों भाग गए. उन के भाग जाने के बाद उस ने शोर मचाया तो घर के बाहर भीड़ जुट गई. इस के बाद उस ने मोबाइल से 112 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर मृतक यशवंत सिंह का बड़ा भाई रवींद्र सिंह मौजूद था. पुलिस अधिकारियों ने उस से घटना के संबंध में जानकारी चाही तो वह फूटफूट कर रोते हुए बोला, ‘‘सर, मेरा छोटा भाई यशवंत सीधासादा किसान था. करीब 5 साल पहले उस ने प्रतीक्षा से शादी की थी.

‘‘प्रतीक्षा चरित्रहीन औरत है. उस के नाजायज संबंध संग्राम सिंह से हैं. संग्राम सिंह नसीरपुर बेलवारा गांव का रहने वाला है, लेकिन यहां चांदपुर में उस का ननिहाल है, इसलिए वह इसी गांव में रहता है और खेती करता है. यशवंत सिंह प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के नाजायज रिश्तों का विरोध करता था. शक है, प्रतीक्षा सिंह ने अपने प्रेमी संग्राम के साथ मिल कर यशवंत की हत्या कराई है.’’

बेटे के शव के पास मां कमला गुमसुम बैठी थीं. पुलिस अधिकारियों ने जब उसे कुरेदा तो दर्द आंसुओं के रूप में बह निकला, ‘‘साहब, बहू बदचलन है. मेरे बेटे को खा गई. यशवंत ने कई बार प्रतीक्षा की बदचलनी की शिकायत की थी, तब मैं ने उसे समझाया भी था. लेकिन वह नहीं मानी.’’

इन जानकारियों के बाद प्रतीक्षा सिंह संदेह के दायरे में आ गई. यशवंत सिंह की हत्या लूट के लिए नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान व्यवस्थित था. बक्सों के ताले भी नहीं टूटे थे. अगर हत्या लूट के इरादे से होती तो घर का सारा सामान बिखरा मिला होता, बक्सों के ताले टूटे पड़े होते, नकदी जेवर गायब होते.

पुलिस अधिकारी समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है. अत: उन्होंने संग्राम सिंह को पकड़ने के लिए उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.

उस की सुरागसी के लिए पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिर लगा दिए. आला कत्ल (कुल्हाड़ी) बरामद करने के लिए सीओ कपिलदेव मिश्रा ने प्रतीक्षा सिंह के घर की तलाशी कराई.

तलाशी के दौरान पुलिस को रबड़ के दस्ताने मिले, जिन पर खून लगा था. ये दस्ताने वैसे ही थे, जिन्हें पहन कर डाक्टर औपरेशन करते हैं. उन्हें पुलिस ने सबूत के तौर पर सुरक्षित रख लिया.

सबूत हाथ लगते ही पुलिस अधिकारियों ने प्रतीक्षा सिंह को हिरासत में ले लिया. उस का मोबाइल फोन भी पुलिस ने ले लिया. इस के बाद यशवंत की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दी गई.

प्रतीक्षा सिंह को पुलिस कस्टडी में थाना हुसैनगंज लाया गया. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के कई अश्लील फोटो मिले. फोन में संग्राम सिंह का मोबाइल नंबर भी सेव था. उस ने घटना के पहले संग्राम सिंह से बात भी की थी. इन सबूतों से स्पष्ट हो गया कि संग्राम सिंह से प्रतीक्षा सिंह के नाजायज संबंध थे. दोनों ने मिल कर यशवंत की हत्या की थी.

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एसपी ने प्रतीक्षा सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गई और पति की हत्या कर जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने प्रतीक्षा के माध्यम से संग्राम सिंह को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया.

प्रतीक्षा सिंह के मोबाइल में संग्राम सिंह का नंबर सेव था. प्रशांत वर्मा ने प्रतीक्षा की बात संग्राम सिंह से कराई, जिस से पता चला कि वह चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी के ट्यूबवेल की कोठरी में छिपा है और सवेरा होते ही कहीं सुरक्षित जगह पर चला जाएगा.

यह पता चलते ही एसपी प्रशांत वर्मा के आदेश पर थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने सुबह 4 बजे छापा मारा और संग्राम सिंह को चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी की ट्यूबवेल की कोठरी से मय आलाकत्ल गिरफ्तार कर लिया और उसे ले कर थाने लौट आए.

थाने पर एसपी प्रशांत वर्मा ने संग्राम सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

संग्राम सिंह ने बताया कि यशवंत सिंह की पत्नी प्रतीक्षा के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस का पति इस रिश्ते का विरोध करता था. प्रतीक्षा के उकसाने पर उस ने यशवंत सिंह की हत्या की थी.

चूंकि प्रतीक्षा सिंह और उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई थी. अत: थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने मृतक के भाई रवींद्र सिंह को वादी बना कर भादंसं की धारा 302, 120बी के तहत प्रतीक्षा सिंह और संग्राम सिंह के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वासना में अंधी एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने खुद अपने हाथों से अपना सुहाग मिटा दिया.

फतेहपुर शहर के थाना सदर कोतवाली के क्षेत्र में एक मोहल्ला है हरिहरगंज. चंद्रभान सिंह इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं प्रतीक्षा, अंजू और एक बेटा रूपेश. चंद्रभान सिंह बिजली विभाग में काम करता था. उस के मासिक वेतन से परिवार का भरणपोषण होता था. वह सीधासादा मेहनतकश इंसान था. चंद्रभान की बड़ी बेटी प्रतीक्षा 20 साल की हो चुकी थी. वैसे तो प्रतीक्षा के चाहने वाले कई थे, पर जिस पर उस की नजर थी वह पड़ोस में रहने वाला युवक था.

एक रोज जब पड़ोसी युवक ने प्रतीक्षा से प्यार का इजहार किया तो प्रतीक्षा ने उस की चाहत स्वीकार कर ली. फलस्वरूप प्रतीक्षा और वह युवक प्यार की कश्ती में सवार हो गए. चंद्रभान को जब बेटी की करतूत पता चली तो उस ने उस के बहकते कदमों को रोकने के लिए उस की शादी कर देने का फैसला कर लिया.

चंद्रभान सिंह ने प्रतीक्षा के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. उस की तलाश यशवंत सिंह पर जा कर खत्म हुई. यशवंत सिंह के पिता बाबू सिंह फतेहपुर जिले के हुसैनगंज थानाक्षेत्र के गांव चांदपुर के रहने वाले थे.

बाबू सिंह के परिवार में पत्नी कमला के अलावा 2 बेटे रवींद्र सिंह और यशवंत सिंह थे. उन के दोनों बेटों की शादियां हो चुकी थीं और दोनों भाई अलगअलग मकान में रहते थे.

दोनों के बीच जमीनजायदाद का बंटवारा भी हो चुका था. लेकिन शादी के 3 साल बाद यशवंत सिंह की पत्नी का निधन हो गया था. बाबू सिंह किसी तरह बेटे का घर बसाना चाहते थे. चंद्रभान जब अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आए तो उन्होंने खुशीखुशी रिश्ता स्वीकार कर लिया.

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एक तो यशवंत सिंह दुहेजवा था, दूसरे वह प्रतीक्षा से 8 साल बड़ा भी था, लेकिन शरीर से गठीला और दिखने में स्मार्ट था. चंद्रभान ने यशवंत सिंह को अपनी बेटी प्रतीक्षा के लिए पसंद कर लिया. रिश्ता तय होने के बाद सन 2015 के जनवरी माह की 5 तारीख को प्रतीक्षा का विवाह यशवंत सिंह के साथ हो गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

फेसबुक से निकली मौत

जमीन जायदाद के लालची हत्यारे रिश्तेदार !

कहते हैं, जर जोरू और जमीन खून खराबे हत्या के सबसे बड़े कारण होते हैं और यह कहावत गलत भी नहीं है. अक्सर धन दौलत की लालच में लोग अपने ही “रिश्तेदारों” का “कत्ल” कर देते हैं अथवा करवा देते हैं. और जब कानून के लंबे हाथ उनकी गर्दन तक पहुंचते हैं तो जिंदगी भर जेल के सीखचों के पीछे चक्की पीसकर अपनी जिंदगी और परिजनों का जीवन नर्क बना देते हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिला पेंड्रा में एक युवक ने अपनी सगी नानी को जमीन जायदाद  के कारण लालच के फेर में स्वयं गला दबा कर मार दिया और सोचा कि आगे की जिंदगी ऐश में कटेगी. मगर वह आज जेल में अपनी उस सोच पर सर पीट रहा है जो उसने अपनी नानी को मारने का दुष्कर्म किया था.

मामला गौरेला थाना क्षेत्र के मेडुका गांव का है, जहां रहने वाली कौशल्या बाई थाना पहुंचकर अपराध दर्ज कराया कि उनकी नानी सास ललिया बाई काशीपुरी 10 सितंबर के सुबह 7 बजे घर से खेत देखने के लिए जाने को कह कर घर से निकली थी. रात तक नानी सास घर वापस नहीं आई तो यह अपने नाना ससुर चंदन काशीपुरी को और गांव के अन्य रिश्तेदारों को बताया. आस-पास रिश्तेदारी में पता किए लेकिन  वह नहीं मिली.

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18 सितंबर  को सुबह कोटवार ने बताया कि रेंजराभार रतनजोत प्लाट में मानव हड्डी और साड़ी, कपड़ा पड़ा है, जो ललिया बाई के जैसे लग रही है. तब यह अपने परिवार सहित प्लाट में जा कर देखी, जो साड़ी, कपड़ा, हाथ की चूड़ीवाला, चप्पल आदि देखकर पहचाने कि यह उसके नानी सास ललिया बाई की ही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने शव के बचे अवशेष को पोस्टमार्टम और जांच के लिए भेज दिया. पुलिस जांच में जब आगे बढ़ने लगी तो जो तथ्य सामने आए वे बहुत चौकानेवाले निकले.

और नानी का गला दबा दिया

पुलिस ने हमारे संवाददाता को जानकारी दी कि प जांच में मृतका के शव का निरीक्षण पर प्रथम दृष्टया हत्या का अपराध होना पाया गया. पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के द्वारा मृतका की मृत्यु गला दबाने से होना बताया. थाना गौरेला में अपराध कायम कर विवेचना में लिया गया. पुलिस जांच में पता चला कि मृतका का नाती राज कुमार उर्फ अमृत लाल  उसी दिन से लापता था  पुलिस ने उसे संदिग्ध माना और हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की.

पूछताछ में उसने सनसनीखेज जानकारी दी की शिवप्रसाद निवासी गोरखपुर के यहां से 10 सितंबर को खेत देखने के बाद नानी आई थी. जिसे साइकिल से गोरखपुर से लेकर कियोस्क बैंक लालपुर गया, ललिया बाई के खाता जांच में पता चला कि खाते में सिर्फ 39 रुपया ही था. तब उसे घर लेकर जाते समय रेंजराभार के रतनजोत प्लाट में कहै कि सब पैसा खाते से निकाल के खा गई और जमीन भी नहीं बेच रही है, उसी गुस्से में साइकिल से गिरा कर गला दबा दिया और प्लॉट में ले जाकर अपने पास में रखे अंगोछे से गला दबा कर हत्या कर दी और झाड़ियों में लाश छिपाकर फरार हो गया. पुलिस ने आरोपी की निशान देही से घटना में प्रयुक्त कपड़ा, साइकिल बरामद कर ली . आरोपी राजकुमार उर्फ अमृतलाल उम्र  40  निवासी मेडुका को गिरफ्तार कर जिला जेल भेज दिया है.

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लालच बुरी बला

पंचतंत्र हो या हितोपदेश अथवा जीवन की हर पढ़ाई में यही शिक्षा मिलती है कि लालच बुरी बला होती है मगर अक्सर लोग लोभ में आकर कानून को अपने हाथ में उठा लेते हैं और यही नहीं लोभ लालच में आकर के स्वयं अपने हाथों से अपने ही चिर परिचित रिश्तेदारों का मर्डर कर देते हैं या फिर करवा दिया करते हैं और अंततः भंडाफोड़ होने पर जेल जाकर अपनी जिंदगी को नष्ट कर देते हैं। पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह बताते हैं कि उनके 20 वर्ष के कार्यकाल में अनेक प्रकार ऐसे सामने आए हैं जिसमें रिश्तेदारों ने रिश्तेदारों का लालच में खून बहाया दिया और छोटी सी बात को लेकर अपने सुखद जीवन को नर्क बना लिया, मेरी तो सदैव यही सलाह है कि लोग अपनी मेहनत पर भरोसा रखें, दूसरों की संपत्ति पर कुदृष्टि डालने वाले अंततः दुखी होते हैं.

पीछा : भाग 3

लेखक- अंजुम फारुख

शेख मजीद बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप के आने से 10 मिनट पहले अफजाल बेग ने दरवाजे पर दस्तक दी थी. मैं ने अपनी जगह बैठेबैठे उसे अंदर आने की इजाजत दे दी. मैं समझा था कि वेटर होगा. अफजाल बेग अंदर दाखिल होते ही चाकू लहराता हुआ मेरी ओर बढ़ा. संयोग से आप ने मुझे पहले ही सचेत कर दिया था, इसलिए मैं पिस्तौल हाथ में लिए बैठा था.’’

‘‘बेचारा अफजाल.’’ सबइंसपेक्टर सलीम की आवाज में दुख और अफसोस था.

‘‘आप उसे बेचारा कह रहे हैं..?’’ शेख मजीद ने सबइंसपेक्टर सलीम को घूर कर देखा और कहा, ‘‘क्या मतलब है आप का?’’

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‘‘मेरा मतलब है, हमें यहां आने में देर हो गई वरना हम उसे बचा लेते.’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने रहस्यमय अंदाज में कहा, ‘‘लेकिन इस का कातिल कानून की गिरफ्त से बच नहीं सकता.’’

शेख मजीद ने नागवारी से कहा, ‘‘मैं आप को बता चुका हूं कि यह आदमी मुझे कत्ल करने के लिए चाकू लहराता हुआ मेरी ओर लपका था. मैं ने अपनी सुरक्षा के तहत इस पर गोली चला दी. यह कत्ल नहीं, बचाव का कदम था.’’

इंसपेक्टर जावेद कुछ बेचैनी महसूस कर रहा था. वह कोई बात कहना चाहता था कि सबइंसपेक्टर सलीम ने हाथ उठा कर उसे रोक दिया और बोला, ‘‘सर, हमें बताया गया है कि मकतूल अफजाल बेग पिछले 2 महीनों से शेख मजीद का पीछा कर रहा था. मेरा सुझाव है कि यह मामला जरा उलट कर के तो देखें. यह भी संभव है कि शेख मजीद ही अफजाल बेग का पीछा कर रहा हो.’’

इंसपेक्टर जावेद ने सहमति के अंदाज में अपना सिर हिलाया. शेख मजीद का चेहरा सफेद पड़ गया.

सबइंसपेक्टर सलीम ने मजीद से कहा, ‘‘संभव है कि वे पत्र तुम्हें अफजाल बेग ने भेजे हों. लेकिन यह संभावना ज्यादा ठीक लगती है कि पत्रों का चक्कर तुम्हारी अपनी कारस्तानी हो. क्योंकि मैं समझता हूं कि अफजाल बेग तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था, बल्कि तुम उस का पीछा कर रहे थे.’’

‘‘क्या बकवास है?’’ शेख मजीद के गले से गुर्राहट निकली, ‘‘अगर वे पत्र मैं ने खुद लिखे होते तो मुझे पुलिस की मदद लेने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मैं बताता हूं,’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस के चेहरे पर अपनी नजरें जमा दीं, ‘‘20 अगस्त को तुम ने स्ट्रीट लेन में साफिया नाम की एक लड़की का कत्ल किया था.

उस लड़की ने तुम्हें धोखा दिया होगा, बेवफाई की होगी या उस से तुम्हारी दुश्मनी रही होगी, इसलिए तुम उस का कत्ल करने को मजबूर हो गए होगे. अफजाल बेग ने तुम्हें कत्ल करते या उस गली से निकलते देख लिया होगा.’’

शेख मजीद गुस्से से सबइंसपेक्टर सलीम को घूरने लगा. उस की बड़ीबड़ी सुर्ख आंखें स्थिर सी हो गई थीं.

सबइंसपेक्टर सलीम ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘संभव है, अफजाल बेग ने तुम्हें हत्या करते न देखा हो, लेकिन तुम समझे कि वह तुम्हें देख चुका है, इसलिए तुम ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया. शाम के समाचार पत्रों में साफिया के कत्ल की खबर छपी थी और अफजाल बेग का उस में ऐसा कोई बयान नहीं था कि यह कत्ल उस के सामने हुआ है. लेकिन तुम इस संबंध में अपने दिमाग से शक न निकाल सके.

‘‘तुम्हें यह डर सताने लगा कि कभी न कभी अफजाल बेग पुलिस को सूचना अवश्य देगा, इसलिए उस का जिंदा रहना तुम्हारे लिए खतरनाक था. जब तुम्हें मालूम हुआ कि अफजाल बेग देश की सैर करने जा रहा है तो तुम ने भी एक योजना बना ली. तुम ने खुद अपने नाम से पत्र भेजे और देश भर में उस का पीछा करना शुरू कर दिया.

‘‘तुम शक्की आदमी हो, तुम्हें ख्वाब में भी अफजाल बेग दिखाई देता होगा. तुम ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते थे कि अगर वह तुम्हारे हाथों मारा जाए तो तुम उस कत्ल को अपने बचाव की कोशिश साबित कर सको.’’

‘‘दिलचस्प कहानी है.’’ शेख मजीद ने कुटिल स्वर में कहा, ‘‘अगर मैं ने किसी लड़की का कत्ल किया होता तो क्या तुम्हें अफजाल बेग तक पहुंचने का मौका देता, क्योंकि तुम्हारे अनुसार वह मेरे अपराध का चश्मदीद गवाह था.’’

‘‘तुम्हें थोड़ाबहुत तो खतरा मोल लेना ही था.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारे लिए सब से ज्यादा खतरनाक बात यह थी कि कहीं अफजाल बेग तुम्हें पहचान न ले. उस का पीछा करते समय तुम ने इस बात का खयाल रखा था कि उस के सामने न आने पाओ.

‘‘तुम बराबर उसे कत्ल करने का मौका तलाशते रहे. लेकिन तुम्हें शायद यह मालूम नहीं था कि अफजाल बेग की दूर की नजर बहुत कमजोर थी. उस ने तुम्हें गली में नहीं देखा होगा. अगर देखा भी होगा तो पहचाना नहीं होगा.’’

शेख मजीद ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पास इस इलजाम का कोई ठोस सबूत है?’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने लाश को छुआ तो नहीं…’’

‘‘नहीं.’’ शेख मजीद बोला.

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‘‘बहुत अच्छे. अब मैं तुम्हें बताता हूं कि यह सब कुछ कैसे हुआ?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस की आंखों में आंखें डाल दीं, ‘‘तुम ने किसी तरह अफजाल बेग को अपने कमरे में बुलाया और उसे कुरसी पेश की. फिर जैसे ही वह कुरसी पर बैठा, तुम ने उस पर गोली चला दी और उस के हाथ में चाकू पकड़ा दिया.’’

शेख मजीद जोर से चीखा, ‘‘नहीं, यह झूठ है.’’ उस के होंठों तथा माथे पर तनाव की लकीरें खिंच गई थीं.

सबइंसपेक्टर सलीम ने इंसपेक्टर जावेद से कहा, ‘‘सर, याद करें जब अफजाल बेग थाने में आया था तो उस ने कुरसी पर बैठते समय अपने पतलून की दोनों मोरी ऊपर खींच ली थीं. बिलकुल यही बात यहां भी दिखाई दे रही है और…’’

फिर उस ने वाक्य को पूरा किए बिना उछल कर शेख मजीद की कलाई पकड़ ली. शेख मजीद मेज पर पड़ा पिस्तौल उठाने की कोशिश कर रहा था.

सबइंसपेक्टर सलीम ने शेख मजीद की कलाई मरोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम खतरनाक आदमी हो, तुम्हें आजाद नहीं छोड़ा जा सकता. वैसे अगर तुम पिस्तौल उठाने में सफल हो जाते तो भी मेरा कुछ न बिगड़ता. इंसपेक्टर जावेद तुम्हें पहले ही शूट कर देते. लेकिन यह सजा तुम्हारे लिए ठीक नहीं होती. इस तरह अफजाल बेग को इंसाफ नहीं मिलता.’’

इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘हां, अब तुम अफजाल बेग की हत्या करने की बात स्वीकार करोगे, फिर तुम्हें इसलामाबाद भेज दिया जाएगा. वहां साफिया नाम की लड़की और अफजाल बेग की हत्या के आरोप में तुम पर मुकदमा चलेगा. तुम्हारा बचना नामुमकिन है.’’ इंसपेक्टर जावेद की बात सुन कर शेख मजीद का चेहरा धुआंधुआं हो गया और उस का सिर झुक गया.

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प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

पीछा : भाग 2

लेखक- अंजुम फारुख

शेख मजीद थाने से चला गया. फोन पर बात करने के बाद इंसपेक्टर जावेद ने सबइंसपेक्टर जाकिर से कहा, ‘‘आप तत्काल रौयल होटल चले जाएं. वह मोटा आदमी अफजाल बेग होटल की लौबी में बैठा हुआ है. आप उसे यहां ले आएं. अभीअभी मेरी उस होटल के मैनेजर से बात हुई है.’’

आधे घंटे बाद सबइंसपेक्टर जाकिर, अफजाल बेग नाम के उस आदमी को अपने साथ ले आया, जो देखने में मोटा और गोलमटोल सा था. उस ने स्टील के फ्रेम वाला चश्मा लगा रखा था. उस के शरीर पर कीमती कपड़े थे, जो बहुत ढीलेढाले थे.

इंसपेक्टर जावेद ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस ने कुरसी पर बैठने से पहले अपनी पतलून की दोनों मोरी ऊपर खींची ताकि आराम से बैठ सके. अफजाल बेग ने इंसपेक्टर जावेद से पूछा कि उसे यहां क्यों बुलाया गया है.

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इंसपेक्टर जावेद, शेख मजीद द्वारा दिए गए पत्रों से तिथिवार उन स्थानों की सूची बना चुका था, जहांजहां मजीद गया था. वह अफजाल बेग से बोला कि आप इन तिथियों को क्वेटा, कराची, हैदराबाद, मुलतान और लाहौर गए थे.

‘‘जी हां,’’ अफजाल बेग की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘क्या आप बता सकते हैं कि आप ने ये सफर किस उद्देश्य से किए?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस से पूछा.

अफजाल बेग के दोनों हाथ उस की तोंद पर थे. वह बिलकुल शांत भाव से कुरसी पर बैठा था. लेकिन जब वह बोला तो उस के स्वर में थोड़ी सी लड़खड़ाहट थी, ‘‘सर, मैं इसलामाबाद की अफजाल ऐंड कंपनी का मालिक हूं. यह फर्म मेरे सहयोगी अच्छी तरह चला रहे हैं. मैं ने शादी नहीं की है, इसलिए मुझ पर परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. अत: मैं आजकल अपने देश की सैर करने के लिए निकला हूं. क्या अपने देश की सैर करना कोई अपराध है?’’

‘‘बिलकुल नहीं जी. लेकिन हमें शिकायत मिली है कि आप एक युवक का पीछा कर रहे हैं.’’ सबइंसपेक्टर सलीम, जोकि एक जासूस भी था, ने उस का चेहरा गौर से देखते हुए पूछा.

‘‘पीछा..? नहीं सर, मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा हूं. क्या उस युवक ने कोई वजह बताई है कि मैं उस का पीछा क्यों कर रहा हूं. मेरे पास रुपएपैसे की कोई कमी नहीं है. मुझे किसी का पीछा करने की क्या जरूरत है?’’  वह हलकी सी नाराजगी के साथ बोला.

सबइंसपेक्टर जावेद भी अफजाल बेग का बारीकी से निरीक्षण कर रहा था. उस ने शेख मजीद द्वारा दिए गए पत्रों में से एक पत्र निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया और उस के चश्मे के शीशों को घूरता हुआ बोला, ‘‘आप ने यह पत्र उसे क्यों भेजा था?’’

‘‘यह पत्र मैं ने नहीं भेजा, आप को गलतफहमी हुई है.’’ अफजाल बेग के स्वर में आत्मविश्वास था.

वह खड़ा हो कर थोड़ा सा आगे झुका, फिर बोला, ‘‘आप ने बेवजह मेरा समय बरबाद किया. अब मुझे इजाजत दीजिए.’’

इंसपेक्टर जावेद ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की. वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया.

अफजाल बेग के जाने के बाद इंसपेक्टर जावेद, सबइंसपेक्टर सलीम से बोला, ‘‘आप इस मामले में क्या कहते हैं?’’

‘‘मैं इसे इत्तफाक समझने के लिए तैयार नहीं हूं. कोई आदमी मात्र इत्तफाकन पूरे देश में किसी का पीछा नहीं कर सकता.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने कहा.

‘‘पत्रों की धमकियों से स्पष्ट होता है कि यह कत्ल आदि का मामला है.’’ सबइंसपेक्टर जाकिर बोला.

‘‘मेरा भी यही खयाल है.’’ इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘मैं इसलामाबाद पुलिस को ईमेल कर रहा हूं. संभव है, हमें वहां से शेख मजीद या अफजाल के बारे में कोई अच्छी सूचना मिल जाए.’’

‘‘एक बात खासतौर से मालूम करना.’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने मेज पर पड़े पत्रों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘20 अगस्त को इसलामाबाद की किसी गली में कोई कत्ल तो नहीं हुआ था.’’

ईमेल का जवाब 2 घंटे बाद ही आ गया. उस में लिखा था— अफजाल बेग एक बहुत बड़ी व्यापारिक कंपनी का मालिक है. उस की उम्र 53 साल है. वह स्टील के फ्रेम वाला चश्मा लगाता है और अविवाहित है. उस की कंपनी काफी उन्नति कर चुकी है. कारोबार की देखभाल अब उस के कर्मचारी करते हैं. आजकल वह देश भ्रमण पर निकला है. पुलिस के पास उस के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है.

शेख मजीद का इसलामाबाद में टेक्सटाइल्स का कारोबार है. वह अकसर अपने कारोबार के सिलसिले में एक जगह से दूसरी जगह आताजाता रहता है. उस की उम्र 27 साल है. उस के पास काफी पैसा है. वह इधरउधर पैसे खर्च करता रहता है. मजीद के खिलाफ भी इसलामाबाद पुलिस के पास कोई शिकायत नहीं है.

20 अगस्त को दोपहर ढाई बजे स्ट्रीट लेन में साफिया नामक एक लड़की का कत्ल कर दिया गया था. उस घटना का न तो कोई चश्मदीद गवाह मिला और न ही कातिल का पता चल पाया.

अफजाल बेग और शेख मजीद का इस मामले से कोई संबंध नजर नहीं आता. अगर आप को कुछ पता चला हो तो सूचना दें.

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तभी शेख मजीद का फोन आ गया. उस की आवाज लरज रही थी, ‘‘मुझे अभीअभी एक पत्र और मिला है. उस में सिर्फ इतना लिखा है ‘आखिर तुम ने पुलिस को बता ही दिया.’ अब बताइए, क्या करूं?’’

‘‘मजीद साहब, आप वह पत्र संभाल कर रखिए और यह बताइए कि आप ने इसलामाबाद में स्ट्रीट लेन का नाम सुना है?’’ इंसपेक्टर जावेद ने पूछा.

‘‘जी हां, स्ट्रीट लेन वहां की एक गली है. वहीं के एक गैराज में मैं अपनी कार खड़ी करता हूं. स्ट्रीट लेन से तो मैं रोजाना गुजरता हूं.’’ शेख मजीद ने फोन पर कहा.

‘‘क्या 20 अगस्त को भी आप वहां से गुजरे थे? याद कर के बताइए.’’

‘‘एक मिनट…हां, याद आया. पहला पत्र मिलने से एक दिन पहले की बात है. मैं उधर से ढाई बजे के करीब गुजरा था.’’

इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘ओह! अब समझ में आया कि अफजाल बेग आप का पीछा क्यों कर रहा है. आप होटल के कमरे से बाहर मत निकलिएगा. मैं आ रहा हूं.’’

रौयल होटल के अहाते में कार मोड़ते ही इंसपेक्टर जावेद और सबइंसपेक्टर सलीम को किसी गड़बड़ का अहसास हो गया. होटल के अंदर से किसी की चीखें सुनाई दे रही थीं. बहुत से लोग होटल के प्रवेशद्वार पर एकत्र हो गए थे. वेटर आदि कर्मचारी भी भीड़ में शामिल थे. होटल के मैनेजर ने इंसपेक्टर जावेद से कहा, ‘‘अच्छा हुआ, आप आ गए इंसपेक्टर साहब. कमरा नंबर 77 में एक आदमी का कत्ल कर दिया गया है.’’

पुलिस इंसपेक्टर जावेद, होटल का मैनेजर और सबइंसपेक्टर सलीम लोगों को एक तरफ हटाते हुए आगे बढ़ गए.

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कमरा नंबर 77 में शेख मजीद मौजूद था. वह उन्हें देखते ही उठ खड़ा हुआ. उस के चेहरे से बदहवासी झलक रही थी. मजीद के ठीक सामने कालीन पर अफजाल बेग औंधा पड़ा हुआ था. उस की पतलून की दोनों मोरी ऊपर उठी हुई थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पीछा : भाग 1

लेखक- अंजुम फारुख

इंसपेक्टर जावेद पेशावर के एक थाने में अपने 2 सहयोगियों सबइंसपेक्टर सलीम और सबइंसपेक्टर जाकिर के साथ बैठा किसी केस पर बातें कर रहा था, तभी एक युवक थाने में दाखिल हुआ. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह बहुत परेशान दिखाई दे रहा था. इंसपेक्टर जावेद ने युवक से पूछा, ‘‘कहिए जनाब, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं.’’

युवक बोला, ‘‘जी, मेरा नाम शेख मजीद है. मैं इसलामाबाद में रहता हूं और मेरा टेक्सटाइल्स का कारोबार है. मैं अपने कारोबार के सिलसिले में अकसर एक जगह से दूसरी जगह आताजाता हूं.’’

‘‘वो तो ठीक है, मजीब साहब. आप पहले अपनी समस्या बताएं.’’ सबइंसपेक्टर जाकिर ने शेख मजीद से पूछा.

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शेख मजीद कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘मैं इसी पौइंट पर आ रहा हूं. मैं जहां कहीं भी आताजाता हूं, एक आदमी मेरा पीछा करता रहता है.’’

सबइंसपेक्टर सलीम ने कागजकलम संभाल लिया था, वह शेख मजीद से बोला, ‘‘उस का हुलिया बताइए?’’

‘‘वह छोटे कद का गोलमटोल सा आदमी है और स्टील के फ्रेम का चश्मा लगाता है. वह पिछले 2 महीने से किसी भूत की तरह मेरा पीछा कर रहा है. मुझे उस से बचा लीजिए इंसपेक्टर साहब.’’

शेख मजीद की बातें सुन कर इंसपेक्टर जावेद ने कहा, ‘‘आप बिलकुल परेशान मत होइए. सब ठीक हो जाएगा. आप अपनी बात जारी रखें.’’

शेख मजीद बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, अगर वह आदमी सिर्फ मेरा पीछा कर रहा होता, तो मुझे ज्यादा परेशानी नहीं होती. लेकिन मेरा पीछा करने के साथसाथ उस के पत्रों का सिलसिला भी जारी है. मेरा खयाल है, वह कोई बहुत खतरनाक आदमी है और कभी भी मौका पा कर मुझे नुकसान पहुंचा सकता है.’’

‘‘आप शुरू से पूरी बात बताएं.’’

‘‘सर, इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब मैं एक दिन अपने मकान की दूसरी मंजिल पर बैठा मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था. अचानक एक पत्थर खिड़की का शीशा तोड़ता हुआ मेरी मेज के निकट आ गिरा. मैं ने घबरा कर पत्थर की ओर देखा, तो मेरी नजरें उस से चिपक कर रह गईं. क्योंकि पत्थर के साथ कागज की एक पर्ची भी बंधी थी.’’ फिर शेख मजीद ने अपनी जेब से वह पर्ची निकाल कर इंसपेक्टर जावेद की ओर बढ़ा दी.

इंसपेक्टर जावेद ने पर्ची को बहुत गौर से देखा. पर्ची किसी सस्ती नोटबुक से फाड़ी गई थी और उस के अक्षरों को किसी समाचार पत्र से काटकाट कर शब्दों का रूप दिया गया था. पर्ची में सिलवटें पड़ी हुई थीं. उस पर्ची पर दिनांक 20 अगस्त भी अंकित था, जो समाचार पत्र से काट कर चिपकाया गया था.

पर्ची पर लिखा था ‘कल तुम ने गली में जो कुछ देखा है, उसे भूल जाओ. तुम्हारी याद्दाश्त तुम्हारे लिए हानि की वजह बन सकती है. मैं तुम्हारी निगरानी करता रहूंगा.’

उस पर्ची को देखने के बाद इंसपेक्टर जावेद ने उसे दोनों सबइंसपेक्टरों की ओर बढ़ा दिया.

सबइंसपेक्टरों ने पूछा, ‘‘मजीद साहब, आप ने गली में क्या देखा था?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं ने कुछ देखा हो तभी न. इसीलिए पत्र का मतलब मेरी समझ में नहीं आया.’’ शेख मजीद बोला, ‘‘पहले मुझे लगा था कि किसी बच्चे की शरारत होगी. मगर जब मैं ने खिड़की से झांक कर बाहर देखा तो कोई बच्चा नजर नहीं आया. हां, गली में एक युवक और युवती जरूर आपस में बातें कर रहे थे.

‘‘उन से कुछ ही दूरी पर एक पुलिस वाला टहलता हुआ जा रहा था और एक खंभे के पास छोटे कद का एक गोलमटोल सा आदमी खड़ा था. उस ने स्टील के फ्रेम का चश्मा लगा रखा था. उस के हाथ में चहलकदमी करने वाली छड़ी थी. मेरी निगाहें उसी आदमी पर जम कर रह गईं.’’

शेख मजीद कुछ देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘‘उस आदमी का चेहरा मेरे दिलोदिमाग में इस तरह बैठ गया कि मुझे घबराहट होने लगी. मुझे लगा कि मैं खतरे में हूं, इसलिए मुझे यह शहर छोड़ देना चाहिए. इसी के मद्देनजर मैं ने हवाई जहाज से क्वेटा जाने की सीट बुक करवा ली.

‘‘अगले दिन मैं हवाई जहाज में सवार हुआ और अपनी सीट पर सो गया. एयरपोर्ट पर हवाई जहाज से उतरते समय मैं ने देखा कि वह गोलमटोल सा आदमी भी उतर रहा है. यह देखते ही मेरी सांस रुक गई. पहले तो मैं ने समझा कि यह इत्तफाक हो सकता है, लेकिन जब दूसरे दिन होटल के कमरे में दरवाजे के नीचे से एक पत्र फेंका गया तो मुझे कुछ सोचना पड़ा.’’

शेख मजीद ने वह पत्र इंसपेक्टर जावेद की ओर बढ़ा दिया. यह पत्र भी अखबार से अक्षरों को काट कर, फिर कागज पर चिपका कर तैयार किया गया था. पत्र में लिखा था ‘खामोशी में ही भलाई है.’

इंसपेक्टर जावेद उस पत्र को मेज पर रख कर बोला, ‘‘आप अपनी बात जारी रखें, मजीद साहब.’’

‘‘इस वाक्य ने मुझे बुरी तरह डरा दिया था.’’ शेख मजीद बोला, ‘‘मैं जल्दीजल्दी होटल बदलता रहा. क्या बताऊं कहांकहां भटकता फिरा. मैं ने कराची के एक होटल में कमरा ले लिया. वहां एक हफ्ता आराम से रहा. मैं ने समझा था कि मुझे उस आदमी से छुटकारा मिल गया.

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‘‘लेकिन यह मेरी गलतफहमी थी. जल्द ही मुझे कुरियर से एक पत्र मिला. यह पत्र भी पहले के 2 पत्रों जैसा था. उस में लिखा था ‘याद रखो, तुम्हें वह सब भूलना है.’ उस पत्र से मैं दहल गया.’’

शेख मजीद कुछ क्षण के लिए रुका, फिर इंसपेक्टर जावेद की ओर देखते हुए आगे बोला, ‘‘उसी दिन डाइनिंग हाल में नाश्ते के समय वह आदमी मुझे फिर दिखाई दिया. वह मेरी मेज से 10 फुट दूर एक मेज पर बैठा था. मेरे बैठते ही वह उठ कर बाहर जाने लगा. मैं ने उस आदमी के बारे में पूछा कि वह कौन है तो पता चला कि उस का नाम अफजाल है और वह कमरा नंबर 402 में ठहरा हुआ है.

‘‘नाश्ता करने के बाद मैं रिसैप्शन पर गया और कस्टमर्स का रजिस्टर देखा. मुझे पता चला कि उस ने 10 मिनट पहले होटल छोड़ दिया है.’’ शेख मजीद अपनी कहानी सुना रहा था या दर्द बयां कर रहा था, उस के चेहरे से समझना मुश्किल था.

‘‘मजीद साहब, इन पत्रों को ले कर आप ने पुलिस से संपर्क तो किया होगा.’’ इंसपेक्टर जावेद ने पूछा.

‘‘नहीं.’’ शेख मजीद ने कहा.

‘‘क्यों?’’ सबइंसपेक्टर सलीम ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘मैं इन पत्रों को उस आदमी का पागलपन समझ रहा था. मैं सोच रहा था कि वह एक दिलचस्प खेल खेल रहा है कि क्या मैं उस से पीछा छुड़ा पाता हूं या नहीं. इसलिए मैं ने तब पुलिस से संपर्क नहीं किया. लेकिन जब देखा कि मामला गंभीर हो रहा है तो मैं ने आज थाने की शरण ली.’’

शेख मजीद ने आगे बताया, ‘‘उस के बाद मैं हैदराबाद, मुलतान और लाहौर गया. हर जगह हर शहर में उस आदमी की शक्ल दिखाई दी. कई बार तो मैं जिस होटल में ठहरता था, वह वहां भी नजर आ जाता था. यही नहीं, उस के द्वारा भेजे जाने वाले पत्रों का सिलसिला भी जारी रहा.

‘‘कई पत्रों में सिर्फ उस दिन की तारीख लिखी होती. मैं चाहता था कि उस आदमी से मिल कर साफसाफ बात कर लूं. लेकिन फिर मैं ने सोचा कि अगर उस ने पत्रों के बारे में इनकार कर दिया तो मैं क्या कर लूंगा. इसी तरह अगर उस ने पीछा करने की बात भी नकार दी तो क्या होगा. शेख मजीद की बात जारी थी.

उस ने कहा, ‘‘कल मैं यहां (पेशावर) के रौयल होटल में ठहरा. मुझे यहां भी अपने कमरे में पहले जैसा एक पत्र मिला, जिस में लिखा था, ‘तुम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ, मेरी नजरों से छिप नहीं सकते.’ ऐसी स्थिति में मुझे आप के पास आना पड़ा.’’

‘‘क्या तुम्हें अफजाल बेग होटल में दिखाई दिया?’’ सबइंसपेक्टर जाकिर ने शेख मजीद से पूछा.

‘‘अभी तक मैं ने उसे रौयल होटल में नहीं देखा है, लेकिन मैं ने एक वेटर से मालूम किया है कि अफजाल बेग नाम का आदमी वहीं ठहरा है. आप मेहरबानी कर के मुझे उस आदमी से बचाएं.’’ शेख मजीद ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया.

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‘‘ठीक है, हम देखते हैं, आप की क्या मदद की जा सकती है.’’ इंसपेक्टर जावेद ने कहा और फोन उठा कर कहीं बात करने लगा.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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