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सौजन्य- सत्यकथा

उन्हीं दिनों अहसान को किसी परिचित के मार्फत पता चला कि वार्ड नंबर-6 के बबैल रोड स्थित शिवनगर कालोनी में एक व्यक्ति अपना अर्द्धनिर्मित मकान बेच रहा है. उसे पैसों की बहुत जरूरत है.

औनेपौने दाम लगा कर अहसान सैफी ने वह मकान खरीद लिया. उस पर सिर्फ लेंटर डालना बाकी था, जबकि चारोें दीवारें पूरी तैयार थीं. उस ने जो सपना खुली आंखों से देखा था कि उस का भी अपना मकान हो, उस का वह सपना पूरा हो गया था. कुछ और रुपयों का बंदोबस्त कर उस ने लेंटर डलवा दिया.

अपनी मेहनत की कमाई से बने मकान में रह कर अहसान खुश था. मकान का सपना पूरा होने के बाद अहसान के दिल में एक कसक रह गई थी रातोंरात लखपति बनने की. वह ऐसा नायाब तरीका ढूढने में जुट गया, जिस से लखपति बनने से उसे कोई नहीं रोक पाता.

भले ही अहसान सैफी कम पढ़ालिखा था, लेकिन टेक्नोलौजी के मामले में बेहद शातिर था. इसी शातिरपन का वह लाभ उठाना चाहता था. इस के लिए उस ने शादी डौटकौम का सहारा लिया. अहसान ने शादी डौटकौम पर अपने लिए एक विज्ञापन दिया.

मुंबई के कल्याणी घाट की नाजनीन ने विज्ञापन देखा. उस ने अहसान के दिए मोबाइल नंबर पर संपर्क किया. नेकदिल नाजनीन ने खुल कर उसे अपने बारे में सारी हकीकत बयां कर दी कि वह बेवा है और 2 बच्चे भी हैं. इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए वह तैयार है तो बात आगे बढ़ाई जाए.

अपनी ओर से इस रिश्ते को अहसान ने मंजूरी दे दी थी. उसे नाजनीन के दोनों बच्चों से कोई ऐतराज नहीं था. अहसान की ओर से हरी झंडी मिलते ही नाजनीन ने भी अपनी ओर से भी हरी झंडी दे दी थी. रास्ता दोनों ओर से साफ था. नाजनीन के पिता मुन्ना शेख भी बेटी के फैसले के आगे नतमस्तक थे. उन्होंंने बेटी के जीवन में कोई दखल करना उचित नहीं समझा.

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