कोरोना बीमारी के बेतहाशा बढ़ने के चलते जब से लोगों को घर में रहने की सलाह दी गई है, मेरे 70 साल के पापा की बेचैनी बढ़ गई है. वे अब घर से मानो फरार होने के बहाने ढूंढ़ते हैं. कभी कहते हैं कि दूध ले आता हूं तो कभी अपनी दवा का बहाना बना कर मेडिकल स्टोर तक जाने की बात करते हैं. शाम होते ही उन के भीतर पार्क जाने की हूक उठ जाती है.

चूंकि मैं उन्हें कड़े शब्दों में झिड़क देता हूं तो वे मुझ से कटेकटे से रहते हैं. बच्चे एक बार भी बाहर निकलने की जिद नहीं करते, पर उन के दादा को कौन समझाए.

इस कोरोना कांड में यह तकरीबन हर घर की कहानी है. महल्ले का एक राउंड काट लीजिए, हर आंगन में बुढ़ाते सिर बाहर की ओर ऐसे ताकते दिख जाएंगे, जैसे वे घर के भीतर तिहाड़ जेल के कैदी हैं.

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मेरी एक फेसबुक फ्रेंड जन्या दीप्ति सिंह के पापा का भी यही हाल है. बाहर निकलने के लिए मना करो तो एकदम बेचारे से बन जाते हैं, पर उस लड़की की हिम्मत है कि उस ने अपने पापा पर लगाम लगा रखी है.

जन्या ने बताया, 'पापा आज अपनी छत पर ही टहल कर आए हैं. कल मैं ने और भाई ने उन्हें भयंकर डांट लगाई थी. उस का असर है अब से बिलकुल बाहर नहीं जाना.

'आज पापा कह रहे थे कि अपनी छत तो काफी बड़ी है. वे वहां उगाए टमाटर तोड़ कर लाए हैं. आगे बोले कि शाम को छत की सफाई करनी है. मैट ले कर ऊपर जाना है और चेयर और टेबल भी. कल से मैं अपनी चाय छत पर ही बनाऊंगा.'

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