Hindi Family Story: विरासत – मां का कद ऊंचा करती एक बेटी

Hindi Family Story: मुझे ऐसा क्यों लगने लगा है कि शादी के बाद  लड़कियां बदल सी जाती हैं और उन का वह घर जहां वह अभी कुछ माह या साल पहले गई थीं, अधिक प्रिय हो जाता है. लगता है कि मेरी बेटी कामना के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है. आती है तो खोईखोई सी रहती है, भाईबहन के साथ की वह धींगामस्ती भी अब नजर नहीं आती. छोटे भाईबहन को कभीकभार आइसक्रीम खिलाने ले जाना, कोई पिक्चर दिखाना या शापिंग के लिए ले जाना, सब ‘रुटीन वे’ में होता है. आज तो उस ने हद ही कर दी. मैं उस की पसंद का मूंग की दाल का हलवा बनाने में व्यस्त थी तभी मैं ने सुना वह अपनी छोटी बहन भावना से कह रही थी, ‘‘भानु, अब की बार मैं जल्दी चली जाऊंगी. तेरे जीजाजी आने वाले हैं. कैंटीन का खाना उन को बिलकुल सूट नहीं करता. आज शाम को बाजार चलते हैं, मुझे मम्मीजी की साड़ी भी लेनी है.’’

यह मम्मीजी कौन हैं? आप को बताने की जरूरत नहीं है. वही हैं जो ससुराल जाने पर हर लड़की की अधिकारपूर्वक मम्मीजी बन जाती हैं, चाहे वह उसे असली मम्मी की तरह मानें या न मानें.

मैं गलत नहीं कह रही हूं. पिछले 10 दिनोें से मुझे वायरल फीवर भी था. थोड़ी कमजोरी भी महसूस कर रही थी, पर उस कालिज से, जहां मैं पढ़ा रही थी, मैं ने छुट््टी ले ली थी. मुझे बस एक ही धुन थी कि बेटी को वह सब चीजें खिला दूं जो उसे पसंद थीं और वह थी कि अपनी बहन से जाने की जल्दी बता रही थी. जैसे मैं अब उस के लिए कुछ नहीं थी.

तभी मैं ने यह भी सुना, ‘‘भानु, इस सितार पर तो धूल जम गई है, तू क्या इसे कभी नहीं बजाती? मैं तो पहले ही जानती थी कि तू साइंस की स्टूडेंट है, भला तुझे कहां समय मिलेगा सितार बजाने का? मां से कह कर मैं इस बार यह सितार लेती जाऊंगी. मैं वहां क्लास ज्वाइन कर के सितार बजाना सीख लूंगी, वैसे भी अकेले बोर होती हूं.’’

हलवा बन चुका था पर कड़ाही कपड़े से पकड़ कर उतारना भूल गई तो उंगलियां जल गईं. अब किसी को बुला कर सितार पैक कराना होगा, जिस से लंबे सफर में कुछ टूटेफूटे नहीं. बेटी है न, उस के जाने के खयाल से ही मेरी आंखें भर आई थीं. मैं ने जल्दी से आंखें आंचल से पोंछ लीं. लगता है, मेरी बेटी अपनी सारी चीजें जिन से मेरी यादें जुड़ी हुई हैं, मुझ से दूर कर ही देगी.

पिछली बार जब वह आई थी, मैं उस के रूखे, घने, लंबे केशों में तेल लगा रही थी कि अचानक ही मैं ने सुना, ‘मां, मैं वह मसूरी वाली ‘पोट्रेट’ ले जाऊं जो आप ने ‘एम्ब्रायडरी कंपीटीशन’ के लिए बनाई थी. वही वाली जो आप ने प्रथम पुरस्कार पाने के बाद मुझे मेरे जन्मदिन पर प्रेजेंट कर दी थी. मम्मीजी उसे देख कर बहुत खुश होंगी. आप ने कितनी सुंदर कढ़ाई की है. पहाड़ लगता है बर्फ से भरे हैं.’’

मैं हां कहने में थोड़ी हिचकिचाई. कितने पापड़ बेलने पड़े थे उस तसवीर को काढ़ने में. कितने प्रकार की स्टिचेज सीखनी पड़ी थीं उसे पूरा करने में, और वह मुझ से ले कर उसे अपनी उन मम्मीजी को दे देगी. पर कोई बात नहीं, मैं तो उसे खुश देखने के लिए अपनी कोई भी प्रिय वस्तु देने को तैयार थी, यह तो फ्रेम में जड़ी केवल एक तसवीर ही थी.

अनुराग उसे लेने सुबह ही आ गया था. शाम को जब मैं दोनों को चाय के लिए बुलाने गई तो देखा दोनों दीवार से तसवीर उतार कर यत्नपूर्वक ब्राउन पेपर  के ऊपर अखबार लपेट रहे थे.

मैं ने दीवार की तरफ देखा, कितनी सूनी, बदरंग सी लग रही थी. ठीक उसी तरह जैसे कामना के चले जाने के बाद उस का कमरा लगता था. मैं बिना कुछ बोले तेज कदमों से वापस लौट आई. कब सुबह हुई, जल्दीजल्दी नाश्ता हुआ फिर साथ ले जाने का खाना पैक हुआ और कामना विदा हो गई, पता ही न चला. भावना सिसक रही थी, ‘‘दीदी, जल्दी आना.’’ मैं चुपचाप उसे देखती रही जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो गई.

हर बार की तरह तीसरेचौथे महीने कामना नहीं आई. मैं सोचसोच कर परेशान थी कि क्या कारण हो सकता है उस के न आने का. तभी उस की मम्मीजी का एक छोटा सा पत्र मुझे मिला.

‘अत्यंत प्रसन्नता से आप को सूचित कर रही हूं कि हम दोनों की पदोन्नति हो गई है, यानी कि आप नानी और मैं दादी बनने वाली हूं. कामना को एकदम डाक्टर ने बेड रेस्ट बताया है, इसलिए कुछ महीने बाद ही जा सकेगी वह. हां, गोदभराई के लिए आप को हमारे यहां आना होगा क्योंकि हमारे घर की परंपरा है कि पहला बच्चा ससुराल में ही होता है. अत: डिलीवरी भी यहीं होगी. आप बिलकुल निश्ंिचत रहिएगा क्योंकि मैं भी तो कामना की मम्मी हूं.’

पत्र पढ़ कर कामना के न आने का दुख तो मैं भूल ही गई और खुशी से भावना को जोर से आवाज दी. खबर सुन कर वह भी नाच उठी. घर में कितनी ही देर तक हर्षोल्लास का वातावरण बना रहा. कामना के पापा जहां पोस्टेड थे वहां से घर वह छुट््टियों में ही आते थे. इस बार हमसब एकसाथ गए रस्म अदा करने. बेटी को देख कर उतनी ही खुशी हुई जितनी अपने हाथों से लगाए वृक्ष को फूलतेफलते देख कर होती है.

रस्म अदा करने के बाद कामना मेरा हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, चलो, तुम्हें कुछ दिखाते हैं.’’

एक कमरे के पास आ कर वह रुक गई और बोली, ‘‘देखो मां, यह बच्चे की नर्सरी है.’’ अंदर जा कर मैं चकित रह गई. दीवार पर हलके रंग का प्लास्टिक पेंट, फूलपत्तियां बनी हुईं, छोटेछोटे बच्चे ऐंजेल बने हुए थे. एक तरफ ‘क्रिब’ में बिछी हुई गुलाबी प्रिंटेड और गुलाबी उढ़ाने की चादर भी. दूसरे कोने में तरहतरह के खिलौने, नर्सरी राइम्स की किताबें करीने से सजी हुईं.

‘‘मां, तुम मेरी वह छोटी कुरसीमेज भेज देना जिस पर मैं बचपन में पढ़ती थी.’’

मैं ने प्यार से उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाई, ‘‘हां, मैं जाते ही शिबू से तुम्हारी मेजकुरसी पहुंचवा दूंगी.’’

कहना नहीं होगा, शिबू ही उस की देखभाल करता था जब मैं कालिज पढ़ाने चली जाती थी. घर पहुंचते ही कामना का कमरा खोला, दीवार पर उस के बचपन की कितनी ही तसवीरें लगी हुई थीं. एक कोने में उस की छोटी कुरसीमेज, मेज पर उस का एक छोटा सा बाक्स भी रखा हुआ था. बाक्स नीचे रखा और कुरसीमेज पेंट करा के उसे कामना की ससुराल पहुंचाने की बात मैं ने शिबू को बताई.

वह दिन भी आया कि कामना अपने छोटे से बेटे को साथ लिए आई. साथ में उस का पति अनुराग भी था. मैं तो कब से तीनों की राह देखती दरवाजे पर खड़ी थी. आगे बढ़ कर मैं ने बच्चे को गोद में ले लिया और चूम लिया.

‘‘मां, तुम मुझे प्यार करना भूल गईं.’’

‘‘अब तुम बड़ी जो हो गई हो,’’ मैं ने हंस कर कहा.

हंसीखुशी के बीच महीना कैसे बीत गया, पता ही न चला. कामना अकसर बच्चे को अपने कमरे में ले जाती, खिलाती, सुलाती.

कल ही उस की ट्रेन थी. मैं बरामदे की आरामकुरसी पर लेटी ही थी कि कामना आ पहुंची.

‘‘मां, बहुत थक गई हो न. लाओ न पैर दबा दूं थोड़ा,’’ और हाथ में ली हुई फाइल उस ने पास की कुरसी पर रख दी, पर मैं ने अपने पैर समेट लिए थे.

‘‘अरे, मैं तो ऐसे ही लेट गई थी’’ तभी बेटे के रोने की आवाज सुन कर वह चल दी. उत्सुकतावश मैं ने फाइल उठा ली. देखने में पुरानी किंतु नए रंगीन ग्लेज  पेपर, रिबन से बंधी हुई. मैं सीधे बैठ गई. अंदर लिखाई जानीपहचानी सी लग रही थी. फाइल में कितनी ही कटिंग थीं, समाचारपत्रों की, कालिज की पत्रिकाओं की. मेरी लिखी हुई टिप्पणियां भी थीं.

हां, वह पहली कटिंग भी थी जब कामना 8वीं में पढ़ती थी. मुझे याद आ गया, कामना 100 मीटर की रेस में भाग लेने वाली थी, कितनी ही बार वह खेलों में भाग ले कर पुरस्कार भी पा चुकी थी. पर उस दिन उस के पैर में भयानक दर्द था. कुछ मलहम मला, सिंकाई की, दवाई खिलाई, पैर में कस कर पट््टी बांध दी, पर उस के पैर के ‘क्रैंप’ न गए. उधर उस की जिद थी कि वह रेस में भाग जरूर लेगी. मुझे भी अपने कालिज पहुंचना जरूरी था. मैं ने शिबू द्वारा थर्मस में गरम दूध में कौफी डाल कर और एक नोट लिख कर भेजा, ‘बेटी कामना, रेस में हार कर दुखी मत होना. जीवन में ऐसी बहुत सी रेस आएंगी और तुम जरूर ही जीतोगी. तुम मेरी रानी बेटी हो न, हारने पर मन छोटा मत करना.’

मैं जब कालिज का काम खत्म कर कामना के स्कूल के सालाना स्पोर्ट्स देखने पहुंची तो कामना अपनी कक्षा की लड़कियों के साथ पिरामिड बनाने में लगी थी. सब से ऊपर वही थी. तालियों से मैदान गूंज उठा.

मुझे सुकून हुआ कि मेरी बेटी हार कर भी निराश नहीं थी. खेल खत्म होने पर जब वह मेरे पास आई तो उस की आंसू भरी आंखों को मैं ने चूम लिया था, इस की कटिंग भी थी.

ऐसी ही कितनी कटिंग काट कर उस ने संजो कर करीने से लगाई थीं. अकसर हम दोनों ही व्यस्त हो जाते थे, दूर हो जाते. मैं कभी परीक्षा लेने दूसरे शहर चली जाती तो मेरी अनुपस्थिति में उसे ही घर सुचारु रूप से चलाना है, मैं उसे लिख कर भेजती. लौट कर देखती कि वह थोड़े ही दिनों में और भी बड़ी हो गई है. किसी को मेरी याद तक न आती थी. कामना, जो घर में थी उन्हें संभालने के लिए.

मैं तल्लीन हो कर पेज पलटने में लगी थी तभी कामना आ पहुंची. एक शरारत भरी हंसी उस के अधरों पर फैल गई, ‘‘मां, अपनी फाइल ले जाऊं मैं,’’ मैं ने उठ कर कामना को सीने से लगा लिया. कौन कहता है कि बेटियां अपने उस घर के लिए बटोरती ही रहती हैं? सच तो यह है कि ये बेटियां ही तो मांबाप की सिखाई हुई अच्छीअच्छी बातों की विरासत से अपने उस दूसरे घर को भी प्रकाशमान करती हैं. मेरी इस बेटी ने इस विरासत को अपना कर मेरा सिर कितना ऊंचा कर दिया था. Hindi Family Story

Hindi Kahani: और हीरो मर गया – कहानी स्ट्रगल के साथी की

Hindi Kahani: जुनून इतना पुरजोर था कि उसे मुंबई खींच कर ले गया, पर यह तो उसे मुंबई पहुंच कर ही पता चला कि हर दिन मुंबई पहुंचने वाले लोगों में फिल्मी हीरोहीरोइन बनने की ख्वाहिश रखने वाले लड़केलड़कियों की भी बड़ी भारी तादाद होती है.

रोजरोज मुंबई आने वाले ये लोग फिल्म स्टार बनने की ख्वाहिश रखने वाले स्ट्रगलरों की भीड़ में इजाफा करते जाते हैं. विनय भी इस भीड़ का हिस्सा बन गया. इसी भीड़ की धक्कामुक्की और रेलमपेल ने एक दिन उसे एक फिल्म ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट के दरवाजे पर पहुंचा दिया.

विनय ने घर से लाए अपने रुपएपैसों की गिनती की, फिर उस ने एक ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट के एक साल के कोर्स में दाखिला ले लिया. वहां विनय की मुलाकात उदय नाम के एक लड़के से हुई. लंबाचौड़ा उदय बहुत हैंडसम था, पर महीनेभर में विनय अपनी ऐक्टिंग के दम पर सब के आकर्षण का केंद्र बन गया. विनय और उदय की दोस्ती धीरेधीरे इतनी गहरी हो गई कि वे रूम पार्टनर बन कर साथसाथ रहने लगे.

कोर्स पूरा हो जाने के बाद आत्मविश्वास से भरे इन दोनों नौजवानों की मेहनत रंग लाई. दोनों को ही 1-1 फिल्म मिल गई. मगर विनय की फिल्म 2 रील की शूटिंग के बाद ही अटक गई. उसे 2 और फिल्मों का भी औफर मिला, मगर वे दोनों फिल्में भी किसी न किसी वजह से बीच में ही दम तोड़ गईं. उधर, उदय की फिल्म न केवल पूरी हुई, साथ ही सुपरहिट भी हुई.

उदय की धूम मच गई. नतीजतन, उस के सामने बड़ेबड़े बजट की फिल्मों के प्रस्ताव वालों की कतार लगी थी, तो विनय स्ट्रगल करने वाले कलाकारों की कतार में धक्के खातेखाते पीछे होता जा रहा था.

उदय एक बड़े फिल्मकार द्वारा गिफ्ट किए गए शानदार फ्लैट में शिफ्ट हो गया. विनय अपने रूम में अकेला रह गया, तो उस ने अपना नया रूम पार्टनर बना लिया.

विनय को हार तो स्वीकार थी, मगर घुटने टेकना स्वीकार नहीं था. नाकामी का अंधेरा जितना ज्यादा गहराता जाता, उतना ही कामयाबी के उजालोें के लिए उस की जद्दोजेहद और मजबूती से बढ़ती जाती. हिम्मत की इसी चट्टान से उस के दिल का दर्द कविता और कहानी बन कर फूटने लगा.

मशहूर टैलीविजन की हस्ती और सीरियल बनाने वाली प्रीता नूरी की नजर विनय के लेखन पर पड़ी, तो उन्होंने उसे सीरियल लिखने वाले लेखकों की अपनी टीम में शामिल कर लिया.

प्रीता नूरी के लेखकों की टीम में लेखन करने के अलावा विनय एक फिल्म पत्रिका में पार्टटाइम न्यूज रिपोर्टर भी हो गया था. इस तरह उसे इतनी आमदनी होने लगी थी कि वह फिल्मी दुनिया में अपने बूते अपनी जद्दोजेहद जारी रख सकता था.

एक दिन एक पत्रिका में विनय ने पढ़ा, ‘फिल्म स्टार उदय अब सुपरस्टार के पायदान के नजदीक.’

विनय को खुशी हुई. इस बात का संतोष हुआ कि कम से कम उस के साथी कलाकार को तो कामयाबी मिली.

एक दूसरी फिल्म पत्रिका ने लिखा, ‘उदय एक दिन फिल्मी दुनिया का ध्रुव तारा साबित होगा,’ तीसरी पत्रिका ने लिखा, ‘सुपरस्टार उदय :

द हैंडसम हीरो: आंखें रोमांटिक और मुसकराहट जानलेवा.’

विनय जिस फिल्म पत्रिका में न्यूज रिपोर्टर था, उस के संपादक को जब पता चला कि फिल्म स्टार उदय कभी विनय का रूम पार्टनर रहा है, तो वह विनय के पीछे ही पड़ गया कि वह उदय का कोई धांसू इंटरव्यू तैयार करे. साथ ही, पत्रिका को चाहिए थे फिल्म स्टार उदय के रोमांस के किस्से. स्टार बनने से पहले और बाद के इश्क की रंगरंगीली दास्तान.

विनय उदय से मिलने शूटिंग पर गया, तो उदय ने बिजी कह कर मिलने में आनाकानी की.

कई बार तो विनय को लगा कि उदय उसे देख कर भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाता है.

यह देख विनय हैरान था. क्या उदय वाकई इतना बिजी है कि उस के पास स्ट्रगल के दिनों के अपने दोस्त से बात करने की फुरसत भी नहीं थी? वह क्या इतना बड़ा स्टार बन गया है कि मुझ जैसे मामूली आदमी से मिलने में उसे अपनी तौहीन महसूस होती है? पर वह तो पत्रकार की हैसियत से मिलना चाहता है. तो क्या अब उदय इतना बड़ा हो गया है कि उसे मीडिया की दरकार भी नहीं रही?

विनय ने दूसरे दिन फिर से उदय से मिलने की कोशिश की, पर वह नाकाम रहा. तीसरे दिन फिर कोशिश की, फिर नाकाम रहा. आखिर एक दिन उस ने उदय के घर पर फोन किया, तो पीए ने जवाब दिया, ‘साहब के पास अभी बिलकुल भी टाइम नहीं है.’

उधर दूसरी ओर फिल्म पत्रिकाओं में उदय के चटपटे इंटरव्यू छप रहे थे.

विनय ने सिर थाम लिया. उस का संपादक उस के बारे में क्या सोच रहा होगा. दूसरी पत्रिकाओं में चटपटी खबर को पढ़ कर विनय ने उदय के पीए को मन ही मन कोसा, ‘देखो तो इसे… बोलता है कि साहब के पास अभी टाइम नहीं है. अच्छा, तो साहब के पास आजकल रोमांस के लिए टाइम है, दोस्तों से मिलने के लिए नहीं है’, विनय ने अपनेआप को भी कोसा, ‘तेरी तो किस्मत ही खराब है. फिल्मों में ऐक्टिंग करना तो दूर रहा, फिल्म पत्रकारिता भी तेरे बस की नहीं. छोड़ दे यह फिल्मी दुनिया…’

‘नहीं छोड़ूंगा,’ विनय के भीतर से आवाज आती रही और वह अपनी जिद पर डटा रहा कि वह फिल्मी दुनिया नहीं छोड़ेगा. वह इसी फिल्मी दुनिया में कामयाबी की अपनी एक अलग राह खोज कर रहेगा.

उधर, प्रीता नूरी विनय की काबिलीयत से काफी प्रभावित हो चुकी थीं. उन्होंने विनय को एक फिल्म की कहानी और पटकथा पर आयोजित एक मीटिंग में बतौर सलाहकार अपने साथ बिठाया. फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर लेखक प्रवीण तन्मय कहानी और पटकथा पेश कर रहे थे. उस मीटिंग में फिल्म के हीरो और हीरोइन भी शामिल थे.

वहां विनय ने महसूस किया कि फिल्म इंडस्ट्री में पहले की तुलना में लेखकों की इज्जत काफी बढ़ चुकी है. उस ने देखा कि केवल डायरैक्टर और फिल्मकार ही नहीं, बल्कि फिल्म के हीरोहीरोइन भी लेखक प्रवीण तन्मय को काफी इज्जत दे रहे थे.

विनय को लगा कि वह भी एक कामयाब फिल्म लेखक बन सकता है.

इधर लेखक प्रवीण तन्मय की कहानी से प्रीता नूरी इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उस का डायरैक्शन भी उन्हें ही सौंप दिया. प्रवीण तन्मय ने जब इस फिल्म के डायरैक्शन की बागडोर संभाली, तो विनय को अपना चीफ असिस्टैंट बनाया. कामयाबी के पायदान की तरफ विनय का यह पहला ठोस कदम था. उस का खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से लौट आया था. भीतर के उजाले से उस की बाहर की दुनिया भी बदलनी शुरू हो गई थी.

एक दिन अचानक विनय के भीतर एक कहानी का आइडिया कौंध गया और कुछ समय चुरा कर उस ने कहानी पूरी कर ली, जिस का नाम था ‘और हीरो मर गया’.

इस कहानी ने खुद विनय को इतना रोमांचित कर दिया कि आननफानन उस ने उसे पटकथा और संवादों में भी ढाल दिया. फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उस ने अपनी यह कहानी प्रवीण तन्मय को दिखाई. प्रवीण तन्मय खुशी से उछल पड़े. कहानी प्रीता नूरी को भी सुनाई गई, तो वे भी मुग्ध हो गईं.

इसी बीच लेखक प्रवीण तन्मय के डायरैक्शन में बनी फिल्म ‘युद्ध जारी है’ हिट हो चुकी थी. प्रवीण तन्मय को कुछ दूसरे प्रोड्यूसरों से भी लेखन और डायरैक्शन के प्रस्ताव मिल रहे थे, लिहाजा, वे काफी बिजी हो गए थे. इधर प्रीता नूरी ने विनय की कहानी ‘और हीरो मर गया’ के डायरैक्शन का भार विनय को ही सौंप दिया. कामयाबी के पायदान पर विनय का यह दूसरा ठोस कदम था.

फिल्म कम समय और कम लागत में बन कर तैयार हो गई. फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं था. कहानी के मुताबिक, नए और छोटे कलाकारों को फिल्म में लिया गया था और तकरीबन सभी कलाकारों ने गजब की ऐक्टिंग की थी.

फिल्म ने लागत से कई गुना ज्यादा आमदनी की और इस तरह विनय का नाम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक जानामाना नाम बन गया. कामयाबी के पायदान पर विनय का यह तीसरा ठोस कदम था.

विनय की तीसरी फिल्म ने तो इतनी कमाई कर डाली कि खुश हो कर फिल्मकार ने विनय को एक शानदार फ्लैट गिफ्ट कर दिया. अब विनय से कहानी लिखवाने व डायरैक्शन के लिए फिल्मकारों की लंबी कतार लग गई. उधर, उदय की 5 फिल्में लगातार पिट गई थीं. उस की फिल्मों के शूटिंग शैड्यूल ही कैंसिल हो गए.

एक दिन विनय तब सुखद आश्चर्य से भर गया, जब उदय को अपने सामने खड़ा पाया. यह वही सुपरस्टार उदय था, जिस के पास स्ट्रगल के दिनों के अपने साथी को पहचानने और बात करने का समय नहीं था.

विनय ने हैरानी से उदय से पूछा, ‘‘सुपरस्टारजी, आप तो धांसू डायलौग डिलीवरी के लिए मशहूर हैं और मेरी कहानियों के डायलौग बहुत साधारण होते हैं. कहानी भी सीधेसादे पात्रों को ले कर होती है.

‘‘हर फिल्म में आप की ड्रैसें महंगे फैशन डिजाइनरों द्वारा तैयार की जाती हैं और मेरी कहानी के पात्र तो आम होते हैं, इसलिए उन्हें साधारण पोशाक ही सूट करती हैं.

‘‘आप तो जोखिम भरे स्टंट करने के लिए मशहूर हैं. फिल्म में एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग पर छलांग लगाते हुए आप को देख कर दर्शक रोमांचित हो जाते हैं, जबकि मेरी कहानियों के पात्र हवा में नहीं उड़ते, जमीन पर चलते हैं.

‘‘आप की अभी तक की रिकौर्डतोड़ फिल्मों की कामयाबी का क्रेडिट परदे पर आप के द्वारा गाए गए सुपरहिट गीतों को दिया जाता है, डांस को दिया जाता है, जबकि मेरी कहानी के किरदार तो जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराते हैं. भला आप ऐसे साधारण किरदारों को परदे पर करना क्यों पसंद करोगे?’’

सवाल का खुद जवाब न देते हुए उदय ने विनय से ही पूछ लिया, ‘‘हां, मैं जानता हूं कि आप की कहानियों के पात्र आम आदमी होते हैं, साधारण होते हैं. तो आप ही बताइए कि फिर दर्शक उन्हें पसंद क्यों कर रहे हैं?’’

उदय की बात सुन कर विनय बोला, ‘‘क्योंकि मेरी कहानियां मौलिक और असली होती हैं.’’

उदय ने विनय का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मैं उन उंगलियों को चूमना चाहता हूं, जो ऐसी कहानियों को लिख रही हैं. कामयाबी के घमंड ने मुझे अंधा बना दिया था, पर स्ट्रगल से मिली आप की कामयाबी के उजालों ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मेरी पतंग तो हवा में उड़ रही थी. कामयाबी तो यह है, जो आप ने अपने खूनपसीने से हासिल की है. फिल्म इंडस्ट्री में आप ने अपना पैर अंगद के पैर की तरफ जमा दिया है. मैं आप को बधाई देता हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर दो.’’

विनय ने उदय को अपनी छाती से लगा लिया. उदय बोला, ‘‘भाग्य के भरोसे पर टिकी बेतुकी फिल्मों की अपनी कामयाबी से मेरा मन ऊब गया है. मैं जमीन पर पैर रख कर अपनी मेहनत से अपने हुनर को तौलना चाहता हूं.

‘‘दोस्त, तुम तो स्ट्रगल के दिनों के मेरे साथी हो. मेरे लिए कोई ऐसी ही कहानी लिखो न, जिस का किरदार विलक्षण हो, पर धरती के आम इनसान की तरह हो.’’

विनय ने उदय के सादगी से दमकते चेहरे की ओर देखा तो देखता ही रह गया. अब वह फिर वही पहले जैसा कलाकार उदय हो गया था. उस के भीतर का हीरो मर चुका था. Hindi Kahani

Hindi Story: कई कई रावण से रुबरु

Hindi Story: रोहरानंद से रहा नहीं गया दशानन के पास पहुंच हाथ जोड़कर पूछा,- महात्मन क्या इस नाचीज को एक प्रश्न का जवाब मिलेगा ? हे मनीषी! ज्ञान के सागर!! कृपया, मेरी जिज्ञासा को शांत करें .

दशानन ने सर नीचे कर कहा,- अब अंतिम वक्त में, क्या पूछना चाहते हो .अच्छा होता,  दो-चार दिन पूर्व आते.

रोहरानंद ने नम्र स्वर में कहा,- हे वीर, दशानन! प्लीज… अगर आप मेरी जिज्ञासा शांत नहीं करेंगे तो मेरा दिल टूट जाएगा…

रावण के मुखड़े पर स्मित हास्य तैरने लगी-

-‘अच्छा ! अपनी जिज्ञासा शांत करो । पूछो वत्स…’

दशानन की मधुर वाणी से रोहरानंद को आत्म संबल मिला और उसने खुलकर प्रश्न किया, हे रिपुदमन!कृपया मुझे यह बताएं,  कि आपके चेहरे पर इतनी सौम्यता कहां से आई, इस आभा का रहस्य क्या है ? आपको देखने मात्र से हृदय को बड़ी ठंडक महसूस होने लगी है.

दशानन – ( हंसते हुए ) बस.हम तो तुम्हारे प्रश्न पूछने के अंदाज से भयभीत हो गए थे.जाने क्या जानना चाहता है… हम यही सोच रहे थे.

रोहरानंद,- महात्मा रावण! मैं ने जो महसूस किया उसी जिज्ञासा का शमन चाहता हूं.

दशानन- ( सकुचाते हुए ) वत्स! संभवत: इसका कारण मेरे निर्माता आयोजको का मन है. तुम नहीं जानते,रावण दहन कमेटी के पदाधिकारी स्वच्छ, सरल हृदय के लोग हैं उनकी प्रतिछाया में मैं भी सरल और सादगी को अंगीकार किए हुए हूं.

रोहरानंद प्रसन्न हुआ,दशानन ने आत्मीयता से हाथ मिलाया उसे गर्माहट महसूस हुई.

कहा,-दशानन ! क्या मैं आपका सेल्फी प्राप्त कर सकता हूं.

दशानन मुस्कुराए  – क्यों नहीं. हमारी मित्रता की यह अविस्मरणीय स्मृति होगी.

रोहरानंद पुरानी बस्ती पहुंचा. एक निरीह रावण खड़ा था, देखते ही दया आने लगी. रोहरानंद ने पास पहुंच विनम्र  स्वर में कहा,- मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं ?

आदमकद के साधारण से दशानन ने  भावविहीन चेहरा लिए कहा क्या, सचमुच,  आप मेरी मदद करेंगे ?

रोहरानंद – हां वाकई ! मगर मेरी क्षमता के भीतर.अगर आप आधुनिक सीता हरण में मारीच सृदश्य मदद मांगेंगे, तो मैं कहाँ  कर पाऊंगा.

दशानन- नहीं नहीं,  मुझे तो आपका सिर्फ मारंल सपोर्ट चाहिए.

रोहरानंद- उसके लिए तो मैं हर क्षण तत्पर हूं .

दशानन-( हाथ जोड़कर ) सिर्फ इतनी कृपया करो, समिति वालों को कुछ  जरा चंदा वगैरह करवा दो. कैसे फटे पुराने कागज,  मेरे देह पर चिपका दिए हैं. मुझे बड़ी शर्म आ रही है । लंकाधिपति  रावण की इज्जत का कुछ तो ख्याल रखना चाहिए.

रावण के दु:खी वाणी को सुनकर रोहरानंद का दिल भर आया. उसने समिति वालों की भरसक मदद करने का आश्वासन देकर, आगे बढ़ने मे भलाई समझी.

आगे रोहरानंद बाल्को पहुंच गया,स्टेडियम मैं विराट रावण अट्टाहास लगाता खड़ा था. ऐश्वर्य उसके रोएं रोएं से टपक रहा था. दशानन को देखते ही लोगों के हृदय में एक आंतक, एक सम्मान की भावना स्वमेव जागृत हो जाती थी.

दशानन ने अपनी विशाल गोल- गोल आंखें घुमाते हुए पुराने जमाने के खलनायक की भांति हुंकारा,-ओह कैसा है रे तू. बडी देर कर दी, कहां था अभी तक.

रोहरानंद ने हिचकिचाते हुए ससम्मान कहा,- क्षमा चाहता हूं एक-दो पुराने मित्र मिल गए थे,बस देर हो गई.

दशानन- समय की कीमत किया करो .अपने काम से काम रखो. दोस्त यार काम नहीं आएंगे. खुद को बुलंद करना सीखो. देखो! वेदांता, बाल्को कंपनी किस तरह सतत आगे बढ़ रही है.

रोहरानंद- सर ! कंपनी और मुझ जैसे अदने से व्यक्ति में अंतर तो रहेगा. कहां मैं कहां वेदांता.

दशानन- कंपनी को कौन चलाता है ?तुम जैसा इंसान ही न .अगर इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता ? चिमनी गिर गई थी- गिरी थी न .मगर देखो, कैसे आज लोग उस भीषण त्रासदी को भूल गए हैं.

रोहरानंद – वाकई आप सही हैं. मुझे बहुत कुछ सीखना है. मैं वेदांता से यह सब सीखूगां.

दशानन- ( स्निग्ध मुस्कान बिखेर कर ) बहुत अच्छा चलो,  इंजॉय करो…

रोहरानंद गरीब बस्ती पहुंचा. दशानन जी खड़े, मानो उसी का इंतजार कर रहे थे .रोहरानंद को देखा तो अपने पास बुलाया फुसफुसा कर कहा,- भूख लगी है कुछ जुगाड़ करो न .

रोहरानंद- हे वीर! यहां तो खाने को कुछ भी नहीं है.

दशानन – अरे भाई! ऐसा अनर्थ ना करो, सच ! बड़ी भूख लगी है .अगर मुझे भोजन नहीं दिया गया तो ठीक नहीं होगा.

रोहरानंद- हे लंका नरेश! सच यहां भोज्य सामग्री एक रत्ती भर नहीं है । एक बात मानोगे .वैसे भी अभी आपको अग्नि के सुपुर्द करेंगे ही, जरा धैर्य धारण करो.

दशानन की छोटी- छोटी गोल आंखें घूमने लगी, – देखो मैं यहां एक मिनट भी नहीं रुकूगां. मैं जा रहा हूं.और देखते-देखते दशानन गधे के सिंग की तरह गायब हो गया. Hindi Story

Hindi Funny Story: सबके अच्छे दिन आ गए

Hindi Funny Story: इस देश में बहुत अच्छे दिन आ चुके हैं. चारों ओर विकास की गंगा बहुत जोरों से बहती जा रही है. यह भी कह सकते हैं कि चारों ओर विकास ही विकास पैदा होता जा रहा है और बहुत तेजी से आगे भी पैदा होता रहेगा.

देश में व्यापारियों के अच्छे दिन आ चुके हैं. कर्मचारियों के अच्छे दिन आ चुके हैं. किसानों के अच्छे दिन आ चुके हैं. खूब महंगा आलूप्याज बेचबेच कर वे खूब मालामाल होते जा रहे हैं.

चोरउचक्कों के भी अच्छे दिन आ चुके हैं. सभी चोरउचक्के अपनीअपनी ड्यूटी समय से बजा कर अपना और देश का विकास अंधाधुंध करते जा रहे हैं.

देश में दुराचार और सदाचार के भी अच्छे दिन आ चुके हैं. एक तरफ दुराचार हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ ऐनकाउंटर कर के सदाचार का श्रीगणेश हो रहा है. ऐसा विकास क्या आप ने कहीं देखा होगा? मेरा दावा है, कहीं नहीं देखा होगा.

देश से करोड़ोंअरबों रुपए ले कर भागने वालों के अच्छे दिन आ चुके हैं. काला धन गोरा करने वालों के अच्छे दिन आ चुके हैं.

नेताओं के बाथरूम में नहाते हुए, मालिश कराते हुए मनोरंजक वीडियो के अच्छे दिन आ चुके हैं.

सत्ता के गलियारों और अधिकारियों के अहातों में भटकती विषकन्याओं के अच्छे दिन आ चुके हैं. हनी ट्रैप के सजीव प्रसारण से यह हम जान चुके हैं.

नोटबंदी के बाद नकली करंसी धड़ाधड़ पैदा करने वाली मशीनों के अच्छे दिन आ चुके हैं. चोरउचक्कों, उठाईगीरों, डकैतोंहत्यारों के संसदविधानसभाओं में पहुंचने के अच्छे दिन आ चुके हैं.

हम दुनिया का सब से बड़ा मंदिर बनाने जा रहे हैं, अब पंडेपुजारियों के भी अच्छे दिन आ चुके हैं.

भूमाफिया, शिक्षा माफिया, किडनी चोरों, गरीब औरतों की बच्चेदानी निकाल, बां झ बना कर चांदी कूटने वाले डाक्टरों के भी अच्छे दिन आ चुके हैं.

पिछड़ों के अच्छे दिन आ चुके हैं, इसीलिए उन के आरक्षण को खत्म करने की मांग जोर पकड़ रही है.

दलितों के भी अच्छे दिन आ गए हैं. उन्हें घोडि़यों पर बैठ कर शादियां करने की जरूरत नहीं रही है.

डायन, कुलटा, निगोड़ी, करमजली, बढ़ती महंगाई के अच्छे दिन आ चुके हैं.

मैं ऐसी विकास की गंगा बहाते हुए देश के हर घर को बिलकुल पवित्र कर दूंगा. देश में सभी खुश हैं. सभी अमीर हैं. कोई दुखी नहीं है. कोई परेशान नहीं है. कोई पीडि़त नहीं है, कोई पीडि़ता नहीं है. किसी को कोई तकलीफ नहीं है.

गीता में भी कहा गया है, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है. जो होगा अच्छा होगा. जो होने वाला है, वह भी अच्छा होगा. और दोस्तो, हमें इस देश पर गर्व है कि सब से अच्छे दिन आ चुके हैं. आए कि नहीं आए…

हमारे अच्छे दिनों की तारीफ दुनियाभर में हो रही है, इसलिए दुनियाभर में यह फकीर  झोला उठा कर घूमते हुए सब की बधाइयां ले रहा है. आप भी हमें अपनी बधाइयां हमारी ओर  झोंकते रहें और कहते रहें, अच्छे दिन आ गए, अच्छे दिन आ गए. Hindi Funny Story

Hindi Kahani: पति की नीति निर्देशक

Hindi Kahani: पत्नी को तरहतरह से संबोधन दिया जाता है. कोई जीवनसंगिनी कहता है, कोई जीवनसहचरी, कोई हमसफर तो कोई अर्धांगिनी. कई तो उसे स्वीटहार्ट कहते हैं, ऐसे लोगों को धोखा हो जाता होगा, वे पत्नी की जगह प्रेयसी को देख रहे होते होंगे. आखिर जिस के साथ समय सुहाना लगता है वही तो खयालों के आकाश में ज्यादा आच्छादित रहती है.

कुछ सयाने पतिजन कहते हैं कि उन की पत्नी, पत्नी नहीं बल्कि पथप्रदर्शक है. गोया कि वे जीवनपथ के भटके हुए राहगीर हैं और पत्नी यातायात के सिपाही की तरह उन की मार्गप्रदर्शक.

चमचागीरी केवल राजनीतिक या प्रशासनिक क्षेत्र में नहीं होती है. दांपत्य में भी इस का काफी महत्त्व व आधिपत्य है. पति नामक जीव भी पत्नी की चमचागीरी में स्वार्थवश या भयवश अव्वल बना रहता है.

और भी पति हैं जो कहते हैं कि उन का यदि सब से बड़ा मित्र कोई दुनिया में है तो वह उन की पत्नी है. वाह भाई वाह, विवाह होने तक न जाने कितने मित्र बनाए, उन के साथ जीनेमरने की कसमें खाईं, कितनी खट्टीमीठी यादें साथ बिताए पलों की उन के साथ जुड़ी हैं, लेकिन, एक अनजान सी लड़की से शादी क्या हो गई कि सारे मित्रों को जोर का झटका धीरे से दे यादों की भूलभुलैया में छोड़ दिया. और ताल ठोक कर कह रहे हैं कि यदि कोई मित्र है तो वह पत्नी है. अच्छा हुआ कि ऐसा कहते समय कोई पुराना जिगरी दोस्त सामने नहीं था, वरना दोस्ती की इतनी किरकिरी होते देख उसी समय वह किसी चट्टान से कूदने के लिए रवानगी डाल देता.

कुल मिला कर जितने तरह के पति हैं उतनी तरह की बातें व उपमाएं वे पत्नियों की शोभा में पेश करते हैं. पत्नी के सामने वैसे भी एक पति की औकात शोभा की सुपारी से अधिक होती नहीं है. ऐसे नमूने भी हैं जो पत्नी को अपना गुरु तक कहते हैं. हो सकता है कि रोज सुबह उठ कर उस के पैर छू आशीर्वाद भी लेते हों. वैसे, इस मामले में गंगू का कहना है कि आज के पाखंडी बाबाओं, गुरुओं की तुलना में तो पत्नी को ही किसी ने यदि गुरु मान लिया है तो यह एक अच्छा दौर शुरू हुआ मान सकते हैं.

और भी पति हैं जोकि एक कदम आगे बढ़ कर कहते हैं कि उन की पत्नी उन के पिता व मां से भी बढ़ कर है.

गंगू ने उपरोक्त सारी उपमाओं पर गंभीरता से विचारमंथन किया और यह पाया कि अलगअलग पति अपनेअपने अनुभवों के आधार पर अलगअलग तरह से पत्नी का अलंकरण कर्म करते रहते हैं. कुछ विशेष स्वार्थवश पत्नी का यश बढ़ाने वाली बात तात्कालिक रूप से अपने मुखश्री से उगल दते हैं. लेकिन सही व खरी बात यह है कि पत्नी, पति की जीवनरूपी फिल्म की निर्देशक है, जैसे कि किसी मूवी को बनाने में निर्देशक का अहम योगदान होता है. वह कलाकारों को छोटीछोटी बारीकियों के बारे में समझाइश व निर्देश देता रहता है और वे कलाकार उस की बात को मगन हो कर एक निष्ठावान व समर्पित शिष्य की तरह गगन की ओर देखते हुए सुनते हैं.

निर्देशक के निर्देश के बिना कलाकार एक कदम आगे नहीं बढ़ सकते हैं. और यदि मूवी को बौक्सऔफिस पर करोड़ों का व्यापार करने लायक दमदार व सफल बनाना है तो उसे इग्नोर तो कर ही नहीं सकते. उसी तरह पति की जिंदगीरूपी मूवी सफल हो, वह निरंतर तरक्की के पथ पर अग्रसर रहे, वह दाएंबाएं जाने की जुर्रत भी न करे, इस के लिए पत्नीरूपी एक निर्देशक के निरंतर निर्देश उस के दिनप्रतिदिन के कार्यकलापरूपी अभिनय के लिए आवश्यक हैं. वह सुबह से रात तक, देररात तक पति को निर्देश देती रहती है और पति मुंडी नीची कर के सुनता रहता है. सिर ऊपर करने की सुविधा यहां नहीं है.

पत्नी यदि बोलेगी बैठ जाओ, तो उसे बैठना है. वह बोलेगी कि खड़े हो जाओ तो उसे तुरंत खड़े हो जाना है. बिना कारण पूछे यदि वह कहे कि उठकबैठक करो, तो वह करनी है. सवालजवाब की कोई गुंजाइश यहां नहीं होती.

आप किसी पार्टी में जा रहे हैं. आप ने पतलूनशर्टटाई सब गांठ ली है. अचानक पत्नी का सीन में प्रवेश होता है. वह कहती है कि यह क्या विदूषक जैसा वेश बना डाला है, और उस के निर्देश पर आप तुरंत पहने कपड़े बदलने को मजबूर हो जाते हो. आप को कुछ पसंद आ रहा है, उसे वह नापसंद है. जो आप को नापसंद है, वह उसे पसंद है. बात वही है कि निर्देशक के निर्देशों को आप नजरअंदाज कर ही नहीं सकते.

पत्नी के पापाजी व मम्मीजी आ रहे हैं और बौस ने एक जरूरी मीटिंग में आप को शिरकत करने को निर्देशित किया है, लेकिन घर की बौस ने आप को रेलवे स्टेशन ड्यूटी के लिए निर्देशित कर दिया है. ट्रेन का समय आप की बैठक के समय से क्लेश हो रहा है. ऐसी स्थिति में भी आप निर्देशक से क्लेश नहीं कर सकते हैं. यहां की डांट खाने व अपनी खाट खड़ी करने से अच्छा है कि बौस की डांट खा लो.

तो, आप सहमत हैं कि नहीं कि पत्नी के लिए बाकी की सारी उपमाएं अपनी जगह सही हो सकती हैं, लेकिन सब से सही उपमा जो गंगू ने निर्देशक की कही है, वही है और केवल वही है. Hindi Kahani

Story In Hindi: सवाल अपने बेटे की अंग्रेजी तालीम का

Story In Hindi: ‘‘बच्चे को एलकेजी में भरती करने वाला मुझे फार्म तो दीजिए,’’ मैं ने अंगरेजी स्कूल के क्लर्क से कहा.

पहले तो उस ने मुझे घूरा, फिर पूछा, ‘‘किसे भरती कराना है?’’

‘‘कहा न, बच्चे को,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘कहां है आप का बच्चा?’’ मेरे आसपास नजर दौड़ाते हुए उस ने पूछा.

‘‘घर में,’’ मैं ने बताया.

‘‘जिसे भरती होना है, उसे घर छोड़ आए. जाइए, उसे ले कर आइए.’’

‘‘भला क्यों…?’’

‘‘पहले मैं उस बच्चे का इंटरव्यू लूंगा. अगर वह भरती होने लायक होगा, तब फार्म दूंगा. यही प्रिंसिपल साहब का आर्डर है,’’ उस ने खुलासा करते हुए बताया.

‘‘भरती करना है या नहीं, यह फैसला कौन लेगा?’’

‘‘प्रिंसिपल साहब. वे आप का इंटरव्यू ले कर फैसला करेंगे.’’

‘‘बच्चे के इंटरव्यू की बात तो गले उतरती है, लेकिन मेरा इंटरव्यू… बात कुछ जमी नहीं,’’ मैं ने हैरानी जाहिर की.

‘‘देखिए, यह अंगरेजी स्कूल है, कोई खैराती या सरकारी नहीं. हमें बच्चे के साथसाथ स्कूल के भले का खयाल रखना पड़ता है, इसीलिए बच्चे के साथसाथ उस के माता पिता का भी इंटरव्यू लिया जाता है.’’

‘‘बात समझ में आई या नहीं? अब जाइए और बच्चे को ले कर आइए.’’

मैं जातेजाते धड़कते दिल से पूछ बैठा, ‘‘किस भाषा में इंटरव्यू लेते हैं प्रिंसिपल साहब?’’

‘‘अंगरेजी स्कूल में दाखिला कराने आए हो और यह भी नहीं जानते?’’

इतना सुनते ही मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं. मुझे अंगरेजी नहीं आती थी. आज पता चला कि अंगरेजी स्कूल में बच्चे को भरती कराना कितना मुश्किल काम है, खासतौर पर मेरे लिए.

घर पहुंचा, तो मेरी बीवी ने पूछा, ‘‘हो गई भरती?’’

‘‘अभी नहीं,’’ मैं ने ठंडे दिल से कहा.

‘‘क्यों…’’ बीवी की आवाज में उलझन थी.

‘‘फिर बताऊंगा, फिलहाल तो बच्चे को फटाफट तैयार कर दो. उसे स्कूल ले कर जाना है,’’ मैं ने कहा.

मैं ने भी कहने को तो कह दिया, लेकिन मुझे अंगरेजी न आने का कोई हल नजर नहीं आ रहा था.

अचानक मुझे रास्ता सूझा कि मेरे पड़ोसी को अंगरेजी आती है. क्यों न उस से मदद मांगी जाए.

मैं मदद मांगने के लिए उस के पास चला गया. थोड़ी आनाकानी के बाद उस ने बात मान ली. मैं उसे और बच्चे को ले कर स्कूल पहुंचा.

‘‘क्या पढ़ते हो मुन्ना?’’ दाखिले के पहले दौर में क्लर्क ने पुचकारते हुए बच्चे से जब पूछा, तो मैं ने टोका, ‘‘अरे सरजी, अभी पढ़ कहां रहा है… पढ़ाना तो अब आप लोगों को है.’’

‘‘अरे, एबीसीडी तो पढ़ता होगा?’’ चौंकते हुए उस ने कहा.

‘‘जी नहीं,’’ अचानक मेरे मुंह से सच बात निकल गई.

‘‘तो क्या बिना तैयारी के ही दाखिला कराने चले आए?’’

मैं ने बात को बिगड़ते देख कहा, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि अभी स्कूल में नहीं पढ़ रहा. घर में एबीसीडी सिखा रहे हैं.’’

‘‘वही तो मैं पूछ रहा था.’’

‘‘जी हां… जी हां,’’ बात बनती देख मैं ने चैन की सांस ली.

उस ने बच्चे से और भी सवाल पूछे, जिन के माकूल जवाब वह दे नहीं पाया.

बहरहाल, बेहद खुशामद के बाद क्लर्क ने एहसान जताते हुए मुझे फार्म दे दिया.

फार्म भरने के बाद हम लोग प्रिंसिपल साहब के पास पहुंचे. पहले उन्होंने 5 मिनट तक भाषण पिलाया, जिस का मतलब यह था कि अंगरेजी स्कूल में पढ़ना कोई हंसीखेल नहीं है. यहां पढ़ाने के लिए घर का माहौल अंगरेजी वाला होना चाहिए.

फिर प्रिंसिपल साहब ने इंटरव्यू लेना शुरू किया. अंगरेजी में पूछे गए सवालों के जवाब पड़ोसी देने लगा, इसलिए प्रिंसिपल ने समझा कि बच्चे का पिता वही है. वैसे भी वह इस तरह बनठन कर गया था, जैसा अंगरेजी स्कूल में बच्चे को पढ़ाने वाले पिता का होना चाहिए.

प्रिंसिपल साहब बीचबीच में हिंदी में भी कुछ पूछ लेते थे, तब जवाब मैं दे देता था. इस से प्रिंसिपल साहब ने अंदाजा लगाया कि मैं लड़के के पिता का दोस्त हूं, इसीलिए उन्होंने पूछा भी नहीं कि हम दोनों में से लड़के का पिता कौन है?

यही मैं चाहता था, ताकि दाखिला हो जाने के बाद जब इस राज का भंडाफोड़ हो, तो मुझे यह कहने का मौका मिले कि जब पूछा ही नहीं गया, तो बताते कैसे?

खैर, किसी तरह से लड़के का दाखिला हो गया.

कुछ दिनों बाद प्रिंसिपल साहब का मेरे नाम नोटिस आया. लड़के की पढ़ाई के सिलसिले में मुझे बुलाया गया था. अब तो मेरी आंखों के आगे सचमुच अंधेरा छाने लगा.

मैं फिर पड़ोसी के पास गया, लेकिन इस बार उस ने मेरी मदद करने से साफ इनकार कर दिया. अलबत्ता, मेरी हौसलाअफजाई करते हुए उस ने कहा, ‘‘घबराओ मत, हिम्मत से काम लो. बच्चे का दाखिला हो चुका है. अब कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता.

‘‘वैसे भी इतने दिनों बाद प्रिंसिपल साहब यह भूल चुके होंगे कि उस दिन लड़के का बाप बन कर मैं गया था.’’

मैं दिल मजबूत कर के प्रिंसिपल के पास चला गया. उन्होंने मुझ से शिकायत करते हुए पूछा (गनीमत थी कि हिंदी में) कि मैं लड़के को घर में पढ़ाता क्यों नहीं? मगर, मैं कैसे कह देता कि मैं अंगरेजी नहीं पढ़ पाया और उसी कमी को बच्चे के जरीए पूरा करने की कोशिश कर रहा हूं?

खैर, मैं बहाने बनाने लगा. तब वे सोच में पड़ कर बड़बड़ाने लगे कि आखिर आप के लड़के का दाखिला हो कैसे गया?

हालांकि प्रिंसिपल साहब ने खूब फटकार लगाई, लेकिन मुझे इस बात की बेहद खुशी थी कि उन की ओर से मुझे मेरे बेटे के पिता के रूप में मंजूरी मिल चुकी थी.

मैं ने मन ही मन पड़ोसी का शुक्रिया अदा किया कि उस ने आज मेरे साथ चलने से इनकार कर के अच्छा ही किया, वरना मैं स्कूल में बेटे का पिता कहलाने का हक खो देता. Story In Hindi

Romantic Story In Hindi: यादों के सहारे – प्रकाश का प्यार

Romantic Story In Hindi: वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज  ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.

उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…

‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था.

उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी.

धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’

उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.

उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे.

पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’

नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’

नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’

मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’

नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था.

एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’

‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.

‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.

‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’

‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’

नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.

‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’

‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’

‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’

‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’

‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’

‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’

प्रकाश के पिता उदय बा अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे.

धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’

पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’

‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.

‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’

‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’

‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा.

उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए. नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.

‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.

‘‘क्या तुम ने…?’’

‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’ यह सुन कर प्रकाश चुप था.

‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’

‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.

‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’

इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था.

उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’

बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई.

गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था.

प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’

कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी.

प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’

प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:

‘प्यारी नीलू,

‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था.

‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया.

‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए?

‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.

‘तुम्हारा प्रकाश…’

प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था. Romantic Story In Hindi

Best Hindi Story: देवर – मंजू के देवर ने उस के साथ क्या किया

Best Hindi Story: प्रदीप को पति के रूप में पा कर मंजू के सारे सपने चूरचूर हो गए. प्रदीप का रंग सांवला और कद नाटा था. वह मंजू से उम्र में भी काफी बड़ा था.

मंजू ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, मगर थी बहुत खूबसूरत. उस ने खूबसूरत फिल्मी हीरो जैसे पति की कल्पना की थी.

प्रदीप सीधासादा और नेक इनसान था. वह मंजू से बहुत प्यार करता था और उसे खुश करने के लिए अच्छेअच्छे तोहफे लाता था. मगर मंजू मुंह बिचका कर तोहफे एक ओर रख देती. वह हमेशा तनाव में रहती. उसे पति के साथ घूमनेफिरने में भी शर्म महसूस होती. मंजू तो अपने देवर संदीप पर फिदा थी. पहली नजर में ही वह उस की दीवानी हो गई थी.

संदीप मंजू का हमउम्र भी था और खूबसूरत भी. मंजू को लगा कि उस के सपनों का राजकुमार तो संदीप ही है. प्रदीप की नईनई नौकरी थी. उसे बहुत कम फुरसत मिलती थी. अकसर वह घर से बाहर ही रहता. ऐसे में मंजू को देवर का साथ बेहद भाता. वह उस के साथ खूब हंसीमजाक करती.

संदीप को रिझाने के लिए मंजू उस के इर्दगिर्द मंडराती रहती. जानबूझ कर वह साड़ी का पल्लू सरका कर रखती. उस के गोरे खूबसूरत बदन को संदीप जब चोर निगाहों से घूरता तो मंजू के दिल में शहनाइयां बज उठतीं.

वह चाहती कि संदीप उस के साथ छेड़छाड़ करे मगर लोकलाज के डर और घबराहट के चलते संदीप ऐसा कुछ नहीं कर पाता था.

संदीप की तरफ से कोई पहल न होते देख मंजू उस के और भी करीब आने लगी. वह उस का खूब खयाल रखती. बातोंबातों में वह संदीप को छेड़ने लगती. कभी उस के बालों में हाथ फिराती तो कभी उस के बदन को सहलाती. कभी चिकोटी काट कर वह खिलखिलाने लगती तो कभी उस के हाथों को अपने सीने पर रख कर कहती, ‘‘देवरजी, देखो मेरा दिल कैसे धकधक कर रहा है…’’

जवान औैर खूबसूरत भाभी की मोहक अदाओं से संदीप के मन के तार झनझना उठते. उस के तनबदन में आग सी लग जाती. वह भला कब तक खुद को रोके रखता. धीरेधीरे वह भी खुलने लगा.

देवरभाभी एकदूसरे से चिपके रहने लगे. दोनों खूब हंसीठिठोली करते व एकदूसरे की चुहलबाजियों से खूब खुश होते. अपने हाथों से एकदूसरे को खाना खिलाते. साथसाथ घूमने जाते. कभी पार्क में समय बिताते तो कभी सिनेमा देखने चले जाते. एकदूसरे का साथ उन्हें अपार सुख से भर देता.

दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. संदीप के प्यार से मंजू को बेहद खुशी मिलती. हंसतीखिलखिलाती मंजू को संदीप बांहों में भर कर चूम लेता तो कभी गोद में उठा लेता. कभी उस के सीने पर सिर रख कर संदीप कहता, ‘‘इस दिल में अपने लिए जगह ढूंढ़ रहा हूं. मिलेगी क्या?’’

‘‘चलो देवरजी, फिल्म देखने चलते हैं,’’ एक दिन मंजू बोली.

‘‘हां भाभी, चलो. अजंता टौकीज में नई फिल्म लगी है,’’ संदीप खुश हो कर बोला और कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में चला गया.

मंजू कपड़े बदलने के बाद आईने के सामने खड़ी हो कर बाल संवारने लगी. अपना चेहरा देख कर वह खुद से ही शरमा गई. बनठन कर जब वह निकली तो संदीप उसे देखता ही रह गया.

‘‘तुम इस तरह क्या देख रहे हो देवरजी?’’ तभी मंजू इठलाते हुए हंस कर बोली.

अचानक संदीप ने मंजू को पीछे से बांहों में भर लिया और उस के कंधे को चूम कर बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत लग रही हो, भाभी. काश, हमारे बीच यह रिश्ता न होता तो कितना अच्छा होता?’’

‘‘अच्छा, तो तुम क्या करते?’’ मंजू शरारत से बोली.

‘‘मैं झटपट शादी कर लेता,’’ संदीप ने कहा.

‘‘धत…’’ मंजू शरमा गई. लेकिन उस के होंठों पर मादक मुसकान बिखर गई. देवर का प्यार जताना उसे बेहद अच्छा लगा.

खैर, वे दोनों फिल्म देखने चल पड़े. फिल्म देख कर जब वे बाहर निकले तो अंधेरा हो चुका था. वे अपनी ही धुन में बातें करते हुए घर लौट पड़े. उन्हें क्या पता था कि 2 बदमाश उन का पीछा कर रहे हैं. रास्ता सुनसान होते ही बदमाशों ने उन्हें घेर लिया और बदतमीजी करने लगे. यह देख कर संदीप डर के मारे कांपने लगा.

‘‘जान प्यारी है तो तू भाग जा यहां से वरना यह चाकू पेट में उतार दूंगा,’’

एक बदमाश दांत पीसता हुआ संदीप के आगे गुर्राया.

‘‘मुझे मत मारो. मैं मरना नहीं चाहता,’’ संदीप गिड़गिड़ाने लगा.

‘‘जा, तुझे छोड़ दिया. अब फूट ले यहां से वरना…’’

‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ संदीप. मुझे बचा लो…’’ तभी मंजू घबराए लहजे में बोली.

लेकिन संदीप ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. वह वहां से भाग खड़ा हुआ. सारे बदमाश हो… हो… कर हंसने लगे.

मंजू उन की कैद से छूटने के लिए छटपटा रही थी पर उस का विरोध काम नहीं आ रहा था. बदमाश मंजू को अपने चंगुल में देख उसे छेड़ते हुए जबरदस्ती खींचने लगे. वे उस के कपड़े उतारने की फिराक में थे.

‘‘बचाओ…बचाओ…’’ मंजू चीखने लगी.

‘‘चीखो मत मेरी रानी, गला खराब हो जाएगा. तुम्हें बचाने वाला यहां कोई नहीं है. तुम्हें हमारी प्यास बुझानी होगी,’’ एक बदमाश बोला.

‘‘हाय, कितनी सुंदर हो? मजा आ जाएगा. तुम्हें पाने के लिए हम कब से तड़प रहे थे?’’ दूसरे बदमाश ने हंसते हुए कहा.

बदमाशों ने मंजू का मुंह दबोच लिया और उसे घसीटते हुए ले जाने लगे. मंजू की घुटीघुटी चीख निकल रही थी. वह बेबस हो गई थी. इत्तिफाक से प्रदीप अपने दोस्त अजय के साथ उसी रास्ते से गुजर रहा था. चीख सुन कर उस के कान खड़़े हो गए.

‘‘यह तो मंजू की आवाज लगती है. जल्दी चलो,’’ प्रदीप अपने दोस्त अजय से बोला.

दोनों तेजी से घटनास्थल पर पहुंचे. अजय ने टौर्च जलाई तो बदमाश रोशनी में नहा गए. बदमाश मंजू के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे. मंजू लाचार हिरनी सी छटपटा रही थी.

प्रदीप और अजय फौरन बदमाशों पर टूट पड़े. उन दोनों ने हिम्मत दिखाते हुए उन की पिटाई करनी शुरू कर दी. मामला बिगड़ता देख बदमाश भाग खडे़ हुए, लेकिन जातेजाते उन्होंने प्रदीप को जख्मी कर दिया.

मंजू ने देखा कि प्रदीप घायल हो गया है. वह जैसेतैसे खड़ी हुई और सीने से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. उस ने अपने आंसुओं से प्रदीप के सीने को तर कर दिया.

‘‘चलो, घर चलें,’’ प्रदीप ने मंजू को सहारा दिया.

उन्हें घर पहुंचा कर अजय वापस चला गया. मंजू अभी भी घबराई हुई थी. पर धीरेधीरे वह ठीक हुई.

‘‘यह क्या… आप के हाथ से तो खून बह रहा है. मैं पट्टी बांध देती हूं,’’ प्रदीप का जख्म देख कर मंजू ने कहा.

‘‘मामूली सा जख्म है, जल्दी ठीक हो जाएगा,’’ प्रदीप प्यार से मंजू को देखते हुए बोला.

मंजू के दिल में पति का प्यार बस चुका था. प्रदीप से नजर मिलते ही वह शरमा गई. वह मासूम लग रही थी. उस का प्यार देख कर प्रदीप की आंखें छलछला आईं.

बीवी का सच्चा प्यार पा कर प्रदीप के वीरान दिल में हरियाली छा गई. वह मंजू को अपनी बांहों में भरने के लिए मचल उठा.

इतने में मंजू का देवर संदीप सामने आ गया. वह अभी भी घबराया हुआ था. बड़े भाई के वहां से जाने के बाद संदीप ने अपनी भाभी का हालचाल पूछना चाहा तो मंजू ने उसे दूर रहने का इशारा किया.

‘‘तुम ने तो मुझे बदमाशों के हवाले कर ही दिया था. अगर मेरे पति समय पर न पहुंचते तो मैं लुट ही गई थी. कैसे देवर हो तुम?’’ जब मंजू ने कहा तो संदीप का सिर शर्म से झुक गया.

इस एक घटना ने मंजू की आंखें खोल दी थीं. अब उसे अपना पति ही सच्चा हमदर्द लग रहा था. वह अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. Best Hindi Story

Hindi Kahani: वह बदनाम लड़की – आकाश की जिंदगी में कैसे आया भूचाल

Hindi Kahani: आकाश जैसे एक खूब पढ़ेलिखे व काबिल इनसान की एक कालगर्ल से यारी…? यकीन मानिए, वह अपनी पत्नी प्रिया को पूरा प्यार देने वाला अच्छा इनसान है और हवस मिटाने के लिए यहांवहां झांकना भी उसे हरगिज गवारा नहीं है. इस के बावजूद वह टीना को दिलोजान से चाहता है, उस की इज्जत करता है.

आप के दिमाग में चल रही कशमकश मिटाने के लिए हम आप को कुछ पीछे के समय में ले चलते हैं. कुछ साल हो गए हैं आकाश को बैंगलुरु आए हुए. एक छोटे कसबे से निकल कर इस महानगरी की एक निजी कंपनी में जब क्लर्की का काम मिला तो पत्नी प्रिया को भी वह अपने साथ यहां ले आया था और उस के नन्हेमुन्ने प्रियांशु ने भी यहीं पर जन्म लिया था.

औफिस से अपने किराए के घर और घर से औफिस, यही आकाश की दिनचर्या बन चुकी थी. ऐसे ही एक दिन वह बस में सवार हो कर औफिस जा रहा था कि कंडक्टर की बहस ने उस का ध्यान खीच लिया. एक बेहद हसीन लड़की शायद पैसे घर पर ही भूल आई थी और कंडक्टर बड़े शांत भाव से पैसों का तकाजा कर रहा था. उस लड़की के चेहरे के भाव उस की परेशानी बयां करने के लिए काफी थे.

न जाने आकाश के मन में क्या आया कि उस ने लड़की के टिकट के पैसे अदा कर दिए. वह उसे ‘थैंक्स’ कह कर पीछे की सीट पर बैठ गई. आकाश ने भी पैसों को ज्यादा तवज्जुह नहीं दी और अपना स्टौप आते ही नीचे उतर गया.

आकाश कुछ कदम ही चला था कि हांफते हुए वह लड़की एकदम उस के आगे आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘सर… आप के पैसे मैं कल लौटा दूंगी. हुआ यह कि मैं आज जल्दी में अपने पर्स में पैसे डालना ही भूल गई.’’

आकाश ने उस का चेहरा देखा तो अपलक निहारता ही रह गया. फिर जैसे उसे अपनी हालत का बोध हुआ. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैडम, वह इनसान ही क्या, जो इनसान के काम न आए. आप पैसों की टैंशन न लें.’’

‘‘नहीं सर, आप ने आज मुझे शर्मिंदा होने से बचा लिया. प्लीज, मुझे अपना घर या औफिस का पता बता दें. मैं किसी का अहसान नहीं रख सकती.’’

‘‘तो फिर कल मैं बिना टिकट बस में चढ़ूंगा. आप मेरा टिकट ले कर अहसान चुका देना,’’ आकाश के इस अंदाज ने उस लड़की के होंठों पर हंसी बिखेर दी.

साथसाथ चलते हुए आकाश को पता चला कि उस का नाम टीना है और वह प्राइवेट नौकरी करती है. काम के बारे में पूछने पर वह हंस कर टाल गई. साथ ही, यह भी पता चला कि वह इस महानगरी के पौश इलाके छायापुरम में रहती है. बाकी उस की बातें, उस का लहजा उस के ज्यादा पढ़ेलिखे होने का सुबूत दे ही रहा था.

आकाश ने उसे वापसी के खर्च के लिए 100 रुपए देने चाहे, लेकिन उस ने कहा कि उस की सहेली इस जगह काम करती है. वह उस से पैसा ले लेगी.

आकाश के औफिस का पता ले कर पैसे आजकल में लौटाने की बात कह कर वह चली गई. न जाने उस छोटी सी मुलाकात में क्या जादू था कि आकाश दिनभर टीना के बारे में ही सोचता रहा.

अगले दिन आकाश ने टीना का इंतजार किया, पर वह नहीं आई. कुछ दिन बीत गए. आकाश के दिमाग से अब वह पूरा वाकिआ निकल ही गया था.

आज काम की भारी टैंशन थी. आकाश अपने केबिन में फाइलों में सिर खपाए बैठा था कि किसी ने पुकारा, ‘‘हैलो, सर.’’

काम की चिंता में गुस्से से सिर उठाया तो सामने टीना को देख आकाश का सारा गुस्सा काफूर हो गया.

‘‘सौरी सर, मैं आप के पैसे तुरंत नहीं लौटा पाई. दरअसल, मेरा इस तरफ आना ही नहीं हुआ,’’ वह एक ही सांस में कह गई.

आकाश ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए चपरासी को कौफी लाने को बोल दिया. इस बीच उन दोनों में हलकीफुलकी बातों का दौर शुरू हो गया.

आकाश को अच्छा लगा, जब टीना ने उस के बारे में, उस के परिवार और उस के शौक का भी जायजा लिया. लेकिन तब तो और भी अच्छा लगा, जब आकाश के शादीशुदा होने की बात सुन कर भी उस के चेहरे पर किसी तरह के नैगेटिव भाव नहीं उभरे.

आकाश अंदाजा लगाने लगा कि टीना उस के बारे में क्या सोच बना रही होगी, पर वह नहीं चाहता था कि उस से बातों का यह सिलसिला यहीं टूट जाए.

आकाश की इस हालत को टीना ने भी महसूस किया और कौफी की घूंट भर कर कहा, ‘‘आकाशजी, आज तक न जाने मैं कितने मर्दों से मिली हूं लेकिन आप से जितनी प्रभावित हुई हूं, उतनी कभी किसी से नहीं हुई.’’

आकाश खुद पर ही इतरा गया. आखिर में उस के जज्बात शब्दों में उमड़ ही आए, ‘‘क्या हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं?’’

टीना ने मूक सहमति तो दी, लेकिन यह भी साफ कर दिया कि आकाश के शादीशुदा होने के चलते उस की पत्नी प्रिया को वह दोस्ती हरगिज गवारा नहीं होगी. पर आकाश का बावला मन तो किसी भी तरह उस के साथ के लिए छटपटा रहा था. आकाश ने बचकाने अंदाज में बोल दिया, ‘‘हमारी दोस्ती के बारे में प्रिया को कभी पता नहीं चलेगा. मैं दोस्ती तो निभाऊंगा, पर पति धर्म मेरे लिए बढ़ कर होगा.’’

टीना ने सहमति जताई और आकाश को अपना मोबाइल नंबर दे कर चली गई. आकाश फिर से अपने काम में जुट गया. फाइलों का जो ढेर उसे सिरदर्दी दे रहा था, अब वह पलक झपकते ही निबट गया.

मोबाइल फोन पर मैसेज और बातों का सिलसिला शुरू हो गया. शाम को टीना ने आकाश को अपने घर बुला लिया. घर क्या आलीशान बंगला था, जिस के आसपास सन्नाटा पसरा हुआ था. टीना के दरवाजा खोलते ही शराब का तेज भभका आकाश की नाक से टकराया. टीना ने उसे भीतर बुला कर दरवाजा बंद कर दिया.

आकाश कुछ सोचनेसमझने की कोशिश करता, इस से पहले ही टीना ने उसे बैठने का संकेत किया और खुद उस के सामने सोफे पर पसर गई और बोली, ‘‘तुम मेरा यह अंदाज देख कर हैरान हो रहे होगे न. दरअसल, आज मैं तुम से अपनी जिंदगी के कुछ गहरे राज बांटना चाहती हूं.’’

चंद पल चुप रहने के बाद टीना बोली, ‘‘हम अपनी जिंदगी में एक नकाब ओढ़े रहते हैं. यह ऊपर का जो चेहरा है न, यह सब को दिखता है, पर जो चेहरा अंदर है उसे कोई दूसरा नहीं देख पाता. तुम भी सोच रहे होगे कि मैं कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हूं. पर आकाश, मैं ने तुम्हारे अंदर एक सच्चा इनसान, एक सच्चा दोस्त देखा है

जो जिस्म नहीं, दिल देखता है. और इस दोस्त से मैं भी कुछ छिपा

कर नहीं रखना चाहती… तुम मेरी नौकरी पूछते थे न? तो सुनो, मैं एक कालगर्ल हूं,’’ इतना कह कर वह ठिठक गई.

आकाश को झटका सा लगा. उस के होंठ कुछ कहने को थरथराए, इस से पहले ही टीना बोली, ‘‘मेरी कोई मजबूरी नहीं थी, न ही किसी ने मुझे जबरन इस धंधे में धकेला. मेरे बीटैक होने के बावजूद कोई भी नौकरी, कोई भी तनख्वाह मेरी ऐशोआराम की जरूरतें, मेरे शाही ख्वाब पूरे नहीं कर सकती थी, इसलिए मैं ने अपने रूप, अपनी जवानी के मुताबिक देह का धंधा चुना. तुम यह जो आलीशान फ्लैट देख रहे हो, यह मैं नौकरी कर के कभी नहीं बना सकती थी.

‘‘आकाश, मैं ने बहुत पैसा कमाया, बहुत संबंध बनाए, लेकिन रिश्ता नहीं कमा सकी. मैं कोई ऐसा शख्स चाहती थी जिसे मैं खुल कर अपनी भावनाएं साझा कर सकूं. लेकिन हर किसी की नजरें मेरे जिस्म से हो कर गुजरती थीं. यही वजह है कि तुम्हारे अंदर की सचाई देख कर मैं खुद तुम्हारी दोस्ती को उतावली थी. पर मुझे यह मंजूर नहीं

हो रहा था कि मैं अपने दोस्त को अंधेरे में रखूं,’’ कह कर उस ने आकाश को सवालिया नजरों से देखा.

‘‘टीना, मैं तुम्हारे काम के बारे में सुन कर चौंका तो जरूर हूं, लेकिन मुझे झटका नहीं लगा. तुम ने जिस बेबाकी से मुझे अपने बारे में बताया, उसे जान कर मेरी दोस्ती और गहरी हुई है.

‘‘मेरी जानकारी में ऐसी कई और भी लड़कियां और औरतें हैं, जिन्होंने शराफत का चोला ओढ़ रखा है, लेकिन उन के नाजायज रिश्तों ने आपसी रिश्तों को ही बदनाम कर दिया है. भले ही यह पेशा अपनाना तुम्हारी मजबूरी न हो, लेकिन दिलोदिमाग और जिस्मानी मेहनत तो इस में भी है. हर किसी को अपनी जरूरत के मुताबिक काम चुनने का हक है. कानून और समाज भले ही इसे नाजायज माने, लेकिन मैं इस में कुछ भी गलत नहीं मानता.’’

‘‘दोस्त, मैं तुम्हारी सोच की कायल हूं. अच्छा यह बताओ, क्या पीना चाहोगे…’’

‘‘फिलहाल तो मैं कुछ नहीं लूंगा. अच्छा, तुम्हारे परिवार में और कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरी मम्मी बचपन में ही चल बसी थीं और पापा की मौत 2 साल पहले हुई. वे इलाहाबाद में रहते थे लेकिन अपनी आजादी के चलते मैं ने बैंगलुरु आना ही मुनासिब समझा. अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारा चेहरा क्यों लटका हुआ है.’’

‘‘कोई खास बात नहीं है,’’ कह कर आकाश ने टालने की कोशिश की, पर टीना के जोर देने पर उसे बताना पड़ा, ‘‘मेरा नया बौस मुझे बेवजह परेशान कर रहा है.’’

‘‘चिंता न करो. सब ठीक हो जाएगा. अब तो मेरे हाथ की बनी कौफी ही तुम्हारा मूड ठीक करेगी,’’ टीना ने कहा.

कौफी वाकई उम्दा बनी थी. तरावट महसूस करते हुए आकाश ने उस से विदा लेनी चाही. न जाने आकाश के दिल में क्या भाव उभरे कि उस ने टीना से लिपट कर उस का चेहरा चूमना चाहा, तो वह छिटक कर पीछे हट गई और बोली, ‘‘दोस्त, दूसरों और तुम्हारे बीच में बस यही तो फासला है. क्या इसे भी मिटाना चाहोगे…’’

गर्मजोशी से इनकार में सिर हिलाते हुए आकाश ने उस से विदा ली.

अगले 2 दिनों में बौस के तेवर बिलकुल बदले देखे तो आकाश को यकीन न हुआ. साथ में काम करने वालों में से एक ने कहा, ‘‘यार, क्या जादू चलाया है तू ने? कल तक तो यह तुझे काट खाने को दौड़ता था और अब तो तेरा मुरीद हो कर रह गया है. अब तो तेरी प्रमोशन पक्की.’’

अगले ही महीने आकाश का प्रमोशन कर दिया गया. जब उस ने यह खुशखबरी टीना को सुनाई, तो उस ने मुबारकबाद दी.

आकाश ने पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ टीना?’’

‘‘बौस शायद तुम्हारे काम से खुश हो गया होगा.’’

‘‘टीना, प्लीज सच क्या है?’’

‘‘सच तो यह है कि मुझ से अपने दोस्त का लटका चेहरा देखा नहीं गया और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘और यह कि सख्त दिखने वाले बुढ़ऊ ही महफिल में हुस्न के तलबे चाटते हैं. वैसे, तुम चिंता न करो. उसे मेरी और तुम्हारी दोस्ती की कोई खबर नहीं है.’’

‘‘टीना, मेरे लिए तुम ने…’’

‘‘बस, अब भावुक मत होना. और कोई परेशानी हो तो साफ बताना.’’

उस दिन से आकाश के मन में टीना के लिए और ज्यादा इज्जत बढ़ गई. वह उस के लिए सच्चे दोस्त से बढ़ कर साबित हुई.

कुछ दिन बाद जब आकाश ने अपने लिए एक छोटा सा घर खरीदने के लिए बैंक के कर्ज के बावजूद 2 लाख रुपए कम पड़े तो टीना ने उसे इस मुसीबत से भी उबार दिया.

हालांकि आकाश ने उसे वचन दिया कि भविष्य में वह यह रकम उसे जरूर वापस लौटाएगा.

अब आकाश के दिल में टीना के लिए प्यार की भावना उछाल मारने लगी थी. लेकिन उस ने कभी इन जज्बातों को खुद पर हावी न होने दिया. वह औफिस से छुट्टी के बाद आज शाम को फिर टीना के घर पर था.

‘‘टीना, मैं तुम्हारा सब से अच्छा दोस्त हूं तो फिर मुझ से ऐसी दूरी क्यों?’’

‘‘आकाश, अकसर हम मतलबी बन कर दूसरे रिश्तों खासकर अपनों को भूल जाते हैं. फिर क्या तुम नहीं मानते कि दोस्ती दिलों में होनी चाहिए, जिस्म की तो भूख होती है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं समझना चाहता. मेरे लिए तुम ही सबकुछ हो…’’ भावनाओं के जोश में आकाश ने लपक कर उसे अपनी बांहों के घेरे में कस लिया. उस के लरजते लबों ने जैसे ही टीना के तपते गालों को छुआ, उस की आंखें

मुंद गईं. सांसों के ज्वारभाटे के साथ ही उस की बांहें भी आकाश पर कसती चली गईं.

‘टिंगटांग…’ तभी दरवाजे की घंटी बजते ही टीना आकाश से अलग हुई. उसे जबरन एक तरफ धकेल कर टीना ने दरवाजा खोला. कोरियर वाला उसे एक लिफाफा थमा कर चला गया. आकाश ने लिफाफे की बाबत पूछा तो उस ने लिफाफा अलमारी में रख कर बात टाल दी.

जब आकाश ने दोबारा उसे अपनी बांहों में लिया तो उस ने आहिस्ता से खुद को उस की पकड़ से छुड़ा लिया और बोली, ‘‘नहीं आकाश, यह सब करना ठीक नहीं है.’’

आकाश नाराजगी जताते हुए वहां से चला गया.

अगले दिन जब सुबह टीना ने मोबाइल फोन पर बात की तो आकाश ने काम का बहाना बना कर फोन काट दिया. वह चाहता था कि टीना को अपनी गलती का अहसास हो.

रात को 10 बजे मोबाइल फोन बज उठा. टीना का नंबर देख कर आकाश कांप गया. नजर दौड़ाई. प्रिया और प्रियांशु सो रहे थे. उस ने फोन काट दिया. मोबाइल फोन फिर बजने पर आकाश ने रिसीव किया तो उधर से टीना का बड़ा धीमा स्वर सुनाई दिया. ‘‘हैलो आकाश, कैसे हो? नाराज हो न?’’

आकाश नहीं चाहता था कि प्रिया उठ जाए और उसे टीना की भनक तक लगे, इसलिए फौरन कहा, ‘‘नहीं, नाराज नहीं. कहो, कैसे याद किया?’’

‘‘दोस्त, तुम्हारी बड़ी याद आ रही है. मैं तुम्हें अभी अपने पास देखना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं देखता हूं.’’

तभी प्रिया ने करवट बदली तो आकाश ने फोन काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया. अब जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था. प्रिया को क्या जवाब देगा भला… और टीना को इस समय फोन करने की क्या सूझी? कल तक इंतजार नहीं कर सकती थी?

इसी उधेड़बुन में आकाश की आंख लग गई.

सुबह उठते ही प्रिया ने रोज की तरह अखबार की सुर्खियों को टटोलते हुए कहा, ‘‘छायापुरम में अकेली रहने वाली कालगर्ल की मौत.’’

आकाश फौरन बिस्तर से उठ कर बैठ गया. खबर में उस की उत्सुकता देख प्रिया ने पूरी खबर पढ़ी, ‘‘छायापुरम में तनहा जिंदगी बसर करने वाली टीना की कल देर रात ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई. वह देह धंधे से जुड़ी बताई जाती थी. डाक्टर के मुताबिक टीना काफी समय से दिमागी कैंसर से पीडि़त थी. कल रात हालत बिगड़ने पर पड़ोसियों ने उसे अस्पताल पहुंचाया, लेकिन रास्ते में ही उस ने दम तोड़ दिया.’’

खबर पढ़ने के बाद प्रिया ने कह दिया, ‘‘ऐसी औरतों का तो यही हश्र होता है,’’ और उस ने आकाश की तरफ देखा.

आकाश की आंखों में पानी देख कर उस ने वजह पूछी. आकाश ने सफाई दी, ‘‘कुछ नहीं, आंखों में कचरा चला गया है. मैं अभी आंखें धो कर आता हूं.’’ Hindi Kahani

Family Story In Hindi: घर का सादा खाना – प्रिया की उलझन

Family Story In Hindi: अनिल और बच्चे शुभम व शुभी औफिस चले गए तो प्रिया कुछ देर बैठ कर पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. अचानक नजर नई रैसिपी पर पड़ी. पढ़ते ही मुंह में पानी आ गया. सामग्री देखी. सारी घर में थी. प्रिया को नईनई चीजें ट्राई करने का शौक था.

खानेपीने का शौक था तो ऐक्सरसाइज कर के अपने वेट पर भी पूरी नजर रखती थी. एकदम बढि़या फिगर थी. कोई शारीरिक परेशानी भी नहीं थी. वह अपनी लाइफ से पूरी तरह संतुष्ट थी. बस आजकल अनिल और बच्चों पर घर का सादा खाना खाने का भूत सवार था.

प्रिया अचानक अपने परिवार के बारे में सोचने लगी. अनिल हमेशा से बिग फूडी रहे हैं पर अब अचानक अपनी उम्र की, अपनी सेहत की कुछ ज्यादा ही सनक रहने लगी है. हैल्दी रहने का शौक तो पूरे परिवार को है पर यह कोई बात थोड़े ही है कि इंसान एकदम उबली सब्जियों पर ही जिंदा रहे और वह भी तब जब कोई तकलीफ भी न हो. उस पर मजेदार बात यह हो कि औफिस में सब चटरपटर खा लें पर घर पर कुछ टेस्टी बन जाए तो सब की नजर तेल, मसाले, कैलोरीज पर रहे.

अब टेस्टी चीजें कैलोरीज वाली होती हैं तो प्रिया की क्या गलती है. उस के पीछे पड़ जाते हैं सब कि कितना हैवी खाना बना दिया है. आप को पता नहीं कि हैल्दी खाना चाहिए. भई, मुझे तो यह भी पता है कि कभीकभी खा भी लेना चाहिए. इस बात पर आजकल प्रिया का मूड खराब हो जाता है. भई, तुम लोग इतने हैल्थ कौंशस हो तो औफिस में भी उबला खाओ.

शाम को कभी किसी से पूछ लो कि आज औफिस में क्या खाया तो ऐसीऐसी चीजें बताई जाती हैं कि प्रिया की नजरों के सामने घूम जाती हैं और उस के मुंह में पानी आ जाता है.

मन में दुख होता है कि मैं जब मूंग की दाल और लौकी की सब्जी खा रही थी, तो ये लोग पिज्जा और बिरयानी खा रहे थे और अनिल का यह ड्रामा रहता है कि टिफिन घर से ही ले कर जाना है, उन्हें घर का सादा खाना ही खाना है.

वह सुबह उठ कर 3-3 हैल्दी टिफिन तेयार करती है और शाम को पता चलता है कि लजीज व्यंजन उड़ाए गए हैं. खून जल जाता है प्रिया का. यह उस की गलती है न कि वह एक हाउसवाइफ है, घर में रहती है, रोज बाहर जा कर कभी कुछ डिफरैंट नहीं खा पाती. उसे तो वही खाना है न जो टिफिन के लिए बना हो. वह कहां जा कर अपना टेस्ट बदले.

किट्टी पार्टी एक दिन होती है, अच्छा लगता है. आजकल तो कभी जब वीकैंड में बाहर खाना खाने जाते हैं, तो प्रिया मेनू कार्ड देखते हुए मन ही मन एक से एक बढि़या नई डिशेज देख ही रही होती है कि अनिल फरमाते हैं कि सूप और सलाद खाते हैं. प्रिया को तेज झटका लगता है. सूप तो पसंद है उसे पर सलाद? यह क्या है, क्यों हो रहा है उस के साथ ऐसा?

पास्ता, वैज कबाब, कौर्न टिक्की और दही कबाब, जो उस की जान हैं, इन में आजकल अनिल को ऐक्स्ट्रा तेल नजर आ रहा है. भई, जब वह अब तक अपने परिवार की हैल्थ का ध्यान रखती आई है तो फिर कभीकभी तो ये सब खाया जा सकता है न? सलाद खाने तो वह नहीं आई है न 20 दिन बाद बाहर?

बच्चों ने भी जब अनिल की हां में हां मिलाई तो प्रिया सुलग गई और सूप व सलाद खाती रही. मन में तो यही चल रहा था कि ढोंगी लोग हैं ये. यह शुभम अभी 2 दिन पहले अपने फ्रैंड्स के साथ बारबेक्यू नेशन में माल उड़ा कर आया है और यह शुभी की बच्ची औफिस में तरहतरह की चीजें खा कर आती है.

शाम को घर आ कर कहती है कि मौम, डिनर हलका दिया करो, स्नैक्स हैवी हो जाते हैं. अरे भई, मेरी भी तो सोचो तुम लोग, घर का सादा खाना खाने का गाना मुझे क्यों सुनाते हो… मेरी जीभ रो रही है… अब क्या टेस्टी, मजेदार खाना खाने के लिए तुम लोगों को सचमुच रो कर दिखाऊं… अगर अच्छीअच्छी चीजें खाने के लिए सचमुच किसी दिन रोना आ गया न मुझे तो पता है मुझे, सारी उम्र मेरा मजाक उड़ाया जाएगा.

अभी अनिल की 5 दिन की मीटिंग थी. रोज शानदार लंच था. सुबह ही बता जाते कि शाम को कुछ खिचड़ी टाइप चीज बना कर रखना. कुछ दिन लंच बहुत हैवी रहेगा. मेरी आंखों में आंसू आतेआते रुके. शुभम और शुभी वीकैंड में अपने दोस्तों के साथ बाहर ही लाइफ ऐंजौय कर लेते हैं. बचा कौन? मैं ही न?

अब खाने के लिए रोना उसे भी अच्छा नहीं लग रहा है पर क्या करे, मन तो होता है न कभीकभी कुछ बाहर टेस्टी खाने का… कभीकभी अनहैल्दी भी चलता है न… यहां तक कि इन तीनों ने चाट खाना भी बंद कर दिया है, क्योंकि तीनों का औफिस में कुछ न कुछ बाहर का खाना हो ही जाता है.

अब बताइए, 6 महीनों में कभी छोलों के साथ भठूरे नहीं बन सकते? पर नहीं, रात में जैसे ही छोले भिगोती हूं, तीनों में से कोई भी शुरू हो जाता है कि भठूरे मत बनाना, बस रोटी या राइस… मन होता है छोलों का पतीला बोलने वाले के सिर पर पलट दूं… यह जरूरी क्यों हो कि घर में बस सादा ही खाना बने?

घर में भी तो कभी टेस्ट चेंज किया जा सकता है न?

पता नहीं तीनों कौन से प्लैनेट के निवासी बनते जा रहे हैं. यही फलसफा बना लिया है कि घर में खाएंगे तो सादा ही (बाकी माल तो बाहर उड़ा ही लेंगे.

पिछली किट्टी पार्टी में अगर अंजलि के घर खाने में पूरियां न होतीं, तो पूरियां खाए उसे साल हो जाता. बताओ जरा, उत्तर भारतीय महिला को अगर पूरियां खाए साल हो रहा हो तो यह कहां का न्याय है? अब कभी रसेदार आलू की सब्जी या पेठे की सब्जी, रायते के साथ पूरी नहीं खा सकते क्या? अहा, मन तृप्त हो जाता था खा कर. अब ये ढोंगी लोग कहते हैं कि हमारे लिए तो रोटी ही बना देना. अब अपने लिए 2-3 पूरियों के लिए कड़ाही चढ़ाती अच्छी लगूंगी क्या?

बस अब प्रिया के हाथ में था गृहशोभा का सितंबर, द्वितीय अंक और रैसिपी थी सामने गोभी पकौड़ा और अचारी मिर्च पकौड़ा. 2-3 बार दोनों रैसिपीज पढ़ीं. मुंह पानी से भर गया. पढ़ कर ही इतना खुश हुआ दिल… खा कर कितना मजा आएगा… बहुत हो गया घर का सादा खाना और सब से अच्छी बात यह है कि गोभी, समोसे बेक करने का भी औप्शन था तो वह बेक कर लेगी. तीनों कम रोएंगे, थोड़ा पुलाव भी बना लेगी, परफैक्ट, बस डन.

तीनों लगभग 8 बजे आए. आज प्रिया का चेहरा डिनर के बारे में सोच कर ही चमक रहा था. वैसे तो बनातेबनाते भी 2-3 समोसे खा चुकी थी… मजा आ गया था. पेट और जीभ बेचारे थैंक्स ही बोलते रहे थे जैसे तरसे हुए थे दोनों मुद्दतों से…

चारों इकट्ठा हुए तो प्रिया ने ‘आज फिर जीने की तमन्ना है…’ गाना गाते हुए खाना लगाया तो तीनों ने टेबल पर नजर दौड़ाई. अनिल के माथे पर त्योरियां पड़ गईं, ‘‘फ्राइड समोसे डिनर में? प्रिया, क्यों तुम सब की हैल्थ के लिए केयरलैस हो रही हो?’’

‘‘अरे, समोसे बेक्ड हैं, डौंट वरी.’’

‘‘पर मैदे के तो हैं न?’’

प्रिया का मन हुआ बोले कि कल जो पिज्जा उड़ाया था वह किस चीज का बना था? पर लड़ाईझगड़ा उस की फितरत में नहीं था. इसलिए चुप रही.

शुभम ने कहा, ‘‘मां, पकौड़े तो फ्राइड हैं न? मैं सिर्फ पुलाव खाऊंगा.’’

प्रिया ने शुभी को देखा, तो वह बोली, ‘‘मौम, आज औफिस में रिया ने बहुत भुजिया खिला दी… अब भी खाऊंगी तो बहुत फ्राइड हो जाएगा… मैं पुलाव ही खाऊंगी.’’

डिनर टाइम था. सब सुबह के गए अब एकसाथ थे. शांत रहने की भरसक कोशिश करते हुए प्रिया ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम लोग सिर्फ पुलाव खा लो,’’

अनिल ने एक समोसा उस का मूड देखते हुए चख लिया, बच्चों ने पुलाव लिया. प्रिया ने जब खाना शुरू किया, सारा तनाव भूल उस का मन खिल उठा. जीभ स्वाद ले कर जैसे लहलहा उठी. आंसू भर आए, इतना स्वादिष्ठ घर का खाना. वाह, कितने दिन हो

गए, वह खुद रोज कौन सा तलाभुना खाना चाहती है, पर घर में भी कभी कुछ स्वादिष्ठ बन सकता है न… महीने में एक बार ही सही, पर यहां तो हद ही हो गई थी. वह जितनी देर खाती रही, स्वाद में डूबी रही. उस ने ध्यान ही नहीं दिया कौन क्या खा रहा है. उस का तनमन संतुष्ट हो गया था.

सब आम बातें करते रहे, फिर अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. उस दिन जब प्रिया सोने के लिए लेटी, वह मन ही मन बहुत कुछ सोच चुकी थी कि नहीं करेगी वह सब के लिए इतनी चीजों में मेहनत, उसे कभीकभी अकेले ही खाना है न, ठीक है, उस का भी जब मन होगा, खा लेगी. बस एक फोन करने की ही देर है. अपने लिए और्डर कर लिया करेगी… यह बैस्ट रहेगा. उसे कौन सा कैलोरीज वाला खाना रोज चाहिए… कभीकभी ही तो मन करता है न… बस प्रौब्लम खत्म.

उस के बाद प्रिया यही करने लगी. कभी महीने में एक बार अपने लिए पास्ता और्डर कर लिया, कभी सिर्फ स्टार्टर्स और घर में सब खुश थे कि घर में अब सादा खाना बन रहा है. प्रिया तो बहुत ही खुश थी.

उस का जब जो मन होता, खा लेती थी. अपने प्यारे, ढोंगी से लगते अपनों के बारे में सोच कर उसे कभी हंसी आती थी, तो कभी प्यार, क्योंकि उन के निर्देश तो अब भी यही होते थे कि बाहर हैवी हो जाता है, घर में सादा ही बनाना. Family Story In Hindi

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