Social Awareness: जब गले की हड्डी बने बीवी का आशिक

Social Awareness: कहते हैं कि सौत तो पुतले की भी नहीं भाती, लेकिन अब यह कहावत पतियों पर ज्यादा लागू होने लगी है, जो अपनी पत्नियों के आशिकों को पचा नहीं पा रहे हैं.

गांवदेहात से ले कर बड़े शहरों तक शादीशुदा औरतें अब इफरात से उसी तरह इश्क फरमा रही हैं, जिस तरह अब से कोई 30 -40 साल पहले तक मर्द सब्जी मंडी के छुट्टे सांड़ की तरह इधरउधर मुंह मारते फिरते थे और बीवी चूं भी नहीं कर पाती थी.

अब तसवीर बदल रही है. मीडिया में आएदिन ये हैडिंग सुर्खियों में रहती हैं कि पत्नी ने प्रेमी संग मिल कर पति की हत्या की. 3 बच्चों की मां आशिक संग भागी या फिर इस के उलट पति ने पत्नी के प्रेमी को बेरहमी से ठिकाने लगाया या फिर शौहर ने बदचलन बीवी की हत्या की.

नाजायज रिश्ते हमेशा से ही तकलीफदेह हो कर घर उजाड़ते रहे हैं, फिर चाहे वे पति के हों या पत्नी के. इन का अंत कभी सुखद नहीं होता, बल्कि आमतौर पर खूनखराबे से ही होता है.

पत्नी की नाक काटी

लेकिन यह खबर जरा हट कर थी, जिस में पति ने अपनी बेवफा पत्नी की नाक ही चबा डाली. दिलचस्प लेकिन चिंताजनक घटना उत्तर प्रदेश के हरदोई इलाके की बीती 18 जून की है.

32 साला पूजा की शादी देवरिया के एक प्रसिद्धनगर गांव के 36 साला रामखिलावन के साथ कोई 10 साल पहले हुई थी. शादी के बाद 9 साल ठीकठाक और हंसीखुशी गुजरे. दोनों के 2 साल के अंतर से 2 बेटे हुए जिन के नाम उन्होंने पवन और रमन रखे.

लेकिन पिछले एक साल से पूजा गांव के ही 37 साला सुशील कुमार को दिल दे बैठी. प्यार का यह खेल कब और कैसे शुरू हुआ, इस की भनक भी रामखिलावन को नहीं लगी और जब लगी तब तक पानी सिर से गुजर चुका था.

सुशील की पत्नी की मौत कुछ महीने पहले ही हुई है, इस के बाद से वह अकेला था. यह तनहाई पूजा ने दूर कर दी, जिस का जरीया मोबाइल फोन बना. दोनों नएनवेले प्रेमियों की तरह घंटों बतियाने लगे.

जब इस तरफ रामखिलावन का ध्यान गया तो उस ने पूजा को टोकना शुरू कर दिया, जिस पर पूजा यह बहाना बना कर बात को टरका जाती थी कि मायके वालों से बात हो रही है.

गलत नहीं कहा जाता कि इश्क और मुश्क यानी कस्तूरी छिपाए नहीं छिपते. यही पूजा और सुशील के साथ हुआ, जिन पर रामखिलावन को शक तो था, लेकिन कोई सुबूत नहीं था. लिहाजा, वह इस ताक में रहने लगा कि दोनों को रंगे हाथ पकड़ कर उन की पोल खोली जाए और सबक भी सिखाया जाए.

यह मौका रामखिलावन को 18 जून की शाम मिल भी गया, जब पूजा सुशील से मिलने उस के घर चली गई. तब उसे तनिक भी एहसास नहीं हुआ कि रामखिलावन, जो कई दिनों से जासूसों की तरह उस पर नजर रखे हुए है, दबे पैर पीछेपीछे चला आ रहा है.

अभी पूजा सुशील के पास जा कर बैठी ही थी कि झट से पति प्रकट हो गया और उस के बेवक्त सुशील के यहां होने के बाबत सवालजवाब करने लगा. उस ने पूजा से घर चलने को कहा तो पूजा ने जाने से इनकार कर दिया.

इस इनकार ने रामखिलावन के गुस्से में घी डालने जैसा काम किया. बात बढ़ी और बहस से होते मारपीट तक पहुंच गई. हल्ला मचा तो गांव के लोग भी मुफ्त का तमाशा देखने की गरज से इकट्ठा हो गए.

भीड़ देख पूजा ने भी शर्मलाज या लिहाज जो भी कह लें का घूंघट उतार फेंका और रामखिलावन पर ही आरोप लगाने लगी. बेवफाई के बाद की इस बेहयाई पर रामखिलावन और ज्यादा बौखला गया और उस की तरफ झपटा तो अपनी माशूका को बचाने के लिए सुशील बीच में आ गया.

इसी धक्कामुक्की और झगड़े के दौरान गुस्साए रामखिलावन ने पूजा की नाक चबा डाली, जिस से भीड़ भी दहशत में आ गई. पुलिस आई और मामला दर्ज हुआ पूजा और सुशील ने कटी नाक एहतियात से डब्बी में संभाल कर रख ली.

पहले सीएचसी और फिर हरदोई मैडिकल कालेज में पूजा को इलाज के लिए भरती किया गया, जहां डाक्टरों ने उस की नाक की मरहमपट्टी कर उसे लखनऊ रैफर कर दिया. लखनऊ मैडिकल कालेज के डाक्टर उस की कटी नाक जोड़ने की कोशिश में जुट गए.

2 रास्ते या कोई तीसरा भी

लेकिन समाज में जो नाक कटी उस को दुनिया का कोई डाक्टर नहीं जोड़ सकता. एक झटके में एक अच्छीखासी बसीबसाई गृहस्थी उजड़ गई. क्या पूजा या किसी शादीशुदा औरत को गैरमर्द से प्यार करने का हक नहीं? इस सवाल से ही जुड़ा एक अहम सवाल यह भी है कि जब शौहर बीवी की आशिकी से वाकिफ हो जाए तो वह बेचारा क्या करे?

जिन्हें लगता है कि घरवाली ही उन की मर्दानगी को कठघरे में खड़ा कर उन की गैरत और घरखानदान की इज्जत को मिट्टी में मिला रही है. रामखिलावन जैसे पतियों की रात की नींद और दिन का चैन छिन जाता है, जब उन्हें यह पता चल जाता है कि उन की पत्नी किसी गैरमर्द के पहलू में बैठी मौज कर रही है और डंके की चोट पर कर रही है, तो वह बेचारे क्या करे? खामोशी से बीवी को गुलछर्रे उड़ाते देखता रहे या फिर बीवी और उस के आशिक का कत्ल ही कर दे?

पति इन 2 रास्तों में से ज्यादातर दूसरा रास्ता चुनने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिस से उन्हें भी कुछ हासिल नहीं होता सिवा जेल जाने के. लेकिन एक तीसरा रास्ता भी है, जिसे जानने से पहले एक निगाह कुछ उन ताजा हादसों पर डालना जरूरी है, जिन से पता चलता है कि कैसे अब बीवी का आशिक शौहर के गले की हड्डी बनता जा रहा है :

* बैतूल, मध्य प्रदेश. 16 जून, 2025. इस दिन एक शादीशुदा औरत रानी (बदला नाम) अपने आशिक राजा के साथ गुजरात से वापस लौट रही थी. शाहपुर बसस्टैंड पर घेर कर राजा और रानी की जम कर धुनाई पति बलदेव नागले और उस के दर्जनभर साथियों ने की, जिन्होंने रानी को तो कम ही मारा, लेकिन राजा की धुनाई इतनी बेरहमी से की गई कि मौके पर ही उस की मौत हो गई. पुलिस ने 11 लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

* अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. 17 जून, 2025. शहर के गंगीरी इलाके में रहने वाले पेशे से ट्रक ड्राइवर ऋषि की हत्या उस की पत्नी ललिता ने अपने आशिक नीरेश के साथ मिल कर की. नीरेश रिश्ते में ललिता का देवर भी लगता है.

इस मामले में ललिता और नीरेश के संबंध काफी पहले से थे, जिन्हें ले कर ऋषि आएदिन ललिता की पिटाई किया करता था. इस से तंग आ कर ललिता और नीरेश ने उसे रास्ते से ही हटा दिया. अब दोनों प्रेमी जेल में हैं.

* कोटद्वार, उत्तराखंड. 5 जून, 2025. इस दिन एक लाश कोटद्वार, दुगड्डा रोड पर मिली थी, जिस की शिनाख्त दिल्ली के वसंतकुंज के बाशिंदे रविंद्र कुमार के तौर पर हुई. पुलिस जांच में पता चला कि रविंद्र कुमार की हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि उस की ही बीवी रीना सिंधु ने अपने आशिक परितोष कुमार के साथ मिल कर की थी और लाश को उत्तराखंड में यह सोचते हुए फेंक दिया था कि कुछ दिनों में मामला आयागया हो जाएगा और दोनों कहीं और रहने लगेंगे. हत्या करने के बाद वे बिजनौर में रहने भी लगे थे. लेकिन अब वे जेल में हैं.

* भवानी मंडी, झलावाड़, राजस्थान. 20 जून, 2025. पति मनीष और पत्नी सरोज के बीच आ गया था उन का किराएदार रामसेवक, जिस पर सरोज मरमिटी थी. मनीष एक समझदार पति की तरह सरोज को समझाता भी रहता था कि यह सब ठीक नहीं लेकिन सरोज समझनेसमझाने की स्टेज से काफी आगे निकल चुकी थी.

कोई हल न निकलते देख मनीष ने रामसेवक से यह सोचते हुए अपना घर खाली करवा लिया कि दोनों दूर रहेंगे तो चोंच लड़ाना बंद हो जाएगा, लेकिन हुआ उलटा. सरोज और रामसेवक ने सोते हुए मनीष पर खौलता तेल डाल कर उस की हत्या करने की कोशिश की. सरोज ने यूट्यूब पर बौयलिंग औयल वीडियो सर्च कर के यह आइडिया लिया था. अब वह भी जेल में है. पर इस बंदे का गजब काम इन हत्याओं की गिनती दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. पति बदले की आग में जलता रहता है, दूसरी तरफ पत्नी और उस का प्रेमी भी चैन और सुकून से नहीं रह पाते, क्योंकि उन्हें प्यार जताने के अलावा सैक्स सुख के रास्ते में सब से बड़ा रोड़ा पति ही लगता है. ऐसे में उन्हें हत्या के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझता.

कुछ ऐसा ही हाल जौनपुर के अरविंद बिंद नाम के नौजवान का था, जिस की शादी कुछ दिनों पहले ही रीता से हुई थी.

शादी के बाद ही अरविंद को पता चल गया था कि रीता ने मजबूरी और दबाव में उस से शादी की थी, वरना तो वह उन की ही बिरादरी के यशवंत बिंद से प्यार करती थी. शादी के कुछ दिन बाद तक रीता ससुराल में रही पर फिर यशवंत के साथ रहने चली गई.

एक मजबूर और सम?ादार पति की तरह अरविंद ने रीता को समझाने की कोशिश की लेकिन इस का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उलटे उस ने साफसाफ कह दिया कि वह ससुराल में नहीं रहना चाहती और अगर इस बाबत ज्यादा जोरजबरदस्ती की गई, तो वह खुदकुशी कर लेगी.

इस पर अरविंद ने सब्र नहीं खोया, न ही उस ने हत्या जैसा कोई हिंसक रास्ता अख्तियार किया, उलटे उस ने यह फैसला लेते हुए सब को चौंका दिया कि वह खुद अपनी बीवी की शादी उस के आशिक के साथ करवाएगा. अपने कहे पर उस ने अमल भी किया और 16 जून को जौनपुर के दुर्गा मंदिर में रीता और यशवंत की शादी करा दी.

इस अनूठी शादी की चर्चा देशभर में हुई और हर किसी ने अरविंद के फैसले और पहल की तारीफ की.
तलाक है तीसरा रास्ता अरविंद की इस समझदारी से फायदा यह हुआ कि बेकार का खूनखराबा होने से बच गया, जबकि दूसरे मामलों से समझ यही आता है कि हर मामले में हत्या हुई या फिर हिंसा हुई, क्योंकि किसी को कोई हल नहीं सूझ रहा था.

यह भी ठीक है कि हर कोई अरविंद जितनी दिलेरी, बुद्धिमानी और दरियादिली नहीं दिखा सकता, लेकिन इतना तो कर ही सकता है कि न मानने या न समझाने पर पत्नी को तलाक दे दे, जिस से पत्नी भी चैन से अपने आशिक के साथ रहे और वह खुद भी दूसरी शादी कर सके.

यह ठीक है कि तलाक में सालोंसाल लग जाते हैं, लेकिन इस से बचने का भी आसान रास्ता यह है कि तलाक दोनों की रजामंदी से लिया जाए. हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा (13 बी) में यह इंतजाम है कि पतिपत्नी दोनों अदालत जा कर यह दरख्वास्त दें कि अब हमारा साथ रहना मुमकिन नहीं, इसलिए हमे तलाक की डिक्री दी जाए. आमतौर पर इस धारा के तहत एक साल के अंदर तलाक मिल जाता है और अदालतें ज्यादा सवालजवाब भी नहीं करतीं.

जब वजह कुछ भी खासतौर से किसी और से इश्क ही क्यों न हो, जिस के चलते पत्नी साथ नहीं रहना चाहती तो उसे जबरन रहने के लिए मजबूर करना एक हादसे या वारदात को न्योता देने जैसा ही काम है, जिस का खात्मा किसी की हत्या और फिर जेल ही होता है. फिर जिंदगी का भी कोई माने या सुख नहीं
रह जाता.

आपसी रजामंदी से तलाक में ये सारे झंझट आपसी समझौते कर दूर किए जा सकते हैं इन की भी लिखापढ़ी को तलाक के मसौदे में शामिल कर लेना चाहिए. Social Awareness

Social Update: औरतों की अपनी भी जिंदगी है

Social Update, लेखक – डा. इम्तियाज अहमद गाजी

शादीशुदा औरतों के अपने पति को छोड़ कर अपने से कम उम्र के दूसरे लड़कों के साथ भाग जाने की खबरें लगातार आ रही हैं. लगातार हो रही इन घटनाओं में यह साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि औरतें लोकलाज को परे रख कर अपनी निजी जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने को अब प्राथमिकता देने लगी हैं.

एक के बाद एक हो रही घटनाओं से दूसरी औरतों को भी प्रेरणा मिल रही है. ये घटनाएं मर्दों को सावधान करने वाली हैं, साथ ही उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अगाह करने वाली भी हैं. अगर मर्दों ने इन वजहों की तह में जा कर अपनेआप को दुरुस्त नहीं किया तो इस तरह की घटनाएं किसी के भी साथ हो सकती हैं. कोई भी पति अपनी पत्नी से हाथ धो सकता है.

ऐसी घटनाओं से पति को अपनी पत्नी के बिछुड़ जाने का सिर्फ दर्द ही नहीं होता, इस के साथसाथ समाज में मुंह दिखाना भी बेहद मुश्किल हो जाता है.

पिछले दिनों सब को चौंका देने वाली घटना उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई. एक औरत ने अपनी बेटी की शादी एक लड़के से तय कर दी. शादी की तारीख तय होने के बाद लड़का अकसर ही अपनी ससुराल आनेजाने लगा और फोन पर भी बातें करने लगा.

इस दौरान उस लड़के की त्यादातर बातें अपनी होने वाली सास से होने लगीं. बातोंबातें में अपनापन इतना ज्यादा बढ़ा कि दोनों में प्यार हो गया. चंद रोज ही शादी को बचे थे. इसके बावजूद वह औरत आपने होने वाले दामाद के साथ भाग गई.

दूसरी घटना भी उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर में हुई. यहां एक 50 साल की औरत को अपने रिश्ते के 30 साल के पोते से प्यार हो गया. प्यार इतना ज्यादा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी रचा ली.

उत्तर प्रदेश के ही बदायूं जिले में बेटाबेटी की शादी तय करने के दौरान होने वाले समधी और समधन में प्यार हो गया. इस घटना में 4 बच्चों की मां अपने होने वाले समधी के साथ घर से भाग गई.

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में एक बूआ अपने भतीजे से प्यार करने लगी. घर वालों का विरोध और गुस्सा देख कर वह अपने भतीजे के साथ घर से भाग गई. दूसरे शहर में जा कर उस ने भतीजे से शादी रचा ली.

इसी तरह एक औरत ने अपने पति को छोड़ कर अपने से कम उम्र के चाचा के साथ शादी रचा ली. एक औरत के घर उस के बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्यूटर आता था. वह औरत लोकलाज को किनारे रख कर ट्यूटर से प्यार करने लगी और अब वह उसी से शादी करने को अड़ी है. उस का पति अरब देश में नौकरी करता है.

इस तरह की तमाम दूसरी घटनाएं लगातार सामने आ रही है. इन सारी ही घटनाओं में तकरीबन सभी औरतों की उम्र 50 साल या इस से ज्यादा है. इस तरह के कुछ मामले प्रकाश में आते हैं, बहुत सारे प्रकाश में नहीं आ पाते. इन की जड़ों में जा कर देखा जाए तो एक तरह से ये औरतों के जागरूक होने के मामले दिखाई दे रहे हैं.

आमतौर पर होता यह है कि ऐसी औरतें अनदेखी की शिकार होती हैं. इन की जिंदगी बेटाबेटी और नातेरिश्तेदारों की देखभाल में ही गुजर रही होती है. इन पर परिवार की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा डाल दी जा रही हैं कि उन की अपनी जिंदगी बदरंग हो जाती है.

ऐसे मामलों में औरतें घुटघुट कर जीने को मजबूर हो रही हैं. उन की अपनी जिंदगी कोई माने नहीं रख
रही है, जबकि हर इनसान की तरह उम्रदराज घरेलू औरतों को भी प्यार, सैक्स और हमदर्दी की बेहद जरूरत होती है. इन के बिना उन की अपनी जिंदगी बेमतलब सी दिखाई देती है.

इन्हें अपने परिवार से यह संदेश मिलने लगता है कि तुम्हारी अपनी जिंदगी कुछ भी नहीं. तुम्हें अपने पति, बच्चों और दूसरे परिवार वालों को ही खुश करने और उन्हें कामयाब बनाने के लिए काम करना और जीना है, जबकि हर किसी की अपनी निजी जिंदगी भी होती है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर किसी औरत को उस के पति का प्यार नहीं मिलता, उस के सैक्स की भरपाई नहीं होती, घर के लोग उस की खुशी और दुख पर ध्यान नहीं देते हैं, तब वह औरत एक तरह से दिमागीतौर पर बीमार हो जाती है. फिर उसे ऐसे लोग बहुत अच्छे लगने लगते हैं, जो उस की निजी जिंदगी की खुशी और दुख का ध्यान रखते हैं, उस की बातें करते हैं.

ऐसी औरतों की जिंदगी में जब कोई ऐसा मर्द आ जाता है, तब वे उस से प्यार करने लगती हैं. ऐसे हालात में उन के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि सामने वाला उम्र में उन से छोटा है या उन का सगासंबंधी है.

ऐसे हालात में पति को अपनी पत्नी की निजी जिंदगी पर खूब ध्यान देने की जरूरत है. उस के साथ प्यार भरा बरताव करें और उस की सैक्स की भूख को भी समझें, वरना उन के साथ भी ऐसी ही घटना घट सकती है. Social Update

Social Awareness: जब अचानक आ जाए गिरफ्तारी का वारंट

Social Awareness: एक दौर ऐसा था जब किसी के घर के आगे खाकी वरदीधारी का दिख जाना पड़ोसियों तक को डरा देता था. लोग अपने घरों में घुस जाते थे और सोचते थे कि किसी तरह यह बला टले. पुलिस भी बहुत कम ही किसी की गिरफ्तारी का वारंट ले कर उस के घर पर दस्तक देती थी.

पर अब जमाना बदल चुका है. आज के दौर में पुलिस किसी के खिलाफ कभी भी कोर्ट से गिरफ्तारी का वारंट ले कर घर पर धमक सकती है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि पहले मुकदमे कम होते थे, तो लोगों को उन की जानकारी होती थी. तब वे इस के लिए पहले से तैयार होते थे. तब आपसी रंजिश या जमीनजायदाद के ही मुकदमे ज्यादा कायम होते थे.

लेकिन आज का दौर सोशल मीडिया का दौर है. कोई भी आप की टिप्पणी से आहत हो सकता है, जिस से वह पुलिस या कोर्ट में शिकायत दर्ज करा सकता है, जिस के बाद पुलिस वारंट ले कर आ सकती है.

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 72 के तहत अदालत किसी शख्स के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकती है. जमानती गिरफ्तारी वारंट के तहत कोई शख्स अदालत के सामने एक तय समय पर हाजिर हो कर जमानतदारों के साथ जमानत बौंड भर सकता है. इस के बाद अदालत तय करती है कि वारंटी को छोड़ा जा सकता है या उस को जेल भेजा जाना है.

गैरजमानती गिरफ्तारी वारंट

इस तरह का वारंट आमतौर पर गंभीर अपराधों के लिए जारी किया जाता है और यह भी मान लिया जाता है कि शायद आरोपी फरार हो सकता है. बीएनएसए की धारा 74 और 75 मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को ताकत देती है कि वह किसी भी फरार अपराधी, घोषित अपराधी या किसी ऐसे शख्स की गिरफ्तारी के लिए अपने स्थानीय अधिकार क्षेत्र के भीतर वारंट जारी करने का निर्देश दे सकती है, जिस पर गैरजमानती अपराध का आरोप है और वह गिरफ्तारी से बच रहा है.

बीएनएसएस की धारा 78 गिरफ्तार शख्स के हकों की हिफाजत करती है, जिस के तहत पुलिस के लिए गिरफ्तार किए गए शख्स को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना बहुत जरूरी है.

पर जब गिरफ्तारी का वारंट आ जाए, तो क्या करना चाहिए? सब से पहले तो शांत रहें, तुरंत पुलिस के साथ सहयोग करें और एक वकील से सलाह लें. वकील आप को कानूनी प्रक्रिया के बारे में जानकारी दे सकता है और आप के हकों की हिफाजत कर सकता है.

वकील वारंट की सामग्री को समझने में मदद करेगा. वकील से वारंट में लगाए गए आरोप, गिरफ्तारी की वजह और संभावित सजा के बारे में पता चल सकेगा. वकील लगाए गए आरोपों से बचाव में मदद करेगा. वह अदालत में दलीलें पेश कर सकता है. आप के हकों की हिफाजत कर सकता है.

कई बार लोग वारंट लेने से इनकार करते हैं. उस को नष्ट करने का काम करते हैं. यह करना ठीक नहीं होता है. इस से मुश्किलें कम होने की जगह और बढ़ सकती हैं.

अचानक वांरट का पता चले तो वकील के साथ अपने दोस्तों या परिवार के सदस्यों से सलाह करें. अपने हालात को ठीक से परखें. अगर आप को लगता है कि आप के खिलाफ वारंट गलत है या अन्यायपूर्ण है, तो अपने वकील के साथ सलाह करें. अगर वारंट सही है और आप को जमानत के लिए कोर्ट के सामने पेश होना है, तो अपने लिए जरूरी जमानतदार ले कर जाएं. जमानत लेने के पूरे कागजात तैयार रखें, जिस से अचानक भागदौड़ न करनी पड़े.

बेटी की माहवारी, पिता दिखाए समझदारी

एक सुबह प्रिया अपने स्कूल की एक पिकनिक ट्रिप के लिए तैयार हो रही थी. 9वीं जमात के दोनों सैक्शन को सूरजकुंड घुमाने का प्रोग्राम था. प्रिया अपने बैग में खानेपीने का सामान रख रही थी. तभी उस ने एक पैकेट उठाया और रसोईघर में जा कर उसे कैंची से काटने लगी. राकेश भी लाड़लाड़ में प्रिया के पीछे जा कर देखने लगा और पूछा, ‘‘क्या काट रही हो?’’ प्रिया ने प्लास्टिक का एक पैकेट दिखाते हुए कहा, ‘‘यह है. और क्या काटूंगी…’’ राकेश ने देखा कि प्रिया उस पैकेट से 2 सैनेटरी पैड निकाल कर अपने बैग में रख रही थी. राकेश ने बड़े प्यार से उस के सिर पर हाथ रखा और ‘ध्यान से रहना’ बोल कर रसोईघर से बाहर चला आया.

एक पिता का अपनी बेटी के लिए ऐसा लगाव यह दिखाता है कि बदलते जमाने में बेटी की माहवारी को ले कर पिता में यह जागरूकता होनी ही चाहिए. न तो प्रिया की तरह कोई बेटी सैनेटरी पैड को ले कर झिझक महसूस करे और न ही राकेश की तरह कोई पिता अपनी बेटी के ‘उन दिनों’ के बारे में जान कर शर्मिंदा हो. यह उदाहरण इस बात को भी सिरे से नकारता है कि सिर्फ मांबेटी में ही गुपचुप तरीके से माहवारी पर बात की जाए, क्योंकि आज भी समाज में यही सोच गहरे तक पैठी है कि औरत ही औरत की इस समस्या को अच्छी तरह से समझ सकती है और मर्दों को परदा रखना चाहिए, जबकि विज्ञान के नजरिए से सोचें तो माहवारी के बारे में जितनी जानकारी औरतों या लड़कियों को होनी चाहिए, उतनी ही मर्दों और लड़कों को भी होनी चाहिए, गरीब और निचली जाति में तो खासकर. माहवारी में सैनेटरी पैड कितना अहम होता है, स्कौटलैंड से इस बात को समझते हैं. माहवारी से जुड़ी गरीबी को मिटाने के लिए यह देश पीरियड प्रोडक्ट्स को बिलकुल मुफ्त बनाने वाला पहला देश बन गया है.

इस सिलसिले में स्कौटलैंड सरकार ने बताया कि वह ‘पीरियड प्रोडक्ट ऐक्ट’ लागू होते ही दुनिया की पहली ऐसी सरकार बन गई है, जो माहवारी संबंधी बने सामान तक मुफ्त पहुंच के हक की कानूनी तौर पर हिफाजत करती है. इस नए कानून के तहत स्कूलों, कालेजों, यूनिवर्सिटी और स्थानीय सरकारी संस्थाओं के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे अपने शौचालयों में सैनेटरी पैड समेत माहवारी संबंधी प्रोडक्ट मुहैया कराएं. पर, भारत जैसे देश में सरकारी योजनाओं का ढिंढोरा पीटने के बावजूद हालात उतने अच्छे नहीं हैं. यूनिसेफ के मुताबिक, दक्षिण एशिया की एकतिहाई से ज्यादा लड़कियां अपनी माहवारी के दौरान खासतौर पर स्कूलों में शौचालयों और पैड्स की कमी के चलते स्कूल से छुट्टी कर लेती हैं. माहवारी के चलते होने वाली बीमारियों के बारे में बहुत सी औरतें अनजान ही रहती हैं. अकेले भारत की बात करें, तो यहां 71 फीसदी लड़कियां अपना पहला पीरियड होने से पहले तक माहवारी से अनजान होती हैं. सरकारी एजेंसियों के मुताबिक, भारत में 60 फीसदी किशोरियां माहवारी के चलते स्कूल नहीं जा पाती हैं. तकरीबन 80 फीसदी औरतें अभी भी घर पर बने पैड (कपड़ा) का इस्तेमाल करती हैं.

हालात तब और बुरे हो जाते हैं, जब बेटियां अपने पिता या भाई से अपनी इस कुदरत की देन से होने वाली समस्याओं के बारे में खुल कर नहीं बता पाती हैं, जबकि ज्यादातर बेटियां अपने पिता को ही अपना हीरो मानती हैं. नाजनखरे दिखा कर उन से अपने सारे काम करा लेती हैं, पर जब माहवारी की बात आती है, तो चुप्पी साध लेती हैं. पिता भी तो अपनी लाड़ली पर जान छिड़कते हैं, फिर ऐसी कौन सी खाई है, जो इस मसले पर उन दोनों के बीच आ जाती है?

दरअसल, हमारे समाज में धार्मिक जंजाल के चलते मर्दों का इतना ज्यादा दबदबा है कि वे ऐसी समस्याओं पर बात करना बड़ा ओछा काम समझते हैं. उन के मन में यही खयाल रहता है कि ‘क्या अब ये दिन आ गए, जो मैं अपनी बेटी के ‘उन दिनों’ का भी हिसाबकिताब रखूं? दुकानदार से किस मुंह से सैनेटरी पैड मांगूंगा? पासपड़ोस में पता चल गया तो मेरी नाक कट जाएगी…’

यहीं भारत जैसे देश मार खा जाते हैं. इश्तिहारों में कितना ही ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का राग अलाप लो, पर जब तक इस देश के मर्द समाज की औरतों के प्रति दकियानूसी सोच में बदलाव नहीं आता है, तब तक कोई ठोस नतीजा नहीं सामने आएगा, फिर वह लड़कियों की माहवारी की समस्या हो या उन की पढ़ाईलिखाई.

इस बदलाव की शुरुआत पिता को अपनी बेटी की माहवारी से ही करनी चाहिए. उन्हें अपनी बच्ची के बदलते शरीर के बारे में पूछताछ के लिए झिझकना नहीं चाहिए. बेटी के जवानी की दहलीज पर जाते ही उस में आ रहे शारीरिक बदलावों के बारे में बात करें. माहवारी शुरू होने से पहले ही बेटी द्वारा अच्छी साफसफाई बनाए रखने की अहमियत के बारे में बताएं. जिस तरह दूसरे कामों में बेटी का हौसला बढ़ाते हैं, वैसे ही माहवारी पर भी उन्हें हिम्मत दें कि यह तो हर बेटी को कुदरत से मिला एक नायाब तोहफा है, जिस से उसे मां बनने का सुख मिलता है और परिवार आगे बढ़ता है. यह छोटी सी पहल समाज में एक बड़ा बदलाव ला सकती है.

अंधविश्वास: झूठे आदर्श पाखंड को जन्म देते हैं

आदर्श पाखंड़ को जन्म देते हैं आप को यह पढ़ कर शायद हैरानी हो कि भारत में जितने भी जानेमाने धर्मगुरु हुए हैं, उन में से ज्यादातर किसी न किसी ठीक न हो सकने वाली बीमारी से पीडि़त रहे हैं या अभी भी हैं. जो दूसरों को यह उपदेश देते थे कि ओम का उच्चारण करते रहने से, ओम की जय करने से, प्राणायाम करने से रोग पास भी नहीं फटकते, पर वे खुद किसी न किसी बीमारियों से जरूर पीडि़त थे. इस की एक खास वजह है.

यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब भी कोई इनसान अपनी किसी कुदरती इच्छा को दबाने की कोशिश करता रहता है, तो उस की वह इच्छा उस आदमी के अचेतन मन में चली जाती है. फिर वह किसी न किसी मनोकायिक (साइकोसोमैटिको) बीमारी को जरूर जन्म देने लगती है. जनवरी, 2022 में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एक अस्पताल में तब हड़कंप मच गया, जब जिले के सौस गांव से एक विक्षिप्त बाबा को एंबुलैंस में लाया गया था. वह गांव में कभी कीचड़ में लोट जाता, तो कभी पेड़ों पर चढ़ जाता या ड्रामा करता. अस्पताल में भी वह बाबा नर्सिंग स्टाफ के सामने नंगा हो जाता, तो कभी वार्डबौयों पर हमला करने लगता. उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया.

पर सवाल है कि ऐसे हालात आए ही क्यों? इसलिए कि बाबाओं को कहा जाता है कि इच्छाओं को दबाओ और वे खुद बीमार हो जाते हैं. राजा हो या रंक, साधु हो या संत, कोई भी कुदरत के इस नियम से बच नहीं पाता. बढ़ती इच्छाओं को दबाने के खिलाफ सजा देने का कुदरत का यह एक ढंग है. आप देखोगे कि जो भी इनसान ?ाठे आदर्शों की चादर ओढ़ कर पाखंड वाली जिंदगी जी रहा होगा, वह किसी न किसी बड़ी बीमारी से भी जरूरत पीडि़त होगा. वह बीमारी ही उस की मौत की वजह भी बन जाती है. भारत में यह भी एक विडंबना ही है कि लोग किसी के चरित्र का मूल्यांकन केवल इस बात से लगाते हैं कि अमुक इनसान ने अपनी कामवासनाओं को कितना कंट्रोल में रखा हुआ है.

जो इनसान कामवासनाओं के बारे में खुले स्वभाव का होता है, उसे हम चरित्रहीन मानने लगते हैं और जो ब्रह्मचारी होने का ढोंग करता हो, उस की पूजा करने लगते हैं और उसे दानदक्षिणा भी देने लगते हैं. एक गलत सोच के चलते हिंदू धर्म में हजारों सालों में सब से ज्यादा अहमियत ब्रह्मचर्य को दी गई है. साधुसंन्यासी इसलिए भी समाज में इज्जत पा रहे हैं, क्योंकि वे ब्रह्मचर्य पालन का दावा करते हैं. जिस तरह एक पीएचडी डिगरी लेने वाला अपने नाम के साथ डाक्टर लिखने लगता है, उसी तरह कई साधुसंन्यासी समाज में ज्यादा से ज्यादा इज्जत पाने के लिए अपने नाम के साथ ‘बाल ब्रह्मचारी’ की डिगरी भी जोड़ देते हैं.

मजे की बात यह है कि पूरे संसार में भारतीय ही सब से ज्यादा कामुक हैं. वे एक साल में ही पूरे आस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर बच्चे पैदा कर देते हैं. भारतीयों के बिस्तर उन के खेतों से ज्यादा उपजाऊ माने जाते हैं. मनोवैज्ञानिक इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि जब भी कोई इनसान हठपूर्वक ब्रह्मचर्य साधने की कोशिश करने लगता है, तो कामुकता भी उस का पीछा करती रहती है, जो अपना रूप बदल कर सामने आती रहती है. ब्रह्मचर्य की साधना करने वाला दिनरात अपने कामकेंद्र के इर्दगिर्द ही जिंदगी बिताने लगता है. वह किसी जंगल में या गुफा में तपस्या कर रहा होगा, तो उस के सपनों में अप्सराएं आ कर उस की साधना भंग करने लगेंगी.

कुछ अज्ञानी लोगों ने सोचेसमझे बिना ही वीर्य के संबंध में कई तरह की गलत बातें फैला रखी हैं. कुछ शास्त्रों में यह भी पढ़ने को मिलता है कि इनसान अगर 32 किलो भोजन खाता है, तो उस से शरीर में 800 ग्राम रक्त बनता है. उस 800 ग्राम रक्त में से केवल 20 ग्राम वीर्य ही बनता है. पर मैडिकल जांचपड़ताल से यह पता चला है कि पुरुष के शरीर में वीर्य बनना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. जिस तरह से पाचक ग्रंथियां भोजन को पचाने के लिए पाचक रस छोड़ती रहती हैं, उसी तरह से यौन ग्रंथियां वीर्य बनाती रहती हैं. जब वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है, तो वीर्य सपनों के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है. यह कुदरत द्वारा बनाई गई एक आनंददायक व्यवस्था है.

पर धर्मशास्त्र व कुछ धर्मगुरु ऐसा प्रचार करते हैं कि लोग हमेशा डरे रहें. शरीर के अंदर वीर्य बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती ही रहती है, इसलिए जरूरत से ज्यादा वीर्य को शरीर के अंदर रोक पाना मुमकिन नहीं है. पर बहुत से लोग खासतौर पर धर्मगुरु इस सच को छिपाने के लिए कई तरह के ढोंग करने लगते हैं. अपने नाम के साथ ‘बाल ब्रह्मचारी’ लिखना भी ऐसा ही एक ढोंग मात्र है. जो लोग हठपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे होते हैं, वे भी इस उम्मीद में जी रहे होते हैं कि स्वर्ग में जा कर तो उन की देखभाल अप्सराएं करेंगी, जो उन की हर आज्ञा का पालन करेंगी. जब इनसान अपनी किसी इच्छा को हठपूर्वक दबा लेता है, तो वह इच्छा उस के मन में जा कर दब जाती है, फिर इनसान को उस दबी हुई इच्छा को पूरा करने के लिए किसी न किसी पाखंड का सहारा लेना पड़ता है. जो लोग गृहस्थी त्याग देते हैं, वे आश्रम या कुटिया बना कर रहने लगते हैं.

जिन औरतों के पति नामर्द होने के कारण बच्चा पैदा नहीं कर सकते, उन्हें अपने आश्रम में अकेले में बुला लेते हैं. अपनी दबी हुई काम इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही तंत्र साधना के नाम पर औरतों की पूजा करने लगते हैं और तंत्र के नाम पर यौन क्रियाओं में लग जाते हैं. धर्मगुरुओं के आश्रमों में ऐसी बातें हमेशा होती ही रहती हैं, क्योंकि यह सब धर्म के नाम पर होता है, इसलिए लोग इन्हें चुपचाप सहन कर लेते हैं. भारत में कई धर्मगुरु यह ढोंग भी करते रहते हैं कि वे तो पैसों को हाथ तक नहीं लगाते. पर जब ये विदेशों में जाते हैं, तो वहां करोड़ों रुपयों में खेलने लगते हैं. महंगी से महंगी कारें खरीद लेते हैं. पांचसितारा आश्रमों को बना लेते हैं. हिंदू समाज ने समाधि लगाने को भी बहुत इज्जत दे रखी है, इसलिए कई साधुसंत यह ढोंग करने लगते हैं कि वे समाधि की उच्च अवस्था को भी हासिल हो चुके हैं.

कई तो अपने नाम के साथ भी ‘समाधिनाथ’ तक लिखने लगते हैं. लोेगों को प्रभावित करने के लिए वे अपनी समाधि का खूब प्रचार करते हैं और करवाते हैं. आम लोगों को प्रभावित करने के लिए वे कुछ दिनों के लिए खुद को मिट्टी में दबा लेते हैं, फिर जिंदा बाहर निकल आते हैं. अंधविश्वासी लोग इस काम को एक चमत्कार मान कर उन्हें खूब दानदक्षिणा देते हैं. इस मौके और हमदर्दी का फायदा उठा कर मंदिर बनाने के नाम पर लाखों रुपए जमा कर लिए जाते हैं. किंतु भोलेभाले लोग यह सम?ा ही नहीं पाते कि ऐसे काम केवल जादू दिखाने जैसी ट्रिक की मदद से ही किए जाते हैं. चमत्कार या भगवान को पाने से इस का कोई संबंध नहीं होता. ऐसे लोग प्राणायाम व सांसों को काबू में करने की कला सीख कर ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं. साइबेरिया के बर्फीले प्रदेश के भालू 6 महीने तक खुद को बर्फ में ही दबा कर सोए रहते हैं. बरसात के बाद मेढक जमीन के नीचे ही दबे पड़े रहते हैं. ठंड से बचने के लिए सांप भी खुद को मिट्टी के नीचे दबाए रखते हैं. इस से उन की कोई समाधि नहीं लग जाती.

कुछ दिन जमीन के नीचे दबे रहने का समाधि से कोई संबंध नहीं होता. एक धर्मगुरु का बायां हाथ काम नहीं करता था. इस विकलांगता को भी उन्होंने समाधि के नाम पर खूब भुनाया. वे बारबार कहते रहते थे कि जब वे समाधि में बैठे थे, तो उन के इस हाथ को दीमक लग गई थी. बहुत से धर्मगुरु अपने झूठे दावों का पाखंड कर के नाम कमाने में लगे रहे हैं. उन झूठे दावों को साबित करने के लिए उन्होंने कई तरह के इंतजाम कर रखे होते हैं. आप को अपने चारों ओर कई साधुसंन्यासी ऐसे मिल जाएंगे, जिन का बरताव पागलों जैसा होता है. कुछ तो छोटीछोटी बातों पर भी गुस्सा हो जाते हैं. भोलेभाले लोग यह सम?ाने लगते हैं कि इन पर भगवान का उन्माद छाया हुआ है, इसीलिए वे ऐसा बरताव कर रहे हैं. पर वे यह नहीं जानते हैं कि भगवान की कोई खुमारी नहीं होती. ऐसे लोग केवल मनोवैज्ञानिक वजहों से ही बीमार होते हैं.

ससुर-बहू के नाजायज संबंध, दुखद होता है अंत

आखिरकार कुंदन कुमार ने खुदकुशी कर ली. शायद इस बुजदिली के अलावा उसे कोई और रास्ता सूझ नहीं रहा था. जब अपने ही बेवफाई और बेईमानी करते हैं, तो एक समय के बाद नफरत खुद की बेबसी पर भी होने लगती है. फिर कुछ दिनों बाद जिंदगी बेमानी लगने लगती है. यही सब कई दिनों से कुंदन कुमार के साथ हो रहा था, जिस ने बीवी की बेवफाई और चाचा की मनमानी की सजा खुद को देते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पटना बाजार इलाके के गांव कुरथौल के रहने वाले इस नौजवान की बीवी किसी जवान आशिक या पुराने यार के साथ नहीं,

बल्कि अपने ही चाचा ससुर जसवंत सिंह के साथ भाग गई थी. पीछे रह गए थे मां के लिए बिलखते 2 मासूम बच्चे और बीवी की इस हरकत पर कलपता कुंदन कुमार, जिस की दुनिया में अंधेरा छा गया था. 22 मई, 2022 को जहर खाने के पहले कुंदन कुमार इंसाफ पाने के लिए पुलिस थाने गया था, लेकिन वहां से भी उसे दुत्कार कर भगा दिया गया था. कुंदन कुमार की बीवी और चाचा में कब और कैसे जिस्मानी संबंध बन गए थे, इस की उसे भनक भी नहीं लगी. घर का बुजुर्ग होने के नाते गांव में ही रहने वाले जसवंत सिंह का घर में आनाजाना आम था.

कुंदन कुमार का माथा उस समय ठनका था, जब गांव के ही कुछ लोगों से उस ने इस बाबत सुना. पहले तो कुंदन कुमार को यकीन ही नहीं हुआ कि पिता समान चाचा अपनी बेटी समान बहू के साथ शारीरिक संबंध बना सकता है और पत्नी की रजामंदी भी इस में है, पर जब यह सच निकला तो वह तिलमिला उठा. बेकार गया समझाना कुंदन कुमार ने बारीबारी से चाचा और पत्नी को समझाया कि यह ठीक नहीं है, रिश्तों की मानमर्यादा के खिलाफ है, लेकिन इश्क में गले तक डूबे इस बेमेल जोड़े के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी. हद तो तब हो गई, जब टोकने पर जसवंत सिंह ने उसे जान से मारने की धमकी दे डाली. बात चूंकि पहले से फैल चुकी थी,

इसलिए कुंदन कुमार ने पुलिस की मदद लेनी चाही, पर वहां से भी निराशा ही हाथ लगी, तो दूसरे जो हकीकत में अपने थे, के गुनाह और गलती की सजा उस ने खुद को दे डाली. कुंदन कुमार की मौत के बाद गांव वालों ने पुलिस के निकम्मेपन और लापरवाही के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन किया, तो पुलिस ने उस की पत्नी और चाचा के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया. अफसोस और हैरत की बात तो यह भी थी कि जो लोग ‘हायहाय’ कर रहे थे, उन में से कुछ थाने से लौटते समय उस पर ताने भी कस रहे थे. बात बहुत जल्द आईगई हो गई, लेकिन कई सवाल अपने पीछे छोड़ गई है कि आखिर क्यों ससुरबहू में जिस्मानी संबंध बन जाते हैं और इस हद तक हो जाते हैं कि वे आपस में नए लड़केलड़कियों जैसा इश्क करने लगते हैं?

क्यों प्यार में डूबे ससुरबहू को दीनदुनिया, की परवाह नहीं रहती है? कहने को तो कहा जा सकता है कि ‘दिल तो है दिल, दिल का एतबार, क्या कीजे… आ गया जो किसी पे प्यार, क्या कीजे…’ लेकिन ऐसा प्यार क्या वाकई प्यार होता है और उसे जायज करार देना चाहिए, जो अपने ही बेटे की गृहस्थी पर डाका डाले? यही प्यार किसी की हत्या और खुदकुशी की वजह बन जाए और इस से किसी को कुछ हासिल न हो, तो इसे प्यार क्या खा कर कहा जाए. इसे सिर्फ सैक्स की हवस कह कर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक बार समझाने या धमकाने पर हमबिस्तरी करने का सिलसिला रुकना मुमकिन है, लेकिन यह बात प्यार पर लागू नहीं होती,

जिस के चलते आशिक और माशूक वाकई अंधे हो जाते हैं और समझाइश के दायरे से काफी दूर हो चुके होते हैं. कत्ल ही कर दिया कुंदन कुमार की तरह की ही कहानी राजस्थान के अलवर के बहरोड़ इलाके के रहने वाले विक्रम सिंह की है, जिस की हत्या उस के पिता बलवंत सिंह और पत्नी पूजा ने मिल कर की थी. 5 मार्च, 2022 की रात के तकरीबन 3 बजे सैक्स के लिए तड़प रहा बलवंत सिंह अपने बेटेबहू के कमरे में गया और आहिस्ता से 29 साला पूजा को बुलाया, जो तुरंत चाबी भरी गुडि़या की तरह अपने 62 साल के ससुर के पीछेपीछे चल दी और ससुर के कमरे में पहुंचते ही उन दोनों ने रासलीला शुरू कर दी. लेकिन इस बार बेसब्र हो रहे ससुरबहू यह नहीं देख पाए कि विक्रम सिंह भी जाग गया है और दबे पैर उन के पीछे आ रहा है. पिता के कमरे का जो सीन विक्रम सिंह ने देखा, वह उस के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. पूजा और बलवंत सिंह सबकुछ भूलभाल कर एकदूसरे से इस तरह से लिपटे थे कि अब कभी एकदूसरे से अलग ही नहीं होंगे. विक्रम सिंह का खून खौला,

लेकिन अपनेआप को काबू करते हुए वह किसी तरह अपने कमरे में आ गया. अभी विक्रम सिंह सोच ही रहा था कि यह क्या हो रहा है और वह क्या करे, तभी बलवंत सिंह और पूजा आ गए. उन दोनों ने उसे जकड़ा और दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अलवर के नामी कारोबारी बलवंत सिंह सुबह रोजाना की तरह सैर पर निकल गए, जिस से लोग उन्हें देख लें और पूजा भी घर के कामकाज में ऐसे लग गई मानो कुछ देर पहले उस ने पति को नहीं, बल्कि कान पर भिनभिनाते मच्छर को मारा हो. योजना के मुताबिक, उन दोनों ने फोन से जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों को विक्रम सिंह की मौत की खबर देते हुए रोनेधोने का कामयाब ड्रामा किया.

इन की साजिश भी कामयाब हो जाती, लेकिन शव यात्रा में शामिल आए लोगों का माथा यह देख कर ठनका कि किसी को भी विक्रम सिंह का चेहरा नहीं दिखाया जा रहा है. यह बात चोर की दाढ़ी में तिनका सरीखी थी, क्योंकि मरने वाले के अंतिम दर्शन आम रिवाज है. शक होने पर पूजा के ही भाई ने पुलिस वालों को फोन कर दिया. छानबीन और पूछताछ में उन दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उजागर यह भी हुआ कि बलवंत सिंह की पत्नी की मौत 2 साल पहले हुई थी, तभी से इन दोनों में नाजायज संबंध बन गए थे. रईसों के इस घर में 64 लाख रुपए भी तिजोरी में रखे थे, जो बलवंत सिंह को एक जमीन बेचने के बाद मिले थे. मुमकिन है कि यह भारीभरकम नकदी भी इस वारदात की वजह रही हो. बलवंत सिंह जैसे विधुर बूढ़ों की सैक्स की भूख कैसे मिटे,

यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन बहू को अपने जाल में फंसा कर इसे शांत किया जाए, तो अंत दुखद होना कुदरती बात है, क्योंकि कोई बेटा यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस के पिता और पत्नी आपस में सैक्स संबंध बनाते हुए उसे धोखा दें. प्यार या हवस कुंदन कुमार की मौत के बाद जितनी हैरानी कुरथौल गांव के लोगों को हुई थी, उतनी ही हैरानी अलवर शहर के लोगों को विक्रम सिंह की हत्या पर हुई थी. ऐसी खबरें, जिन में पूरा घर बरबाद हो जाता है, सोचने को मजबूर करती हैं कि आखिर यह प्यार था या हवस थी? देखा जाए, तो ऐसे संबंधों में दोनों ही चीजें बराबरी से रहती हैं. 1-2 बार ये संबंध भले ही लिहाज और दबाव में बनते हों, लेकिन फिर धीरेधीरे ससुरबहू दोनों को ही हमबिस्तरी की लत या आदत कुछ भी कह लें, पड़ जाती है और इस में उन्हें इतना मजा आने लगता है कि वे किसी अंजाम की परवाह नहीं करते हैं. यहां से पैदा होता है एक जुर्म,

फिर भले ही वह कुंदन कुमार की खुदकुशी हो या विक्रम सिंह की हत्या हो. ससुरबहू के नाजायज संबंध कभी हैरानी की बात नहीं रहे, कम से कम इस लिहाज से तो कतई नहीं कि ये एक मर्द और एक औरत के बीच कायम होते हैं, लेकिन चूंकि ये सभी के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं, इसलिए ससुरबहू को इन के अंजाम पर गौर करते हुए इन्हें पनपने ही नहीं देना चाहिए और अगर पनप चुके हों तो तुरंत इन पर लगाम लगा देनी चाहिए. एकांत के मौके इफरात से मिलते हैं और कोई आसानी से शक नहीं करता, पर इस का बेजा फायदा उठाना अकसर बड़ी परेशानी का सबब बन जाता है. सच यह भी है कि पति के निकम्मे, आवारा, नशेड़ी, बेरोजगार, दब्बू या नामर्द होने पर ऐसे संबंधों के पनपने में सहूलियत रहती है. पत्नी को सैक्स की भूख मिटाने के लिए कहीं और नहीं ताकना पड़ता,

वह आसानी से ससुर से ही आशनाई कर बैठती है, लेकिन गलत आखिर गलत ही होता है, इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. वह दौर और था, जब बचपन में बेटे की शादी हो जाती थी और ससुर की उम्र 35-40 साल होती थी. घर का मुखिया होने के नाते वह बहू से जोरजबरदस्ती करता भी था, तो किसी की हिम्मत उसे रोकनेटोकने की नहीं होती थी. लेकिन अब बहुतकुछ बदल जाने के बाद भी इन नाजायज ताल्लुकात का सिलसिला थम नहीं रहा है, तो जरूरत जागरूकता और समझ की है कि राज आज नहीं तो कल खुलना ही है और एक अपराध होना तय है, तो क्यों न अभी से संभला जाए. द्य ड्डनहीं बनना ससुर के बच्चे की मां ससुर अगर जोरजबरदस्ती करे, तो बहू ज्यादा विरोध नहीं कर पाती. ऐसा ही कुछ ग्वालियर के नजदीक मालनपुर की सुमित्रा (बदला हुआ नाम) के साथ हुआ. उत्तर प्रदेश के जालौन की सुमित्रा की शादी जून, 2021 में हुई थी. शुरू के कुछ दिन तो हंसीखुशी से बीते, लेकिन जल्द ही ससुर की नीयत उस की जवानी और खूबसूरती पर डोलने लगी.

13 फरवरी, 2022 को ससुर ने जबरदस्ती उस से शारीरिक संबंध बनाए, जिस से वह पेट से हो आई. यह बात उस ने घर वालों को बताई, तो बवंडर मच गया. अपनी गैरत बचाने और ससुर की हैवानियत उजागर करने के लिए सुमित्रा ने ग्वालियर हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आपबीती बताई व बच्चा गिराने की इजाजत मांगी. 22 मई, 2022 को कोर्ट ने उस से हलफनामा मांगा है कि वाकई उस के पेट में पल रहे बच्चे का पिता उस का ससुर है और अगर बच्चा ससुर का नहीं हुआ, तो उस पर ससुर की इज्जत पर कीचड़ उछालने और बच्चे की हत्या करने का मुकदमा चलाया जाएगा. हाईकोर्ट ने यह सख्ती इसलिए भी बरती है कि कुछ मामलों में बहुत सी औरतें नजदीकी रिश्ते के किसी मर्द पर ऐसे ही आरोप लगा कर बाद में मुकर गईं.

अब देखना दिलचस्प होगा कि सुमित्रा क्या करती है. वैसे, सटीक तरीका डीएनए टैस्ट का है, जिस से यह पता चल जाता है कि बच्चा किस का है. यह इसलिए भी जरूरी है कि कोई औरत झूठा हलफनामा भी दे सकती है. सुमित्रा जैसी बहुओं को चाहिए कि वे ससुर की जोरजबरदस्ती का समय रहते विरोध करें और तुरंत थाने में रिपोर्ट दर्ज कराएं. ससुरबहू ने की शादी हर मामले में यह जरूरी नहीं है कि बहू के साथ संबंध ससुर द्वारा उसे डराधमका कर, लालच दे कर या बहलाफुसला कर ही बनाए जाते हैं, बल्कि कई बार बहू खुद ससुर के प्यार में अंधी हो जाती है. ऐसा ही एक अजीबोगरीब मामला पिछले साल जून महीने में राजस्थान के अलवर में देखने में आया था, जब 52 साल के ससुर प्रभाती लाल ने अपनी 29 साल की बहू लाली देवी से शादी कर ली थी.

काम उन्होंने गुपचुप नहीं किया था, बल्कि पहले दिल्ली जा कर आर्य समाज मंदिर में सात फेरे लिए और फिर शादी रजिस्टर्ड कराने के लिए तीस हजारी कोर्ट भी गए थे. प्यार होने के बाद वे दोनों दिल्ली के द्वारका इलाके के सैक्टर-3 में जा कर किराए के मकान में बाकायदा मियांबीवी की तरह रहने लगे थे. उन्होंने समझदारी दिखाते हुए तमाम कानूनी एहतियात बरते थे. लाली देवी ने अलवर में ही अपने पति पर मारपीट का आरोप लगाते हुए उस से तलाक ले लिया था और बहू के प्यार में पड़े प्रभाती लाल ने भी अपनी बीवी को तलाक दे दिया था यानी शादी पर एतराज जताने की कोई वजह नहीं छोड़ी थी. दिलचस्प बात लाली देवी का 2 बच्चों की मां होना है. अब इस रिश्ते पर कोई उंगली नहीं उठा सकता है. यह और बात है कि दादा प्रभाती लाल ही अपनी बहू लाली देवी के बच्चों का पिता बन गया है और वह अपने ही पति की मां बन गई है. बहू को जायज और कानूनी तौर पर पत्नी बनाने का देश का यह पहला उजागर मामला है.

सामाजिक अनदेखी की शिकार युवतियां, क्या है इस की जड़ में

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते…’ जैसे जुमले कह कर स्त्री को मानसम्मान का प्रतीक मानने वाले कट्टरपंथी देश में आज स्त्री की पूजा होती है रेप से, एकतरफा प्यार में कैंची द्वारा गोदगोद कर उस की हत्या से, निर्भया की तरह मौत के बाद भी इंसाफ न मिलने से या फिर गुरमेहर की तरह अभिव्यक्ति की आजादी का दमन कर गालियां व रेप की धमकी दे कर. इस के बाद खुद को जगत गुरु कहा जाता है. ये तो चंद मामले हैं जो सर्वविदित हैं जबकि आएदिन सुर्खियों में ऐसे मामले आते हैं जिन का सीधा संबंध नारी से होता है लेकिन पुरुषवादी मानसिकता, कट्टरतावादी धर्म पर चलता समाज उस के छींटे भी नारी पर ही डालता है और कहा जाता है कि ये सब होने की वजह युवतियों का घर से निकलना, छोटे कपड़े पहनना, पुरुषों संग मेलजोल बढ़ाना है.

अगर ये सब बातें ही इन जघन्य अपराधों का कारण हैं तो छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के इतने सारे मामले क्यों प्रकाश में आते हैं? गांवों में जहां लड़कियां न तो पढ़ रही हैं और न छोटे कपड़े पहन रही हैं, वे क्यों वहां मर्दों की शिकार बनती हैं?

समाज में निरंतर बढ़ते अपराध का कारण भी हमारे धर्म की जड़ों में है जहां जन्म से ही लड़के के जन्म पर खुशी और लड़की होने पर शोक मनाया जाता है. बड़े होने पर दहेज हत्याएं, समाज में दकियानूसी सोच का उन्हें शिकार होना पड़ता है. इन्हीं कारणों के चलते एक और अपराध जन्म लेता है भ्रूण हत्या का.

अगर परीक्षण कर पता चला कि गर्भ में लड़की है तो उसे वहीं मार दिया जाता है. इतने साल बाद भी हम समाज की कुरीतियों को बदल नहीं पाए, दहेज प्रथा, बाल विवाह, लड़कियों को कम शिक्षा दिलाना आदि कुरीतियां आज भी समाज में व्याप्त हैं.

नारी को सदा धर्म में भोग की वस्तु माना गया और उसे पुरुष से कमतर आंका गया है. स्त्री निंदा में भी कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन जब हम समाज में यह भेदभाव देखते हैं तो भी आवाज नहीं उठाते, कारण यह भी है कि आवाज कैसे दबाई जाए सब को पता है.

निर्भया कांड को ही ले लीजिए. इस कांड के बाद पूरे देश में धरनाप्रदर्शन, कैंडिल मार्च हुए, नई समितियां गठित की गईं, नए कानून बने, फास्ट ट्रैक अदालतों का निर्माण हुआ, लेकिन बलात्कारियों के पता होने व पकड़े जाने पर भी क्या हम निर्भया को न्याय दिला पाए?

एक दूसरे मामले में कैंची से गोद कर एक सिरफिरा सरेराह युवती को मार देता है तो क्या हुआ? ताजा मामला गुरमेहर का है. आखिर उस का गुनाह क्या है? सिर्फ यही न कि उस ने अपने मन की बात कही? यही कि कट्टरपंथी एबीवीपी का विरोध किया? उस के खिलाफ उसे गालियां दी गईं और उसे अपमानित किया गया. रेप करवा देंगे जैसी धमकियां मिलीं, क्यों?

रेप, एसिड अटैक, दहेज हत्या जैसी बातों की शिकार युवतियां ही हो रही हैं. न्याय के इतने पैर पसारने, सिक्योरिटी की नई तकनीक, आत्मरक्षा के तरीकों और पुलिस की चौकस निगाह के बावजूद आज ये सब हो रहा है.

हाल ही में एक और मामला प्रकाश में आया है जिस में दिल्ली से सटे ग्रेटरनोएडा के लौयड कालेज के निदेशक ने युवतियों के क्लास में 20 मिनट देर से पहुंचने पर उन्हें गालियां दीं. यहां तक कि जूता उठा कर मारने के लिए उन के पीछे भी दौड़े. भले ही उन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की गई और अगले दिन उन का इस्तीफा ले कर तत्काल प्रभाव से उन्हें हटा दिया गया, लेकिन युवतियों का अपमान तो हुआ न.

गुरमेहर कौर का मामला

 गुरमेहर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा है और बहुत बोल्ड भी. रामजस कालेज में इतिहास विभाग ने 2 दिन का ‘कल्चरर औफ प्रोटैस्ट’ सैमिनार आयोजित किया था, जिस में पिछले साल विवादों में आए जेएनयू के छात्र उमर खालिद और छात्रसंघ के पूर्व सदस्य को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन एबीवीपी के विरोध के चलते कार्यक्रम रद्द करना पड़ा. कार्यक्रम रद्द होते ही दोनों गुटों यानी एबीवीपी और आईसा में तनातनी हो गई, जिस में कईर् छात्र घायल हो गए.

ये सब गुरमेहर से देखा नहीं गया और उस ने इस हिंसा के विरोध में एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया, जिसे छात्रों का खूब समर्थन मिला, जिस से एबीवीपी बौखला गई. उसे लगा कि लड़की होते हुए उस ने हमारे खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत की, जो उन के लिए खौफ पैदा करने वाली थी.

बदले में एबीवीपी ने साल भर पुराना मुद्दा उछाला और भारतपाकिस्तान शांति के प्रयास के लिए डाले गए गुरमेहर के एक वीडियो, जिस में गुरमेहर ने कहा था, ‘मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा’ को उभारा गया और गुरमेहर को राष्ट्रविरोधी करार दिया गया. उसे न केवल रेप जैसी धमकी मिली बल्कि भद्दी गालियों का भी सामना करना पड़ा.

गुरमेहर इस से डरी नहीं और उस ने कहा कि जो सच था मैं ने वही कहा, मैं एबीवीपी से नहीं डरती. भले ही मैं इस अभियान से अलग हो रही हूं लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं डर गई, बल्कि मैं किसी भी तरह की हिंसा नहीं चाहती.

विचारों की कैसी स्वतंत्रता

आज हर व्यक्ति को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन यह कैसी स्वतंत्रता जहां अपनी बात रखने पर बवाल मच जाता है. यह सिर्फ महिलाओं के साथ है पुरुषों के साथ नहीं, क्योंकि जब समाज में पुरुष कुछ गलत कहें या करें तो उस मामले को दबा दिया जाता है, लेकिन अगर महिला कुछ कहे तो यह समाज को बरदाश्त नहीं होता बल्कि उसे शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने की धमकी दे कर चुप कराने की कोशिश की जाती है.

किसी भी महिला के लिए यह धमकी काफी डरावनी होती है, क्योंकि एक बार अगर उस का रेप हो जाए तो समाज उसे हेयदृष्टि से देखता है और यहां तक कि पढ़ीलिखी होने के बाद भी कोई उस से शादी करना पसंद नहीं करता, भले ही उस की कोई गलती न हो.

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं को आज भी विचारों की स्वतंत्रता नहीं है और अगर कोई बोलने की जुर्रत करती भी है तो उसे भी गुरमेहर की तरह बिना किसी गलती के अपने घर वापस लौटना पड़ता है.

महिलाओं के हिस्से गालियां ही क्यों

बात चाहे बौयफ्रैंड की इच्छापूर्ति की हो या फिर घर में पति की बात मानने की, जहां भी महिला ने किसी बात को मनाने से इनकार किया तो उसे मांबहन की गालियां दे कर अपनी बात को मनवाने की कोशिश की जाती है और अगर फिर भी उस ने इनकार किया तो ब्लैकमेलिंग की धमकी दी जाती है आखिर ऐसा क्यों?

जब रिश्ता आपसी सहमति से बना हो तो उस में जबरदस्ती कैसी? क्या महिलाएं सिर्फ  भोग की वस्तु हैं जब चाहे उन्हें यूज करो और जब मन भर जाए तो निकाल कर फेंक दो? अपनी इस मानसिकता को जब तक पुरुष नहीं बदलेंगे तब तक समाज व देश का भला नहीं हो पाएगा और पलपल पर महिलाओं को अपमानित हो कर अपने पैदा होने पर ही पछताने पर मजबूर होना पड़ेगा.

आवाज को दबाने वाले दबंग

लाठीपत्थर बरसाने वाले, होहल्ला मचाने वाले ज्यादा दबंग हैं. उन में से ज्यादातर किसी धर्म के मानने वाले ही नहीं परम भक्त और उन के सेवक, दुकानदार हैं. वे धर्म के नाम पर रोब झाड़ते हैं और जबरन चंदा वसूली करते हैं. इन के सामने पुलिस भी नतमस्तक हो जाती है.

इन दबंगों को प्रशासन या सरकार का खुला संरक्षण प्राप्त होता है. ये साफ कह देते हैं कि अगर बात बिगड़ती दिखी तो हम पैसों और पावर के दम पर सब संभाल लेंगे, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं. ऐसे में इन के हौसले तो और बुलंद होंगे ही.

पुरुष हमेशा प्रत्यक्षदर्शी ही क्यों

 जब पुरुष समाज में खुद का अहम रोल मानते हैं और समझते हैं कि उन के बिना महिला का कोई वजूद नहीं तो अकसर ऐसा देखने में आता है कि जब भी कोई बदतमीजी या फिर रेप वगैरा की घटना होती है या फिर मुसीबत में होेने पर महिला हैल्प मांगती है तो पुरुष क्यों चुप्पी साध लेते हैं. तब क्यों नहीं मर्दानगी दिखाते?

दोषी घूमते हैं आजाद

 आज माहौल ऐसा बन गया है कि जो निर्दोष है वह सजा भुगतता है, लोगों के घटिया कमैंट का शिकार होता है और जो वास्तव में दोषी है वह खुलेआम आजाद घूम कर और खौफ पैदा करता है.

असल में इस का दोष हमारी कानूनव्यवस्था में है, क्योंकि कभी रेप के आरोपी को नाबालिग के नाम पर छोटीमोटी सजा दे कर छोड़ दिया जाता है तो कभी दोषी मोटी रकम चढ़ा कर अफसरों का मुंह बंद करवा कर आजाद घूमता है.

फ्रीडम औफ स्पीच का समर्थन जरूरी

 डीयू में जहां देशविदेश से छात्र पढ़ कर अपना कैरियर संवारते हैं, जहां न पढ़ाई में और न ही किसी और चीज में भेदभाव होता है तो फिर वहां जब महिलाएं सच के खिलाफ आवाज उठाती हैं तो उन का हमेशा विरोध क्यों होता है.

विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ ही है कुछ अप्रिय कहने की स्वतंत्रता, तारीफ करनी हो तो किसी स्वतंत्रता की जरूरत ही नहीं. यह तो सऊदी अरब में भी कर सकते हैं और उत्तर कोरिया में भी, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है अप्रिय सच बोलना, तथ्यों पर सही बेबाक समीक्षा करना. देशभक्ति के नाम पर धर्मभक्ति को थोपने की कोशिश की जा रही है

और हिंदू या इसलामी झंडे की जगह तिरंगा लहरा कर धर्मभक्ति को राष्ट्रभक्ति कहने की कोशिश भारत, इसलामी देशों और कम्युनिस्ट देशों में जम कर हो रही है.

महिलाओं को तो फ्रीडम औफ स्पीच का अधिकार है ही नहीं. आज भले ही गुरमेहर अभियान से पीछे हट गई है, लेकिन फिर भी उस ने अपनी आवाज बुलंद कर दुनिया को बहुत पावरफुल मैसेज दिया है कि अगर आप सही हैं तो डरें नहीं. अगर इस तरह हर किशोरी, युवती, महिला सोचेगी तो कोई भी नारीशक्ति को कमजोर नहीं कर पाएगा और न ही रेप, मारने जैसी धमकियां दे कर डरा पाएगा.

प्यार में जाति-धर्म की दीवार का नहीं काम

प्यार दो दिलों का मेल है. जब किसी को किसी से प्यार होता है तो वह उस की जातिधर्म से परे होता है. लेकिन जब प्यार को परवान चढ़ाने की बात आती है तो जातिधर्म की दीवार आड़े आ जाती है. ऐसे में कई प्रेमी युगलों को अपने प्यार को दफन करना पड़ता है. क्या इस नफरत की दीवार को तोड़ा नहीं जा सकता?

हमारे देश में जाति और धर्म इस कदर हावी है कि वे दिलों के रिश्तों को समझ ही नहीं पाते. जब कभी किसी अन्य धर्मावलंबी लड़के या लड़की से प्यार की बात सामने आती है तो दोनों ही पक्ष के लोग इसे सिरे से नकार देते हैं.

कट्टरपंथी लोग, चाहे वे किसी भी जातिधर्म के क्यों न हों, अपने धर्म से इतर रिश्ते को कुबूल नहीं करते. उन की सोच को बदलना नामुमकिन है. यदि उन की जातिधर्म का लड़का या लड़की दूसरी जातिधर्म की लड़की या लड़के से शादी कर भी ले तो वे उस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखते. वे उसे अपनी धनसंपत्ति से बेदखल या वंचित कर देते हैं. कुछ तो ऐसे जोड़े को अपने जाति और समाज से अलग कर देते हैं.

यदि लड़का और लड़की वयस्क हैं, अपनी मरजी से अन्य जातिधर्म की लड़की से शादी करना चाहते हैं तो लड़की के परिजन लड़के के विरुद्ध अपहरण या बहलाफुसला कर भगा कर ले जाने की एफआईआर दर्ज कराते हैं. यही नहीं, प्रेमी पर बलात्कार या यौनशोषण का मामला भी दर्ज करने से नहीं हिचकते. ऐसे में लड़की लाख दुहाई दे, परिजनों के हाथपैर जोड़े पर वे अपना निर्णय नहीं बदलते.

हमारे एक परिचित हैं. उन की लड़की को दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम हो गया. दोनों ने अपने परिजनों को मनाने की कोशिश की. क्योंकि दोनों ही चाहते थे कि उन के परिजन इस खुशी में शामिल हो कर उन्हें अपना प्यार दें. लेकिन दोनों के ही परिजनों ने इस रिश्ते के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की. मजबूर हो कर उन्हें कोर्ट मैरिज करनी पड़ी.

विडंबना देखिए कि न तो वह किसी की बहू के रूप में स्वीकार की गई और न ही बेटी बनी रह सकी, क्योंकि मातापिता ने उस से अपना रिश्ता तोड़ लिया. दोनों ने शादी तो की लेकिन शादी की खुशियां न मिलीं.

हमारे एक मित्र हैं. उन का बेटा डाक्टर है. उसे अपने साथ पढ़ने वाली दूसरे धर्म की लड़की से प्यार हो गया. लड़की वालों ने भले ही रिश्ते के लिए हां कर दी हो लेकिन लड़के वाले अपनी जिद पर अड़ गए कि हम तो अपने धर्म में ही शादी करेंगे. परिणामस्वरूप प्रेमी युगल का संजोया सपना टूट गया.

अमेरिकी थिंकटैंक प्यू रिसर्च सैंटर के अनुसार, भारत में ज्यादातर लोग दूसरे धर्मों में शादी करने के फैसले को सही नहीं मानते हैं. इन में 80 प्रतिशत मुसलिम और 67 प्रतिशत हिंदू हैं. सैंटर ने देश के 26 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों के 30 हजार लोगों पर सर्वे किया है. सर्वे का शीर्षक ‘भारत में धर्म: सहिष्णुता और अलगाव’ था, जिस में देश में 17 भाषाएं बोलने वाले लोगों को शामिल किया गया. इस में 67 प्रतिशत हिंदुओं का कहना था कि यह जरूरी है कि हिंदू महिलाओं को दूसरे धार्मिक समुदायों में शादी करने से रोका जाए. वहीं 65 प्रतिशत हिंदुओं ने कहा कि ‘हिंदू पुरुषों को भी दूसरे धर्म में शादी नहीं करनी चाहिए.’

उन लोगों की भी कमी नहीं है जो कि अपने ही धर्म में जाति के हिसाब से रिश्ते को मंजूर करते हैं. रिश्ता समान बिरादरी का होना जरूरी है. अपनी बिरादरी से नीचे बिरादरी वाले लड़के को बेटी ब्याहना वे अपनी तौहीन समझते हैं. इसी प्रकार, ऊंची जाति या कुल के लोग अपने से नीची जाति या कुल की लड़की को अपनी बहू बनाना नहीं चाहते. यहां जाति की ऊंचनीच प्यार में बाधक बन जाती है.

ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ हिंदू या मुसलिमों में ही कट्टरपंथी लोग हैं. अन्य धर्म जैसे सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध धर्म में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है. विडंबना देखिए कि उन्हें विदेशी दामाद या विदेशी बहू तो मंजूर है लेकिन अपने ही देश की अन्य जातिधर्म में रिश्ता मंजूर नहीं. जब वे विदेशी लड़केलड़की को अपना सकते हैं तो स्वदेशी खून को अपनाने में क्या बुराई है?

ऐसा एक नहीं, सैंकड़ों उदाहरण हैं जिन में जाति, धर्म की दीवार के कारण युवाओं को अपने प्यार का गला घोंटना पड़ा. इतिहास इस बात का साक्षी है. समय के साथ बहुतकुछ बदल गया है. आज कंप्यूटर, इंटरनैट का युग है. नहीं बदली तो जातिधर्म को ले कर लोगों की सोच.

लोगों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती कि न तो कोई धर्म ऊंचा है और न ही कोई नीचा. इसी प्रकार, ऊंचीनीची जाति का भेद हम ने ही बनाया है. इंसान चाहे वह किसी भी जातिधर्म या कुल में पैदा हुआ हो, न किसी से श्रेष्ठ है और न कमतर. हमें अपनी सोच बदलनी चाहिए.

प्यार और शादी एक पवित्र बंधन है. रिश्ते की मिठास तभी है जब हम दूसरी जातिधर्म के रिश्ते को कुबूल करें. अपनी संतानों की खुशी में ही मांबाप को खुशी होनी चाहिए, न कि अपने अडि़यल रवैए की वजह से उन के प्यार और दांपत्य में जहर घोलना चाहिए.

हमें जाति और धर्म के बीच सहिष्णुता बरतनी होगी. जातिधर्म को ले कर नफरत त्यागनी होगी. शादी के बाद यदि लड़की ससुराल के धर्म के साथ अपने धर्म का भी पालन करे तो इस में क्या बुराई है? जब वह ऐसा कर सकती है तो लड़का क्यों नहीं?  उसे भी लड़की की जातिधर्म के प्रति आदरसम्मान प्रकट करना चाहिए.

कोई भी धर्म नफरत फैलाने की बात नहीं करता. हर धर्म में शांति, सौहार्द की बात कही गई है तो फिर जातिधर्म को ले कर नफरत क्यों? आप चाहे जिस जातिधर्म या कुल के हों, आप पहले इंसान और भारतीय हैं. यही आप की पहचान है.

यदि आप पर लव जिहाद कानून लागू होता है तो बिना कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन किया विवाह गैरकानूनी माना जाएगा. जैसे उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अध्यादेश 2020 का पालन होना चाहिए. गैरकानूनी तरीके से किए गए धर्म परिवर्तन के बाद की गई शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती. अध्यादेश, जो कि अब अधिनियम बन चुका है, की धारा 8 और 9 का अनुपालन करना जरूरी है.

कानून की धारा 8 में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसे कम से कम 60 दिनों पहले संबंधित जिले के जिलाधिकारी या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिए एक निर्धारित फार्म में घोषणापत्र देना होगा. धर्म को बलपूर्वक, जबरदस्ती, किसी प्रभाव या प्रलोभन से बदला नहीं जा सकता.

कानून की धारा 9 में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को संबंधित जिलाधिकारी को धर्म परिवर्तन करने की तिथि के 60 दिनों के भीतर एक निर्धारित फार्म में घोषणापत्र भरना होगा. तभी यह कानूनी माना जाएगा. वैसे, 10 राज्यों में इस तरह के कानून लागू हैं.

जीवन की राह आसान बनाएं पेरेंट्स के फैसले

इच्छा और जरूरत का अंतर जेब में रखे पैसों से निर्धारित होता है. बच्चों की कौन सी इच्छा पूरी करनी है और उन की क्या जरूरत है, यह मातापिता से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. उन के फैसले अनुभव और जरूरत के हिसाब से होते हैं.

अक्षत का मूड बहुत खराब था. वह 12वीं के बाद अपने दोस्त कनिष्क की तरह विदेश में पढ़ने जाना चाहता था. पर अक्षत के मम्मीपापा ने एजुकेशन लोन के लिए साफ मना कर दिया था. अक्षत के पापा के अनुसार, ‘‘विदेश में पढ़ने के लिए 30 लाख रुपए का लोन लेने से अच्छा है कि अक्षत भारत के ही किसी अच्छे कालेज से ग्रेजुएशन कर ले.

लेकिन आज, अक्षत के शब्दों में, ‘‘उस समय मैं मम्मीपापा से बेहद नाराज था पर उन्होंने एकदम सही फैसला लिया था. नहीं तो आज मैं और मेरा पूरा परिवार एजुकेशन लोन के कर्ज में डूबा रहता. कोरोना के कारण वैसे ही भविष्य अंधकार में है.’’

ऊर्जा अपनी जन्मदिन की पार्टी अपनी दूसरी फ्रैंड्स की तरह महंगे फाइवस्टार होटल में देना चाहती थी. लेकिन उस की मम्मी ने कहा कि वे लोग एक जन्मदिन के लिए 50 हजार रुपए का खर्च वहन नहीं कर सकते. ऊर्जा ने गुस्से में जन्मदिन पर किसी को नहीं बुलाया. पर उस की जन्मदिन की रात को 12 बजे जब उस की सारी सहेलियां केक ले कर पहुंचीं, तो ऊर्जा की खुशी का ठिकाना न रहा. ऊर्जा की मम्मी ने उस की सभी दोस्तों के मम्मीपापा से परमिशन ले ली थी. पूरी रात ऊर्जा दोस्तों के साथ धमाचौकड़ी करती रही. रात में मम्मीपापा के गले लगते हुए ऊर्जा बोली, ‘‘मम्मी, यह जन्मदिन अब तक का सब से अच्छा जन्मदिन था. जगह से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है लोगों का साथ.’’

काविश को एप्पल का फोन लेने का कितना मन था. उस के ग्रुप में सब के पास एप्पल का ही मोबाइल था. पर उस के पापा ने उस के लिए अपने बजट के हिसाब से उसे एक अपडेटेड एंड्रोइड मोबाइल दिला दिया था. काविश ने गुस्से में उस मोबाइल को यूज नहीं किया था. तभी लौकडाउन हो गया और अचानक से लैपटौप लेना जरूरी हो गया था. काविश के पापा का बिजनैस भी नहीं चल पा रहा था. काविश को समझ नहीं आया था कि वह लैपटौप कैसे लेगा? लेकिन उस के पापा अगले दिन ही काविश के लिए लैपटौप खरीद कर ले आए थे. उन्होंने काविश को सम झाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मोबाइल तुम्हारी इच्छा थी जिसे पूरा करना जरूरी नहीं था, मगर लैपटौप तुम्हारी आवश्यकता थी. अगर मैं अपनी जेब के अनुसार फैसला नहीं लेता और तुम्हें महंगा मोबाइल दिला देता तो अब तुम्हारे लिए लैपटौप नहीं खरीद पाता.’’

बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपने मम्मीपापा के फैसलों से सहमत नहीं होते हैं. ऐसा हो भी सकता है कि उन के फैसले आप को आज के समय के हिसाब से अनुकूल न लगें, लेकिन एक बात अवश्य याद रखें कि उन के फैसले उन के अनुभव के हिसाब से होंगे. अगर उन के फैसलों से आप को लाभ नहीं होगा तो नुकसान भी कदापि नहीं होगा.

चलिए अब जानते हैं कुछ कारण कि क्यों हमारे मातापिता हमारे फैसले अपनी जेब को देख कर लेते हैं.

जितनी चादर उतने ही पैर फैलाएं : अगर मम्मीपापा आप की जिद मान कर अपनी चादर से बाहर पैर फैलाएंगे तो बाद में वह आप के लिए ही नुकसानदेह होगा. ऐसा हो सकता है कि आप की जिद पूरी करने के चक्कर में वे अपने जरूरी खर्चों में कटौती कर दें. इसलिए अपने मम्मीपापा के फैसलों को सम झने की कोशिश करें, इस में सब की भलाई ही छिपी हुई होती है.

अनुभव है महत्त्वपूर्ण : मांबाप के हर निर्णय में उन के अनुभव की सीख होती है. उन्होंने आप से अधिक दुनिया देखी है. मम्मीपापा घर की आर्थिक हालत के हिसाब से ही आप की जरूरत और इच्छाओं को पूरा करते हैं. इसलिए उन के फैसलों को दिल से स्वीकार करें.

दूसरों से न करें तुलना : अपने दोस्तों से अपनी तुलना कभी न करें. हर किसी के परिवार का आर्थिक स्तर अलग होता है और सब का रहनसहन भी आर्थिक स्तर के हिसाब से ही तय होता है. अगर आप के दोस्त के पास एप्पल का फोन है तो जरूरी नहीं कि आप भी वही लें. बेवजह की तुलना आप को नकारात्मक ही बनाएगी.

जरूरत और इच्छाओं में फर्क करना सीखें : यह बात अवश्य याद रखें कि जरूरतों और इच्छाओं में फर्क करना सीख लें. आप के मम्मीपापा आप की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही बाध्य हैं. अपनी इच्छाओं को पूरा करना आप की जिम्मेदारी है. अगर अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से आप फर्क करना नहीं सीखेंगे तो सदा ही दुखी रहेंगे.

खुल कर करें बातचीत : कभीकभी ऐसा भी हो सकता है कि आप के लिए कोई वस्तु आवश्यक हो लेकिन मम्मीपापा की नजरों में वह जरूरी न हो. ऐसे में आप परेशान न हों. मम्मीपापा से खुल कर बातचीत करें. अगर आप की बात में उन्हें वजन लगा तो वे अवश्य आप को वह वस्तु दिलाने से गुरेज नही करेंगे.

झूठी शान बढ़ाती हैं मुश्किलें : अगर आप के मम्मीपापा आप की  झूठी शान के कारण अपनी जेब से अधिक खर्च करेंगे तो भविष्य में आप की ही मुश्किलें बढ़ेंगी.  झूठी आनबानशान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है सादा और सरल जीवन. अपनी जेब के अनुसार किए गए फैसले भविष्य की खुशियों को सदा के लिए सुनिश्चित कर लेते हैं.

आज का कर्ज भविष्य का मर्ज : यह बात गांठ बांध कर रख लें कि कर्ज से बड़ा कोई मर्ज नहीं होता है. आप के कहे अनुसार, अगर आप के मम्मीपापा आप के सपनों को पूरा करने के लिए कर्ज भी ले लेंगे तो उन के साथसाथ आप भी इस मर्ज का शिकार हो जाएंगे. अगर अपने जीवनकाल में वे इस मर्ज से उबर न पाए तो आप भी इस मर्ज का शिकार हो जाएंगे. तनावरहित जीवन जीने के लिए, कर्ज नामक मर्ज से सदैव दूर रहें. जेब के अनुसार किए गए मम्मीपापा के फैसले आप के जीवन की राह को आसान बनाते हैं.

मेहमान बनें, सिरदर्द नहीं : रखें इन बातों का खयाल

अपने किसी जानपहचान वाले या सगेसंबंधी के यहां छुट्टियां मनाने जाना एक सुखद अनुभव है. भागदौड़ भरी जिंदगी में वहां कई ऐसे पल मिल जाते हैं, जब हमें चैन की सांसें मिलती हैं. आबोहवा बदलने से बहुत सी परेशानियां तो अपनेआप ही चली जाती हैं. चाहे कोई भी उम्र हो, सब के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है. हम खुद को तरोताजा महसूस करने लगते हैं.

आसान शब्दों में कहें तो हमारा तनमन आने वाले समय के लिए रीचार्ज हो जाता है, इसलिए हमारा भी यह फर्ज है कि जिन लोगों के चलते हम को इतना सब मिला, उन के लिए हम भी थोड़ा सोचें.

चलिए, जिक्र करते हैं उन बातों की, जिन का हमें मेहमान बनते वक्त हमेशा खयाल रखना चाहिए:

* अगर हमारा कार्यक्रम लंबा है यानी 15-20 दिन या महीनेभर का है, तो कोशिश की जानी चाहिए कि उसी शहर में जाएं, जहां एक से ज्यादा रिश्तेदार हों. 2-2, 3-3 दिन तक बारीबारी से सब के यहां रुकते रहने से किसी पर ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा और सभी से मुलाकात भी हो जाएगी.

* छुट्टियों में किसी खास के पास जाने की आदत नहीं बनानी चाहिए. इस से उस के मन में आप के लिए नयापन लगातार कम होता जाता है, भले ही वह आप का मायका या पुश्तैनी घर ही क्यों न हो. समय के साथ लोगों की पसंद और प्राथमिकताएं लगातार बदलती हैं.

* बहुत से लोगों की आदत होती है कि किसी के भी घर पहुंच जाते हैं. लोग भले ही ऊपर से कुछ न कहें, लेकिन आज की गलाकाट प्रतियोगिता के जमाने में हर कोई इतना फ्री नहीं होता कि उस को बारबार किसी की खातिरदारी करने में दिलचस्पी हो, वह भी दूर के जानपहचान वालों की. खुद को किसी के सिर पर थोपने की लत अपनी इज्जत के लिए भी खतरा है.

* हम अपने घर में तो बच्चों को खूब रोकटोक करते हैं, लेकिन किसी के घर मेहमान बन कर जाते ही उन पर से ध्यान हटा लेते हैं. ऊपर से उन के सामने ही यह बोल कर कि ‘यह तो बहुत शरारती है’ एक तरह से उन को खुली छूट दे देते हैं.

मेजबान खुद आप को संभालने में जुटा हुआ है, ऐसे में अगर आप के बच्चे उस के घर में धमाचौकड़ी, तोड़फोड़ करते रहेंगे, तो झिझक के मारे वह उन को तो कुछ नहीं कहेगा, लेकिन आप के अगली बार न आने की बात मन में जरूर सोचने लगेगा.

* अकसर देखा गया है कि अपने से कम पैसे वाले मेजबान को मेहमान अपना रोब दिखाने का ‘सौफ्ट टारगेट’ समझ लेते हैं. आप कितने महंगे कपड़े पहनते हैं, कितने का खाते हैं. इस का गैरजरूरी हिसाब देना मेजबान के मन में आप के लिए नेगेटिव भाव पैदा करता है.

* मेजबान के बच्चों की तुलना ज्यादा नंबर लाने वाले अपने बच्चे से मत कीजिए. इस से वे बच्चे आप से कन्नी काटने लगेंगे. बच्चों को असहज देख उन के मांबाप भी असहज हो जाएंगे.

अगर आप मेजबान के बच्चों का सचमुच भला चाहते हैं, तो उन्हें कभीकभार दोस्त की तरह सलाह दे दें. अपने बच्चों के सामने इशारोंइशारों में छोटा कतई न दिखाएं.

* हर किसी का अपना स्वभाव होता है. हो सकता है कि किसी को ज्यादा लोगों से मिलनाजुलना पसंद न हो या वह आप से न मिलना चाहे. घर में जिन से आप की अच्छी अंडरस्टैंडिंग है, उन तक ही सीमित रहिए. इस से आप को भरपूर स्वागत का अनुभव होगा.

* जिस मेजबान की जो हैसियत है, उसे उस की जरूरत के हिसाब से उपहार दें. सभी जगह आधा किलो मिठाई का डब्बा ले कर चलने की आदत सही नहीं है. हर कोई आप से प्यार किसी न किसी उम्मीद के साथ ही करता है, इस सच को स्वीकार करना सीखें.

* मेजबान से बहुत ज्यादा प्यार जताना वह भी केवल शब्दों के जरीए, उन के मन में आप की इमेज पर बुरा असर डालेगा. सच्चा प्यार है तो उस को अपने काम से दिखलाइए, वरना बदलाव सामान्य रखिए. खोखली बातें कुछ दिनों तक ही अच्छी लगती हैं.

इन बातों का ध्यान रखें और देखें कि हर मेजबान खुद ही कहेगा, ‘‘आप का हमारे घर में स्वागत है.’’

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