एक सुबह प्रिया अपने स्कूल की एक पिकनिक ट्रिप के लिए तैयार हो रही थी. 9वीं जमात के दोनों सैक्शन को सूरजकुंड घुमाने का प्रोग्राम था. प्रिया अपने बैग में खानेपीने का सामान रख रही थी. तभी उस ने एक पैकेट उठाया और रसोईघर में जा कर उसे कैंची से काटने लगी. राकेश भी लाड़लाड़ में प्रिया के पीछे जा कर देखने लगा और पूछा, ‘‘क्या काट रही हो?’’ प्रिया ने प्लास्टिक का एक पैकेट दिखाते हुए कहा, ‘‘यह है. और क्या काटूंगी...’’ राकेश ने देखा कि प्रिया उस पैकेट से 2 सैनेटरी पैड निकाल कर अपने बैग में रख रही थी. राकेश ने बड़े प्यार से उस के सिर पर हाथ रखा और ‘ध्यान से रहना’ बोल कर रसोईघर से बाहर चला आया.

एक पिता का अपनी बेटी के लिए ऐसा लगाव यह दिखाता है कि बदलते जमाने में बेटी की माहवारी को ले कर पिता में यह जागरूकता होनी ही चाहिए. न तो प्रिया की तरह कोई बेटी सैनेटरी पैड को ले कर झिझक महसूस करे और न ही राकेश की तरह कोई पिता अपनी बेटी के ‘उन दिनों’ के बारे में जान कर शर्मिंदा हो. यह उदाहरण इस बात को भी सिरे से नकारता है कि सिर्फ मांबेटी में ही गुपचुप तरीके से माहवारी पर बात की जाए, क्योंकि आज भी समाज में यही सोच गहरे तक पैठी है कि औरत ही औरत की इस समस्या को अच्छी तरह से समझ सकती है और मर्दों को परदा रखना चाहिए, जबकि विज्ञान के नजरिए से सोचें तो माहवारी के बारे में जितनी जानकारी औरतों या लड़कियों को होनी चाहिए, उतनी ही मर्दों और लड़कों को भी होनी चाहिए, गरीब और निचली जाति में तो खासकर. माहवारी में सैनेटरी पैड कितना अहम होता है, स्कौटलैंड से इस बात को समझते हैं. माहवारी से जुड़ी गरीबी को मिटाने के लिए यह देश पीरियड प्रोडक्ट्स को बिलकुल मुफ्त बनाने वाला पहला देश बन गया है.

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