सुलेखा की होली- देवर भाभी का अनोखा मजाक

सुलेखा की हाल ही में शादी हुई थी. होली के मौके पर वह पहली बार अपनी ससुराल में थी. होली को ले कर उस के मन में बहुत उमंगें थीं. वैसे तो वह गांव की रहने वाली थी, मगर शादी से पहले वह बहुत दिनों तक शहर में भी रह चुकी थी.

होली के दिन सुबह से ही पूरा गांव होली के रंग में डूबा हुआ था. होली के रंग में प्यार का रंग मिला कर सुलेखा भी अपने पति दिनेश के साथ होली खेलने लगी.

दिनेश ने सुलेखा को रंगों से सराबोर कर दिया. नीलेपीले रंगों में लिपीपुती सुलेखा बंदरिया लग रही थी. इस तरह हंसीठिठोली के बीच दोनों ने होली मनाई.

‘‘मैं अपने दोस्तों के साथ होली खेलने जा रहा हूं. अगर मैं उन के साथ नहीं गया, तो वे मुझे जोरू का गुलाम कहेंगे. थोड़ी देर बाद आऊंगा,’’ यह कह कर दिनेश घर से निकल गया.

सुलेखा मुसकराते हुए पति को जाते हुए देखती रही. दरवाजा बंद कर के वह जैसे ही मुड़ी, तभी उस की नजर एक कोने में चुपचाप खड़े अपने देवर महेश पर पड़ी.

‘‘क्यों देवरजी, तुम इतनी दूर क्यों खड़े हो? क्या मुझ से होली खेलने से डरते हो? आओ मेरे पास और खेलो मुझ से होली…’’

‘‘तुम तो पहले से ही रंगों से लिपीपुती हो भाभी. इस पर मेरा रंग कहां चढ़ेगा…’’ महेश शरारत से बोला.

‘‘क्यों नहीं चढ़ेगा. क्या तुम्हारे मन में कोई ‘चोर’ है…’’ सुलेखा मुसकराते हुए बोली.

‘‘नहीं तो…’’ इतना कह कर महेश झेंप गया.

‘‘तो फिर होली खेलो. देवर से होली खेलने के लिए मैं बेकरार हूं…’’ कह कर सुलेखा ने महेश को रंग लगा दिया और फिर खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘तुम तो बंदर लग रहे हो देवरजी.’’

महेश ने भी ‘होली है…’ कह कर सुलेखा के गालों पर गुलाल मल दिया.

भाभी से होली खेल कर महेश खुश हो गया. होली की खुशियां लूटने के बाद सुलेखा घर के कामों में जुट गई.

थोड़ी देर बाद ही दिनेश अपने दोस्तों के साथ लौट आया और उन्हें आंगन में बैठा कर सुलेखा से बोला, ‘‘मेरे दोस्त तुम से होली खेलने आए हैं. तुम उन के साथ होली खेल लो.’’

‘‘मैं उन के साथ होली नहीं खेलूंगी.’’

‘‘कैसी बातें करती हो? वे मेरे दोस्त हैं. थोड़ा सा रंग डालेंगे और चले जाएंगे. अगर तुम नहीं जाओगी, तो वे बुरा मान जाएंगे.’’

‘‘अच्छा, ठीक है…’’ सुलेखा उठ कर आंगन में चली आई.

दिनेश के दोस्त नईनवेली खूबसूरत भाभी से होली खेलने के एहसास से ही रोमांचित हो रहे थे.

सुलेखा को देखते ही उन की आंखों में चमक आ गई. वे नशे में तो थे ही, उन्होंने आव देखा न ताव, सुलेखा पर टूट पड़े. कोई उस के गालों पर रंग मलने लगा, तो कोई चोली भिगोने लगा. कोई तो रंग लगाने के बहाने उस का बदन सहलाने लगा.

दिनेश कोने में खड़ा हो कर यह तमाशा देख रहा था. उसे यह सब अच्छा तो नहीं लग रहा था, मगर वह दोस्तों को क्या कह कर मना करता. वह भी तो उन सब की बीवियों के साथ ऐसी ही होली खेल कर आ रहा था.

‘‘हटो, दूर हटो… रंग डालना है, तो दूर से डालो…’’ तभी सुलेखा उन्हें परे करते हुए दहाड़ कर बोली, ‘‘अरे, देवर तो भाई जैसे होते हैं. क्या वे भाभी के साथ इस तरह से होली खेलते हैं? कैसे इनसान हो तुम लोग? क्या तुम्हारे गांव में ऐसी ही होली खेली जाती है? अगर कोई लाजशर्म नहीं है, तो मैं नंगी हो जाती हूं, फिर जितना चाहे, मेरे बदन से होली खेल लेना…’’

सुलेखा के तेवर देख कर सभी पीछे हट गए. किसी अपराधी की तरह उन सब के सिर शर्म से झुक गए. किसी में भी सुलेखा से आंख मिलाने की हिम्मत न थी. उन का सारा नशा काफूर हो चुका था.

थोड़ी देर में सारे दोस्त अपना सा मुंह ले कर चुपचाप चले गए. बीवी के इस रूप को दिनेश हैरानी से देखता रह गया.

 

‘‘यह क्या किया तुम ने…’’ दोस्तों के जाते ही दिनेश बोला.

‘‘मैं ने उन्हें होली का पाठ पढ़ाया और बिलकुल ठीक किया. आप भी अजीब आदमी हैं. दोस्तों की इतनी परवाह है, लेकिन मेरी नहीं…’’ सुलेखा ने कहा.

‘‘ऐसा क्यों कहती हो. मैं तो तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘क्या यही है आप का प्यार… कोई आप की आंखों के सामने आप की बीवी के साथ छेड़खानी करे और आप चुपचाप खड़े हो कर तमाशा देखते रहें. कैसे पति हैं आप…

‘‘अब खड़ेखड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हैं. जल्दी से 2 बालटी पानी लाइए, मैं नहाऊंगी.’’

दिनेश ने चुपचाप पानी ला कर रख दिया और सुलेखा कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई.

दरवाजा बंद करने से पहले जब सुलेखा ने दिनेश की तरफ मुसकरा कर देखा तो बीवी की इस अदा पर वह ठगा सा रह गया.

‘‘अंगअंग धो लूं जरा मलमल के बाण चलाऊंगी नैनन के… हर अंग का रंग निखार लूं कि सजना है मुझे सजना के लिए…’’ बाथरूम में नहाते हुए सुलेखा मस्ती में गुनगुनाने लगी.

बाहर खड़े दिनेश को अपनी बीवी पर नाज हो रहा था.

गोल्डन वुमन: फैशन मौडल कैसे बनी दुल्हन

दिल्ली के होटल ताज के बाहर काले रंग की एक चमचमाती कार आ कर रुकती है. लेटैस्ट मौडल की इस कार का दरवाजा खुलता है और उस में से हाई हील्स और स्टाइलिश पार्टीवियर ड्रैस में साधना बाहर निकलती है. उस के बालों में गोल्डन कलरिंग की हुई है. डायमंड जड़े सुनहरे पर्स और गौगल्स को संभालती साधना होटल के अंदर प्रवेश करती है.

रिसैप्शन एरिया में ही उस की सहेली निभा उस का इंतजार कर रही थी. साधना को गौर से देखते हुए उस ने कहा,”हाय साधना, न्यू हेयरस्टाइल. नाइस यार… तेरी तो ड्रैस भी नायाब है.”

“अरे निभा, तुझे याद नहीं पिछली दफा जब पार्टी के बाद मैं तन्वी के साथ बाजार गई थी, वहीं यह ड्रैस मुझे पसंद आ गई थी. जानती है इस के किनारों पर गोल्ड का काम है. इस ड्रैस के फ्रंट पर भी सीक्वैंस, स्टोंस, बीड्स और गोल्ड का काम किया हुआ है.”

“गौर्जियस यार. वैसे भी यू आर अ गोल्डन वूमन. गोल्ड बहुत पसंद हैं न तुझे. तेरी ज्यादातर ड्रैस में गोल्ड का काम जरूर होता है. वैसे कितने की है यह ड्रैस ?”

“ज्यादा की नहीं है यार. बस यही कोई ₹1 लाख की है. बट आई मस्ट से, इट्स वैरी कंफरटेबल. फील ही नहीं हो रहा कि कुछ पहना भी है,” कह कर साधना हंस पड़ी, फिर निभा की तरफ देखती हुई बोली,” वैसे तुम्हारी ड्रैस भी बहुत प्रिटी है यार.”इसी तरह बातें करतीं एकदूसरे का हाथ थामे दोनों आगे बढ़ गईं.

साधना अपनी 20-25 क्लोज फ्रैंड्स के साथ शाम तक शानदार पार्टी का मजा लेती रही. पार्टी साधना की तरफ से ही थी. दरअसल, साधना ने अपने बेटे अभिनव की 10वीं में बेहतरीन प्रदर्शन की खुशी में अपनी सहेलियों को दावत दी थी. दावत भी ऐसीवैसी नहीं थी. इस दावत में सर्व किए गए 1-1 प्लेट की कीमत हजारों रूपए थी.

सलाहकारों और सहयोगियों का हुजूम हमेशा उस के साथ चलता था. इधर कुछ दिनों से सुधाकर कुछ परेशान रहने लगा था. साधना समझती थी कि इस की वजह कारोबार में आ रही समस्याएं होंगी. सुधाकर कभी भी साधना से अपनी बिजनैस संबंधित समस्याएं शेयर नहीं करता था और साधना कभी उस के काम में कोई दखल देती भी नहीं थी.

साधना ने सुधाकर से लव मैरिज की थी. दरअसल, साधना एक मौडल थी और राजस्थानी परिवार से जुड़ी थी. वहीँ सुधाकर भी मूल रूप से राजस्थानी ही था. दोनों के ही परिवार वाले अब दिल्ली में बसे हुए थे. साधना का फैशन सैंस और स्टाइलिश लुक सुधाकर के मन में समा गया था.

एक फैशन शो ईवेंट के दौरान उस ने साधना से अपने दिल की बात पूरे राजस्थानी अंदाज में कही और वहीं दोनों ने एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुन लिया.

वैसे सुधाकर के घर वालों ने साधना को सहजता से स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे एक मौडल को बहू बनाने के पक्ष में नहीं थे. मगर जब उन्होंने करीब से उस के मृदुल स्वभाव और परिपक्व सोच को परखा तो तुरंत तैयार हो गए.

दोनों अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. साधना के 2 बच्चे थे. पहला बेटा अभिनव था जो 10वीं पास कर चुका था जबकि बेटी अभी छोटी थी.

साधना अपने पैशन को जिंदा रखना चाहती थी मगर शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियां देखते हुए उस ने फैशन मौडल के बजाय फैशन इंफ्लुऐंसर और फैशन मोटीवेटर के रूप में घर से ही काम करना शुरू किया था.

पार्टी खत्म कर साधना ने अपनी सभी सहेलियों से विदा ली और अपने शानदार बंगले में कदम रखा तो यह देख कर दंग रह गई की ड्राइंगरूम में बहुत से लोग मौजूद हैं. पति सामने मुंह लटकाए एक अपराधी की तरह खड़े हैं. घर के सभी नौकरचाकर भी एक कोने में दुबके हुए हुए हैं.

घबराते हुए साधना अंदर दाखिल हुई और पति के पास जाती हुई बोली,”क्या हुआ सुधाकर और ये लोग कौन हैं? ”

सुधाकर टूट गया और साधना के कंधे पर सिर रख कर रोता हुआ बोला,”सब खत्म हो गया साधना. हम कंगाल हो गए. ये बैंक वाले हैं और अपनी लोन की रकम उगाहने के लिए आए हैं. ये हमारे मकान और गाड़ियों पर कब्जा लेने के लिए खड़े हैं.”

साधना सन्न रह गई मगर पति को दिलासा देती हुई बोली,”परेशान मत हो सुधाकर, सब ठीक हो जाएगा.”

“मैं भी अब तक यही तो सोचता रहा कि सब ठीक हो जाएगा. एक के बाद एक बिजनैस डूबते रहे मगर मैं लोन लेले कर नए सपने बुनता रहा. तुम्हें भी कभी एहसास नहीं होने दिया कि आजकल हमारी कंपनियां नफा देने के बजाय नुकसान दे रही हैं. मेरे बैंक लोन इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि अब मैं सब कुछ गंवा देने की हालत में पहुंच गया हूं. बस मुझे एक साइन करना है और फिर यह बंगलागाड़ी, यह शानोशौकत सबकुछ खत्म हो जाएगा.”

“तो क्या हुआ सुधाकर, अब हम एक सामान्य जीवन जी लेंगे. सालों शानोशौकत का अनुभव किया है तो कुछ समय साधारण जीवन का भी अनुभव होना चाहिए न और कौन जाने तुम बहुत जल्द ही सब कुछ वापस खड़ा कर लोगे. मुझे पूरा विश्वास है तुम पर. कर दो साइन सुधाकर ज्यादा मत सोचो.”

मनमसोस कर सुधाकर ने सबकुछ बैंक वालों को सौंप दिया और इस तरह एक झटके में अरबपति दंपत्ति का परिवार साधारण मध्यवर्गीय परिवार में तबदील हो गया. सुधाकर और साधना ने तो फिर भी परिस्थितियों से समझौता कर लिया मगर असल मुसीबत बच्चों की थी जिन्होंने बचपन से एक लग्जीरियस लाइफ जी थी और अब अचानक आए इस बदलाव से वे हतप्रभ थे.

बेटी पायल तो इस छोटे से नए घर में आ कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. बेटा अभिनव भी समान्य नहीं रह पाया. वह अपने दोस्तों से कतराने लगा क्योंकि वे लोग उस से हजारों सवाल करने लगे थे. साधना खुद भी अंदर से बहुत परेशान थी मगर उसे पति और बच्चों को इस सदमे से उबारना था. साधना ने पहले अपने मन को समझाया और फिर शांत मन से बच्चों को समझाने में जुट गई.

बेटी को अपने पास बैठा कर साधना ने पूछा,”आप क्यों रो रहे हो?”

“मम्मा हम गरीब हो गए. अब हमें बहुत कठिन दिन गुजारने होंगे न. हम अपने मन का कुछ नहीं कर पाएंगे…”

“ऐसा क्यों कह रही हो मेरी बच्ची? अमीरीगरीबी तो जिंदगी में लगी ही रहती है. यह जिंदगी का एक हिस्सा है, एक फेज की तरह है बिलकुल वैसे ही जैसे रोज सुबह होती है, शाम होती है फिर रात हो जाती है. अगला दिन आता है और फिर से सुबह हो जाती है. यह सब तो चलता रहता है. अब देखो न, कभी ठंड, कभी गरमी और कभी बारिश. मौसम बदलते रहते हैं न. जानते हो गरमी के बाद बारिश न आए तो फसलें सूख जाएंगी और हमें खाने की चीजें नहीं मिलेंगी. इसी तरह जिंदगी भी रंग बदलती है.”

“पर मम्मा, यह फेज अच्छा नहीं है न?”

“किस ने कहा बेटे? हर फेज अच्छा होता है. हमें कुछ सिखा कर जाता है. कोशिश करो तो जिंदगी के इस फेज से बहुत कुछ सीख सकते हो.”

“देखो बेटे, जीवन में कठिनाइयां आती हैं तभी इंसान उस से लड़ना सीखता है, मजबूत बनता है. जो लोग हमेशा अमीरी में जीते हैं उन के अंदर कठिन परिस्थितियों से निबटने की ताकत नहीं आ पाती. अमीर बच्चों को सब कुछ आसानी से मिल जाता है. इसलिए उन के अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं आती. मगर साधारण लोग सबकुछ अपनी मेहनत के बल पर हासिल करते हैं. इसी में असली खुशी है.”

पायल मां को देखती रही. वह कोशिश कर रही थी कि मां के तर्कों को मान ले मगर बच्ची के मन अंदर कुछ टूट गया था. अभिनव भी काफी गुमसुम रहने लगा था.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. बच्चे अभी भी इस नई जिंदगी में सामान्य नहीं थे.

एक दिन बेटा जब स्कूल से वापस लौटा तो साधना हैरान रह गई. उस के कपड़े कई जगह से फटे हुए थे. बाल बिखरे थे और कई जगह चोट भी लगी थी. उस के साथ आए लड़के ने बताया कि स्कूल में दूसरे लड़कों से मारपीट की वजह से यह हालत हुई है. उस लड़के के जाने के बाद साधना ने जल्दीजल्दी पहले तो बेटे को नहलाया और फिर उस की मरहमपट्टी की. सिर पर ठंडे पानी की फुहारें पड़ीं तो अभिनव थोड़ा सामान्य हुआ.

अब बेटे को पास बैठा कर और उस की आंखों में देखते हुए साधना ने पूछा,”यह सब क्या है अवि? अपने दोस्तों से लड़ने की वजह क्या थी? ऐसा क्या हो गया जो तुम ने मारपीट की?”

अभिनव अचानक रोता हुआ उस की गोद में सिर रख कर लेट गया और बोला,”मां, स्कूल का एक लड़का पापा को कंगाल और दिवालिया कह रहा था. उस ने मुझे कंगला का बेटा कहा. इसी बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं सह नहीं सका और उस पर टूट पड़ा.”

“बेटे, ऐसा क्या गलत कह दिया था उस ने? और यदि गलत कहा भी तो तुम्हें क्या फर्क पड़ता है जबकि बात ही गलत है? देखो बेटा, तुम्हारे पापा दिवालिया हुए थे. उन की संपत्ति जब्त कर ली गई थी. इस की खबर न्यूज चैनल और अखबारों में भी आई थी. ऐसे में संभव है कि उस लड़के के घर में भी इस बात पर चर्चा हुई होगी. वह लड़का किसी बात पर तुम से नाराज होगा इसलिए उस ने तुम्हें उकसाने के लिए इस बात को गलत तरीके से कहा और तुम सचमुच भड़क उठे.

 

“पर मौम, वह सब के सामने ऐसी बातें कर रहा था तो मैं भला क्या करता? चुपचाप आगे बढ़ जाता?”

“या तो चुपचाप आगे बढ़ जाते या फिर मुसकरा कर कहते कि डोंट वरी हम फिर से पहले जैसे बन जाएंगे,” साधना ने समझाया.

सुन कर अभिनव को हंसी आ गई. वह मां के हाथ चूमता हुआ बोला,”मौम यू आर ग्रेट. कहां से लाते हो आप इतना पैशेंस?”

साधना ने हंस कर कहा,” यह पैशेंस अब तुम्हें भी अपने अंदर पैदा करना है बेटे. तभी तुम जिंदगी की हर जंग जीत सकोगे.”

“ओके मौम मैं ऐसा कर के दिखाऊंगा.”

बेटे का माथा प्यार से सहलाते हुए साधना एक खुशनुमा भविष्य की उम्मीद में खो गई.

2-3 साल इसी तरह बीत गए. साधना अपने बच्चों को कम में जीने का प्रशिक्षण देती रहती. जब बेटा दोस्तों को पार्टी देने की बात कर रूपए मांगता तो वह अपने दोस्तों को घर पर बुला लेने की बात करती और अपने हाथों का बना खाना खिलाती. जब वह जिम जौइन करने की बात करता तो साधना उसे घर पर ही योगा और व्यायाम कर के फिट रहने के उपाय समझाती. उसे बेवजह के स्कूल टूअर या फंक्शन में शामिल होने के बजाय उस समय का उपयोग पढ़ाई करने और भविष्य संवारने में लगाने को कहती. वह अपनी बिटिया को भी पैसे बरबाद करने के बजाय बचत करने के तरीके समझाती.

उस दिन साधना की बेटी पायल का बर्थडे था. साधना के कहने पर पायल इस बार अपनी बर्थडे पार्टी साधारण तरीके से मनाने की बात तो मान गई मगर एक खूबसूरत नई ड्रैस के लिए अड़ गई. साधना ने उस का मन रखने के लिए ड्रैस खरीद दी. 3-4 दिन बाद ही पायल फिर से एक नई ड्रैस के लिए मिन्नतें करने लगी.

“मगर क्यों? अभी तो लाई थी मैं नई ड्रैस,” साधना ने पूछा तो वह बोली,”मम्मा, मेरी बैस्ट फ्रैंड का बर्थडे है. उस के बर्थडे पर मैं अपनी बर्थडे वाली ड्रैस रिपीट कैसे करूं? इस के अलावा कोई नई ड्रैस है भी नहीं मेरे पास.”

“ओके बेटा. परेशान न हो. आप शाम को स्कूल से आओगे तब तक आप की नई ड्रैस आ चुकी होगी.”

“थैंक यू मम्मा,” कह कर पायल हंसतीमुसकराती चली गई.

पायल के जाने के बाद साधना सोचने लगी कि बेटी के लिए एक नई पार्टीवियर ड्रैस का इंतजाम कैसे किया जाए. तभी उस के दिमाग में एक आईडिया आया. उस ने बेटी की एक पुरानी ड्रैस निकाली और उस पर अपने फैशन डिजाइनर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए सितारे, स्टोंस, बीड्स और नेट आदि का काम कर और स्टाइलिश कटिंग दे कर उस ड्रैस को एक खूबसूरत पार्टीवियर ड्रैस बना दिया. शाम को जब पायल लौटी और मम्मी के हाथों में प्यारी सी ड्रैस देखी तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

रात में जब साधना ने सुधाकर को सारी बात बताई तो साधना का हाथ पकड़ कर वह बोला,”मैं हमेशा कहता था न यू आर अ गोल्डन वूमन. आज तुम ने यह साबित कर दिया. तुम्हारे गोल्डन कलर्ड हेयर, गोल्डन ड्रैस, गोल्डन ऐक्सेसरीज ही तुम्हें गोल्डन नहीं बनाते बल्कि तुम्हारा दिल भी गोल्डन है. सच सोने का दिल रखती हो तुम. मेरी जिंदगी में इतनी तकलीफें आईं मगर तुम ने अपनी समझदारी और धैर्य से न केवल मुझे हिम्मत दी बल्कि बच्चों को भी हर हाल में खुश हो कर जीना सिखा दिया. थैंक्स साधना.”

साधना ने मुसकराते हुए कहा,”मैं तुम्हारी जीवनसाथी हूं. सुख हो या दुख हो, सम्पन्नता हो या परेशानी, मुझे तुम्हारे साथ हौसला बन कर चलना है. मैं न खुद टूटूंगी और न तुम्हें टूटने दूंगी.”

सुधाकर के चेहरे पर मुसकान और आंखों में प्यार झलक उठा था.

फोन में चला जाए पानी तो अपनाएं ये टिप्स

होली खेलने के दौरान पानी से भीगना और अलग-अलग रंगों में रंग जाने का अलग ही मजा होता है. होली के त्योहार में सबसे बड़ा खतरा होता है मोबाइल फोन को. आमतौर पर लोग होली खेलने के दौरान अपने फोन को बचाने की हर संभव कोशिश करते हैं, लेकिन होली की मस्ती में कभी-कभी फोन की सेफ्टी में चूक हो ही जाती है.

स्मार्टफोन में होली खेलने के दौरान अगर पानी चला जाए तो आपके फोन के खराब हो जाने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसीलिए आपको कुछ ऐसे टिप्स  बताने रहे हैं जो फोन के पानी में भीग जाने की स्थिति में आपको अपनाना चाहिए.स्मार्टफोन को औफ करने के बाद उसे साफ और सूखे कपड़े से पोंछ लें और फिर इसे किसी पेपर टिशू या किचन टावल में लपेट दें ताकि वह फोन में मौजूद पानी को सोख लें.

इसके बाद तुरंत फोन से सिम कार्ड और मेमरी कार्ड निकाल लें और फोन को हर तरफ से झटकें ताकि उसके भीतर गया पानी बाहर आ जाएअगर आपका स्मार्टफोन पानी में गिर जाए या पानी से भीग जाए तो तुरंत उसे स्विच औफ कर दें. भीगा हुआ फोन इस्तेमाल करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि पानी फोन के सर्किट्स को नुकसान पहुंचा सकता है और स्मार्टफोन हमेशा के लिए खराब हो सकता है.

आप फोन को सुखाने के लिए इसका बैक पैनल खोलकर सीधे धूप में भी रख सकती हैं. धूप में भी कुछ ही देर में फोन में मौजूद सारा पानी सूख जाता है. हालांकि ऐसा करने में यह ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादा तेज धूप में बहुत देर तक फोन न रखें क्योंकि गर्मी से इसके प्लास्टिक कौम्पोनेंट पिघल भी सकते हैं.

जैसे ही फोन औन हो तो जल्द से जल्द इसके अपने पूरे डेटा का बैकअप ले लें. संभव है कि फोन के कुछ पार्ट में खराबी आ गई हो और वे समय के साथ खराब हो जाएं इसलिए आपके फोन में मौजूद डेटा हमेशा के लिए चला जाएगा.

-कभी ना करें ये काम

अगर आपका फोन पानी में भीग गया है और वह वारंटी पीरियड में है तो इसे औथराइज्ड सर्विस स्टेशन में ले जाएं. हालांकि आपको यह ध्यान रखना होगा कि कंपनी से यह बात छिपाएं नहीं कि आपका फोन पानी में भीगने से खराब हुआ है क्योंकि सर्विस सेंटर में फोन के खुलते ही यह पता चल जाता है कि फोन भीगने से खराब हुआ है. अगर ऐसा होता है कंपनी आपको वारंटी नहीं देगी.

फोन के पानी में भीग जाने पर कभी भी इसे हेयरड्रायर से सुखाने की कोशिश न करें. हेयरड्रायर की हवा बहुत गर्म होती है और इससे फोन के इलेक्ट्रॉनिक काम्पोनेंट्स खराब हो सकते हैं. इसके अलावा फोन को सुखाने के लिए उसे किसी हौट अवन या रेडियेटर पास भी न रखें.

फोन के भीगने के बाद इसे चार्ज न करें क्योंकि इससे शौर्ट सर्किट हो सकता है जो डिवाइस को और ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा फोन में कोई नुकीली चीज डालने का प्रयास भी न करें क्योंकि अगर ऐसा होता है तो पानी आपके फोन के और भीतर जा सकता है और फोन के कॉम्पोनेंट्स खराब हो सकते हैं.

अगर आप ऊपर बताई गई बातों का ध्यान रखें तो होली पर फोन के भीग जाने पर भी आप उसे सही कर सकती हैं. ध्यान रहे, हमेशा इलेक्ट्रौनिक डिवाइसेज को पानी से दूर रखना चाहिए क्योंकि पानी से ये खराब हो जाते हैं लेकिन फिर भी अगर कभी ये भीग जाएं तो ऊपर बताए गए कदम उठाएं.

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Holi Special: कबाड़- कैसी थी विजय की सोच

इस बार दीवाली पर जब घर का सारा सामान धूप लगा कर समेटा तब विजय के होंठों पर एक फीकी सी हंसी चली आई थी. मैं जानती हूं कि वह क्यों मुसकरा रहे हैं.

‘‘तो इस बार दीवाली पर भाई के घर जाओगी? वहां जा कर कितने दिन रहोगी? तुम जानती हो न कि तुम्हारी सूरत देखे बिना मेरी सांस नहीं चलती. जल्दी वापस आना.’’

बस स्टैंड तक छोड़ने आए विजय बारबार मेरे बैग को तोलते हुए बोले, ‘‘कितने कपड़े ले कर जा रही हो? भारी है तुम्हारा बैग. क्या ज्यादा दिन रहने वाली हो?’’

चुप हूं मैं. चुप ही तो हूं मैं, न जाने कब से. अच्छा समय बीता भाई के पास मगर जो नया सा लगा वह था मेरी भतीजी का व्यवहार.

डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर चुकी मिनी के पास नया सामान रखने को जगह ही न थी सो उस ने बचपन का संजोया अपनी जान से भी प्यारा सामान यों खुद से अलग कर दिया मानो वास्तव में उसे संभाल कर रखे रखना कोई मूर्खता हो. खिलौने महरी को उस के बच्चों के लिए थमा दिए थे.

और भी विचित्र तब लगा जब मिनी ने अपने ही प्रिय सामान का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया था.

‘‘देखो न बूआ, याद है यह बार्बी डौल, इस के लिए कितना झगड़ा किया था मैं ने भैया से. और यह लकड़ी के खिलौने, यह डब्बा देखो तो…’’

सामने सारा सामान बिखरा पड़ा था.

‘‘बच्चे थे तो कितने बुद्धू थे न हम. जराजरा सी बात पर रोते थे. यह बचकाना सामान हटा दिया. देखो, अब पूरी अलमारी खाली हो गई है…सच्ची, कितनी पागल थी न मैं जो इस कबाड़ से ही जगह भर रखी थी.’’

अच्छा नहीं लगा था मुझे उस का यह व्यवहार. आखिर हमारे जीवन में संवेदना भी तो कोई स्थान रखती है. जो कभी प्यारा था वह सदा प्यारा ही तो रहता है न, चाहे बचपन हो या जवानी. फिर जवानी में बचपन की सारी धरोहर कचरा कह कर कूड़े के डब्बे में फेंकना क्या क्रूरता नहीं है?

‘‘पुरानी चीजें जाएंगी नहीं तो नई चीजों को स्थान कैसे मिलेगा, जया. यह संसार भी तो इसी नियम पर चल रहा है न. यह तो प्रकृति का नियम है. जरा सोचो हमारे पुरखे अगर आज भी जिंदा होते तो क्या होता. कैसी हालत होती उन की?’’

‘‘कैसी निर्दयता भरी बात करते हैं विजय, अपने मांबाप के विषय में ऐसा कहते आप को शरम नहीं आती…’’

‘‘मेरी मां को कैंसर था. दिनरात पीड़ा से तड़पती थीं. मैं बेटा हूं फिर भी अपनी मां की मृत्यु चाहता था क्योंकि उन के लिए मौत वरदान थी. मुझे अपनी मां से प्यार था पर उन की मौत चाही थी मैं ने. जया, न ही जीवन सदा वरदान की श्रेणी में आता है और न ही मौत सदा श्राप होती है.’’

विजय की बातें मेरे गले में फांस जैसी ही अटक गई थीं.

‘‘जया, जीवन टिक कर रहने का नाम नहीं है. जीवन तो पलपल बदलता है, जो आज है वह कल नहीं भी हो सकता है और जीवन हम सब के चाहने से कभी मुड़ता भी नहीं. यह तो हम ही हैं जिन्हें खुद को जीवन की गति के अनुरूप ढालना पड़ता है.’’

मैं उठ कर अपनी क्लास लेने चली गई थी. जीवन का फलसफा सभी की नजर में एक कहां होता है जो मेरा और विजय का भी एक हो जाता.

एक बार विजय ने मेरे जमा किए पीतल के फूलदान, किताबों के ट्रंक, टेपरिकार्डर को कबाड़ कहा था. माना कि आज अगर पति और बेटे इस संसार में नहीं हैं तो उन का सामान क्या सामान नहीं रहा?

‘‘जब इनसान ही नहीं रहा तब उस के सामान को सहेजा क्यों जाए. जो चले गए वे आने वाले तो नहीं, तुम तो दिवंगत नहीं हो न.’’

कैसी कड़वी होती हैं न विजय की बातें, कभी भी कुछ भी कह देते हैं. मैं मानती हूं कि इतनी कड़वी बात सिर्फ वही कर सकता है जिस का मन ज्यादा साफ हो और जो खुद भी उसी हालात से गुजर चुका हो.

मैं उस दुविधा से उबर नहीं पा रही हूं जिस में मेरा खोया परिवार मुझे अकेला छोड़ कर चला गया है. अपने किसी प्रिय की मौत से क्या कोई उबर सकता है?

‘‘क्यों नहीं उबर सकता? क्या मैं उबर कर बाहर नहीं आया तुम्हारे सामने. मेरे पिता तब चले गए थे जब मैं कालिज में पढ़ता था. मां का हाल तुम ने देख ही लिया. पत्नी को मैं ही रास नहीं आया… कोई जीतेजी छोड़ गया और कोई मर कर. तो क्या करूं मैं? मर तो नहीं सकता न. क्योंकि जितनी सांसें मुझे प्रकृति ने दी हैं कम से कम उन पर तो मेरा हक है न. कभी आओ मेरे घर, देखो तो, क्या मेरा घर भी तुम्हारे घर जैसा चिडि़याघर या अजायबघर है जिस में ज्ंिदा लोगों का सामान कम और मरे लोगों का सामान ज्यादा है…’’

विजय की कड़वी बातें ही बहुत थीं मेरी संवेदना को झकझोरने के लिए, उस पर मिनी का व्यवहार भी बहुतकुछ हिलाडुला गया था मेरे अंतर में.

‘‘देखो न बूआ, अलमारी खोलो तो कितना अच्छा लग रहा है. लगता है सांस आ रही है. कैसा बचकाना सामान था न, जिसे इतने साल सहेज कर रखा…’’ मिनी चहकी.

जवानी आतेआते मिनी में नई चेतना, नई सोच चली आई थी जिस ने उस के प्रिय सामान को बचकाने की श्रेणी में ला खड़ा किया था. पता नहीं क्यों यह सब भी विजय के साथ बांट लिया मैं ने. जानती हूं वह मेरा उपहास ही उड़ाएंगे, ऐसा भी कह दिया तो सहसा आंखें भर आईं विजय की.

‘‘मैं इतना भी कू्रर नहीं हूं, जया. पगली, मैं भी तो उसी हालात का मारा हूं जिन की मारी तुम हो. आज 5 साल हो गए दोनों को गए… जया, वे दोनों सदा तुम्हारी यादों में हैं, तुम्हारे मन में हैं… उन्हें इतना तो सस्ता न बनाओ कि उन्हें उन के सामान में ही खोजती रहो. जो मन की गहराई में छिपा है, सुरक्षित है, वह कचरे में क्योंकर होगा…’’ मेरे सिर पर हाथ रखा विजय ने, ‘‘तुम्हारी शादी तुम्हारे पति के साथ हुई थी, इस सामान के साथ तो नहीं. लोग तो ज्ंिदा जीवनसाथी तक बदल लेते हैं, मेरी पत्नी तो मुझ ज्ंिदा को छोड़ गई और तुम यह बेजान सामान भी नहीं बदल सकतीं.’’

सहसा लगा कि विजय की बातों में कुछ गहराई है. उसी पल निश्चय किया, शायद शुरुआत हो पाए.

लौटते ही दूसरे दिन पूरे घर का मुआयना किया. पीतल का कितना ही सामान था जिस का उपयोग मुमकिन न था. उसे एकत्र कर एक बोरी में डाल दिया. महरी को कबाड़ी की दुकान पर भेजा, थोड़ी ही देर में कबाड़ी वाले की गाड़ी आ गई.

शाम को महरी पुराने कपड़ों से बरतन बदलने वाली को पकड़ लाई. मैं ने कभी कपड़ा दे कर बरतन नहीं लिए थे. अच्छा नहीं लगता मुझे.

‘‘बीबीजी, इन की भी तो रोजीरोटी है न. इस में बुरा क्या है जो आप को भी चार बरतन मिल जाएं.’’

‘‘मैं अकेली जान क्या करूंगी बरतन ले कर?’’

‘‘मेरी बेटी की शादी है, मुझे दे देना. इसी तरह साहब का आशीर्वाद मुझे भी मिल जाएगा. कपड़ों का सही उपयोग हो जाएगा न बीबीजी.’’

गरदन हिला दी मैं ने.

2 ही दिन में मेरा घर खाली हो गया. ढेर सारे नए बरतन मेज पर सज गए, जिन्हें महरी ने दुआएं देते हुए उठा लिया.

‘‘बच्ची की गृहस्थी के पूरे बरतन निकल आए साहब के कपड़ों से. बरसों इस्तेमाल करेगी और आप को दुआएं देगी, बीबीजी.’’

पुरानी पीतल और किताबें बेच कर कुछ हजार रुपए हाथ में आ गए.

कालिज आतेजाते अकसर कालीन की दुकान पर बिछे व टंगे सुंदर कालीन नजर आ जाते थे. बहुत इच्छा होती थी कि मेरे घर में भी कालीन हो. पति की भी बहुत इच्छा थी, जब वह ज्ंिदा थे.

शाम होतेहोते मेरे 2 कमरों के घर में नरम कालीन बिछ गए. पूरा घर खुलाखुला, स्वच्छ हो कर नयानया लगने लगा. अलमारी खोलती तो वह भी खुलीखुली लगती. रसोई में जाती तो वहां भी सांस न घुटती.

‘‘जया, क्या बात है 2 दिन से कालिज नहीं आई?’’ सहसा चौंका दिया विजय ने.

मैं घर की सफाई में व्यस्त थी. कालिज से छुट्टी जो ले ली थी.

‘‘अरे वाह, इतना सुंदर हो गया तुम्हारा घर. वह सारा कबाड़ कहां गया? क्या सब निकाल दिया?’’

विजय झट से पूरा घर देख भी आए. भीग उठी थीं विजय की आंखें. कितनी ही देर मेरा चेहरा निहारते रहे फिर मेरे सिर पर हाथ रखा और बोले, ‘‘उम्मीद मरने लगी थी मेरी. लगता था ज्यादा दिन जी नहीं पाओगी इस कबाड़ में. लेकिन अब लगता है अवसाद की काई साफ हो जाएगी. तुम भी मेरी तरह जी लोगी.’’

पहली बार लगा, विजय भी संवेदनशील हैं. उन का दिल भी नरम है. कुछ सोच कर कहने लगे, ‘‘मैं भी तुम जैसा ही था, जया. मां की दर्दनाक मौत का नजारा आंखों से हटता ही नहीं था. जरा सोचो, जिस मां ने मुझे जीवन दिया उसे एक आसान मौत दे पाना भी मेरे हाथ में नहीं था. क्या करता मैं? पत्नी भी ज्यादा दिन साथ नहीं रही. मैं जानता हूं कि इन परिस्थितियों में जीवन ठहर सा जाता है. फिर भी सब भूल कर आगे देखना ही जीवन है.’’

विजय की आंखें झिलमिलाने लगी थीं. मेरे सिर पर अभी भी उन का हाथ था. हाथ उठा कर मैं ने विजय का हाथ पकड़ लिया. हजार अवसर आए थे जब विजय ने सहारा दिया था. सौसौ बार बहलाना भी चाहा था.

यह पहला अवसर था जब वह खुद मेरे सामने कमजोर पड़े थे. सस्नेह थाम लिया मैं ने विजय का हाथ.

‘‘मेरे पति की बड़ी इच्छा थी कि नरम कालीन हों घर में. बस, कभी मौका ही नहीं मिला था…कभी मौका मिला भी तो इतने रुपए नहीं थे हाथ में. बेकार पड़े सामान को निकाला तो उन की इच्छा पूरी हो गई. मैं ने कुछ गलत तो नहीं किया न?’’

जरा सी आत्मग्लानि सिर उठाने लगी तो फिर से उबार लिया विजय ने, यह कह कर कि नहीं तो, जया, सुंदर कालीन में भी तो तुम अपने पति की ही इच्छा देख रही हो  न. सच तो यह है कि जो जीवन की ओर मोड़ पाए वह भला गलत कैसे हो सकता है.

रोतेरोते मुसकराना कैसा लगता है. मैं अकसर रोतीरोती मुसकरा देती हूं तो विजय हाथ हिला दिया करते हैं.

‘‘इस तरह तो तुम जाने वालों को दुख दे रही हो. उन का रास्ता आसान बनाओ, पीछे को मत खींचो उन्हें. जो चले गए उन्हें जाने दो, पगली. खुश रहना सीखो. इस से उन्हें भी खुशी होगी. वह भी तुम्हें खुश ही देखना चाहते हैं न.’’

सहसा हाथ बढ़ा कर विजय ने पास खींच लिया और कहने लगे, ‘‘जीवन के अंतिम छोर तक तुम ने अपने पति का साथ दिया है. तुम किसी के साथ विश्वासघात नहीं कर रही. न अपने पति के साथ, न बेटे के साथ और न ही मेरे साथ. हम सब साथसाथ रह सकते हैं, जया.’’

विजय के हाथों को पिछले 3 साल से हटाने का प्रयास कर रही हूं मैं. विजय ने सदा मेरी इच्छा का सम्मान किया है.

लेकिन इस पल मैं ने जरा सा भी प्रयास नहीं किया. विजय स्तब्ध रह गए. उन की भावनाओं का सम्मान कर मैं पति का अपमान नहीं कर रही. धीरेधीरे विश्वास होने लगा मुझे. अविश्वास आंखों में लिए विजय ने मेरा चेहरा सामने किया. हैरान तो होना ही था उन्हें.

न जाने क्याक्या था जिस के नीचे दबी पड़ी थी मैं. कुछ यादों का बोझ, कुछ अपराधबोध का बोझ और कुछ अनिश्चय का बोझ. पता नहीं कल क्या हो.

शब्दों की आवश्यकता तो कभी नहीं रही मेरे और विजय के बीच. सदा मेरा चेहरा देख कर ही वह सब भांपते रहे हैं. भीगी आंखों में सब था. सम्मान सहित आजीवन साथ निभाने का आश्वासन. मुसकरा पड़े विजय. झुक कर मेरे माथे पर एक प्रगाढ़ चुंबन जड़ दिया. खुश थे विजय. मैं कबाड़ से बाहर जो चली आई थी.

Holi Special: सुधा- एक जांबाज लड़की की कहानी

दरवाजे की घंटी की मीठी आवाज ने सारे घर को गुंजा दिया था. यह घंटी अब कभीकभार ही बजती है, पर जब भी बजती है, तो सारे घर के माहौल को महका देती है.

मैं ने बड़े ही जोश से दरवाजा खोला था. दरवाजा खोलते ही एक सूटबूटधारी नौजवान पर निगाह पड़ते ही मेरी आंखों में अपनेआप सवालिया निशान उभर आया था. मुझे लगा था कि इस ने या तो गलत घर का दरवाजा खटखटा दिया है या फिर किसी का पता पूछना चाहता है, क्योंकि उसे मैं नहीं पहचानता था.

‘‘मैं सौरभ… मेरी मां सुधा और पिताजी गौरव… उन्होंने मुझ से बोला था कि मैं आप से आशीर्वाद ले कर आऊं…’’

‘‘ओह… अच्छा… कैसे हैं वे दोनों…’’ मेरे सामने अतीत के पन्ने खुलते चले गए थे. एकएक चेहरा ऐसे सामने आता जा रहा था मानो मैं अतीत के चलचित्र देख रहा हूं.

‘‘पिताजी तहसीलदार बन गए हैं… उन्होंने यह बताने को जरूर बोला था.’’

‘‘ओह… अच्छा, पर वे तो रीडर थे… मैं ने ही उन्हें नियुक्त किया था…’’ मुझे वाकई हैरानी हो रही थी.

‘‘जी, इसलिए तो उन्होंने मुझे आप को बताने के लिए बोला था… उन्होंने विभागीय परीक्षा दी थी… उस में वे पास हो गए थे और नायब तहसीलदार बना दिए गए थे… बाद में उन का प्रमोशन हो गया और अब वे तहसीलदार बन गए हैं,’’ सौरभ सबकुछ पूरे जोश के साथ बताता चला जा रहा था.

‘‘अच्छा… और सुधा का स्कूल…’’

‘‘मम्मी का स्कूल… अभी चल रहा है… तकरीबन 4 एकड़ में नई बिल्डिंग बन गई है और उस में 2,000 से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं…’’

जब सौरभ ने मेरे पैर छू कर बताया कि वह सुधा का बेटा है, तब मेरी यादों के धुंधले पड़ चुके पन्ने अचानक पलटने लगे.

सुधा… ओह… वह जांबाज लड़की, जिस ने एक झटके में ही आपने मातापिता का घर केवल इसलिए छोड़ दिया था कि वह किसी के साथ नाइंसाफी कर रहे थे. वैसे तो मैं उन को पहचानता नहीं था… वह तो उस दिन वे कचहरी आए थे, कार्ट मैरिज का आवेदन देने, तब मैं ने जाना था पहली बार उन को…

‘‘सर, मैं और ये कोर्ट मैरिज करना चाहते हैं…’’

मेरा ध्यान सुधा के साथ खड़े एक लड़के की ओर गया. सामान्य सी कदकाठी का दुबलापतला लड़का बैसाखियों के सहारे खड़ा था. उस के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी.

मुझे हैरानी हुई थी कि इतनी खूबसूरत लड़की कैसे इस लड़के को पसंद कर सकती है और शादी कर सकती है. मैं ने आवेदनपत्र को गौर से पढ़ा :

नाम- कु. सुधा

पिता का नाम- रामलाल

शिक्षा- पोस्ट ग्रेजुएशन

लड़के का नाम- गौरव

पिता का नाम- स्व. गिरिजाशंकर

शिक्षा- बीए

मेरी निगाह एक बार फिर उन दोनों की तरफ घूम गई थी.

‘‘सर, आवेदन में कुछ रह गया है क्या? अंक सूची भी लगी हुई है. मेरी उम्र

18 साल से ज्यादा है और इन की उम्र 21 साल पूरी हो चुकी है…’’

मैं ने अपनी निगाहों को उन से हटा लिया था, ‘‘नहीं… आवेदन तो ठीक है… पर क्या मातापिता की रजामंदी है?’’

‘‘जी नहीं, तभी तो कोर्ट मैरिज कर रहे हैं. वैसे, हम बालिग हैं और अपनी पसंद से शादी कर सकते हैं…’’ सुधा ने जवाब दिया था.

‘‘ठीक है… आप 15 दिन बाद फिर आइए. हम नोटिस चस्पां करेंगे और फिर आप को शादी की तारीख बताएंगे…’’

दरअसल, मैं चाहता था कि लड़की को कुछ दिन और सोचने का मौका मिले कि कहीं वह जल्दबाजी में या जोश में तो शादी नहीं कर रही है.

उस लड़की को ले कर मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. वह भले घर की लग रही थी और खूबसूरत भी थी. लड़का किसी भी लिहाज से उस के लायक नहीं लग रहा था. शुरू में तो मुझे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लड़का किसी

तरह से उसे ब्लैकमेल कर रहा हो…

मैं ने छानबीन कराने का फैसला कर लिया था.

सुधा के पिता का बड़ा करोबार था. शहर में उन की इज्जत भी बहुत थी. सुधा उन की एकलौती संतान थी, जो लाड़प्यार में पली थी.

गौरव सुधा के पिताजी की दुकान में काम करता था. वह काफी गरीब परिवार से था, पर शरीफ था. उस की मां ने मेहनतमजदूरी कर के उसे पालापोसा और पढ़ायालिखाया था.

मां बूढ़ी हो चुकी थीं. इस वजह से गौरव को पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर काम पर लग जाना पड़ा था. वह सुधा के पिताजी के यहां काम करने लगा था.

गौरव की मेहनत और ईमानदारी को देखते हुए एक दिन सेठजी ने उसे मैनेजर बना दिया और वह सेठजी का पूरा कारोबार संभालने लगा था.

इसी दौरान सुधा का परिचय गौरव से हुआ. सुधा भी गौरव से बेहद प्रभावित हुई. वे दोनों हमउम्र थे. इस वजह से उन में जानपहचान बढ़ती चली गई. इस के बावजूद उन के बीच में ऐसा कुछ नहीं था, जिसे सामाजिक तौर से गलत माना जा सके.

गौरव ने अपनी पारिवारिक परेशानियों की वजह से पढ़ाई भले ही छोड़ दी हो, पर वह समय निकाल कर पढ़नेलिखने के अपने शौक को पूरा करता रहता था. सेठजी के काम से उसे जरा सी भी फुरसत मिलती, वह या तो लिखने बैठ जाता या पढ़ने.

सुधा पोस्ट ग्रेजुएशन के आखिरी साल में थी. वह कभीकभार गौरव से पढ़ाई के विषय पर चर्चा करने लगी थी. वह जानती थी कि गौरव ने भले ही पोस्ट ग्रेजुएशन न किया हो, पर उसे जानकारी पूरी थी.

गौरव की मां की बीमारी ठीक नहीं हो रही थी. गौरव की तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा मां की दवाओं पर ही खर्च हो जाता था, पर उसे सुकून था कि वह मां की सेवा कर रहा है.

सुधा गौरव के हालात के बारे में इतना बेहतर तो नहीं जानती थी, पर मां की बीमारी और माली तंगी को वह समझने लगी थी.

तभी गौरव के साथ घटे दर्दनाक हादसे ने उसे गौरव के और करीब ला दिया था. सेठजी के गोदाम में रखी एक लोहे की छड़ उस के पैरों को छलनी करती हुई तब आरपार निकल गई थी, जब वह माल का निरीक्षण कर रहा था.

गौरव को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डाक्टरों को उस का एक पैर काट देना पड़ा था.

गौरव अब विकलांग हो चुका था. वह अब सेठजी के किसी काम का नहीं रहा था, इसलिए उन्होंने उस का इलाज तो पूरा कराया, पर इस के बाद उसे काम पर आने से मना कर दिया.

अपने पिताजी के इस बरताव से सुधा दुखी थी. अपंग गौरव के सामने दो जून की रोटी का संकट पैदा हो गया था. सुधा ने अपने पिताजी को काफी समझाने की कोशिश भी की थी, पर उन्होंने साफ कह दिया था, ‘‘हम बैठेबिठाए किसी को तनख्वाह नहीं दे सकते.’’

‘‘पर, वह आप की रोकड़बही का काम करेगा न, पहले भी वह यही काम करता था और आप खुद उस के काम की तारीफ करते थे,’’ सुधा ने कहा था.

‘‘रोकड़बही का काम कितनी देर का रहता है… बाकी दिनभर तो वह बेकार ही रहेगा न. पहले वह इस काम के अलावा बैंक जाने से ले कर गोदाम तक का काम कर लेता था, पर अब तो वह यह भी नहीं कर पाएगा,’’ सेठजी मानने को तैयार नहीं थे.

ऐसे में सुधा के पास एक आखिरी हथियार बचा था अपने पिता को धमकी देने का, ‘‘पिताजी, अगर आप ने गौरव को काम पर नहीं रखा, तो मैं भी इस घर में नहीं रहूंगी…’’

‘‘ठीक है बेटी, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ पिताजी ने इतना कह कर बात को खत्म कर दिया था. वे इसे सुधा का बचपना ही मान कर चल रहे थे, परंतु सुधा स्वाभिमानी लड़की थी. उसे अपने पिता से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी. उसने गौरव को अपनाने का फैसला कर लिया.

जब सुधा ने अपना फैसला सुनाया, तो उस की मां दुखी हो गई थीं. उन्होंने उसे रोका भी था, पर वे अपनी बेटी के स्वभाव से परिचित थीं. इस वजह से उन्होंने उसे जाने दिया.

‘‘यह मत समझना कि मैं किसी फिल्मी पिता की तरह तुम्हें समझाबुझा कर वापस लाने की कोशिश करूंगा… वैसे भी तुम बालिग हो और अपना फैसला खुद ले सकती हो…’’ पिताजी की आवाज में सहजता ही थी. उधर गौरव की मां जरूर घबरा गई थीं.

‘‘नहीं बेटी, मैं तुम्हें अपने घर पर नहीं रख सकती. हम तो पहले से ही इतने परेशान हैं, तुम क्यों हमारी परेशानी बढ़ाना चाहती हो…’’ कहते हुए गौरव की मां फफक पड़ी थीं.

‘‘मां, मैं तो अब आ ही चुकी हूं. अब मैं वापस तो जाने से रही, इसलिए आप परेशान न हों… मैं सब संभाल लूंगी… अपने पिताजी को भी.’’

सुधा ने परिवार को वाकई संभाल लिया था. वह मां की पूरी सेवा करती और गौरव का भी ध्यान रखती. गौरव घर में रह कर बच्चों को पढ़ाता रहता और सुधा एक स्कूल में टीचर बन गई थी.

एक दिन सुधा ही गौरव को ले कर कचहरी गई थी, ताकि कोर्ट मैरिज का आवेदन दे सके. यों बगैर शादी किए वह कब तक इस परिवार में रह सकती थी.

सुधा और गौरव की पूरी कहानी का पता चलने के बाद मैं ने उन दोनों की मदद करने का फैसला ले लिया था. दोनों की कोर्ट मैरिज हो गई थी.

गौरव को मैं ने ही कचहरी में काम पर लगा लिया था. सुधा का मन स्कूल संचालन में ज्यादा था. सो, मैं ने अपने माध्यमों का उपयोग कर उस को स्कूल खोलने की इजाजत दिला दी थी, साथ ही अपने परिचितों से उस स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला दिलाने को भी कह दिया था.

सुधा का स्कूल खुल चुका था. 2 कमरे से शुरू हुआ उस का स्कूल धीरेधीरे बड़ा होता जा रहा था.

सौरभ का जब जन्म हुआ, तब तक सुधा का स्कूल शहर के नामी स्कूलों में गिना जाने लगा था.

रिटायर होने के बाद मैं अपने शहर आ गया था. इस के चलते फिर न तो सुधा से कभी मुलाकात हो सकी और न ही सौरभ के बारे में जान सका. आज जब सौरभ को यों अपने सामने देखा तो पहचान ही नहीं पाया.

सुधा और गौरव ने जीरो से शुरुआत की थी और आज उंचाइयों पर पहुंच गए थे. मुझे खुशी इस बात की भी थी कि इस सब में मेरा भी कुछ न कुछ योगदान था. अपने ही लगाए पौधे को जब माली फलताफूलता देखता है, तो उसे खुशी तो होती ही है.

अच्छी बात यह भी थी कि गौरव और सुधा मुझे अभी भूले भी नहीं थे, जबकि न जाने कितना समय गुजर चुका है.

मैं ने सौरभ को गले से लगा लिया और पूछा, ‘‘और बेटा, तुम क्या कर रहे हो?’’

‘‘जी, मेरा अभीअभी आईएएस में चयन हुआ है. मैं जानता हूं अंकल कि आप ने मेरे परिवार को इस मुकाम तक पहुंचाने में कितना सहयोग दिया है. मां ने मुझे सबकुछ बताया है. अगर उस समय आप उन का साथ नहीं देते तो शायद…’’ उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. मैं ने एक बार फिर उसे अपने सीने से लगा लिया था.

Holi Special: प्यार तूने क्या किया

अनिरुद्ध आज फिर से दफ्तर 25 मिनट पहले पहुंच गया था. जब से उस के दफ्तर में नेहल आई है, उसे ऐसा लगता है कि सबकुछ रूमानी हो गया है. नेहल की झील सी आंखें, प्यारभरी मुसकान उसे सबकुछ बेहद पसंद था.

आज नेहल हरे कुरते के साथ पीला दुपट्टा पहन कर आई थी और साथ में था लाल रंग का प्लाजो… जैसे औफिस का माहौल सुरमई हो गया हो. अनिरुद्ध बहुत दिनों से नेहल के करीब जाने की कोशिश कर रहा था, पर उस की हिम्मत नहीं हो पा रही थी.

नेहल का बेबाक अंदाज अनिरुद्ध को उस के करीब जाने से रोकता था, पर आज वह खुद को रोक नहीं पाया और उस ने नेहल को बोल ही दिया, ‘‘नेहल, आप आज एकदम सुरमई शाम के जैसी लग रही हो…’’

नेहल खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘थैंक यू.’’

धीरेधीरे नेहल के ग्रुप में अनिरुद्ध भी शामिल हो गया था. अनिरुद्ध की आंखों की भाषा नेहल खूब समझती थी, पर अनिरुद्ध का जरूरत से ज्यादा पतला होना नेहल को खलता था.

अनिरुद्ध ने एक दिन बातों ही बातों में नेहल से पूछ लिया, ‘‘नेहल, तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है क्या?’’

नेहल ने कहा, ‘‘नहीं, फिलहाल तो नहीं है, क्योंकि मेरा बौयफ्रैंड माचोमैन होना चाहिए, सिक्स पैक एब्स के साथ… अगर कोई लड़का मुझे देखने की भी जुर्रत करे, तो वह उस की हड्डीपसली एक कर दे…’’

नेहल की बात सुन कर अनिरुद्ध का चेहरा उतर गया था. घर आ कर भी उस के दिमाग में नेहल की बात घूमती रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे नेहल के काबिल बने.

तभी अनिरुद्ध को अपने एक करीबी दोस्त मोंटी की याद आई. वह जिम जाने का शौकीन था.

अनिरुद्ध ने मोंटी को फोन कर के अपनी समस्या बताई, तो मोंटी बोला, ‘अरे भाई, तू मेरे पास आ जा. 2 महीने में ही नेहल तेरी बांहों में होगी.’

अनिरुद्ध फोन रखते ही मोंटी के पास पहुंच गया. वह जल्द से जल्द बौडी बनाना चाहता था.

अब अनिरुद्ध सीधे दफ्तर से जिम ही जाता था. वहां पर मोंटी के कहने पर उस ने अपना खुद का पर्सनल ट्रेनर भी रख लिया था. पर्सनल ट्रेनर ने अनिरुद्ध का एक पूरा डाइट प्लान बना कर दिया था. डाइट प्लान में शामिल खाना अनिरुद्ध की जेब पर काफी महंगा पड़ रहा था, पर वह अपने दिल के हाथों मजबूर था.

एक महीना होने को आया था, पर अनिरुद्ध को अपनी बौडी में कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा था. जब भी वह अपने पर्सनल ट्रेनर से यह बात कहता, तो उस का यही जवाब होता था, ‘‘अरे सर, थोड़ा समय लगता है बौडी बनाने में, लेकिन देख लेना सर, आप को कुछ ही महीनों में बदलाव नजर आने लगेगा.’’

अनिरुद्ध रातदिन बौडी बनाने के बारे में ही बात करता था. नेहल अनिरुद्ध की बात सुन कर मुसकरा देती और बोलती, ‘‘चलो देखते हैं अनिरुद्ध, तुम्हारी बौडी बन पाती है या नहीं?’’

अभी अनिरुद्ध यह सब कर ही रहा था कि उस की जिंदगी में सक्षम नाम का तूफान आ गया था. सक्षम उन की कंपनी में एकाउंट्स डिपार्टमैंट में नयानया आया था. उस का 6 फुट का कद और गठीला बदन हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा था.

नेहल एक दिन अपनी सैलरी के किसी इशू को ले कर एकाउंट्स डिपार्टमैंट में गई थी और सक्षम का नंबर ले कर लौटी थी. अब सक्षम भी नेहल के ग्रुप का हिस्सा था. अनिरुद्ध को सक्षम का ग्रुप में शामिल होना नागवार लगता था, पर वह कुछ बोल नहीं पाता था.

अब अनिरुद्ध के सिर पर बौडी बनाने का जुनून सवार हो गया था. एक दिन अनिरुद्ध के पापा ने उसे समझाना भी चाहा था, ‘‘बेटा, अपनी सेहत का ध्यान रखना बहुत अच्छी बात है, पर यह पागलपन ठीक नहीं है.’’

अनिरुद्ध बोला, ‘‘पापा, मुझे इस पतलेपन से छुटकारा चाहिए. मैं नेहल के काबिल बनना चाहता हूं.’’

पापा थोड़ा सोचते हुए बोले, ‘‘बेटा, जिस रिश्ते की बुनियाद ऐसी खोखली  बातों पर टिकी हो, वैसा रिश्ता न ही बने तो अच्छा है.’’

अनिरुद्ध गुस्से में बोला, ‘‘आप नहीं समझोगे पापा. आप को तो खुश होना चाहिए कि आप का बेटा अपनी सेहत के प्रति जागरूक है.’’

पापा बोले, ‘‘हां, पर अगर इस से मन का चैन छिनता है, तो यह घाटे का सौदा है.’’

अनिरुद्ध बिना कुछ जवाब दिए तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गया.

अनिरुद्ध के जुनून को देखते हुए उस के पर्सनल ट्रेनर ने अनिरुद्ध के डाइट प्लान में कुछ अलग तरह की खाने की चीजें शामिल कर दी थीं. कोई पाउडर भी था. पर अब अनिरुद्ध की बौडी में बदलाव आना शुरू हो गया था.

न जाने उस पाउडर में क्या था कि अनिरुद्ध को मनचाहा नतीजा मिल रहा था. आजकल वह बेहद खुश रहता था. पर बौडी बनाने और नेहल के चक्कर में बिना अपने ट्रेनर की सलाह लिए अनिरुद्ध ने उस पाउडर की खुराक दोगुनी कर दी थी. अब नेहल ही नहीं दफ्तर की हर लड़की का हीरो था अनिरुद्ध.

अनिरुद्ध ने नेहल से डेट के लिए पूछा और नेहल ने फौरन हां कर दी थी. अनिरुद्ध बेहद खुश था, क्योंकि आखिर उस की मेहनत रंग लाई और उस के प्यार की जीत हुई थी. अब अनिरुद्ध के दिन सोना और रात चांदी हो गई थी.

14 फरवरी हर प्रेमी जोड़े के लिए खास दिन होता है. अनिरुद्ध ने नेहल से पूछा, ‘‘नेहल, कल क्या मेरे साथ बाहर चलोगी?’’

नेहल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे, इतना शरमा क्यों रहे हो, जरूर चलेंगे और यह तो वैसे भी हमारा पहला वैलेंटाइन डे है.’’

अनिरुद्ध ने शहर के बाहर एक रिसोर्ट में बुकिंग करा ली थी. वह नेहल को जी भर कर प्यार करना चाहता था.

नेहल और अनिरुद्ध ने पहले लंच किया और फिर दोनों रूम में चले गए. अनिरुद्ध नेहल के करीब आ कर उसे चूमने लगा और नेहल भी बिना किसी विरोध के समर्पण कर रही थी.

15 मिनट बीत गए थे, पर अनिरुद्ध उस से आगे बढ़ ही नहीं पा रहा था. नेहल कुछ देर तक तो कोशिश करती रही और फिर चिढ़ते हुए बोली, ‘‘यार, जब कुछ कर ही नहीं सकते हो, तो फिर इतना टाइम क्यों खराब किया?’’

फिर नेहल मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिम में बौडी बन सकती है, पर वह नहीं.’’

अनिरुद्ध शर्म से पानीपानी हो रहा था. उसे तो ऐसी समस्या नहीं थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह क्यों उस के साथ हो रहा था. क्या उस के अंदर कोई कमी आ गई है?

अनिरुद्ध को लग रहा था कि बौडी बनाने में उस ने जो पाउडर की दोगुनी खुराक कर ली थी, क्या यह उसी का नतीजा है?

अनिरुद्ध नेहल को सब बताना चाहता था, पर जिस प्यार के लिए अनिरुद्ध ने इतना कुछ किया, वही प्यार बिना एक पल रुके पतली गली से निकल गया.

अनिरुद्ध सिर पकड़ कर बैठ गया था. बाहर रिसोर्ट में गाना चल रहा था, ‘प्यार तू ने क्या किया…’

Holi Special 2023: होली से दूरी, यंग जेनरेशन की मजबूरी

होली का दिन आते ही पूरे शहर में होली की मस्ती भरा रंग चढ़ने लगता है लेकिन 14 साल के अरनव को यह त्योहार अच्छा नहीं लगता. जब सारे बच्चे गली में शोर मचाते, रंग डालते, रंगेपुते दिखते तो अरनव अपने खास दोस्तों को भी मुश्किल से पहचान पाता था. वह होली के दिन घर में एक कमरे में खुद को बंद कर लेता  होली की मस्ती में चूर अरनव की बहन भी जब उसे जबरदस्ती रंग लगाती तो उसे बहुत बुरा लगता था. बहन की खुशी के लिए वह अनमने मन से रंग लगवा जरूर लेता पर खुद उसे रंग लगाने की पहल न करता. जब घर और महल्ले में होली का हंगामा कम हो जाता तभी वह घर से बाहर निकलता. कुछ साल पहले तक अरनव जैसे बच्चों की संख्या कम थी. धीरेधीरे इस तरह के बच्चों की संख्या बढ़ रही है और होली के त्योहार से बच्चों का मोहभंग होता जा रहा है. आज बच्चे होली के त्योहार से खुद को दूर रखने की कोशिश करते हैं.

अगर उन्हें घरपरिवार और दोस्तों के दबाव में होली खेलनी भी पड़े तो तमाम तरह की बंदिशें रख कर वे होली खेलते हैं. पहले जैसी मौजमस्ती करती बच्चों की टोली अब होली पर नजर नहीं आती. इस की वजह यही लगती है कि उन में अब उत्साह कम हो गया है.

1. नशे ने खराब की होली की छवि

पहले होली मौजमस्ती का त्योहार माना जाता था लेकिन अब किशोरों का रुझान इस में कम होने लगा है. लखनऊ की राजवी केसरवानी कहती है, ‘‘आज होली खेलने के तरीके और माने दोनों ही बदल गए हैं. सड़क पर नशा कर के होली खेलने वाले होली के त्योहार की छवि को खराब करने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार हैं. वे नशे में गाड़ी चला कर दूसरे वाहनों के लिए खतरा पैदा कर देते हैं ऐसे में होली का नाम आते ही नशे में रंग खेलते लोगों की छवि सामने आने लगती है. इसलिए आज किशोरों में होली को ले कर पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है.’’

2. एग्जाम फीवर का डर

होली और किशोरों के बीच ऐग्जाम फीवर बड़ी भूमिका निभाता है. वैसे तो परीक्षा करीबकरीब होली के आसपास ही पड़ती है. लेकिन अगर बोर्ड के ऐग्जाम हों तो विद्यार्थी होली फैस्टिवल के बारे में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि उन का सारा फोकस परीक्षाओं पर जो होता है. पहले परीक्षाओं का दबाव मन पर कम होता था जिस से बच्चे होली का खूब आनंद उठाते थे. अब पढ़ाई का बोझ बढ़ने से कक्षा 10 और 12 की परीक्षाएं और भी महत्त्वपूर्ण होने लगी हैं, जिस से परीक्षाओं के समय होली खेल कर बच्चे अपना समय बरबाद नहीं करना चाहते.

होली के समय मौसम में बदलाव हो रहा होता है. ऐसे में मातापिता को यह चिंता रहती है कि बच्चे कहीं बीमार न पड़ जाएं. अत: वे बच्चों को होली के रंग और पानी से दूर रखने की कोशिश करते हैं, जो बच्चों को होली के उत्साह से दूर ले जाता है. डाक्टर गिरीश मक्कड़ कहते हैं, ‘‘बच्चे खेलकूद के पुराने तौरतरीकों से दूर होते जा रहे हैं. होली से दूरी भी इसी बात को स्पष्ट करती है. खेलकूद से दूर रहने वाले बच्चे मौसम के बदलाव का जल्द शिकार हो जाते हैं. इसलिए कुछ जरूरी सावधानियों के साथ होली की मस्ती का आनंद लेना चाहिए.’’ फोटोग्राफी का शौक रखने वाले क्षितिज गुप्ता का कहना है, ‘‘मुझे रंगों का यह त्योहार बेहद पसंद है. स्कूल में बच्चों पर परीक्षा का दबाव होता है. इस के बाद भी वे इस त्योहार को अच्छे से मनाते हैं. यह सही है कि पहले जैसा उत्साह अब देखने को नहीं मिलता.

‘‘अब हम बच्चों पर तमाम तरह के दबाव होते हैं. साथ ही अब पहले वाला माहौल नहीं है कि सड़कों पर होली खेली जाए बल्कि अब तो घर में ही भाईबहनों के साथ होली खेल ली जाती है. अनजान जगह और लोगों के साथ होली खेलने से बचना चाहिए. इस से रंग में भंग डालने वाली घटनाओं को रोका जा सकता है.’’

3. डराता है जोकर जैसा चेहरा

होली रंगों का त्योहार है लेकिन समय के साथसाथ होली खेलने के तौरतरीके बदल रहे हैं. आज होली में लोग ऐसे रंगों का उपयोग करते हैं जो स्किन को खराब कर देते हैं. रंगों में ऐसी चीजों का प्रयोग भी होने लगा है जिन के कारण रंग कई दिनों तक छूटता ही नहीं. औयल पेंट का प्रयोग करने के अलावा लोग पक्के रंगों का प्रयोग अधिक करने लगे हैं. लखनऊ के आदित्य वर्मा कहता है, ‘‘मुझे होली पसंद है पर जब होली खेल रहे बच्चों के जोकर जैसे चेहरे देखता हूं तो मुझे डर लगता है. इस डर से ही मैं घर के बाहर होली खेलने नहीं जाता.’’

उद्धवराज सिंह चौहान को गरमी का मौसम सब से अच्छा लगता है. गरमी की शुरुआत होली से होती है इसलिए इस त्योहार को वह पसंद करता है. उद्धवराज कहता है, ‘‘होली में मुझे पानी से खेलना अच्छा लगता है. इस फैस्टिवल में जो फन और मस्ती होती है वह अन्य किसी त्योहार में नहीं होती. इस त्योहार के पकवानों में गुझिया मुझे बेहद पसंद है. रंग लगाने में जोरजबरदस्ती मुझे अच्छी नहीं लगती. कुछ लोग खराब रंगों का प्रयोग करते हैं, इस कारण इस त्योहार की बुराई की जाती है. रंग खेलने के लिए अच्छे किस्म के रंगों का प्रयोग करना चाहिए.’’

4. ईको फ्रैंडली होली की हो शुरुआत

‘‘होली का त्योहार पानी की बरबादी और पेड़पौधों की कटाई के कारण मुझे पसंद नहीं है. मेरा मानना है कि अब पानी और पेड़ों का जीवन बचाने के लिए ईको फ्रैंडली होली की पहल होनी चाहिए. ‘‘होली को जलाने के लिए प्रतीक के रूप में कम लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए और रंग खेलते समय ऐसे रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सूखे हों, जिन को छुड़ाना आसान हो. इस से इस त्योहार में होने वाले पर्यावरण के नुकसान को बचाया जा सकता है,’’ यह कहना है सिम्बायोसिस कालेज के स्टूडेंट रह चुके शुभांकर कुमार का. वह कहता है, ‘‘समय के साथसाथ हर रीतिरिवाज में बदलाव हो रहे हैं तो इस में भी बदलाव होना चाहिए. इस से इस त्योहार को लोकप्रिय बनाने और दूसरे लोगों को इस से जोड़ने में मदद मिलेगी.’’

एलएलबी कर रहे तन्मय को होली का त्योहार पसंद नहीं है. वह कहता है, ‘‘होली पर लोग जिस तरह से पक्के रंगों का प्रयोग करने लगे हैं उस से कपड़े और स्किन दोनों खराब हो जाते हैं. कपड़ों को धोने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. कई बार होली खेले कपड़े दोबारा पहनने लायक ही नहीं रहते. ‘‘ऐसे में जरूरी है कि होली खेलने के तौरतरीकों में बदलाव हो. होली पर पर्यावरण बचाने की मुहिम चलनी चाहिए. लोगों को जागरूक कर इन बातों को समझाना पड़ेगा, जिस से इस त्योहार की बुराई को दूर किया जा सके. इस बात की सब से बड़ी जिम्मेदारी किशोर व युवावर्ग पर ही है.

होली बुराइयों को खत्म करने का त्योहार है, ऐसे में इस को खेलने में जो गड़बडि़यां होती हैं उन को दूर करना पड़ेगा. इस त्योहार में नशा कर के रंग खेलने और सड़क पर गाड़ी चलाने पर भी रोक लगनी चाहिए.’’

5. किसी और त्योहार में नहीं होली जैसा फन

होली की मस्ती किशोरों व युवाओं को पसंद भी आती है. एक स्टूडेंट कहती है, ‘‘होली ऐसा त्योहार है जिस का सालभर इंतजार रहता है. रंग और पानी किशोरों को सब से पसंद आने वाली चीजें हैं. इस के अलावा होली में खाने के लिए तरहतरह के पकवान मिलते हैं. ऐसे में होली किशोरों को बेहद पसंद आती है

‘‘परीक्षा और होली का साथ रहता है. इस के बाद भी टाइम निकाल कर होली के रंग में रंग जाने से मन अपने को रोक नहीं पाता. मेरी राय में होली जैसा फन अन्य किसी त्योहार में नहीं होता. कुछ बुराइयां इस त्योहार की मस्ती को खराब कर रही हैं. इन को दूर कर होली का मजा लिया जा सकता है.’’ ऐसी ही एक दूसरी छात्रा कहती हैं, ‘‘होली यदि सुरक्षित तरह से खेली जाए तो इस से अच्छा कोई त्योहार नहीं हो सकता. होली खेलने में दूसरों की भावनाओं पर ध्यान न देने के कारण कई बार लड़ाईझगड़े की नौबत आ जाती है, जिस से यह त्योहार बदनाम होता है. सही तरह से होली के त्योहार का आनंद लिया जाए तो इस से बेहतर कोई दूसरा त्योहार हो ही नहीं सकता.

‘‘दूसरे आज के किशोरों में हर त्योहार को औनलाइन मनाने का रिवाज चल पड़ा है. वे होली पर अपनों को औनलाइन बधाइयां देते हैं. भले ही हमारा लाइफस्टाइल चेंज हुआ हो लेकिन फिर भी हमारा त्योहारों के प्रति उत्साह कम नहीं होना चाहिए.’’

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‘इतना मजा क्यों आ रहा है, तू ने हवा में भांग मिलाया…’ फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’  का यह गीत सुन कर मन होली की मस्ती में डूबने को करता है. ऐसा लगता है कि वाऊ होली कितना मस्त त्योहार है. इस दिन खूब धमाल मचाएंगे. खूब रंगगुलाल उड़ाएंगे. दोस्तों संग खूब मस्ती करेंगे, लेकिन ऐसी फीलिंग इस गीत को सुनने तक ही रहती है, जब इस फैस्टिवल को रीयल में मनाने की बात आती है तो हम खुद को घर में कैद करना ही बेहतर समझते हैं. हमें लगता है कि कौन रंगगुलाल लगा कर अपना चेहरा खराब करे, क्यों न इस दिन छुट्टी को सो कर या टीवी देख कर बिताया जाए.

हमारी यही सोच आज हमें इस फैस्टिवल को जीभर कर ऐंजौय नहीं करने देती, जबकि एक समय हम होली का इंतजार कई महीनों पहले से करना शुरू कर देते थे, तो फिर आज क्यों नहीं. तो क्यों न यह बात मान कर चलें कि अगर आज ऐंजौय नहीं किया तो ये पल फिर दोबारा नहीं मिलेंगे, तो फिर हो जाएं तैयार होली के रंग में रंगने के लिए.

1. भारत में विभिन्न जगहों पर होली सैलिब्रेशन

होली भले ही रंगों का त्योहार है लेकिन इसे मनाने का अंदाज हर जगह अलग है जैसे :

–  दिल्ली में होली पर ग्रैंड सैलिब्रेशन होता है, जिस की तैयारी कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती है. होली वाले दिन सब एकदूसरे को गले लगा कर तिलक लगाते हैं व टोलियों में अपने घरों की छतों व पार्कों में खूब एंजौय करते हैं. इस दिन घरों में कई तरह के पकवान भी बनते हैं जिस से इस का मजा दोगुना हो जाता है.

–  उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में होली सिर्फ रंगों से ही नहीं बल्कि लाठियों से सैलिब्रेट की जाती है, जिस में परिवार की औरतें पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं, जिस का मकसद किसी को चोट पहुंचाना नहीं बल्कि सिर्फ फन होता है.

–  उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में खड़ी होली मनाई जाती है, जिस में लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहन कर महल्लों में घूमते हुए गीत गाते हैं.

–  केरल में होली को मंजल कुली के नाम से जाना जाता है. वहां इस दिन खूब मस्ती की जाती है.

–  बिहार में होली पर अलग ही नजारा देखने को मिलता है. वहां रंगगुलाल के साथ इस मौके पर भांग भी जम कर पी जाती है. वहां होली को फगुआ कहते हैं.

–  असम में होली को फाकुआ के नाम से जाना जाता है. यहां पर यह त्योहार 2 दिन तक मनाया जाता है. होली से एक दिन पहले क्ले के घर बना कर उन्हें जलाया जाता है, वहीं दूसरे दिन रंगों से होली खेली जाती है.

–  महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में होली के 5 दिन बाद रंगपंचमी बहुत ही फन के साथ मनाई जाती है.

– राजस्थान के उदयपुर में रौयल होली मनाई जाती है. इस की सजावट इतनी शानदार होती है कि देखने वाले दंग रह जाते हैं.

2. हुड़दंग का नहीं अपनों के साथ टाइम स्पैंड का मूवमैंट

होली का मतलब ऊटपटांग हरकतें कर के किसी का दिल दुखाना या जबरदस्ती किसी को रंग लगाने की कोशिश करना नहीं है बल्कि इस दिन परिवार व दोस्तों संग जम कर मस्ती करना, टोलियों में घूम कर घरघर विश करना और खूब ऐंजौय करना है ताकि पूरे साल याद रहे यह दिन. इस दिन आप अपने बिजी शैड्यूल के कारण जो समय अपनों को नहीं दे पाए उसे इस त्योहार के बहाने दें तभी आप को एहसास होगा कि आज कुछ खास है तभी तो यह बात है.

3. देखने से ज्यादा इन्वौल्व भी हों

बहुत से युवाओं की यह सोच होती है कि होली पर अपने घर के आंगन में से ही बाहर की रौनक का लुत्फ उठाया जाए ताकि हम गंदे भी न हों और मजा भी पूरापूरा आ जाए जबकि होली अपनों के साथ मस्ती करने का त्योहार है. इस दिन का मकसद सिर्फ एकदूसरे को रंग लगाना ही नहीं बल्कि पुराने गिलेशिकवे भुला कर फिर से एक हो जाने व मिलबैठ कर पकवानों का लुत्फ उठाने का पर्व है और ऐसा तभी संभव है जब वे इस दिन के लिए पहले से शैड्यूल बना कर चलें.

4. बौलीवुड में होली का जश्न

बौलीवुड में होली को ले कर काफी क्रेज होता है. वे इस के लिए कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं, क्योंकि वे हर बार होली को अलग अंदाज में मनाने के मूड में होते हैं. इस दिन वे अपने फेवरिट बौलीवुड करैक्टर को कौपी कर के खुद को एक अलग अंदाज में पेश करने की कोशिश करते हैं या फिर व्हाइट ड्रैस कोड में एकदूसरे को रंगने के लिए बेताब रहते हैं, इस दिन सैलिब्रिटीज होली के मशहूर गीतों पर थिरकती नजर आती हैं यानी चारों तरफ मस्ती का आलम ही नजर आता है.

5. प्ले होली विद नैचुरल वे

कुछ युवा होली पर जो हाथ में लग जाए जैसे साइकिल की ग्रीस, कैमिकल वाले कलर्स जिन से स्किन को नुकसान पहुंचता है, से होली खेलते हैं. ऐसे में कुछ युवा डर के मारे होली खेलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. इसलिए अच्छा रहेगा कि होली नैचुरल वे में खेलें, घर पर कलर बना कर. अगर आप को औरेंज कलर बनाना है तो 10 लिटर गरम पानी में 500 ग्राम टेसू के फूल डालें और अगर पिंक कलर बनाना है तो 500 ग्राम गुलाब की पत्तियां डालें और उसे 10-12 घंटे के लिए रख दें. फिर देखिए क्या मजेदार रंग बनता है जो स्किन को नुकसान भी नहीं पहुंचाएगा और होली खेलने में मजा आएगा सो अलग.

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