मीना ने सब के जीवन की डोर को जैसा चाहा वैसा घुमाया. पति होने के नाते यह मेरी शराफत थी या कमजोरी कि मैं उस का कभी विरोध नहीं कर सका, लेकिन आज बरसों से दबा लावा मेरी जबान से फूट निकला.