Happy Birthday Tejasvi Yadav : लालू यादव के 9 बेटेबेटियों में सबसे लायक छोटा बेटा

आज बिहार के पूर्व डिप्‍टी सीएम तेजस्‍वी यादव अपना 31वां जन्‍म दिन मना रहे हैं.  आइए जानें राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री लालू यादव के लिए तेजस्‍वी ही सही उत्‍तराधिकारी क्‍यों हैं ?  

गंभीर नेता की छवि है तेजस्‍वी की

तेजस्‍वी यादव ने अपनी छवि को अपने पिता लालू प्रसाद यादव की तुलना में ज्‍यादा गंभीर बनाई है. लालू यादव ने अपनी शुरुआती राजनैतिक सफर में एक परिपक्‍व नेता की छवि बनाई थी, जिनके पास मुद्दे थे, जो बिहार की गरीबी को अच्‍छी तरह समझते थे, जो वहां के लोगों की समस्‍याओं से भलीभांति परिचित थे लेकिन बाद में उनकी यह छवि धूमिल हो गई. उन पर घोटालों का आरोप लगता गया. इनमें चारा घाेटाला और लैंड फौर जौब स्‍कैम शामिल है. लालू यादव पर यह आरोप लगा था कि वह 2004 से 2009 तक रेलमंत्री रहते हुए  लोगों को नौकरी देने के नाम परर उनकी जमीन अपने नाम लिखवा ली.

मजाकिया अंदाज से बिगड़ी छ‍वि 

 

राजनीति के शुरुआती दिनों में मंच से दिए गए लालू यादव के  भाषणों का मजाकिया अंदाज लोगों को इसलिए पसंद आता था क्‍योंकि उसमें व्‍यंग्‍य होता था. विपक्ष के खिलाफ गंभीर तंज होता था लेकिन बाद में उनके इस अंदाज को मसखरापन माना जाने लगा.  लालू के भाषणों से भरपूर मनोरंजन की उम्‍मीद जताई जाने लगी. वह अपने भाषणों में व्‍यंग्‍य बाण के लिए नहीं गंवई अंदाज के लिए चर्चा में रहने लगे. इसके ठीक विपरीत तेजस्‍वी यादव ने अपनी छवि को गंभीर बनाए रखा है. 9 नवंबर 1989 को जन्‍मे तेजस्‍वी यादव बिहार के उप मुख्‍यमंत्री भी रहे.  वे 10 अगस्‍त 2022 से लेकर 28 जनवरी 2024 तक डिप्‍टी सीएम के पद पर रहे. वे कभी भी बेवजह चुटीली बातें या मसखरापन करते नहीं नजर आते हैं.  उनकी यही छवि आने वाले दिनों में उनके राजनैतिक कैरियर को आगे बढ़ाने का काम करेगी. 

लालू के बेटों में सबसे लायक

इसमें दो राय नहीं है कि लालू के 9 बच्‍चों में तेजस्‍वी यादव सबसे योग्‍य हैं.  लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव अपनी अजीबोगरीबों हरकतों की वजह से चर्चा में रहते हैं जबकि तेजस्‍वी ऐसी चीजों से दूर ही रहते हैं.  तेजप्रताप यादव अपनी शादी की वजह से भी विवादों में रहे जबकि तेजस्‍वी यादव ने अपनी शादी में नई मिसाल कायम की.  उन्‍होंने दूसरे धर्म की लड़की रैचेल  से प्रेम विवाह किया.  उनके लिए यह आसान नहीं था लेकिन उन्‍होंने अपने परिवार को इसके लिए रजामंद किया और धूमधाम से शादी की.  रैचल को अब राजश्री यादव के नाम से जाना जाता है. अकसर पारिवारिक समारोहों में वह अपनी पत्‍नी और बेटी के साथ दिखते हैं. इससे तेजस्‍वी की इमेज एक फैमिली मैन की बनी है.
लालू के सभी बच्‍चों की तुलना में तेजस्‍वी में राजनैतिक सूझबूझ भी ज्‍यादा है और चुनाव के दिनों में सक्रिय भी रहते हैं. इससे आम लोगों में यंग लीडर के रूप में उनकी स्‍वीकार्यता भी बढ़ी है. 

बिहार में दो यंग लीडर्स से है उम्‍मीद 

आज की बिहार की राजनीत‍ि में यंग लीडर्स की बात करें, तो एक हैं राम विलास पासवान के बेटे  चिराग पासवान और दूसरे हैं लालू के बेटे तेजस्‍वी यादव. तेजस्‍वी यादव की तुलना अगर अखिलेश यादव से की जाए, तो शायद यह कहना गलत नहीं होगा क‍ि अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह की जिंदगी में ही खुद को उनकी छत्रछाया से अलग कर लिया था.  जिन बातों में वह अपने पिता से सहमत नहीं होते, उसका विरोध करते.

वहीं तेजस्‍वी यादव अभी भी अपने पिता लालू यादव की छाया तले नजर आते हैं.  इसकी एक वजह यह भी है कि लालू भी अपने पुत्र के विरोध में नहीं जाते और उनके बच्‍चों में तेजस्‍वी यादव से बेहतर दूसरा कोई राजनैतिक उत्‍तराधिकारी नजर नहीं आता है.  लालू यादव ने अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती को भी राजनीति में उतारा था लेकिन मीसा उनके भरोसे पर खरी नहीं उतरी.  वह चुनाव भी हार गईं.  लालू यादव की एक और बेटी, रोहिणी आचार्य ने भी राजनीति में पैर जमाने की कोशिश की थी लेकिन उन्‍हें भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, ऐसे में लालू के पास तेजस्‍वी से बेहतर दूसरा कोई औप्‍शन नहीं है.  

नीतीश कुमार ने विधानसभा में किया महिला विधायक का अपमान, हुए आपे से बाहर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर आपे से बाहर हो गए और एक ‘महिला विधायक’ को इंगित करते हुए कुछ ऐसा कह दिया, जो खुद उन के लिए आफत बन गया है और अब जब वे घिरे गए हैं, तो उन से जवाब देते नहीं बना, मगर उन्होंने अपनी गलती या माफी नहीं मांगी, नतीजतन वे और उन का बरताव आज देशभर में चर्चा की बात बन गए हैं.

अच्छा होता कि नीतीश कुमार तत्काल अपने कथन को ले कर माफी मांग लेते, मगर आज हमारे समाज और देशप्रदेश में जो लोग ऊंचे ओहदों पर पहुंच जाते हैं, वे अपनेआप को सबकुछ समझते हैं और अपनी गलती पर माफी मांगने में उन्हें शर्म आती है.

नीतीश कुमार के तेवर

दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा में अपना आपा खो बैठे और राष्ट्रीय जनता दल की विधायक रेखा देवी पर गुस्से में आ कर एक विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा – ‘अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो.”

नीतीश कुमार के इस कथन को ले कर विधानसभा में हंगामा खड़ा हो गया. थोड़ी देर बाद उन्हें बात समझ में आ गई कि गलती हो गई है, मगर अपनी गलती को छिपाने के बजाय समझदारी दिखाते हुए गलती स्वीकार कर लेते, तो बात वहीं खत्म हो जाती.

बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकीं और राज्य विधानपरिषद में प्रतिपक्ष की नेता राबड़ी देवी ने इस मुद्दे पर कहा, “मुख्यमंत्री के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है… लोग जानते हैं कि उन के (नीतीश) मन में महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं है. उन्होंने विधानसभा में जोकुछ किया है, वह सरासर एक महिला का अपमान है. जद (यू) नेताओं और राजग के अन्य गठबंधन सहयोगियों के मन में महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं है. महिलाओं का सम्मान केवल राजद और इंडिया गठबंधन के नेताओं में ही है.”

यह महिलाओं का अपमान

नीतीश कुमार बिहार विधानसभा में अपनी कही हुई बातों के चलते चर्चा में रहे हैं. पहले भी उन्होंने कुछ ऐसी बातें कह दी थीं, जो संसदीय नहीं की जा सकती हैं.

रेखा देवी, जिन्हें इंगित करते हुए नीतीश कुमार ने टिप्पणी की थी, ने कहा, “नीतीश कुमारजी ने विधानसभा में जोकुछ कहा, वह एक महिला का अपमान है. उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया… यह पहली बार नहीं हुआ है. हम आज यहां अपने नेता और पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद की वजह से हैं… नीतीश कुमार की वजह से नहीं. नीतीश कुमार ने सदन में एक दलित विधायक का अपमान किया है. ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री का अपने दिमाग पर कोई नियंत्रण नहीं रहा.”

दरअसल, बिहार विधानसभा में 24 जुलाई, 2024 को राज्य के संशोधित आरक्षण कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को ले कर विपक्षी सदस्य हंगामा और नारेबाजी कर रहे थे. हंगामे के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दखल देने के लिए उठ खड़े हुए. उस समय राजद की मसौढी से विधायक रेखा देवी अपनी बात कह रही थीं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेखा देवी की ओर उंगलियां दिखाते हुए ऊंची आवाज में कहा, “अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो. इन लोगों (राजद) ने किसी महिला को आगे बढ़ाया था. क्या आप को पता है कि मेरे सत्ता संभालने के बाद ही बिहार में महिलाओं को उन का हक मिलना शुरू हुआ. 2005 के बाद हम ने महिलाओं को आगे बढ़ाया है. बोल रही हो, फालतू बात… इसलिए कह रह हैं, चुपचाप सुनो. ”

उन के इतना कहते ही सदन में हल्ला बोल शुरू हो गया. एक महिला विधायक से इस तरह मुखातिब होने का विपक्षी सदस्यों द्वारा विरोध किए जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा, “अरे क्या हुआ… सुनोगे नहीं… हम तो सुनाएंगे और अगर नहीं सुनिएगा, तो यह आप की गलती है.”

बाद में संसदीय कार्यमंत्री विजय कुमार चौधरी ने दखल देते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आसन को संबोधित करने का अनुरोध किया तो नीतीश कुंअर ने विपक्षी सदस्यों के बारे में कहा, “आप समझ लीजिए कि हम लोगों ने 1-1 चीज को लागू कर दिया है.”

इधर तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की टिप्पणी को ‘महिला विरोधी व असभ्य’ करार दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि महिलाओं के खिलाफ बयानबाजी नीतीश कुमार की आदत है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के साथसाथ एक वरिष्ठतम विधायक हैं, उन्हें अपनी बात आसन को संबोधित करते हुए कहनी चाहिए थी, मगर जिस ढंग और शब्दों में उन्होंने आसन की अनदेखी कर के अपनी बात कही, वह हर नजरिए से आलोचना की बात बन गई है.

सैक्स पर चर्चा : नीतीश कुमार के बयान पर ओछी राजनीति

Political News in Hindi: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आज उम्र की जिस दहलीज पर हैं, उन के द्वारा औरतों के सिलसिले में सैक्स को ले कर जिस तरह का बयान बिहार विधानसभा में आया और फिर थोड़े ही समय में नीतीश कुमार ने जिस अदबी के साथ माफी मांगी तो फिर नैतिकता का तकाजा यह है कि मामला खत्म हो जाता है. मगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narender Modi) ने जैसे नीतीश कुमार के बयान को लपक लिया और बांहें खींच रहे हैं, वह यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी और उस का नेतृत्व आज कैसी राजनीति कर रहा है और देश को गड्ढे की ओर ले जाने में रोल निभा रहा है.

आप कल्पना कीजिए कि देश में अगर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री होते तो क्या इस मामले को नरेंद्र मोदी की तरह तूल देते? आज देश में अगर पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री होते या फिर डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होते, तो क्या इस तरह मामले को तूल दिया जाता? शायद कभी नहीं.

दरअसल, नरेंद्र मोदी की यह फितरत है कि वे अपने लोगों को तो हर अपराध के लिए माफ कर देते हैं, मगर गैरों को माफ नहीं करते. उन के पास बरताव करने के दूसरे तरीके हैं, जो कम से कम प्रधानमंत्री पद पर होते हुए उन्हें शोभा नहीं देता.

देश का आम आदमी भी जानता है कि किसी भी विधानसभा में दिया गया बयान रिकौर्ड से हटाया भी जाता है और उस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती. मगर भाजपा जिस तरह नीतीश कुमार पर हमलावर है, वह बताता है कि उसे न तो संविधान से सरोकार है और न ही किसी नैतिकता से. किसी की छवि को खराब करना और किसी भी तरह सत्ता हासिल

करना ही आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा का मकसद बन कर रह गया है.

शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार, 8 नवंबर, 2023 को बिहार विधानसभा में महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी को ले कर बिना नाम लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना की और कहा, ‘‘महिलाओं का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए वह जो भी कर सकेंगे, करेंगे. महिलाओं का इतना अपमान होने के बावजूद विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’

के घटक दलों ने एक शब्द भी नहीं बोला है.’’

नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम लिए बगैर कहा, ‘‘कल ‘इंडिया’ गठबंधन के बड़े नेताओं में से एक, जो ब्लौक का झंडा ऊंचा रख रहे हैं और वर्तमान सरकार (केंद्र में) को हटाने के लिए तरहतरह के खेल खेल रहे हैं, उन्होंने माताओंबहनों की उपस्थिति में राज्य विधानसभा में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया, जिस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता… उन्हें इस के लिए शर्म तक महसूस नहीं हुई. ऐसी दृष्टि रखने वाले आप का मानसम्मान कैसे रखेंगे? वे कितना नीचे गिरेंगे? देश के लिए कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.’’

जबकि यह कानून है कि विधानसभा में दिए गए बयान पर कोई कानूनी संज्ञान नहीं दिया जा सकता, इस के बावजूद भाजपा नेतृत्व में वह सब किया जा रहा है जो कानून के खिलाफ है. इस का सब से बड़ा उदाहरण है महिला आयोग द्वारा नीतीश कुमार के वक्तव्य पर संज्ञान लिया जाना.

राष्ट्रीय महिला आयोग ने बिहार विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को पत्र लिख कर यह आग्रह किया कि वे सदन के भीतर की गई अपमानजनक टिप्पणी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करें.

पत्र में आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि हम जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा ऐसे बयानों की कड़ी निंदा करती हैं.

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब यह कहते हैं कि महिलाओं के सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करूंगा, तो हंसी आती है, क्योंकि देश ने देखा है कि किस तरह देश की बेटियों ने जंतरमंतर पर भाजपा के एक सांसद और महत्त्वपूर्ण पदाधिकारी के खिलाफ अनशन किया था, मगर आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया है.

नीतीश कुमार का नरेंद्र मोदी को करंट

15अगस्त, 2022 देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन था, क्योंकि सारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था. इस दिन लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा देश को संबोधित करने की परंपरा रही है. ऐसे में सारे देश की निगाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर टिकी हुई थी.

मगर जैसा कि होता रहा है नरेंद्र मोदी एक बार फिर चूक गए. अमृत महोत्सव के इस ऐतिहासिक मौके पर देश को एक नई दिशा देने का समय था. एक ऐसा संबोधन, जो देश की जनता में एक ऊर्जा, एक असर पैदा कर देता, मगर प्रधानमंत्री ने इस खास मौके पर जो कुछ कहा वह विवादित हो गया. क्योंकि यह समय परिवारवाद और भ्रष्टाचार जैसे मसले पर चर्चा करने का कतई नहीं कहा जा सकता. स्वतंत्रता दिवस मौका था, दुनिया के सामने भारत की उन उपलब्धियों को सामने रखने का, जिसे देश ने पाया है. आज मौका था देश की जनता को देश के लिए एक बार फिर समर्पित कर दिखाने का.

सच तो यह है कि हमारे बाद जो देश आजाद हुए, वह आज हम से काफी आगे निकल गए हैं. भारत में इतनी जनसंख्या और इतने संसाधन हैं कि वह सचमुच दुनिया का नेतृत्व कर सकता है, मगर इस दिशा में भाषण सिफर रहा और संसद में या किसी सामान्य रूप से देश को संबोधित करने कर मौके जैसा भाषण दे कर नरेंद्र मोदी ने इस से देश को निराश किया. सब से अहम मसला जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा, वह था परिवारवाद और भ्रष्टाचार. यकीनन, यह एक बड़ी समस्या है, मगर समस्या को बता देना ही पर्याप्त नहीं होता. महानता और मनुष्यता तो इसी में है कि अगर हमें यह पता है कि समाज में यह खामियां हैं,

तो सब से पहले हम अपनेआप को ठीक करें, अपने आसपास को ठीक करें. ऐसे में नरेंद्र मोदी के पास आज यह मौका था कि वे अपनी भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार को इस के लिए प्रतिबद्ध करते. मगर बड़े ही खेद की बात है कि नरेंद्र मोदी जो कहते हैं, वह दूसरों के लिए बड़ीबड़ी बातें कहते हैं, ज्ञान की ऐसी बातें कि लोग तालियां बजाएं. मगर खुद पर कभी लागू नहीं करते. ऐसे में उस का असर खत्म हो जाता है. परिवारवाद और भ्रष्टाचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं जब परिवारवाद की बात करता हूं, तो लोगों को लगता है कि सिर्फ राजनीति की बात करता हूं.

लेकिन ऐसा नहीं है, मैं जब परिवारवाद की बात करता हूं, तो यह सभी क्षेत्रों की बात होती है. मगर सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी आज देश की सब से बड़ी पार्टी है, दुनिया की सब से बड़ी पार्टी है, जो वह गर्व के साथ कहती है, तो यह भी सच है कि वह परिवारवाद का एक बड़ा कटोरा भी है. यही नहीं, दूसरी पार्टी के बड़े नेताओं को भाजपा में प्रवेश दिया गया और उन्हें बड़ी रेवडि़यों से नवाजा गया. यह भी तो आखिर राजनीतिक भ्रष्टाचार और परिवारवाद का नमूना कहा जा सकता है, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निगाह इस ओर क्यों नहीं जाती?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 25 साल का एक समय तय कर के इन समस्याओं को दूर किया जाए. यह सब से बड़ी खोखली बात है. 25 साल किस ने देखे हैं? आप आज ही से अपनेआप में बदलाव क्यों नहीं करते? अपनी पार्टी में बदलाव क्यों नहीं करते? अपने आसपास बदलाव क्यों नहीं करते? दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी, आप को 5 साल के लिए देश की जनता चुनती है और आप बड़ी ही चतुराई के साथ 25 साल और समय मांगने का खेल खेलते हैं. क्या आप यह समझते हैं कि आप को 25 साल तक यह देश प्रधानमंत्री पद पर निर्वाचित करता रहे? आप अपने इस समय काल की भीतर की योजना बनाएं और उसे देश को जागृत कर के दिखाएं, वरना बाकी सब बातें तो लफ्फाजी ही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पहले खेलों में भी भाईभतीजावाद चलता था, पर आज नहीं है.

हमारे खिलाड़ी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. परिवारवाद से केवल परिवार का फायदा होता है, देश का नहीं. भाईभतीजावाद को ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह हर संस्था में देखने को मिलता है. ऐसा कई संस्थाओं में है, जिस के कारण नुकसान उठाना पड़ता है. यह भी भ्रष्टाचार का कारण बन जाता है. इस परिवारवाद और भाईभतीजावाद से हमें बचना होगा. राजनीति में भी परिवारवाद देखने को मिलता है. परिवारवाद से केवल परिवार का फायदा होता है, देश का नहीं. उन्होंने भ्रष्टाचार और भाईभतीजावाद का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इन दोनों चीजों से हमें बचना चाहिए. भ्रष्टाचार से हर हाल में लड़ना होगा. पिछली सरकारों में बैंकों को लूट कर जो भाग गए, उन्हें पकड़ने का काम जारी है. बैंकों को लूटने वालों की संपत्तियां जब्त की जा रही हैं. जिन्होंने देश को लूटा,

उन्हें वह लौटाना होगा. सौ टके की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह चाहते हैं कि 2024 में भी देश की जनता उन्हें भारी वोट दे कर प्रधानमंत्री बनाए, इसीलिए आप के भाषणों में आमतौर पर भविष्य के लिए बातें कही जाती हैं. ‘वर्तमान’ और ‘आज की बात’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिक्शनरी में नहीं हैं. वे हमेशा ही कहते हैं कि ऐसा करना है, ऐसा हो गया, ऐसा हो रहा है. मगर यह नहीं कहते कि देश में उन की सरकार यह करेगी या कर रही है.

नीतीश कुमार अपने पलटियों के लिए हैं बदनाम

नीतीश कुमार अपनी पलटियों की वजह से राजनीतिक हल्कों में अपनी इज्जत तो खो चुके थे पर इस बार उन्होंने मोदीशाह जोड़ी को तुर्की ब तुर्की जवाब दे कर जता दिया कि जो ड्रामा वे करते हैं, दूसरे भी कर सकते हैं. ङ्क्षहदूत्व आज उतना जोर नहीं मार रहा जितना ईडी, इंकमटैक्स, पुलिस, सेना, बुलडोजर भर रहा है. भारतीय जनता पार्टी का मंदिर कार्ड आज भी चल रहा है पर उस के फैलाए सपनीले परदों के नीचे बेहद बढ़ती बदबू व सडऩ अब जनता को खाने लगी है.

जब कभी मुसलिम शासक, मुगल, फ्रैंच, पौर्तुगाली, उठा और अंग्रेज इस देश में आए तो जनता ने चुपचाप उन को आने दिया क्योंकि तब के राजाओं को मंदिर बनाने, यज्ञ हवन कराने, जनता की जगह पूजापाठियों का खयाल रखने से फुर्सत नहीं होती थी. जिस तरह आज आम जनता मंहगाई, बेरोजगारी, तानाशाही और बुलडोजरी घौंस से छटपटा रही है, उसी तरह उस युग की जनता ने हार कर विदेशियों का मुंह देखना ज्यादा अच्छा समझा था.

नीतीश कुमार का हाल मायावती, अकाली दल, शिवेसना, जैसा कर देने की सीख भारतीय जनता पार्टी को पौराणिक कहानियों में ही मिली है जिस में भाईभाई को दगा देता है. रामायण और महाभारत के जितने महान लोग थे. सब की अपनो से नाराजगी थी चाहे वह कैकई हो, विभिषण हो, शकुनी हो, दादा भीष्म हों. नीतीश कुमार के नीचे से कालीन ङ्क्षखचवाने के चक्कर में लगी भाजपा को पटखनी दे कर एक सबक तो सिखाया गया है अब जज, पुलिस, इंक्मटैक्स, ईडी सब पटना में जमा हो जाएंगे जैसे कुरूक्षेत्र में हुए थे और चाहे गरीब राज्य का नुकसान हो, वहां से खबरें छापों की आएंगी, नए निर्माणों की नहीं.

भाजपा की सोच वाले लालूयादव के साथ एक बार ऐसा कर चुके हैं और झूठेसच्चे चारा घोटाले में उसे फसा कर उस कैरियर समाप्त कर चुके हैं. अब खीसिया कर वही दोहराया जाएगा. नवीन पटनायक, जगन रैट्डी, केसीआर को चेतावनी दी जा चुकी है.

बिहार की बात राजनीतिक उठापटक पर हो, यह अफसोस है. बिहार जितने होथियार लोग देश को दिए हैं, उतने शायद किसी और राज्य ने नहीं दिए. उतने शायद किसी और राज्य ने नहीं दिए. मौर्चा युग में बिहार ही देश का सब से अमीर इलाका रहा है. आज भी दुनिया भर में फैले भारतीय भूल के लोग, चाहे वे कोई काम कर रहे हैं, ज्यादातर बिहार के हैं.

बिहार का शोषण किया गया है और भाजपाई सोच वाले ऊंची जातियों के लोग उसे लगातार दुहना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब धर्मकर्म वालों की सरकार हो. कांग्रेस के जमाने में जो सरकारें थीं, वे भारतीय जनता पार्टी की सरकारों से बढ़ कर पूजापाठी थीं. अब नीतीश कुमार और तेजस्वी की सरकार जो बनेगी, उसे बिहार के दलदल से निकालने का मौका मिलेगा. वैसे केंद्र सरकार शायद ऐसा नहीं होने देगी और पैसा छीन कर उस का गला घोंटे रखेगी.

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जब तक अपनी बात जनता तक नहीं ले जाएंगे, उन का कल्याण नहीं होगा. उन्हें सब से पहले पूजापाठियों से निपटना है जो आसान नहीं है.

कलह की कगार पर पारिवारिक पार्टियां

इंडियन नैशनल लोकदल में इस वक्त कलह का साया गहराया हुआ है. पिछले कुछ समय से चौटाला परिवार के सदस्य 2 दलों में बंटने के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहे हैं. हरियाणा में चौधरी देवीलाल की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए उन के बेटे ओमप्रकाश चौटाला आए. वे राज्य के मुख्यमंत्री रहे. मुख्यमंत्री रहते हुए शिक्षक भरती मामले में उन्हें जेल की सजा हुई. फिलहाल अपने बड़े बेटे और सांसद रह चुके अजय चौटाला के साथ जेल में हैं.

दरअसल, अजय चौटाला के बड़े बेटे हिसार से सांसद दुष्यंत चौटाला और उन के चाचा अभय चौटाला के बीच ठनी हुई है. दुष्यंत चौटाला और उन का छोटा भाई दिग्विजय चौटाला एकसाथ हैं जबकि ओमप्रकाश चौटाला अभय चौटाला का साथ दे रहे हैं.

इंडियन नैशनल लोकदल की गोहाना में हुई रैली के बाद परिवार में कलह ज्यादा बढ़ गई. अभी ओमप्रकाश चौटाला पैरोल पर जेल से बाहर आए हुए हैं. उन्होंने अपने पोते व सांसद दुष्यंत चौटाला और उन के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला को पार्र्टी से निलंबित कर दिया. युवा इकाई को भी भंग कर दिया. दिग्विजय चौटाला इस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

इन दोनों को ही पार्टी से निकालने के बाद दिग्विजय चौटाला ने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए. उन्होंने कहा कि युवा इकाई को भंग करने का अधिकार केवल अजय चौटाला या 26 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पास है.

राजनीतिक परिवार का यह झगड़ा नया नहीं है. बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार में भी उन के दोनों बेटों के बीच मनमुटाव की खबरें आती रही हैं. लालू प्रसाद भी इस वक्त जेल में हैं. उन के बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के बीच सत्ता संघर्ष की खबरें आती रही हैं. उधर समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव, उन के बेटे अखिलेश यादव और मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव के बीच मानो तलवारें खिंची हुई हैं.

साल 2016 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी जब सत्ता में थी तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उन के चाचा शिवपाल यादव के बीच विवाद सुर्खियों में आए थे. इन दोनों की तनातनी में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल यादव के साथ खड़े हुए, फिर बेटे अखिलेश के साथ. यहां इस परिवार के बीच कलह की मूल जड़ अमर सिंह को माना गया था.

दक्षिण भारत में द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम में एम. करुणानिधि के परिवार के सदस्यों एमके स्टालिन और अलागिरी के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है.

दरअसल, इन राजनीतिक परिवारों के सदस्यों के बीच दबदबे को ले कर यह जंग है. इन परिवारों की कलह में कांग्रेस और भाजपा को अपनेअपने फायदे दिख रहे हैं. अब इस समय जब विपक्षी दलों के बीच गठबंधन की कवायद चल रही है, ऐसे में परिवार पर टिके इलाकाई दलों में फैली फूट विपक्षी एकता के लिए ही नहीं, बल्कि खुद इन दलों की मजबूती के लिए भी खतरनाक है.

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