बलात्कार की मानसिकता के पीछे है गंदी गालियां

हैदराबाद की महिला डाक्टर के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उस के शव को जला दिया गया. अखबार की सुर्खियों और सोशल मीडिया पर जनआवेश से खबर लोगों तक पहुंची तो क्या सैलिब्रिटी और क्या आम आदमी, सभी ने अपना रोष जताया.

27 वर्षीया पीडि़ता पशु अस्पताल में असिस्टैंट पशु चिकित्सक थी. 27 नवंबर को वह अस्पताल से देर में घर पहुंची और शाम 5.50 के करीब दूसरे क्लीनिक जाने के लिए घर से निकल गई. उस ने टोंडुपल्ली टोल प्लाजा के पास अपनी स्कूटी खड़ी की.

पुलिस को दिए बयान में पीडि़ता की बहन ने बताया कि उसे रात 9.22 बजे उस का फोन आया जिस में उस ने कहा कि वह अभी भी टोल प्लाजा में ही है जहां उस की स्कूटी का टायर पंक्चर हो गया है. उस ने यह भी बताया कि कुछ लोग उस की मदद करने के लिए कह रहे हैं लेकिन उसे उन से डर लग रहा है. पीडि़ता की बहन ने उसे 9.44 बजे फोन किया. लेकिन फोन स्विचऔफ बता रहा था. इस के बाद घरवालों ने पुलिस से संपर्क किया.

अगले दिन चटनपल्ली हाईवे पर जला हुआ शव मिला. पीडि़ता के घरवालों ने सैंडल और कपड़ों से लाश की शिनाख्त की. आरोपी ट्रक ड्राइवर मोहम्मद आसिफ, क्लीनर जे शिवा, जे नवीन, चेन्ना केश्वुलु को साइबराबाद पुलिस ने गिरफ्त में लिया. अदालत ने चारों आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस के अनुसार, कथित 6 दिसंबर के दिन तड़के सुबह तीनों आरोपियों को घटनास्थल पर दुष्कर्म की जांच करने के सिलसिले में ले जाया गया जहां उन्होंने भागने की कोशिश की और पुलिस के साथ गोलीबारी के एनकाउंटर में चारों की मौत हो गई.

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यह अपनी तरह का पहला मामला नहीं है. आएदिन महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले सामने आते रहते हैं. फर्क, बस, इतना है कि कुछ मामले सुर्खियों में आते हैं और लोगों की जबान पर चढ़ जाते हैं तो कुछ अखबार के एक कोने में 100 शब्दों की रिपोर्ट में सिमटे रहते हैं.

न रुकने वाले मामले

  • 27 नवंबर को केरल के कोच्चि के पास रहने वाली 42 वर्षीया महिला के साथ बलात्कार कर उस के शव को एक दुकान के सामने फेंक दिया गया. दुकान के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की मदद से पुलिस आरोपी तक पहुंची. पुलिस के अनुसार महिला के शरीर पर कम से कम चोटों के 30 निशान थे व उस के चेहरे को इस तरह बिगाड़ दिया गया था कि पहचाना भी न जा सके.
  • दिल्ली के गुलाबी बाग थाना क्षेत्र में रहने वाली अविवाहिता 55 वर्षीया महिला का 22 वर्षीय धर्मराज ने बलात्कार किया व गला दबा कर हत्या कर दी. महिला पूजा सामग्री और चाय की छोटी सी दुकान चलाती थी. यह दुकान महिला के पैतृक घर में थी जिस में वह अकेली रहती थी. आरोपी के अनुसार, महिला ने उस से कुछ पैसे उधार लिए थे जिन्हें वह वापस नहीं दे रही थी. दोनों में कुछ देर बहस हुई और महिला ने धर्मराज के मुंह पर थूक दिया. पहले से ही नशे में धर्मराज इस बेइज्जती को  झेल नहीं पाया और बदला लेने की मंशा से उस ने इस घटना को अंजाम दिया.
  • तेलंगाना के रहने वाले 21 वर्षीय लड़के ने अपनी 19 वर्षीया गर्लफ्रैंड का रेप किया जिस के कारण उस की मौके पर ही मौत हो गई. 27 नवंबर को सुबह लड़के ने लड़की को उस के बर्थडे पर विश करने के लिए बुलाया. वह उसे अपनी कार में बैठा कर दूर सुनसान जगह ले गया जहां उस ने उस का रेप किया. रेप के दौरान ही कार्डिएक अरैस्ट या सदमे से लड़की की मौत हो गई. लड़के ने उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया व लड़की के मना करने पर वह जबरदस्ती पर उतर आया. लड़की की मौत के बाद लड़के ने उस के कपड़े बदले क्योंकि वह खून से लथपथ थे, फिर उस के शव को उस के घर के पास फेंक दिया जिस से यह लगे कि मौत प्राकृतिक है.

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  • राजस्थान के टोंक जिले में 6 वर्षीया बच्ची का रेप कर, स्कूल बैल्ट से उस का गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया गया. पहली कक्षा में पढ़ने वाली इस बच्ची के शरीर पर चोटों को देख कर स्पष्ट था कि किस दरिंदगी से उस का बलात्कार किया गया. बच्ची की लाश अलीगढ़ शहर के एक छोटे से जिले में  झाडि़यों में पड़ी मिली जिसे गांव के कुछ लोगों ने देख कर पुलिस को खबर दी.

बलात्कार के ये वे मामले हैं जिन का घटनाक्रम हैदराबाद घटना के साथ हुए हादसे के आसपास का ही है. ये मामले जनाक्रोश का हिस्सा नहीं बने. इन मामलों पर कैंडललाइट मार्च नहीं हुए. न ही बड़े नेता, अभिनेता ने इन पर ट्वीट कर संवेदना जताई. क्यों? क्योंकि ये मामले ट्रैंड नहीं बने.

भारत में प्रतिवर्ष एक ऐसा मामला सामने आता है जिस पर जनाक्रोश उमड़ता है, ट्वीट्स, कविताएं, पोस्ट्स डाले जाते हैं, हर तरफ बातें की जाती हैं, नारे लिखे जाते हैं और फांसी की गुहार लगाई जाती है. लेकिन, क्यों लोगों को, सरकार को जागने के लिए हर साल एक ऐसे मामले की जरूरत पड़ती है? क्यों बाकी सभी मामलों के लिए एकजैसे न्याय की मांग नहीं होती? क्यों बदलाव की गूंज साल में एक बार ही सुनाई देती है और क्यों कोई बदलाव असल में होता ही नहीं?

बलात्कार में भी फर्क है

भारत में हर बलात्कार एकजैसा नहीं है. जिस पर लोग सड़कों पर उतार आए हों वह ‘इंपोर्टेंट बलात्कार’ है. उस पर कार्रवाई जल्द होनी चाहिए, फैसले जल्दी होने चाहिए, सजा जल्द मिलनी चाहिए. लेकिन, जिस पर बात नहीं हो रही वह मामला चाहे सदियों अदालत में कागजों में बंद धूल खाता रहे, उस पर किसी को चिंता नहीं. क्या यही है हमारी मौडर्न न्यायिक शैली?

कांग्रेस नेत्री अल्का लांबा ने एक न्यूज चैनल पर वादविवाद के दौरान कहा, ‘‘एडीआर का सर्वे उठाइए, 2019 के चुनाव में 45 प्रतिशत अतिगंभीर बलात्कारियों को भाजपा ने टिकट दिए, आप ने वोट दिया, सांसद बना दिया. आज उन सांसदों से उम्मीद करते हैं. एक विधायक हैं, बेटी (पीडि़ता) का ऐक्सिडैंट करवा दिया. वह विधायक उन्नाव का है, जेल में है, बेटी ट्रौमा में है. दूसरा, चिन्मयानंद पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री, बेटी आरोप लगाती है, बेटी जेल में है, चिन्मयानंद अस्पताल में है. लानत है ऐसे कानून पर, ऐसी पार्टी, ऐसे विधायकों पर, ऐसे सांसद, ऐसी जनता पर जिन्होंने इन को वोट दे कर हमारे सिर पर बैठा दिया.’’

क्या जो अल्का ने कहा, वह सही नहीं है? क्या इन बलात्कारियों को फांसी की सजा मुकर्रर नहीं होनी चाहिए? इन के हाथ में शासन की डोर देना क्या उस जंजीर की छोर पकड़ाना जैसा नहीं है जिस में वे लड़कियों को जकड़े रखना चाहते हैं? बात वहीं आ कर रुक जाती है कि सजा हर गुनाहगार को मिलनी ही चाहिए और वक्त पर मिलनी चाहिए. लेकिन, जिस ‘ट्रैंड’ को अपनाया जाने लगा है वह सही नहीं है.

बलात्कार तो बलात्कार ही है, एक मामले को उठा कर बाकी सभी को नीचे दबा देना, एक मामले के आगे हर उस लड़की के साथ अन्याय होते देना जिस के साथ हुआ हादसा ‘इंपोर्टेंट बलात्कार’ की श्रेणी में नहीं आता, गलत है. जब एक मामले पर लोग फांसी की गुहारें इस तरह लगाते हैं तो आसाराम, राम रहीम जैसे बलात्कारियों को इतना आश्रय क्यों?

ये कथन उन लोगों के हैं जिन से हम सभी भलीभांति परिचित हैं. यही कारण है कि समाज का बड़ा हिस्सा इन जानेमाने लोगों द्वारा कहे गए बयानों पर उन पर माफी मांगने का दबाव बनाता है. लेकिन, ये तो कुछ गिनेचुने बयान हैं, क्या ऐसे बयान हम हर दिन खुद कहतेसुनते नहीं?

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‘अरे, वह देख, माल जा रहा है,’ ‘भाई, भाभी क्या पटाखा लग रही है,’ ‘बहन… इस को तो मैं बताता हूं,’ ‘तेरी मां की….., तेरी बहन की…..’ जैसी चीजें क्या हम आएदिन नहीं सुनते? ये गालियां, ये अपशब्द निरर्थक हैं जो अधिकतर महिला व पुरुष के गुप्तांगों से जुड़े हैं. जिन में ज्यादातर गालियां महिलाओं के संदर्भ में दी जाती हैं. लोगों की जबान कैंची की तरह चलती है और हर दिन लड़कियों के पर काटती है. और जब वह किसी हादसे का शिकार हो जाती है तो यही लोग न्याय की गुहार लगाते नजर आते हैं. यहां मुद्दा स्पष्ट है कि बदलाव के लिए चीखने वाले स्वयं खुद को नहीं बदल सकते तो देश के अन्य लोगों को कैसे बदलेंगे.

बड़े कालेजों में पढ़ रहे युवाओं के मुंह पर चौबीसों घंटे गाली रहती है. उन के मुंह से खुशी में गाली, दुख में गाली, मौजमस्ती में गली, फेल हो तो गाली, पास हो तो गाली बिना आसपास देखे निकलती है. ये युवा सिर्फ लड़के नहीं हैं, इन में लड़कियां भी हैं. खुद लड़कियां एकदूसरे को मांबहन की गालियों से संबोधित करती हैं. ये युवा किसी चीज में पीछे नहीं हैं. ये पढ़ेलिखे सम झदार हैं और देश का भविष्य भी हैं.

देश में बलात्कार की घटना घटने पर सब से पहले इंस्टाग्राम पर पोस्ट और स्टोरी भी इन्हीं की अपडेट होती है. कहने का अर्थ साफ है कि संवेदनशीलता अपराध घटने के बाद ही क्यों प्रकट की जाए. जब हम अपशब्दों का सुबह से शाम तक हजार बार प्रयोग करते हैं तो क्या वह संवदेनशीलता भंग करना नहीं है?

बदलाव ऐसा हो

हैदराबाद दुष्कर्म के बाद एक और ट्रैंड ने जोर पकड़ा है. युवाओं ने अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर कुछ इस तरह के पोस्ट्स को शेयर करना शुरू कर दिया है जिन पर लिखा है, ‘अगर मेरी किसी भी दोस्त को कभी कोई खतरा महसूस होता है तो वह बिना  िझ झक मु झ से संपर्क कर सकती है.’ मेरी फेसबुक वाल पर भी मु झे इसी तरह का एक पोस्ट नजर आया जिसे मेरे ही कालेज के एक सीनियर ने शेयर किया था.

यह वही लड़का है जो हर दूसरी लड़की को गाली दे कर बुलाता था, जो लड़कियों को ‘देगी क्या’ वाले मैसेज करता था, जो अपनी गर्लफ्रैंड के साथ बिताए अंतरंग पलों का बखान अपने दोस्तों के सामने सीना ठोक कर करता था, जो लड़कियों को देख उन के स्तनों के आकार पर हंस कर टिप्पणी किया करता था. क्या यह लड़का खुद उस विकृत मानसिकता का शिकार नहीं है, जो लड़कियों को भोगविलास की वस्तु सम झता है? क्या यह सोच स्वीकार्य है? क्या ऐसे लोगों से माफी नहीं मंगवानी चाहिए?

जब तक लोगों की कथनी और करनी अलग रहेगी तब तक बदलाव नहीं आएगा. रेप रुक नहीं रहे, इसलिए नहीं कि सजा के प्रावधान कम हैं बल्कि इसलिए की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं है. छोटे कपड़े पहने हुए लड़की आज भी ललचाई आंखों से देखी जाती है, उस पर कमैंट पास किए जाते हैं, उसे चालू सम झा जाता है.

रेप की घटनाओं के बाद सिर्फ नेताअभिनेता ही नहीं, बल्कि देश के लाखों लोग ऐसी बातें कहते सुने जा सकते हैं जिन में पूरा दोष लड़की का ही माना जाता है. हैदराबाद में बलात्कार के बाद मौत की शिकार हुई लड़की ने क्या भड़काऊ कपड़े पहने हुए थे? और ये भड़काऊ कपड़े होते क्या हैं? क्या इन लोगों से भी कोई माफी मंगवाने वाला है? क्या इन का इलाज माफी मंगवाना है? नहीं. इलाज है बदलाव.

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यह बदलाव सड़कों पर नारे लगाने से, न्यायिक प्रणाली पर दोषारोपण करने से नहीं आएगा. यह बदलाव खुद को बदलने से आएगा. यौनांगों पर गालियां बनाने, ठहाके लगाने से नहीं आएगा. एक समय था जब सम झा जाता था कि गरीब और निचला वर्ग ही ऐसा है जो गालीगलौज करता है जबकि बड़े लोगों की पहचान ही है शालीनता. अब समय बदल चुका है.

अब गालियों का लैवल बदल चुका है. अब प्यारमोहब्बत का सलीका बदल चुका है. लोग अपशब्द खूब एंजौय करते हैं. हां, बलात्कार होने पर दोष खुद को नहीं देते. वे होते वहां तो शायद रोक लेते यह सब. बिलकुल वैसे ही जब राह चलती लड़कियों पर कमैंट करते या बस में खड़ी महिला पर बारबार गिरते आदमी को रोक लेते हैं.

बलात्कारी बहादुर नहीं बल्कि डरपोक है

हाल ही में दिल्ली पुलिस की वार्षिक रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जिस के अनुसार हर घंटे एक महिला अपराध का शिकार हो रही है. चाहे वह दुष्कर्म की घटना हो या फिर छेड़छाड़ का मामला. साथ ही यह भी खुलासा किया गया है कि महिलाओं से दुष्कर्म की करीब 97त्न घटनाओं में उन के जानकारों का ही हाथ होता है. वहीं ऐसी वारदातों में 3त्न अपरिचित आरोपी निकले. हकीकत यह है कि दुष्कर्म या बलात्कार के ज्यादातर मामले लोकलाज के भय से या तो दबा दिए जाते हैं या उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती, लेकिन दुष्कर्म के बाद जो मानसिक पीड़ा या त्रासदी महिला को झेलनी पड़ती है वह अकल्पनीय है.

सब से बड़ा सवाल यह है कि एक बलात्कारी किन मानसिक परिस्थितियों में इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देता है? क्या वह उस के बाद होने वाले परिणामों को भूल जाता है या फिर उन के बारे में सोचता ही नहीं.

दुष्कर्म या बलात्कार सब से घृणास्पद कुकृत्यों में शामिल है. ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देने के बाद कोई बहादुर नहीं बन जाता या फिर समाज उसे कोई बड़ा तमगा नहीं दे देता. इस के उलट सचाईर् सामने आने पर वह घृणा या दुराव का ही शिकार होता है. उस की सोशल आईडैंटिटी खतरे में पड़ जाती है और उसे सजा के साथसाथ रिजैक्शन भी भोगना पड़ता है.

हद तो तब होती है जब ये दुष्कर्मी सरेआम सीना ठोक कर ऐसे घूमते हैं मानो उन्होंने कोई बड़ा तीर मारा हो. देश के सुदूर ग्रामीण आदिवासी इलाकों में उच्चजाति के लोगों द्वारा दलित आदिवासी महिलाओं की अस्मत लूटने और उन्हें जिंदा जलाए जाने की खबरें सुर्खियां बनती रहती हैं पर पीड़ाजनक स्थिति तब होती है जब ऐसे लोग अपने कुकृत्यों का सरेआम ढिंढोरा पीटते हैं. पुलिस और कानून को धताबता कर ये अपनी जांबाजी में एक तमगा और जोड़ लेते हैं, पर यह विडंबना है कि हम आंख मूंदे इन बलात्कारियों का साथ देते हैं.

दुष्कर्मियों का कोई नैतिक बल नहीं होता. न ही कोई चारित्रिक संबल. असंतुलित भावनाओं के उन्माद में वे दुष्कर्म के दलदल में जा गिरते हैं पर एक सच यह भी है कि इस क्षणिक ज्वार के ठंडा पड़ते ही वे अपने पुराने स्वरूप में लौट आते हैं और ताउम्र पश्चात्ताप व ग्लानि की पीड़ा में अपनी बची जिंदगी गुजार देते हैं.

इस की सब से बड़ी बानगी दिल्ली में घटा निर्भया कांड है. बलात्कारियों ने क्षणिक आवेश में वह कर डाला जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. इस के बदले उन आरोपियों को मिला क्या? केवल सामाजिक बहिष्कार, अलगाव, घृणा और सजा.

सामाजिक बहिष्कार इन आरोपियों पर इस कदर हावी हुआ कि उन में से एक ने तो खुदखुशी कर ली. बाकी या तो सजा भुगत रहे हैं या अदालती ट्रायल के चक्कर काटते हुए भारी मानसिक तनाव व कुंठा से गुजर रहे हैं.

अपराध छोटा हो या बड़ा उसे कभी सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती. दुष्कर्मियों के लिए तो समाज में कोई स्थान है ही नहीं. अपराध हमेशा कुंठा, पीड़ा व सजा ही दिलवाता है, सम्मान नहीं.

हमें चाहिए कि इन दुराचारियों को किसी भी स्तर पर बिलकुल न सराहें और न सहें. इन्हें बढ़ावा तभी मिलता है जब हम मौन साध लेते हैं. हमारी दहाड़ इन के हौसले पस्त करेगी. सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार से ये अलगथलग पडे़ंगे और इन का वहशीपन कमजोर पड़ेगा.

ऐसे प्रयास सिर्फ अपराधियों की तरफ से ही नहीं करने होंगे बल्कि हमें महिलाओं का पक्ष भी मजबूत करना होगा. दुष्कर्म की शिकार पीडि़ताओं के लिए स्वाभिमान कार्यक्रम चलाने होंगे. उन के भीतर के ग्लानि और कुंठा के भाव को स्नेह व प्रेम से निकालना होगा. उन्हें समाज व परिवार में दोबारा उचित स्थान दिलाने के लिए उन का मनोबल बढ़ाना होगा. तभी हम इन बलात्कारियों को मजबूत इरादों वाली महिलाओं से टक्कर दे सकेंगे.

बलात्कारियों का बहिष्कार और पीडि़ताओं की सम्मानजनक वापसी उन के होश ठिकाने लगाने का सब से बड़ा मूलमंत्र है.

चलती कार में खींचकर महिला से जबर्दस्ती की कोशिश

महिला को किडनैप कर चलती कार में सेक्सुअली असौल्ट करने की कोशिश की और विरोध करने पर शराब की बोतल से हमला किया. आरोपी महिला को यूपी गेट के पास चलती कार से धक्का देकर फरार हो गया था. पुलिस ने आरोपी को मेरठ से अरेस्ट कर लिया. आरोपी की पहचान राम कौशिश (22) के रूप में हुई. आरोपी जमरुदपुर में रहता है, वहां बेकरी शौप चलाता है. आरोपी शादीशुदा है, उसके दो बच्चे भी हैं.

डीसीपी चिन्मय बिश्वाल ने बताया कि शुक्रवार देर रात 1 बजे के करीब सनालाइट कौलोनी पुलिस को सूचना मिली थी कि वैशाली गाजियाबाद स्थित मैक्स हौस्पिटल में एक महिला को जख्मी हालत में भर्ती कराया गया. महिला को शाम 4 बजे के करीब सराय काले खां बस अड्डे के पास से किडनैप किया गया था. आरोपी ने कार के अंदर महिला का शोषण करने की कोशिश की. विरोध करने पर महिला पर शराब की बोतल से हमला किया, उसके साथ मारपीट भी की. फिर महिला को चलती कार से सड़क पर धक्का देकर फरार हो गया.

सूचना मिलते ही पुलिस हौस्पिटल पहुंच गई. पुलिस ने महिला के बयान पर किडनैपिंग, छेड़छाड़ और रौबरी की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया. आरोपी को अरेस्ट करने के लिए सनलाइट कौलोनी थाने के एसएचओ हनुमंत सिंह और एसआई आरएस डागर सहित अन्य पुलिसवालों की टीम बनाई गई. टीम ने आरोपी की तलाश में दिल्ली के अलावा नोएडा और गाजियाबाद में दबिश दी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. तब पुलिस को पता चला कि आरोपी मेरठ में छिपा हुआ है.

एक सूचना के आधार पर मेरठ में दबिश देकर आरोपी को दबोच लिया. उसके पास से वारदात में इस्तेमाल स्विफ्ट डिजायर कार और पीड़ित महिला से लूटा गया मोबाइल बरामद कर लिया. पूछताछ में आरोपी ने बताया कि वह अक्सर यहां पार्क में घूमने के लिए आता रहता है. 23 नवंबर को उसकी नजर इस महिला पर पड़ी. उसने महिला के पास जाकर कहा कि वह उसकी मां को जानता है.

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