प्यार अपने से: जब प्यार ने तोड़ी मर्यादा

Story in Hindi

शिकारी : कौन बना मिस्टर बेचारा

मिस्टर महेश का कारोबार अच्छा चल रहा था. उन की गारमैंट की कंपनी थी. उन के बनाए सामान का एक बड़ा हिस्सा ऐक्सपोर्ट होता था.

मिस्टर महेश थोड़े नाटे और मोटे थे और रंग भी सांवला था, पर उन की पढ़ाईलिखाई और कारोबार करने की चतुराई लाखों में एक थी.

मिस्टर महेश ने अमेरिका की हौर्वर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद अपने पिता का कारोबार संभाला था. वे तकरीबन 50 साल के हो चुके थे. उन की शादी भी हो चुकी थी. बीवी काफी खूबसूरत और स्मार्ट थी, पर

5 साल बाद ही उन्हें छोड़ कर किसी और के साथ विदेश जा बैठी थी. उस के बाद उन्हें शादी में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. पर कुछ महीने पहले ही तकरीबन 25 साल की चंचल से उन की दूसरी शादी हुई थी.

चंचल अपनी निजी जिंदगी में भी काफी चंचल थी. 20 साल की उम्र में उस ने जानबूझ कर रवि से शादी की थी. रवि को कैंसर था और वह 3 साल के अंदर चल बसा.

रवि वैसे तो ज्यादा अमीर नहीं था, फिर भी 2 कमरे का एक फ्लैट, बीमा की रकम और कुछ बैंक बैलैंस मिला कर तकरीबन 2 लाख रुपए और साथ में एक स्कूटर वह छोड़ गया था.

पर वह रकम चंचल जैसी मौडर्न लड़की के लिए ज्यादा नहीं थी. धीरेधीरे वह रकम भी खत्म हो रही थी. इसी बीच उस ने मिस्टर महेश को अपने जाल में फांस लिया था. वह उन की कंपनी में सैक्रेटरी बन कर आई और फिर उन की लाइफ पार्टनर बन बैठी.

चंचल ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी. अब वह मिस्टर महेश के आलीशान बंगले में रहती थी और कार के भरपूर मजे ले रही थी.

इसी बीच मनीष नाम का एक नौजवान मिस्टर महेश की कंपनी में चंचल की जगह सैक्रेटरी बन कर आया.

चंचल और मिस्टर महेश की जिंदगी कुछ दिनों तक सामान्य रही थी. वह पेट से भी हुई थी, पर मिस्टर महेश को इस की भनक भी नहीं होने दी और उस ने बच्चा गिरवा लिया. उस की नजर मिस्टर महेश के कारोबार पर थी.

उधर मनीष अकसर मिस्टर महेश से मिलने घर पर भी आया करता था. चंचल उस की खूब खातिरदारी करती थी. उस के साथ बैठ कर बातें किया करती थी.

बातों के दौरान चाय का कप बढ़ाते समय वह अपना आंचल जानबूझ कर गिरा देती और अपने उभार दिखाती, तो कभी टेबल के नीचे से मनीष के पैरों से खेलती.

धीरेधीरे मनीष भी चंचल की ओर खिंचने लगा था. अब तो वह मनीष के साथ घूमने भी जाया करती थी.

कभीकभार खुद मिस्टर महेश भी मनीष को चंचल के साथ शौपिंग के लिए भेज देते थे. चंचल ने खुश हो कर मनीष को भी बिलकुल अपने जैसा एक कीमती मोबाइल फोन खरीद कर दिया था.

चंचल मनीष को शहर से थोड़ी दूर हाईवे पर बने एक रिसोर्ट पर ले जाती, वहां घंटों उस के साथ समय बिताती और उस के साथ बिस्तरबाजी भी करती. जो देहसुख उसे मिस्टर महेश से नहीं मिलता था, वह मनीष से पा रही थी.

मिस्टर महेश को कारोबार के सिलसिले में शहर से बाहर भी जाना होता था. ऐसे में तो चंचल और मनीष को पूरी छूट होती थी.

खून, खांसी और खुशी छिपाए नहीं छिपते हैं. धीरेधीरे उन दोनों के किस्से दफ्तर से होतेहोते मिस्टर महेश के कानों में भी पड़े, पर उन्होंने इसे चंचल के सामने कभी जाहिर नहीं होने दिया. वैसे, कुछ सचेत चंचल भी हो गई थी.

कुछ दिनों बाद मिस्टर महेश को फिर शहर से बाहर जाना पड़ा था. चंचल मनीष को जीप में बिठा कर फिर किसी रिसोर्ट में मजे ले रही थी.

उसी समय मिस्टर महेश का फोन चंचल के फोन पर आया था. मनीष ने अपना फोन समझ कर ‘हैलो’ कहा.

ठीक इसी बीच चंचल भी बोल उठी, ‘‘किस का फोन है डियर?’’

मिस्टर महेश की आवाज सुन कर मनीष ने फोन चंचल को पकड़ा दिया. बात कर के चंचल ने फोन रख दिया, पर दोनों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खिंच आई थीं. उन की मौजमस्ती के आलम में खलल पड़ गया था.

चंचल ने कहा, ‘‘हमें इसी वक्त चलना होगा. मिस्टर महेश 2-3 घंटे में घर आने वाले हैं.’’

रिसोर्ट में आम के बाग थे. चंचल ने 10 किलो आम पैक कराए, तो मनीष पूछ बैठा, ‘‘इतने आमों का तुम क्या करोगी?’’

‘‘तुम आम खाओ, गुठली गिनने की क्या जरूरत है?’’ और दोनों ने एकएक आम जीप में बैठेबैठे खाया.

दोनों अब घर लौट रहे थे. जीप चंचल चला रहा थी. जिस ओर मनीष बैठा था, सड़क के ठीक नीचे गहरी खाई थी. एक जगह जीप को धीमा कर चंचल बाईं ओर पड़ी रेत के ढेर पर कूद गई और जीप का स्टीयरिंग थोड़ा खाई की तरफ ही काट दिया.

मनीष जीप के साथ खाई में जा गिरा था. चंचल की बांह पर मामूली खरोंचें आई थीं. थोड़ी दूर जा कर उस ने लिफ्ट ली और आगे टैक्सी ले कर घर पहुंची, तो देखा कि मिस्टर महेश सोफे पर बैठे कौफी पी रहे थे और टैलीविजन देख रहे थे.

मिस्टर महेश ने पूछा, ‘‘बड़ी देर कर दी… कहां गई थीं?’’

‘‘रिसोर्ट के बाग में फ्रैश आम की सेल लगी थी, वहीं चली गई थी.’’

इसी बीच टैलीविजन पर खबर आई कि एक जीप खाई में गिरी है. उस में सवार एक नौजवान की मौत हो गई है. उस जीप में आमों से भरा एक बैग भी था.

मिस्टर खन्ना बोल उठे, ‘‘तुम्हें तो चोट नहीं आई? मैं मनीष को नौकरी से निकालने ही वाला था. कमबख्त काम के समय दफ्तर से लापता रहता था. मौत ने उसे दुनिया से ही निकाल बाहर कर दिया.’’

इधर शिकारी चंचल अपनी साड़ी पर चिपकी रेत झाड़ रही थी.

सावित्री और सत्य : एक अनोखी लव स्टोरी

Romantic Story in Hindi: सावित्री को नींद नहीं आ रही थी. अभी पिछले साल ही उस के पति की मौत हुई थी. उस की शादीशुदा जिंदगी का सुख महज एक साल का था. सावित्री ससुराल में ही रह रही थी. उस का पति ही बूढ़े सासससुर की एकलौती औलाद था. ससुराल और मायका दोनों ही पैसे वाले थे. सावित्री अपने मायके में 4 बच्चों में सब से छोटी और एकलौती लड़की थी. मांबाप और भाइयों की दुलारी… मैट्रिक पास होते ही सावित्री की शादी हो गई थी. पति की मौत के बाद उस का बापू उसे लेने आया था, पर वह मायके नहीं गई. उस ने बापू से कहा था कि आप के तो 3 बच्चे और हैं, पर मेरे सासससुर का तो कोई नहीं?है. पहाड़ी की तराई में एक गांव में सावित्री का ससुराल था. गांव तो ज्यादा बड़ा नहीं था, फिर भी सभी खुशहाल थे. उस के ससुर उस इलाके के सब से धनी और रसूखदार शख्स थे. वे गांव के सरपंच भी थे.

पहाडि़यों पर रात में ठंडक रहती ही है. थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी. सावित्री कंबल ओढ़े लेटी थी, तभी अचानक ही जोर के धमाके की आवाज से वह चौंक पड़ी थी.

वह बिस्तर से नीचे उतर आई. शाल से अपने को ढकते हुए बगल में सास के कमरे में गई. वहां उस ने देखा कि सासससुर दोनों ही जोरदार धमाके की आवाज से जाग गए थे.

उस के ससुर स्वैटर पहन कर टौर्च व छड़ी उठा कर बाहर जाने के लिए निकलने लगे, तो सावित्री ने कहा, ‘‘बाबूजी, मैं आप को रात में अकेले नहीं जाने दूंगी. मैं भी आप के साथ चलूंगी.’’

काफी मना मरने के बावजूद सावित्री भी उन के साथ चल पड़ी थी.

जब सावित्री बाहर निकली, तो थोड़ी दूरी पर ही खेतों के बीच उस ने आग की ऊंची लपटें देखीं. गांव के कुछ और लोग भी धमाके की आवाज सुन कर जमा हो चुके थे. करीब जाने पर देखा कि एक छोटे हवाईजहाज के टुकड़े इधरउधर जल रहे थे. लपटें काफी ऊंची और तेज थीं. किसी में पास जाने की हिम्मत नहीं थी. देखने से लग रहा था कि सबकुछ जल कर राख हो चुका है.

तभी सावित्री की नजर मलबे से दूर पड़े किसी शख्स पर गई, जिस के हाथपैरों में कुछ हरकत हो रही थी. वह अपने ससुर के साथ उस के नजदीक गई. कुछ और लोग भी साथ हो लिए थे.

उस नौजवान का चेहरा जलने से काला हो गया था. हाथपैरों पर भी जलने के निशान थे. वह बेहोश पड़ा था, पर रहरह कर अपने हाथपैर हिला रहा था.

तभी एक गांव वाले ने उस की नब्ज देखी और फिर नाक के पास हाथ ले जा कर सावित्री के ससुर से बोला, ‘‘सरपंचजी, इस की सांसें चल रही हैं. यह अभी जिंदा है, पर इस की हालत नाजुक दिखती है. इस को तुरंत इलाज की जरूरत है.’’

सरपंच ने कहा, ‘‘हां, इसे जल्द ही अस्पताल ले जाना होगा. प्रशासन को अभी इस की सूचना भी शायद न मिली हो. सूचना मिलने के बाद भी सुबह के पहले यहां पर किसी के आने की उम्मीद नहीं है. तुम में से कोई मेरी मदद करो. मेरा ट्रैक्टर ले कर आओ. इसे शहर के अस्पताल ले चलते हैं.’’

थोड़ी देर में ही 2-3 नौजवान ट्रैक्टर ले कर आ गए थे. उस घायल नौजवान को ट्रैक्टर से ही शहर के बड़े अस्पताल ले गए. सावित्री भी सरपंचजी के साथ शहर तक गई थी.

अस्पताल में डाक्टर ने देख कर कहा कि हालत नाजुक है. पुलिस को भी सूचित करना होगा. यह काम सरपंच ने खुद किया और डाक्टर को तुरंत इलाज शुरू करने को कहा.

इमर्जैंसी वार्ड में चैकअप करने के बाद डाक्टर ने उसे इलाज के लिए आईसीयू में भेज दिया. पर उस शख्स के पास से कोई पहचानपत्र या बोर्डिंग पास भी नहीं मिला.

हादसे की जगह के पास से एक बुरी तरह जला हुआ पर्स मिला था. उस पर्स में ऐसा कुछ भी सुबूत नहीं मिला था, जिस से उस की पहचान हो सके.

डाक्टर ने इलाज तो शुरू कर दिया था. सरपंचजी खुद गारंटर बने थे यानी इलाज का खर्च उन्हें ही उठाना था.

सुबह होते ही इस हादसे की खबर रेडियो और टैलीविजन पर फैल चुकी थी.

पुलिस भी आ गई थी. पुलिस को सारी बात बता कर उस की सहमति ले कर सरपंचजी अपनी बहू सावित्री के साथ अपने घर लौट आए थे.

शहर के एयरपोर्ट पर अफरातफरी का सा माहौल था. एयरपोर्ट शहर से 20 किलोमीटर दूर और गांव की विपरीत दिशा में था. लोग उस उड़ान से आने वाले अपने रिश्तेदारों का हाल जानने के लिए बेचैन थे.

एयरलाइंस के मुलाजिमों ने तो सभी सवारियों और हवाईजहाज के मुलाजिमों की लिस्ट लगा रखी थी, जिस में सब को ही मरा ऐलान किया गया था.

थोड़ी ही देर में टैलीविजन पर एक ब्रेकिंग न्यूज आई कि एक मुसाफिर इस हादसे में बच गया है, जिस की हालत नाजुक है, पर उस की पहचान नहीं हो सकी है. सब के मन में उम्मीद की एक किरण जग रही थी कि शायद वह उन्हीं का सगा हो.

अस्पताल में भीड़ उमड़ पड़ी थी. डाक्टर ने कहा कि अभी वह वैंटिलेटर पर है और हालत नाजुक है. मरीज के पास तो अभी कोई नहीं जा सकता है, उसे सिर्फ बाहर से शीशे से देखा जा सकता है. लोग बाहर से ही उस को देख कर पहचानने की कोशिश कर रहे थे, पर यह मुमकिन नहीं था. उस का चेहरा काफी जला हुआ था. उस पर दवा का लेप भी लगा था.

इधर सरपंच रोज सुबह अस्पताल आते थे, अकसर सावित्री भी साथ होती थी. वह उन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, क्योंकि सरपंच खुद दिल के मरीज थे.

कुछ दिनों के बाद डाक्टर ने सरपंच से कहा, ‘‘मरीज खतरे से बाहर तो है, पर वह कोमा में जा चुका है. कोमा से बाहर निकलने में कितना समय लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है. कुछ ही दिनों में उसे आईसीयू से निकाल कर स्पैशल वार्ड में भेज देंगे.

‘‘दूसरी बात यह कि उस का चेहरा बहुत खराब हो चुका है. अगर वह कोमा से बाहर भी आता है, तो आईने में अपनेआप को देख कर उसे गहरा सदमा लगेगा.’’

सरपंच ने पूछा, ‘‘तो इस का इलाज क्या है?’’

डाक्टर बोला, ‘‘उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करनी होगी, पर इस में काफी खर्च होगा. अभी तक के इलाज का खर्च तो आप देते आए हैं.’’

सरपंच ने कहा, ‘‘आप पैसे की चिंता न करें. अगर यह ठीक हो जाता है, तो मैं समझेगा कि मेरा बेटा मुझे दोबारा मिल गया है.’’

कुछ दिनों के बाद उस मरीज को स्पैशल वार्ड में शिफ्ट किया गया था. वहां उस की देखभाल दिन में तो अकसर सावित्री ही किया करती थी, लेकिन रात में सरपंच के कहने पर गांव से भी कोई न कोई आ जाता था.

तकरीबन 2 महीने बाद उस की प्लास्टिक सर्जरी भी हुई. उस आदमी को नया चेहरा मिल गया था.

इसी बीच सरपंच के ट्रैक्टर की ट्रौली पर एक बैल्ट मिली. हादसे के बाद उस नौजवान को इसी ट्रौली से अस्पताल पहुंचाया गया था. शायद किसी ने उसे आराम पहुंचाने के लिए बैल्ट निकाल कर ट्रौली के एक कोने में रख दी थी, जिस पर अब तक किसी की नजर नहीं पड़ी थी. बैल्ट पर 2 शब्द खुदे थे एसके. उस बैल्ट को देख कर सरपंच को लगा कि उस आदमी की पहचान में यह एक अहम कड़ी साबित हो.

इस की सूचना उन्होंने पुलिस को दे दी. साथ ही, लोकल टैलीविजन चैनल और रेडियो पर भी इसे प्रसारित किया गया.

अगले ही दिन एक बुजुर्ग दंपती उसे देखने अस्पताल आए थे. उन का शहर में काफी बड़ा कारोबार था, पर चेहरा बदल जाने के चलते वे उसे पहचान नहीं पा रहे थे. बैल्ट भी पुलिस को दे दी गई थी.

वहां पर उन्होंने सावित्री को देखा, जो मन लगा कर मरीज की सेवा कर रही थी. अस्पताल से निकल कर वे सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उस बैल्ट को देख कर कहा कि ऐसी ही एक बैल्ट उन के बेटे की भी थी, जिस पर एसके लिखा था. यह बैल्ट जानबूझ कर उन के बेटे ने खरीदी थी, क्योंकि एसके उस के नाम ‘सत्य कुमार’ से मिलती थी. फिर भी संतुष्ट हुए बिना उसे अपना बेटा मानने में कुछ ठीक नहीं लग रहा था. फिलहाल वे अपने घर लौट गए थे. पर सरपंच का मन कह रहा था कि यह सत्य कुमार ही है.

तकरीबन एक महीना गुजर चुका था. सरपंच और सावित्री दोनों ही सत्य कुमार की देखभाल कर रहे थे.

एक दिन अचानक सावित्री ने देखा कि सत्य कुमार के होंठ फड़फड़ा रहे थे और हाथ से कुछ इशारा कर रहा था. उस ने तुरंत डाक्टर को यह बात कही.

डाक्टर ने कहा कि दवा अपना काम कर रही है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि अब वह बिलकुल ठीक हो जाएगा.

कुछ दिन बाद सावित्री उसे जब अपने हाथ से खाना खिला रही थी, सत्य कुमार ने उस का हाथ पकड़ कर कुछ बोलने की कोशिश की थी.

उसी शाम जब सावित्री अपने घर जाने के लिए उठी, तो सत्य कुमार ने उस का हाथ पकड़ कर बहुत कोशिश के बाद लड़खड़ाती जबान में बोला, ‘‘रुको, मैं यहां कैसे आया हूं? मैं तो हवाईजहाज में था. मैं तो कारोबार के सिलसिले में बाहर गया हुआ था.’’

फिर अपने बारे में उस ने कुछ जानकारी दी थी. सरपंच और सावित्री दोनों की खुशी का ठिकाना न था. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने उसे चैक कर कहा, ‘‘मुबारक हो. अब यह होश में आ गया है. इस के मातापिता को सूचना दे दें.’’

सावित्री और सरपंच अस्पताल में ही रुक कर सत्य कुमार के मातापिता का इंतजार कर रहे थे. वे लोग भी खबर मिलते ही दौड़े आए थे. सत्य कुमार ने अपने मातापिता को पहचान लिया था और हादसे के पहले तक की बात बताई. उस के बाद का उसे कुछ याद नहीं था.

सत्य कुमार के पिता ने सरपंच और सावित्री का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, ‘‘आप के उपकार के लिए हम लोग हमेशा कर्जदार रहेंगे. यह लड़की आप की बेटी है न?’’

सरपंच बोले, ‘‘मेरे लिए तो बेटी से भी बढ़ कर है. है तो मेरी बहू, पर शादी के एक साल के अंदर ही मेरा एकलौता बेटा हम लोगों को अकेला छोड़ कर चला गया, पर सावित्री ने हमारा साथ नहीं छोड़ा.

‘‘मैं तो चाहता था कि यह अपने मांबाप के पास चली जाए और दूसरी शादी कर ले, पर यह तैयार नहीं थी.’’

सत्य कुमार के पिता ने कहा, ‘‘अगर आप को कोई एतराज नहीं है, तो मैं सावित्री को अपनी बहू बनाने को तैयार हूं, क्यों सत्य कुमार? ठीक रहेगा न?’’

सत्य कुमार ने सहमति में सिर हिला कर अपनी हामी भर दी थी. फिर सेठजी ने सत्य कुमार की मां की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे सेठानी, तुम भी तो कुछ कहो.’’

सेठानी बोलीं, ‘‘आप लोगों ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मेरे बोलने को कुछ बचा ही नहीं है.’’

फिर वे सावित्री की ओर देख कर बोलीं, ‘‘तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’

सावित्री की आंखों से आंसू की कुछ बूंदें छलक कर उस के गालों पर आ गई थीं. वह बोली, ‘‘मैं आप लोगों की भावनाओं का सम्मान करती हूं, पर मैं अपने सासससुर को अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती.’’

सरपंच ने सावित्री को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम सभी लोगों की खुशी इसी में है. और हम लोगों को अब जीना ही कितने दिन है, जबकि तुम्हारी सारी जिंदगी आगे पड़ी है.’’

सेठजी ने भी सरपंच की बातों को सही ठहराते हुए कहा, ‘‘तुम जब भी चाहो और जितने दिन चाहो, सरपंचजी के यहां बीचबीच में आती रहना.’’

सावित्री सेठजी से बोली, ‘‘सत्यजी को आप ने जन्म दिया है और बाबूजी ने इन्हें दोबारा जन्म दिया है, तो इन की भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है मेरे ससुरजी के लिए.’’

सेठजी बोले, ‘‘मैं मानता हूं और मेरा बेटा भी इतनी समझ रखता है. सत्य कुमार को तो 2-2 पिताओं का प्यार मिलेगा. सत्य कुमार सरपंचजी का उतना ही खयाल रखेगा, जितना वह हमारा रखता है.’’

सावित्री और सत्य दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. उन लोगों की बातें सुन कर वह कुछ संतुष्ट लग रही थी.

उस दिन सारी रात लोगों ने अस्पताल में ही बिताई थी. सावित्री के मायके में भी सरपंच ने यह बात बता दी थी. सभी को यह रिश्ता मंजूर था. सरपंच ने धूमधाम से अपने घर से ही सावित्री की शादी की थी.

रफू की हुई ओढ़नी : घूमर वाली मेघा

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अधूरा प्यार: जुबेदा ने अशोक के सामने कैसी शर्त रखी

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सफर : फौजी को एक हसीना ने क्यों चूना लगाया

Romantic Story in Hindi: रात के ठीक 10 बजे ‘झेलम ऐक्सप्रैस’ ट्रेन ने जम्मूतवी से रेंगना शुरू किया, तो पलभर में रफ्तार पकड़ ली. कंपार्टमैंट में सभी मुसाफिर अपना सामान रख आराम कर रहे थे. गीता ने भी लोअर बर्थ पर अपनी कमर टिकाई. कमर टिकाते ही उस ने देखा कि सामने वाली बर्थ पर जो साहब अभी तक बैठे थे, मुंह खुला रख कर खर्राटों भरी गहरी नींद सो चुके थे. गीता की नजर उन साहब के ऊपर वाली बर्थ पर गई तो देखा कि एक नौजवान अपनी छाती पर मोबाइल फोन रख कानों में ईयरफोन लगाए उस में बज रहे गानों के संग जुगलबंदी में मस्त था. गीता को नींद नहीं आ रही थी. उस के ऊपर वाली बर्थ पर कोई हलचल नहीं थी. उस पर सामान रखा हुआ था और सामान वाला उसी कंपार्टमैंट के आखिरी छोर पर अपने दोस्त के साथ कारोबार की बातें कर रहा था.

रात गुजर गई. गीता लेटी रही, मगर सो नहीं पाई थी. सुबह के 5 बज चुके थे. अपनी ही दुनिया में मस्त वह नौजवान उठा और वाशरूम की तरफ चल दिया.

जब वह लौटा, तो उस का चेहरा एकदम तरोताजा दिख रहा था. तब तक गाड़ी अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन पर रुक चुकी थी. वह नौजवान छोलेकुलचे ले कर आया और फिर उस ने देखते ही देखते नाश्ता कर लिया.

सामने वाली बर्थ पर लेटे साहब हरकत में आने शुरू हुए. उन्होंने गीता से पूछा, ‘‘मैडम, यह गाड़ी कौन से स्टेशन पर रुकी हुई है?’’

गीता ने उन के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘जी, अंबाला स्टेशन पर.’’

तभी ट्रेन ने रेंगना शुरू कर दिया. उन साहब ने सवाल किया, ‘‘क्या कोई चाय वाला नहीं आया अब तक?’’

गीता बोली, ‘‘जी, बहुत आए थे, मगर आप सो रहे थे.’’

वे साहब चाय की तलब लिए फिर से अपनी बर्थ पर आलू की तरह लुढ़क गए. थोड़ी देर बाद उन का मुंह खुला और वे फिर से खर्राटे लेने लगे.

गीता ने सामने ऊपर वाली बर्थ पर उस नौजवान पर निगाह डाली तो देखा कि वह कोई उपन्यास पढ़ रहा था.

न जाने क्यों गीता की निगाहों को वह अच्छा लगने लगा था. उस का डीलडौल, कदकाठी, हेयरकट और उस के दैनिक रूटीन से उस ने अंदाजा लगा लिया था कि यह तो पक्का फौजी है.

इस के बाद गीता वाशरूम चली गई. थोड़ी देर बाद वह होंठों को और गुलाबी कर, आंखों को कजरारी कर, चेहरे को चमका कर व जुल्फों को संवार कर जब वापस अपनी बर्थ की ओर लौटने लगी, तो उस की नजरें दूर से ही उस नौजवान पर जा टिकीं. वह उपन्यास के पात्रों में खोया हुआ था.

गीता ने ठोकर लगने की सी ऐक्टिंग कर उस का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की, मगर सब बेकार.

गीता खिसियाई सी खिड़की के पास आ कर बैठ गई और बाहर झांकने लगी.

तकरीबन 8 बजे गाड़ी पानीपत स्टेशन पर रुकी, तो गीता ने अपनी नजरें नौजवान पर टिका कर सामने वाले साहब को पुकारते हुए कहा, ‘‘जी उठिए, स्टेशन पर गाड़ी रुकी है… चायनाश्ता सब है यहां.’’

‘‘ओके थैंक्यू, चाय पीने का बड़ा मन है मेरा,’’ उन साहब ने कहा.

‘‘जी, इसीलिए तो उठाया है. मैं जानती हूं कि आप चाय की तलब के साथ ही सो गए थे,’’ गीता बोली.

चाय वाला जैसे ही खिड़की पर आया, तो उन साहब ने झट से चाय का कप लिया और अपनी जेब से पैसे निकाल कर चाय वाले को थमा दिए. इस के तुरंत बाद आलूपूरी वाले ने खिड़की पर दस्तक दी, तो पलभर में उन साहब ने आलूपूरी अपने हाथों में थाम ली.

गीता की नजर दोबारा ऊपर वाली बर्थ पर गई, तो उस ने देखा कि वह नौजवान अभी भी उपन्यास पढ़ने में डूबा हुआ था.

चायनाश्ते से निबट कर जब उन साहब को फुरसत मिली, तो उन्होंने गीता को ‘थैंक्यू’ कहा. तभी ऊपर बैठे उस नौजवान ने नीचे झांका तो देखा कि साहब नाश्ता कर चुके थे.

उस नौजवान ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘सर, अगर आप बैठ रहे हैं, तो मैं अपनी बर्थ नीचे कर लूं क्या?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

थोड़ी देर बाद वह नौजवान उन साहब की बगल में, तो गीता के ठीक सामने बैठ चुका था.

गीता अपनी बर्थ पर बैठीबैठी खिड़की से बाहर झांकतेझांकते अपनी नजरें उस नौजवान की नजरों से मिलाने की कोशिश करने लगी.

लेकिन वह नौजवान तो उसे देख ही नहीं रहा था. वह सोचने लगी, ‘ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि मुझे कोई देखे भी न. अगर कोई मेरी बगल से भी गुजरता है, तो वह पलट कर मुझे जरूर देखता?है.’

उस नौजवान पर टकटकी लगाए गीता सोच रही थी कि तभी उस ने पानी की बोतल गीता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मैडम, पानी पी लीजिए.’’

यह सुन कर गीता के गंभीर चेहरे पर एक मुसकान उभरी. उस की ओर देखतेदेखते गीता पानी की बोतल अपने हाथ में थाम बैठी और दोचार घूंट गटागट पी भी गई.

पानी की बोतल उसे वापस देते हुए गीता ने अपने कयास को पुख्ता करने के लिए पूछ लिया, ‘‘आप फौजी हैं न?’’

‘‘जी…’’

गीता ने उस से दोबारा कहा, ‘‘बुरा मत मानना प्लीज… मैं ने किसी से सुना था कि फौजी दिमाग से पैदल होते हैं… जहां लड़की देखी नहीं कि कभी उन के सिर में तो कभी बदन में खुजली होने लगती है और फिर वे पागलों की तरह लड़कियों को देखने लगते हैं. पर आप ने यह साबित कर दिया कि सभी फौजी एकजैसे नहीं होते.’’

‘‘हां, पर फौजियों को ठीक रहने कौन देता है… जहां फौजी ऐसी हरकत नहीं करते, वहां लड़कियां उन के साथ ऐसा ही करने लगती हैं. आखिर कोई कहां तक बचे?’’ उस नौजवान की यह बात सीधा गीता के दिल को जा कर लगी.

बातचीत का सिलसिला चला, तो उस नौजवान ने पूछ लिया, ‘‘क्या नाम है आप का?’’

‘‘गीता.’’

‘‘क्या करती हैं आप?’’

‘‘जी, मैं बैंक में हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा,’’ वह फौजी बोला.

गीता ने पूछा, ‘‘और आप का नाम?’’

‘‘मेरा नाम प्रिंस है.’’

‘‘ंप्रिस… वह भी सेना में… पर कौन रहने देता होगा आप को वहां प्रिंस की तरह…’’

इस बात पर वे दोनों हंस दिए थे, हंसीठहाकों के बीच उन्हें पता ही नहीं चला कि ट्रेन कब नई दिल्ली स्टेशन पर आ कर रुक गई.

सवारियों ने उतरना शुरू किया, तो साथ ही साथ नई सवारियों का चढ़ना भी जारी था.

तभी एक बंगाली जोड़ा अपना बर्थ नंबर ढूंढ़तेढूंढ़ते वहां आ पहुंचा. अधेड़ उम्र के उस बंगाली जोड़े ने अपना सामान सीट के नीचे रखा और वे दोनों गीता व प्रिंस के साथ ही आ बैठे.

दिनभर की प्यारभरी बातों के सिलसिले के साथ ही एक के बाद एक स्टेशन भी पीछे छूटते रहे और पता ही नहीं चला कि कब शाम हो गई. पैंट्री वाले आए, खाने का और्डर बुक किया. कुछ देर बाद रात का भोजन सब के सामने था.

खाना खाने के बाद प्रिंस ने टूथब्रश किया, तो गीता ने भी उस की देखादेखी यह काम कर डाला. सभी सुस्ताने के मूड में आए, तो सब ने अपनीअपनी बर्थ संभालनी शुरू कर दी.

बंगाली जोड़ा कुछ परेशान सा इधरउधर ताकनेझांकने लगा.

प्रिंस ने उन्हें टोकते हुए पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है जी?’’

बंगाली आदमी ने अपना दर्द बयां किया, ‘‘क्या बताएं बेटा. एक तो हम शरीर से भारी, उस पर उम्र के उस पड़ाव पर हैं कि जहां हमारे लिए ऊपर वाली बर्थ पर चढ़नाउतरना किसी किले को फतेह करने से कम नहीं है. कहीं इस चढ़नेउतरने में फिसल कर गिर गए, तो 2-4 हड्डियां तो टूट ही जाएंगी.’’

इतने में बंगाली औरत की याचक निगाहें गीता के छरहरे बदन पर जा पड़ीं. उन्होंने विनती करते हुए कहा, ‘‘बेटी, क्या आप हमारी मदद कर सकती हैं?’’

गीता हैरानी से उन की ओर देखते हुए बोली, ‘‘कैसे आंटी?’’

‘‘आप बर्थ ऐक्सचेंज कर लीजिए प्लीज. आप जवान लोग हो, ऊपर की बर्थ पर चढ़उतर सकते हो.’’

‘‘ठीक है आंटी. मैं ऊपर वाली बर्थ पर चली जाती हूं, आप मेरी बर्थ पर सो जाइए,’’ गीता ने कहा.

गीता पायदान में पैर अटका कर प्रिंस के सामने ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ गई, तो बंगाली जोड़ा भी नीचे वाली बर्थ पर लेट गया.

प्रिंस, जो पहले से ही अपनी बर्थ पर मौजूद था, अब तक उपन्यास के पन्नों में डूब चुका था.

गीता ने ऊंघते हुए उस की तरफ देखा और एक बदनतोड़ अंगड़ाई लेते हुए अपनी छाती को उभारा, तो फौजी की नजरें उपन्यास से हट कर उस के बदन पर आ ठहरीं. उपन्यास हाथ से छूट कर नीचे गिर गया.

गीता के चेहरे पर मादकता में लिपटी जीत की मुसकान तैर गई. उस ने नीचे गिरे हुए उपन्यास को देखा तो उस के उभार झांकने लगे. फौजी की निगाहें तो मानो वहीं पर अटक कर रह गईं.

फौजी ने गीता की ओर देख कर कहा, ‘‘बुरा मत मानना, आप की हंसी तो बेहद खूबसूरत है.’’

गीता ने भी जवाब में कहा, ‘‘आप का चालचलन बहुत अच्छा है… मैं कल से देख रही हूं.’’

यह बात सुन कर प्रिंस हंस पड़ा और बोला, ‘‘आर्मी वालों का चालचलन बिगड़ने कौन देता है मैडम? कैद में रहते हैं. कोई हमें खुला छोड़ कर तो देखे.’’

गीता मुसकराते हुए कहने लगी, ‘‘अब चालचलन कुछ ठीक नहीं लग रहा है आप का.’’

‘‘कहां से ठीक रहता… आप जो कल रात से मुझ पर डोरे डालती आ रही हैं. हम कंट्रोल करना जानते हैं, तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि किसी हुस्नपरी को देख कर हमारा दिल ही नहीं धड़कता. हम बात मौका देख कर करते हैं मैडम.’’

गीता ने उस की बातों में दिलचस्पी लेते हुए पूछा, ‘‘गाने के शौकीन हो बाबू, फौज में क्यों चले गए?’’

प्रिंस गंभीर हो गया, फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘एक लड़की के चक्कर में फौजी बन गया. उसे आर्मी वाले पसंद थे.’’

‘‘ओह… अब तो वह लड़की आप की पत्नी होगी?’’

‘‘न… जब मैं ट्रेनिंग कर के गांव लौटा, तब तक उस ने किसी कारोबारी से शादी कर ली थी. मगर मैं फौजी हो कर रह गया.’’

‘‘बहुत दुख हुआ होगा उस के ऐसा करने पर?’’

‘‘हां, पर क्या करता जिंदगी है ही चलने का नाम. कभी दोस्तों ने मुझको, तो कभी मैं ने खुद को समझ लिया कि जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है.’’

फिर गीता की ओर आंख मार कर प्रिंस ने हलके से मुसकराते हुए कहा, ‘‘बस, अब मैं कुछ अच्छा होने का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘क्या बात है साहब… मुझे आप की यही अदा तो बड़ी पसंद है.’’

‘‘मुझ से दोस्ती करोगी?’’

‘‘वह तो हो ही गई है अब… इस में कहने की क्या बात है?’’

फिर उन दोनों ने एकदूसरे से हाथ मिलाया, तो गीता ने प्रिंस की हथेली में अपनी उंगलियों से सरसराहट सी पैदा कर दी. उस सरसराहट ने प्रिंस के तनमन में खलबली मचा दी थी. दोनों एकदूजे की आंखों में डूबने लगे.

रात अपने शबाब पर चढ़नी शुरू हो गई थी. वे दोनों कब एक ही बर्थ पर आ गए, किसी को भनक तक न हुई.

गीता के बदन से आ रही गुलाब के इत्र की भीनीभीनी खुशबू में प्रिंस बहकता चला गया.

गीता ने थोड़ी ढील दी, तो प्रिंस के हाथ उस के बदन से खेलने लगे. गीता ने कुछ नहीं कहा, तो प्रिंस ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया.

थोड़ी ही देर में वे दो बदन एक जान हो गए. चलती टे्रन में उन के प्यार का सफर अब अपनी हद पर था. फिर इसी सफर में वे दोनों हांफतेहांफते नींद के आगोश में समा गए.

सुबह के तकरीबन 3 बजे गाड़ी ने अपनी रफ्तार कम की, तो गीता की नींद खुल गई. उस ने अपनेआप को प्रिंस की बांहों से आजाद कर कपड़े पहने. उस का खंडवा स्टेशन आने वाला था.

गीता ने एक कागज पर प्रिंस के लिए कुछ लिखा और उस के सिरहाने रख दिया. फिर कुछ सोचा और जल्दबाजी में एक और पुरजे पर कुछ लिखा और पर्स निकाल कर उस पुरजे को पर्स में रखा और पैंट की जेब के हवाले किया.

फिर गीता ने अपना सामान समेटा और बिना आहट किए ही प्लेटफार्म पर उतर गई.

रात के प्यार में थके प्रिंस की नींद सुबह के 5 बजे खुली, तो उस ने अपनी बगल में गीता को टटोला. वह वहां नहीं थी और न ही उस का सामान.

प्रिंस हैरानपरेशान सा इधरउधर ताकने लगा. गीता का कहीं नामोनिशान न मिलने पर उस ने खुद को ठीकठाक करने के लिए सिरहाने रखी अपनी शर्ट उठाई, तो उसे उस के नीचे एक चिट्ठी मिली. लिखा था:

‘डियर,

‘आप बहुत अच्छे फौजी हैं. देर से बहकते हो जरा… पर बहकते जरूर हो. सफर रोमांचक गुजरा. आप की बात ही कुछ और थी… फिर कभी दोबारा आप से इसी तरह मुलाकात हो.

‘लव यू डियर, गुड बाय.’

चिट्ठी पढ़ कर प्रिंस हैरान हुआ. उस भोलीभाली दिखने वाली मासूम बला के बारे में सोचतेसोचते उस के माथे पर सिलवटें पड़ने लगीं, तभी चाय वाला वहां आया.

‘‘अरे भैया, एक कप चाय दे दो,’’ कहते हुए प्रिंस ने अपना पर्स निकाला, तो उस में से एक और पुरजा निकला, जिस पर लिखा हुआ था:

‘आप का पर्स रंगीन नोटों की गरमी से लबालब था. दिल आ गया… सो, निशानी के तौर पर सभी रंगीनियां साथ लिए जा रही हूं… उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे.’

प्रिंस के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘चाय के लिए चिल्लर तो छोड़ जाती…पर फौजी पर तरस खाता कौन है…’’

धक्का : मनीषा का दिल क्यों टूट गया

‘‘खैर, खुशी तो हमें तुम्हारी हर सफलता पर होती रही है और यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) द्वारा तुम्हारे चुने जाने पर अब हमें गर्व भी हो रहा है मगर एक बात रहरह कर खटक रही है,’’ उदयशंकर अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए बीच में थोड़ा रुक गए, ‘‘तुम्हारे इतने दूर जाने के बाद तुम्हारी मम्मी एकदम अकेली रह जाएंगी.’’

‘‘छोडि़ए भी, उदय भैया, अकेली रह जाऊंगी? आप सब जो हैं यहां,’’ मनीषा जल्दी से बोली. अपने मन की बात उदयशंकर की जबान पर आती देख कर वह विह्वल हो उठी थी.

‘‘हम तो खैर मरते दम तक यहीं रहेंगे. लेकिन हम में और जितेन में बहुत फर्क है.’’

‘‘वह फर्क तो आप की नजरों में होगा, चाचाजी. पापा के गुजरने के बाद मैं ने आप को ही उन की जगह समझा है. आप को अपना बुजुर्ग और मम्मी का संरक्षक समझता हूं,’’ जितेन बोला.

‘‘लीजिए, उदय भैया. अब आप केवल राजन के मित्र ही नहीं, जितेन द्वारा बनाए गए मेरे संरक्षक भी हो गए हैं,’’ मनीषा हंसी.

‘‘उस में मुझे कोई एतराज नहीं है, मनीषा. मुझ से जो भी हो सकेगा तुम्हारे लिए करूंगा. मगर, मनीषा, मैं या मेरे बच्चे हमेशा गैर रहेंगे. सोचता हूं अगर जितेन यूनेस्को की नौकरी का विचार छोड़ दे तो कैसा रहे?’’

‘‘क्या बात कर रहे हैं, चाचाजी? लोग तो ऐसी नौकरी का सपना देखते रहते हैं, इस के लिए नाक रगड़ने को तैयार रहते हैं और मुझे तो फिर इस नौकरी के लिए खास बुलाया गया है और आप कहते हैं कि मैं न जाऊं. कमाल है,’’ जितेन चिढ़ कर बोला.

‘‘लेकिन, तुम्हारी यह नौकरी भी क्या बुरी है? यहां भी तुम्हें खास बुलाया गया था और आगे तरक्की के मौके भी बहुत हैं. भविष्य तो तुम्हारा यहां भी उज्ज्वल है.’’

‘‘चाचाजी, आप ने अपने क्लब का स्विमिंग पूल भी देखा है और समुद्र भी. सो, दोनों का फर्क भी आप समझते ही होंगे,’’ जितेन मुसकराया.

‘‘मैं तो समझता हूं, बरखुरदार, लेकिन लगता है तुम नहीं समझते. क्लब के स्विमिंग पूल का पानी अकसर बदला जाता है, सो साफसुथरा रहता है. मगर समुद्र में तो दुनियाजहान का कचरा बह कर जाता है. फिर उस में तूफान भी हैं, चट्टानें भी और खतरनाक समुद्री जीव भी. यूनेस्को की नौकरी का मतलब है पिछड़े देशों में जा कर अविकसित चीजों का विकास करना, पिछड़ी जातियों का आधुनिकीकरण करना. काफी टेढ़ा काम होगा.’’

‘‘जिंदगी में तरक्की करने के लिए टेढ़े और मुश्किल काम तो करने ही पड़ते हैं, चाचाजी. और फिर जिन्हें समुद्र में तैरने का शौक पड़ जाए वे स्विमिंग पूल में नहीं तैर पाते.’’

‘‘यही सोच कर तो कह रहा हूं, बेटे, कि तुम समुद्र के शौक में मत पड़ो. उस में फंस कर तुम मनीषा से बहुत दूर हो जाओगे. माना कि अब संपर्क साधनों की कमी नहीं, लगता है मानो आमनेसामने बैठ कर बातें कर रहे हैं. फिर भी, दूरी तो दूरी ही है. राजन के गुजरने के बाद मनीषा सिर्फ तुम्हारे लिए ही जी रही है. तुम्हारा क्या खयाल है? सिर्फ आपसी बातचीत के सहारे वह जी सकेगी, टूट नहीं जाएगी?’’

‘‘जानता हूं, चाचाजी. तभी तो मम्मी को आप के सुपुर्द कर के जा रहा हूं. मैं कोशिश करूंगा कि जल्दी ही इन्हें वहां बुला लूं.’’

‘‘और भी ज्यादा परेशान होने को. यहां की इतने साल की प्रभुत्व की नौकरी, पुराने दोस्त और रिश्ते छोड़ कर नए माहौल को अपनाना मनीषा के लिए आसान होगा? अगर कोई अच्छी जगह होती तो भी ठीक था, लेकिन तुम तो अफ्रीकी या अरब इलाकों में ही जाओगे. वहां खुश रहना मनीषा के लिए मुमकिन न होगा.’’

‘‘फिर भी हालात से समझौता तो करना ही पड़ेगा, चाचाजी. महज इस वजह से कि मेरे जाने से मम्मी अकेली रह जाएंगी, इत्तफाक से मिला यह सुनहरा अवसर मैं छोड़ने वाला नहीं हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा हुआ, यह बात तू ने मम्मी के जाने के बाद कही,’’ उदयशंकर ने एक गहरी सांस खींच कर कहा.

‘‘क्यों? मम्मी तो स्वयं ही यह नहीं चाहेंगी कि उन की वजह से मेरा कैरियर खराब हो या मैं जिंदगी में आगे न बढ़ सकूं.’’

‘‘बेशक, लेकिन जो बात तुम ने अभी कही थी न, वही तुम्हारे पापा ने उन्हें आज से 25 वर्षों पहले बताई थी.’’

उसे सुन कर उन्हें राजन की याद आ जाना स्वाभाविक ही था. दरवाजे के पीछे खड़ी मनीषा का दिल धक्क से हो गया.

‘‘क्या बताया था पापा ने मम्मी को?’’ जितेन आश्चर्य से पूछ रहा था.

मनीषा ने चाहा कि वह जा कर उदयशंकर को रोक दे. उस ने जो बात उदयशंकर को अपना घनिष्ठ मित्र समझ कर बताई थी उसे जितेन को बताने का उदय को कोई हक नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात सुन कर जितेन उदारता अथवा एहसान के बोझ से दब जाए और मनीषा के प्रति उतना कृतज्ञ न हो पाने की वजह से उस के दिल में अपराधभावना आ जाए, मगर मनीषा के पैर जैसे जमीन से चिपक कर रह गए.

उदयशंकर बता रहे थे, ‘‘तुम्हारी मम्मी कितनी मेधावी थीं, शायद इस का तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा. उन जैसी प्रतिभाशाली लड़की को इतनी जल्दी प्यार और शादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए था और अगर शादी कर भी ली थी तो कम से कम घर और बच्चों के मोह से तो बचे ही रहना चाहिए था. पर मनीषा ने घर और बच्चों के चक्कर में अपनी प्रतिभा आम घरेलू औरतों की तरह नष्ट कर दी.’’

‘‘खैर, यह तो आप ज्यादती कर रहे हैं, चाचाजी. मम्मी आम घरेलू औरत एकदम नहीं हैं,’’ जितेन ने प्रतिवाद किया, ‘‘मगर पापा ने क्या कहा था, वह बताइए न?’’

‘‘वही बता रहा हूं. तुम्हारी मम्मी ने कभी तुम से जिक्र भी नहीं किया होगा कि उन्हें एक बार हाइडलबर्ग के इंस्टिट्यूट औफ एडवांस्ड साइंसैज ऐंड टैक्नोलौजी में पीएचडी के लिए चुना गया था. तुम्हारी दादी और राजन ने तुम्हारी पूरी देखभाल करने का आश्वासन दिया था.  फिर भी मनीषा जाने को तैयार नहीं हुईं, महज तुम्हारी वजह से.’’

‘‘मैं उस समय कितना बड़ा था?’’

‘‘यही कोई 5-6 महीने के यानी जिस उम्र में मां ही होती है जो दूध पिला दे. और दूध तुम बोतल से पीते थे. सो, तुम्हारी दादी और पापा तुम्हारी देखभाल मजे से कर सकते थे. लेकिन तुम्हारी मम्मी को तसल्ली नहीं हो रही थी. उन के अपने शब्दों में कहूं तो ‘इतने छोटे बच्चे को छोड़ने को मन नहीं मानता. वह मुझे पहचानने लग गया है. मेरे जाने के बाद वह मुझे जरूर ढूंढ़ेगा. बोल तो सकता नहीं कि कुछ पूछ सके या बताए जाने पर समझ सके. उस के दिल पर न जाने इस का क्या असर पड़ेगा? हो सकता है इस से उस के दिल में कोई हीनभावना उत्पन्न हो जाए और मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा किसी हीनभावना के साथ बड़ा हो. मैं, डा. मनीषा, एक जानीमानी औयल टैक्नोलौजिस्ट की जगह एक स्वस्थ, होनहार बच्चे की मां कहलाना ज्यादा पसंद करूंगी.’’’

मनीषा और ज्यादा नहीं सुन सकी. उसे उस शाम की अपनी और राजन की बातचीत याद हो आई.

‘तुम्हारा बच्चा अभी तुम्हें ढूंढ़ने, कुछ सोचने और ग्रंथि बनाने की उम्र में नहीं है. पर जब वह कुछ सोचनेसमझने की उम्र में पहुंचेगा तब वह अपनी ही जिंदगी जीना चाहेगा और तुम्हारी खुशी के लिए अपनी किसी भी खुशी का गला नहीं घोंटेगा. यह समझ लो, मनीषा,’ राजन ने उसे समझाना चाहा था.

‘उस की नौबत ही नहीं आएगी, राजन. मेरी और मेरे बेटे की खुशियां अलगअलग नहीं होंगी. बेटे की खुशी ही मेरी खुशी होगी,’ उस ने बड़े दर्द से कहा था.

‘यानी तुम अपना अस्तित्व अपने बेटे के लिए ऐसे ही लुप्त कर दोगी. याद रखो, मनीषा, चंद सालों के बाद तुम पाओगी कि न तुम्हारे पास बेटा है और न अपना अस्तित्व, और फिर तुम अस्तित्वविहीन हो कर शून्य में भटकती फिरोगी, खुद को और अपने बेटे को कोसती जिस के लिए तुम ने स्वयं को नष्ट कर दिया.’

‘नहीं, मैं बेटे की ख्याति, सुख और समृद्धि के सागर में तैरूंगी. जब मेरा बेटा गर्व से यह कहेगा कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मम्मी की वजह से हूं तो उस समय मेरे गौरव की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती.’

‘यह सब तुम्हारी खुशफहमी है, मनीषा. जब तक तुम्हारा बेटा बड़ा होगा उस समय तक अपनी सफलता का श्रेय दूसरों को देने का चलन ही नहीं रहेगा. तुम्हारा बेटा कहेगा कि मैं जो कुछ भी हूं अपनी मेहनत और अपनी बुद्धि के बल पर हूं. यदि मांबाप ने बुद्धि के विकास के लिए कुछ सुविधाएं जुटा दी थीं तो यह उन की जिम्मेदारी थी. उन्होंने अपनी मरजी से हमें पैदा किया है, हमारे कहने से नहीं.’

‘चलिए, आप की यह बात भी मान ली. लेकिन दूर से चुप रह कर भी तो अपने बेटे की सुखसमृद्धि का आनंद उठाया जा सकता है.’

‘हां, अगर दूर और तटस्थ रह कर उस की खुशी में खुश रह सकती हो, तो बात अलग है. लेकिन अगर तुम चाहो कि तुम ने उस के लिए जो त्याग किया है उस के प्रतिदानस्वरूप वह भी तुम्हारे लिए कुछ त्याग कर के दे, तो नामुमकिन है. जहां तक मेरा खयाल है, वह अधिक समय तक तुम्हारे पास भी नहीं रहेगा. आजकल पढ़ाई काफी विस्तृत हो रही है.’

‘चलिए, बेटा रहे न रहे, बेटे के पापा तो मेरे पास ही रहेंगे न?’ मनीषा ने कहा था और सफाई से बात बदल दी थी. ‘वैसे मूर्खताओं में साथ देने के पक्ष में मैं नहीं हूं लेकिन तुम्हारा साथ तो देना ही पड़ेगा,’ राजन हंस कर बोले थे.

लेकिन, कहां दे पाए थे राजन साथ. जितेन अभी कालेज के प्रथम वर्ष में ही था कि एक दिन सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो कर वे उस का साथ छोड़ गए थे.

‘‘मम्मी, कहां हो तुम?’’ जितेन के उत्तेजित स्वर से मनीषा चौंक पड़ी. कर दिया न उदयशंकर ने सर्वनाश. जितेन को बता दिया और अब वह कहने आ रहा है कि यूनेस्को की नौकरी से इनकार कर देगा. मनीषा ने मन ही मन फैसला किया कि वह उसे क्या कह कर और क्याक्या कसमें दे कर जाने को मजबूर करेगी.

‘‘हां, बेटे, क्या बात है?’’

‘‘उदय चाचा कह रहे थे कि तुम ने मेरे लिए जीवन में आया एक सुनहरा मौका खो दिया?’’

‘‘हां, मगर वह मैं ने तुम्हारे लिए नहीं, अपनी ममता के लिए किया था. उस का तुम पर कोई एहसान नहीं है.’’

‘‘तुम एहसान की बात कर रही हो, मम्मी, और मैं समझता हूं कि इस से बड़ा मेरा कोई और उपकार नहीं कर सकती थीं,’’ जितेन तड़प कर बोला, ‘‘मैं आप को काफी समझदार औरत समझता था, लेकिन आप भी बस प्यार में ही बच्चे का भला समझने वाली औरत निकलीं. उस समय आप ने शायद यह नहीं सोचा कि आप की ज्यादा लियाकत का असर आप के बेटे के भविष्य पर क्या पड़ेगा?’’

जितेन की बात सुन कर मनीषा चुप रही, तो वह फिर बोला, ‘‘आज अगर आप के पास डौक्टरेट की डिगरी होती तो शायद पापा के गुजरने के बाद आप की पुरानी यूनिवर्सिटी आप को बुला लेती. हम लोग वहीं जा कर रहने लगते और मैं बजाय अफ्रीकीएशियाई देशों में जा कर, एक पश्चिमी औद्योगिक देश में काम करने का मौका पाता. यही नहीं, मेरी पढ़ाई पर इस का काफी असर पड़ता. निश्चित ही आप की आय तब ज्यादा होती. घर में ही एक प्रयोगशाला बनाने की जो मेरी तमन्ना थी, वह अगर हमारे पास ज्यादा पैसा होता तो पूरी हो जाती और उस का असर मेरे रिजल्ट पर भी पड़ता.’’ जितेन के स्वर में भर्त्सना थी.

‘‘हमेशा ही विश्वविद्यालय में फर्स्ट आता है. अरे छोड़ भी. उस से ज्यादा अच्छा रिजल्ट और क्या लाता?’’ मनीषा ने हंस कर बात टालनी चाही.

‘‘वही तो आप समझने की कोशिश नहीं करतीं. 85 प्रतिशत अंकों की जगह 95 प्रतिशत अंक पाना क्या बेहतर नहीं है? खैर, आप जो भी कहिए, आप ने वह फैलोशिप अस्वीकार कर के मेरा जो अहित किया है उस के लिए मैं आप को कभी माफ नहीं कर सकता,’’ कह कर जितेन तेजी से बाहर चला गया.

मनीषा जैसे टूट कर कुरसी पर गिर पड़ी. जितेन की कृतघ्नता या उदासीनता के लिए वह अपने को बरसों से तैयार करती आ रही थी, पर उस के इस आरोप के धक्के को सह सकना जरा मुश्किल था.

गलतफहमी: क्या रिया ने राज के प्यार को अपनाया?

आज नौकरी का पहला दिन था. रिया ने सुबह उठ कर तैयारी की और औफिस के लिए निकल पड़ी. पिताजी के गुजरने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उस पर ही थी. इंजीनियरिंग कालेज में अकसर अव्वल रहने वाली रिया के बड़ेबड़े सपने थे. लेकिन परिस्थितिवश उसे इस राह पर चलना पड़ा था. इस के पहले छोटी नौकरी में घर की जिम्मेदारियां पूरी न हो पाती थीं. ऐसे में एक दिन औनलाइन इंटरव्यू के इश्तिहार पर उस का ध्यान गया. उस ने फौर्म भर दिया और उस कंपनी में उसे चुन लिया गया.

रिया जब औफिस में पहुंची तो औफिस के कुछ कर्मी थोड़े समय से थोड़ा पहले ही आ गए थे. वहीं, रिसैप्शन पर बैठी अंजली ने रिया से पूछा, ‘‘गुडमौर्निंग मैडम, आप को किस से मिलना है?’’

‘‘मैं इस कंपनी में औनलाइन इंटरव्यू से चुनी गईर् हूं. आज से मु झे औफिस जौइन करने लिए कहा गया था, यह लैटर…’’

‘‘ओके, कौंग्रेट्स. आप का इस कंपनी में स्वागत है. थोड़ी देर बैठिए. मैं मैनेजर साहब से पूछ कर आप को बताती हूं.’’

रिया वहीं बैठ कर कंपनी का निरीक्षण करने लगी. उसी वक्त कंपनी में काफी जगह लगा हुआ आर जे का लोगो उस का बारबार ध्यान खींच रहा था. उतने में अंजली आई, ‘‘आप को मैनेजर साहब ने बुलाया है. वे आप को आगे का प्रोसीजर बताएंगे.’’

‘‘अंजली मैडम, एक सवाल पूछूं? कंपनी में जगहजगह आर जे लोगो क्यों लगाया गया है?’’

‘‘आर जे लोगो कंपनी के सर्वेसर्वा मजूमदार साहब के एकलौते सुपुत्र के नाम के अक्षर हैं. औनलाइन इंटरव्यू उन का ही आइडिया था. आज उन का भी कंपनी में पहला दिन है. चलो, अब हम अपने काम की ओर ध्यान दें.’’

‘‘हां, बिलकुल, चलो.’’

कंपनी के मैनेजर, सुलझे हुए इंसान थे. उन की बातों से और काम सम झाने के तरीके से रिया के मन का तनाव काफी कम हुआ. उस ने सबकुछ समझ लिया और काम शुरू कर लिया. शुरू के कुछ दिनों में ही रिया ने अपने हंसमुख स्वभाव से और काम के प्रति ईमानदारी से सब को अपना बना लिया. लेकिन अभी तक उस की कंपनी के मालिक आर जे सर से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की मीटिंग हो या और कोई अवसर, जहां पर उस की आर जे सर के साथ मुलाकात होने की गुंजाइश थी, वहां उसे जानबू झ कर इग्नोर किया जा रहा था. ऐसा क्यों, यह बात उस के लिए पहेली थी.

एक दिन रोज की फाइल्स देखते समय चपरासी ने संदेश दिया, ‘‘मैनेजर साहब, आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘आइए, रिया मैडम, आप से काम के बारे में बात करनी थी. आज आप को इस कंपनी में आए कितने दिन हुए?’’

‘‘क्यों, क्या हुआ सर? मैं ने कुछ गलत किया क्या?’’

‘‘गलत हुआ, ऐसा मैं नहीं कह सकता, मगर अपने काम की गति बढ़ाइए और हां, इस जगह हम काम करने की तनख्वाह देते हैं, गपशप की नहीं. यह ध्यान में रखिए. जाइए आप.’’

रिया के मन को यह बात बहुत बुरी लगी. वैसे तो मैनेजर साहब ने कभी भी उस के साथ इस तरीके से बात नहीं की थी लेकिन वह कुछ नहीं बोल सकी. अपनी जगह पर वापस आ गई.

थोड़ी देर में चपरासी ने उस के विभाग की सारी फाइलें उस की टेबल पर रख दीं. ‘‘इस में जो सुधार करने के लिए कहे हैं वे आज ही पूरे करने हैं, ऐसा साहब ने कहा है.’’

‘‘लेकिन यह काम एक दिन में कैसे पूरा होगा?’’

‘‘बड़े साहब ने यही कहा है.’’

‘‘बड़े साहब…?’’

‘‘हां मैडम, बड़े साहब यानी अपने आर जे साहब, आप को नहीं मालूम?’’

अब रिया को सारी बातें ध्यान में आईं. उस के किए हुए काम में आर जे सर ने गलतियां निकाली थीं, हालांकि वह अब तक उन से मिली भी नहीं थी. फिर वे ऐसा बरताव क्यों कर रहे थे, यह सवाल रिया को परेशान कर रहा था.

उस ने मन के सारे विचारों को  झटक दिया और काम शुरू किया. औफिस का वक्त खत्म होने को था, फिर भी रिया का काम खत्म नहीं हुआ था. उस ने एक बार मैनेजर साहब से पूछा, मगर उन्होंने आज ही काम पूरा करने की कड़ी चेतावनी दी. बाकी सारा स्टाफ चला गया. अब औफिस में रिया, चपरासी और आर जे सर के केबिन की लाइट जल रही थी यानी वे भी औफिस में ही थे. काम पूरा करतेकरते रिया को काफी वक्त लगा.

उस दिन के बाद रिया को तकरीबन हर दिन ज्यादा काम करना पड़ता था. उस की बरदाश्त करने की ताकत अब खत्म हो रही थी. एक दिन उस ने तय किया कि आज अगर उसे हमेशा की तरह ज्यादा काम मिला तो सीधे जा कर आर जे सर से मिलेगी. हुआ भी वैसा ही. उसे आज भी काम के लिए रुकना था. उस ने काम बंद किया और आर जे सर के केबिन की ओर जाने लगी. चपरासी ने उसे रोका, मगर वह सीधे केबिन में घुस गई.

‘‘सौरी सर, मैं बिना पूछे आप से मिलने चली आई. क्या आप मु झे बता सकेंगे कि निश्चितरूप से मेरा कौन सा काम आप को गलत लगता है? मैं कहां गलत कर रही हूं? एक बार बता दीजिए. मैं उस के मुताबिक काम करूंगी, मगर बारबार ऐसा…’’

रिया के आगे के लफ्ज मुंह में ही रह गए क्योंकि रिया केबिन में आई थी तब आर जे सर कुरसी पर उस की ओर पीठ कर के बैठे थे. उन्होंने रिया के शुरुआती लफ्ज सुन लिए थे. बाद में उन की कुरसी रिया की ओर मुड़ी ‘‘सर…आप…तुम…राज…कैसे मुमकिन है? तुम यहां कैसे?’’ रिया हैरान रह गई. उस का अतीत अचानक उस के सामने आएगा, ऐसी कल्पना भी उस ने नहीं की थी. उसे लगने लगा कि वह चक्कर खा कर वहीं गिर जाएगी.

‘‘हां, बोलिए रिया मैडम, क्या तकलीफ है आप को?’’

राज के इस सवाल से वह अतीत से बाहर आई और चुपचाप केबिन के बाहर चली गई. उस का अतीत ऐसे अचानक उस के सामने आएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था.

आर जे सर कोई और नहीं उस का नजदीकी दोस्त राज था. उस दोस्ती में प्यार के धागे कब बुन गए, यह दोनों सम झे नहीं थे. रिया को वह कालेज का पहला दिन याद आया. कालेज के गेट के पास ही सीनियर लड़कों के एक गैंग ने उसे रोका था.

‘आइए मैडम, कहां जा रही हो? कालेज के नए छात्र को अपनी पहचान देनी होती है. उस के बाद आगे बढि़ए.’

रिया पहली बार गांव से पढ़ाई के लिए शहर आई थी और आते ही इस सामने आए संकट से वह घबरा गई.

‘अरे हीरो, तू कहां जा रहा है? तु झे दिख नहीं रहा यहां पहचान परेड चल रही है. चल, ऐसा कर ये मैडम जरा ज्यादा ही घबरा गई हैं. तू इन्हें प्रपोज कर. उन का डर भी चला जाएगा.’

अभीअभी आया राज जरा भी घबराया नहीं. उस ने तुरंत रिया की ओर देखा. एक स्माइल दे कर बोला. ‘हाय, मैं राज. घबराओ मत. बड़ेबड़े शहरों में ऐसी छोटीछोटी बातें होती रहती हैं.’

रिया उसे देखती ही रह गई.

‘आज हमारे कालेज का पहला दिन है. इस वर्षा ऋतु के साक्षी से मेरी दोस्ती को स्वीकार करोगी.’ रिया के मुंह से अनजाने में कब ‘हां’ निकल गई यह वह सम झ ही नहीं पाई. उस के हामी भरने से सीनियर गैंग  झूम उठा.

‘वाह, क्या बात है. यह है रियल हीरो. तुम से मोहब्बत के लैसंस लेने पड़ेंगे.’

‘बिलकुल… कभी भी…’

रिया की ओर एक नजर डाल कर राज कालेज की भीड़ में कब गुम हुआ, यह उसे मालूम ही नहीं हुआ. एक ही कालेज में, एक ही कक्षा में होने की वजह से वे बारबार मिलते थे. राज अपने स्वभाव के कारण सब को अच्छा लगता था. कालेज की हर लड़की उस से बात करने के लिए बेताब रहती थी. मगर राज किसी दूसरे ही रिश्ते में उल झ रहा था.

यह रिश्ता रिया के साथ जुड़ा था. एक अव्यक्त रिश्ता. उस का शांत स्वभाव, उस का मनमोहता रूप जिसे शहर की हवा छू भी नहीं पाई थी. उस का यही निरालापन राज को उस की ओर खींचता था.

एक दिन दोनों कालेज कैंटीन में बैठे थे. तब राज ने कहा, ‘रिया, तुम कितनी अलग हो. हमारा कालेज का तीसरा साल शुरू है. लेकिन तुम्हें यहां के लटके झटके अभी भी नहीं आते…’

‘मैं ऐसी ही ठीक हूं. वैसे भी मैं कालेज में पढ़ने आई हूं. पढ़ाई पूरी करने के बाद मु झे नौकरी कर के अपने पिताजी का सपना पूरा करना है. उन्होंने मेरे लिए काफी कष्ट उठाए हैं.’

रिया की बातें सुन कर राज को रिया के प्रति प्रेम के साथ आदर भी महसूस हुआ. तीसरे साल के आखिरी पेपर के समय राज ने रिया को बताया, ‘मु झे तुम्हें कुछ बताना है. शाम को मिलते हैं.’ हालांकि उस की आंखें ही सब बोल रही थीं. रिया भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी खुशी में वह होस्टल आई. मगर तभी मैट्रन ने बताया, ‘तुम्हारे घर से फोन था. तुम्हें तुरंत घर बुलाया है.’

रिया ने सामान बांधा और गांव की ओर निकल पड़ी. घर में क्या हुआ होगा, इस सोच में वह परेशान थी. इन सब बातों में वह राज को भूल गई. घर पहुंची तो सामने पिताजी का शव, उस सदमे से बेहोश पड़ी मां और रोता हुआ छोटा भाई. अब किसे संभाले, खुद की भावनाओं पर कैसे काबू पाए, यह उस की सम झ में नहीं आ रहा था. एक ऐक्सिडैंट में उस के पिताजी का देहांत हो गया था. घर में सब से बड़ी होने की वजह से उस ने अपनी भावनाओं पर बहुत ही मुश्किल से काबू पाया.

इस घटना के बाद उस ने पढ़ाई आधी ही छोड़ दी और एक छोटी नौकरी कर घर की जिम्मेदारी संभाली.

इधर राज बेचैन हो गया. सारी रात रिया का इंतजार करता रहा. मगर वह आई नहीं. उस ने कालेज, होस्टल सब जगह ढूंढ़ा मगर उस का कुछ पता नहीं चला. रिया ने ही ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. वह राज पर बो झ नहीं बनना चाहती थी. पर राज इस सब से अनजान था. उस के दिल को ठेस पहुंची थी. इसलिए उस ने भी कालेज छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया.

‘‘मैडम, आप का काम हो गया क्या? मु झे औफिस बंद करना है. बड़े साहब कब के चले गए.’’

चपरासी की आवाज से रिया यादों की दुनिया से बाहर आई. उस ने सब सामान इकट्ठा किया और घर के लिए निकल पड़ी. उस के मन में एक ही खयाल था कि राज की गलतफहमी कैसे दूर करे. उसे उस का कहना रास आएगा या नहीं? वह नौकरी भी छोड़ नहीं सकती. क्या करे. इन खयालों में वह पूरी रात जागती रही.

दूसरे दिन औफिस में अंजली ने रिसैप्शन पर ही रिया से पूछा, ‘‘अरे रिया, क्या हुआ? तुम्हारी आंखें ऐसी क्यों लग रही हैं? खैरियत तो है न?’’

‘‘अरे कुछ नहीं, थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं, बस. आज का शैड्यूल क्या है?’’

‘‘आज अपनी कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला है. इसलिए कल पूरे स्टाफ के लिए आर जे सर ने पार्टी रखी है. हरेक को पार्टी में आना ही है.’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

दू सरे दिन शाम को पार्टी शुरू हुई. रिया बस केवल हाजिरी लगा कर निकलने की सोच रही थी. राज का पूरा ध्यान उसी पर था. अचानक उसे एक परिचित  आवाज आई.

‘‘हाय राज, तुम यहां कैसे? कितने दिनों बाद मिल रहे हो. मगर तुम्हारी हमेशा की मुसकराहट किधर गई?’’

‘‘ओ मेरी मां, हांहां, कितने सवाल पूछोगी. स्नेहल तुम तो बिलकुल नहीं बदलीं. कालेज में जैसी थीं वैसी ही हो, सवालों की खदान. अच्छा, तुम यहां कैसे…?’’

‘‘अरे, मैं अपने पति के साथ आई हूं. आज उन के आर जे सर ने पूरे स्टाफ को परिवार सहित बुलाया है. इसलिए मैं आई. तुम किस के साथ आए हो?’’

‘‘मैं अकेला ही आया हूं. मैं ही तुम्हारे पति का आर जे सर हूं.’’

‘‘सच, क्या कह रहे हो. तुम ने तो मु झे हैरान कर दिया. अरे हां, रिया भी इसी कंपनी में है न. तुम लोगों की सब गलतफहमियां दूर हो गईं न.’’

‘‘गलतफहमी? कौन सी गलतफहमी?’’

‘‘अरे, रिया अचानक कालेज छोड़ कर क्यों गई, उस के पिताजी का ऐक्सिडैंट में देहांत हो गया था, ये सब…’’

‘‘क्या, मैं तो ये सब जानता ही नहीं.’’

स्नेहल रिया और राज की कालेज की सहेली थी. उन दोनों की दोस्ती, प्यार, दूरी इन सब घटनाओं की साक्षी थी. उसे रिया के बारे में सब मालूम हुआ था. उस ने ये सब राज को बताया.

राज को यह सब सुन कर बहुत दुख हुआ. उस ने रिया के बारे में कितना गलत सोचा था. हालांकि, उस की इस में कुछ भी गलती नहीं थी. अब उस की नजर पार्टी में रिया को ढूंढ़ने लगी. मगर तब तक रिया वहां से निकल चुकी थी.

वह उसे ढूंढ़ने बसस्टौप की ओर भागा.

बारिश के दिन थे. रिया एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. उस ने दूर से ही रिया को आवाज लगाई.

‘‘रिया…रिया…’’

‘‘क्या हुआ सर? आप यहां क्यों आए? आप को कुछ काम था क्या?’’

‘‘नहीं, सर मत पुकारो, मैं तुम्हारा पहले का राज ही हूं. अभीअभी मु झे स्नेहल ने सबकुछ बताया. मु झे माफ कर दो, रिया.’’

‘‘नहीं राज, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. उस समय हालात ही ऐसे थे.’’

‘‘रिया, आज मैं तुम से पूछता हूं, क्या मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’

रिया की आंसूभरी आंखों से राज को जवाब मिल गया.

राज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उन के इस मिलन में बारिश भी उन का साथ दे रही थी. इस बारिश की  झड़ी में उन के बीच की दूरियां, गलतफहमियां पूरी तरह बह गई थीं.

रज्जो : कामवाली बाई कैसे बनी चोर

Romantic Story in Hindi: रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था. ‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा. सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’ ‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी. कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा.

सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मांकाका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मांकाका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढ़िया खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी.

एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’ रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मांकाका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मांकाका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है.

माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में. इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी.

अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तु  झे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’

‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर  झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने रज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मु  झे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तु  झे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मु झे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां

2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तु  झे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तु  झे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही.

अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया.

सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मु  झ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मु  झे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मु  झ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तु  झ से कोईर् काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा.

उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने में रिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

प्यार अपने से : झारखंड के शहर की अनोखी कहानी

झारखंड राज्य का एक शहर है हजारीबाग. यह कुदरत की गोद में बसा छोटा सा, पर बहुत खूबसूरत शहर है. पहाडि़यों से घिरा, हरेभरे घने जंगल, झाल, कोयले की खानें इस की खासीयत हैं.

हजारीबाग के पास ही में डैम और नैशनल पार्क भी हैं. यह शहर अभी हाल में ही रेल मार्ग से जुड़ा है, पर अभी भी नाम के लिए 1-2 ट्रेनें ही इस लाइन पर चलती हैं. शायद इसी वजह से इस शहर ने अपने कुदरती खूबसूरती बरकरार रखी है.

सोमेन हजारीबाग में फौरैस्ट अफसर थे. उन दिनों हजारीबाग में उतनी सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन की बीवी संध्या अपने मायके कोलकाता में ही रहती थी.

दरअसल, शादी के बाद कुछ महीनों तक वे दोनों फौरैस्ट अफसर के शानदार बंगले में रहते थे. जब संध्या मां बनने वाली थी, सोमेन ने उसे कोलकाता भेज दिया था. उन्हें एक बेटी हुई थी. वह बहुत खूबसूरत थी, रिया नाम था उस का. सोमेन हजारीबाग में अकेले रहते थे. बीचबीच में वे कोलकाता जाते रहते थे.

हजारीबाग के बंगले के आउट हाउस में एक आदिवासी जोड़ा रहता था. लक्ष्मी सोमेन के घर का सारा काम करती थी. उन का खाना भी वही बनाती थी. उस का मर्द फूलन निकम्मा था. वह बंगले की बागबानी करता था और सारा दिन हंडि़या पी कर नशे में पड़ा रहता था.

एक दिन दोपहर बाद लक्ष्मी काम करने आई थी. वह रोज शाम तक सारा काम खत्म कर के रात को खाना टेबल पर सजा कर चली जाती थी.

उस दिन मौसम बहुत खराब था. घने बादल छाए हुए थे. मूसलाधार बारिश हो रही थी. दिन में ही रात जैसा अंधेरा हो गया था.

अपने आउट हाउस में बंगले तक दौड़ कर आने में ही लक्ष्मी भीग गई थी. सोमेन ने दरवाजा खोला. उस की गीली साड़ी और ब्लाउज के अंदर से उस के सुडौल उभार साफ दिख रहे थे.

सोमेन ने लक्ष्मी को एक पुराना तौलिया दे कर बदन सुखाने को कहा, फिर उसे बैडरूम में ही चाय लाने को कहा. बिजली तो गुल थी. उन्होंने लैंप जला रखा था.

थोड़ी देर में लक्ष्मी चाय ले कर आई. चाय टेबल पर रखने के लिए जब वह झांकी, तो उस का पल्लू सरक कर नीचे जा गिरा और उस के उभार और उजागर हो गए.

सोमेन की सांसें तेज हो गईं और उन्हें लगा कि कनपटी गरम हो रही है. लक्ष्मी अपना पल्लू संभाल चुकी थी. फिर भी सोमेन उसे लगातार देखे जा रहे थे.

यों देखे जाने से लक्ष्मी को लगा कि जैसे उस के कपड़े उतारे जा रहे हैं. इतने में सोमेन की ताकतवर बाजुओं ने उस की कमर को अपनी गिरफ्त में लेते हुए अपनी ओर खींचा.

लक्ष्मी भी रोमांचित हो उठी. उसे मरियल पियक्कड़ पति से ऐसा मजा नहीं मिला था. उस ने कोई विरोध नहीं किया और दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस घटना के कुछ महीने बाद सोमेन ने अपनी पत्नी और बेटी रिया को रांची बुला लिया. हजारीबाग से रांची अपनी गाड़ी से 2 ढाई घंटे में पहुंच जाते हैं.

सोमेन ने उन के लिए रांची में एक फ्लैट ले रखा था. उन के प्रमोशन की बात चल रही थी. प्रमोशन के बाद उन का ट्रांसफर रांची भी हो सकता है, ऐसा संकेत उन्हें डिपार्टमैंट से मिल चुका था.

इधर लक्ष्मी भी पेट से हो गई थी. इस के पहले उसे कोई औलाद न थी.

लक्ष्मी के एक बेटा हुआ. नाकनक्श से तो साधारण ही था, पर रंग उस का गोरा था. आमतौर पर आदिवासियों के बच्चे ऐसे नहीं होते हैं.

अभी तक सोमेन हजारीबाग में ही थे. वे मन ही मन यह सोचते थे कि कहीं यह बेटा उन्हीं का तो नहीं है. उन्हें पता था कि लक्ष्मी की शादी हुए 6 साल हो चुके थे, पर वह पहली बार मां बनी थी.

सोमेन को तकरीबन डेढ़ साल बाद प्रमोशन और ट्रांसफर और्डर मिला. तब तक लक्ष्मी का बेटा गोपाल भी डेढ़ साल का हो चुका था.

हजारीबाग से जाने के पहले लक्ष्मी ने सोमेन से अकेले में कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहना चाहती हूं.’’

‘‘हां, कहो,’’ सोमेन ने कहा.

‘‘गोपाल आप का ही खून है.’’

सोमेन बोले, ‘‘यह तो मैं यकीनी तौर पर नहीं मान सकता हूं. जो भी हो, पर तुम मुझ से चाहती क्या हो?’’

‘‘बाबूजी, मैं बेटे की कसम खा कर कहती हूं, गोपाल आप का ही खून है.’’

‘‘ठीक है. बोलो, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘ज्यादा कुछ नहीं. बस, यह भी पढ़लिख कर अच्छा इनसान बने. मैं किसी से कुछ नहीं बोलूंगी. आप इतना भरोसा तो मुझ पर कर सकते हैं,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘ठीक है. तुम लोगों के बच्चों का तो हर जगह आसानी से रिजर्वेशन कोटे में दाखिला हो ही जाता है. फिर भी मुझ से कोई मदद चाहिए तो बोलना.’’

इस के बाद सोमेन रांची चले गए. समय बीतता गया. सोमेन की बेटी रिया 10वीं पास कर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई थी.

बीचबीच में इंस्पैक्शन के लिए सोमेन को हजारीबाग जाना पड़ता था. वे वहीं आ कर बंगले में ठहरते थे. लक्ष्मी भी उन से मिला करती थी. उस ने सोमेन से कहा था कि गोपाल भी 10वीं क्लास के बाद दिल्ली के अच्छे स्कूल और कालेज में पढ़ना चाहता है. उसे कुछ माली मदद की जरूरत पड़ सकती है.

सोमेन ने उसे मदद करने का भरोसा दिलाया था. गोपाल अब बड़ा हो गया था. वे उसे देख कर खुश हुए. शक्ल तो मां की थी, पर रंग गोरा था. छरहरे बदन का साधारण, पर आकर्षक लड़का था. उस के नंबर भी अच्छे आते थे.

रिया के दिल्ली जाने के एक साल बाद गोपाल ने भी दिल्ली के उसी स्कूल में दाखिला ले लिया. सोमेन ने गोपाल की 12वीं जमात तक की पढ़ाई के लिए रुपए उस के बैंक में जमा करवा दिए थे.

रिया गोपाल से एक साल सीनियर थी. पर एक राज्य का होने के चलते दोनों में परिचय हो गया. छुट्टियों में ट्रेन में अकसर आनाजाना साथ ही होता था. गोपाल और रिया दोनों का इरादा डाक्टर बनने का था.

रिया ने 12वीं के बाद कुछ मैडिकल कालेज के लिए अलगअलग टैस्ट दिए, पर वह कहीं भी पास नहीं कर सकी थी. तब उस ने एक साल कोचिंग ले कर अगले साल मैडिकल टैस्ट देने की सोची. वहीं दिल्ली के अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में कोचिंग शुरू की.

अगले साल गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल कालेज में दाखिले के लिए टैस्ट दिए. इस बार दोनों को कामयाबी मिली थी. गोपाल के नंबर कुछ कम थे, पर रिजर्वेशन कोटे में तो उस का दाखिला होना तय था.

गोपाल और रिया दोनों ने बीएचयू मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. सोमेन गोपाल की पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे थे. अब दोनों की क्लास भी साथ होती थी. आपस में मिलनाजुलना भी ज्यादा हो गया था. छुट्टियों में भी साथ ही घर आते थे.

वहां से शेयर टैक्सी से हजारीबाग जाना आसान था. हजारीबाग के लिए कोई अलग ट्रेन नहीं थी. जब कभी सोमेन रिया को लेने रांची स्टेशन जाते थे, तो वे गोपाल को भी बिठा लेते थे और अगर सोमेन को औफिशियल टूर में हजारीबाग जाना पड़ता था, तो गोपाल को वे साथ ले जाते थे. इस तरह समय बीतता गया और गोपाल व रिया अब काफी नजदीक आ गए थे. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

गोपाल और रिया दोनों असलियत से अनजान थे. दोनों के मातापिता भी उन की प्रेम कहानी से वाकिफ नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना घर बसाने का सपना देख रखा था. साढ़े 4 साल बाद दोनों ने अपनी एमबीबीएस पूरी कर ली. आगे उसी कालेज में दोनों ने एक साल की इंटर्नशिप भी पूरी की.

रिया काफी समझदार थी. उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे, पर उस ने मना कर दिया और कहा कि अभी वह डाक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी.

लक्ष्मी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. इसी बीच सोमेन भी हजारीबाग में थे. उस ने सोमेन से कहा, ‘‘बाबूजी, मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है. आप गोपाल का खयाल रखेंगे?’’

सोमेन ने समझते हुए कहा, ‘‘अब गोपाल समझदार डाक्टर बन चुका है. वह अपने पैरों पर खड़ा है. फिर भी उसे मेरी जरूरत हुई, तो मैं जरूर मदद करूंगा. ’’ कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी की मौत हो गई.

गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल में पोस्ट ग्रैजुएशन का इम्तिहान दिया था. वे तो बीएचयू में पीजी करना चाहते थे, पर वहां उन्हें सीट नहीं मिली. दोनों को रांची मैडिकल कालेज आना पड़ा.

उन में प्रेम तो जरूर था, पर दोनों में से किसी ने भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था. दोनों ने तय किया कि जब तक उन की शादी नहीं होती, इस प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए.

रिया की मां संध्या ने एक दिन उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. तुम पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए भी शादी कर सकती हो. बहुत से लड़केलड़कियां ऐसा करते हैं.’’

रिया बोली, ‘‘करते होंगे, पर मैं नहीं करूंगी. मुझ से बिना पूछे शादी की बात भी मत चलाना.’’

‘‘क्यों? तुझे कोई लड़का पसंद है, तो बोल न?’’

‘‘हां, ऐसा ही समझे. पर अभी हम दोनों पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. शादी की जल्दी किसी को भी नहीं है. पापा को भी बता देना.’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझाती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज

है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं

बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझा लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरा तुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

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