हमेशा की तरह इस बार फिर धुंध गहरी होने लगी और चारों ओर सन्नाटा छा गया. मनोहर अच्छी तरह जानता था कि आगे क्या होने वाला है, पर फिर भी न जाने किस डर के कारण उस के दिल की धड़कन तेज होने लगी. धुंध के साथसाथ ठंड भी बढ़ने लगी और मनोहर कांपने लगा. लगता था कि सारी दुनिया एक सफेद बर्फीली चादर से ढक गई है. कोहरे के बीच में अचानक एक काला साया नजर आया, जो मनोहर की ओर धीरेधीरे बढ़ने लगा. यह जानते हुए भी कि उसे कोई खतरा नहीं है, मनोहर वहां से घूम कर भागना चाहता था, पर उसे लगा कि उस के पैर वहां जम ही गए थे.

साया मनोहर के पास आया और उस का चेहरा साफ दिखाई देने लगा. यह वही चेहरा था जो उस ने पहली बार कभी न भूलने वाली रात को देखा था. मासूम सा चेहरा था. एक 16-17 साल के लड़के का. मनोहर की तरफ उस ने उंगली से इशारा किया. ठंड के बावजूद मनोहर पसीनापसीना हो गया. 

‘तुम ने मुझे मारा. तुम ही मेरी मौत के जिम्मेदार हो. तुम्हें इस का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा. तुम्हें मेरी मौत की कीमत चुकानी पड़ेगी,’ लड़के ने मनोहर पर इलजाम लगाया.

‘पर गलती मेरी नहीं थी,’ मनोहर ने अपने ऊपर लगे अभियोग का विरोध किया.

‘गलती चाहे जिस की भी थी पर मारा तो तुम ने ही मुझे,’ लड़के ने दबाव डालना जारी रखा.

‘मैं क्या करता. तुम अचानक बिना कोई चेतावनी दिए…’ मनोहर ने जवाब देना शुरू किया, पर हमेशा की तरह उस की बात पूरी तरह बिना सुने लड़का धुंध में गायब हो गया. मनोहर चौंक कर उठा. पसीने से उस का बदन गीला था. वह जानता था कि अब कम से कम डेढ़दो घंटे तक वह सो नहीं पाएगा. यही सपना उसे हफ्ते में 2 या 3 बार आता था, उस हादसे के बाद से. मनोहर ने सोचा कि वह उस रात को कभी भूल नहीं सकेगा. धीरेधीरे वह गहरी सोच में डूबता गया…हौल खचाखच भरा था. पार्टी खूब जोरशोर से चल रही थी. लोग विदेशी संगीत पर नृत्य कर रहे थे पर बातचीत के शोर के कारण ठीक से कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था. जितने लोग मौजूद थे, चाहे मर्द हों या औरत, तकरीबन सब ने हाथ में गिलास पकड़ रखा था. शराब पानी की तरह बह रही थी. एक कोने में खड़ा मनोहर बिना कोई खास रुचि के तमाशा देख रहा था. मनोहर का दोस्त अशोक उस के पास आया और उस ने उसे एक गिलास पकड़ाने की कोशिश की.

‘तुझे अकेले खड़े बोर होते हुए देख कर मुझे बहुत दुख होता है,’ उस ने कहा, ‘यह ले व्हिस्की, पी. शायद यह तुझे किसी लड़की से बात करने की हिम्मत दे.’ मनोहर ने सिर हिलाया, ‘तुम जानते हो कि मैं शराब बहुत कम पीता हूं. और पार्टी के बाद, जब कार खुद चला कर घर जाना होता है, जैसाकि आज, तब तो मैं शराब की तरफ देखता भी नहीं हूं.’

‘छोड़ यार,’ अशोक ने फिर गिलास मनोहर की ओर बढ़ाया, ‘एक पैग से क्या होता है. मैं तो हर पार्टी में 5-6 पैग पी कर भी कार चला कर सहीसलामत घर पहुंचता हूं.’ मनोहर मना करता गया, पर अशोक नहीं माना. आखिर में तंग आ कर मनोहर ने काफी अनिच्छा से गिलास ले लिया. शामभर मनोहर ने बस वही एक पैग धीरेधीरे पिया, जिस का असर उस पर तकरीबन न के बराबर था. रात काफी हो चुकी थी. जब मनोहर ने होटल की पार्किंग से अपनी गाड़ी निकाली और घर की तरफ चला, हलका कोहरा छाया हुआ था, पर सड़क साफ दिखाई दे रही थी. वाहनों की भीड़ कम थी. मनोहर ने अपनी कार की रफ्तार 50 और 60 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच में ही रखी थी. उसे सामने चौराहे पर बत्ती हरी दिखाई दी. इसलिए मनोहर ने रफ्तार कम नहीं की. अचानक उस के बिलकुल सामने सैलफोन पर बात करता एक युवक सड़क पार करने लगा.

मनोहर ने ब्रैकपैडल जोर से दबाया पर तब तक देर हो चुकी थी. कार युवक से टकराई और वह तकरीबन 5 मीटर आगे जा कर गिरा. मनोहर ने कार रोकी और युवक के पास दौड़ कर पहुंचा. मनोहर ने उस का चेहरा गौर से देखा. उस की आंखें बंद थीं और वह बेहोश लग रहा था. मनोहर ने उसे उठा कर कार में रखा और नजदीक वाले अस्पताल की ओर चला. पर तब उसे खयाल आया कि अगर वह स्वीकार कर ले, और पुलिस को उस की सांस में शराब मिले, तो उसे शायद जेल जाना पड़े, यह सोचते हुए मनोहर ने अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड से कुछ दूरी पर कार रोकी और युवक को उठा कर अंदर ले गया. वहां एक वार्ड बौय को सौंप कर बोला, ‘ऐक्सिडैंट हुआ है. मैं इस की मां को लेने जा रहा हूं,’ और वहां से भाग गया. 2 दिन के बाद अखबार के अंदर के कोने में उस ने पढ़ा कि उस रात, किसी अज्ञात व्यक्ति ने एक अधमरे युवक का शव अस्पताल में छोड़ा था और फिर वहां से लापता हो गया था. उसी रात से मनोहर को धुंध वाला सपना आने लगा. मनोहर अपनी विधवा मां के साथ रहता था. इन सपनों के कारण उस की रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ाबहुत बदलाव जो आया, वह उस की मां की नजरों से छिप तो नहीं सकता था, पर जब भी वे इस मामले में कोई सवाल करती थीं, तो मनोहर बात टाल जाता था.

मनोहर 28 साल का हो चुका था. अच्छी नौकरी कर रहा था. उस की मां चाहती थीं कि वे जल्दी से जल्दी मनोहर की शादी कर दें, ताकि दिनभर बात करने के लिए उन्हें एक बहू मिल जाए और साल के अंदर वंश चलाने के लिए एक पोता. मनोहर भी शादी करने की सोच रहा था, पर हादसे के बाद से उस का मिजाज बदल गया. शादी की बात उस के दिमाग से निकल सी गई. बस, एक बात बारबार उस के मन में आती, ‘मेरी लापरवाही के कारण किसी ने अपना बेटा खो दिया था.’ अपने दोष को भुलाने के लिए मनोहर दिनरात काम में जुटा रहने लगा. दिन में तो दफ्तर की चहलपहल में उस का ध्यान बंट जाता था पर रात को, खासकर धुंध वाला सपना आने के बाद, उस पर उदासी छा जाती थी. उस रात के बाद उस ने कभी शराब को हाथ न लगाया और कंपनी की पार्टियों में भी शराब परोसना बंद कर दिया. हादसे के 6 महीने बाद मनोहर के दफ्तर में एक नई लड़की भरती हुई. उस का नाम मीना था और वह सीधे कालेज से बीए करने के बाद नौकरी करने आई थी. मीना को उस का काम समझाने की जिम्मेदारी मनोहर को सौंपी गई. मीना काफी बुद्धिमान थी और उस में काम सीखने का जोश भी था. मनोहर उस की लगन से बहुत खुश था. धीरेधीरे मनोहर मीना की ओर आकर्षित होने लगा और उसे लगने लगा कि मीना उस के लिए एक आदर्श जीवनसाथी बन सकती है. उस के साथ शादी कर के जिंदगी काफी मजे में कट सकेगी. पर शराफत के भी कुछ नियम होते हैं. मनोहर ने अपनी भावनाओं के बारे में मीना को तनिक भी ज्ञान होने नहीं दिया.

एक दिन सुबह मीना मनोहर के केबिन में आई.

‘‘गुड मौर्निंग, सर.’’

‘‘गुड मौर्निंग, मीना,’’ मनोहर ने जवाब दिया.

‘‘जन्मदिन मुबारक हो, सर. हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘धन्यवाद,’’ मनोहर बोला, ‘‘पर मैं हैरान हूं. आज तक तो इस दफ्तर में किसी ने मुझे जन्मदिन की बधाई नहीं दी. तुम्हें कैसे पता चला कि आज मेरा बर्थडे है?’’ मीना पहले थोड़ा शरमाई और फिर उस ने जवाब दिया, ‘‘आप को याद होगा कि पिछले हफ्ते आप ने मुझे अपना ड्राइविंग लाइसैंस दिया था उस की फोटोकौपी बनवाने के लिए. मैं ने उसी में देख लिया था कि आप का जन्मदिन कब है.’’ उस की बात सुन कर मनोहर को बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगा कि शायद मीना उसे पसंद करने लगी है. उसी दिन दोपहर को बारिश हुई और फिर लगातार काफी तेज होती ही रही. मनोहर जानता था कि मीना लोकल बस से घर जाती थी. उस ने मीना को बुलाया और पूछा, ‘‘तुम्हारे पास छतरी है?’’

‘‘नहीं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘आज सुबह तो आसमान बिलकुल साफ था, इसलिए मैं अपनी छतरी घर पर ही छोड़ आई.’’

‘‘तब तो तुम घर जातेजाते बिलकुल भीग जाओगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, सर. मैं बारिश में कई दफे भीगी हूं.’’

‘‘पर तुम बीमार पड़ सकती हो,’’ मनोहर के स्वर में चिंता भरी हुई थी, ‘‘तुम रहती कहां हो?’’

‘‘बापूनगर में, सर,’’ मीना ने बताया.

‘‘वह मेरे घर जाने के रास्ते से कोई खास दूरी पर नहीं है. आज मैं तुम्हें कार से तुम्हारे घर पर छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं, सर, इस की जरूरत नहीं है,’’ मीना ने मनोहर की बात का विरोध किया, ‘‘आप को खामखां दिक्कत होगी. मैं खुद चली जाऊंगी रोज की तरह.’’ पर मनोहर ने मीना की एक न सुनी, और उसे अपनी कार से घर पहुंचाया. अगले दिन मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मैं ने आप के बारे में अपने मातापिता को बताया. वे बहुत खुश थे कि आप जैसे बड़े अफसर ने मुझ पर एहसान किया और मुझे भीगने से बचाया. वे आप से मिलना चाहते हैं. हमारे यहां किसी दिन चाय पीने आइए.’’

‘‘जरूर आऊंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया. मन ही मन उस ने सोचा कि यह अच्छा मौका होगा, यह तय करने के लिए कि मीना से मेरी शादी करने की कितनी संभावना है. कुछ दिन बाद मनोहर को मीना के साथ चाय पीने का मौका मिला. उन के दफ्तर में यह ऐलान हुआ कि अगले दिन शाम को शहर में बड़े जुलूस के कारण सड़कें बंद कर दी जाएंगी, इसलिए दफ्तर में 2 घंटे पहले छुट्टी होगी. मनोहर ने मौके का फायदा उठा कर मीना को सूचित कर दिया कि अगले दिन वह मीना के साथ उस के घर जाएगा. अगली शाम 4 बजे जब छुट्टी मिली तो मनोहर मीना को ले कर उस के घर की ओर चला. रास्ते में उस ने मीना के बारे में उस से जानकारी हासिल करने की कोशिश की.

‘‘तुम्हें किस तरह की फिल्में पसंद आती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो टीवी में आ जाएं, वही देखती हूं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘सिनेमाहौल में जाने का मौका सिर्फ वीकेंड पर मिलता है और तब भीड़ के कारण टिकट नहीं मिलता.’’

‘‘तुम्हारे कितने भाईबहन हैं?’’ मनोहर ने आगे बढ़ कर सवाल किया.

‘‘मेरा एक भाई था, पर पिछले साल एक हादसे में उस का देहांत हो गया,’’ यह कहतेकहते मीना की आवाज कुछ टूट सी गई. मनोहर को लगा कि जैसे उस ने कोई पुराना घाव कुरेद दिया है. उस ने ‘आई एम सौरी’ कहा और बाकी रास्तेभर चुप ही रहा. मीना का घर एक मिडल क्लास दो बैडरूम का अपार्टमैंट था. उस के मातापिता बड़े प्यार से मनोहर से मिले. मीना के पिता ने तकरीबन 35 साल नौकरी करने के बाद भारतीय रेलवे से अवकाश प्राप्त किया था. बैठक में बैठ कर वे और मनोहर आने वाले चुनाव के बारे में बात करने लगे. मीना और उस की मां अंदर जा कर चाय का बंदोबस्त करने लगीं. बात करतेकरते मनोहर की नजर इधरउधर घूम रही थी. अचानक उसे बड़े जोर का झटका लगा और वह हैरान रह गया. सामने दीवार पर एक बड़ी सी तसवीर लगी हुई थी, जिस पर पुष्पमाला पड़ी हुई थी. और तसवीर उसी नौजवान की थी जो मनोहर की कार के नीचे आ गया था. मनोहर अपनी आंखों पर विश्वास खो बैठा.

‘‘आज के नेता अपनी कुरसी की ज्यादा और जनता की खुशहाली की चिंता कुछ कम ही करते हैं…’’

‘‘माफ करना सर,’’ मनोहर ने उन की बात काटी, ‘‘पर क्या मैं पूछ सकता हूं कि दीवार पर लगी यह फोटो किस की है?’’

मीना के पिता एकदम चुप हो गए. फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘यह हमारा इकलौता बेटा प्रशांत था, मीना का भाई. पिछले साल एक दुर्घटना में इस का देहांत हो गया. पर इस के बारे में तुम मीना या उस की मां के सामने कुछ नहीं पूछना. वे दोनों अपना गम अभी तक भुला नहीं पाई हैं. इस के बारे में सोच कर वे आज भी बहुत भावुक हो जाती हैं.’’

मनोहर का सिर चकराने लगा. उस ने सोचा, ‘जिस लड़की से मैं शादी करना चाहता हूं, उसी के इकलौते भाई की मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं.’ बाकी शाम कैसे कटी, मनोहर को ठीक से याद नहीं. कुछ खाया, कुछ बोला, सबकुछ स्वचालित था. मीना की मां ने उस की फैमिली के बारे में पूछा. जब उस ने यह बताया कि उस की शादी अभी तक नहीं हुई है, तो मीना के मांबाप ने नजरें मिलाईं. पर खयालों में डूबे हुए मनोहर ने कुछ नहीं देखा. मीना के साथ एक आनंदमय जिंदगी बिताने के उस के सपने चूरचूर हो गए थे. तकरीबन 1 महीना बीत गया. एक दिन, बातचीत के दौरान, मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मेरे मातापिता मेरी शादी कराना चाहते हैं. वे मेरे लिए दूल्हा ढूंढ़ रहे हैं. अगर आप की नजर में कोई योग्य लड़का हो तो उन्हें सूचित कर दें. वे जातिपांति को नहीं मानते हैं, न ही कुंडली मिलवाना जरूरी समझते हैं, पर लड़का कामकाजी होना चाहिए. और यह भी खयाल रखें कि हम कोई खास दहेज नहीं दे सकेंगे.’’

‘‘मैं देखता हूं. अगर कोई मिल गया तो अवश्य उन्हें बता दूंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया, पर मन ही मन वह अपनेआप को कोसने लगा. वह जानता था कि वह मीना के लिए लड़का कभी नहीं ढूंढ़ेगा. कुछ दिन बाद मीना ने अपनी शादी की बात फिर छेड़ी. उस ने कहा, ‘‘मेरी शादी के दौरान मुझे बस एक ही गम रहेगा.’’

‘‘वह क्या?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘वह यह कि मेरा प्यारा भाई प्रशांत मुझे दुलहन के रूप में देखने के लिए वहां नहीं होगा. वह हमेशा कहता था कि मेरी शादी में वह खूब नाचेगा,’’ मीना की आवाज में निराशा थी.

‘‘यह तो उचित है,’’ मनोहर ने माना.

‘‘काश, वह उस दिन दोपहर के खाने के तुरंत बाद अपने दोस्तों के साथ स्विमिंग पूल नहीं गया होता.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘आप को पता नहीं कि प्रशांत की मौत कैसे हुई?’’ मीना ने पूछा. और बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘‘वह लंच के फौरन बाद तैरने गया. पूल में अचानक उस के पेट में मरोड़ उठने लगी और वह डूब कर मर गया. उस के दोस्तों ने और वहां मौजूद लाइफगार्ड ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर शायद उस की मौत का वक्त आ चुका था. एक हफ्ते पहले ही वह सैलफोन पर बात में व्यस्त हालत में एक कार के रास्ते में आ गया था. पर लगता है कार कोई शरीफ आदमी चला रहा था क्योंकि उस की गलती नहीं होने पर भी उस ने प्रशांत को अस्पताल पहुंचाया. और फिर गायब हो गया. उस हादसे में तो वह बच गया लेकिन…’’ मनोहर को लगा कि जैसे एक पहाड़ उस के सिर पर से उठ गया हो. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया कि अगले ही दिन वह मीना के घर जा कर उस के मांबाप से मिल कर मीना का हाथ मांगेगा. और उस को यकीन था कि उस दिन के बाद वह डरावना सपना उसे फिर कभी नहीं आएगा.

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