मैं अपने बॉयफ्रेंड से शादी करना चाहती हूं पर मेरे घरवाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है और एक कंपनी में काम करती हूं. मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. मगर समस्या यह है कि मैं उच्च जाति की हूं और लड़का पिछड़ी जाति का घर वाले इस रिश्ते के लिए शायद ही तैयार हों. कृपया उचित सलाह दें?

ये भी पढ़ें- मेरी पत्नी को सेक्स में इंटरेस्ट नहीं है, मैं क्या करूं?

जवाब

आज के समय में अंतर्जातीय विवाह आम हैं. समाज का बड़ा वर्ग अब संकीर्ण विचारधारा से बाहर निकल कर ऐसे रिश्तों को अपना रहा है. जातिप्रथा, ऊंचनीच आदि सब बेकार की बातें हैं. बेहतर होगा कि आप अपने घर में
बातचीत चलाएं और मन की बात घर वालों को खुल कर बताएं. अगर वे नहीं मानते तो कोर्ट मैरिज कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- मैं एक तांत्रिक से प्यार करती हूं, क्या करूं?

लड़के की उम्र अगर 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल हो तो उन्हें आपसी रजामंदी से शादी करने से कोई नहीं रोक सकता.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दूसरी जाति में शादी, फायदे ही फायदे

किसी ब्राह्मण परिवार में पलाबढ़ा अर्जुन जाति के फर्क या भेदभाव को नहीं मानता था. अपनी पढ़ाई पूरी करतेकरते उसे एक दूसरी जाति की लड़की से प्यार हो गया. उस ने अपने परिवार को बताया, तो घर में कुहराम मच गया. अर्जुन के पिता ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें ब्राह्मण लड़की से ही शादी  करनी है, नहीं तो हम तुम्हारे टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.’’ अर्जुन ने अपने मातापिता को बहुत समझाया, पर किसी ने उस की एक न सुनी. उसे समझ आ गया कि परिवार का साथ नहीं मिलेगा और उन्हें एकदूसरे से दूर कर दिया जाएगा. अर्जुन उस लड़की रीता को ले कर मिरजापुर से दिल्ली आ गया, जहां वह कुछ दिन अपने दोस्त के घर रहा और वहीं उन्होंने आर्यसमाज रीति से शादी कर ली. उस के दोस्त ने उसे नौकरी भी दिलवा दी.

अर्जुन का कहना है, ‘‘सब को छोड़ कर हमें यहां आना पड़ा. मैं अब किसी को अपना पता भी नहीं दे सकता. अगर पता दे दिया, तो आज भी समस्या खड़ी हो सकती है. ‘‘मैं ने सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से मदद चाही, पर किसी से कोई मदद नहीं मिली. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो मेरे जैसे लोगों की मदद करे. हमारा कानून दूसरी जाति में शादी करने की इजाजत देता है, पर उन लोगों की हिफाजत नहीं कर पाता, जो अपनी जाति से बाहर शादी कर लेते हैं.

‘‘जाति और धर्म के नाम पर प्यार को कब तक दबाया जाता रहेगा  आजादी के इतने साल बाद भी यही सुनने को मिलता है कि ब्राह्मण लड़के को ब्राह्मण लड़की से ही शादी करनी है, नीची जाति की लड़की से नहीं. ‘‘जीवनसाथी चुनने का हक सब को मिलना चाहिए. धर्म और जातिवाद की इस सामाजिक बुराई ने कई जिंदगी बरबाद की हैं.’’

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास करे शर्मसार

दूसरी जाति में शादी करने का तो भारतीय समाज की एकता बढ़ाने में बड़ा योगदान हो सकता है. ऐसी शादियों से नुकसान तो कुछ है ही नहीं, फायदे ही फायदे हैं, जैसे:

* दूसरी जाति में शादी के चलन को अपना कर समाज में छोटी मानी जाने वाली जातियों को भी ऊपर उठने का मौका दिया जा सकता है.

* ऐसी कामयाब शादियां आने वाली पीढ़ी को भी धार्मिक पाखंडों और आडंबरों से छुटकारा दिलाने में मददगार होती हैं.

* दूसरी जाति में शादी करने वाले ही अपने समाज के साथसाथ दूसरे समाज के प्रति भी सब्र के साथ अपने विचार रखते हैं.

* सामाजिक विरोध का सामना करने के लिए ऐसे पतिपत्नी को बहुत मजबूत होना पड़ता है. एकदूसरे का साथ देते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए यह रिश्ता मजबूत होता चला जाता है. भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए समाज में ऐसी शादियां खुशी से स्वीकार कर लेनी चाहिए.

* लड़कालड़की दोनों ने अपनी मरजी से शादी की होती है, इसलिए वे रिश्ता निभाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ते. दोनों ही यह सोचते हैं कि उन्हें ही एकदूसरे का साथ देना है. परिवार वालों से कोई उम्मीद नहीं होती और किसी को अपने फैसले का मजाक उड़ाने का मौका नहीं देना होता है. पतिपत्नी ज्यादा ईमानदारी से यह रिश्ता निभाने की कोशिश करते हैं.

* इन के बच्चे भी हर धर्म का आदर करना सीख जाते हैं. दोनों धर्मों के बुरे रीतिरिवाज छोड़ कर पतिपत्नी अपनी सुखी शादीशुदा जिंदगी के लिए नई दुनिया बसा कर केवल सुखदायी बातों पर ही ध्यान देते हैं.

ये भी पढ़ें- अंजलि इब्राहिम और लव जेहाद!

* समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, आडंबर जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए ऐसी शादियां बड़ी फायदेमंद साबित होती हैं.

* सामाजिक भेदभाव, एकदूसरे के धर्म को नीचा दिखाना, यह सब रोकने के लिए समाज को दूसरी जाति में शादी स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.

* दोनों धर्मों के त्योहारों का मजा ले कर जिंदगी में एक जोश सा बना रहता है, मिलजुल कर एकदूसरे के रंग में रंग कर जीने का मजा ही कुछ और होता है.

* आजकल के बच्चे तो गर्व से अपने दोस्तों को बताते हैं कि उन के मम्मीपापा ने दूसरी जाति में शादी की है. ऐसे नौजवान अपने मातापिता को आदर से देखते हैं. उन के मातापिता ने यह रिश्ता जोड़ने के लिए कितने सुखदुख झेले हैं, यह बात उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाती है.

* जहां औनर किलिंग जैसी शर्मनाक बातें समाज को गिरावट की ओर ले जाती हैं, वहीं ऐसी शादियों के समर्थन में उठे कदम उम्मीद की किरण बन कर राह भी दिखाते हैं.

* बड़े शहरों में तो अब उतना विरोध नहीं दिखता, पर छोटे शहरों, कसबों में आज भी होहल्ला मचाया जाता है. धर्म की जंजीरों में जकड़े लोग दूसरे समुदाय को अच्छी नजर से देख ही नहीं पाते. हर धर्म अपने को ही अच्छा कहता है. ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर जब यह कहा जाता है कि छोटा शहर, छोटी सोच, तो ऐसे लोगों को बुरा भी बहुत लगता है, पर अपने को बदलने के लिए भी ये लोग कतई तैयार नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- महुआ के पेड़ का अंधविश्वास

* दूसरी जाति में शादी करने वालों के बच्चों में भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा मजबूत जींस होते हैं. ये बच्चे एक ही जाति के पतिपत्नी के बच्चों से ज्यादा होशियार होते हैं.

* ऐसी शादियों का एक बड़ा फायदा यह भी है कि दहेज प्रथा का यहां कोई वजूद नहीं रहता.

* जहां एक ओर अपनी जातबिरादरी में शादी तय करते समय लड़की की बोली लगाई जाती है, वहीं दूसरी तरफ ऐसी शादी सिर्फ प्यार, विश्वास और समर्पण पर टिकी होती है. दहेज, रुपएपैसे से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. मिलजुल कर घर बसाते हैं. न कोई लालच, न किसी से कोई उम्मीद.

तो जब समाज की बेहतरी के लिए दूसरी जाति में शादी करने के इतने फायदे हैं, तो लोगों को एतराज क्यों है ? वैसे भी ‘जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी’ की तर्ज पर प्यार करने वालों का साथ दे कर उन्हें सुखी शादीशुदा होने की शुभकामनाएं ही क्यों न दें. समाज से धार्मिक आडंबर, जातिवाद, पाखंड, अंधविश्वास, दहेज मिट जाएगा, तो भला तो सब का ही होगा न.

ये भी पढ़ें- धोखाधड़ी: क्लर्क से बना कल्कि अवतार

सहारे की जरूरत करवाती है बुढ़ापे में शादी

उस समय सलोनी जायसवाल की उम्र करीब 45 साल थी. उन के पति की मृत्यु हो गई. उन्नाव की रहने वाली सलोनी के कोई संतान नहीं थी. पति के न रहने पर घरपरिवार का उपेक्षाभाव और भी ज्यादा बढ़ गया था. सलोनी को लग रहा था जैसे पति के साथ उन की खुशियां भी खत्म हो गईं. बच्चे होते तो शायद उन का सहारा मिलता.  परिवार और समाज की नजरों में विधवा किसी अभिशाप से कम नहीं होती है. उम्र के इस दौर में जीवनसाथी का साथ छूट जाना मौत से बदतर महसूस होने लगा था.

उपेक्षा के इसी भाव से दुखी सलोनी एकाकीपन का शिकार हो गईं. परिवार के लोग उन को बीमार मान कर उन से दूर रहने लगे. ऐसे में करीब 4 साल पहले सलोनी को सहारा दिया वीनस विकास संस्थान की डा. निर्मला सक्सेना ने.

वीनस विकास संस्थान लखनऊ के जानकीपुरम इलाके में एक वृद्धाश्रम चलाता है. डा. निर्मला सक्सेना को जब सलोनी की हालत का पता चला तो वे उन को अपने साथ लखनऊ ले आईं.  वृद्धाश्रम में कुछ दिनों तक अपनी ही उम्र की महिलाओं के साथ रह कर सलोनी को कुछ अच्छा महसूस होने लगा. उन की तबीयत भी मानसिक रूप से बेहतर होने लगी और वे खुश भी रहने का प्रयास करने लगीं. धीरेधीरे समय बीतने लगा. सलोनी को एक बार फिर मजबूत सहारे की तलाश होने लगी.

अपने मन की बात सलोनी ने डा. निर्मला सक्सेना से कही. शुरुआत में उन की बात को सुन कर सभी को थोड़ी हंसी आई. वृद्धाश्रम में काम करने वाले दूसरे लोगों ने तो मान लिया कि सलोनी की मानसिक हालत फिर से खराब होने लगी है. इस उम्र में कहीं कोई ऐसी बात करता है. लेकिन  डा. निर्मला सक्सेना को लगा कि सलोनी की इच्छा उचित है. वे इस प्रयास में लग गईं कि सलोनी को सदासदा के लिए अपनाने वाला कोई आगे आए.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे 60 साल की सलोनी के लिए दूल्हा खोजा जाए. उन्होंने अपने जानने वालों और वृद्धाश्रम में काम करने वालों को दूल्हा तलाश करने में जुटा दिया. 60 साल की दुलहन के लिए दूल्हा तलाश करना सरल काम नहीं था.  वृद्धाश्रम में काम करने वाले एक व्यक्ति कोे पता चला कि हरदोई जिले में कृष्ण नारायण गुप्ता रहते हैं. उन की उम्र 62 साल की है. उन की पत्नी की मौत  3 साल पहले हो चुकी है. उन के 3 बेटे और बहू हैं. वे अपनी मिठाई की दुकान चलाते हैं. वे शादी करना चाहते हैं. हरदोई में लोग उन को कान्हा सेठ के नाम से जानते हैं. इस बात का पता चलते ही डा. निर्मला सक्सेना ने हरदोई जा कर उन से बात की. वे उन के घरपरिवार के लोगों से मिलीं. बेटेबहू से बात की. किसी को भी इस शादी से कोई परेशानी नहीं होने वाली थी.

कान्हा सेठ भी सलोनी को अपनी पत्नी बनाने के लिए उत्साहित हो गए. वे समय तय कर के एक दिन सलोनी को देखने के लिए लखनऊ आ गए. सलोनी और कान्हा सेठ ने एकदूसरे को देखा और फिर तय हो गया कि अब बची जिंदगी वे एकसाथ काटेंगे. शादी की तारीख 24 फरवरी तय हो गई. अब शादी की तैयारी करने का जिम्मा डा. निर्मला सक्सेना पर आ पड़ा था. वे अपनी टीम और कुछ सामाजिक लोगों के साथ शादी की तैयारी करने में जुट गईं. अपनी शादी की बात सुनते ही सलोनी ने कहा कि वे अपना मेकअप किसी ब्यूटीपार्लर में ही कराएंगी.

फैशन डिजाइनर और ब्यूटीशियन रीमा श्रीवास्तव ने सलोनी का मेकअप किया और लहंगाचुनरी उपलब्ध कराई. मेकअप देख कर कोई कह नहीं सकता था कि सलोनी की उम्र 60 साल है.  24 फरवरी को सलोनी और कान्हा सेठ ने एकदूसरे को जयमाला पहना कर पतिपत्नी के रूप में कुबूल कर लिया. इस खुशी में दोनों ने सब से पहले एकदूसरे को रसगुल्ला खिलाया. शादी की खुशी में शामिल होने के लिए हेल्पेज इंडिया के डायरैक्टर ए के सिंह और उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग के लोग भी शामिल हुए. शादी के बाद कान्हा सेठ अपनी पत्नी सलोनी को ले कर अपने घर गए. वहां दोनों हंसीखुशी से अपना जीवन बिता रहे हैं.

शादी के बाद डा. निर्मला इस शादीशुदा जोडे़ से मिलने के लिए हरदोई उन के घर गईं जहां सलोनी अपने मायके जैसे वृद्धाश्रम को याद कर रही थी.  दरअसल, सभी को अपने जीवन में एक सहारे की जरूरत होती है और यह सहारा जीवनसाथी के रूप में ही हो सकता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें