भाभी के बहुत आग्रह करने पर वह उठी, बाथरूम गई, और हाथमुंह धोया. पर कपड़े तो वह सब वहीं छोड़ आई थी. मैले कपड़े पहन कर जब वह बाहर आईर् तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. भाभी अपनी उम्दा लाल साड़ी लिए उस के इंतजार में खड़ी थीं.
‘‘जरीना, यह लो. इसे पहन लो. मैं तब तक खाने का इंतजाम करती हूं.’’
‘‘मगर, भाभी…’’
‘‘मैं यह अगरमगर नहीं सुनने वाली. लो, इसे पहन लो.’’
भाभी के ये शब्द सुन कर उसे साड़ी लेनी पड़ी. भाभी साड़ी थमा कर रसोईघर में चली गईं और वह भी बुझे दिल से साड़ी पहन कर रसोईघर में जा पहुंची.
‘‘भैया कब आएंगे, भाभी?’’
‘‘अपने भैया की मत पूछो, जरीना. वरदी पहन ली तो सोचते हैं सारी जिम्मेदारी जैसे इन्हीं के कंधों पर है. मुहर्रम के दिनों में तो इस कदर मशगूल थे कि घर का होश ही नहीं रहा. एक दिन पहले सब को बुला कर चेतावनी दे दी कि ताजिए का जुलूस निकालना हो तो शांति से, नहीं तो सब इंस्पैक्टर अमजद खां सब को ठिकाने लगा देगा. नतीजा बड़ा खुशगवार रहा.
‘‘और अब होली का समय आ गया है. तुम तो जानती हो, इतने अच्छे त्योहार पर भी हिंदुओं, मुसलमानों में दंगाफसाद हो जाता है. वे यह नहीं समझते कि हम जो मुसलमान हुए हैं, वे अरब से नहीं आए बल्कि यहीं के हिंदू भाइयों से कट कर बने हैं. खैर छोड़ो, कहां की बातें ले बैठी हूं. बहुत दिनों के बाद आई हो. आराम से रहो. जब जी चाहे, अपने हबीब के पास चली जाना. हमारे हबीब तो अपनी बीवी से बात करने के बजाय थाने से ही प्यार किए बैठे हैं.’’
भाभी के अंतिम वाक्य पर वह हंस पड़ी, ‘‘अरे भाभी, फख्र करो आप को ऐसा शौहर मिला है जो अपनी ड्यूटी को तो समझता है.’’
‘‘अरी, तुम क्या जानो. अभी होली में उन का करिश्मा देखना. पूरे 20 घंटे की ड्यूटी कर रात को घर आएंगे. आते ही कहेंगे, ‘फरजाना, अरे होली के पेड़े तो खिलाओ जो कमला भाभी के यहां से आए हैं. तू तो कुछ बनाती नहीं.’ अब तुम ही सोचो, ऐसे खुश्क माहौल में किस का दम नहीं घुटेगा. कहने को तो कह देंगे, ‘अरी बेगम, पड़ोस में इतने लोग थे, डट कर खेल लेना था उन से. हम पुलिस वालों की होली तो दूसरे दिन होती है.’ और फिर दूसरे दिन, तौबातौबा, जरीना, तुम देखोगी तो घबरा जाओगी. इतना हिंदू भाई होली नहीं खेलते, जितना कि ये खेलते हैं. इन की देखादेखी महल्ले वाले भी इस जश्न में शामिल हो जाते हैं.’’
वह भाभी की बात टुकुरटुकुर सुनती रही.
‘‘भाभी, यह सब सुन कर दिल को बड़ा सुकून मिलता है. मुसलमानों और हिंदुओं के अनेक त्योहार हैं. अपने यहां जो महत्त्व ईद का है वही हिंदुओं के यहां होली का है. होली के रंगों में सारी दुश्मनी धुल जाती है.
मुझे तो 3 साल से होली खेलने का मौका नहीं मिला. वह भी इत्तफाक था कि होली से 2 माह पहले ही शादी हो गई. इस दरम्यान, मैं ने न गृहस्थी का सुख जाना, न पति का. मैं तो एक तरह से पैर की जूती बन कर रह गई हूं, जो पैरों में पड़ी बस घिसती रहती है और तले के बिलकुल घिस जाने के बाद फेंक दी जाती है,’’ कहते हुए उस ने भाभी को अपनी पीठ दिखलाई, जिस पर मार के काले निशान पड़े थे.
भाभी ने उन्हें देख कर अपनी आंखें मूंद लीं. फिर थरथराते लबों से बोलीं, ‘‘पगली, मैं तो उस दिन ही समझ गईर् थी जब तेरे घर आई थी. पर कह न सकी, तुम्हारे घर में लोग जो मौजूद थे. आने के बाद इन से कहा तो ये बुरी तरह तमतमा उठे थे. बोले कि उस करीम के बच्चे को अभी सबक सिखाता हूं. वह तो मैं ने बड़ी मुश्किल से समझाया, नहीं तो ये तो तुम्हारे करीम को हथकड़ी लगा कर थाने में बिठला देते.’’
‘‘अब तुम आ गई हो, तुम्हारे खयालात से हम वाकिफ हो गए हैं. चलो, अब कोई कार्यवाही करने से फायदा भी रहेगा. हां, अपने को अकेला मत समझना. हम सब तुम्हारे साथ हैं. तुम तो पढ़ीलिखी लड़की हो. अब तक तो तुम्हें बगावत कर देनी चाहिए थी. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद.’’
जरीना और फरजाना आपस में बातें कर ही रही थीं कि अमजद भी आ पहुंचा. वरदी में उस का चेहरा रोब से दमक रहा था. आते ही वह सोफे पर बैठ कर चिल्लाया, ‘‘फरजाना.’’
‘‘आई.’’
फरजाना ने जातेजाते जरीना से धीमे से कहा, ‘‘देखा जरीना, हमारे मियां को हमारे बिना चैन नहीं. पर तुम यहीं रहना, मैं उन्हें हैरत में डालना चाहती हूं.’’
फरजाना तेजी से बाहर गई और जरीना अपनी जिंदगी की तुलना फरजाना भाभी से करने लगी. कितनी मुहब्बत है इन दोनों में और एक वह है, जिसे कभी भी प्यार के दो शब्द सुनने को नहीं मिले.
बाहर से मुहब्बतभरा स्वर अंदर आ रहा था, ‘‘क्या बीवी के बिना चैन नहीं पड़ता?’’
‘‘यह बीवी चीज ही ऐसी होती है.’’
अमजद का जवाब सुन कर जरीना मुसकरा उठी.
‘‘अरे, छोडि़ए भी. लगता है आज आप ने कुछ पी रखी है.’’
‘‘अरी बेगम, जिस दिन से तुम से शादी हुई है, हम तो बिन पिए ही मतवाले हो गए हैं.’’
‘‘ओ जरीना बी, अपने भाईर् को समझाओ.’’
भाभी की आवाज सुन कर जरीना फौरन बाहर आ गई और अमजद को सलाम कर के मुसकराने लगी.
अमजद जरीना को देख कर घबरा गया, फिर पसीना पोंछ कर सलाम का उत्तर देते हुए बोला, ‘‘कब आई, मुन्नी?’’
‘‘चंद लमहे हुए हैं, भाईजान.’’
‘‘फरो डार्लिंग, हमारी बहन को नाश्ता वगैरा दिया?’’
‘‘वह तो आप का इंतजार कर रही थी.’’
‘‘तो चलो. सब एकसाथ बैठ कर खाएं.’’
खाने के दौरान बातों का क्रम चला. तो अमजद बोला, ‘‘तेरे आने का कारण मैं समझ गया हूं, जरीना. मैं जानता हूं, करीम निहायत घटिया दरजे का इंसान है. उस पर बातों का नहीं, डंडे का असर होता है. मैं तो तेरा निकाह उस के साथ करने के सख्त खिलाफ था. मगर तुम तो जानती हो, अपने मांबाप का रवैया. खैर, तू फिक्र मत कर, उस साले को मैं ठिकाने लगाऊंगा. वैसे, साला तो मैं हूं उस का पर अब उलटा ही चक्कर चलाना पड़ेगा.’’
अमजद के शब्दों से फरजाना इतनी हंसी कि उसे उठ कर बाहर चले जाना पड़ा. फिर बाथरूम में उलटी करने की आवाज आई. जरीना इस आवाज से उठ कर फौरन उधर भागी. उस ने भाभी को पानी दे कर कुल्ला करने में मदद की और फिर उसे संभाल कर अंदर ले आई और बिस्तर पर लिटा दिया. फिर अमजद की ओर देखते हुए बोली, ‘‘भैया, ऐसा मजाक मत करिए, जिस से किसी की जान पर बन आए.’’
‘‘अरी, इस का टाइम ही खराब है. मैं हमेशा कहता हूं ठूंसठूंस कर मत खा. वह अंदर वाला फेंक देगा. यह मानती नहीं है, अब इसे तू ही समझा.’’
‘‘यानी कुछ है.’’
‘‘बिलकुल.’’ अमजद कहने को कह गया. पर फिर तेजी से झेंप कर भाग खड़ा हुआ. इधर फरजाना भी शरमा गई थी.
‘‘भाभी, हमारा इनाम.’’
‘‘पूरा घर तुम्हारा है, जो चाहे ले लो.’’
‘‘वह तो ठीक है, भाभी, पर हम तो चाहते हैं कि वह होने वाला पहले हमारी गोद में खेले.’’इस पर फरजाना ने प्यार से जरीना के गाल पर एक हलकी सी चपत लगा दी.