Family Story In Hindi: मोटी बहू – भव्या को देख गीता की ख्वाहिश कैसे अधूरी रह गई

Family Story In Hindi: गीता और विपिन बहुत उत्साहित थे. आज उन का बेटा पराग अपनी गर्लफ्रैंड भव्या को उन से मिलवाने लाने वाला था. पराग से 5 साल छोटी वन्या अभी पढ़ रही थी. पराग इंजीनियर था. भव्या उस की कुलीग थी. आधुनिक सोच वाले गीता और विपिन को पराग की पसंद की लड़की को अपनी बहू बनाने में कोई आपत्ति न थी.

भव्या पंजाबी परिवार से थी जबकि गीता और विपिन ब्राह्मण थे. किसी के लिए जातिधर्म का महत्त्व नहीं था. भव्या के मातापिता की कुछ वर्ष पहले एक ऐक्सिडैंट में मृत्यु हो गई थी. जालंधर में रह रहे उस के मामामामी ही उस के गार्जियन थे.

भव्या मुंबई के अंधेरी इलाके में 4 लड़कियों के साथ एक फ्लैट शेयर कर के रहती थी. गीता ने बड़े मन से भव्या के लिए लंच तैयार किया था. गीता, विपिन और वन्या फिगर के प्रति एकदम सचेत रहते थे. गीता और विपिन तो फिगर और स्वास्थ्य के प्रति इतने सजग थे कि उन्हें देख कर पता ही नहीं चलता था कि उन के इतने बड़े बच्चे हैं, तीनों एकदम स्लिमट्रिम लेकिन जंकफूड के शौकीन पराग ने बाहर का खाना खाखा कर काफी वजन बढ़ा लिया था, जिस के लिए तीनों उसे टोकते रहते थे. गीता ने तो मजाकमजाक में कई बार कहा था, ‘पराग, आजकल लड़कियां भी मोटे लड़कों को पसंद नहीं करतीं, मैं तुम्हारे लिए लड़की कहां से ढूंढंगी. तुम एक काम करना, खुद ही ढूंढ़ लेना.’

विपिन का भी यही कहना था, ‘कुछ ऐक्सरसाइज करो, शरीर फैलता जा रहा है, शादीब्याह सब होना बाकी है.’ लेकिन पराग के कान पर कभी जूं नहीं रेंगी और अब जब शरमाते हुए पराग ने पिछले हफ्ते भव्या के बारे में बताया तो सब एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. बच्चों से फ्रैंक गीता ने कहा, ‘‘तुम्हें कैसे मिल गई गर्लफ्रैंड?’’

पराग ने हंस कर कहा, ‘‘बस, मिल गई, आप बेकार में मुझे इतने दिनों से ताने मार रही थीं.’’

और आज संडे को पराग भव्या को ले कर आ रहा था. पराग ने गीता से पूछा था, ‘‘मौम, आप अपनी बहू में कौन सा गुण देखना चाहेंगी?’’

गीता बेटे के सिर पर हाथ फेर कर बोली थीं, ‘‘बस, तुम्हारे जैसी.’’

‘‘तो मौम, बी हैप्पी, वह बिलकुल मेरे जैसी है.’’

तीनों पराग और भव्या का इंतजार कर रहे थे. मौडर्न गीता टौप और जींस में थी. डोरबैल बजी. अधीरता से गीता ने ही दरवाजा खोला. पराग जिस पर्सनैलिटी के साथ अंदर आया, गीता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस ने बाहर फिर झांका, क्या भव्या इन के पीछे है. लेकिन बस, वही दोनों खड़े थे.

होने वाली बहू को देख कर गीता के चेहरे का रंग उड़ गया. लगा, पराग ने ठीक कहा था, वह बिलकुल उस के जैसी ही तो थी, एकदम गोरी, गोलमटोल. साफसाफ कहा जाए तो एक मोटी लड़की. वह मुसकराते हुए सब को हायहैलो कर रही थी. विपिन और वन्या भी बुत बने खड़े थे. पराग ने गला खंखारा और कहा, ‘‘डैड, मौम, वन्या, यह है भव्या.’’

विपिन ने सब से पहले अपने को सामान्य किया और मुसकराते हुए उसे अंदर आ कर बैठने के लिए कहा. वन्या भी भव्या के साथ ही बैठ गई. गीता को अपने को संभालने में काफी समय लगा. गीता ने औपचारिक हालचाल के बाद पूछा, ‘‘क्या लोगी, भव्या? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक?’’

‘‘मौम, कुछ ठंडा.’’

गीता किचन में गईं और टे्र में सब के लिए नीबूपानी, मिठाई, फू्रट्स और कुछ नाश्ता ले आईं. भव्या से बातें होती रहीं. गीता ने टे्र उस की तरफ खिसकाई, कहा, ‘‘लो बेटा, कुछ खाओ.’’

‘‘हां मौम, भूख तो लगी है, आज संडे था, सब फ्रैंड्स सो रही थीं, कुछ नाश्ता नहीं किया अभी तक. बस, एक सैंडविच और दूध पी कर चली थी, अंधेरी से ठाणे आने में वह तो हजम हो गया,’’ हंस कर उस ने मिठाई खानी शुरू की.

पराग ने भी उस का साथ दिया. विपिन और गीता की नजरें मिलीं, विपिन आंखोंआंखों में ही हंस दिए. नाश्ता खत्म होने तक भव्या सब से फ्री हो चुकी थी. खुल कर हंसबोल रही थी. घर में एक रौनक सी थी. वन्या भव्या को पूरा फ्लैट दिखा कर अपने रूम में बैठा कर बातें करने लगी. मूवी, म्यूजिक, कालेज, औफिस की खूब बातें होती रहीं. गीता लंच की तैयारी के लिए किचन में गईं तो भव्या भी आ गई.

‘‘मौम, कुछ हैल्प करूं?’’

‘‘नहींनहीं, तुम बैठो.’’

‘‘मौम, मिल कर करते हैं न,’’ फिर अपनेआप ही साइड में रखी प्लेट उठा कर सलाद काटने लगी. विपिन भी किचन में आ गए थे. भव्या हंसते हुए बोली, ‘‘मौम, आप को पता है, मुझे सलाद बिलकुल नहीं पसंद.’’

गीता ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘मुझे तो सौलिड चीजें खानी पसंद हैं, ये सलादवलाद तो डाइटिंग वालों की चीज लगती है मुझे. मौम, आप तीनों कितने स्लिम हैं. मैं और पराग तो अलग ही दिख रहे हैं घर में,’’ कह कर हंसी भव्या.

गीता हैरान थीं, क्या है यह लड़की, अपने मोटापे पर कोई शर्म नहीं. कोई चिंता नहीं.

भव्या ने फिर कहा, ‘‘मुझे खानेपीने का बहुत शौक है, मौम. मम्मीपापा को भी खानेपीने का बहुत शौक था,’’ कहते हुए भव्या थोड़ा उदास हुई, इतने में अंदर आते हुए पराग ने पूछा, ‘‘मौम, क्या बनाया है?’’

‘‘छोले, पनीर, आलूगोभी की सब्जी, रायता. बस, अब रोटी बना रही हूं.’’

भव्या ने चहक कर कहा, ‘‘मौम, पूरी बनाइए न. इस खाने के साथ गरमगरम पूरी कितनी अच्छी लगेंगी.’’

गीता चौंकीं. उन्हें झटका सा लगा, सोचा, ‘खुद पूरी जैसी क्यों हो गई यह लड़की, अब समझ में आ रहा है.’

पराग भी कहने लगा, ‘‘हां मौम, पूरी बनाओ न.’’

वन्या भी आ गई किचन में, बोली, ‘‘मौम, मैं तो रोटी ही खाऊंगी.’’

गीता ने कहा, ‘‘ठीक है, इन दोनों के लिए पूरी बना देती हूं.’’

गीता ने वन्या की हैल्प से खाना टेबल पर लगाया. गीता, विपिन और वन्या ने दोदो फुलके खाए. पराग और भव्या पूरी पर पूरी साफ करते रहे. गीता ने दोनों को देखा, ‘कैसे लग रहे हैं दोनों, शौक से खाते हुए मोटे गोलमटोल बच्चे, इन की शादी होगी तो कैसे लगेंगे दोनों. इस लड़की को फिगर से तो कोई मतलब ही नहीं है, क्या होगा इस का आगे,’ गीता मन ही मन पता नहीं क्याक्या सोचती रही.

सब खाना खा कर उठ गए. बातें होती रहीं, फिर भव्या ने कहा, ‘‘अच्छा मौम, अब मैं चलूंगी. आप सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा,’’ और अपना बैग उठा लिया फिर वन्या को गले लगा कर ‘बाय’ बोला और गीता व विपिन को ‘बाय मौम’, ‘बाय डैड’ बोल कर मुसकराती हुई आत्मविश्वास से भरे कदमों से चली गई. पराग से बस मुसकराहट का ही आदानप्रदान हुआ.

उस के जाने के बाद जब सब बैठे तो पराग ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘मौम, डैड, वन्या, कैसी लगी भव्या?’’

गीता तो कुछ बोल नहीं पाईं, विपिन ने कहा, ‘‘स्वभाव अच्छा लगा.’’

वन्या पराग को छेड़ते हुए हंस कर बोली, ‘‘भैया, जैसा नाम है वैसी ही भव्य पर्सनैलिटी है. मुझे तो अच्छी लगी.’’

गीता चुप थीं.

पराग ने कहा, ‘‘आप तो कुछ बोलो, मौम.’’

गीता ने एक ठंडी सांस भर कर कहा, ‘‘तुम्हें पसंद है न? बस, मेरे लिए यही महत्त्वपूर्ण है कि तुम खुश हो. अब शादी कब करनी है, बताओ. इस के मामामामी से फोन पर बात कर लेती हूं.’’

पराग ने जींस की जेब से झट से एक पेपर निकाल कर दिया, कहा, ‘‘यह है उस के मामा का फोन नंबर.’’

विपिन को हंसी आ गई, ‘‘वाह बेटा, बहुत जल्दी है शादी की.’’

फिर सब अपनेअपने रूम में थोड़ा आराम करने चले गए.

विपिन ने बराबर में लेटी गीता से पूछा, ‘‘क्या हुआ, पसंद नहीं आई भव्या? जानता हूं, क्यों? तुम्हें बेडौल फिगर पसंद नहीं है न. पराग भी तो स्लिमट्रिम नहीं है, कुछ तो बोलो गीता. चुप क्यों हो इतनी?’’

रोंआसी हो गईं गीता, ‘‘क्या सोचा था क्या हो गया. हमेशा एक फिगर कांशस स्मार्ट सी बहू का सपना देखती आई हूं. मेरी सहेलियां फिटनैस के प्रति मेरा शौक देख कर कहती हैं, ‘गीता, तुम तो जरूर एक मौडल जैसी बहू लाओगी ढूंढ़ कर,’ मैं ने भी गर्व से हां में गरदन हिलाई है हमेशा. इस उम्र में भी मैं फिगर का इतना ध्यान रखती हूं और यह लड़की तो जैसे फिटनैस और फिगर जैसे शब्द ही नहीं जानती और उस पर कितने गर्व से बता रही थी कि उसे खानेपीने का शौक है. मैं तो पराग के मोटापे पर गुस्सा होती थी और अब बहू भी मोटी, मेरी सहेलियां मेरा कितना मजाक उड़ाएंगी,’’ कहतेकहते उन का मुंह लटक गया.

विपिन ने शांत और प्यारभरे स्वर में कहा, ‘‘अरे, प्यार से समझाएंगे तो ध्यान रखना सीख जाएगी सेहत का, न मांबाप हैं न भाईबहन, अकेली जी रही है. हमारे साथ रहेगी तो प्यार से धीरेधीरे सब सिखा देंगे. तुम दिल छोटा मत करो. स्वभाव अच्छा है उस का, बस.’’

दिन बीत रहे थे, दिन में एक बार तो भव्या गीता को जरूर फोन करती, हालचाल पूछती. गीता को अच्छा लगता. वन्या से तो वह अकसर मैसेज में चैटिंग करती रहती. विपिन ने भव्या के मामा अनिल से दोनों के विवाह के बारे में बात कर ली थी. किसी पंडित से दोनों की कुंडली मिलाने के अंधविश्वास में विपिन और गीता बिलकुल नहीं पड़े. उन की सिंपल सी सोच थी, उन के बेटे को भव्या पसंद है, बस. भव्या का स्वभाव तो सब को अच्छा लगा ही था, बस गीता को जैसी स्लिम बहू चाहिए थी, भव्या उस कसौटी पर खरी नहीं उतरी थी. यही बात गीता को कचोटती थी कि उस की सहेलियां भव्या को देख कर जरूर मजाक बनाएंगी. अच्छी तरह जानती थी गीता अपनी सभी सहेलियों को.

एक महीने बाद सगाई का समय रखा गया. विपिन ने गीता से कहा, ‘‘अपनी फ्रैंड्स की लिस्ट बना लो.’’

‘‘नहीं, मैं अपनी फ्रैंड्स को नहीं बुला पाऊंगी, सीधा शादी में ही बुलाऊंगी.

नहीं तो सगाई से शादी तक ताने मारमार कर मेरा दिमाग खराब करती रहेंगी.

बस, सगाई की मिठाई भिजवा दूंगी सब के घर.’’

सब थोड़ीबहुत तैयारियों में व्यस्त हो गए, अनिल अपनी पत्नी रेखा के साथ आ कर एक होटल में रुके. विपिन और गीता ने उन्हें अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया लेकिन संकोचवश वे होटल में ही रुके. सब को एकदूसरे से मिल कर अच्छा लगा.

गीता ने किसी सहेली को नहीं बुलाया. बस, बच्चे और विपिन के दोस्त थे. तैयार हो कर भव्या अच्छी लग रही थी. चेहरा काफी आकर्षक था उस का. उस ने कई बार गीता से पूछा, ‘‘मौम, आप ने अपनी किसी फ्रैंड को नहीं बुलाया?’’

गीता ने यह कह कर टाला, ‘‘बस, सब को शादी पर ही बुलाऊंगी.’’

दोनों ने एकदूसरे को अंगूठी पहना दी, सगाई हो गई. अनिल और रेखा भव्या के भावी ससुराल वालों का व्यवहार देख कर बहुत खुश थे. शादी की तारीख 2 महीने बाद की पक्की हो गई. अनिल और रेखा चले गए, तय यही हुआ कि अनिल और रेखा ही कुछ खास रिश्तेदारों के साथ मुंबई आ जाएंगे.

विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं. भव्या और पराग वीकेंड में ही फ्री हो कर शौपिंग कर पाते थे. भव्या शनिवार को सुबह आती, पूरा दिन शौपिंग होती. गीता उसी की पसंद के कपड़े, ज्वैलरी दिलवा रही थीं. जब मीडियम, लार्ज साइज न आ कर भव्या को डबलएक्सएल आता, गीता मन ही मन झुंझला जातीं.

एक संडे पूरा परिवार शौपिंग पर निकला, गीता हैरान रह गईं जब भव्या ने कहा, ‘‘मौम, पिज्जा खाएंगे.’’

‘‘लेकिन बेटा, लंच कर के ही तो निकले हैं अभी.’’

‘‘तो क्या हुआ, मौम, शौपिंग करतेकरते कुछ खाने में बहुत मजा आता है.’’

पराग भी शुरू हो गया, ‘‘चलो न मौम, कुछ खाएंगे.’’

‘‘नहीं पराग, तुम्हें पता है मैं अभी कुछ नहीं खा सकती.’’

‘‘तो ठीक है, आप साथ तो बैठिए.’’

‘‘ऐसा करो, तुम दोनों खा लो, हम यहीं जूस कौर्नर पर तुम्हारा वेट करेंगे.’’

भव्या तुरंत बोली, ‘‘मौम, बस जूस? जूस से होता क्या है?’’

विपिन ने दोनों को ही भेज दिया. विपिन, गीता और वन्या जूस पीने लगे. गीता ने कहा, ‘‘क्या लड़की है, अभी लंच किए 1 घंटा भी नहीं हुआ है.’’

विपिन बोले, ‘‘तुम्हारी बहू लाइफ ऐंजौय कर रही है, बेचारी अपनी मरजी से खाएगीपिएगी नहीं क्या?’’

‘‘तो मैं कौन सा मना कर रही हूं,’’ गीता ने चिढ़ते हुए कहा.

दोनों पिज्जा खा कर खुश होते हुए आए. विपिन ने कहा, ‘‘पराग, चलो, हम दोनों चल कर कार्ड देख आते हैं, तब तक ये तीनों ज्वैलरी का काम देख लेंगी.’’

विपिन और पराग चले गए.

ज्वैलरी की शौप से जब तीनों निकलीं तो एक आवारा सा लड़का वन्या की कमर को बदतमीजी से छू कर बढ़ा तो वन्या चिल्लाई, ‘‘बेशर्म, तमीज नहीं है क्या?’’

भव्या फौरन बोली, ‘‘क्या हुआ, वन्या?’’

‘‘उस लड़के ने बदतमीजी की है.’’

भव्या ने आव देखा न ताव, फौरन भागी और लड़के की कमर पर पीछे से एक हाथ मारा. लड़का संतुलन खो बैठा और नीचे गिर गया. भव्या जोर से चिल्लाई, ‘‘बदतमीजी करता है.’’ लड़का उठने की कोशिश कर रहा था, भव्या ने पुन: धक्का दिया और उसे नीचे गिरा कर उस के सीने पर चढ़ बैठी और कुहनी जमा दी.

लड़के की चीख निकल गई. वह हिल भी नहीं सका. दृश्य गंभीर था लेकिन लड़के के सीने पर गोलमटोल भव्या की यह बहादुरी देख कर गीता को मन ही मन हंसी आ गई. भव्या जोर से चिल्लाई, ‘‘हैल्प, हैल्प.’’

तुरंत लोग इकट्ठे हो गए. भव्या की बात सुन कर लड़के को पीटने लगे. एक पुलिस वाला भी आ गया और लड़के को 2 डंडे लगा कर जीप में बिठा लिया. पूरे प्रकरण में गीता और वन्या हक्कीबक्की खड़ी थीं. देखते ही देखते भव्या ने जो किया था, दोनों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था. भव्या को शाबाशी देते हुए लोग आजकल लड़कों की बढ़ती बदतमीजी पर बात करते हुए इधरउधर हो गए.

गीता ने देखा, किसी की नजरों में भव्या के लिए उपहास नहीं था. सब की नजरों में उस के लिए तारीफ थी. भव्या ने गीता को जैसे सपने से जगाया, ‘‘मौम, ठीक किया न?’’

गीता उस के कंधे पर हाथ रख कर इतना ही बोल पाईं, ‘‘वैल डन, भव्या, शाबाश.’’

वन्या तो भव्या से सड़क पर ही चिपट गई, ‘‘आप कितनी स्ट्रौंग हो.’’

‘‘वह तो मुझे देख कर ही पता चलता है,’’ कह कर भव्या हंस दी.

इतने में विपिन और पराग भी आ गए, गाड़ी में बैठ कर वन्या ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया तो वे हैरान रह गए.

विपिन ने भी कहा, ‘‘वैल डन, भव्या.’’

पराग ने हंस कर उसे छेड़ा,

‘‘बेचारा लड़का.’’

सब हंस पड़े. गीता को तो आज इतना प्यार आ रहा था भव्या पर कि उस का मन हो रहा था यहीं उसे गले से लगा ले. लग रहा था, बेकार में अपने मन को इतने दिनों से छोटा कर रखा है. वह जैसी है बहुत अच्छी है. मोटापे का क्या है, धीरेधीरे उसे प्यार से समझा कर सेहत के प्रति सजग बना देंगी, और वैसे पराग को भी कहां रोक पाती हैं लापरवाही से. अब जैसा बेटा, वैसी बहू है तो दुख किस बात का.

अब वे शान से भव्या को अपनी सहेलियों से मिलवाने के लिए उंगलियों पर शादी में बचे दिन गिन रही थीं. आज पहली बार अपनी मोटी बहू पर उन्हें बहुत प्यार आ रहा था. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: कुछ हट कर

Hindi Family Story: एक सुबह कविता सो कर उठी और फ्रैश हुई. तभी अचानक उस की नजर कैलेंडर पर पड़ी तो वह जरा ठिठकी, ओह, कुछ ही दिनों में वह 42 साल की हो जाएगी. बस यही ठंडी सी सांस उस के मुंह से निकली. किचन में चाय बनाते हुए मन अजीब सा हुआ कि क्या सच में काफी उम्र हो रही है? चाय ले जा कर मेज पर रखी और फिर विनय का बाथरूम से निकलने का इंतजार करने लगी. लगा इतने सालों से वह बस इंतजार ही तो कर रही है…

आजकल कई दिनों से मन में फैली अजीब सी उदासीनता कविता से सहन नहीं होती. उसे अपने जीवन में शांत झील का ठहराव नहीं, बल्कि समुद्र की तूफानी लहरों का उफान चाहिए, कुछ तो खट्टामीठा स्वाद हो जीवन का.

दोनों बच्चे अभिजीत और अनन्या बड़े हो गए हैं, दोनों ने अपनीअपनी डगर ले ली है. ‘लगता है, अब किसी को मेरी जरूरत नहीं है, कैसे ढोऊं अब उद्देश्यहीन जीवन का भार?’ आजकल कविता बस ऐसी ही बातें सोचती रहती. उसे अपनी मनोदशा स्वयं समझ नहीं आती. जितना सोचती उतना ही अपने बनाए

हुए भ्रमजाल में उलझती जाती. आज जब बच्चे उस के स्नेह की छांव को छोड़ कर अपने क्षितिज की तलाश में बढ़ चले हैं, तो वह नितांत अकेली खड़ी महसूस करती है, निराधार, अर्थहीन.

‘‘अरे, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है, कविता,’’ विनय की आवाज से कविता की

तंद्रा भंग हुई.

‘‘क्या सोच रही थी, तबीयत तो ठीक है न?’’ पूछतेपूछते विनय ने चाय के साथ पेपर उठा लिया तो कविता और अनमनी हो गई, सोचा, बस पेपर पढ़ कर औफिस चले जाएंगे, बच्चे भी कालेज चले जाएंगे, तीनों शाम तक ही लौटेंगे. बस, उस का वही बोरिंग रूटीन शुरू हो जाएगा. मेड से काम करवाएगी, नहाधो कर थोड़ी देर टीवी देखेगी, कोई पत्रिका पढ़ेगी और फिर शाम होतेहोते सब के आने का इंतजार शुरू हो जाएगा.

कविता सोचती वह पोस्ट ग्रैजुएट है. विवाह के बाद विनय और उस के सासससुर उस के नौकरी करने के पक्षधर नहीं थे, उस ने भी घरगृहस्थी खुशीखुशी संभाल ली थी. सब ठीक था, बस, इन कुछ सालों में कुछ कमी सी लगती है. वह अपने रूटीन से बोर हो रही है, आजकल उस का कुछ हट कर, कुछ नया करने को जी चाहता है. इन्हीं खयालों में डूबे उस ने दिन भर के काम निबटाए, शाम को सोसायटी के गार्डन में सैर करने गई. यह अब भी उस की दिनचर्या का सब से प्रिय काम था.

कविता आधा घंटा सैर करती, फिर गार्डन से क्लबहाउस के टैरेस पर जाने का जो रास्ता है, वहां जा कर थोड़ी देर घूमती. टैरेस से नीचे बना स्विमिंगपूल दिखता, उस में हाथपैर मारते छोटेछोटे बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते. शाम को ज्यादातर बच्चे ही दिखते थे, टीनएजर्स कभीकभी ही दिखते थे. पूल का नीलापन जैसे आसमान का आईना लगता. वह नीलापन कविता को आकर्षित करता. वह खड़ीखड़ी कभी आसमान को देखती तो कभी स्विमिंगपूल के नीलेपन को.

क्लब हाउस का पास तो कविता के पास था ही. अत: एक दिन वह ऐसे ही टहलतेटहलते पूल के पास पहुंच गई और फिर किनारे पर रखी चेयर पर बैठ गई. स्विमिंग

पूल से पानी की हलकीहलकी आवाजें आ रही थीं, अत: पानी में जाने की तीव्र इच्छा उस पर हावी हुई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था. उस के अंदर जैसे किसी ने कहा, कुछ हट कर करना है न तो स्विमिंग क्यों नहीं? दिल किया वह अभी इसी समय अपने इस एहसास को किसी के साथ बांटे. पूल में उतरने और तैरने के खयाल से ही वह उत्साहित हो गई. हां, यह ठीक रहेगा, वह हमेशा स्विमिंग से डरती है, पानी से उसे डर लगता है, जब भी जुहू या और किसी बीच पर जाती है, हमेशा पानी से दूर टहलती है.

2 साल पहले जब चारों गोआ घूमने गए थे, उसे बहुत मजा आया था. लेकिन वह लहरों के बीच जाने से कतराती रही थी. पिछले साल फिर जब उस ने विनय से गोआ चलने के लिए कहा तो अभिजीत और अनन्या दोनों ने ही कहा, ‘‘मम्मी, आप को गोआ जा कर करना क्या है? आप को दूरदूर किनारे ही तो घूमना है. उस के लिए तो यहीं मुंबई में ही जुहू बीच पर चली जाया करो.’’

कविता क्या करे, उसे लहरों के अंदर घबराहट सी होती और यह घबराहट उसे पहले नहीं होती थी. वह तो 10 साल पहले जब विनय की पोस्टिंग नईनई ठाणे में हुई थी तो वे घर के पास ही स्थित ‘टिकुजीनिवाड़ी वाटर पार्क’ में गए थे. वहां पहुंच कर कविता बहुत उत्साहित थी. यह किसी वाटरपार्क का उस का पहला अनुभव था. वहीं एक स्लाइड से नीचे आते हुए उस का संतुलन बिगड़ गया और वह सिर के बल पानी में गिर गई और घबराहट में स्वयं को संभाल नहीं पाई.

विनय ने ही उसे सहारा दे कर खड़ा किया. वे कुछ क्षण जब उसे अपनी सांस रुकती हुई लगी थी, उसे अब तक याद थे.

और आज जब कुछ नया करने की इच्छा है, तो वह क्यों न पानी में उतर जाए, वह मन ही मन संतुष्ट हुई, हां, स्विमिंग ठीक रहेगी और विनय और बच्चों को अभी नहीं बताऊंगी वरना इस उम्र में यह शौक देख कर वे तीनों हंसने लगेंगे. यह मैं अपने लिए करूंगी, कई सालों में बहुत दिनों बाद, जो मैं चाहती हूं वह करूंगी न कि वह जो सब सोचते हैं. उस ने अभी से अपने को युवा सा महसूस किया. पानी के किनारे बैठेबैठे अपनी योजना को आकार दिया. फिर उत्साहित कदमों से रिसैप्शन पर गई और पूछा, ‘‘लेडीज कोच है?’’

‘‘इस समय बस बच्चों के लिए ही एक कोच आता है, लेडीज के लिए बैच गरमियों में शुरू होगा,’’ रिसैप्शनिस्ट बोली.

अभी तो नवंबर है, कविता को अपना उत्साह काफूर होता लगा. लेकिन बस पल भर के लिए. फिर उस का उत्साह यह सोचते ही लौट आया कि वह खुद अपने बलबूते स्विमिंग सीखने की कोशिश करेगी.

घर आ कर कविता मन ही मन प्लानिंग करती रही. विनय ने हमेशा की तरह टीवी देखा, लैपटौप पर काम किया, बच्चे भी अपनेअपने क्रियाकलापों में व्यस्त थे. किसी ने उस के उत्साह पर ध्यान नहीं दिया. वह भी चुपचाप क्या करना है, कैसे करना है, सोचती रही.

अगले दिन तीनों के जाने के बाद कविता स्विमसूट खरीदने मार्केट गई. उसे बड़ा अजीब लग रहा था. उस ने शरीर को ज्यादा से ज्यादा ढकने वाला स्विमसूट खरीदा, ट्रायलरूम में पहन कर देखा और मन ही मन संतुष्ट हुई. सैर से अभी फिगर ठीक ही थी. वह खुश हुई. अगले 8-10 दिन वह पूल के किनारे बैठ जाती, बच्चों को देखती, कैसे वे पानी में पैर मारते हैं, कैसे बांहें चलाते हैं, किस तरह उन के पैर उन्हें आगे धकेलते हैं और कैसे यह सब वे सांस खींच कर हवा को अपने अंदर भरते हैं. उस ने गहरी सांस ली और रोक ली. उसे निराशा हुई. लगा, नहीं कर पाएगी. नहीं, वह हारेगी नहीं, उसे कुछ नया, कुछ अलग करना है. रात को जब वह सोने के लिए लेटी तो उस के सामने बस वह पल था जब वह पूल के पानी को अपने चारों ओर महसूस कर सकेगी.

10 दिन बाद वह पूल की ओर बढ़ी तो मन में कुछ डर भी था तो कुछ जोश भी. यह पल उसे उस समय की याद दिला गया जब सुहागरात पर दुलहन बनी उसे फूलों से सजे बैडरूम में ले जाया जा रहा था. वहां विनय इंतजार में थे, यहां पूल. मन ही मन इस तुलना पर उसे हंसी आ गई. वह चेंजिंगरूम में गई, सनस्क्रीन लोशन लगाया और फिर घुटनों तक के शौर्ट्स के ऊपर स्विमसूट पहन लिया. शरीर का काफी हिस्सा ढक गया था. खाली स्विमसूट पहनने से उसे संकोच हो रहा था. अब वह सहज थी, केशों को सूखा रखने के लिए उस ने कैप लगाई और शरीर पर तौलिया लपेट लिया.

11 बज रहे थे, यह क्लबहाउस में स्विमिंग का लेडीज टाइम था. बस एक लड़की स्विमिंग कर रही थी. कविता पूल के किनारे बने खुले शावर की ओर बढ़ी. वह जानती थी पूल में उतरने से पहले शावर लेना नियम है. उस ने तौलिया हटा दिया, शावर के ठंडे पानी की तेज बौछार से पल भर को उस की सांसें जैसे रुक सी गईं.

कविता पूल के कम पानी वाले किनारे खड़ी हो कर फिल्मों में पूल में उतरने के दृश्य याद करने लगी. वह इस पल का क्या खूब आनंद उठा रही है, यह सोच कर उस के होंठों पर मुसकान आ गई. उसे लाइफगार्ड किनारे बैठा नजर आया तो वह थोड़ा निश्चिंत हो गई. अब जो भी करना था अपने बलबूते करना था. पानी ठंडा था, उस ने याद किया, कैसे बच्चों का कोच बच्चों को सिखाता था, नीचे जाओ, सांस रोको, ठंड नहीं लगेगी. उस ने ऐसा ही किया. रौड पकड़ी, पानी में चेहरा डाला और पैर चलाने की कोशिश की. बस थोड़ी देर ही कर पाई. बाहर निकली, थोड़ी निराश थी, कैसे करेगी वह यह.

घर पहुंचते ही थोड़ी देर लेट गई. अगला1 हफ्ता वह बस पानी में पैर चलाती रही. थक जाती तो पानी के अंदर डुबकी लगा कर आंखें खुली रखने की कोशिश करती. क्लोरीनयुक्त पानी से आंखें लाल हो जातीं. वह खुद को समझाती कि इस की आदत भी हो जाएगी. फिर अपनी पीठ उठा लेती जैसे पीठ के बल तैर रही हो.

शाम की सैर के बाद कविता पूल के किनारे चेयर पर जरूर बैठती, अपने कान बच्चों के कोच के 1-1 शब्द पर लगाए रखती और अगले दिन वैसा ही करने की कोशिश करती. उसे इस खेल में विचित्र आनंद आने लगा था.

एक दिन कविता ने सोचा, वह रौड को नहीं छुएगी. उस ने पूल की दीवार से टांग टिकाई, मुंह में खूब हवा भरी और एक रबड़रिंग को पकड़ कर खुद को आगे धकेला. उस ने रबड़रिंग को छोड़ने की कोशिश की तो वह डूबने लगी. वह घबरा गई. लगा वह मर रही है, डूब रही है. फिर वह पानी के ऊपर आ गई. उस ने फिर स्टील की रौड को पकड़ लिया. उसे लगा वह अभी तैयार नहीं है.

20वें दिन जब वह कम पानी वाले पूल की चौड़ाई नाप रही थी, तो लाइफगार्ड, जो उसे रोज कोशिश करते देख रहा था, ने पूछा, ‘‘मैडम आप की लंबाई कितनी है?’’

‘‘5 फुट 5 इंच.’’

वह मुसकराया, ‘‘आप 4 फुट गहरे पानी में हैं, आप नहीं डूबेंगी. डूबने भी लगेंगी तो फौरन आप के पैर तली पर लग जाएंगे और आप ऊपर होंगी, आप को तो रिंग की भी जरूरत नहीं है.’’

कविता को लगा उस की बात में दम है. अत: उस ने फिर तैरने की कोशिश की और अब 1 घंटे में वह कई बार पूल की चौड़ाई में तैर चुकी थी.

हफ्ते में 1 दिन क्लबहाउस बंद रहता था, वह आराम करती, संडे को भी स्विमिंग के लिए नहीं जाती थी, क्योंकि विनय और बच्चे घर में होते थे. उस दिन संडे था. रात को वह जब सोने के लिए लेटी तो उसे अपने अंदर इच्छाओं की बंद मुट्ठी खुलती महसूस हुई, उस का शरीर जैसे खिल गया था. कुछ अलग करने के जोश से मन खुश था.

उस ने विनय के सीने पर हाथ रखा, तो विनय को कुछ अलग सा महसूस हुआ. उस ने करवट ले कर कविता की कमर पर हाथ रखा, फिर उस के शरीर पर हाथ फेरा तो चौंका. कविता के शरीर में नया कसाव था. बोला, ‘‘अरे, बहुत बढि़या फिगर लग रही है, क्या करती हो आजकल?’’

‘‘कुछ नहीं, बस आजकल मछली बनी हुई हूं,’’ कविता खुल कर हंसी.

विनय ने उसे हैरानी से देखा, एक पल विनय को लगा, आज उस ने पहले वाली कविता को देखा है, जो अपनी कातिल मुसकराहटों, घातक अदाओं और उत्तेजक देह से उस के होश उड़ा देती थी. आजकल तो कविता बस उस के घर की स्वामिनी और उस के बच्चों की मां थी. उधर कविता विनय की उधेड़बुन से बिलकुल अनजान थी.

विनय ने कहा, ‘‘बहुत चेंज लग रहा है तुम में, बताओ न, क्या चक्कर है?’’

कविता ने उसे स्विमिंग के बारे में सब बताया तो वह हैरान रह गया और फिर उसे बांहों में भर लिया. कविता वह जिन इच्छाओं को समझ रही थी कि हमेशा के लिए मर गई हैं, उन के जागने के आनंद में डूब गई. आखिरी बार वह कब भावनाओं के इस सागर में डूबी थी, याद करने लगी.

अगले दिन फिर उस ने गहरी सांस ली, खुद को आगे धकेला, उस के नीचे पूल की टाइल्स चमक रही थीं. शांत पानी उसे अपने चारों ओर लिपटता सा लगा. पूरे शरीर में हलकापन महसूस हुआ. मन में एक जीत की भावना तैर गई. उस ने कुछ अपने बोरिंग रूटीन से हट कर कर लिया है. परमसंतोष के इस पल की बराबरी नहीं है. जब उसे महसूस हुआ कि वह स्विमिंग कर सकती है. स्विमिंग का 1-1 प्रयास कविता के हिमशिला बने मनमस्तिष्क को पिघलाता जा रहा था. तेज हुए रक्तप्रवाह ने शिथिल पड़ी धमनियों को फिर से थरथरा दिया था. मन के समस्त पूर्वाग्रह न जाने कहां हवा हो चले थे और कई दिन पुराने कुछ नया कर गुजरने के तूफानी उद्वेग उन की जगह लेते जा रहे थे. उसे पता चल गया था उम्र बिलकुल भी माने नहीं रखती है, माने रखता है तो भीतर समाया उत्साह और हर पल जीने की इच्छा, जो हर दिन को आनंदमयी दिन में बदलने की चाह रखती हो. Hindi Family Story

Hindi Family Story: यह तो पागल है

Hindi Family Story: अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था?’’

‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है?’’

‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी?’’

‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में?’’

‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं?’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा.

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’

 

इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया?’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया.

फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ?’’

‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है?’’ बड़े बेटे ने पूछा.

‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’

‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी.

‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है.

‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो.

‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ? पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए.

2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए.

डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम?’’

‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई? कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं?’’

‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी.

6 वर्ष हो गए.’’

‘‘आप के कोई बच्चा?’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’

‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या? मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं?’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’

‘‘फिर समस्या कहां है?’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, उस के विचारों में है. उस के गंदे संस्कारों में है जो उस की मां ने उसे विरासत में दिए. सर, मां की प्रयोगशाला में बेटी पलती और बड़ी होती है, संस्कार पाती है. अगर मां अच्छी है तो बेटी भी अच्छी होगी. अगर मां खराब है तो मान लें, बेटी कभी अच्छी नहीं होगी. यही सत्य है.

‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’

‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’

‘‘क्या? यह बीमारी शादी से पहले की है?’’

‘‘जी हां, सर.’’

‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था?’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’

‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या? हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा? हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’

‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते. Hindi Family Story

Short Story: भयानक सपना – क्या मनोहर जानता था कि आगे क्या होने वाला है

Short Story: हमेशा की तरह इस बार फिर धुंध गहरी होने लगी और चारों ओर सन्नाटा छा गया. मनोहर अच्छी तरह जानता था कि आगे क्या होने वाला है, पर फिर भी न जाने किस डर के कारण उस के दिल की धड़कन तेज होने लगी. धुंध के साथसाथ ठंड भी बढ़ने लगी और मनोहर कांपने लगा. लगता था कि सारी दुनिया एक सफेद बर्फीली चादर से ढक गई है. कोहरे के बीच में अचानक एक काला साया नजर आया, जो मनोहर की ओर धीरेधीरे बढ़ने लगा. यह जानते हुए भी कि उसे कोई खतरा नहीं है, मनोहर वहां से घूम कर भागना चाहता था, पर उसे लगा कि उस के पैर वहां जम ही गए थे.

साया मनोहर के पास आया और उस का चेहरा साफ दिखाई देने लगा. यह वही चेहरा था जो उस ने पहली बार कभी न भूलने वाली रात को देखा था. मासूम सा चेहरा था. एक 16-17 साल के लड़के का. मनोहर की तरफ उस ने उंगली से इशारा किया. ठंड के बावजूद मनोहर पसीनापसीना हो गया. 

‘तुम ने मुझे मारा. तुम ही मेरी मौत के जिम्मेदार हो. तुम्हें इस का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा. तुम्हें मेरी मौत की कीमत चुकानी पड़ेगी,’ लड़के ने मनोहर पर इलजाम लगाया.

‘पर गलती मेरी नहीं थी,’ मनोहर ने अपने ऊपर लगे अभियोग का विरोध किया.

‘गलती चाहे जिस की भी थी पर मारा तो तुम ने ही मुझे,’ लड़के ने दबाव डालना जारी रखा.

‘मैं क्या करता. तुम अचानक बिना कोई चेतावनी दिए…’ मनोहर ने जवाब देना शुरू किया, पर हमेशा की तरह उस की बात पूरी तरह बिना सुने लड़का धुंध में गायब हो गया. मनोहर चौंक कर उठा. पसीने से उस का बदन गीला था. वह जानता था कि अब कम से कम डेढ़दो घंटे तक वह सो नहीं पाएगा. यही सपना उसे हफ्ते में 2 या 3 बार आता था, उस हादसे के बाद से. मनोहर ने सोचा कि वह उस रात को कभी भूल नहीं सकेगा. धीरेधीरे वह गहरी सोच में डूबता गया…हौल खचाखच भरा था. पार्टी खूब जोरशोर से चल रही थी. लोग विदेशी संगीत पर नृत्य कर रहे थे पर बातचीत के शोर के कारण ठीक से कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था. जितने लोग मौजूद थे, चाहे मर्द हों या औरत, तकरीबन सब ने हाथ में गिलास पकड़ रखा था. शराब पानी की तरह बह रही थी. एक कोने में खड़ा मनोहर बिना कोई खास रुचि के तमाशा देख रहा था. मनोहर का दोस्त अशोक उस के पास आया और उस ने उसे एक गिलास पकड़ाने की कोशिश की.

‘तुझे अकेले खड़े बोर होते हुए देख कर मुझे बहुत दुख होता है,’ उस ने कहा, ‘यह ले व्हिस्की, पी. शायद यह तुझे किसी लड़की से बात करने की हिम्मत दे.’ मनोहर ने सिर हिलाया, ‘तुम जानते हो कि मैं शराब बहुत कम पीता हूं. और पार्टी के बाद, जब कार खुद चला कर घर जाना होता है, जैसाकि आज, तब तो मैं शराब की तरफ देखता भी नहीं हूं.’

‘छोड़ यार,’ अशोक ने फिर गिलास मनोहर की ओर बढ़ाया, ‘एक पैग से क्या होता है. मैं तो हर पार्टी में 5-6 पैग पी कर भी कार चला कर सहीसलामत घर पहुंचता हूं.’ मनोहर मना करता गया, पर अशोक नहीं माना. आखिर में तंग आ कर मनोहर ने काफी अनिच्छा से गिलास ले लिया. शामभर मनोहर ने बस वही एक पैग धीरेधीरे पिया, जिस का असर उस पर तकरीबन न के बराबर था. रात काफी हो चुकी थी. जब मनोहर ने होटल की पार्किंग से अपनी गाड़ी निकाली और घर की तरफ चला, हलका कोहरा छाया हुआ था, पर सड़क साफ दिखाई दे रही थी. वाहनों की भीड़ कम थी. मनोहर ने अपनी कार की रफ्तार 50 और 60 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच में ही रखी थी. उसे सामने चौराहे पर बत्ती हरी दिखाई दी. इसलिए मनोहर ने रफ्तार कम नहीं की. अचानक उस के बिलकुल सामने सैलफोन पर बात करता एक युवक सड़क पार करने लगा.

मनोहर ने ब्रैकपैडल जोर से दबाया पर तब तक देर हो चुकी थी. कार युवक से टकराई और वह तकरीबन 5 मीटर आगे जा कर गिरा. मनोहर ने कार रोकी और युवक के पास दौड़ कर पहुंचा. मनोहर ने उस का चेहरा गौर से देखा. उस की आंखें बंद थीं और वह बेहोश लग रहा था. मनोहर ने उसे उठा कर कार में रखा और नजदीक वाले अस्पताल की ओर चला. पर तब उसे खयाल आया कि अगर वह स्वीकार कर ले, और पुलिस को उस की सांस में शराब मिले, तो उसे शायद जेल जाना पड़े, यह सोचते हुए मनोहर ने अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड से कुछ दूरी पर कार रोकी और युवक को उठा कर अंदर ले गया. वहां एक वार्ड बौय को सौंप कर बोला, ‘ऐक्सिडैंट हुआ है. मैं इस की मां को लेने जा रहा हूं,’ और वहां से भाग गया. 2 दिन के बाद अखबार के अंदर के कोने में उस ने पढ़ा कि उस रात, किसी अज्ञात व्यक्ति ने एक अधमरे युवक का शव अस्पताल में छोड़ा था और फिर वहां से लापता हो गया था. उसी रात से मनोहर को धुंध वाला सपना आने लगा. मनोहर अपनी विधवा मां के साथ रहता था. इन सपनों के कारण उस की रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ाबहुत बदलाव जो आया, वह उस की मां की नजरों से छिप तो नहीं सकता था, पर जब भी वे इस मामले में कोई सवाल करती थीं, तो मनोहर बात टाल जाता था.

मनोहर 28 साल का हो चुका था. अच्छी नौकरी कर रहा था. उस की मां चाहती थीं कि वे जल्दी से जल्दी मनोहर की शादी कर दें, ताकि दिनभर बात करने के लिए उन्हें एक बहू मिल जाए और साल के अंदर वंश चलाने के लिए एक पोता. मनोहर भी शादी करने की सोच रहा था, पर हादसे के बाद से उस का मिजाज बदल गया. शादी की बात उस के दिमाग से निकल सी गई. बस, एक बात बारबार उस के मन में आती, ‘मेरी लापरवाही के कारण किसी ने अपना बेटा खो दिया था.’ अपने दोष को भुलाने के लिए मनोहर दिनरात काम में जुटा रहने लगा. दिन में तो दफ्तर की चहलपहल में उस का ध्यान बंट जाता था पर रात को, खासकर धुंध वाला सपना आने के बाद, उस पर उदासी छा जाती थी. उस रात के बाद उस ने कभी शराब को हाथ न लगाया और कंपनी की पार्टियों में भी शराब परोसना बंद कर दिया. हादसे के 6 महीने बाद मनोहर के दफ्तर में एक नई लड़की भरती हुई. उस का नाम मीना था और वह सीधे कालेज से बीए करने के बाद नौकरी करने आई थी. मीना को उस का काम समझाने की जिम्मेदारी मनोहर को सौंपी गई. मीना काफी बुद्धिमान थी और उस में काम सीखने का जोश भी था. मनोहर उस की लगन से बहुत खुश था. धीरेधीरे मनोहर मीना की ओर आकर्षित होने लगा और उसे लगने लगा कि मीना उस के लिए एक आदर्श जीवनसाथी बन सकती है. उस के साथ शादी कर के जिंदगी काफी मजे में कट सकेगी. पर शराफत के भी कुछ नियम होते हैं. मनोहर ने अपनी भावनाओं के बारे में मीना को तनिक भी ज्ञान होने नहीं दिया.

एक दिन सुबह मीना मनोहर के केबिन में आई.

‘‘गुड मौर्निंग, सर.’’

‘‘गुड मौर्निंग, मीना,’’ मनोहर ने जवाब दिया.

‘‘जन्मदिन मुबारक हो, सर. हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘धन्यवाद,’’ मनोहर बोला, ‘‘पर मैं हैरान हूं. आज तक तो इस दफ्तर में किसी ने मुझे जन्मदिन की बधाई नहीं दी. तुम्हें कैसे पता चला कि आज मेरा बर्थडे है?’’ मीना पहले थोड़ा शरमाई और फिर उस ने जवाब दिया, ‘‘आप को याद होगा कि पिछले हफ्ते आप ने मुझे अपना ड्राइविंग लाइसैंस दिया था उस की फोटोकौपी बनवाने के लिए. मैं ने उसी में देख लिया था कि आप का जन्मदिन कब है.’’ उस की बात सुन कर मनोहर को बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगा कि शायद मीना उसे पसंद करने लगी है. उसी दिन दोपहर को बारिश हुई और फिर लगातार काफी तेज होती ही रही. मनोहर जानता था कि मीना लोकल बस से घर जाती थी. उस ने मीना को बुलाया और पूछा, ‘‘तुम्हारे पास छतरी है?’’

‘‘नहीं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘आज सुबह तो आसमान बिलकुल साफ था, इसलिए मैं अपनी छतरी घर पर ही छोड़ आई.’’

‘‘तब तो तुम घर जातेजाते बिलकुल भीग जाओगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, सर. मैं बारिश में कई दफे भीगी हूं.’’

‘‘पर तुम बीमार पड़ सकती हो,’’ मनोहर के स्वर में चिंता भरी हुई थी, ‘‘तुम रहती कहां हो?’’

‘‘बापूनगर में, सर,’’ मीना ने बताया.

‘‘वह मेरे घर जाने के रास्ते से कोई खास दूरी पर नहीं है. आज मैं तुम्हें कार से तुम्हारे घर पर छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं, सर, इस की जरूरत नहीं है,’’ मीना ने मनोहर की बात का विरोध किया, ‘‘आप को खामखां दिक्कत होगी. मैं खुद चली जाऊंगी रोज की तरह.’’ पर मनोहर ने मीना की एक न सुनी, और उसे अपनी कार से घर पहुंचाया. अगले दिन मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मैं ने आप के बारे में अपने मातापिता को बताया. वे बहुत खुश थे कि आप जैसे बड़े अफसर ने मुझ पर एहसान किया और मुझे भीगने से बचाया. वे आप से मिलना चाहते हैं. हमारे यहां किसी दिन चाय पीने आइए.’’

‘‘जरूर आऊंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया. मन ही मन उस ने सोचा कि यह अच्छा मौका होगा, यह तय करने के लिए कि मीना से मेरी शादी करने की कितनी संभावना है. कुछ दिन बाद मनोहर को मीना के साथ चाय पीने का मौका मिला. उन के दफ्तर में यह ऐलान हुआ कि अगले दिन शाम को शहर में बड़े जुलूस के कारण सड़कें बंद कर दी जाएंगी, इसलिए दफ्तर में 2 घंटे पहले छुट्टी होगी. मनोहर ने मौके का फायदा उठा कर मीना को सूचित कर दिया कि अगले दिन वह मीना के साथ उस के घर जाएगा. अगली शाम 4 बजे जब छुट्टी मिली तो मनोहर मीना को ले कर उस के घर की ओर चला. रास्ते में उस ने मीना के बारे में उस से जानकारी हासिल करने की कोशिश की.

‘‘तुम्हें किस तरह की फिल्में पसंद आती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो टीवी में आ जाएं, वही देखती हूं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘सिनेमाहौल में जाने का मौका सिर्फ वीकेंड पर मिलता है और तब भीड़ के कारण टिकट नहीं मिलता.’’

‘‘तुम्हारे कितने भाईबहन हैं?’’ मनोहर ने आगे बढ़ कर सवाल किया.

‘‘मेरा एक भाई था, पर पिछले साल एक हादसे में उस का देहांत हो गया,’’ यह कहतेकहते मीना की आवाज कुछ टूट सी गई. मनोहर को लगा कि जैसे उस ने कोई पुराना घाव कुरेद दिया है. उस ने ‘आई एम सौरी’ कहा और बाकी रास्तेभर चुप ही रहा. मीना का घर एक मिडल क्लास दो बैडरूम का अपार्टमैंट था. उस के मातापिता बड़े प्यार से मनोहर से मिले. मीना के पिता ने तकरीबन 35 साल नौकरी करने के बाद भारतीय रेलवे से अवकाश प्राप्त किया था. बैठक में बैठ कर वे और मनोहर आने वाले चुनाव के बारे में बात करने लगे. मीना और उस की मां अंदर जा कर चाय का बंदोबस्त करने लगीं. बात करतेकरते मनोहर की नजर इधरउधर घूम रही थी. अचानक उसे बड़े जोर का झटका लगा और वह हैरान रह गया. सामने दीवार पर एक बड़ी सी तसवीर लगी हुई थी, जिस पर पुष्पमाला पड़ी हुई थी. और तसवीर उसी नौजवान की थी जो मनोहर की कार के नीचे आ गया था. मनोहर अपनी आंखों पर विश्वास खो बैठा.

‘‘आज के नेता अपनी कुरसी की ज्यादा और जनता की खुशहाली की चिंता कुछ कम ही करते हैं…’’

‘‘माफ करना सर,’’ मनोहर ने उन की बात काटी, ‘‘पर क्या मैं पूछ सकता हूं कि दीवार पर लगी यह फोटो किस की है?’’

मीना के पिता एकदम चुप हो गए. फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘यह हमारा इकलौता बेटा प्रशांत था, मीना का भाई. पिछले साल एक दुर्घटना में इस का देहांत हो गया. पर इस के बारे में तुम मीना या उस की मां के सामने कुछ नहीं पूछना. वे दोनों अपना गम अभी तक भुला नहीं पाई हैं. इस के बारे में सोच कर वे आज भी बहुत भावुक हो जाती हैं.’’

मनोहर का सिर चकराने लगा. उस ने सोचा, ‘जिस लड़की से मैं शादी करना चाहता हूं, उसी के इकलौते भाई की मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं.’ बाकी शाम कैसे कटी, मनोहर को ठीक से याद नहीं. कुछ खाया, कुछ बोला, सबकुछ स्वचालित था. मीना की मां ने उस की फैमिली के बारे में पूछा. जब उस ने यह बताया कि उस की शादी अभी तक नहीं हुई है, तो मीना के मांबाप ने नजरें मिलाईं. पर खयालों में डूबे हुए मनोहर ने कुछ नहीं देखा. मीना के साथ एक आनंदमय जिंदगी बिताने के उस के सपने चूरचूर हो गए थे. तकरीबन 1 महीना बीत गया. एक दिन, बातचीत के दौरान, मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मेरे मातापिता मेरी शादी कराना चाहते हैं. वे मेरे लिए दूल्हा ढूंढ़ रहे हैं. अगर आप की नजर में कोई योग्य लड़का हो तो उन्हें सूचित कर दें. वे जातिपांति को नहीं मानते हैं, न ही कुंडली मिलवाना जरूरी समझते हैं, पर लड़का कामकाजी होना चाहिए. और यह भी खयाल रखें कि हम कोई खास दहेज नहीं दे सकेंगे.’’

‘‘मैं देखता हूं. अगर कोई मिल गया तो अवश्य उन्हें बता दूंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया, पर मन ही मन वह अपनेआप को कोसने लगा. वह जानता था कि वह मीना के लिए लड़का कभी नहीं ढूंढ़ेगा. कुछ दिन बाद मीना ने अपनी शादी की बात फिर छेड़ी. उस ने कहा, ‘‘मेरी शादी के दौरान मुझे बस एक ही गम रहेगा.’’

‘‘वह क्या?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘वह यह कि मेरा प्यारा भाई प्रशांत मुझे दुलहन के रूप में देखने के लिए वहां नहीं होगा. वह हमेशा कहता था कि मेरी शादी में वह खूब नाचेगा,’’ मीना की आवाज में निराशा थी.

‘‘यह तो उचित है,’’ मनोहर ने माना.

‘‘काश, वह उस दिन दोपहर के खाने के तुरंत बाद अपने दोस्तों के साथ स्विमिंग पूल नहीं गया होता.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘आप को पता नहीं कि प्रशांत की मौत कैसे हुई?’’ मीना ने पूछा. और बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘‘वह लंच के फौरन बाद तैरने गया. पूल में अचानक उस के पेट में मरोड़ उठने लगी और वह डूब कर मर गया. उस के दोस्तों ने और वहां मौजूद लाइफगार्ड ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर शायद उस की मौत का वक्त आ चुका था. एक हफ्ते पहले ही वह सैलफोन पर बात में व्यस्त हालत में एक कार के रास्ते में आ गया था. पर लगता है कार कोई शरीफ आदमी चला रहा था क्योंकि उस की गलती नहीं होने पर भी उस ने प्रशांत को अस्पताल पहुंचाया. और फिर गायब हो गया. उस हादसे में तो वह बच गया लेकिन…’’ मनोहर को लगा कि जैसे एक पहाड़ उस के सिर पर से उठ गया हो. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया कि अगले ही दिन वह मीना के घर जा कर उस के मांबाप से मिल कर मीना का हाथ मांगेगा. और उस को यकीन था कि उस दिन के बाद वह डरावना सपना उसे फिर कभी नहीं आएगा. Short Story

Hindi Kahani: एक प्रेम कहानी का अंत

Hindi Kahani: डा. सान्याल के नर्सिंग होम के आईसीयू में बिस्तर पर सिरहाना ऊंचा किए अधखुली आंखों में रुकी हुई आंसू की बड़ी सी बूंद. आज बेसुध है प्रियंवदा. गंभीर संकट में है जीवन उस का. जिसे भी पता चल रहा है वह भागा चला आ रहा है उसे देखने. आसपास कितने लोग जुट आए हैं, जो एकएक कर उसे देखने आईसीयू के अंदर आजा रहे हैं, पर वह किसी को नहीं देख रही, कुछ भी नहीं बोल रही. कभी किसी की निंदा तो कभी किसी की प्रशंसा में पंचमुख होने वाली, कभी मौन न बैठने वाली, लड़तीझगड़ती व हंसतीखिलखिलाती प्रियम आज बड़े कष्ट से सांस ले पा रही है. बाहर शेखर दौड़ रहे हैं, सुंदर, सुदर्शन पति, बूढ़े होने पर भी न सजधज में कमी न सौंदर्य में. और आज तो कुछ अधिक ही सुंदर लग रहे हैं. इतनी परेशान स्थिति में भी. मां कहती थीं कि ऐसे समय में यदि सुंदरता चढ़ती है तो सुहाग ले कर ही उतरती है. तो क्या प्रियम बचेगी नहीं? संजना के मन में धक से हुआ और ठक से वह दिन याद हो आया जब प्रियंवदा और शेखर का विवाह हुआ था आज से ठीक 10 वर्ष, 2 माह और 4 दिन पूर्व. पर उन की प्रेम कहानी तो इस से भी कई वर्ष पुरानी है.

पहली बार वे दोनों किसी इंटरव्यू के दौरान मिले. संयोग से उसी औफिस में दोनों की नियुक्ति हुई, साथसाथ ट्रेनिंग भी हुई और पोस्ंिटग भी एक ही विंग में हो गई. फिर क्या, वे एकसाथ लंच करते. जहां जाते, साथ ही जाते. प्रियम तो शेखर को देखते ही रीझ गई. उस गौरवर्ण, सुंदर नैननक्श और गुलाब से खिले व्यक्तित्व के स्वामी को उसी क्षण उस ने अपना बनाने की ठान ली. ‘कहां वह और कहां तू? उस पर से वह दूसरी जातिधर्म का है, उसे कैसे अपने वश में कर लेगी,’ अपनी सखियों के ऐसे प्रश्नों पर प्रियम कहती, ‘अरे, कोशिश करने में क्या जाता है.’

वे दोनों एक ऐसे बेमेल जोड़े के रूप में जाने जाते जिस में कहीं कोई समानता नहीं. लड़का अत्यंत सुंदर और आकर्षक जबकि लड़की सामान्य रंगरूप के लिए भी मुहताज. लड़का सुरुचिसंपन्न और शौकीन स्वभाव का, लड़की लटरसटर बनी रहती, मेकअप करती तो भी शेखर के पार्श्व में बदसूरत ही दिखती. प्रियम का सांवला, रूखा चेहरा, बड़ीबड़ी आंखों के सर्द भाव, खुले अधरों से बाहर झांकते हुए ऊंचे दांत देख लोग उन की उपमा कौए और हंस से दिया करते. राह चलते उस पर छींटाकशी होती, गीत गाए जाते. प्रियम के ऊपर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. ‘मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहौं’ जैसा उस का हठ देख सब मुंह फेर कर हंसते. सोचते कि इतने अच्छे घर का शेखर, जो नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देता, प्रियम को कैसे अपनी जीवनसंगिनी बनाएगा? पर असंभव कुछ नहीं है. कहते ही हैं : ‘रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान.’

निरंतर शेखर के आगेपीछे घूमती प्रियम ने शेखर पर अपना अधिकार जताते हुए उस की दीवानियों को लड़लड़ कर पीछे ठेल दिया. वह कभी उस के लिए चिकन तो कभी बिरयानी बना कर लाती. उसे रंगबिरंगी शर्ट्स या बहुमूल्य परफ्यूम्स इत्यादि गिफ्ट्स दिया करती. तो कभी उस के अत्यंत समीप आ बैठती. वह उसे वश में करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती. प्रियम का ऊंचा मनोबल, अपने प्यार पर दृढ़ विश्वास और शेखर के पीछे सतत पड़े रहना रंग लाया. धीरेधीरे उन में प्रगाढ़ता बढ़ती गई. जीवन के रंगों व उमंगों से भरे गोपन रहस्य परत दर परत खुलने लगे तो ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की पृष्ठभूमि वाले शेखर की सारी सुप्त कामनाएं जाग उठीं. एक दिन लोगों ने घोर आश्चर्य से शेखर को अपने सात्विक घर के सारे नियमसंयम को धता बताते हुए प्रियम के आगेपीछे घूमते हुए, लट्टू सा नाचते हुए देखा. फिर तो लोग उन की बातें करने लगे, दूरदूर तक उन के चर्चे होने लगे.

शेखर भरपूर प्यार तो करता प्रियम से, पर उसे मारता भी खूब अच्छी तरह. अचरज तो इस बात पर होता कि विवाह होने से पहले भी शेखर ने उस पर कई बार हाथ उठाया, उस पर चिल्लाया भी. फिर भी प्रियम अपने निश्चय से डिगी नहीं. यह सब देख कर उस की परमप्रिय सखी संजना ने कहा भी, ‘अपने पापा के बताए लड़के से विवाह कर ले, खुश रहेगी,’ पर प्रियम को या तो शेखर की मार भी अच्छी लगती रही होगी या वह अपने दिल के हाथों इतनी विवश थी कि संजना की बात मानने के बजाय वह उस से ही रूठ गई.

शेखर की मां ने बड़ेबड़े सपने संजोए थे कि वह अपने राजा बेटे के लिए परियों की राजकुमारी लाएगी. अपने गुड्डे के लिए प्यारी सी गुडि़या लाएगी. पिता तो जबतब अपने कुलदीपक के विवाह में होने वाले मानसम्मान की परिकल्पनाएं कर और मिलने वाले साजसामान की गणना कर मन ही मन पुलकित हुआ करते. पर उन लोगों के सारे सपने धूलधूसरित हो गए. एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे थे शेखर के लिए. पर उसे प्रियंवदा इतनी अधिक पसंद आ गई थी कि वह किसी और से विवाह करने हेतु किसी भी दशा में तैयार न था. मांपिता ने हर तरह से शेखर को समझाने की चेष्टा की, पर उस ने इतना बवंडर मचाया कि उन्हें कलेजे पर पत्थर रख कर आखिरकार झुकना ही पड़ा.

शेखर ने मांपिता, कुल परंपरा, रिश्तेनाते किसी की चिंतापरवा किए बिना आगे बढ़ कर प्रियम का हाथ थाम लिया. प्रियम वधू बन कर पिया के घर आ गई. ऐसी बेमेल जोड़ी को जो देखता, उसे धक्का लगता. यदि मांपिता ने ऐसी लड़की ढूंढ़ी होती तो लोग यही कहते कि दहेज के लालच में लड़के को बलि चढ़ा दिया, पर जब लड़का ही इसे स्वयं पसंद कर के लाया है तो इस पर क्या कहे कोई? प्रेम अंधा होता है और दिल को जो भाए वही सुंदर. कहते हैं न, ‘ब्यूटी लाइज इन द आईज औफ बिहोल्डर.’ रूपगुण से शून्य प्रियंवदा की वाणी भी कर्कश थी. फिर भी उस का इतना दबदबा था कि कोई भी व्यक्ति उस का तिरस्कार या अवहेलना नहीं कर सकता, उस से ऊंचा भी नहीं बोल सकता. शेखर के सामने तो क्या, उस के पीठ पीछे भी नहीं.

शेखर के सीधेसरल मांपिता अधिक दिन नहीं जिए. इस आघात को मन में छिपाए, सिर झुकाए वे संसार से प्रस्थान कर गए. अपने घर का दुलारा शेखर व्यवहार में बड़ा सौम्य, शांत और सज्जन प्रतीत होता था. पर था वह प्रारंभ से ही उच्छृंखल और क्रोधी स्वभाव का. आत्ममुग्ध मनोवृत्ति थी उस की. घंटों दर्पण के सामने खड़ा रहता वह. ड्रैसिंग टेबल पुरुषों के सौंदर्यप्रसाधनों से लदी रहती. प्रियम का तो दर्पण देखने का कभी मन ही नहीं करता. अपने किंचित केश भी यों ही समेट कर रबरबैंड लगा लिया करती. दर्पण में झांक कर वह कभीकभार अपनी बिंदी या लिपस्टिक ठीक कर लेती, बस इतना ही. धीरेधीरे दिन बीतते गए. वक्त के साथसाथ उन की भी स्थितियांपरिस्थितियां बदलती गईं. आपसी अंतर्विरोध उभरने लगे. एकदूसरे को पाने हेतु जो भी त्यागा था वह उन के मन की अधूरी अचेतन गुफा से बाहर निकल आया. तूफानी प्रेमविवाह था उन का. जो चाहा था वह पा लिया था, पर इस पाने पर प्रसन्न होने के बजाय अब वे यह दंभ जताते हुए झगड़ने लगे थे, ‘उन्हें किसी अच्छे की कमी थोड़े न थी.’

प्रेम ओझल हो चुका था, रिश्ते बोझ बन गए थे.  प्रियम को पता ही नहीं चला, कब शेखर को कोई और भा गई. जिस पति को इतनी कठिनता से पाया, इतना सहेजसंभाल कर रखा, उसे कोई और आकृष्ट कर ले, उस के स्वत्वसुख में सेंध लगा दे, इस का भयानक दुख था उसे. ऊपर से मुसकान ओढ़े भीतरभीतर वह असह्य यंत्रणा से गुजर रही थी. किसी काम में मन नहीं लगता उस का. प्रतिपल मन में आंधियां, भांतिभांति की अनर्गल बातें चलती रहतीं. पति में आए परिवर्तन को देखदेख रोया करती. अब उन्हें सजते देख कर मुग्ध होने के बजाय जलभुन कर राख हो जाती. कभी उस के लिए दुनिया में उथलपुथल मचा दी थी शेखर ने, किसी सपने जैसा लगता वह कालखंड उसे. अब प्रेम सूख गया था, कीचड़ बचा था, जिस में दोनों मेढ़क की तरह हरदम टर्राया करते ऊंचे कर्कश स्वर में :

‘शेखर, तुम सुनते क्यों नहीं? मेरी बात का कोई असर क्यों नहीं होता?’

‘तुम्हारे पास एक ही राग है, जब देखो वही बजाया करती हो.’

‘तो सुधर जाओ न, क्यों करते हो ये सब.’

‘तुम सुधर जाओ वरना एक दिन बहुत पछताओगी,’ शेखर तमतमा जाते, क्रोध से पांव पटकते और फिर जो व्यंग्य बुझे तीर चलते और भयानक गृह युद्ध आरंभ होता वह समाप्त होने को न आता.

अब थकीहारी, टूटी प्रियम ने यही मान लिया कि निश्चय ही उस कलमुंही ने शेखर पर कोई वशीकरण किया होगा. वे इसे सब को बताती फिरतीं, सरेआम किसी को कोसा करतीं. पता नहीं कितनी सच थीं उन की बातें. कुछ कण बोए हुए और पालेपोसे हुए भी थे जिन से उबर पाना अब उन के वश में न रहा. संबंधों की चादर में इतने छेद हो चुके थे कि पैबंद लगाने का स्थान भी शेष न था. एक दिन जब वह संजना के पास आई थी, बड़ी परेशान सी थी. आते ही बिना किसी भूमिका के वह कंपित स्वर में बोली:

‘तू ठीक कहती थी संजू. तेरी बात मान लेती तो आज मेरा यह हाल न होता.’

‘हां रे, पर तब तो तेरे ऊपर प्रेम का भूत सवार था.’

‘मति मारी गई थी मेरी और क्या? अब तो लगता है कि कोई किसी से प्यार न करे, प्यार करे भी तो उस से विवाह न करे.’

संजना अचरज से प्रियम को देखती रह गई थी. शेखर से विवाह करने के लिए जब मना किया था, रोका था तो उस से रूठ गई थी प्रियम. इतने वर्षों बाद आज वह अपना हितअनहित जान रही है, पर अब तो बड़ी देर हो गई. जीवन में पीछे नहीं लौटा जा सकता. प्रियम की आंखों से अविरल अश्रुधारा बहे जा रही है. देह पर कीमती परिधान और आभूषण धारण किए, अकूत चलअचल संपत्ति की स्वामिनी होने पर भी प्रियम को आज कुछ भी अपना नहीं लग रहा है. अपनी ही रची विपत्ति के तूफान के भीतर से गुजरती हुई छटपटा रही प्रियम डरी हुई है. बारबार वह एक ही बात दोहरा रही है :

‘मुझे मार डालेंगे वे, तुम देख लेना एक दिन.’

‘ऐसा क्यों कह रही हो? शेखर तो कितना प्यार करते हैं तुम्हें. सारे बंधन तोड़ दिए तुम्हारे लिए. याद है जब तुम एक दिन औफिस नहीं आई थीं, तब क्या किया था उन्होंने…’

बात बीच में रोकते हुए प्रियम ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘वह कोई और ही शेखर थे संजू. अब तो बहुत तकलीफ देते हैं वे. मुझे देखना भी नहीं चाहते वे.’

उसे दुख हो रहा था कि जीवन जिस रूप में आया उसे सुंदर न बना सकी, हाथ में आए चांद को रोक नहीं पा रही. अपनी असमर्थता का बोझ उस ने सदा की भांति दूसरों के कंधों पर रख देना चाहा. कहने लगी, ‘संजू, तुम समझाओ न शेखर को. हो सकता है तुम्हारी बात मान जाए.’

‘ना बाबा ना, ऐसा मैं कैसे कर सकती हूं? एक बार तुम्हें समझाया तो था, उस दिन के बाद आज मिली हो और वैसे भी पतिपत्नी के मध्य तो कभी बोलना भी नहीं चाहिए,’ कान पकड़ते हुए संजना ने कहा. यह भी कहा, ‘तुम स्वयं इन बातों का समाधान तलाशो. बीती कड़वी बातें भुला कर नवजीवन आरंभ करो.’

तब ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ प्रियम को विदा करते समय संजना ने यह कहां सोचा था कि प्रियम को इस रूप में देखेगी वह. सांझ अपनी किरणें समेट रही थी. प्रियम भी अपनी अंतिम सांसें गिन रही थी, लगा जैसे सांसें अभी थम जाएंगी. और एक झटके से प्रियम की सांसों की डोर टूट गई. संजना विह्वल हो कर रो पड़ी, पर जैसे ही उस ने अश्रुपूरित दृष्टि से शेखर की ओर देखा, उस की रुलाई कंठ में ही अटक गई. चिरवियोग की इस कठिन घड़ी में शेखर के चेहरे पर कोई शिकन नहीं, दुख की मद्धम सी भी छाया नहीं. एकबारगी तो ऐसा लगा जैसे उस ने छुटकारा पा कर चैन की सांस ली हो. धिक्कार है, कुत्ताबिल्ली भी पालो तो उस का बिछोह सहन नहीं होता और यहां इतने बरसों का साथ छूटने का कोई गम नहीं. यदि प्रियम ने न बताया होता तो वह उस की ऐसी दशा को सामान्य ही समझती. पर अब उसे सब गड़बड़ लग रहा है. डाक्टर भी यही कह रहे थे, यह सामान्य मृत्यु नहीं थी. तो क्या थी? राह से हटाने का कुचक्र? पर ऐसे चालाक लोगों का झूठ तो मशीन भी नहीं पकड़ पाती है और सच बोलने वाले झूठे सिद्ध हो जाते हैं.

शायद ही कभी कोई जान पाए कि प्रियम के साथ क्या घटा था. जो हुआ अच्छा तो नहीं हुआ, पर कोई कर भी क्या सकता है. संजना का हृदय भर आया. कितना क्षणभंगुर है यह जीवन. कुछ भी स्थायी नहीं यहां. फिर भी न जाने किस बात का मानअभिमान करते हैं हम? आज प्रियम नहीं रही और उसी शेखर की आंखों में आंसू की एक बूंद तक नहीं. Hindi Kahani

Romantic Story In Hindi: दिल पे न जोर कोई

Romantic Story In Hindi: रीमा जल्दी से जूस दे दो, बहुत थकान हो रही है, आशीष ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘हां, अभी लाई,’’ कह रीमा रसोई में चली गई.

यह आशीष का रोज का काम था. अगले दिन आशीष बोला, ‘‘सुनो रीमा, मेरा कालेज का दोस्त मनीष अपने अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गया है… वही जिस के बेटे के जन्मदिन पर हम गए नहीं थे… आज मिला, जब मैं जिम से आ रहा था. वह तो झल्ला सा है, लेकिन उस की बीवी गजब की खूबसूरत है, आशीष बोला.

‘‘हमें क्या वह जाने और उस की बीवी,’’ रीमा बोली.

‘‘तुम जल्दी से नहा लो मैं नाश्ता तैयार करती हूं.’’

रीमा नोट कर रही थी कि आजकल आशीष जिम में ज्यादा देर लगा रहा है. अत: एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है देर कैसे हो गई? आज क्या खास बात है… जिम से पसीनापसीना हो कर आए, फिर भी चेहरे पर अलग ही खुशी झलक रही है? रोज की तरह अपनी थकान का रोना नहीं?’’ रीमा ने चुटकी लेते हुए आशीष से कहा.

‘‘क्या मैं रोज थकान का रोना रोता हूं?

अरे अपनेआप को फिट रखना क्या इतना आसान है? कभी जिम जा कर देख आओ कि अपनेआप को मैंटेन करने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. लो हो गए शुरू…. मेरी तरह 2 बच्चे पैदा करो पहले, फिर फिटनैस की बात करो मुझ से,’’ रीमा ने कहा.

‘‘पर आज तुम देर से आए… कोई खास बात?’’

‘‘नहीं कुछ खास नहीं,’’ आशीष बोला.

‘‘अरे वह मेरे दोस्त की पत्नी जिया जिम आती है आजकल, तो बस बातों में टाइम लग गया. क्या ऐक्सरसाइज करती है. तभी इतनी फिट है… कोई उस की उम्र का अंदाजा भी नहीं लगा सकता,’’ कह आशीष नहाने चला गया.

रीमा को आशीष के इरादे नेक न लगे. अब यह रोज का काम हो गया था.

आशीष रोज अपनी बेटी को स्कूल बस में छोड़ने जाता. उधर से जिया अपने बेटे को ले कर आती. दोनों बातें करते और देर हो जाती. कभी आशीष स्विमिंग पूल जाता तो जिया वहां मिल जाती… जब रीमा उन्हें आते बालकनी से देखती तो कुढ़ जाती.

कुछ दिन पहले अपार्टमैंट में न्यू ईयर पार्टी थी. दोनों दोस्त अपने परिवारों के साथ पार्टी हौल में आए. जिया को देख आशीष के चेहरे की मुसकराहट दोगुनी हो गई और रीमा उन्हें देख कर अपनी सहेलियों की तरफ बढ़ने लगी. ये मेरी सब से अच्छी सहेलियां हैं. हम इन्हीं के साथ रहेंगे. तुम्हारा दोस्त तो झल्ला सा है पर ये लोग तो बहुत अच्छी हैं.’’

आशीष बोला, ‘‘बस दोस्त ही झल्ला है, जिया को देखो… आज भी कितनी सुंदर ड्रैस पहन कर आई है. पूरी फिगर निखर कर आ रही है और उस लंगूर को देखो… वही कपड़े जो औफिस में पहन कर जाता है.’’

रीमा आशीष को वहां से खींच कर ले गई. आशीष था तो रीमा के साथ, लेकिन नजरें जिया पर ही टिकी थीं. जिया भी आशीष की प्लैंजेंट पर्सनैलिटी से बहुत प्रभावित थी सो जब आशीष उसे देखता तो मुसकरा देती. उस का अपना पति तो किसी चीज का शौकीन नहीं था. उसे तो पार्टी में भी खींच कर लाना पड़ता. न तो वह कपड़े ढंग से पहनता न ही जूते. जबकि जिया हर वक्त मौसम के हिसाब से बनीठनी रहती. तभी तो आशीष मनीष के लिए लंगूर के हाथ में अंगूर बोलता.

एक दिन आशीष ने मनीष की फैमिली को डिनर पर बुलाया. रीमा कहने लगी,

‘‘जब तुम्हें अपना दोस्त पसंद ही नहीं तो क्यों बुलाते हो उसे?’’

आशीष बोला, ‘‘अच्छा नहीं लगता… इतने दिन हुए यहां आए उन्हें… हम ने एक बार भी अपने घर नहीं बुलाया?’’

‘‘तो उन्होंने कौन सा बुलाया?’’ रीमा चिढ़ कर बोली.

संडे को जिया पूरे परिवार के साथ आशीष के घर थी. जब आशीष ने उस से औैर बातें कीं तो वह उस के नौलेज को देखता ही रह गया. उसे मन ही मन लगने लगा कि कहां मनीष कहां जिया. उस ने जिया की बहुत तारीफ  की. रीमा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था.

मनीष का परिवार खाना खा कर चला गया. उन के जाने के बाद आशीष बोला, ‘‘जिया ने अपने बच्चों की परवरिश बहुत सही तरीके से की है. कितने सलीके से बात करते हैं और पढ़ाई में भी अच्छे हैं.’’

‘‘तो हमारे कौन से कम हैं?’’ रीमा का जवाब सुन आशीष ने चुप्पी लगा ली.

अब आशीष के घर अकसर जिया की बात होती जो रीमा को जरा भी न सुहाती. उसे ऐसा लगता जैसे आशीष के दिलोदिमाग में जिया रचबस गई है.

उधर जिया भी मनीष से अकसर आशीष की ही बातें करती. कहती, कितना शौकीन है तुम्हारा दोस्त आशीष. हर वक्त हंसीठहाके लगाता रहता है… सोसायटी के कार्यक्रमों में भी कितना आगे रहता है… हर प्रोग्राम में उस का नाम अनाउंस होता है, स्पोर्ट्स में, कल्चरल्स में.

शायद जिया और आशीष एकदूसरे को मन ही मन चाहने लगे थे. इसीलिए दोनों अपनेअपने परिवार में एकदूसरे की बात किया करते. मनीष का तो इस तरफ ध्यान नहीं पड़ा क्योंकि वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता, लेकिन रीमा मन ही मन जिया से जलने लगी थी. यहां तक कि अपने बच्चों से भी कहती कि जिया के बच्चों के साथ न खेलें.

जिया के बच्चे जब उन से खेलने को कहते तो रीमा की बेटी कहती, ‘‘नहीं मम्मी डांटेंगी.’’ जब यह बात जिया को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा.

एक दिन स्कूल बस जल्दी आ गई और जिया व आशीष दोनों के बच्चों की बस छूट गई. आशीष बोला, ‘‘मैं कार से ड्रौप कर आता हूं.’’

‘‘ओके,’’ जिया बोली लेकिन जिया का बेटा नए अंकल के साथ जाने को तैयार नहीं. अत: जिया भी उस के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गई.

आशीष ने कहा,‘‘ जिया, यू कैन कम टू फ्रंट सीट.’’

‘‘आई डौंट माइंड,’’ जिया ने कहा और कार की अगली सीट पर आ कर बैठ गई.

रीमा की सहेली ने जब यह बात रीमा को बताई तो उस के तो जैसे होश उड़ गए. अत: अगले दिन वह आशीष से बोली, ‘‘बच्चों को स्कूल बस तक मैं ही छोड़ जाऊंगी. तुम्हें वहां बहुत समय लग जाता है.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि रीमा क्या कहना चाहती है. लेकिन जब वह बस स्टौप पर गई तो उसे जिया फूटी आंख न सुहाई. दूसरी सहेलियों के साथ खड़ी बातों ही बातों में वह जिया को ताने मारने लगीं. जिया को भी समझते देर न लगी. लेकिन क्या करती. पहले दिन वही तो उस के पति के साथ कार की आगे की सीट पर बैठ कर गई थी. वह चुपचाप अपने बेटे को बस में बैठा कर वहां से चली गई.

रीमा जब लौट कर आई तो देखा आशीष बालकनी में खड़ा जिया से जोरजोर से बातें कर रहा था.

रीमा जिया के पास पहुंच कर बोली, ‘‘जिया के घर में ही आ जाओ न… ऐसे जोरजोर से बातें करना अच्छा नहीं लगता न.’’

कहने को तो रीमा घर आने का आग्रह कर रही थी, लेकिन उस के चेहरे की कुटिल मुसकान देख जिया समझ गई थी कि रीमा क्या कहना चाह रही है. अत: वह वहां से चुपचाप चल दी. पीछे मुड़ कर देखा तो आशीष बालकनी से उसे हाथ हिला कर बायबाय कर रहा था.

घर आ कर जिया बहुत उदास थी. मन ही मन सोच रही थी कि रीमा की गलती भी तो नहीं… आखिर उस का पति है आशीष… पर स्वयं भी क्या करे? बस बात ही तो कर रही थी उस से… अगर उसे आशीष से बात करना अच्छा लगता है तो उस में बुराई भी क्या है? क्या किसी के पति से बात करना गुनाह है? रीमा इतनी चिढ़ क्यों गई?

एक दिन जब आशीष औफिस चला गया तो जिया ने रीमा को इंटरकौम किया, ‘‘रीमा, इस रविवार तुम सपरिवार हमारे घर आओ, डिनर साथ ही करेंगे.

रीमा ने बहाना बनाते हुए कहा, ‘‘दरअसल, उस दिन के हमारे मूवी टिकट आए हैं. हम पिक्चर देखने जाएंगे, इसलिए नहीं आ पाएंगे.’’

‘‘ओके, नो प्रौब्लम… फिर कभी,’’ औैर इंटरकौम रख दिया.

शाम के समय जब जिया अपने बेटे के साथ स्विमिंग के लिए गई तो आशीष नीचे ही मिल गया. जिया ने पूछा, ‘‘गए नहीं मूवी के लिए?’’

आशीष बोला, ‘‘कौन सी मूवी?’’

जिया बोली, ‘‘रीमा ने कहा था कि तुम लोग आज मूवी देखने जा रहे हो.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि ऐसा क्यों बोला रीमा ने. लेकिन जिया सब समझ गई थी कि रीमा उसे पसंद नहीं करती. आशीष ने

घर आ कर रीमा से पूछा तो बोली, ‘‘हां कह दिया ऐसे ही… जब वह मुझे पसंद नहीं, तो क्यों दोस्ती बढ़ाऊं?’’

आशीष मन ही मन तड़प उठा कि यह जिया के लिए कितना इनसल्टिंग है? पर क्या करता.

अब रोज रीमा ही बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने जाती. जिया आशीष से मिलने को तरस गई थी. कभी नीचे मिलती तो रीमा की घूरती नजरें देख वह बात न कर पाती. बस अपना रास्ता बदल लेती. आखिर रीमा आशीष की पत्नी है, सो आशीष पर हक तो उसी का है. अब जिया को आशीष को देखे बगैर चैन न मिलता. रीमा को जब भी मौका मिलता जिया को ताना मार ही देती. एक बार तो किट्टी पार्टी में जब सब महिलाएं बोलीं कि बच्चों को संभालने में ही सारा वक्त बीत जाता है. तो रीमा ने जिया की तरफ आंखें मटकाते हुए कहा, ‘‘बच्चों को ही नहीं पति को भी तो संभालना पड़ता है… बहुत शूर्पणखा हैं यहां जो डोरे डालने आ जाती हैं.’’

अपने लिए शूर्पणखा शब्द सुन जिया को बहुत बुरा लगा. उस की आंखें भर आईं. लेकिन दिल से मजबूर थी. सो पलट कर कुछ न बोली. आखिर रीमा पत्नी का हक रखती है. इसीलिए बोल रही है. फिर क्या पता उस के दिल में बसी यह चाहत एकतरफा हो… पता नहीं आशीष उसे चाहता भी है या नहीं? फिर मन ही मन सोचने लगी काश, मुझे आशीष जैसा पति मिला होता तो शायद यह न होता. कहने को तो मनीष बहुत ठीक है, लेकिन इतना पढ़ाकू , कैरियर कौंशस, न ही कोई शौक न इच्छाएं. पर उस में मनीष का दोष भी तो नहीं. सब देखभाल कर ही तो जिया ने इस विवाह के लिए हामी भरी थी. मनीष तो घर के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभा ही रहा है. बस उस का ही दिल है कि न जाने क्यों आशीष की तरफ खिंचा जाता है.

अब जिम ही बस एकमात्र ठिकाना था जहां दोनों मिल सकते थे. सो वहीं थोड़ी देर मिल कर बात कर लेते. लेकिन कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते सो जिम में आसपास वर्कआउट करते लोग उन्हें बातें करते चोर नजरों से देखते और कभीकभी तो कोई टौंट भी मार देते.

अब जिया को लगने लगा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है. अत: उस ने अपने जिम का टाइम चेंज करा लिया. आशीष से बात न करने की ठान ली.

कई दिन जब जिया दिखाई न दी तो आशीष अनमना सा हो गया. फिर एक दिन अपने दोस्त से मिलने के बहाने जिया के घर चला गया. घर में जिया अकेली थी. आशीष ने जिया से अपने दिल की बात कह डाली. सुन कर जिया खिल उठी. अब दोनों ने तय किया कि अपार्टमैंट के बाहर मिला करेंगे. रीमा ने अपार्टमैंट की सभी महिलाओं को भी बता दिया था कि जिया कैसे उस के पति पर डोरे डाल रही है. अत: सभी महिलाओं ने उस से दूरी बना ली थी.

एक दिन आशीष औफिस से जल्दी निकल गया और फिर जिया को फोन कर पास ही की कौफी शौप में बुला लिया. जिया भी झट से बनठन कर उस से मिलने चली आई. कहने को तो कौफी शौप खचाखच भरा था, लेकिन उन दोनों के लिए तो जैसे पूरा एकांत था. दोनों आंखों में आंखें डाले मुसकरा कर बातें कर रहे थे कि तभी जिया की नजर रीमा की सहेली पर पड़ी.

वह वहां अपने पति के साथ आई थी. दोनों को साथ देख कर बोली, ‘‘हैलो, आप दोनों यहां?

नो प्रौब्लम ऐंजौय. ऐंजौय पर उस ने जो जोर डाला जिया समझ गई कि टौंट मार कर गई है. आशीष और जिया भी शीघ्र ही अपने घर रवाना हो गए. अगले दिन बच्चों को स्कूल बस में छोड़ने बस स्टौप पर जिया नहीं गईर् और मनीष को भेजा. वह जानती थी कि आज रीमा उसे नहीं छोड़ने वाली. मनीष जब घर आए तो कुछ उखड़े हुए दिखाई दिए.

जिया ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘रीमा तुम्हारी शिकायत कर रही थी. सब लोगों के सामने मुझे बहुत बुराभला कहा.’’

जिया के तो मानो पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. झट से नहाने का बहाना कर बाथरूम में चली गई. क्या करती बेचारी. एक तरफ पति तो दूसरी तरफ प्यार. वहीं खड़े कुछ आंसू बहा आई.

उस दिन मनीष दफ्तर नहीं गया. बोला, ‘‘ हम घर बदल लेते हैं जिया.’’

अगले ही महीने वे नए अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गए. इतना ही नहीं मनीष ने दूसरे शहर में ट्रांसफर के लिए दफ्तर में रिक्वैस्ट भी दे दी. शहर तो बदल गया, लेकिन जिया के मन में आशीष की याद सदा के लिए रह गई. कोशिश करती कि भूल जाए, किंतु भुलाए न भूलती. दिल के हाथों मजबूर थी. उस ने तो सोचा भी न था कि कभी प्यार इतने दबे कदमों आएगा और उस के दिल पर सदा के लिए अपना राज कर लेगा.  बरस बीते, किंतु चंद लमहे जो आशीष के साथ बिताए थे, उस के मन को तरोताजा कर जाते. वह मुसकरा उठती और मन ही मन कहती दिल पे न जोर कोई. Romantic Story In Hindi

Hindi Family Story: देर आए दुरुस्त आए

Hindi Family Story, नीलिमा शोरेवाल

‘‘अरे-रे, यह क्या हो गया मेरी बच्ची को. सुनिए, जल्दी यहां आइए.’’

बुरी तरह घबराई अनीता जोर से चिल्ला रही थी. उस की चीखें सुन कर कमरे में लेटा पलाश घबरा कर अपनी बेटी के कमरे की ओर भाग जहां से अनीता की आवाजें आ रही थीं.

कमरे का दृश्य देखते ही उस के होश उड़ गए. ईशा कमरे के फर्श पर बेहोश पड़ी थी और अनीता उस पर झुकी उसे हिलाहिला कर होश में लाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘क्या हुआ, यह बेहोश कैसे हो गई?’’

‘‘पता नहीं, सुबह कई बार बुलाने पर भी जब ईशा बाहर नहीं आई तो मैं ने यहां आ कर देखा, यह फर्श पर पड़ी हुई थी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा. मैं ने इस के मुंह पर पानी भी छिड़का लेकिन इसे तो होश ही नहीं आ रहा.’’

‘‘तुम घबराओ मत, मैं गाड़ी निकालता हूं. हम जल्दी से इसे डाक्टर के पास ले कर चलते हैं.’’

पलाश और अनीता ने मिल कर उसे गाड़ी की सीट पर लिटाया और तुरंत पास के नर्सिंगहोम की तरफ भागे. नर्सिंगहोम के प्रमुख डाक्टर प्रशांत से पलाश की अच्छी पहचान थी सो, बिना ज्यादा औपचारिकताओं के डाक्टर ईशा को जांच के लिए अंदर ले गए. अगले आधे घंटे तक जब कोई बाहर नहीं आया तो अनीता के सब्र का बांध टूटने लगा. वह पलाश से अंदर जा कर पता करने को कह ही रही थी कि डाक्टर प्रशांत बाहर निकले और उन्हें अपने कमरे में आने का इशारा किया.

‘‘क्या हुआ, प्रशांत भैया? ईशा को होश आया या नहीं? उसे हुआ क्या है?’’ उन के पीछे कमरे में घुसते ही अनीता एक ही सांस में बोलती चली गई.

‘‘भाभीजी, आप दोनों यहां बैठो. मुझे आप से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ पलाश और अनीता का दिल बैठ गया. जरूर कुछ सीरियस बात है.

‘‘जल्दी बताओ प्रशांत, आखिर बात क्या है?’’

डाक्टर प्रशांत अपनी कुरसी पर बैठ कर कुछ पल दोनों को एकटक देखते रहे. फिर बड़े नपेतुले स्वर में धीरे से बोले, ‘‘मेरी बात सुन कर तुम लोगों को धक्का लगेगा लेकिन सिचुएशन ऐसी है कि रोनेचिल्लाने या घबराने से काम नहीं चलेगा. कोई भी कदम उठाने से पहले चार बार सोचना होगा. दरअसल बात यह है कि ईशा ने आत्महत्या करने की कोशिश की है.’’

‘‘क्…क्याऽऽ?’’ पलाश और अनीता दोनों एकसाथ कुरसी से ऐसे उछल कर खड़े हुए जैसे करंट लगा हो.

‘‘क्या कह रहे हैं डाक्टर, ऐसा कैसे हो सकता है. आत्महत्या तो वे लोग करते हैं जिन्हें कोई बहुत बड़ा दुख या परेशानी हो. मेरी इकलौती बेटी इतने नाजों में पली, जिस की हर फरमाइश मुंह खोलने से पहले पूरी हो जाती हो, जो हमेशा हंसतीखिलखिलाती रहती हो, पढ़ाई में भी हमेशा आगे रहती हो, जिस के ढेरों दोस्त हों, ऐसी लड़की भला क्यों आत्महत्या करने की सोचेगी.’’ पलाश के चेहरे पर उलझन के भाव थे. अनीता तो सदमे के कारण कुरसी का हत्था पकड़े बस डाक्टर को एकटक घूरे जा रही थी. फिर अचानक जैसे उसे होश आया, ‘‘लेकिन अब कैसी है वह? सुसाइड किया कैसे? कोई जख्म तो शरीर पर था नहीं…’’

‘‘उस ने नींद की गोलियां खाई हैं. भाभी, 10-12 गोलियां ही खाई, तभी तो हम उसे बचा पाए. खतरे से तो अब वह बाहर है लेकिन इस समय उस की जो शारीरिक व मानसिक हालत है, उस में उसे संभालने के लिए आप को बहुत ज्यादा धैर्य और समझदारी की जरूरत है. और जहां तक सुखसुविधाओं का सवाल है पलाश, तो पैसे या ऐशोआराम से ही सबकुछ नहीं होता. उस के ऊपर जरूर कोई बहुत बड़ा दबाव या परेशानी होगी जिस की वजह से उस ने यह कदम उठाया है.

‘‘15-16 साल की यह उम्र बहुत नाजुक होती है. बचपन से निकल कर जवानी की दहलीज पर कदम रखते बच्चे अपनी जिंदगी और शरीर में हो रहे बदलावों की वजह से अनेक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं. अब तक मांबाप से हर बात शेयर करते आए बच्चे अचानक ही सबकुछ छिपाना भी सीख जाते हैं. इसीलिए अकसर पेरैंट्स को पता ही नहीं चलता कि उन के अंदर ही अंदर क्या चल रहा है. ‘‘ईशा के मामले में भी यही हुआ है, वह किसी वजह ये इतनी परेशान थी कि उसे उस का और कोई हल नहीं सूझा. अब तुम दोनों को बड़े ही प्रेम और धीरज से पहले उस की समस्या का पता लगाना है और फिर उस का निदान करना है. और हां, मैं ने अपने स्टाफ को हिदायत दे दी है कि यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए. वरना बेकार में पुलिस केस बन जाएगा. तुम लोग भी इस बात का खयाल रखना कि यह बात किसी को पता न चले वरना पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रह जाओगे. बदनामी होगी वह अलग. बच्ची का समाज में जीना दूभर हो जाएगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हो तुम. हम बिलकुल ऐसा ही करेंगे,’’ पलाश अब तक थोड़ा संभल गया था. ‘‘और हां,’’ डाक्टर प्रशांत आगे बोले, ‘‘वैसे तो तुम दोनों पतिपत्नी काफी समझदार और सुलझे हुए हो, फिर भी मैं तुम्हें बता दूं कि अभी 5-7 मिनट में ईशा होश में आने वाली है और जैसे ही उसे पता चलेगा वह जिंदा है, उसे एक धक्का लगेगा और वह काबू से बाहर होने लगेगी. उस समय तुम दोनों घबराना मत और न ही उस से कुछ पूछना. धीरेधीरे जब उस की मानसिक अवस्था इस लायक हो जाए, तब बड़े ही प्यार से उसे विश्वास में ले कर यह पता लगाना कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया.’’

‘‘ठीक है भैया, हम सब समझ गए. क्या हम अभी उस के पास चल सकते हैं?’’

‘‘चलिए,’’ और तीनों ईशा के कमरे की तरफ बढ़ गए.

जैसा डाक्टर प्रशांत ने उन्हें बताया था वैसा ही हुआ. होश आने पर बुरी तरह मचलती और हाथपांव पटकती ईशा को संभालते हुए अनीता का कलेजा मुंह को आ रहा था. चौबीसों घंटे साथ रहते हुए भी वह जान ही न पाई कि ऐसा कौन सा दुख था जो उस की जान से प्यारी बेटी को ऐसे उस से दूर ले गया. चाहे जो भी हो, मैं जल्दी से जल्दी सारी बात का पता लगा कर ही रहूंगी, यही विचार उस के मन में बारबार उठता रहा. लेकिन उस का सोचना गलत साबित हुआ. घटना के 10 दिन बीत जाने के बाद, लाख कोशिशों के बावजूद दोनों पतिपत्नी बुरी तरह डरीसहमी ईशा से कुछ भी उगलवाने में कामयाब नहीं हुए. तब डाक्टर प्रशांत ने उन्हें उसे काउंसलर के पास  ले जाने का सुझाव दिया. वहां भी 6 सिटिंग्स तक तो कुछ नहीं हुआ 7वीं सिटिंग के बाद काउंसलर ने उन्हें जो बताया उसे सुन कर तो दोनों के पैरों तले जमीन ही खिसक गई.

काउंसलर के अनुसार, ‘‘2 महीने पहले ईशा की 1 लड़के से फेसबुक पर दोस्ती हुई. चैटिंग द्वारा धीरेधीरे दोस्ती बढ़ी और फिर प्रेम में तबदील हो गई. फिर फोन नंबरों का आदानप्रदान हुआ और चैटिंग वाट्सऐप पर होने लगी. प्रेम का खुमार बढ़ने के साथसाथ फोटोग्राफ्स का आदानप्रदान शुरू हुआ. शुरू में तो यह साधारण फोटोज थे लेकिन धीरेधीरे नएनवेले प्रेमी की बारबार की फरमाइशों पर ईशा ने अपने कुछ न्यूड और सेमी न्यूड फोटोग्राफ्स भी उसे भेज दिए. अब प्रेमी की नई फरमाइश आई कि ईशा उसे आ कर किसी होटल में मिले. उस के साफ मना करने पर लड़के ने उसे धमकी दी कि अगर वह नहीं आई या उस ने किसी को बताया तो वह उस के सारे फोटोज फेसबुक पर अपलोड कर देगा.

‘‘ईशा ने उस से बहुत मिन्नतें कीं, अपने प्रेम का वास्ता दिया लेकिन प्रेम वहां था ही कहां? लड़के ने उसे 1 हफ्ते का अल्टीमेटम दिया और इस भयंकर प्रैशर को नहीं झेल पाने के कारण ही छठे दिन आधी रात के वक्त अपना अंतिम अलविदा का मैसेज उसे भेज कर ईशा ने सुसाइड करने की कोशिश की.’’ पलाश यह सब सुनते ही बुरी तरह भड़क गया, ‘‘मैं उस कमीने को छोड़ूंगा नहीं, मैं अभी पुलिस को फोन कर के उसे पकड़वाता हूं.’’ ‘‘प्लीज मिस्टर पलाश, ऐसे भड़कने से कुछ नहीं होगा. मेरी बात…’’

‘‘इतनी बड़ी बात होने के बाद भी आप मुझे शांति रखने को कह रहे हैं?’’ काउंसलर की बात बीच में ही काट कर पलाश गुर्राया.

‘‘अच्छा ठीक है, जाइए,’’ वह शांत मुसकराहट के साथ बोले, ‘‘लेकिन जाएंगे कहां? किसे पकड़वाएंगे? उस लड़के का नामपता है आप के पास? उस के फेसबुक अकाउंट के अलावा क्या जानकारी है आप को उस के बारे में? आप को क्या लगता है,  ऐसे लोग अपनी सही डिटेल्स देते हैं अपने अकाउंट पर? कभी नहीं. नाम, उम्र, फोटो आदि सबकुछ फेक होता है. तो कैसे ढूंढ़ेंगे उसे?’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’’ पलाश हारे हुए जुआरी की तरह कुरसी पर धम से बैठ गया.

तभी अनीता को याद आया, ‘‘फोन नंबर तो है न, ईशा के पास उस का.’’

‘‘उस से भी कुछ नहीं होगा. ऐसे लोग सिम भी गलत नाम से लेते हैं और ईशा का सुसाइड मैसेज मिलने के बाद तो वह उस सिम को कब का नाली में फेंक कर अपना नंबर बदल चुका होगा.’’ ‘‘ओह, तो अब हम क्या करें? ईशा का नंबर तो उस के पास है ही, जैसे ही उसे पता चलेगा कि वह ठीक है, वह फिर से उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर देगा. और भी न जाने कितनी लड़कियों को अपना शिकार बना चुका होगा. क्या इस समस्या का कोई हल नहीं?’’

‘‘आप दिल छोटा मत कीजिए. यह काम मुश्किल जरूर है पर असंभव नहीं. मैं एक साइबर सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट का नंबर आप को देता हूं. वे जरूर आप की मदद करेंगे.’

‘‘साइबर सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट से आप का क्या मतलब है?’’

‘‘मतलब, जैसे दुनिया में छोटेबड़े अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस होती है, वैसे ही इंटरनैट की दुनिया यानी साइबर वर्ल्ड में भी तरहतरह के अपराध और धोखाधड़ी होती हैं, उन से निबटने के लिए कंप्यूटर के जानकार सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट का काम करते हैं, ताकि इन स्मार्ट अपराधियों को पकड़ा जा सके. ये हमारी सरकार द्वारा ही नियुक्त किए जाते हैं और पुलिस और कानून भी इन का साथ देते हैं. आप आज ही जा कर मिस्टर अजीत से मिलिए.’’ अंधरे में जगमगाई इस रोशनी की किरण का हाथ थामे पलाश और अनीता उस ऐक्सपर्ट अजीत के औफिस में पहुंचे. ईशा को भी उन्होंने पूरी बात बता दी थी और उस लड़के के पकड़े जाने की उम्मीद ने उस के अंदर भी साहस का संचार कर दिया था. वह भी उन के साथ थी. उन सब की पूरी बात सुन कर अजीत एकदम गंभीर हो गया.‘‘बड़ा अफसोस होता है यह देख कर कि छोटेछोटे बच्चे पढ़ाईलिखाई की उम्र में इस तरह के घिनौने अपराधों में लिप्त हैं. आप की समस्या तो खैर हमारी टीम चुटकियों में सुलझा देगी. हमें बस इस लड़के का अकाउंट हैक करना होगा और सारी जानकार मिल जाएगी. फिर चैटिंग के सारे रिकौर्ड्स के आधार पर आप उसे जेल भिजवा सकते हैं.’’

‘‘क्या सचमुच यह सब संभव है?’’

‘‘जी हां, हमारे पास साइबर ऐक्सपर्ट्स की पूरी टीम है, जिन के लिए यह सब बहुत ही आसान है. हम लोग हर रोज करीब 15-20 ऐसे और बहुत से अलगअलग तरह के मामले हैंडल करते हैं. कुछ केस तो 1 ही कोशिश में हल हो जाते हैं, लेकिन कुछ में जहां अपराधी पढ़ेलिखे और कंप्यूटर के जानकार होते हैं वहां ज्यादा समय और मेहनत लगती है.’’ ‘‘तो क्या साइबर वर्ल्ड में इतनी धोखाधड़ी होती है?’’ ईशा ने हैरानी से पूछा.

‘‘बिलकुल,’’ अजीत ने जवाब दिया, ‘‘यह एक वर्चुअल दुनिया है. यहां जो दिखता है, अकसर वह सच नहीं होता. यहां आप एक ही समय में सैकड़ों रूप बना कर हजारों लोगों को एकसाथ धोखा दे सकते हैं. फेसबुक पर लड़कियों के नाम से झूठे प्रोफाइल बना कर दूसरी लड़कियों से मजे से दोस्ती करते हैं या उन्हें अश्लील मैसेज भेजते हैं. शादीविवाह वाली साइटों पर नकली प्रोफाइलों से शादी का झांसा दे कर अमीर लड़केलड़कियों को फंसाया जाता है. सोशल साइटों पर अकसर लोग अपनी विदेश यात्राओं, महंगी गाडि़यों आदि चीजों की फोटोग्राफ्स डालते रहते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ अपराधी तत्व उन के अकाउंट की इन सारी गतिविधियों पर नजर रखे होते हैं. जब जहां मौका लगता है, चोरियां करवा दी जाती हैं. औनलाइन बैंकिंग बड़ी सुविधाजनक  है, लेकिन अगर कोई हैकर आप का अकाउंट हैक कर ले तो आप का सारा बैंक बैलेंस तो गया समझो.’’

‘‘अगर ये सब इतना असुरक्षित है तो क्या ये सब छोड़ देना चाहिए?’’ अनीता ने पूछा.

‘‘नहीं, छोड़ने की जरूरत नहीं. हमें जरूरत है सिर्फ थोड़ी सावधानी की, दरअसल, हमारे यहां जागरूकता का अभाव है. हम छोटेछोटे बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन और लैपटौप तो पकड़ा देते हैं लेकिन उन्हें उन के खतरों से अवगत नहीं कराते. उन्हें हर महीने रिचार्ज तो करा देते हैं लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं करते कि बच्चे ने क्या डाउनलोड किया या क्याक्या देखा. उम्र के लिहाज से जो चीजें उन के लिए असल संसार में वर्जित हैं, वे सब इस वर्चुअल दुनिया में सिर्फ एक क्लिक पर उपलब्ध हैं.

‘‘कच्ची उम्र और अपरिपक्व दिमाग पर इन चीजों का अच्छा असर तो पड़ने से रहा. सो, वे तरहतरह की गलत आदतों में आपराधिक प्रवृत्तियों का शिकार हो जाते हैं. ये सब कुछ न हो, इस के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. बहुत छोटे बच्चों को अपने पर्सनल गैजेट्स न दें. पीसी या लैपटौप पर जब वे काम करें तो उन के आसपास रह कर उन पर नजर रखें ताकि वे किसी गलत साइट पर न जा सकें. चाइल्ड लौक सौफ्टवेयर का भी प्रयोग किया जा सकता है. फेसबुक या वाट्सऐप का प्रयोग करने वाले बच्चे और बड़े भी यह ध्यान रखें कि वे किसी के कितना भी उकसाने पर भी कोई गलत कंटैंट या तसवीरें शेयर न करें. अपनी सिक्योरिटी और प्राइवेसी सैटिंग्स को ‘ओनली फ्रैंड्स’ पर रखें ताकि कोई गलत आदमी उस में घुसपैठ न कर सके. अनजान लोगों से न दोस्ती करें न चैट. अगर कोई आप को गलत कंटैंट भेजता है तो उसे तुरंत ब्लौक कर दें और फेसबुक पर उस की शिकायत कर दें. ऐसी शिकायतों पर फेसबुक तुरंत ऐक्शन लेता है.

‘‘अपने ईमेल, फेसबुक, ट्विटर या बैंक अकाउंट्स के पासवर्ड अलगअलग रखें और समयसमय पर उन्हें बदलते रहें. किसी और के फोन या कंप्यूटर से कभी अपना कोई भी अकाउंट खोलें तो लौगआउट कर के ही उसे बंद करें. इन छोटीछोटी बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो काफी हद तक हम साइबर क्राइम से अपने को बचा सकते हैं,’’ इतना कह कर अजीत चुप हो गया. पलाश, अनीता और ईशा मानो नींद से जगे, ‘‘इन सब चीजों के बारे में तो हम ने कभी सोचा ही नहीं. लेकिन देर आए दुरुस्त आए. अब हम खुद भी ये सब ध्यान रखेंगे और अन्य लोगों को भी इस बारे में जागरूक करेंगे,’’ पलाश दृढ़ता से बोला.

अगले 2 दिन बड़ी भागदौड़ में बीते. अजीत और उन की टीम को उस लड़के नितिन की पूरी जन्मकुंडली निकालने में सिर्फ 2 घंटे लगे. पुलिस की टीम के साथ उस के घर से उसे दबोच कर उसे जेल भेज कर वापस लौटते समय तीनों बहुत खुश थे.

‘‘मौमडैड, मुझे माफ कर दीजिए. मेरी वजह से आप को इतनी परेशानी उठानी पड़ी,’’ अचानक ईशा ने कहा.

‘‘ईशा, तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं और तुम्हारे पापा तो जीतेजी मर जाते,’’ एकदम से अनीता की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘कसम खाओ, आगे से कभी ऐसा कुछ करने के बारे कभी नहीं सोचोगी.’’ ‘‘नहीं, कभी नहीं. अब मैं सिर्फ अपनी पढ़ाई और भविष्य पर ध्यान दूंगी और ऐसी गलती दोबरा कभी नहीं करूंगी,’’ कहती हुई ईशा की आंखों में जिंदगी की चमक थी. Hindi Family Story

Short Story In Hindi: ठीक हो गए समीकरण

Short Story In Hindi: ‘‘प्रैक्टिकल होने का क्या फायदा? लौजिक बेकार की बात है. प्रिंसिपल जीवन में क्या दे पाते हैं? सिद्धांत केवल खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द होते हैं, जो हमेशा डरडर कर जीवन जीते हैं. सचाई, ईमानदारी सब किताबी बातें हैं. आखिर इन का पालन कर के तुम ने कौन से झंडे गाड़ लिए,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और उसे लगा जैसे वह किसी कठघरे में खड़ी है. उस के जीवन यहां तक कि उस के वजूद की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. सारे समीकरण गलत व बेमानी साबित करने की कोशिश की जा रही है.

‘‘जो तुम कमिटमैंट की बात करती हो वह किस चिडि़या का नाम है… आज के जमाने में कमिटमैंट मात्र एक खोखले शब्द से ज्यादा और कुछ नहीं है. कौन टिकता है अपनी बात पर? अपने हित की न सोचो तो अपने सगे भी धोखा देते हैं और तुम हो कि सारी जिंदगी यही राग अलापती रहीं कि जो कहो, उसे पूरा करो.’’

‘‘तुम कहना चाहते हो कि झूठ और बेईमान ही केवल सफल होते हैं,’’ सुकांत की

इतनी कड़वी बातें सुनने के बावजूद वह उस की संकीर्ण मानसिकता के आगे झुकने को तैयार नहीं थी. आखिर कैसे वह उस की जिंदगी के सारे फलसफे को झुठला सकता है? जिस आदमी को उस ने अपनी जिंदगी के 25 साल दिए हैं, वही आज उस का मजाक उड़ा रहा है, उस की मेहनत, उस के काम और कबिलीयत सब को इस तरह से जोड़घटा रहा है मानो इन सब चीजों का आकलन कैलकुलेटर पर किया जाता हो. हालांकि जिस तरह से सुकांत की कनविंस व मैनीपुलेट करने की क्षमता है, उस के सामने कुछ पल के लिए तो उस ने भी स्वयं को एक फेल्योर के दर्जे में ला खड़ा किया था.

‘‘अगर तुम ने यह ईमानदारी और मेहनत का जामा पहनने के बजाय चापलूसी और डिप्लोमैसी से काम लिया होता तो आज अपने कैरियर की बुलंदियों को छू रही होती. सोचो तो उम्र के इस पड़ाव पर तुम कहां हो और तुम से जूनियर कहां निकल गए हैं. अचार डालोगी अपनी काबिलीयत का जब कोई पूछने वाला ही नहीं होगा,’’ सुकांत के चेहरे पर एक बीभत्सता छा गई थी. लग रहा था कि आज वह उस का अपमान करने को पूरी तरह से तैयार था. अपनी हीनता को छिपाने का इस से अच्छा तरीका और हो भी क्या सकता था उस के लिए कि वह उस के सम्मान के चीथड़े कर दे.

‘‘फिर तो तुम्हारे हिसाब से मैं ने जो ईमानदारी और पूर्ण समर्पण के साथ तुम्हारे साथ अपना रिश्ता निभाया, वह भी बेमानी है. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,’’ उस ने थोड़ी तलखी से कहा.

‘‘मैं रिश्ते की बात नहीं कर रहा. दोनों चीजों को साथ न जोड़ो. मैं तुम्हारे कैरियर के बारे में बात कर रहा हूं,’’ सुकांत जैसे हर तरह से मोरचा संभाले था.

‘‘क्यों, यह बात तो हर चीज पर लागू होनी चाहिए. तुम अपने हिसाब से जब चाहो मानदंड तय नहीं कर सकते… और जहां तक मेरी बात है तो मैं अपने से संतुष्ट हूं खासकर अपने कैरियर से. तुम ने कभी न तो मुझे मान दिया है और न ही दे सकते हो, क्योंकि तुम्हारी मानसिकता में ऐसा करना है ही नहीं. किसे बरदाश्त कर सकते हो तुम,’’ न जाने कब का दबा आक्रोश मानो उस समय फूट पड़ा था. वह खुद हैरान थी कि आखिर उस में इतनी हिम्मत आ कहां से गई.

‘‘ज्यादा बकवास मत करो नीला, कहीं मेरा धैर्य न चुक जाए,’’ बौखला गया था सुकांत. इतना सीधा प्रहार इस से पहले नीला ने उस पर कभी नहीं किया था.

‘‘तुम्हारा धैर्य तो हमेशा बुलबुलों की तरह धधकता रहा है… मारोगे? गालियां दोगे? इस के सिवा तुम कर भी क्या सकते हो? अच्छा यही होगा हम इस बारे में और बात न करें,’’ नीला बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. फायदा भी कुछ नहीं था. सुकांत जब पिछले 24 सालों में नहीं बदला तो अब क्या बदलेगा. जो अपनी पत्नी की इज्जत करना न जानता हो, उस से बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था.

नीला को बस इसी बात का अफसोस था कि वह अपने बेटे को सुकांत के इन्फलुएंस से बचा नहीं पाई थी. पता नहीं क्यों नीरव को हमेशा लगता था कि पापा ही ठीक हैं. संस्कारों की जो पोटली उस ने बचपन में नीरव को सौंपी थी वह उस ने बड़े होने के साथ ही कहीं दुछती पर पटक दी थी. उस के बाद उसे कभी खोलने की कोशिश नहीं की. वह बहुत समझाती कि नीरव खुद अपनी आंखों से दुनिया देखो, पापा के चश्मे से नहीं. पर वह भी उस की बेइज्जती कर देता. उस की बात अनसुनी कर पापा के खेमे में शामिल हो जाता. वह मनमसोस कर रह जाती. स्कूलकालेज और उस के बाद अब नौकरी में भी वह पापा के बताए रास्ते पर ही चल रहा है.

अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाते देखने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पा रही थी.

उस पीड़ा को वह दिनरात सह रही थी और नीरव की जिंदगी को ले कर ही वह उस समय सुकांत से लड़ पड़ी थी. विडंबना तो यह थी कि नीरव की बात करने के बजाय सुकांत उस की जिंदगी के पन्नों को ही उलटनेपलटने लगा था. यह सच था कि वह डिप्लोमैसी से सदा दूर रही और सिर्फ काम पर ही उस ने ध्यान दिया और इस वजह से वह बहुत तेजी से उन लोगों की तुलना में कामयाबी की सीढि़यां नहीं चढ़ पाई जो खुशामद और चालाकी की फास्ट स्पीड ट्रेन में बैठ आगे निकल गए थे. लेकिन उसे अफसोस नहीं था, क्योंकि उस की ईमानदारी ने उसे सम्मान दिलाया था.

कई बार सुकांत के रवैए को देख कर उस का भी विश्वास डगमगा जाता था पर वह संभल जाती थी या शायद उस की प्रवृत्ति में ही नहीं था किसी को धोखा देना.

‘‘और जो तुम नीरव को ले कर मुझे हमेशा ताना मारती रहती हो न, देखना एक दिन वह बहुत तरक्की करेगा. सही राह पर चल रहा है वह. बिलकुल वैसे ही जैसे आज के जमाने की जरूरत है. लोगों को धक्का न दो तो वे आप को धकेल कर आगे निकल जाते हैं.’’

नीला का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए और उस से कहे कि वह नीरव को मुहरा न बनाए. नीला को परास्त करने का मुहरा. सुकांत उसे देख रहा था मानो उस का उपहास उड़ा रहा हो.

कितनी देर हो गई है, नीरव क्यों नहीं आया अब तक. परेशान सी नीला बरामदे के चक्कर लगाने लगी. रात के 10 बज रहे थे. मोबाइल भी कनैक्ट नहीं हो रहा था उस का. मन में अनगिनत बुरे विचार चक्कर काटने लगे. कहीं कुछ हो तो नहीं गया… औफिस में भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. सुकांत को तो शराब पीने के बाद होश ही नहीं रहता था. वह सो चुका था.

अचानक नीला का मोबाइल बजा. कोई अंजान नंबर था. फोन रिसीव करते हुए उस के हाथ थरथराए.

‘‘नीरव के घर से बोल रहे हैं?’’

नीला के मन की बुरी आशंकाएं फिर से सिर उठाने लगीं, ‘‘क्या हुआ उसे, वह ठीक तो है न? आप कौन बोल रहे हैं?’’ उस का स्वर कांप रहा था.

‘‘वैसे तो वे ठीक हैं, पर फिलहाल जेल में हैं, उन्हें अरैस्ट किया गया है. अपनी कंपनी में कोई घोटाला किया है उन्होंने. कंपनी के मालिक के कहने पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया है.’’

तभी लाइन पर नीरव के दोस्त समर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आंटी मैं हूं नीरव के साथ. बस आप अंकल को भेज दीजिए. उस की जमानत हो जाएगी.’’

पूरी रात जेल में बीती उन तीनों की. नीला को नीरव को सलाखों के पीछे खड़ा देख लग रहा था कि वह सचमुच एक फेल्योर है. हैरानी की बात थी कि सुकांत एकदम चुप थे. न नीरव से, न ही नीला से कुछ कहा, बस उस की जमानत कराने की कोशिश में लगे रहे.

नीला को लगा नीरव को कुछ भलाबुरा कहना ठीक नहीं होगा. उस के चेहरे पर पछतावा और शर्मिंदगी साफ झलक रही थी. शायद मां ने उसे जो ईमानदारी का पाठ बचपन में सिखाया था, उसे ही वह आज मन ही मन दोहरा रहा था.

शाम हो गई थी उन्हें लौटतेलौटते. अपने को घसीटते हुए, अपनी सोच के दायरों में

चक्कर काटते हुए तीनों ही इतने थक चुके थे कि उन के शब्द भी मौन हो गए थे या शायद कभीकभी चुप्पी ही सब से बड़ा मरहम बन जाती है.

‘‘मुझे माफ कर दो मां,’’ नीरव उस की गोद में सिर रख कर सुबक उठा.

‘‘तू क्यों माफी मांग रहा है? गलती तो मेरी है. मैं ने ही तेरे मन में बेईमानी के बीज बोए, तुझे तरक्की करने के गलत रास्ते पर डाला. आज जो भी कुछ हुआ उस का जिम्मेदार मैं ही हूं और नीला मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं. सारी उम्र तुम्हें तिरस्कृत करता रहा, तुम्हारा उपहास उड़ाता रहा. सारे समीकरण गलत साबित कर दिए थे मैं ने. प्रिंसिपल ही जीवन में सब कुछ होते हैं, सिद्धांत खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द नहीं वरन जीवन जीने का तरीका है. सचाई, ईमानदारी किताबी बातें नहीं हैं,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और नीला की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे.

नीरव को जब उस ने सीने से लगाया तो लगा सच में आज उस की ममता जीत गई है. उस का खोया बेटा उसे मिल गया है. सारे समीकरण ठीक हो गए थे उस की जिंदगी के. Short Story In Hindi

Romantic Story In Hindi: दिल धड़कने दो

Romantic Story In Hindi: सुबह 6 बजे का अलार्म बजा तो तन्वी उठ कर हमारे 10 साल के बेटे राहुल को स्कूल भेजने की तैयारी में व्यस्त हो गई. मैं भी साथ ही उठ गया. फ्रैश हो कर रोज की तरह 5वीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में राहुल के बैडरूम की खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया. कुछ दूर वाली बिल्डिंग की तीसरी मंजिल के फ्लैट में उस के बैडरूम की भी लाइट जल रही थी.

इस का मतलब वह भी आज जल्दी उठ गई है. कल तो उस के बैडरूम की खिड़की का परदा 7 बजे के बाद ही हटा था. उस की जलती लाइट देख कर मेरा दिल धड़का, अब वह किसी भी पल दिखाई दे जाएगी. मेरे फ्लैट की बस इसी खिड़की से उस के बैडरूम की खिड़की, उस की किचन का थोड़ा सा हिस्सा और उस के फ्लैट का वाशिंग ऐरिया दिखता है.

तभी वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई. अब वह अपने बाल ऊपर बांधेगी, कुछ पल खड़ी रहेगी और फिर तार से सूखे कपड़े उतारेगी. उस के बाद किचन में जलती लाइट से मुझे अंदाजा होता है कि वह किचन में है. 10 साल से मैं उसे ऐसे ही देख रहा हूं. इस सोसायटी में उस से पहले मैं ही आया था. वह शाम को गार्डन में नियमित रूप से जाती है. वहीं से मेरी उस से हायहैलो शुरू हुई थी. अब तो कहीं भी मिलती है, तो मुसकराहट और हायहैलो का आदानप्रदान जरूर होता है. मैं कोई 20-25 साल का नवयुवक तो हूं नहीं जो मुझे उस से प्यारव्यार का चक्कर हो. मेरा दिल तो बस यों ही उसे देख कर धड़क उठता है. अच्छी लगती है वह मुझे, बस. उस के 2 युवा बच्चे हैं. वह उम्र में मुझ से बड़ी ही होगी. मैं उस के पति औरबच्चों को अच्छी तरह पहचानने लगा हूं. मुझे उस का नाम भी नहीं पता और न उसे मेरा पता होगा. बस सालों से यही रूटीन चल रहा है. अभी औफिस जाऊंगा तो वह खिड़की के पास खड़ी होगी. हमारी नजरें मिलेंगी और फिर हम दोनों मुसकरा देंगे.

औफिस से आने पर रात के सोने तक मैं इस खिड़की के चक्कर काटता रहता हूं. वह दिखती रहती है, तो अच्छा लगता है वरना जीवन तो एक ताल पर चल ही रहा है. कभी वह कहीं जाती है तो मुझे समझ आ जाता है वह घर पर नहीं है… सन्नाटा सा दिखता है उस फ्लैट में फिर. कई बार सोचता हूं किसी की पत्नी, किसी की मां को चोरीछिपे देखना, उस के हर क्रियाकलाप को निहारना गलत है. पर क्या करूं, अच्छा लगता है उसे देखना. तन्वी मुझ से पहले औफिस निकलती है और मेरे बाद ही घर लौटती है. राहुल स्कूल से सीधे सोसायटी के डे केयर सैंटर में चला जाता है. मैं शाम को उसे लेते हुए घर आता हूं. कई बार जब वह मुझ से सोसायटी की मार्केट में या नीचे किसी काम से आतीजाती दिखती है तो सामान्य अभिवादन के साथ कुछ और भी होता है हमारी आंखों में अब. शायद अपने पति और बच्चों में व्यस्त रह कर भी उस के दिल में मेरे लिए भी कुछ तो है, क्योंकि रोज यह इत्तेफाक तो नहीं कि जब मैं औफिस के लिए निकलता हूं, वह खिड़की के पास खड़ी मुझे देख रही होती है.

वैसे कई बार सोचता हूं कि मुझे अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए. क्यों रोज मैं उसे सुबह देखने यहां खड़ा होता हूं  फिर सोचता हूं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं… उसे देख कर कुछ पल चैन मिलता है तो इस में क्या बुरा है  किसी का क्या नुकसान हो रहा है. तभी वह सूखे कपड़े उतारने आ गई. उस ने ब्लैक गाउन पहना है. बहुत अच्छी लगती है वह इस में. मन करता है वह अचानक मेरी तरफ देख ले तो मैं हाथ हिला दूं पर उस ने कभी नहीं देखा. पता नहीं उसे पता भी है या नहीं… यह खिड़की मेरी है और मैं यहां खड़ा होता हूं. नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां आजकल मेरी इस खिड़की तक पहुंच गई हैं. उन्हीं के झुरमुट से उसे देखा करता हूं.

कई बार सोचता हूं हाथ बढ़ा कर टहनियां तोड़ दूं पर फिर मैं उसे शायद साफसाफ दिख जाऊंगा… सोचेगी… हर समय यहीं खड़ा रहता है… नहीं, इन्हें रहने ही देता हूं. वह कपड़े उतार कर किचन में चली गई तो मैं भी औफिस जाने की तैयारी करने लगा. बीचबीच में मैं उसे अपने पति और बच्चों को ‘बाय’ करने के लिए भी खड़ा देखता हूं. यह उस का रोज का नियम है. कुल मिला कर उस का सारा रूटीन देख कर मुझे अंदाजा होता है कि वह एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां है.

औफिस में भी कभीकभी उस का यों ही खयाल आ जाता है कि वह क्या कर रही होगी. दोपहर में सोई होगी… अब उठ गई होगी… अब उस सोफे पर बैठ कर चाय पी रही होगी, जो मेरी खिड़की से दिखता है.

औफिस से आ कर मैं फ्रैश हो कर सीधा खिड़की के पास पहुंचा. राहुल कार्टून देखने बैठ गया था. मेरा दिल जोर से धड़का. वह खिड़की में खड़ी थी. मन किया उसे हाथ हिला दूं… कई बार मन होता है उस से कुछ बातें करने का, कुछ कहने का, कुछसुनने का, पर जीवन में कई इच्छाओं को, एक मर्यादा में, एक सीमा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक दायित्व भी तो होते हैं… फिर सोचता हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा. मैं ने तेजी से उठ कर फ्रैश हो कर अपने बैडरूम की लाइट जला दी. समीर भी साथ ही उठ गए थे. वे सुबह की सैर पर जाते हैं. मैं ने बैडरूम की खिड़की का परदा हटाया. अपने बाल बांधे. जानती हूं वह सामने अपने फ्लैट की खिड़की में खड़ा होगा, आजकल नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां उस की खिड़की तक जा पहुंची हैं. कई बार सोचती हूं वह हाथ बढ़ा कर उन्हें तोड़ क्यों नहीं देता पर नहीं, यह ठीक नहीं होगा. फिर वह साफसाफ देख लेगा कि मैं उसे चोरीचोरी देखती रहती हूं. नहीं, ऐसे ही ठीक है. तार से कपड़े उतारते हुए मैं कई बार उसे देखती हूं, कपड़े तो मैं दिन में कभी भी उतार सकती हूं, कोई जल्दी नहीं होती इन की पर इस समय वह खड़ा होता है न, न चाहते हुए भी उसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती हूं.

मैं ने कपड़े उतारते हुए कनखियों से उसे देखा. हां, वह खड़ा था. मन हुआ हाथ हिला कर हैलो कर दूं पर नहीं, एक विवाहिता की कुछ अपनी मर्यादाएं होती हैं. मेरा दिल जोर से धड़कता है जब मैं महसूस करती हूं वह अपनी खिड़की में खड़ा हो कर मेरी तरफ देख रहा है. स्त्री हूं न, बहुत कुछ महसूस कर लेती हूं, बिना किसी के कुछ कहेसुने. मैं समीर और अपने बच्चों के नाश्ते और टिफिन की तैयारी मैं व्यस्त हो गई.

तीनों शाम तक ही वापस आते हैं. मेरी किचन के एक हिस्से से उस की खिड़की का थोड़ा सा हिस्सा दिखता है, जिस खिड़की के पास वह खड़ा होता है वह शायद बैडरूम की है. किचन में काम करतेकरते मैं उस पर नजर डालती रहती हूं. सब समझ आता रहता है, वह अब तैयार हो रहा है. मुझे अंदाजा है उस के कमरे की किस दीवार पर शीशा है. मैं ने उसे वहां कई बार बाल ठीक करते देखा है.

जानती हूं किसी के पति को, किसी के पिता को ऐसे देखना मर्यादासंगत नहीं है पर क्या करूं, कुछ है, जो दिल धड़कता है उस के सामने होने पर. 10 साल से कुछ है जो उसे कहीं देखने पर, नजरें मिलने पर, हायहैलो होने पर दिल धड़क उठता है. वह अपनी कामकाजी पत्नी की घर के काम में काफी मदद करता है, बेटे को ले कर आता है, घर का सामान लाता है, कभी अपनी पत्नी को छोड़ने और लेने भी जाता है… सब दिखता है मुझे अपने घर की खिड़की से. कुल मिला कर वह एक अच्छा पति और अच्छा पिता है. कई बार तो मैं ने उसे कपड़े सुखाते भी देखा है… न मुझे उस का नाम पता है न उसे मेरा पता होगा. बस, उसे देखना मुझे अच्छा लगता है. मैं कोई युवा लड़की तो हूं नहीं जो प्यारव्यार का चक्कर हो. बस, यों ही तो देख लेती हूं उसे. वैसे दिन में कई बार खयाल आ जाता है कि क्या काम करता है वह  कहां है उस का औफिस  वह औफिस से आते ही अपनी खिड़की खोल देता है. मुझे अंदाजा हो जाता है वह आ गया है, फिर वह कई बार खिड़की के पास आताजाता रहता है. वह कई बारछुट्टियों में बाहर चला जाता है तो बड़ा खालीखाली लगता है.

10 साल से यों ही देखते रहना एक आदत सी बन गई है. वह दिखता रहता है पेड़ की पत्तियों के बीच से. दिल करता है उस से कुछ बातें करूं, कुछ कहूं, कुछ सुनूं पर नहीं जीवन में कई इच्छाओं को एक मर्यादा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक उसूल भी तो हैं, फिर सोचती हूं दिल का क्या है, धड़कने दो. Romantic Story In Hindi

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