नेताजी जब से केंद्र में मंत्री बने हैं, मदमस्त हो चले हैं. कहीं लाठियां चलवा रहे हैं, तो कहीं गोलियां. आम आदमी उन की नजर में चींटी, मच्छर सी बखत रखता है. जब देश में त्राहित्राहि मची तो देवलोक कंपायमान होने लगा. त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आसन नेताजी के अन्याय, शोषण, अत्याचार के ताप में हिलनेडोलने लगे. त्रिदेव की भृकुटि तनी.

अंततः तीनों ने आर्यवर्त के कल्याण के लिए रपट मंगाने देवश्री नारद मुनि का स्मरण किया. तत्क्षण 'नारायण... नारायण' कहते हुए मुनिवर नारद प्रगट हुए. हाथों में वीणा थी. ब्रह्मदेव ने कहा, 'सुपुत्र, आ गए.'

नारद मुनि ने त्रिदेव को प्रणाम किया और कहा, 'भगवन, आप के आसन डोल रहे हैं. यह स्थिति आ गई है. ओफ... अब तीनों लोकों के स्वामी भी सुरक्षित नहीं, तो भला इस सृष्टि का कौन मालिक होगा?'

ब्रह्मदेव के चेहरे पर नाराजगी उभर आई, 'पुत्र, मर्यादा भंग न करो.'

'नारायण... नारायण... क्षमा, प्रभु...' नारद मुनि मुसकराए.

'तुम्हारी मुसकराहट जहर की मानिंद जान पड़ती है. पर, आज तुम्हें एक काम करना है,' ब्रह्मदेव ने शांत भाव से कहा, 'वत्स, पृथ्वीलोक में एक नेता के दुष्कर्म के फलस्वरूप हमारे आसन डोलने लगे हैं. तुम्हें आज ही वहां जाना है.'

'नारायण, नारायण...' नारद मुनि ने हाथ जोड़ कर त्रिदेव को नमन कर गंतव्य को प्रस्थान किया. नेताजी  शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों को घंटाघर के पास पिटवा रहे थे, पुलिस गोलियां चला रही थी. इस दौरान देवश्री नारद प्रकट हुए. देखा, लोगों के चेहरे पर गुस्सा है, पुलिस लाठियों से ऐसे पीट रही है मानो धोबी अपने गधे को पीट रहा हो.

नेताजी कलक्ट्रेट पुलिस अधीक्षक सहित अपने समर्थकों के साथ एक पेड़ की छांव में बैठे ठहाके लगा रहे हैं, तभी नारदमुनि नेताजी के समक्ष अवतरित हुए और चिरपरिचित शैली में 'नारायणनारायण' उन के श्रीमुख से नि:स्तृत हुआ. नारदमुनि को देखते ही नेताजी चौंके. देवश्री ने कहा, 'नेताजी, मैं नारदमुनि.'

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