पहाड़ों की वादियां, नदियां, झरने, हरियाली लोगों को लुभाती है. वहां के जंगल इंसान के सामने चुनौती पेश करते हैं. कच्ची पगडंडियां इन दुर्गम प्रदेशों के गांवों में जाने का एकमात्र रास्ता होती हैं जहां जंगल होते हैं, वहां जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है. उत्तराखंड के जनपद चमोली के बहुत से इलाकों में भालुओं का खौफ बढ़ गया है. बीते काफी समय से वहां भालू के हमले की कई घटनाएं हुई हैं, जिन में कई लोग घायल हुए तो कई मवेशियों को भी भालू ने अपना शिकार बनाया.
ऐसी ही एक घटना चमोली के देवाल ब्लौक के वाण गांव में घटी. घर के ईंधन की लकड़ी लेने के लिए कुछ महिलाओं के साथ जंगल गई राधा बिष्ट पर भालू ने अचानक हमला कर दिया.
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20 साल की राधा बिष्ट ने बताया, “12 सितंबर की सुबह 10 बजे अपने गांव से तकरीबन 2 किलोमीटर दूर जंगल में हम 7-8 महिलाएं ईंधन के लिए लकड़ियां बीनने गई थीं. वहां मैं एक बुरांश के पेड़ पर जा चढ़ी और अपनी दरांती से सूखी हो चुकी लकड़ियां काटने लगी.
“मेरे पड़ोस की बबीता देवी और संजू देवी मुझ से 25 मीटर के आसपास लकड़ियां चुन रही थीं. इसी बीच मुझे महसूस हुआ कि कोई काला साया पेड़ पर चढ़ रहा है. मैं ने गौर से देखा कि वह एक बड़ा भालू था. पहले तो मेरी बोलती सी बंद हो गई, पर कुछ देर बाद अपनी जान बचाने के लिए मैं पेड़ पर और ऊपर जा चढ़ी.
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“भालू मुझ पर हमला करने के इरादे से ही पेड़ पर चढ़ा था और ऊपर आ कर उस ने अपने पंजे से मेरी कमर पर वार किया. उस समय तो मैं ने घाव पर ध्यान नहीं दिया और भालू पर दरांती से हमला किया. इस हमले से भालू थोड़ा नीचे की तरफ गिरा पर पेड़ की टहनियों में उलझ गया. इस से वह और खतरनाक हो गया और दोबारा मेरी तरफ आया.
“तब तक मैं ने भी मन बना लिया था कि इस भालू से हार नहीं माननी है और मैं ने चीखते हुए भालू पर फिर से दरांती चलाई.”
इसी बीच बबीता देवी और संजू देवी ने भालू की तेज आवाज सुनी और वे राधा की तरफ दौड़ीं.
बबीता देवी ने बताया, “भालू तेज आवाज में राधा पर झपट रहा था और राधा भी चीखते हुए उस पर दरांती चला रही थी. हम ने भी शोर मचाना शुरू कर दिया और भालू पर दूर से पत्थर फेंके. इस से भालू बौखला गया और वहां से भाग कर घने जंगल में चला गया.”
संजू देवी और बबीता देवी ने राधा को संभाला. संजू देवी ने बताया, “राधा ने बड़ी हिम्मत दिखाई. उस की कमर पर भालू के पंजे के निशान थे और घाव भी हो गया था.”
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इस घटना की सूचना मिलने के बाद राधा को उस के परिवार और गांव वालों ने वहां से कई किलोमीटर दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र देवाल में भरती कराया, जहां उस का इलाज किया गया.
जिस तरह से जंगल खत्म हो रहे हैं और इंसान की जंगली जानवरों के इलाकों में दखलअंदाजी बढ़ी है, उस के बाद से उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में इंसान और जंगली जानवरों के मुठभेड़ की घटनाएं भी बढ़ी हैं, जो चिंता की बात है. सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना चाहिए कि आखिर क्यों जंगली जानवर इतने हमलावर हो रहे हैं और इस का हल क्या है?
सामाजिक कार्यकर्ता हीरा बिष्ट ने बताया, “हमारे पहाड़ की महिलाएं घर का काम तो करती ही हैं, साथ ही साथ ईंधन के लिए लकड़ी और मवेशियों के लिए घास भी लाती हैं. वे मरदों के बराबर काम करती हैं, पर उन की सुरक्षा के कोई भी उपाय नहीं किए जाते हैं. अगर किसी महिला के साथ कोई घटना हो जाती है तो पहाड़ में कोई भी पूछने वाला नहीं है.
“सरकार के भरोसे तो यहां कुछ भी नहीं होता. कुरसी मिलने के बाद कोई भी नेता पूछता तक नहीं है. कई महिलाओं की डिलीवरी होतेहोते रास्ते में ही वे दम तोड़ देती हैं. आज तक कई लोगों के साथ जंगली जानवरों वाली घटनाएं हुई हैं, लेकिन कोई जिमेदारी लेने को तैयार नहीं होता है. कहते हैं कि मुआवजा मिलेगा, पर आमतौर पर ऐसा होता नहीं है.”
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पहाड़ों पर पहाड़ जैसी समस्याएं हैं, पर राधा बिष्ट ने दिखा दिया है कि पहाड़ की बेटियों का हौसला भी पहाड़ जैसा ही अडिग होता है.