परिणाम स्वरूप हाथी को जंगल में असुविधा हो रही है. क्योंकि आम आदमी जंगल में मकान बनाकर गांव पर गांव बसाता चला जा रहा है.
इस रिपोर्ट के लेखक स्वयं ऐसी जगह रहते हैं, जहां अक्सर हाथी सड़कों पर घूमते रहते हैं.
इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस तरह मनुष्य और हाथी का द्वंद बढ़ता चला जा रहा है और उसे किस तरह रोका जा सकता हैं क्योंकि पृथ्वी पर सभी यानी मनुष्य और वन्य जीवों का सहअस्तित्व जरूरी है. ऐसे में क्या होना चाहिए की हाथियों की मौत जो लगातार चिंता का सबब बनी हुई है वही मनुष्य की हाथियों के जद में आने से हो रही मौत भी रूकनी चाहिए.
हाथियों के जीवन को निकट से देखने वाले वन्य प्रेमी और अधिकारियों के मतानुसार
हाथियों के लिए डरावने शब्दों का उपयोग किया जाता है जब कभी हाथी गांव अथवा शहर आ जाते हैं तो उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है हाथियों को छेड़ा जाता है और तत्व की आवाज निकाल कर उन्हें परेशान किया जाता है इससे मानव हाथी द्वन्द बढ़ जाता है.भारत सरकार ने इस हेतु एक गाइडलाइन जारी की है. मगर उसे अनदेखा किया जाता है इसी तरह मीडिया में भी हाथी के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है जो आपत्तिजनक है.
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गजराज के लिए मीडिया यह करें और यह ना करें
हाथियों के लिए अक्सर अखबार व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपयोग हो रहे डरावने शब्दों के उपयोग बंद कराने के लिए भारत सरकार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के सत्रह प्रोजेक्ट एलीफेंट राज्यों के मुख्य वन जीव संरक्षकों को पत्र भेजकर अपने अपने प्रदेश में मीडिया के साथ सहयोग कर उचित कदम उठाने को कहा है. ताकि मीडिया हाथियों के लिए उचित एवं सौम्य शब्दों का उपयोग करे. क्योंकि अनुसंधान में यह बातें बारंबार आई है कि मीडिया द्वारा वन्य प्राणी हाथियों के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिससे आम लोगों में उनके प्रति दुराग्रह और कठोर भाव उत्पन्न हो जाता है. इसे रोकने के लिए वन मंत्रालय ने एक पहल की है और मीडिया से उपेक्षा की जा रही है कि मनुष्य और वन्यजीवों के बीच सम्बन्ध बनाने का काम करें ऐसी खबरें और रिपोर्टिंग नहीं आनी चाहिए जिससे हाथियों को नुकसान है क्योंकि देखा जाता है कि अक्सर बिजली लगाकर की या जहर खिलाकर के हाथियों को मारा जा रहा है.
वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने भारत सरकार को पत्र लिखकर आशंका जताई थी कि जिस प्रकार हाथियों के लिए डरावने शब्दों का उपयोग मीडिया में हो रहा है उस से आने वाली पीढ़ी हाथियों को उसी प्रकार दुश्मन मानने लगेगी. जैसे कि मानव अमूनन सांपों को दुश्मन मान लेता है और देखते ही मारने का प्रयत्न करता है. जबकि 95 प्रतिशत सांप तो जहरीले ही नहीं होते परंतु इसलिए मार दिए जाते हैं कि हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि साँप खतरनाक होते हैं. नितिन सिंघवी के मुताबिक
हाथियों के , साथ भी यही होगा. जबकि हम सबको हाथियों के साथ रहना सीखना पड़ेगा.
प्रेस और जनता की निगाह में हाथी!
हाथियों के व्यवहार के संदर्भ में मीडिया में जो भाषा पढ़ने को मिल रही है वह आपत्तिजनक है आप भी देखिए जैसे उत्पाती, हत्यारा हाथी , हिंसक , पागल, बिगड़ैल हाथी , गुस्सैल,दंतैल और दल से भगाया हुआ, हाथी ने मौत के घाट उतारा, सिरदर्द बना हुआ है हाथी, यहां जान का दुश्मन है हाथी इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है. जबकि हाथी ही एक मात्र ऐसा वन्य प्राणी है जिसके लिए दुनिया में सबसे अच्छे शब्दों जैसे कि मैजेस्टिक, रीगल, महान, जेंटल, डिग्निफाइड जीव, आला दर्जे का जीव जैसे शब्दों का उपयोग होता है. हाथी को दुनिया के सभी धर्मों में पवित्र प्राणी माना गया है. भारतीय शास्त्रों में हाथी को पूजना गणेश जी को पूजना माना जाता है, हाथी को शुभ शकुन वाला एव लक्ष्मी दाता माना गया है.भारत में राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थाई समिति की 13 अक्टूबर, 2010 को हुई बैठक में हाथियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करा है.
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वन्य प्रेमियों का संदेश
जहां एक तरफ आपकी और मनुष्य का द्वंद जारी है वहीं सरंक्षण अभियान भी छोटे ही पैमाने पर सही लेकिन सतत चलता रहता है इसका एक उदाहरण है वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी. जिन्होंने हाथियों के लिए जहां सरकार को लगातार पत्र लिखे हैं वहीं उच्च न्यायालय तक दस्तक दी है.
हमारे संवाददाता से चर्चा में उन्होंने बताया वर्तमान में पदस्थ एवं पूर्व मे पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) छत्तीसगढ़ को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मिलकर सुझाव दिया था कि नकारात्मक शब्दों को प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए इस हेतु मीडिया को सुझाव दिया जा सकता है, परंतु ऐसा लगा कि मानव हाथी द्वंद के प्रति वे चिंतित नहीं है. अतः मजबूर होकर उन्होंने भारत सरकार को सुझाव प्रेषित किया था. परिणाम स्वरूप वन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों ने देशभर के सभी हाथी विचरण क्षेत्र के राज्यों को इस हेतु निर्देशित किया है.
सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम तिवारी के अनुसार हाथी और मनुष्य का साथ पूरा काल से चला आ रहा है और चलता रहेगा ऐसे में मीडिया के द्वारा उपयोग किए जा रहे शब्दों को सोच समझकर के प्रयोग करने की आवश्यकता है और इस हेतु लगातार प्रयास जारी है.