Editorial : गहरी पैठ – अपने लाड़लों के खो जाने का दुख

Editorial : अपने लाड़लों के खो जाने का दुख हरेक परिवार को होता है. गांवों में तो अकसर होता है कि 5-7 बच्चों में से जब एक गायब हो जाता है तो लोग इधरउधर ढूंढ़ने में समय बरबाद कर देते हैं और जब तक पुलिस तक पहुंचते हैं, देर हो चुकी होती है. मजेदार बात यह है कि शहरोंकसबों में से भी बच्चे, वे भी लड़के, गायब हो जाते हैं और 15-20 साल तक परिवार इंतजार करते रहते हैं.

राजस्थान के एक छोटे से गांव के एक लड़के ने लोगों की इस अपने खोए बच्चे की तड़प का जम कर फायदा उठाना शुरू किया और किसी घर में 30 साल पहले खोया बच्चा कह कर घुस गया तो किसी घर में 15 साल पहले खोया. उसे आमतौर पर खोया बच्चा, जो अब जवान हो गया है, मान लिया गया. जब एक परिवार के घर 30 साल पहले खोए बच्चे का लौटने पर समाचार छपा तो पुलिस चौकन्नी हुई और उस ने इस जवान की खोजबीन करनी शुरू की.

पुलिस को यह जान कर हैरानी हुई कि वह इस तरह 8 घरों में खोया बच्चा बन कर 5-7 महीने रह कर मौजमस्ती करता था और फिर गायब हो जाता था. पहले कोई समाचार नहीं बनता था इसलिए पुलिस को शक नहीं होता था. इस बार जब दिल्ली के निकट साहिबाबाद के एक गांव के पुलिस स्टेशन में पहुंच कर उस ने 10 साल की उम्र में अपने किडनैप हो जाने की कहानी बताई और मांबाप का नाम बताया था तो मांबाप दौड़े आए और उसे अपना बच्चा जान कर सीने से लगा कर घर ले गए.

पुलिस को शक हुआ तो उस ने जांच की तो पता चला कि वह तो 8 घरों के साथ ऐसा कर चुका है.

असल में बहुत छोटे से व्यस्कों तक के खोने के किस्से सारे देश में होते रहते हैं. मांबाप अपने बच्चे को ढूंढ़ते हैं पर ढूंढ़ना आसान तो नहीं होता. कौन दुर्घटना का शिकार हो गया, पानी में गिर गया, ट्रेन के नीचे कुचला गया, भाग कर कहीं गया और वहां भूख से जान दे दी, पता नहीं चलता. हर शहर में कितनी ही लावारिस लाशें मिलती हैं जो 5-10 दिन बाद फूंक दी जाती हैं.

मानव तस्करी भी जम कर होती है. लड़केलड़कियों को उठा कर ले जाया जाता है और उन से बंधुआ मजदूरी या देह धंधा कराया जाता है. कुछ को इतना मारापीटा जाता है या इतनी दूर ले जाया जाता है कि उन की अपनी पहचान तक उन्हें याद नहीं रहती या वापस पहुंचने के लिए पैसे नहीं होते.

घरों में आमतौर पर बच्चों को अपना नाम, पता, पिता, मां का नाम, शहर का नाम, पुलिस थाने का नाम याद नहीं कराया जाता. ऐसे बच्चे यदि खेलतेखालते भटक जाएं, किसी गलत बसट्रेन में मजा लेने के लिए चढ़ जाएं, कोई उठा ले जाए तो खोना नामुमकिन नहीं होता. बच्चेबच्ची को ढंग से अपना पता बताना ही नहीं आता. जो बहुत दूर चले जाते हैं या ले जाए जाते हैं, वापस नहीं आते पर घर वाले उन्हें याद करते रहते हैं.

इस राजू ने किसी घर को नुकसान नहीं पहुंचाया, बस कुछ दिन मौजमस्ती कर के फिर भाग जाता था. चूंकि वह 30-32 साल का हो चुका होता था, पुलिस ज्यादा जोरशोर से शिकायत मिलने पर भी पता नहीं करती थी.

अब जब बच्चे कम होने लगे हैं, खोए बच्चे का दुख ज्यादा होने लगा है. यह बड़ी समस्या नहीं है पर जिस के घर से कोई खो जाए, चाहे बच्चा हो, जवान हो या बूढ़ा हो, वह मौत से भी ज्यादा दुख देता है क्योंकि बरसों तक लौटने की राह देखी जाती है. ममता का मामला ऐसा ही है. खोए के बारे में प्यार कभी खत्म नहीं होता.

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वै से तो कभी भी राजाओं ने जनता के सुख या समृद्धि की ज्यादा चिंता नहीं की. उन की नजर अपनी शानशौकत के लिए टैक्स जमा करने, जनता से बेगार कराने, जनता के आपसी झगड़ों में बंदरबांट करने, धर्म के सहारे सैनिक तैयार कर के उन्हें मरने के लिए निरर्थक लड़ाइयों में भेजता रहा है.

फिर भी उम्मीद थी कि अगर वोटों से बन कर सरकार आई है तो वह जनता के हित की सोचेगी. आजकल वोट खरीदने के लिए पैसे तो बंट रहे हैं पर वे नाकाफी हैं क्योंकि देश में धर्म के व्यापार के अथवा बाकी सब धंधे कमजोर हो रहे हैं. भारत के युवा विदेशों में रोतेपिटते जा रहे हैं और वहां अपनी जान पर खेल कर या अनजानों के बीच रहते हैं कि घर वालों को दो रोटी मुहैया करा सकें.

इस विदेश जाने के चक्कर में लोगों को कर्ज लेना पड़ता है. कर्ज दूसरे कामों के लिए भी लेना पड़ता है जिन में धार्मिक काम भी बहुत हैं. हरेक का ब्रेनवाश हुआ है कि धर्म पर जितना खर्च करोगे, दस गुना ऊपर वाला देगा. ऊपर वाला तो कुछ नहीं देता पर जिस से कर्ज लिया वह जान के पीछे पड़ जाता है.

आजकल ऐसे एप्स की बाढ़ आई हुई है जो तुरंत फुल, बिना क्रैडिट हिस्ट्री के कर्ज देने को तैयार रहते हैं. 2 से 5 फीसदी का मासिक ब्याज और फिर ब्याज पर पीनल ब्याज लगा कर वे 10,000 रुपए के लोन को लाख रुपए में महीनों में बदल सकते हैं. कुछ एप चीनी हैं जो आदमी का आधारकार्ड, पैन नंबर, काम करने की जगह की जानकारी के साथसाथ मोबाइल पर जितने कौंटैक्ट हैं उन के नामपते, फोटो जमा कर लेते हैं. कर्जदार का कच्चापक्का छिपा चिट्ठा उन के पास होता है. बीवी के अलावा किसी से संबंध हैं तो उस की काल रिकौर्ड भी हो सकती है.

इस के नाम पर वे काल सैंटर से तो फोन कर कर के हैरेस करते ही हैं, फोन हमेशा के लिए बंद कर देने पर रिश्तेदारों, मकान मालिक, एंप्लायर को हड़काने लगते हैं. ये एप चलाने वाले लोकल माफिया गैंग को भी किराए पर लगा लेते हैं जो घरबाहर बारबार तकाजा करता है.

बजाय इस के कि सरकार गरीबों की बीमारी, धार्मिक, पढ़ाई, नौकरी के खर्च को कम करने के, इस आफत का उपचार एप चलाने वालों या कर्ज देने वाली छोटीबड़ी कंपनियों को बंद कराने का कानून ला रही है. कर्ज देना अपराध हो जाएगा और 10 साल की सजा और 1 करोड़ का फाइन हो सकता है. सरकार और पुलिस के मजे ही मजे हैं. इन लोगों से मोटी रिश्वत मिलने लगेगी. जो थोड़ाबहुत काम आज कागजों पर होता था, वह सब कच्चे में चला जाएगा.

सरकार इस से बैंकों को फायदा दिलाने का काम भी करेगी. गोल्ड लोन के नाम पर आज कंपनियां गरीबों का सारा सोना बेतहाशा लूटने में लगी हैं. नादिरशाह से भी ज्यादा क्रूरता के साथ. इसी तरह इन कंपनियों को कानूनी ढांचे में फंसा कर सरकारी अफसरों को इन को पार्टनर बनाना होगा. अब सरकार, एप्स, सूदखोर, माफिया मिल कर लूटेंगे. यह लोगों की सरकार है.

डोनाल्ड ट्रंप के हथकड़ियों के फैसले पर खामोश हैं Narendra Modi

Narendra Modi : भारत ही क्या सारी दुनिया में यह बात मशहूर है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरे दोस्ताना संबंध हैं. ऐसे संबंध कि वे एकदूसरे का सम्मान करते हैं और नरेंद्र मोदी का तो वे कहना मानते हैं. शायद यही वजह है कि नरेंद्र मोदी जिस तरह काम करते हैं, वैसा ही काम डोनाल्ड ट्रंप भी करते दिखाई दे रहे हैं.

एक और बड़ा उदाहरण सामने है. जैसे नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ते रहे हैं, बहुतकुछ वैसी ही शैली डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनाई. इस से यह संदेश और भी मजबूत हो गया कि दोनों ही नेताओं में बड़ी अच्छी ट्यूनिंग है और वे एकदूसरे को सम झते हैं, मगर जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही एकदम से भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाया है, वह बताता है कि दोनों के ही संबंध कितने छत्तीसी हैं.

अमेरिका में अवैध प्रवासियों का निर्वासन एक खास मुद्दा बन कर सामने है. एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में तकरीबन 11 मिलियन अवैध प्रवासी रहते हैं, जिन में से ज्यादातर मैक्सिको और दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों से आए हैं. इसी के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त नीति अपनाई है.

ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए कई सख्त कदम उठाए हैं, जिन में सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए डाटाबेस का उपयोग करना और अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए अधिक अधिकारियों की नियुक्ति करना शामिल है.

अब 205 भारतीय नागरिकों को ले कर सी-17 विमान सैन एंटोनियो, टैक्सास से भारत आ गया है, जिस से देश में सकते के हालात हैं. हर बात में प्रतिक्रिया देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर तो मानो खामोश हैं.

दरअसल, अमेरिकी सरकार के इस ऐक्शन का नतीजा यह होगा कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे. लेकिन इस ऐक्शन का विरोध भी हो रहा है, खासकर उन लोगों द्वारा, जो अवैध प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं. उन का मानना है कि अवैध प्रवासी भी इनसान हैं और उन्हें भी सम्मान और अधिकार मिलने चाहिए.

अमेरिकी सरकार की अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने की कार्यवाही एक जटिल मुद्दा है, जिस में कई पक्ष और विपक्ष हैं, जबकि यह कार्यवाही अवैध प्रवास को रोकने के लिए एक कदम हो सकती है, लेकिन इस का नतीजा यह भी हो सकता है कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे और उन के अधिकारों का उल्लंघन होगा.

भारत की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर मिलीजुली बनी हुई है. एक ओर भारत सरकार ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर अमेरिकी सरकार के साथ सहयोग करने की बात कही है, वहीं दूसरी ओर  विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने यह कह कर इस कदम की आलोचना की है कि यह अवैध प्रवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

इस मुद्दे पर आम लोगों की राय भी मिलीजुली है. कुछ लोगों का मानना है कि अवैध प्रवासी भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं, जबकि दूसरे लोगों का मानना है कि उन्हें इनसानियत के नजरिए से देखा जाना चाहिए और उन्हें वापस भेजने से पहले उन के मामलों की समीक्षा की जानी चाहिए.

ऐसा लगता कि इस मामले में अमेरिका भी चीन के रास्ते पर चल रहा है. दोनों देशों की आव्रजन नीतियां और उन के कार्यान्वयन में काफी फर्क है. अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए सख्त नीतियों का प्रस्ताव किया है, जबकि चीन में आव्रजन नीतियां ज्यादा सख्त और प्रतिबंधात्मक हैं. चीन में अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए विशेष कानून और नियम हैं.

हालांकि, अमेरिका और चीन के माली, राजनीतिक और सामाजिक हालात अलगअलग हैं, जो उन की आव्रजन नीतियों पर असर करती हैं. मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका लोकतंत्र का हिमायती है, मानवाधिकार का प्रहरी माना जाता है और वह ऐसा कदम उठाएगा, यह कोई सोच भी नहीं सकता था.

मगर अब जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे मामले में कई कदम उठाने चाहिए. सब से पहले उन्हें अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए और अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर एक सम झौता करना चाहिए, जो भारतीय नागरिकों के हितों की हिफाजत करे.

इस के अलावा भारत सरकार को अवैध प्रवासियों के परिवारों को मदद देनी चाहिए, जो भारत में रहते हैं. सरकार को उन्हें माली मदद, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं देनी चाहिए.

सरकार को अवैध प्रवास रोकने के लिए भी कदम उठाने चाहिए. सीमा सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए  और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए तकनीकी उपायों का उपयोग करना चाहिए.

यही नहीं, सरकार को अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना चाहिए. उन्हें लोगों को अवैध प्रवास के खतरों और इस के बुरे नतीजों के बारे में बताना चाहिए. इन कदमों से सरकार अवैध प्रवासियों के मुद्दे का समाधान कर सकती है और भारतीय नागरिकों के हितों की हिफाजत कर सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संबंधों में पिछले कुछ समय में काफी उतारचढ़ाव देखा गया है. ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी को बंद करने की घोषणा की थी, जिस से भारत को मिलने वाली माली मदद पर असर पड़ सकता है.

गहरी पैठ : Donald Trump का तालिबानी राज

Donald Trump : अमेरिका में 20 जनवरी, 2025 से नए प्रैजिडैंट डोनाल्ड ट्रंप वहां पर राज कर रहे हैं और उन का राज एक संवैधानिक, कानून की इज्जत करने वाला नहीं है. उन का राज पहले 2 हफ्तों में ही तालिबानी टाइप का है.

अमेरिका एक तरह की इमर्जैंसी वाले जमाने में पहुंच गया है जिस में इंदिरा गांधी और सोवियत कम्यूनिस्टों जैसे फैसले लिए जा रहे हैं. जो काम डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की सब से अच्छी डैमोक्रैसी को तोड़ने में कर रहे हैं, उस से बहुत से डैमोक्रैसी का दंभ भरने वाले सबक सीखेंगे पक्का है.

डोनाल्ड ट्रंप गरीबों को दी जाने वाली बहुत सी सुविधाओं को खत्म कर रहे हैं ताकि अमीरों का टैक्स कम किया जाए. ऐसा ही कुछ हमारे यहां नरेंद्र मोदी के नए बजट में किया गया है जिस में इनकम टैक्स पहले के 7 लाख रुपए के मुकाबले अब 12 लाख रुपए तक जीरो कर दिया गया है.

डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को पैसे देने बंद कर दिए हैं. हमारे यहां कितने ही राज्यों में सरकारी अस्पतालों को पैसा नहीं दिया जा रहा ताकि लोग महंगे और बहुत महंगे प्राइवेट अस्पतालों में जाएं या फिर ओझाओं, वैद्यों के पास जाएं जिन के पास न डिगरियां हैं, न दवाएं और जो अफीम और धतूरे से इलाज करते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप एकएक कर के सरकारी मुफ्त पढ़ाई पर हमला भी कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि सिर्फ अमीर गोरों के बच्चे स्कूलों में जाएं और कमजोर वर्गों खासतौर पर काले और मिक्स गोरे व मूल अमेरिकियों की संतानों के बच्चे पढ़ें ही नहीं. गोरों का महान देश वापस आए ये शब्द ऐसे ही हैं जो हमारे यहां भारत को विश्वगुरु और रूस में व्लादिमीर पुतिन जारों के जमाने के ग्रेट रशिया के लिए कहते थे.

डोनाल्ड ट्रंप से यूरोप के, एशिया के कट्टरपंथियों को खूब सीखने को मिल रहा है कि कैसे गरीबों का खून चूसने वाला राज फिर से लाया जाए जिस में या तो धन्ना सेठ फलेंफूलें या मंदिरों के महंत. भारत इस ओर 10 साल पहले कदम रख चुका है और अब यह काम और तेजी से होगा क्योंकि अब अमेरिका से भारत में लोकतंत्र की हत्या पर सवाल नहीं उठेंगे.

डोनाल्ड ट्रंप वही कर रहे हैं जो हमारे यहां पंडे, ठाकुर और अमीर सेठ करना चाहते हैं. राज उन का हो, काम शूद्रों का और अछूतों का. ‘एक देश एक चुनाव’ का नारा लगा कर सरकार जनता से वोट का हक छीनने की तैयार कर रही है तो उसे डोनाल्ड ट्रंप का पक्का साथ मिलेगा क्योंकि ट्रंप अपने चुनावी भाषणों में कह चुके हैं कि 2024 के चुनावों में वे जीते तो फिर अमेरिका में चुनाव नहीं होंगे.

भारत, जरमनी, कोरिया, फ्रांस, इटली में वैसी ही ताकतें मजदूरों और गरीबों को धर्म के सहारे बहका कर समझा रही हैं कि राज तो सिर्फ खास गोरों का होना चाहिए, काले भूरों को बाहर निकालो. वैसे ही जैसे हमारे यहां राज खास जातियों का होना चाहिए और बाकियों को पानी में डुबकियां लगा कर खुशी पाने के लिए बहकाया जा रहा है.

दुनिया ने जो आजादी के सपने देखे थे, अब फीके पड़ रहे हैं. अब अमीरों का राज आ रहा है. वे इंटरनैट की जंजीरों से हर गरीब को कंट्रोल करना सीख गए हैं, ठीक वैसे ही जैसे पहले धर्मजाति के नाम पर कंट्रोल किया जाता था.

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सरकारें किस तरह से निकम्मी और बेरहम हो कर अपनी सुविधा के एकतरफा फैसले लेती हैं इस के नमूने इधरउधर लोगों को महसूस होते रहते हैं पर इन को गंभीरता से कम लिया जाता है कि ये छोटे मामले हैं.

बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने 8 फरवरी को अखबारों में हिंदी में एक विज्ञापन छपवाया, जो अंगरेजी के अखबारों में भी क्यों प्रकाशित हुआ पता नहीं, कि ‘अनुसूचित जाति प्रवेशिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना’ व ऐसी ही 2 और योजनाओं के अंतर्गत ‘2023-24 एवं 2022-23 में शैक्षणिक संस्थान स्तर पर लंबित सभी आवेदनों का सत्यापन 15-2-25 से पूर्व करना सुनिश्चित’ किया गया है.

इस संस्कृत के अनजाने शब्दों से भरे इश्तिहार से लगता है कि बिहार राज्य कोई स्कौलरशिप दलित जातियों के छात्रों को देता है पर 2022 से दिया जाना पैंडिंग है. अब 3 साल बाद इसे देने का काम शुरू किया जा रहा है. इसे देने में पहला कदम उठाया जा रहा है. बहुत अच्छी बात है. लगता है कि यह स्कौलरशिप देने की एप्लीकेशनें बहुत पहले मांगी गई थीं वे भी कंप्यूटर पोर्टल पर. ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि उसी इश्तिहार में लिखा है कि ‘सभी आवेदनों का सत्यापन दिनांक 15.2.25 से पूर्व पूर्ण करना सुनिश्चित किया गया है. इस के उपरांत सत्यापन हेतु पीएमएस पोर्टल बंद कर दिया जाएगा’.

यह नहीं समझ आता कि जो स्कौलरशिपें सरकारी फाइलों में 2-3 सालों से रोशनी का इंतजार कर रही थीं उन को खोलने की कोशिश में सिर्फ 20 दिन का समय क्यों दिया गया? अगर यह समझा जाए कि स्कौलरशिप पाने वाला हर एससीएसटी युवकयुवती हर रोज इंडियन ऐक्सप्रैस खरीदते हैं और उस के बारीक अक्षरों में छपी सरकारी सूचनाएं पढ़ते हैं तो भई वाकई कमाल की बात है. यह तो स्वर्ग के आ जाने की सी बात होगी कि एससीएसटी के बच्चों ने अखबार हर रोज खरीदना और पढ़ना शुरू कर दिया है.

साफ है कि अफसरों को इस देरी के लिए न कोई दुख है, न उन्हें लगता है कि उन की कोई गलती है. वे अपने निकम्मेपन का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना चाहते हैं और किसी तरह यह स्कौलरशिप जो 2-3 साल से पैंडिंग है अब बहुतों के लिए खत्म ही कर देना चाहते हैं.

इसी सरकारी इश्तिहार में आगे लिखा गया है कि ‘निर्धारित अवधि के पश्चात सत्यापन लंबित रखने वाले शैक्षणिक संस्थानों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी’. यानी आगे भी कहीं कोई रास्ता उन गरीब एससीएसटी के 10वीं, 12वीं के बच्चों के लिए नहीं छोड़ा गया है जो अब 3 साल बाद पढ़ाई छोड़ चुके हैं.

इस सूचना से कहीं नहीं लगता कि बिहार के निदेशक, माध्यमिक शिक्षा को कोई अफसोस है कि यह स्कौलरशिप देने में देरी हुई है. इस सूचना में भी ‘संस्थानों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही’ और ‘जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी सभी आवश्यक कार्यवाही करने के उत्तरदायी होंगे’ जैसे वाक्य हैं.

उन बेचारों के बारे में कोई 2 शब्द नहीं हैं जिन्हें इस योजना में कुछ पैसे मिलने थे. सरकारी फाइलों पर कैसे उन अफसरों की भाषा में नरमी तक नहीं है, अपनी देरी के लिए कोई गिला तक नहीं है. सरकार चाहे केंद्र की हो जो एससीएसटी को हमेशा पिछड़ा और गुलाम देखना चाहती हो या नीतीश कुमार की समाजवादी किस्म की हो जो उन का सहारा ले कर वोट पाती है, एक ही तरह से काम करती है.

गहरी पैठ : Cyber Fraud से सावधान!

Cyber Fraud : दिल्ली के एक अखबार में एक ही दिन एक पेज पर 6 खबरें छपीं जिन में औनलाइन फ्राडों का जिक्र था. 2 मामले डिजिटल अरैस्ट के थे. एक मामले में तो शिकार खुद पढ़ीलिखी डाक्टर थी जिसे घंटों तक शातिरों ने ‘डिजिटल अरैस्ट’ कर रखा था. डिजिटल अरैस्ट में कुछ अरैस्ट नहीं होता. बस शिकार को कहा जाता है कि अपना ह्वाट्सएप वीडियो औन रखो और वहीं उस के सामने बैठे रहो. दूसरी तरफ एक पुलिस अफसर के वेश में बैठा शख्स होता है जो कहता है कि किसी औनलाइन ट्रांजैक्शन की वजह से कोई जुर्म हुआ है.

धमकी दी जाती है कि अगर डिजिटल अरैस्ट की शर्तें नहीं मानी गईं तो असल में पुलिस कई गाडि़यों में आ कर गिरफ्तार कर लेगी और पूरे समाज में बदनाम हो जाओगे. इस दौरान रिश्वत के नाम पर मामले को रफादफा करने के लिए 27 लाख रुपए ट्रांसफर भी करवा लिए गए. शर्तों में एक शर्त यह भी होती है कि कोई दूसरा उस कमरे में न हो. बारबार धमकी दी जाती है कि पुलिस वाले घर के आसपास ही हैं और कभी भी धावा बोल कर असली अरैस्ट कर सकते हैं.

दूसरे मामले में 48 घंटे तक डिजिटल अरैस्ट कर के रखा गया और 5 लाख वसूल कर लिए गए. तीसरे में एक ग्राफिक डिजाइनर को 4 घंटे तक डिजिटल अरैस्ट कर के 2 लाख ठगे.

एक और मामले में मुनाफा दिलाने का लालच दे कर एक लैफ्टिनैंट कमांडर से 25 लाख रुपए झटक लिए गए. एक मामले में पुलिस ने नोएडा में काल सैंटर चलाते शख्स को पकड़ा जो देशविदेश में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को सौफ्टवेयर अपग्रेड करने का झांसा दे कर कंप्यूटर का पूरा डाटा इकट्ठा कर लेता था और फिर उस में से जरूरत की चीजें खंगाल कर या तो अकाउंट साफ करता या ब्लैकमेल करता था.

ये सब क्या लोगों की गलती से अपराध हो रहे हैं? नहीं, इन के लिए सरकार और सिर्फ सरकार जिम्मेदार है. मोबाइल की पहुंच लोगों की बातचीत के लिए थी पर सरकार ने बैंकों, जीएसटी, इनकम टैक्स, रिटर्नों, म्यूनिसिपल टैक्सों के लिए मोबाइल को पहचानपत्र, आईडैंटिटी कार्ड बना दिया. अब यह मोबाइल तो लोगों के हाथों में है पर इस के अंदर क्या तकनीक है यह लोगों को क्या पता. जिन्हें पता है वे सरकारी घोड़ों पर चढ़ कर अब लूटमार कर रहे हैं.

सरकार हर चीज के लिए पहले औनलाइन एप्लाई करने को कहती है, फिर ओटीपी आता है, फिर उसे औनलाइन डालना पड़ता है तो सरकारी काम होता है. सरकार ने अपने दफ्तरों के दरवाजों पर ताला डाल दिया है, वहां सिर्फ कंप्यूटर वायर जा रहे हैं तो जनता को कंप्यूटरों और मोबाइलों पर भरोसा तो करना ही पड़ेगा न.

टैलीकौम कंपनियों, इंटरनैट कंपनियों, मोबाइल कंपनियों ने दुनियाभर के बैंकों, सरकारों, कंपनियों, इंश्योरैंस कंपनियों को फांस लिया कि हर काम मोबाइल पर कराओ ताकि उन के मोबाइल बिकें, डाटा बिके और साथ ही हर नागरिक को पूरी तरह गिरफ्त में रखा जा सके. शातिर इसी का फायदा उठा रहे हैं.

मोबाइल इस्तेमाल कराने की जबरदस्ती सरकार ने की है, सरकार के बैंकों ने की है. सारे अपराधों की जमीन उस ने ही तैयार की है. सरकार 4 अखबारों में इश्तिहार दे कर बच नहीं सकती कि उस ने तो जनता को बता दिया था.

जिस दिन एक पेज में 6 घटनाएं छपीं, उस दिन देश के अलगअलग हिस्सों में सैकड़ों मामले हुए होंगे. गरीब लोगों को भी लूटा गया होगा, अमीरों को भी. अभी जैसे एक नंबर पर एक काल आई +245311151.

यह पक्के तौर पर फ्राड काल थी और अगर फोन उठा लिया जाता तो कोई बुरी बात ही होती. यह नंबर गुआना, कांगो, अंगोला कहीं का भी हो सकता है. फोन कहीं और से भी किया जा सकता है.

आम आदमी जिसे सरकार ने धकेला है कि हर फोन को उठाओ क्योंकि यह बैंक से हो सकता, टैक्स वालों का हो सकता है, पुलिस वालों का हो सकता है, कौरपोरेशन का हो सकता है कैसे पता करे कि वह जाल में फंसेगा नहीं. जिम्मेदार वह सरकार है जो मोबाइल को जबरन थोप रही है.

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शादीशुदाओं के प्यार में पड़ने और किसी पराए के साथ सोने के किस्से कभी भी कम नहीं होते थे. हमारी स्मृतियों में, जिन में हिंदू कानूनों को लिखा गया, ऐसी बहुत सी सजाओं के बारे में लिखा गया है जो उन मर्दों और औरतों को दी जाती थीं जो शादी के बाहर के बंधन बनाते थे. सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग भी जब उन से भरा हो तो किस संस्कार, किस संस्कृति, किस पुराने काल के अच्छे होने की बात की जा सकती है.

अभी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में अदालत ने एक औरत को अपने मर्द को गोली से मारने की सजा सुनाई क्योंकि मर्द उस के एक लड़के के सैक्स संबंध पर एतराज कर रहा था और झगड़ रहा था. मजेदार बात यह है कि औरत के प्रेमी, पिता और भाई को भी सजा दी गई क्योंकि हत्या में तीनों का भी हाथ था. मर्द को सिर में गोली मारी गई थी.

इस मामले में औरत के 6 साल के बच्चे ने सच उगल दिया वरना तो पुलिस के पास सुबूत भी नहीं थे.

अपने मर्द से नाराज हो कर दूसरे के साथ सोना कोई नई बात नहीं है और अमेरिका में ऐसे बहुत से मामले नेताओं और चर्चों के पुजारियों के भी खूब सामने आते हैं. वहां के चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को तो लंपट माना गया है फिर भी उन को वहां की जनता ने जीत का सेहरा बांध दिया.

असल में मर्द अभी भी यह नहीं भूले हैं कि औरतें तो उन के लिए खिलौना हैं. बस फर्क यह हुआ?है कि अब औरतें अपनी मरजी कुछ ज्यादा चलाने लगी हैं और कुछ कानून पिछले 60-70 सालों में बने हैं जिन में औरतों की बात को पहला सच माना जाता है. जहां पहले औरतें समाज के डर की वजह से मुंह छिपाती थीं और किसी की ज्यादती या अपना प्यार छिपाती थीं, अब वे खुल कर सामने आने को तैयार हैं.

आज की औरत अपनी मेहनत, अपनी अक्ल के साथसाथ अपने बदन की भी पूरीपूरी कीमत वसूलना सीख रही है. वह न पिता की गुलाम रह गई है, न पति की या किसी और मर्द की. प्रेमी भी धोखा दे तो उसे भी थानेकचहरी में घसीटने में वह हिचकती नहीं है.

आदमी अभी भी पुरानी सोच वाले हैं कि औरत पैर की जूती है, उसे जैसे मरजी फेंको. अब औरतें अपनी दमदार हैसियत रखने वाली हैं. मुंबई में एक ऐक्टर ने एक लड़की को फेसबुक पर उस का लिखा देख कर बुलाया और फिर उस से जोरजबरदस्ती करने लगा. लड़की ने तुरंत शिकायत कर दी और अब ऐक्टर बंधाबंधा बरसों घूमेगा. वह कचहरियों से बच जाए शायद पर जिसे जूती समझ रहा था वह उस के सिर पर पड़ने लगी है.

गांवदेहातों की लड़कियां तो शहरी लड़कियों से आगे हैं. वे दमखम में कम नहीं हैं और उन के साथ 4 जने आसानी से खड़े हो जाते हैं. यह बदलाव धर्म के बावजूद आया है. अगर औरतों ने धर्म का पल्लू छोड़ दिया होता तो वे कब की आजाद हो चुकी होतीं. धर्म उन्हें असल में गुलाम बने रहने की पट्टी रोजाना 4 बार पढ़ाता है. उस के बावजूद अगर यह सब हो रहा है तो खुशी की ही बात है.

यह कैसी राजनीति के प्रहरी बने श्रीमान Narendra Modi

Narendra Modi : आजादी के बाद राजनीति अपने आदर्श और विपक्षियों को भी सम्मान देने के संदर्भ में जिस ऊंचाई पर थी, नरेंद्र दामोदरदास मोदी के साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरेधीरे यह पतन की ओर आगे बढ़ रही है. ऐसा कई बार देखा गया है जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए राजनीति और इस पद को गरिमा को कम किया है. इस का एक बड़ा उदाहरण आप के सामने आया है दिल्ली विधानसभा चुनाव के दरमियान जब अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी ‘आप’ को नरेंद्र मोदी ‘आप दा’ कर कर कर बुला पुकार रहे हैं.

नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2025 को भाजपा कार्यकताओं से विधानसभा चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा बूथों पर जीत का लक्ष्य रखने का आह्वान किया और कहा कि लोग अब खुल कर आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और उसे उस के वादों की याद दिला रहे हैं.

‘नमो एप’ के जरीए ‘मेरा बूथ, सब से मजबूत’ कार्यक्रम के तहत भाजपा के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए नरेंद्र मोदी ने ‘आप’ को एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी के लोगों के लिए ‘आप दा’ करार दिया और कहा, जब इस से मुक्ति मिलेगी तभी दिल्ली को ‘विकसित भारत’ की ‘विकसित राजधानी’ बनाने का संकल्प सिद्ध हो पाएगा.

नरेंद्र मोदी ने यह दावा भी किया कि ‘आप दा’ वाले विधानसभा चुनाव में इतने डरे हुए हैं कि उन्हें हर दिन एक नई घोषणा करनी पड़ रही है.

नरेंद्र मोदी के मुताबिक, दिल्ली वाले आप वालों की ‘आप दा’ और उन के झूठ और फरेब से अब ऊब चुके हैं. पहले कांग्रेस ने और फिर आप वालों की ‘आप दा’ ने दिल्ली के लोगों से बहुत विश्वासघात किया है. ये ‘आप दा’ वाले अब हर दिन एक नई घोषणा कर रहे हैं. इस का मतलब है कि उन को रोज पराजय की नईनई खबरें मिल रही हैं. ये इतने डरे हुए हैं कि इन्हें रोज सुबह एक नई घोषणा करनी पड़ रही है. लेकिन अब दिल्ली की जनता इन का खेल समझ गई है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि इन दिनों वे अपनी चुनावी सभाओं में दावा करते हैं कि ‘फिर आएंगे’ लेकिन अब जनता उन्हें बोलती है कि वे ‘फिर खाएंगे.

इस तरह नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर उड़ते हुए देश की राजनीति राजनीतिक दल और आम जनता के समक्ष क्या कर रहे हैं, वह रेखांकित करता है कि राजनीति कितने नीचे चली गई है. पद और सत्ता प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री पद पर बैठे नरेंद्र मोदी यह भूल जाते हैं कि इसे राजनीति और प्रधानमंत्री पद तारतार हो रहा है.

नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं से ‘आप दा’ वालों की पोल खोलने और केंद्र की उपलब्धियां गिनाने का आह्वान किया. उन्होंने ‘आप’ पर पूर्वांचल के लोगों को दिल्ली से बाहर निकालने की साजिश रचने का आरोप लगाया और दावा किया कि दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी में उन के लिए नफरत भरी हुई है. पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहने के लिए दिल्ली सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि शराब उपलब्ध है, लेकिन पानी उपलब्ध नहीं है.

नरेंद्र मोदी के मुताबिक, भाजपा यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अभियान चलाएगी कि यहां सत्ता में आने पर हर किसी तक पीने का पानी पहुंचे. उन्होंने लोगों के बिजली बिलों में वृद्धि के लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराया. अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा
कि ‘शीशमहल’ आप के झूठ और छल का जीताजागता उदाहरण है.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने यमुना नदी को साफ करने का वादा किया था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अब कह रहे हैं कि यमुना को साफ करने के लिए वोट नहीं मिलते. आप गरीबों के लिए घर बनाने के अपने वादे को पूरा करने में भी विफल रही, जबकि केंद्र ने उन के लिए हजारों घर बनाए हैं. भाजपा अपने बूथ कार्यकर्ताओं के बल पर भारी जीत दर्ज करेगी और लोग, विशेषकर महिलाएं उस के अभियान की अगुआई कर रही हैं. कांग्रेस अकसर झूठे वादे करती है और दावा किया कि ‘आप’ इस मामले में मुख्य विपक्षी पार्टी से काफी आगे निकल गई है. कांग्रेस में बरबादी व बुराइयां आने में सात दशक लग गए. इन में तो 7 माह में कांग्रेस की सारी बुराइयां आ गईं और अब तो पिछले 9 साल में इन्होंने उन बुराइयों को भी दोगुना कर दिया है.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए हैं मगर उन्होंने हमेशा विपक्ष का माहौल उड़ाया है. इस का एक बड़ा उदाहरण विपक्षी पार्टियों के गठबंधन के नाम को ‘इंडी’ पुकाराना भी शामिल हैं.

सम्मानजनक इंडिया कहने में क्या उन्हें गुरेज है, यह देश की जनता को समझना चाहिए. और अब विधानसभा चुनाव में ‘आप’ पार्टी को ‘आप दा’ कहना, सीधासीधा नरेंद्र मोदी के द्वारा राजनीति को गंदी राजनीति में बदलने का एक उदाहरण है.

गहरी पैठ: यूक्रेन राष्ट्रपति ने दी दुनिया को सीख

सोवियत संघ का कभी हिस्से रहे यूक्रेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का हुक्म मानने से इनकार कर के अपने देश की जमीन को बरबाद तो करवा दिया पर बदले में जो इज्जत उन के नेता वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कमाई है उस की कीमत बहुत ज्यादा है. अब दुनियाभर का हर छोटा देश ही नहीं, हर छोटा वर्ग, जाति, रंग का समूह इस भरोसे में रह सकता है कि यदि कोई सही हो और दिखने में कितना कम, छोटा और कमजोर लगे, अपनी पर आ जाए तो बड़ों को हिला सकता है.

हमारे देश पर यह बात पूरी तरह लागू होती है. थोड़े से मुट्ठीभर पढ़ेलिखे, जन्म से अपने को ऊंचा सम?ाने वाले, धर्म के रखवाले पूरे देश को गुलाम बना कर सदियों से रखते आए हैं क्योंकि यहां की दबीकुचली जनता को कोई वोलोदिमीर जेलेंस्की नहीं मिला और न ही यूक्रेनी जनता सा जज्बा पनपा. नतीजा यह रहा है कि यहां हमेशा आम जनता अपने ही तानाशाहों के जुल्म सहती रही है और आज भी सह रही है.

पुतिन जिस ?ाठ के सहारे यूक्रेन पर कब्जा कर के वहां मनमरजी के शासक को बैठाना चाहता था, उसी तरह के ?ाठ का सहारा गीता के उपदेशों, रामायण की कथाओं, महाभारत के किस्सों और पुराणों की कहानियों से यहां के अछूतों और शूद्रों के हलक में उड़ेला गया है. फुले या भीमराव अंबेडकर जैसे सैकड़ों ने ?ाठ का परदाफाश किया पर उन की बात इस तरह हर घर में नहीं पहुंची जैसे यूके्रन में पहुंच गई.

यूक्रेन में हर घर अब एक लड़ाई का मैदान बन गया है, हर सड़क पर रूसी सेना को लड़ना पड़ रहा है. यूक्रेन के घर वैसे ही जलाए जा रहे हैं जैसे गरीबों की बस्तियों को बुलडोजरों से इस देश में नष्ट किया जा रहा है पर इन टूटे मकानों से विरोध की गोलियों की बौछार हो रही है.

यूक्रेन की हिम्मत देख कर पूरी दुनिया उस के साथ हो गई है. एटम बमों से लैस विशाल, दुनिया का सब से बड़ा देश रूस अब दुनिया का सब से ज्यादा नफरत का निशाना बन गया है. रूसी जनता का खुद उस पर भरोसा है यह पता नहीं क्योंकि रूसी हमले में साथ देने के लिए भरती होने के लिए रूस में कतारें नहीं लग रहीं. हमारे यहां हिंदू राष्ट्र, मंदिरों, देवीदेवताओं, गायों के नाम ?ाठ पर ?ाठ बोल कर जो जुल्म आज 21वीं सदी में भी गरीबों, दलितों और पिछड़ों पर किए जा रहे हैं और उन के बुलेट नहीं तो बैलेट के हथियार को भी बेमतलब का बनाया जा रहा है, वह रूसी हमले की तरह ही है.

अगर आम जनता में बल हो जो यूक्रेन की जनता में दिख रहा है तो एक नहीं कईकई वोलोदिमीर जेलेंस्की पैदा हो जाएंगे जो दलित और पिछड़ों के नेताओं की तरह अपनी जमात को लूटने वालों के सामने नाक रगड़ने की जगह सिर उठा कर खड़े होंगे. रूस एटम बमों की धमकी दे कर अपने छोटे पड़ोसी को धमका रहा है, हमारे देश में छोटा सा वर्ग धर्म के बमों, कानून के हथियारों और पढ़ाई से आई चतुराई का फायदा उठा कर अपने कब्जे को लगातार सदियों से बनाए रख रहा है. क्या हमारे यहां वोलोदिमीर जेलेंस्की खड़े होंगे?

गहरी पैठ: भारतीय जनता पार्टी और जातिवाद

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनावों में बारबार जातिवादी पार्टियों को कोस रही है कि वे कभी किसी का भला नहीं कर सकतीं. असल में अगर देश में आज सब से बड़ी जातिवादी पार्टी है तो वह भारतीय जनता पार्टी है, जिस ने पूरे देश में पौराणिक जातिवाद को हर पायदान पर बिना साफ किए लागू कर दिया है.

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यह जातिवादी तौरतरीकों का नतीजा है कि आज देश में भूखा ब्राह्मण सुदामा सरीखा कहीं नहीं मिलेगा, क्योंकि हर गांव में 5-6 मंदिर और हर शहर की हर गली में 5-6 मंदिर खुलवा दिए गए हैं जिन में ऋषिमुनियों की संतानें ठाठ से ‘हमारे पास तो कुछ नहीं है’, ‘सब भगवान का है’ कह कर रेशमी कपड़ों में, एयरकंडीशंड हालों में, हलवापूरी रोज चार बार खा रहे हैं.

सरकार को संविधान के हिसाब से 50 फीसदी नौकरियां पिछड़ों और दलितों को दे देनी थीं, पर किसी भी सरकारी दफ्तर में घुस जाएं, वहां इक्केदुक्के ही सपाबसपा वाले नाम दिखेंगे. वहां काम कर रहे लोग ज्यादातर ठेकों पर काम कर रहे हैं और ठेकदार को जाति के हिसाब से रखने का कोई कानून नहीं है. ठेकेदार ऊंची जातियों का है और उस ने जिन्हें रखा होगा वे भी ऊंची जातियों के ही होंगे.

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भारतीय जनता पार्टी बारबार माफिया को नीची जातियों से जोड़ रही है. यह पुरानी तरकीब है. पुराणों में हर कहानी में दस्युओं को, जो कहर ढाते थे, नीची जाति का दिखाया गया है. रामायण में मारीच, शूर्पणखा, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद सब को माफिया की तरह दिखाया गया है और पिछले 200 सालों से हर शहर में रामलीला के दौरान उन्हें काला भुजंग बता कर दिखाया जाता है. जब अमित शाह कहते हैं कि कमल पर वोट नहीं दिया तो जातिवादी माफिया आ जाएगा, उन का इशारा इन्हीं की ओर होता है. उन के लिए ये जातियां पौराणिक युग के दस्युओं, शूद्रों और अछूतों की संतानें हैं. शंबूक या एकलव्य जैसों के लिए भारतीय जनता पार्टी में कोई जगह नहीं है.
सरकार के 500 सब से ऊंचे अफसरों में से मुश्किल से 60 अफसर उन जातियों के हैं जिन्हें रिजर्वेशन मिला हुआ है.

भारतीय जनता पार्टी चुनचुन कर ऊंची जातियों के लोगों को ताकत दे रही है. वैसे भी हर पार्टी में चाहे वह समाजवादी हो या बहुजन समाज या तृणमूल कांग्रेस, ऊंची जातियों के ही लोग ऊंचे पदों पर हैं पर फिर भी कम से कम वे बात तो उन जातियों की करते हैं जिन के बच्चे आज पढ़ कर आगे आ गए हैं और हर बाधा पार करने को तैयार हैं.

यह न भूलें कि देश चलता उन मजदूरों और किसानों के बल है जिन्हें भारतीय जनता पार्टी माफिया कहती है. यहां तक कि पुलिस और ठंडी हड्डियां जमाने वाली पहाड़ी सीमाओं पर यही लोग हैं. इन्हें माफिया के साथ होने की गाली दे कर भारतीय जनता पार्टी जाति के नाम पर देश को बांट रही है.

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देश का बंटवारा हिंदूमुसलिम के नाम पर तो 1947 में भी नहीं हुआ था, क्योंकि जो लोग पिछले 500-600 सालों में मुसलमान बने थे, उन में ज्यादातर उन जातियों के थे जिन्हें माफिया की गाली दी जा रही है. इसी गाली को एकलव्य को सुनना पड़ा था, घटोत्कच को सुनना पड़ा था, हिरण्यकश्यप को सुनना पड़ा था, बाली को सुनना पड़ा था. आज नए दौर में नए नेता सुन रहे हैं.

गहरी पैठ: मजदूर और वोटबैंक

पंजाब ने आज से नहीं, जब से कृषि क्रांति हुई है बिहार और उत्तर प्रदेश के बेरोजगारों को अपने यहां भरपूर काम दिया है. इस बार इन मजदूरों का नाम ले कर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के एक बयान को ले कर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और पूरी भाजपा उत्तर प्रदेश व बिहार के पंजाब में बसे मजदूरों को बहकाने में जुट गई. इन्हीं मजदूरों के वोटों पर अरविंद केजरीवाल की नजर है और चरणजीत सिंह चन्नी ने भैय्यों को पंजाब न आने दें का जो तंज कसा था वह केजरीवाल और योगी जैसों को पंजाब पर राज करने की कोशिश से रोकने का था.
बड़ा सवाल तो यह है कि पंजाब, दिल्ली या देश के दूसरे हिस्सों में उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग भरभर कर जाते क्यों हैं? इसलिए रामचरित मानस से प्रभावित इन इलाकों की पिछड़ी जातियों की जनता को धर्म के नाम पर जम कर लूटा है. यहां आज भी एक तरह की छिपी हुई जमींदारी चल रही है जिस में हर ओहदेदार अपने को छोटामोटा राजा या महापुरोहित मानता है जिस का आदेश पिछड़ी जातियों के लोगों को मानना ही होगा चाहे वे पढ़लिख भी गए हों.
इस इलाके में, जिसे गौपट्टी कहा जाता है, मंदिर बनाए जा रहे हैं, कारखाने नहीं. यहां से गुजर कर चले जाने लायक सड़कें बनी हैं, यहां के रहने वालों की बस्तियों में नहीं. यहां स्कूल खुले हैं पर हर जाति, उपजाति के लिए अलग. यहां मंदिर बेशुमार हैं पर हर जाति के लिए अलग. पिछड़ों को ऊंचों के देवीदेवता छूने तक नहीं दिए जाते. इन पिछड़ी जातियों को तो ऊंचों के धर्म के नाम पर दूसरों का सिर फोड़ने के लिए इस्तेमाल किया गया है.
अब भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया जा रहा कि आखिर उत्तर प्रदेश, बिहार के भैय्ये पंजाब आ क्यों रहे हैं? महान भगवाधारी या तिलकधारी पूजापाठ से बिहार व उत्तर प्रदेश में चमत्कार करा कर पंजाब जैसी खुशहाली क्यों नहीं पैदा कर पा रहे? इस पूजापाठ का लाभ क्या जब लाखों बेकार हों. जहां 36,000 नौकरियों के लिए सवा करोड़ आवेदन आखिर हुए क्यों?
इस की बड़ी वजह है कि इन पिछड़ों को आज भी ढंग से पढ़ाया नहीं जा रहा. गांवगांव में स्कूल खोले गए हैं पर इन पर तिलकधारी शिक्षकों का कब्जा है जो मानते हैं कि पौराणिक आदेश है कि पिछड़े और दलित पढ़ नहीं पाएं चाहे वह वेद हो, महाभारत हो या इतिहास और विज्ञान. यहां जो हिंदी पढ़ाई जाती है उस में संस्कृत शब्द ठूंस दिए गए हैं. ऊंचों के लिए इंगलिश मीडियम कहे जाने वाले स्कूल खोल दिए गए हैं जहां तिलकधारियों के बच्चे पढ़ने जाते हैं, ताकि पिछड़े बस उतना पढ़ें कि कमाने दिल्ली, मुंबई और पंजाब जा कर छोटामोटा हुनर का काम कर सकें और जानवरों की तरह गंदी बस्तियों में रह सकें.
चुनावी दिन हैं इसलिए भैय्यों की बात भी हो गई वरना देश के आकाओं, यहां तक कि उसी जमात से आने वाले नीतीश कुमार तक के पास पिछड़ों का सामाजिक, शैक्षिक, पारिवारिक स्तर उठाने की फुरसत नहीं है.

गहरी पैठ: बजट और आम जनता

केंद्र सरकार के हर साल के बजट का आम लोगों को न पता होता है, न उस से उन्हेंकोई फर्क पड़ता है क्योंकि जो चीज महंगी होनी होती है वह तो होगी ही चाहे बजट की वजह से हो या सालभर में कभी हो. बजट तो सरकारी वादा होता है जो पढ़ेलिखों को बताने के लिए होता है कि इस साल आम गरीब किसान, मजदूर, बस आपरेटर, मेकैनिक, इलैक्ट्रिशियन, ब्यूटीशियन, नर्सों, बेलदारों से कितना कैसे वसूलना है. अब हाकिम ने जो लेना है तो लेना है, आम आदमी को तो कहा गया है कि उस के दुख तो उस के पिछले जन्मों के पापों के फल हैं, भोगते रहो.

शुद्ध ब्राह्मण परिवार को निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री और उन के ऊंची जातियों के सलाहकारों ने पूरी तैयारी से गरीबों को लूटने वाला 35 लाख करोड़ रुपए (ये कितने होते हैं, पता करने की कोशिश भी न करें) का सरकारी हिसाब बना दिया है, भारतीय जनता पार्टी के सांसद हाथ खड़ा कर इसे पास कर देंगे और छुट्टी.

आम मजदूर को पानी मिलेगा, ठेकेदारों से नौकरियां मिलेंगी, किसानों की जमीनों पर सड़कें कटेंगी, कच्चे रास्तों पर केबल बिछाने के लिए और पक्के गहरे गड्ढे खोदे जाएंगे, आईटी पंडों की भरमार होगी, इस का इंतजाम कर दिया गया है. सरकार ठेकों पर चलेगी जो कम तनख्वाह पर लोग रखेंगे और रिश्वत में बाबुओं, अफसरों और भगवा नेताओं की जेबें भरेंगे, यह इंतजाम कर लिया गया है.

किसान मजदूर का तो नाम भी नहीं लिया है. अमीरों की चोंचलेबाजी के लिए और्गेनिक खेती गंगा के किनारे की बात जरूर की गई है जिस का आम किसान से कोई लेनादेना नहीं है.

और हां, एक नए तरीके की नोटबंदी की शुरुआत भीकर दी गई है. अब तक बैंक अकाउंट में नोट रहते थे, चाहे सिर्फ कागज पर, अब डिजिटल करैंसी रहेगी जिस का मतलब पढ़ेलिखे भी वर्षों बाद सम?ा सकेंगे. इस दौरान इस के सपने दिखा कर सरकारी लुटेरे अरबों रुपए आम आदमी के ले कर चंपत हो जाएंगे जैसे नोटबंदी में बैंक मैनेजरों ने किया था.

सरकार बारबार यह कहना नहीं भूलती कि कांग्रेस सरकार के दौरान क्याक्या हुआ था, 7 साल बाद भी. यह वैसा ही है जैसा हर साल रामलीला कर के बता दिया जाता है कि पंडों की सेवा करो, राम की पूजा करो वरना रावण आएगा और सीता को ले जाएगा. उस में जोर रावण पर होता है, दशरथ पर नहीं जिस ने राम और सीता को घर छोड़ने को कहा. बारबार कांग्रेस का राज रावण राज कहा जाता है जबकि दशरथ राज में तो राम, लक्ष्मण और सीता तीनों घर से निकले थे. अब तो भाजपा सरकार अपने 7 सालों के काम गिना दे पर किए हों तो गिनाए न.

बजट को ध्यान से पढ़ें तो यही पता चलता है कि सरकार का कौन सा विभाग किस तरह जनता से वसूले पैसे पर मौज कर रहा है. पर जनता क्या कर सकती है. वह तो सदियों से पिसती रही है. एक तरफ पंडेपुजारी, मौलवीपादरी उसे लूटते हैं, दूसरी ओर हाकिम के पुलिस, पटवारी, जज, प्रशासक. उस बेचारी को वोट का हक मिला है, पर उसे जल्लादों में से एक को चुनना होता है, फंदा तो गले में हर कोई डालेगा.

गहरी पैठ: चुनाव और जाति के नाम पर बंटवारा

चुनावों के टिकटों के बंटवारे में जाति को कितना भाव दिया गया है, यह किसी से छिपा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट हर माह एकदो फैसले अवश्य ऐसे देती है जिन में जाति का सवाल उठाया जाता है पर जब दुनियाभर में लिंग, रंग, धर्म या क्षेत्र पर भेदभाव की बात होती है तो भारत सरकार बारबार कहती है कि जाति तो कोई भेदभाव वाली बात ही नहीं है.

अब अमेरिका की कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की सीनेट ने फैसला किया है कि जाति के सवाल को लिंग, धर्म, भाषा वगैरह के मामलों की तरह लिया जाएगा और किसी की जाति को ले कर किसी को कुछ कहने, कोई चीज या सेवा देने में आनाकानी करने, उन्हें ज्यादा सुविधाएं देने पर सवाल उठाने का हक न होगा.

मजेदार बात यह है कि स्टेट यानी सरकार के फंड से चलती इस यूनिवर्सिटी के 80 भारतीय रंग वाले शिक्षकों ने इस की जम कर खिलाफत की. अमेरिका की 4,85,000 छात्रों वाली इस यूनिवर्सिटी में 55,000 पढ़ाने वाले हैं जिन में काफी भारतीय भी हैं. ये भारतीय ज्यादातर ऊंची जातियों के हैं जो बारबार दोहराते हैं कि भारत तो एक है, भारतीयों में जाति को ले कर कोई भेदभाव नहीं है.

जाति के सवाल को नकारने का मतलब यही होता है कि कहीं पिछड़े और दलित यूनिवर्सिटी में कोटों का फायदा न उठा लें और वहां पढ़ाने का काम न मिलने लगे. अगर वे साथ उठनेबैठने लगेंगे तो उन में आपस में लेनदेन भी होगा और एकदूसरे के घर जाना पड़ेगा. आज भी विदेशों में दशकों नहीं पीढि़यों तक हिंदुस्तान से बाहर रहने के बावजूद घर में भारतीय जाति देख कर ही एकदूसरे को बुलाते हैं. गोरा आ रहा हो तो कोई बात नहीं, चीनीजापानी चलेगा पर मुसलिम, पिछड़ा या दलित नहीं होना चाहिए.

अगर ऊंची जाति के घरों के बच्चों ने कहीं दलितपिछड़ों में प्रेम का बीज बो लिया तो आफत आ जाएगी, इसलिए भारतीय मूल के मातापिता अपने बच्चों के भारतीय मूल के दोस्तों के नाम के साथ जाति पर सवाल करने में देर नहीं लगाते. अमेरिका में बराबरी की मांग करने वाले अकसर इस सवाल को खड़ाकरते रहते हैं. भारत सरकार और वहां की कट्टर हिंदू संस्थाएं इस की जम कर खिलाफत करती हैं, क्योंकि हमेशा की तरह यहां जाति, जो पूरी तरह रगरग में फैली है, नकारा जाता है. एक देश, एक लोग का नारा लगाने वाले जाति के सवाल पर एकदम कान खड़े कर लेते हैं. बैकवर्ड और दलित सेवाकरते रहे हैं, एक हो कर और ऊंचों को वोट देते रहें, बस यही गुंजाइश छोड़ना चाहते हैं.

अमेरिका ही नहीं यूरोप में भी जाति के नाम पर अत्याचारों के सवाल उठाए जाते रहते हैं पर हर कहीं मौजूद ऊंची जातियों के भारतीय मूल के लोग इस पर अपना गुस्सा दिखाते हैं और अपनी बोलने की कला का फायदा उठा कर मुंह बंद कर देते हैं.

दलित और पिछड़ों के साथ दिक्कत है कि स्कूलकालेजों में पढ़ने के बाद भी वे न बोलना सीख रहे हैं, न पढ़ना. वे पढ़ते तो वही हैं जो ऊंची जातियों वाले पढ़ाते हैं, सुनते हैं तो वही जो ऊंची जातियों के सुनाते हैं, देखते हैं तो वही जो ऊंची जातियों वाले दिखाते हैं और आखिर में करते हैं तो वही जो ऊंची जातियों वाले कराते हैं. कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की बीमारी दूसरे विश्वविद्यालयों में न फैल जाए यह फिक्र होनी चाहिए वहां की हिंदू संस्थाओं को जहां ज्यादातर ब्राह्मण और बनिया का गठजोड़ चलता है.

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