चुनावों के टिकटों के बंटवारे में जाति को कितना भाव दिया गया है, यह किसी से छिपा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट हर माह एकदो फैसले अवश्य ऐसे देती है जिन में जाति का सवाल उठाया जाता है पर जब दुनियाभर में लिंग, रंग, धर्म या क्षेत्र पर भेदभाव की बात होती है तो भारत सरकार बारबार कहती है कि जाति तो कोई भेदभाव वाली बात ही नहीं है.

अब अमेरिका की कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की सीनेट ने फैसला किया है कि जाति के सवाल को लिंग, धर्म, भाषा वगैरह के मामलों की तरह लिया जाएगा और किसी की जाति को ले कर किसी को कुछ कहने, कोई चीज या सेवा देने में आनाकानी करने, उन्हें ज्यादा सुविधाएं देने पर सवाल उठाने का हक न होगा.

मजेदार बात यह है कि स्टेट यानी सरकार के फंड से चलती इस यूनिवर्सिटी के 80 भारतीय रंग वाले शिक्षकों ने इस की जम कर खिलाफत की. अमेरिका की 4,85,000 छात्रों वाली इस यूनिवर्सिटी में 55,000 पढ़ाने वाले हैं जिन में काफी भारतीय भी हैं. ये भारतीय ज्यादातर ऊंची जातियों के हैं जो बारबार दोहराते हैं कि भारत तो एक है, भारतीयों में जाति को ले कर कोई भेदभाव नहीं है.

जाति के सवाल को नकारने का मतलब यही होता है कि कहीं पिछड़े और दलित यूनिवर्सिटी में कोटों का फायदा न उठा लें और वहां पढ़ाने का काम न मिलने लगे. अगर वे साथ उठनेबैठने लगेंगे तो उन में आपस में लेनदेन भी होगा और एकदूसरे के घर जाना पड़ेगा. आज भी विदेशों में दशकों नहीं पीढि़यों तक हिंदुस्तान से बाहर रहने के बावजूद घर में भारतीय जाति देख कर ही एकदूसरे को बुलाते हैं. गोरा आ रहा हो तो कोई बात नहीं, चीनीजापानी चलेगा पर मुसलिम, पिछड़ा या दलित नहीं होना चाहिए.

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