दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें… हिजाब भाग-2
मुझे एक दोस्त की बेहद जरूरत थी. नयनिका से मिलतेमिलाते सालभर होने को था. बचपन का सूत्र कहूं या हम दोनों की सोच की समानता दोनों ही एकदूसरे की दोस्ती में गहरे उतर रहे थे.
मैं जिस वक्त उस के घर गई वह अपनी पढ़ाई की तैयारी में व्यस्त थी. नयनिका कमर्शियल पायलट के लाइसैंस के लिए तैयारी कर रही थी. हम दोनों उस के बगीचे में आ गए थे. रंगबिरंगे फूलों के बीच जब हम जा बैठे तो कुछ और करीबियां हमारे पास सिमट आईं. उस की आंखों में छिपा दर्द शायद मुझे अपना हाल सुनाने को बेताब था. शायद मैं भी. बरदाश्त की वह लकीर जब तक अंगारा नहीं बन जाती, हम उसे पार करना नहीं चाहतीं, हम अपने प्रियजनों के खिलाफ जल्दी कुछ बुरा कहना-सुनना भी नहीं चाहते.
मैं ने उस से पूछा, ‘‘उदास क्यों रहती हो हमेशा? तैयारी तो अच्छी चल रही न?’’
उस ने कहा, ‘‘कारण है, तभी तो उदास हूं… कमर्शियल पायलट बनने की कामयाबी मिल भी जाए तो हजारों रुपए लगेंगे इस की ट्रेनिंग में जाने को. बड़े भैया ने तो आदेश जारी कर दिया है कि बहुत हो गया, हवा में उड़ना… अब घरगृहस्थी में मन रमाओ.’’
‘‘हूं, दिक्कत तो है… फिर कर लो शादी.’’
‘‘क्यों, तुम मान रही हो वाकर से शादी और बुटीक की बात? वह तुम्हारे
हिसाब से, तुम्हारी मरजी से अलग है… अमेरिका में हर महीने लाखों कमाने वाले खूबसूरत इंजीनियर से शादी वैसे ही मेरी मंजिल नहीं. जो मैं बनना चाहती हूं, वह बनने न देना और सब की मरजी पर कुरबान हो जाना… यह इसलिए कि एक स्त्री की स्वतंत्रता मात्र उस के सिंदूर, कंगन और घूमनेफिरने के लिए दी गई छूट या रहने को मिली छत पर ही आ कर खत्म हो जाती है.’’
‘‘वाकई तुम प्लेन उड़ा लोगी,’’
मैं मुसकराई.
वह अब भी गंभीर थी. पूछा, ‘‘क्यों? अच्छेअच्छे उड़ जाएंगे, प्लेन क्या चीज है,’’ वह उदासी में भी मुसकरा पड़ी.
‘‘क्या करना चाहती हो आगे?’’
‘‘कमर्शियल पायलट का लाइसैंस मिल जाए तो मल्टीइंजिन ट्रैनिंग के लिए न्यूजीलैंड जाना चाहती हूं. पापा किसी तरह मान भी जाएं तो भैया यह नहीं होने देंगे.’’
‘‘क्यों, उन्हें इतनी भी क्या दिक्कत?’’
‘‘वे एक सामान्य इंजीनियर मैं कमर्शियल पायलट… एक स्त्री हो कर उन से ज्यादा डेयरिंग काम करूं… रिश्तेदारों और समाज में चर्चा का विषय बनूं? बड़ा भाई क्यों पायलट नहीं बन सका? आदि सवाल न उठ खड़े हों… दूसरी बात यह है कि अमेरिका में उन का दोस्त इंजीनियर है. अगर मैं उस दोस्त से शादी कर लूं तो वह अपनी पहचान से भैया को अमेरिका में अच्छी कंपनी में जौब दिलवाने में मदद करेगा. तीसरी बात यह है कि इन की बहन को मेरे भैया पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं, जो अभी अमेरिका में ही जौब कर रही है.’’
‘‘उफ, बड़ी टेढ़ी खीर है,’’ मैं बोल पड़ी.
‘‘सब सधे लोग हैं… पक्के व्यवसायी… मैं तो उस दोस्त को पसंद भी नहीं करती और न ही वह मुझे.’’
‘‘हम ही नहीं सीख पा रहे दुनियादारी.’’
‘‘सीखना पड़ेगा चिलमन… लोग हम जैसों के सिर पर पैर रख सीढि़यां चढ़ते रहेंगे… हम आंसुओं पर लंबीलंबी शायरियां लिख उन पन्नों को रूह की आग में जलाते जाएंगे.’’
‘‘तुम्हें मिलाऊंगी अर्क से… आने ही वाला है… शाम को उस के साथ मुझे डिनर पर जाना पड़ेगा… भैया का आदेश है,’’ नयनिका उदास सी बोली जा रही थी.
मैं अब यहां से निकलने की जल्दी में थी. मेरी मोहलत भी खत्म होने को आई थी.
‘ये सख्श कौन? अर्क साहब तो नहीं? फुरसत से बनाया है बनाने वाले ने,’ मैं मन ही मन अनायास सोचती चली गई.
अर्क ही थे महाशय. 5 फुट 10 इंच लंबे, गेहुंए रंग में निखरे… वाकई खूबसूरत नौजवान. उन्हें देखते मैं पहली बार छुईमुई सी हया बन गई… न जाने क्यों उन से नजरें मिलीं नहीं कि चिलमन खुद आंखों में शरमा कर पलकों के अंदर सिमट गई.
अर्क साहब मेरे चेहरे पर नजर रख खड़े हो गए. फिर नयनिका की ओर मुखाबित हुए, ‘‘ये नई मुहतरमा कौन?’’
‘‘चिलमन, मेरी बचपन की सहेली.’’
अर्क साहब ने हाथ मिलाने को मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मैं ने हाथ तो मिलाया, पर फिर घर वालों की याद आते ही मैं असहज हो गई. मैं ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं चलूंगी.’’
नयनिका समझ रही थी, बोली, ‘‘हां, तुम निकलो.’’
अर्क मुझ पर छा गए थे. मैं नयनिका से मन ही मन माफी मांग रही थी, लेकिन इस अनजाने से एहसास को जाने क्यों अब रोक पाना संभव नहीं था मेरे लिए.
कुछ दिनों बाद नयनिका ने खुशखबरी सुनाई. उस की लड़ाई कामयाब हुई थी… उसे मल्टी इंजिन ट्रेनिंग के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर न्यूजीलैंड भेजा जाना था.
इस खुशी में उस ने मुझे रात होटल में डिनर पर बुलाया.
उस की इस खबर ने मुझ में न सिर्फ उम्मीद की किरण जगाई, बल्कि काफी हिम्मत भी दे गई. मैं ने भी आरपार की लड़ाई में उतर जाने को मन बना लिया.
होटल में अर्क को देख मैं अवाक थी और नहीं भी.
हलकेफुलके खुशीभरी माहौल में नयनिका ने मुझ से कहा, ‘‘तुम दोनों को यहां साथ बुलाने का मेरा एक मकसद है. अर्क और तुम्हारी बातों से मैं समझने लगी हूं कि यकीनन तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो वरना अर्क माफी मांगते हुए तुम्हारे मोबाइल नंबर मुझ से न मांगते… चिलमन, अर्क जानते हैं मैं किस मिट्टी की बनी हूं… यह घरगृहस्थी का तामझाम मेरे बस का नहीं है… सब लोग एक ही सांचे में नहीं ढल सकते… मैं अभी न्यूजीलैंड चली जाऊंगी, फिर आते ही पायलट के काम में समर्पण. चिलमन तुम अर्क से आज ही अपने मन की बात कह दो.’’
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अर्क खुशी से सुर्ख हो रहे थे. बोले, ‘‘अरे, ऐसा है क्या? मैं तो सोच रहा था कि मैं अकेला ही जी जला रहा हूं.’’
कुछ देर चुप रहने के बाद अर्क फिर बोले, ‘‘नयनिका के पास बड़े मकसद हैं.’’
मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘मेरे पास भी थे.’’
‘‘तो बताइए न मुझे.’’
नयनिका ने कहा, ‘‘जाओ उस कोने वाली टेबल पर और औपचारिकता छोड़ कर बातें कर लो.’’
अर्क ने पूरी सचाई के साथ मेरा हाथ थाम लिया था… विदेश जा कर मेरे कैरियर को नई ऊंचाई देने का मुझ से वादा किया.
इधर शादी के मामले में अर्क ने नयनिका के घर वालों का भी मोरचा संभाला.
अब थी मेरी बारी. अर्क का साथ मिल गया तो मुझे राह दिख गई.
घर से निकलते वक्त मन भारी जरूर था, लेकिन अब डर, बेचारगी की जंजीरों से अपने पैर छुड़ाने जरूरी हो गए थे.
कानपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी हम ने. फिर वक्त से अमेरिकन एयरवेज में दाखिल हो गए.
साहिबा आपा को फोन से सूचना दे दी कि अर्क के साथ मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करने अमेरिका जा रही हूं. वहां माइक्रोबायोलौजी ले कर काम करूंगी और अर्क को खुश रखूंगी.’’
साहिबा आपा जैसे आसमान से गिरी हों. हकला कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’
हमारी आजादी हिजाब हटनेभर से नहीं है आपा… हमारी आजादी में एक उड़ान होनी चाहिए.
आपा के फोन रख देने भर से हमारी आजादी की नई दास्तां शुरू हो गई थी.
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