Best Hindi Story: चंपा लौट आई – देह सौंप कर चुकाया अहसान का कर्ज

Best Hindi Story: ‘‘चंपा, मैं तुम से मिलने कल फिर आऊंगा,’’ नरेश अपने कपड़े समेटते हुए बोला.

‘‘नहीं, कल से मत आना. कल मेरा आदमी घर आने वाला है. मैं किसी भी तरह के लफड़े या बदनामी में नहीं पड़ना चाहती,’’ चंपा नरेश से बोली.

‘‘अरे नहीं, सूरत इतना नजदीक नहीं है. उस के आने में कम से कम 2-3 दिन तो लग ही जाएंगे,’’ नरेश चंपा को अपनी बांहों में कसते हुए बोला.

चंपा बांह छुड़ा कर बोली, ‘‘2 दिन पहले ही बता चुका है कि वह गाड़ी पकड़ चुका है. कल वह घर भी पहुंच जाएगा.’’

नरेश मायूस होता हुआ बोला, ‘‘जैसी तेरी मरजी. दिन में एक बार तुझे देखने जरूर आ जाया करूंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना,’’ चंपा हंस कर उस से बोली.

नरेश पीछे के दरवाजे से बाहर हो गया. अपने घर जाते समय नरेश चंपा के बारे में वह सब सोचने लगा, जो चंपा ने उसे बताया था.

चंपा के घर में सासससुर और पति के अलावा और कोई नहीं था. चंपा का पति संजय अकसर काम के सिलसिले में गुजरात की कपड़ा मिल में जाया करता था. वह वहां तब से काम कर रहा है, जब उस की चंपा से शादी भी नहीं हुई थी.

संजय को गुजरात गए 2 महीने बीत गए थे. कसबे में मेला लगने वाला था.

चंपा संजय को फोन पर बोली, ‘तुम घर पर नहीं हो. इस बार का मेला मैं किस के साथ देखने जाऊंगी? मांपिताजी तो जा नहीं सकते.’

संजय ने चंपा को गांव की औरतों के साथ मेला देखने को कहा. यह सुन कर चंपा का चेहरा खुशी से खिल उठा.

एक रात गांव की कुछ औरतें समूह बना कर मेला देखने जा रही थीं. चंपा भी उन के साथ हो ली. घर पर रखवाली के लिए सासससुर तो थे ही.

मेले में रंगबिरंगी सजावट, सर्कस, झूले और न जाने मनोरंजन के कितने साजोसामान थे. उन सब को निहारती चंपा गांव की औरतों से बिछड़ गई.

अब चंपा घर कैसे जाएगी? वह डर गई थी. मेले से उस का मन उचटने लगा था. उसे घर की चिंता सताने लगी थी. उस ने उन औरतों की बहुत खोजबीन की, पर उन का पता नहीं चल पाया.

रात गहराती जा रही थी. लोग धीरेधीरे अपने घरों को जाने लगे थे. चंपा भी डरतेडरते घर की ओर जाने वाले रास्ते पर चल दी.

चंपा की शादी को अभी 2 साल हुए थे. अभी तक उसे कोई बच्चा भी नहीं हुआ था. तीखे नाकनक्श, होंठ लाल रसभरे, गठीला बदन, रस की गगरी की तरह उभार, सब मिला कर वह खिला चांद लगती थी, इसलिए तो संजय मरमिटा था चंपा पर और उस को खुश रखने के लिए हर ख्वाहिश पूरी करता था.

चंपा के गदराए बदन को देख कर 2 मनचले मेले में ही लार टपका रहे थे. अकेले ही घर की ओर जाते देख वे भी अंधेरे का फायदा उठाना चाहते थे.

चंपा भी उन की मंशा भांप गई थी. घर की ओर जाने वाली पगडंडी पर वह तेज कदमों से चली जा रही थी. वे पीछा तो नहीं कर रहे, इसलिए पीछे मुड़ कर देख भी लेती.

मनचले भी तेज कदमों से चंपा की ओर बढ़ रहे थे. वह बदहवास सी तेजी से चली जा रही थी कि अचानक ठोकर खा कर गिर पड़ी.

तभी एक नौजवान ने सहारा दे कर चंपा को उठाया और पूछा, ‘आप बहुत डरी हुई हैं. क्या बात है?’

‘कुछ नहीं,’ चंपा उठते हुए बोली.

‘शायद मेला देख कर आ रही हैं? कहां तक जाना है?’ नौजवान ने पूछा.

‘पास के सूरतपुर गांव में मेरा घर है. 2 मनचले मेरा पीछा कर रहे हैं. जिन औरतों के साथ मैं आई थी, वे पता नहीं कब घर चली गईं. मुझे मालूम नहीं चला,’ बदहवास चंपा ने एक ही सांस में सारी बातें उस नौजवान से बोल दीं.

जिस नौजवान ने चंपा को सहारा दिया, उस का नाम नरेश था. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो वहां कोई नहीं था.

‘डरने की कोई बात नहीं है. मैं भी उसी गांव का हूं. मैं आप को घर तक छोड़ दूंगा.’

चंपा डर गई थी. डर के मारे वह नरेश का हाथ पकड़ कर चल रही थी. कभीकभार दोनों के शरीर भी एकदूसरे से टकरा जाते.

कुछ देर बाद नरेश ने चंपा को उस के घर पहुंचा दिया. चंपा ने शुक्रिया कहा और अगले दिन नरेश से घर आने को बोली.

नरेश उसी दिन से चंपा के घर आया करता था, उस से ढेर सारी बातें करता, मजाकमजाक में चंपा को छूता भी था. चंपा को भी अच्छा लगता था.

एक दिन नरेश चंपा के गाल चूमते हुए बोला, ‘आप बहुत सुंदर हैं. मेरा बस चले तो…’ चंपा मुसकरा कर पीछे हट गई.

इस के बाद नरेश ने चंपा को बांहों में जकड़ कर एक बार और गालों को चूम लिया.

चंपा कसमसाते हुए बोली, ‘यह अच्छा नहीं है. क्या कर रहे हो?’

संजय अकसर घर से बाहर ही रहता था, इसलिए चंपा की जवानी भी प्यासी मछली की तरह तड़पती रहती. छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर नरेश के आगे वह समर्पित हो गई और वे दोनों एक हो गए. दोनों ने जम कर गदराई जवानी का मजा उठाया. चंपा खुश थी.

उस दिन के बाद से ही यह सिलसिला चल पड़ा. दोनों एकदूसरे के साथ मिल कर बहुत खुश होते.

एक दिन नरेश ने चंपा से पूछा, ‘तुम सारी जिंदगी मुझ से इसी तरह प्यार करती रहोगी न?’

‘नहीं,’ चंपा बोली.

‘क्यों? लेकिन, मैं तो तुम से बहुत प्यार करता हूं.’

‘यह प्यार नहीं हवस है नरेश.’

‘आजमा कर देख लो,’ नरेश बोला.

‘नरेश, तुम अपने एहसानों का बदला चुकता कर रहे हो. जिस दिन मुझे लगेगा, तुम्हारा एहसान पूरा हो चुका है, मैं तुम से अलग हो जाऊंगी. और तुम भी अपनी अलग ही दुनिया बसा लेना,’ चंपा उसे समझाते हुए बोली.

आज नरेश को चंपा की कही हुई हर बात जेहन में ताजा होने लगी थी कि कल संजय के घर पहुंचते ही उस एहसान का कर्ज चुकता होने वाला है. Best Hindi Story

Family Story In Hindi: बस एक भूल – शादी की वह रात

Family Story In Hindi: जब बड़ी बेटी मधु की शादी में विद्यासागर के घर शहनाई बज रही थी, तो खुशी से उन की आंखें भर आईं.

उधर बरातियों के बीच बैठे राजेश के पिता की भी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, क्योंकि उन के एकलौते बेटे की शादी मधु जैसी सुंदर व सुशील लड़की से हो रही थी.

लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह शादी उन के लिए सिरदर्द बनने वाली है. शादी को अभी 2 दिन भी नहीं हुए थे कि मधु राजेश को नामर्द बता कर मायके आ गई.

यह बात दोनों परिवारों के गांवों में जंगल में लगी आग की तरह फैल गई. सब अपनीअपनी कहानियां बनाने लगे. कोई कहता कि राजेश ज्यादा शराब पी कर नामर्द बन गया है, तो कोई कहता कि वह पैदाइशी नामर्द था. इस से दोनों परिवारों की इज्जत धूल में मिल गई.

राजेश जहां भी जाता, गांव वालों से यही सुनने को मिलता कि उन्हें तो पहले से ही मालूम था कि आजकल की लड़की उस जैसे गंवार के साथ नहीं रह सकती.

विद्यासागर के दुखों का तो कोई अंत ही नहीं था. वे बस एक ही बात कहते, ‘मैं अपनी बेटी को कैसी खाई में धकेल रहा था…’

मधु के घर में मातम पसरा हुआ था, पर जैसे उस के मन में कुछ और ही चल रहा था.

मधु की ससुराल वाले बस यही चाहते थे कि वे किसी तरह से मधु को अपने यहां ले आएं, क्योंकि गांव वाले उन को इतने ताने मार रहे थे कि उन का घर से निकलना मुश्किल हो गया था.

राजेश के पिता विद्यासागर से बात करना चाहते थे, पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया था.

कुछ दिनों बाद मधु की ससुराल वाले कुछ गांव वालों के साथ मधु को लेने आए, तो मधु ने जाने से साफ इनकार कर दिया.

विद्यासागर ने भी मधु की ससुराल वालों की उन के गांव वालों के सामने जम कर बेइज्जती कर दी और धमकाते हुए कहा, ‘‘आज के बाद यहां आया, तो तेरी टांगें तोड़ दूंगा.’’

यह सुन कर राजेश के पिता भी उन्हें धमकाने लगे, ‘‘अगर तुम अपनी बेटी को मेरे साथ नहीं भेजोगे, तो मैं तुम पर केस कर दूंगा.’’

विद्यासागर ने कहा, ‘‘जो करना है कर ले, पर मैं अपनी बेटी को तेरे घर कभी नहीं भेजूंगा.’’

मामला कोर्ट में पहुंच गया. मधु तलाक चाहती थी, पर राजेश उसे रखना चाहता था.

कुछ दिनों तक केस चला, लेकिन दोनों परिवारों की माली हालत कमजोर होने की वजह से उन्होंने आपस में समझौता कर लिया व तलाक हो गया.

मधु बहुत खुश थी, क्योंकि वह तो यही चाहती थी.

एक दिन जब मधु सुबहसवेरे दुकान पर जा रही थी, तो वहां उसे दीपक दिखाई दिया, जो उस के साथ पढ़ता था.

मधु ने दीपक को धीरे से कहा, ‘‘आज शाम को मैं तेरा इंतजार मंदिर में करूंगी. वहां आ जाना.’’

दीपक ने कुछ जवाब नहीं दिया. मधु मुसकरा कर चली गई.

जब शाम को वे दोनों मंदिर में मिले, तो मधु ने खुशी से कहा, ‘‘देख दीपक, मैं तेरे लिए सब छोड़ आई हूं. वह रिश्ता, वह नाता, सबकुछ.’’

‘‘मेरे लिए… तुम कहना क्या चाहती हो मधु?’’ दीपक ने थोड़ा चौंक कर उस से पूछा.

‘‘दीपक, मैं सिर्फ तुम से प्यार करती हूं और तुम से ही शादी करना चाहती हूं,’’ मधु ने थोड़ा बेचैन अंदाज में कहा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो मधु?’’ दीपक ने फिर पूछा.

मधु ने कहा, ‘‘मैं सच कह रही हूं दीपक. मैं तुम से प्यार करती हूं. कल यह समाज मेरे फैसले का विरोध करे, इस से पहले हम शादी कर लेते हैं.’’

‘‘मधु, तुम पागल तो नहीं हो गई हो. जब गांव वाले सुनेंगे, तो मुझे जान से मार देंगे और पता नहीं, मेरी मां मेरा क्या हाल करेंगी?’’ दीपक ने थोड़ा घबरा कर कहा.

‘‘क्या तुम गांव वालों और अपनी मां से डरते हो? क्या तुम ने मुझ से प्यार नहीं किया?’’

‘‘हां मधु, मैं ने तुम से ही प्यार किया है, पर तुम से शादी करूंगा, ऐसा कभी नहीं सोचा.’’

मधु ने गुस्से में कहा ‘‘धोखेबाज, तू ने शादी के बारे में कभी नहीं सोचा, पर मैं सिर्फ तेरे बारे में ही सोचती रही. ऐसा न हो कि मैं कल किसी और की हो जाऊं. चल, शादी कर लेते हैं,’’ मधु ने दीपक का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘नहीं मधु, मुझे अपनी मां से बहुत डर लगता है. अगर हम दोनों ने ऐसा किया, तो गांव में हम दोनों की बदनामी होगी,’’ दीपक ने समझाते हुए कहा.

मधु ने बोल्ड अंदाज में कहा, ‘‘तुम अपनी मां और गांव वालों से डरते होगे, पर मैं किसी से नहीं डरती. मैं करूंगी तुम्हारी मां से बात.’’

दीपक ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, पर मधु ने अपनी जिद के आगे उस की एक न सुनी.

अगले दिन जब मधु दीपक की मां से बात करने गई, तो उस की मां ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतनी गिरी हुई लड़की हो. तुम ने इस नाजायज प्यार के लिए अपना ही घर उजाड़ दिया.’’

‘‘मैं अपना घर उजाड़ कर नहीं आई मांजी, बल्कि दीपक के लिए सब छोड़ आई हूं. मेरे लिए दीपक ही सबकुछ है. मुझे अपनी बहू बना लीजिए, वरना मैं मर जाऊंगी,’’ मधु ने गिड़गिड़ा कर कहा.

‘‘तो मर जा, लेकिन मुझे सैकंडहैंड बहू नहीं चाहिए,’’ दीपक की मां ने दोटूक शब्दों में कहा.

‘‘मैं सैकंडहैंड नहीं हूं मांजी. मैं वैसी ही हूं, जैसी गई थी,’’ मधु ने कहा.

‘‘लगता है कि शादी के बाद तुझ में कोई शर्मलाज नहीं रही है. अंधे प्यार ने तुझे पागल बना दिया है. दीपक तेरे गांव का है… तेरा भाई लगेगा. मैं तेरे पापा को सब बताऊंगी,’’ दीपक की मां ने मधु को धमकाते हुए कहा.

इस के आगे मधु ने कुछ नहीं कहा. वह चुपचाप वहां से चली गई.

दीपक की मां ने विद्यासागर से कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी दीपक के प्यार के चलते ही अपनी ससुराल में न बस सकी. अपनी बेटी को बस में रखो, वरना एक दिन वह तुम्हारी नाक कटा देगी.’’

यह सुनते ही विद्यासागर का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

विद्यासागर ने घर जाते ही मधु से गुस्से में पूछा, ‘‘मधु, वह लड़का सच में नामर्द था या फिर तुम ने उसे नामर्द बना दिया?’’

‘‘वह मुझे पसंद नहीं था,’’ मधु ने बेखौफ हो कर कहा.

‘‘इसलिए तुम ने उसे नामर्द बना दिया,’’ विद्यासागर ने गुस्से में कहा.

‘‘हां,’’ मधु बोली.

‘‘मतलब, तुम ने पहले ही सोच लिया था कि यह रिश्ता तोड़ना है?’’

‘‘हां.’’

फिर विद्यासागर उसे बहुतकुछ सुनाने लगे, ‘‘जब तुम्हें रिश्ता तोड़ना ही था, तो यह रिश्ता जोड़ा ही क्यों? जब रिश्ते की बात हो रही थी, तो मैं ने बारबार पूछा था कि यह रिश्ता पसंद है न? हर बार तू ने हां कहा था. क्यों?

‘‘तेरी ससुराल वाले मुझ से बारबार एक ही बात कह रहे थे कि राजेश नामर्द नहीं है, पर मैं ने तुझ पर भरोसा कर के उन की एक न सुनी.

‘‘वह मेरी मजबूरी थी, क्योंकि आप से कहीं रिश्ता हो ही नहीं रहा था. बड़ी मुश्किल से आप ने मेरे लिए एक रिश्ता तय किया, तो मैं उसे कैसे नकार देती?’’ मधु ने शांत लहजे में कहा.

‘‘जानती हो कि तुम्हारे चलते मैं आज कितनी बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तेरी शादी का कर्ज अभी तक मेरे सिर पर है. सोचा था कि इस साल तेरी छोटी बहन की शादी कर देंगे, पर तुझ से छुटकारा मिले तब न.’’

मधु पिता की बात ऐसे सुन रही थी, जैसे उस ने कुछ गुनाह ही न किया हो.

‘‘जेब में एक पैसा नहीं है. तेरा छोटा भाई अभी 10 साल का है. उस से अभी क्या उम्मीद करूं? आसपास के लोग तो बस हम पर हंसते हैं.

‘‘पता नहीं, आजकल के बच्चों को हो क्या गया है. वे रिश्तों की अहमियत क्यों नहीं समझाते हैं. रिश्ता तोड़ना तो आजकल एक खेल सा बन गया है. इस से मांबाप की कितनी परेशानी बढ़ती है, यह आजकल के बच्चे समझे तब न.

‘‘वैसे भी लड़कियों को रिश्ता तोड़ने का एक अच्छा बहाना मिल गया है कि लड़का पसंद न हो, तो उसे नामर्द बता दो. यह एक ऐसी बीमारी है, जिस का कोई इलाज ही नहीं है,’’ इस तरह एकतरफा गरज कर मधु के पिता बाहर चले गए.

यह बात धीरेधीरे पूरे गांव में फैल गई. गांव वाले मधु के खिलाफ होने लगे. अब तो उस का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

दीपक भी अपनी मां के कहने पर नौकरी के लिए शहर चला गया.

विद्यासागर ने मधु की दूसरी शादी कराने की बहुत कोशिश की, पर कहीं बात नहीं बनी. वे जानते थे कि लड़की की एक बार शादी होने के बाद उस की दूसरी शादी कराना बड़ा ही मुश्किल होता है.

इस तरह एक साल गुजर गया. मधु को भी अपनी गलती का एहसास हो गया था. वह बारबार यही सोचती, ‘मैं ने क्यों अपना घर उजाड़ दिया? मेरे चलते ही परिवार वाले मुझ से नफरत करते हैं.’

फिर बड़ी मुश्किल से मधु के लिए एक रिश्ता मिला. उस आदमी की बीवी कुछ महीने पहले मर गई थी. वह विदेश में रह कर अच्छा पैसा कमाता था.

मधु की मां ने उस से पूछा, ‘‘सचसच बताना कि तुझे यह रिश्ता मंजूर है?’’

मधु ने धीरे से कहा, ‘‘हां.’’

मां ने कहा, ‘‘इस बार कुछ गड़बड़ की, तो अब इस घर में भी जगह नहीं मिलेगी.’’

मधु बोली, ‘‘ठीक है.’’

फिर मधु की शादी गांव से दूर एक शहर में कर दी गई. वह आदमी भी मधु को देख कर बहुत खुश था.

जब मधु एयरपोर्ट पर अपने पति के साथ विदेश जाने लगी, तो उस के परिवार वालों ने सबकुछ भुला कर उसे विदा किया. उस की मां ने नम आंखों से जातेजाते मधु से पूछ ही लिया, ‘‘क्या तुम इस रिश्ते से खुश हो?’’

मधु ने भी नम आंखों से कहा, ‘‘खुश हूं. एक गलती कर के पछता रही हूं. अब मैं भूल से भी ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगी.’’

विद्यासागर ने मधु से भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मधु, मैं ने गुस्से में तुम से जोकुछ भी कहा, उसे भूल जाना.’’

कुछ देर बाद पूरे परिवार ने नम आंखों से मधु को विदा कर दिया. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: खोया हुआ सच – क्या वजह थी सीमा के दुख की

Hindi Family Story: सीमा रसोई के दरवाजे से चिपकी खड़ी रही, लेकिन अपनेआप में खोए हुए उस के पति रमेश ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाएं हाथ में फाइलें दबाए वह चुपचाप दरवाजा ठेल कर बाहर निकल गया और धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो गया.

सीमा के मुंह से एक निश्वास सा निकला, आज चौथा दिन था कि रमेश उस से एक शब्द भी नहीं बोला था. आखिर उपेक्षाभरी इस कड़वी जिंदगी के जहरीले घूंट वह कब तक पिएगी?

अन्यमनस्क सी वह रसोई के कोने में बैठ गई कि तभी पड़ोस की खिड़की से छन कर आती खिलखिलाहट की आवाज ने उसे चौंका दिया. वह दबेपांव खिड़की की ओर बढ़ गई और दरार से आंख लगा कर देखा, लीला का पति सूखे टोस्ट चाय में डुबोडुबो कर खा रहा था और लीला किसी बात पर खिलखिलाते हुए उस की कमीज में बटन टांक रही थी. चाय का आखिरी घूंट भर कर लीला का पति उठा और कमीज पहन कर बड़े प्यार से लीला का कंधा थपथपाता हुआ दफ्तर जाने के लिए बाहर निकल गया.

सीमा के मुंह से एक ठंडी आह निकल गई. कितने खुश हैं ये दोनों… रूखासूखा खा कर भी हंसतेखेलते रहते हैं. लीला का पति कैसे दुलार से उसे देखता हुआ दफ्तर गया है. उसे विश्वास नहीं होता कि यह वही लीला है, जो कुछ वर्षों पहले कालेज में भोंदू कहलाती थी. पढ़ने में फिसड्डी और महाबेवकूफ. न कपड़े पहनने की तमीज थी, न बात करने की. ढीलेढाले कपड़े पहने हर वक्त बेवकूफीभरी हरकतें करती रहती थी.

क्लासरूम से सौ गज दूर भी उसे कोई कुत्ता दिखाई पड़ जाता तो बेंत ले कर उसे मारने दौड़ती. लड़कियां हंस कर कहती थीं कि इस भोंदू से कौन शादी करेगा. तब सीमा ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यही फूहड़ और भोंदू लीला शादी के बाद उस की पड़ोसिन बन कर आ जाएगी और वह खिड़की की दरार से चोर की तरह झांकती हुई, उसे अपने पति से असीम प्यार पाते हुए देखेगी.

दर्द की एक लहर सीमा के पूरे व्यक्त्तित्व में दौड़ गई और वह अन्यमनस्क सी वापस अपने कमरे में लौट आई.

‘‘सीमा, पानी…’’ तभी अंदर के कमरे से क्षीण सी आवाज आई.

वह उठने को हुई, लेकिन फिर ठिठक कर रुक गई. उस के नथुने फूल गए, ‘अब क्यों बुला रही हो सीमा को?’ वह बड़बड़ाई, ‘बुलाओ न अपने लाड़ले बेटे को, जो तुम्हारी वजह से हर दम मुझे दुत्कारता है और जराजरा सी बात में मुंह टेढ़ा कर लेता है, उंह.’

और प्रतिशोध की एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर आ गई. अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर वह तन कर रमेश की फोटो के सामने खड़ी हो गई, ‘‘ठीक है रमेश, तुम इसलिए मुझ से नाराज हो न, कि मैं ने तुम्हारी मां को टाइम पर खाना और दवाई नहीं दी और उस से जबान चलाई. तो लो यह सीमा का बदला, चौबीसों घंटे तो तुम अपनी मां की चौकीदारी नहीं कर सकते. सीमा सबकुछ सह सकती है, अपनी उपेक्षा नहीं. और धौंस के साथ वह तुम्हारी मां की चाकरी नहीं करेगी.’’

और उस के चेहरे की जहरीली मुसकान एकाएक एक क्रूर हंसी में बदल गई और वह खिलाखिला कर हंस पड़ी, फिर हंसतेहंसते रुक गई. यह अपनी हंसी की आवाज उसे कैसी अजीब सी, खोखली सी लग रही थी, यह उस के अंदर से रोतारोता कौन हंस रहा था? क्या यह उस के अंदर की उपेक्षित नारी अपनी उपेक्षा का बदला लेने की खुशी में हंस रही थी? पर इस बदले का बदला क्या होगा? और उस बदले का बदला…क्या उपेक्षा और बदले का यह क्रम जिंदगीभर चलता रहेगा?

आखिर कब तक वे दोनों एक ही घर की चारदीवारी में एकदूसरे के पास से अजनबियों की तरह गुजरते रहेंगे? कब तक एक ही पलंग की सीमाओं में फंसे वे दोनों, एक ही कालकोठरी में कैद 2 दुश्मन कैदियों की तरह एकदूसरे पर नफरत की फुंकारें फेंकते हुए अपनी अंधेरी रातों में जहर घोलते रहेंगे?

उसे लगा जैसे कमरे की दीवारें घूम रही हों. और वह विचलित सी हो कर धम्म से पलंग पर गिर पड़ी.

थप…थप…थप…खिड़की थपथपाने की आवाज आई और सीमा चौंक कर उठ बैठी. उस के माथे पर बल पड़ गए. वह बड़बड़ाती हुई खिड़की की ओर बढ़ी.

‘‘क्या है?’’ उस ने खिड़की खोल कर रूखे स्वर में पूछा. सामने लीला खड़ी थी, भोंदू लीला, मोटा शरीर, मोटा थुलथुल चेहरा और चेहरे पर बच्चों सी अल्हड़ता.

‘‘दीदी, डेटौल है?’’ उस ने भोलेपन से पूछा, ‘‘बिल्लू को नहलाना है. अगर डेटौल हो तो थोड़ा सा दे दो.’’

‘‘बिल्लू को,’’ सीमा ने नाक सिकोड़ कर पूछा कि तभी उस का कुत्ता बिल्लू भौंभौं करता हुआ खिड़की तक आ गया.

सीमा पीछे को हट गई और बड़बड़ाई, ‘उंह, मरे को पता नहीं मुझ से क्या नफरत है कि देखते ही भूंकता हुआ चढ़ आता है. वैसे भी कितना गंदा रहता है, हर वक्त खुजलाता ही रहता है. और इस भोंदू लीला को क्या हो गया है, कालेज में तो कुत्ते को देखते ही बेंत ले कर दौड़ पड़ती थी, पर इसे ऐसे दुलार करती है जैसे उस का अपना बच्चा हो. बेअक्ल कहीं की.’

अन्यमनस्क सी वह अंदर आई और डेटौल की शीशी ला कर लीला के हाथ में पकड़ा दी. लीला शीशी ले कर बिल्लू को दुलारते हुए मुड़ गई और उस ने घृणा से मुंह फेर कर खिड़की बंद कर ली.

पर भोंदू लीला का चेहरा जैसे खिड़की चीर कर उस की आंखों के सामने नाचने लगा. ‘उंह, अब भी वैसी ही बेवकूफ है, जैसे कालेज में थी. पर एक बात समझ में नहीं आती, इतनी साधारण शक्लसूरत की बेवकूफ व फूहड़ महिला को भी उस का क्लर्क पति ऐसे रखता है जैसे वह बहुत नायाब चीज हो. उस के लिए आएदिन कोई न कोई गिफ्ट लाता रहता है. हर महीने तनख्वाह मिलते ही मूवी दिखाने या घुमाने ले जाता है.’

खिड़की के पार उन के ठहाके गूंजते, तो सीमा हैरान होती और मन ही मन उसे लीला के पति पर गुस्सा भी आता कि आखिर उस फूहड़ लीला में ऐसा क्या है जो वह उस पर दिलोजान से फिदा है. कई बार जब सीमा का पति कईकई दिन उस से नाराज रहता तो उसे उस लीला से रश्क सा होने लगता. एक तरफ वह है जो खूबसूरत और समझदार होते हुए भी पति से उपेक्षित है और दूसरी तरफ यह भोंदू है, जो बदसूरत और बेवकूफ होते हुए भी पति से बेपनाह प्यार पाती है. सीमा के मुंह से अकसर एक ठंडी सांस निकल जाती. अपनाअपना वक्त है. अचार के साथ रोटी खाते हुए भी लीला और उस का पति ठहाके लगाते हैं. जबकि दूसरी ओर उस के घर में सातसात पकवान बनते हैं और वे उन्हें ऐसे खाते हैं जैसे खाना खाना भी एक सजा हो. जब भी वह खिड़की खोलती, उस के अंदर खालीपन का एहसास और गहरा हो जाता और वह अपने दर्द की गहराइयों में डूबने लगती.

‘‘सीमा, दवाई…’’ दूसरे कमरे से क्षीण सी आवाज आई. बीमार सास दवाई मांग रही थी. वह बेखयाली में उठ बैठी, पर द्वेष की एक लहर फिर उस के मन में दौड़ गई. ‘क्या है इस घर में मेरा, जो मैं सब की चाकरी करती रहूं? इतने सालों के बाद भी मैं इस घर में पराई हूं, अजनबी हूं,’ और वह सास की आवाज अनसुनी कर के फिर लेट गई.

तभी खिड़की के पार लीला के जोरजोर से रोने और उस के कुत्ते के कातर स्वर में भूंकने की आवाज आई. उस ने झपट कर खिड़की खोली. लीला के घर के सामने नगरपलिका की गाड़ी खड़ी थी और एक कर्मचारी उस के बिल्लू को घसीट कर गाड़ी में ले जा रहा था.

‘‘इसे मत ले जाओ, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं,’’ लीला रोतेरोते कह रही थी.

लेकिन कर्मचारी ने कुत्ते को नहीं छोड़ा. ‘‘तुम्हारे कुत्ते को खाज है, बीमारी फैलेगी,’’ वह बोला.

‘‘प्लीज मेरे बिल्लू को मत ले जाओ. मैं डाक्टर को दिखा कर इसे ठीक करा दूंगी.’’

‘‘सुनो,’’ गाड़ी के पास खड़ा इंस्पैक्टर रोब से बोला, ‘‘इसे हम ऐसे नहीं छोड़ सकते. नगरपालिका पहुंच कर छुड़ा लाना. 2,000 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा.’’

‘‘रुको, रुको, मैं जुर्माना दे दूंगी,’’ कह कर वह पागलों की तरह सीमा के घर की ओर भागी और सीमा को खिड़की के पास खड़ी देख कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘दीदी, मेरे बिल्लू को बचा लो. मुझे 2,000 रुपए उधार दे दो.’’

‘‘पागल हो गई हो क्या? इस गंदे और बीमार कुत्ते के लिए 2,000 रुपए देना चाहती हो? ले जाने दो, दूसरा कुत्ता पाल लेना,’’  सीमा बोली.

लीला ने एक बार असीम निराशा और वेदना के साथ सीमा की ओर देखा. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी. सहसा उस की आंखें अपने हाथ में पड़ी सोने की पतली सी एकमात्र चूड़ी पर टिक गईं. उस की आंखों में एक चमक आ गई और वह चूड़ी उतारती हुई वापस कुत्ता गाड़ी की तरफ दौड़ पड़ी.

‘‘भैया, यह लो जुर्माना. मेरे बिल्लू को छोड़ दो,’’ वह चूड़ी इंस्पैक्टर की ओर बढ़ाती हुई बोली.

इंस्पैक्टर भौचक्का सा कभी उस के हाथ में पकड़ी सोने की चूड़ी की ओर और कभी उस कुत्ते की ओर देखने लगा. सहसा उस के चेहरे पर दया की एक भावना आ गई, ‘‘इस बार छोड़ देता हूं. अब बाहर मत निकलने देना,’’ उस ने कहा और कुत्ता गाड़ी आगे बढ़ गई.

लीला एकदम कुत्ते से लिपट गई, जैसे उसे अपना खोया हुआ कोई प्रियजन मिल गया हो और वह फूटफूट कर रोने लगी.

सीमा दरवाजा खोल कर उस के पास पहुंची और बोली, ‘‘चुप हो जाओ, लीला, पागल न बनो. अब तो तुम्हारा बिल्लू छूट गया, पर क्या कोई कुत्ते के लिए भी इतना परेशान होता है?’’

लीला ने सिर उठा कर कातर दृष्टि से उस की ओर देखा. उस के चेहरे से वेदना फूट पड़ी, ‘‘ऐसा न कहो, सीमा दीदी, ऐसा न कहो. यह बिल्लू है, मेरा प्यारा बिल्लू. जानती हो, यह इतना सा था जब मेरे पति ने इसे पाला था. उन्होंने खुद चाय पीनी छोड़ दी थी और दूध बचा कर इसे पिलाते थे, प्यार से इसे पुचकारते थे, दुलारते थे. और अब, अब मैं इसे दुत्कार कर छोड़ दूं, जल्लादों के हवाले कर दूं, इसलिए कि यह बूढ़ा हो गया है, बीमार है, इसे खुजली हो गई है. नहीं दीदी, नहीं, मैं इस की सेवा करूंगी, इस के जख्म धोऊंगी क्योंकि यह मेरे लिए साधारण कुत्ता नहीं है, यह बिल्लू है, मेरे पति का जान से भी प्यारा बिल्लू. और जो चीज मेरे पति को प्यारी है, वह मुझे भी प्यारी है, चाहे वह बीमार कुत्ता ही क्यों न हो.’’

सीमा ठगी सी खड़ी रह गई. आंसुओं के सागर में डूबी यह भोंदू क्या कह रही है. उसे लगा जैसे लीला के शब्द उस के कानों के परदों पर हथौड़ों की तरह पड़ रहे हों और उस का बिल्लू भौंभौं कर के उसे अपने घर से भगा देना चाहता हो.

अकस्मात ही उस की रुलाई फूट पड़ी और उस ने लीला का आंसुओंभरा चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया, ‘‘मत रो, मेरी लीला, आज तुम ने मेरी आंखों के जाले साफ कर दिए हैं. आज मैं समझ गई कि तुम्हारा पति तुम से इतना प्यार क्यों करता है. तुम उस जानवर को भी प्यार करती हो जो तुम्हारे पति को प्यारा है. और मैं, मैं उन इंसानों से प्यार करने की भी कीमत मांगती हूं, जो अटूट बंधनों से मेरे पति के मन के साथ बंधे हैं. तुम्हारे घर का जर्राजर्रा तुम्हारे प्यार का दीवाना है और मेरे घर की एकएक ईंट मुझे अजनबी समझती है. लेकिन अब नहीं, मेरी लीला, अब ऐसा नहीं होगा.’’

लीला ने हैरान हो कर सीमा को देखा. सीमा ने अपने घर की तरफ रुख कर लिया. अपनी गलतियों को सुधारने की प्रबल इच्छा उस की आंखों में दिख रही थी. Hindi Family Story

Story In Hindi: चोटी कटवा भूत – रामप्यारी के टोटके

Story In Hindi: रामप्यारी सुबह से परेशान घूम रही है. आजकल उस के पति की दूधजलेबी की दुकान ठप पड़ी है. वहीं पीपल के नीचे रामू की दुकान के लड्डू ज्यादा बिकने लगे हैं. लोग अब इधर का रुख कम ही करते हैं.

दुलारी की परेशानी थोड़ी अलग है. उस का बेरोजगार शराबी पति और झगड़ालू सास उस की सारी कमाई हड़प जाते हैं, बदले में मिलती हैं उसे सिर्फ गालियां. बड़ीबड़ी कोठियों में उसे कुछ रुपए ऊपरी काम के भी मिल जाते हैं, जिसे वह घर वालों की नजर में आने नहीं देती और छिप कर अपने शौक पूरे करती है. उस का बड़ा मन होता है कि मेमसाहब की तरह वह भी ब्यूटीपार्लर से सज कर आए.

श्यामा 27 साल की गठीले बदन की लड़की है. छोटे भाईबहनों को पालने का जिम्मा उसी के कंधे पर है. मां टीबी की मरीज हैं.

श्यामा का अपने पड़ोसी ननकू के साथ जिस्मानी रिश्ता बना हुआ है. मगर एक डर भी है कि उस का भेद ननकू की बीवी पर खुल गया, तब क्या होगा? वह एक अजीब से तनाव में रहती है.

प्रेमा के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार है. वह अपनी सारी कमाई सजनेसंवरने में लगा देती है, फिर भले ही अपनी मां से खूब मार खाती रहे. उस के पिता की पंचर की दुकान है, जिस से दालरोटी चल जाती है, मगर प्रेमा के शौक पूरे नहीं हो सकते. इसी के चलते उस ने स्कूल में आया का काम पकड़ रखा है.

इस छोटी सी बस्ती में ज्यादातर मजदूर, मिस्त्री और घरेलू कामगारों के परिवार हैं. शहर के इस बाहरी इलाके में सरकारी फ्लैट भी कम आमदनी वाले तबके के लोगों को मुहैया कराए गए

हैं. उन्हीं के साथ लगी हुई जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर झुग्गी झोपडि़यां भी बड़ी तादाद में बन गई हैं.

यहां चारों तरफ हमेशा चिल्लपौं मची रहती है. कभी सरकारी नल पर पानी का झगड़ा, कभी बच्चों की सिरफुटौव्वल, तो कभी नाजायज रिश्तों की सच्चीझूठी घटना पर औरतमर्द की मारपीट का तमाशा चलता रहता है. सभी लोगों का यही मनोरंजन का साधन है.

‘‘क्या सोच रही हो तुम? जरा इधर टैलीविजन तो देखो… आजकल कई जगह औरतों की चोटियां कट रही हैं. लगता है, किसी भूतप्रेत का साया है.

‘‘तुम जरा सब औरतों को सावधान कर दो कि सभी अपने घर के बाहर नीबूमिर्च, नीम की पत्तियां टांग दें,’’ खिलावन टैलीविजन पर आंखें गड़ाए हुए रामप्यारी से बोला.

‘‘यह सब छोड़ो और अपने फायदे की सोचो. हमें क्या फायदा हो सकता है?’’ रामप्यारी ने पूछा. उस का दिमाग इन सब खुराफातों में तेजी से चलता है.

‘‘देखो, इस बस्ती में कोई नीम का पेड़ तो है नहीं. मैं पहले पास के गांव से नीम की टहनियां ले कर आता हूं. तब तक तुम 20-25 नीबूमिर्च की माला बनाओ. हम नीम की टहनी के साथ ये मालाएं बेच कर कुछ कमाई कर लेंगे. अच्छा रुको, अभी किसी से कुछ मत कहना.’’

जब तक खिलावन बस्ती में लौटा, हाहाकार मच चुका था. वह सीधे अपने घर भागा तो देखा कि रामप्यारी ने नीबूमिर्च की मालाओं का ढेर बना रखा है.

खिलावन ने नीम की छोटीछोटी टहनियों से भरा झोला पटकते हुए कहा, ‘‘तुम यहां पर बैठी हो, पता भी है कि बाहर क्या चल रहा है?’’

‘‘तुम बिलकुल भी चिंता मत करो. अब फटाफट नीम की टहनियों को अलग कर नीबूमिर्च की माला के साथ बांधते जाओ और एक अपने दरवाजे पर टांग दो और बाकी दुकान पर रखो.

‘‘और हां, जलेबी का सामान भी दोगुना तैयार करना पड़ेगा कल से,’’ रामप्यारी इतमीनान से बोली.

‘‘तुम्हें तो कुछ पता नहीं है. बाहर टैलीविजन वाले, पुलिस वाले सब जमा हैं. पता नहीं, क्या चल रहा है उधर

और तुम्हें जलेबी बनाने की पड़ी है,’’ खिलावन घबरा कर बोला.

‘‘तुम चिंता मत करो, यहां भी चोटी कट गई है रधिया की. अरे वही, जो पिछली गली में रहती है.’’

‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? तुम्हारी चोटी भी कट सकती है? अब क्या करें?’’

‘‘चुप रहो. उस की चोटी तो मैं ने ही काटी है और वह कालू ओझ है न, उस से मिल कर भी आ गई हूं. मैं ने सारी बातें तय कर ली हैं,’’ रामप्यारी ने कहा.

‘‘तुम ने क्यों काटी? क्या तुझ पर भी भूत चढ़ गया था?’’ खिलावन बोला.

‘‘जब चोटी कटेगी, तभी तो ये लोग नीबूमिर्च की माला लेने दौड़ेंगे. तुझे तो पता ही है कि रधिया को तो वैसे भी जबतब चक्कर आते रहते हैं. अभी जब मैं थोड़ी देर पहले दुकान पर लहसुन लेने गई थी, तो उस का दरवाजा खुला देख अंदर चली गई. घर के अंदर वह बेहोश पड़ी थी. मैं ने भी आव देखा न ताव उस के बाल काट कर चलती बनी.’’

‘‘किसी ने देखा तो नहीं तुझे?’’

‘‘नहीं. अगर कोई देख भी लेता,

तो मैं ने सोच रखा था कि कह दूंगी

इस के बाल काट देती हूं, नहीं तो भूत परेशान करेगा. अच्छा हुआ किसी ने देखा ही नहीं.’’

‘‘तो फिर तू ओझ के पास क्यों गई थी?’’ खिलावन ने हैरानी से पूछा.

‘‘सैटिंग करने. अभी ओझ झाड़फूंक करेगा और उस को एक दोना जलेबी खिलाने को और एक किलो मजार पर चढ़ाने को भी बोलेगा. फिर देखना, कल से सब लोग जलेबी खाएंगे भी और चढ़ाएंगे भी. मैं अभी आई.’’

‘‘रुको, तुम कहीं मत जाओ. मैं अभी बाहर जा कर देख कर आता हूं,’’ कह कर खिलावन रधिया के घर की तरफ दौड़ पड़ा.

रधिया का इंटरव्यू कर के मीडिया व पुलिस दोनों वहां से जा चुके थे. अब केवल बस्ती के लोग जमा थे. तभी सामने से कालू ओझ रधिया के पति जगन के संग आता दिखा.

‘‘बाहर लाओ, उसे बाहर लाओ,’’ वह ओझ चीखा, ‘‘इसे बूढ़ी इमली के पेड़ का भूत चढ़ा है. वहां प्रीतम ने पेड़ से लटक कर खुदकुशी की थी. जाओ जल्दी जाओ, नीम ले कर आओ. हां, जलेबी भी ले कर आना.

‘‘प्रीतम जलेबी बहुत खाता था. जो जलेबी खाएगा, उस के सिर से भूत खुश हो कर उतर जाएगा. और जो भी नीम दरवाजे पर लगाएगा, वहां पर भूत फटकने न पाएगा,’’ ओझ ने सामने खड़ी रधिया पर मोरपंखी फेरते हुए कहा.

खिलावन ने पलक झपकते ही ओझ के आगे नीबूमिर्च, नीम और जलेबी सजा के रख दी.

कालू ने भी तेजी दिखाते हुए नीमनीबू दरवाजे पर टांग दिए. थोड़ी जलेबी रधिया को खिलाई और बाकी जलेबी भीड़ में प्रसाद के तौर पर बंटवा दी.

झाड़फूंक से रधिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई कि उस के सिर पर चढ़ा भूत उतर गया है. वह खुशी से ओझ के पैरों में गिर पड़ी. भीड़ जयजयकार कर उठी.

खिलावन ने सब की नजर बचा कर सौ रुपए का नोट कालू की मुट्ठी में दबा दिया. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

तभी प्रेमा के घर से चीखपुकार आने लगी. किसी ने फिर मीडिया को खबर कर दी थी. वे थोड़ी देर पहले ही अपना मोबाइल नंबर बांट गए थे. पुलिस से पहले मीडिया वाले पहुंच गए.

प्रेमा अपनी कटी चुटिया दिखा कर पूरे फिल्मी अंदाज में बखान कर रही थी. उस ने चीखपुकार मचा कर भूत को अपने पीछे से दबोचने और फिर अपने बेहोश होने की बात कह दी.

लोगों में डर बैठ गया. जितने मुंह उतनी बातें. मगर प्रेमा मन ही मन बहुत खुश थी. आज उस का टैलीविजन पर आने का सपना जो पूरा हो गया था.

दूसरे दिन दुलारी के चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ सब की भीड़ उस के घर के आगे जमा हो गई. उस की चुटिया भी कट चुकी थी. वह अपने टेड़ेमेढ़े ढंग से कटे बालों को दिखा

कर खूब चीखीचिल्लाई. फिर बाल सैट कराने के लिए ब्यूटीपार्लर चली गई.

मगर जब श्यामा को अपनी चोटी कटी हुई मिली, तो उस ने सारा दोष ननकू की बीवी पर मढ़ दिया और उसे चुड़ैल घोषित कर मारने दौड़ पड़ी.

वहां बड़ा बवाल मच गया. पूरी बस्ती 2 हिस्सों में बंट गई. आधे दुलारी की तरफ, आधे ननकू की बीवी की तरफ. ईंटपत्थर सब चल गए. पुलिस को बीचबचाव करना पड़ा. 2 सिपाहियों की ड्यूटी ‘चोटीकटवा भूत’ को पकड़ने के लिए लगा दी गई.

रामप्यारी अब खुश थी कि उस की जलेबी की दुकान चल निकली है. प्रेमा, श्यामा, दुलारी सभी आजकल अपने अंदर एक अलग ही खुशी महसूस कर रही थीं.

लेकिन खिलावन तनाव में था कि रामप्यारी अगर पकड़ी गई, तो क्या होगा? उस ने डरतेडरते उस से कहा, ‘‘तुम चुटिया काटने का काम बंद कर दो. मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं किसी ने तुम्हें पकड़ लिया, तो चुड़ैल जान कर जान से ही मार देंगे.’’

‘‘मगर, मैं ने तो रधिया के सिवा किसी के भी बाल नहीं काटे. मुझे अब दुकान और घर से फुरसत ही कहां मिलती है कि मैं लोगों के घरों में घूमती फिरूं,’’ रामप्यारी ने शान से कहा.

‘तो फिर बाकी लोगों के बाल किस ने काटे?’ खिलावन सोच में पड़ गया. Story In Hindi

Hindi Romantic Story: मर्यादा – स्वाति को फ्लर्टिंग करना क्यों अच्छा लगता था

Hindi Romantic Story: रात के 12 बज रहे थे, लेकिन स्वाति की आंखों में नींद नहीं थी. वह करवटें बदल रही थी. उस की बगल में लेटा पति वरुण गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. स्वाति दिन भर की थकान के बाद भी सो नहीं पा रही थी. आज का घटनाक्रम बारबार उस की आंखों में घूम रहा था.

आज ऐसा कुछ हुआ कि वह कांप कर रह गई. जिसे वह सिर्फ खेल समझती थी वह कितना गंभीर हो सकता है, उसे इस बात का भान नहीं था. वह मर्दों से हलकाफुलका मजाक और फ्लर्टिंग को सामान्य बात समझती थी. स्वाति अपनी फ्रैंड्स और रिश्तेदारों से कहती थी कि उस की मार्केट में इतनी जानपहचान है कि कोई भी सामान उसे स्पैशल डिस्काउंट पर मिलता है.

स्वाति फोन पर अपने मायके में भाभी से कहती कि आज मैं ने वैस्टर्न ड्रैस खरीदी. इतनी बढि़या और अच्छे डिजाइन में बहुत सस्ती मिल गई. मैं ने साड़ी बिलकुल नए कलर में खरीदी. 1000 की है पर मुझे सिर्फ 500 में मिल गई. डायमंड रिंग अपनी फ्रैंड से और्डर दे कर बनवाई.

ऐसी रिंग क्व2 लाख से कम नहीं, परंतु मुझे क्व11/2 लाख में मिल गई. भाभी की नजरों में स्वाति की छवि बहुत ही समझदार और पारखी महिला के रूप में थी. वह जब भी कोई सामान खरीद कर भेजने को कहती, स्वाति खुशीखुशी भिजवा देती. पूरे परिवार में उस के नाम का डंका बजता था.

स्वाति आकर्षक नैननक्श वाली पढ़ीलिखी महिला थी. बचपन से ही उसे खरीदारी का बेहद शौक था. लाखों रुपए की खरीदारी इतने कम दाम और चुटकियों में करती कि हर कोई हैरान रह जाता. स्वाति का मायका मिडल क्लास फैमिली से था. 15 साल पहले एक बड़े उद्योगपति परिवार में उस की शादी हुई. शादी भले ही करोड़पति घर में हो गई, लेकिन संस्कार वही मिडल क्लास फैमिली वाले ही थे. 1-1 पैसे की कीमत वह जानती थी. घर खर्च में पैसा बचाना और उस पैसे से स्वयं के लिए खरीदारी करने में उसे बहुत मजा आता. पति से भी पैसे मारना स्वाति को अच्छा लगता था.

अच्छे संस्कार, पढ़ीलिखी और समझदार स्वाति को एक बात बड़ी आसानी से समझ आ गई थी कि पुरुषों की कमजोरी क्या है. कैसे कम रेट पर खरीदारी करनी है. वह उस दुकान या शोरूम में ही खरीदारी करती जहां पुरुष मालिक होते. वह सेल्समैन से बात नहीं करती. सेल्समैन से वह कहती, ‘‘आप तो सामान दिखा दो, रेट मैं अपनेआप भैया से तय कर लूंगी.’’

और जब हिसाबकिताब की बारी आती, तो वह सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहती, ‘‘भैया सही रेट बताओ. आज की नहीं 10 सालों से आप की शौप पर आ रही हूं.’’

‘‘भाभी, आप को रेट गलत नहीं लगेगा, क्यों चिंता करती हैं?’’ सेठ कहता.

‘‘नहीं, इस बार ज्यादा लगा रहे हो. मुझे तो स्पैशल डिस्काउंट मिलता है, आप की शौप पर,’’ कहते हुए स्वाति काउंटर पर खड़े सेठ के हाथों को बातोंबातों में स्पर्श करती या फिर कहती, ‘‘भैया, आप तो मेरे देवर की तरह हो. देवरभाभी के बीच रुपएपैसे मत लाओ न.’’

अकसर दुकानदार स्वाति की मीठीमीठी बातों में आ कर उसे 10-20% तक स्पैशल डिस्काउंट दे देते थे. एक ज्वैलर से तो स्वाति ने जीजासाली का रिश्ता ही बना लिया था. ज्वैलरी आमतौर पर औरतों की कमजोरी होती है, स्वाति की भी कमजोरी थी. वह अकसर इस ज्वैलर के यहां पहुंच जाती. क्याक्या नई डिजाइनें आई हैं, देखने जाती तो कुछ न कुछ पसंद आ ही जाता. तब जीजासाली के बीच हंसीमजाक शुरू हो जाता.

स्वाति कहती, ‘‘साली आधी घरवाली होती है जीजाजी, इतने ही दूंगी.’’

ज्वैलर स्वाति का स्पर्शसुख पा कर निहाल हो जाता. उस के मन में स्पर्श को आगे बढ़ाने की प्लानिंग चलती रहती, पर स्वाति थी कि काबू में ही नहीं आती थी. सामान खरीदा और उड़न छू. उस दिन भतीजी की शादी के लिए सामान व ज्वैलरी खरीदने स्वाति ज्वैलर के यहां पहुंच गई. उसे भाभी ने बताया था कि क्याक्या खरीदना है.

स्वाति ने घर से निकलने से पहले ही ज्वैलर को फोन किया, ‘‘भतीजी की शादी के लिए ज्वैलरी खरीदने आ रही हूं. आप अच्छीअच्छी डिजाइनों का चयन करा कर रखना. मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं होगा.’’

‘‘आप आइए तो सही साली साहिबा. आप के लिए सब हाजिर है,’’ ज्वैलर ने कहा. ज्वैलरी की यह दुकान कोई बड़ा शोरूम नहीं था, लेकिन वह खुद अच्छा कारीगर था और और्डर पर ज्वैलरी तैयार करता था. शहर की एक कालोनी में उस की दुकान थी जहां कुछ खास लोगों को और्डर पर तैयार ज्वैलरी भी दिखा कर बेच देता था और और्डर देने वाले को कुछ दिन बाद सप्लाई दे देता. स्वाति की एक फ्रैंड रजनी ने उस ज्वैलर्स से उस की मुलाकात कराई थी. लेकिन रजनी कभी यह बात समझ नहीं पाई थी कि आखिर यह ज्वैलर स्वाति पर इतना मेहरबान क्यों रहता है. उसे नईनई डिजाइनें दिखाता है और अतिरिक्त डिस्काउंट भी देता है.

‘‘जीजाजी, कुछ और डिजाइनें दिखाओ. ये तो मैं ने पिछली बार देखी थीं,’’ स्वाति ने ज्वैलर की आंखों में झांकते हुए कहा.

स्वाति को ज्वैलर की आंखों में शरारत नजर आ रही थी. वह बारबार सहज होने की कोशिश कर रहा था. अपनी आदत के मुताबिक स्वाति ने बातोंबातों में ज्वैलर के हाथों पर इधरउधर स्पर्श किया. उस का यह स्पर्श ज्वैलर को बेचैन कर रहा था. उस ने भी स्वाति की हरकतें देख हौसला दिखाना शुरू कर दिया. वह भी बातोंबातों में स्वाति के हाथों पर स्पर्श करने लगा. यह स्पर्श स्वाति को कुछ बेचैन कर रहा था, लेकिन वह सहज रही. उसे कुछ देर की हरकतों से स्पैशल डिस्काउंट जो लेना था. स्वाति ने देखा कि आज दुकान पर सिर्फ एक लड़का ही हैल्पर के तौर पर काम कर रहा था बाकी स्टाफ न था. ज्वैलर ने उसे एक सूची थमाते हुए कहा कि यह सामान मार्केट से ले आओ. और जाने से पहले फ्रिज में रखे 2 कोल्ड ड्रिंक खोल कर दे जाओ.’’

‘‘आप और नई डिजाइनें दिखाइए न,’’ स्वाति ने कहा.

‘‘हां, अभी दिखाता हूं. कल ही आई हैं. आप के लिए ही रखी हुई हैं अलग से.’’

‘‘तो दिखाइए न,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘आप ऐसा करें अंदर वाले कैबिन में आ कर पसंद कर लें. अभी अंदर ही रखी हैं… लड़का भी जा चुका है तो…’’

स्वाति ने देखा लड़का सामान की सूची ले कर जा चुका था. अब दुकान पर सिर्फ ज्वैलर और स्वाति ही थे. स्वाति को एक पल के लिए डर लगा कि अकेली देख ज्वैलर कोई हरकत न कर दे. वह ऐसा कुछ चाहती भी नहीं थी. वह तो सिर्फ कुछ हलकीफुलकी अदाएं दिखा कर दुकानदारों से फायदा उठाती आई थी. आज भी ऐसा कुछ कर के ज्वैलर से स्पैशल डिस्काउंट लेने की फिराक में थी. उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी खरीदारी कर के निकल ले. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था कि क्या करे. वह अपनेआप को संभाल कर कैबिन में ज्वैलरी देखने घुस गई. उस ने अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, आज कुछ सुस्त लग रहे हो क्या बात है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘कोई तो बात है, मुझ से छिपाओगे क्या?’’

‘‘आप नैकलैस देखिए, साथसाथ बातें करते हैं,’’ ज्वैलर ने कहा. स्वाति गजब की सुंदर लग रही थी. वह बनठन कर निकली थी. ज्वैलर के मन में हलचल थी जो उसे बेचैन कर रही थी. उस ने सोचा कि हिम्मत दिखाई जा सकती है. अत: उस ने स्वाति के हाथ को स्पर्श किया तो वह सहम गई. लेकिन उस ने सोचा कि अगर थोड़ा छू लिया तो उस से क्या फर्क पड़ेगा. स्वाति के रुख को देख ज्वैलर का हौसला बढ़ गया. उस ने स्वाति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा. ज्वैलर की इस आकस्मिक हरकत से वह हड़बड़ा गई.

‘‘क्या कर रहे हो?’’ स्वाति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा. ज्वैलर ने अपनी हरकत जारी रखी. स्वाति घबरा गई. ज्वैलर की हिम्मत देख दंग रह गई वह. मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने की सोच उसे भारी पड़ती नजर आ रही थी. वह कैसे ज्वैलर के चंगुल से बचे, सोचने लगी. फिर उस ने हिम्मत दिखाई और ज्वैलर के गाल पर थप्पड़ों की बारिश कर दी. स्वाति क्रोध से कांप रही थी. उस का यह रूप देख ज्वैलर हड़बड़ा गया. इसी हड़बड़ी में वह जमीन पर गिर गया. स्वाति के लिए यही मौका था कैबिन से बाहर निकल भागने का. अत: वह फुरती दिखाते हुए तुरंत कैबिन से बाहर निकल अपनी कार में जा बैठी. फिर तुरंत कार स्टार्ट कर वहां से चल दी. उस के अंदर तूफान चल रहा था. उसे आत्मग्लानि हो रही थी. लंबे समय से स्वाति जिसे खेल समझती आ रही थी, वह कितना गंभीर हो सकता है, उस ने यह कभी सोचा भी नहीं था. Hindi Romantic Story

Hindi Family Story: सासूजी ने पाया शौर्य सम्मान

Hindi Family Story: हमें दहेज में सास मिली हैं. हम ने उन्हें मां की तरह स्वीकार कर लिया है, क्योंकि बचपन में हमारी एकलौती मां हमें दुनिया में अकेला छोड़ कर उड़नछू हो गई थीं.

हम जब दिल्ली से ट्रेन द्वारा लौटे और अभी कमर सीधी भी नहीं हो पाई थी कि मोबाइल फोन की घंटी बज उठी, ‘क्या आप झुमरूलालजी बोल रहे हैं?’

‘‘जी फरमाइए,’’ उधर से किसी औरत की मधुर आवाज आई थी, इसलिए हमारी कोमल भावनाएं जाग उठी थीं.

‘आप की सासूजी का नाम लक्ष्मी देवी है?’

‘‘जी हां.’’

‘बधाई हो.’

‘‘किस बात के लिए?’’

‘हमारी एयरवेज की ओर से उन्हें ‘शौर्य सम्मान’ दिया जा रहा है,’ उधर से आवाज आई.

मैं तो सकते में रह गया. तभी उधर से दोबारा आवाज आई, ‘झुमरूलालजी, एयरवेज की ओर से इस सम्मान में एक प्रमाणपत्र, एक शील्ड और एक लाख रुपए की राशि दी जाती है.’

‘‘एक लाख रुपए…’’ हम ने बात को फिर से दोहराने की कोशिश की.

‘क्या कम है?’ उधर से औरत की मधुर आवाज आई.

‘‘जी…जी…वह…’’ कहते हुए हमारे गले में आवाज फंस रही थी.

‘इसी के साथ एक दर्जन मल्टीनैशनल कंपनियों की ओर से भी उन्हें कई चीजें दी जाएंगी.’

‘‘जी… अच्छा.’’

‘जैसे टैलीविजन, सोफा सैट, वाशिंग मशीन, मोबाइल फोन, फ्रिज, प्रोजैक्टर वगैरह.’

हम ने सुना तो लगा कि हमें चक्कर आ जाएगा. हमारी सासूजी इस उम्र में भी इतने अवार्ड जीत रही हैं, लेकिन यह ‘शौर्य सम्मान’ उन्हें ही क्यों दिया जा रहा है, हम समझ नहीं पाए थे.

हम ने विचार किया कि अगर कुछ बात पूछूं, तो कहीं नाराज हो कर फोन न काट दें, इस से बेहतर तो यही है कि गुपचुप स्वीकार कर लो.

उधर से मैडमजी की आवाज आई, ‘आप को आनेजाने का किराया मिलेगा. आप को फाइवस्टार होटल में ठहराया जाएगा. मंत्रीजी यह सम्मान देंगे.’

हमारे दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं. हम ने तारीख नोट कर ली. अपना ईमेल एड्रैस दे दिया और वह फोन कट गया.

हम सोच रहे थे कि यह बात घर में बताएं या नहीं?

थोड़ी ही देर बाद हमारे ईमेल एड्रैस पर ईमेल भी आ गया. हम ने उस का प्रिंट आउट निकाला और अपनी धर्मपत्नी को पास बुला कर प्यार से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें कपड़े धोने में दिक्कत आती है?’’

‘‘हां, आती तो है, तो क्या तुम कपडे़ धोओगे?’’ उस ने झन्ना कर हमें जवाब दिया. तबीयत तो हुई कि बात बंद कर दूं, लेकिन मां तो उसी की थीं.

हम ने झूठी हंसी हंस कर बात को उड़ा दिया और पूछा, ‘‘अगर हमारे घर में डबल डोर फ्रिज हो तो…’’

‘‘शेख चिल्ली की तरह बातें बंद करो, मुझे घर का काम करने दो.’’

‘‘कभी तो थोड़ी फुरसत निकाल कर हमारे पास बैठ जाया करो.’’

‘‘अब बकवास छोड़ो भी. मुझे काम करना है. आज मम्मी पापड़ बना रही हैं,’’ उस ने इतराते हुए हमें बताया.

‘‘मम्मी से काम मत लिया करो.’’

‘‘तो क्या मजदूर लगा लूं? आज यह तुम्हें हो क्या गया है, जो ऐसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो?’’ पत्नी ने तुनक कर कहा.

वह जाने को उठी, तो हम ने उस का हाथ थाम लिया और कहा, ‘‘एक पल ठहरो तो…यह पढ़ तो लो…’’

‘‘यह क्या है?’’ पत्नी ने पूछा.

‘‘देखो तो सही,’’ हम ने कहा, तो उस ने कागज उठा कर पढ़ना शुरू किया.

पत्नी को कुछ समझ ही नहीं आया. उस ने किसी बेवकूफ की तरह हमारे चेहरे पर नजर गड़ा दी और कहने लगी, ‘‘कोई मम्मी को ‘शौर्य सम्मान’ और एक लाख रुपए क्यों देगा? तुम मुझे पागल मत बनाओ.’’

‘‘यह मजाक नहीं सच है. हमें वहां परसों पहुंचना है.’’

‘‘हां…’’ कहतेकहते वह हमारे कंधे का सहारा लेतेलेते बेहोश होतेहोते बची.

हम ने उस के माथे को प्यार से सहलाया, तो वह थोड़ी देर में ठीक हुई. तब हम दोनों ने तय किया कि सासूजी को यह खबर देंगे.

सासूजी पापड़ का आटा पत्थर से ऐसे कूट रही थीं, मानो पापड़ का आटा न हो कर किसी पर गुस्सा निकाल रही हों.

हमारी पत्नीजी ने अपनी मम्मी को पीछे से गले लगाते हुए कहा, ‘‘मम्मीजी, हमें दिल्ली चलना है.’’

‘‘चल हट. मजाक मत कर. पापड़ के आटे को कूटने दे,’’ सासूजी ने आंखें तरेरते हुए कहा.

‘‘नहीं मम्मी, कसम से… आप को एक भव्य समारोह में सम्मानित किया जाना है.’’

‘‘अच्छा… अपनी बकवास बंद कर और आटा कूटने दे,’’ कह कर वे दोबारा अपने काम में जुट गईं.

यह देख कर हम ने मोरचा संभाला और कहा, ‘‘मम्मीजी, सच में हमें

परसों दिल्ली पहुंचना है. वहां एक भव्य कार्यक्रम है.’’

‘‘कब चलना है?’’ सासूजी ने पूछा.

‘‘आज शाम को ही निकलना है,’’ हम ने कहा, तो वे खुशी से चहक

उठीं, ‘‘दामादजी, मुझे हवाईजहाज की कलाबाजी पसंद नहीं है.’’

‘‘हम तो ट्रेन से जा रहे हैं मम्मीजी.’’

‘‘तो ठीक है,’’ सासूजी ने कहा. हम ने उन्हें सम्मान राशि और शौर्य सम्मान की कोई जानकारी नहीं दी थी.

तत्काल में टिकट बनवाया और रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

अगली दोपहर को हम लोग दिल्ली में थे. स्टेशन पर ही हमें लेने के लिए कार आई हुई थी. हम शान से उस में बैठे, होटल के कमरे क्या थे, मानो महल की सुविधा थी.

पत्नीजी तो मानो सपनों की दुनिया में आ गई थीं. सासूजी तो हैरानी में डूबी हुई थीं. नाश्ता, भोजन मुफ्त में था, जो चाहो खाओ. घंटी बजाओ नौकर हाजिर. वाह रे सुख, स्वर्ग इसी को कहते होंगे.

हमें अगले दिन का कार्यक्रम समझा दिया गया था. कार्यक्रम की जगह पर एक घंटे पहले पहुंचना था. एक कार अगले दिन आ गई. हमें ले कर कार्यक्रम की जगह पर ले गई. वहां पर बहुत ज्यादा भीड़ थी.

हमारी पत्नी सासूजी को ले कर मंच तक गई. सम्मान राशि का चैक, ट्रौफी, शाल, सम्मानपत्र मिला. खूब फोटो उतरे. सासू मां हैरान थीं कि आखिर यह ‘शौर्य सम्मान’ उन्हें क्यों दिया गया है?

कार्यक्रम के बाद पत्रकारों ने तमाम सवाल किए, सब का जवाब हम ने यह कह कर दिया, ‘‘सासू मां के गले में दर्द है, जिस के चलते वे बोल नहीं पाएंगी.’’

खूब फोटो उतरवा कर, तमाम कंपनियों के ढेर से उपहार के साथ हम घर लौटे. पूरा घर विदेशी चीजों से भर गया था.

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि हमारी सासूजी को यह ‘शौर्य सम्मान’ क्यों मिला?

हम अब सारी बात बताते हैं, क्योंकि लेने के पहले बता देते तो शायद वह राशि और उपहार नहीं मिलते.

हम ने आप को बताया था कि सासूजी हमें दहेज में मिली थीं.

बात कुछ ऐसी हो गई थी कि पिछले दिनों सासूजी सीढि़यों से गिर गई थीं और उन के सिर में चोट आ गई थी, जिस के चलते उन्हें आंखों से कम और कानों से बिलकुल सुनाई देना बंद हो गया था.

हमारी पत्नी बहुत घबराई. हम से कहा कि इन्हें बड़े डाक्टर को दिखाओ.

हम एक बूढ़े डाक्टर के पास ले गए. उस ने कहा कि दिल्ली ले जाओ. हम ने हवाईजहाज का टिकट लिया और दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

सासूजी थोड़ी घबराई हुई बैठी थीं, लेकिन जब आसमान में हवाईजहाज उड़ा तो उन्हें बहुत अच्छा लगा.

हम सोच रहे थे कि जल्दी से पहुंच कर इलाज करवा लेंगे, तभी घोषणा हुई कि सभी मुसाफिर सावधान रहें, हवाईजहाज का इंजन अचानक बंद हो गया है. हम इसे ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं.

सब लोग जोरजोर से चीखने लगे.  सासूजी भी खुशी में लोगों के चीखने को देख कर हंसते हुए चीख रही थीं. तब ही हवाईजहाज ने एक गोता खाया. सासूजी खुशी में खड़ी हो गईं. उन्हें अंगरेजी झूले का मजा आ रहा था. वे खुशी के मारे ताली बजा रही थीं. कभी आगे, कभी पीछे, जबकि हम सब की हवा टाइट थी.

एयर होस्टेस ने जो घोषणा की थी, वह सासूजी सुन ही नहीं पाई थीं. वे तो खुश हो कर किलकारी मार रही थीं. तब ही घोषणा हुई कि हवाईजहाज का दूसरा इंजन भी बंद हो गया है. हम 6 हजार फुट ऊपर हैं. कृपया सावधान रहें, बैल्ट बांध लें. हम उसे ठीक करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

हवाईजहाज तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. हम जोरों से रो रहे थे. सासूजी हंस रही थीं.

हम जानते थे कि पलभर बाद हम सब मरे हुए होंगे, लेकिन सासूजी के चेहरे पर जरा भी डर नहीं था.

एयर होस्टेस उन्हें देख कर हैरान हो रही थी. तभी घोषणा हुई कि हवाईजहाज इमर्जैंसी लैंडिंग दिल्ली में कर रहा है. एक इंजन थोड़ा काम करने लगा है.

कुछ ही देर में हवाईजहाज जमीन पर तेजी से चलने लगा और थोड़ी देर में खड़ा हो गया. सब खुशी के मारे चीख रहे थे. हमारी सासूजी ने पूछा, ‘‘ये लोग चीख क्यों रहे हैं?’’

‘‘मतलब? क्या आप को सुनाई देने लगा है?’’

‘‘सुनाई क्या दिखाई भी साफ दे रहा है कि सब खुश हैं,’’ सासूजी ने कहा.

हम खुशी के मारे कबड्डी खेलने का मन बनाने लगे थे. एयर होस्टेस ने सासू मां को गले लगाया और ताली बजा कर स्वागत कर के विदाई दी.

इस के बाद का किस्सा आप को मालम ही है. दिल्ली के डाक्टर ने चैक कर के कहा कि खुशी से चीखनेचिल्लाने के चलते जिस नस में खून का बहना बंद हो गया था, वह खुल गई है. आप की सास अब पूरी तरह से ठीक हैं.’’

हम घर लौट आए. अब आप ही बताएं कि मैं क्या पत्रकारों को बताता कि उस समय मेरी सासू मां बहरी थीं, कम दिखाई देने की बीमारी से पीडि़त थीं. अगर वे ठीक होतीं तो खिड़की तोड़ कर कूद जातीं, लेकिन जो होता है, अच्छा होता है. हम आज आदरणीय सासूजी पर गर्व कर के खुश हैं. Hindi Family Story

Hindi Kahani: एक और बलात्कारी – क्या सुमेर सिंह से बच पाई रूपा

Hindi Kahani: रूपा पगडंडी के रास्ते से हो कर अपने घर की ओर लौट रही थी. उस के सिर पर घास का एक बड़ा गट्ठर भी था. उस के पैरों की पायल की ‘छनछन’ दूर खड़े बिरजू के कानों में गूंजी, तो वह पेड़ की छाया छोड़ उस पगडंडी को देखने लगा.

रूपा को पास आता देख बिरजू के दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उस का दिल उस से मिलने को मचलने लगा.

जब रूपा उस के पास आई, तो वह चट्टान की तरह उस के रास्ते में आ कर खड़ा हो गया.

‘‘बिरजू, हट मेरे रास्ते से. गाय को चारा देना है,’’ रूपा ने बिरजू को रास्ते से हटाते हुए कहा.

‘‘गाय को तो तू रोज चारा डालती है, पर मुझे तो तू घास तक नहीं डालती. तेरे बापू किसी ऐरेगैरे से शादी कर देंगे, इस से अच्छा है कि तू मुझ से शादी कर ले. रानी बना कर रखूंगा तुझे. तू सारा दिन काम करती रहती है, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गांव में और भी कई लड़कियां हैं, तू उन से अपनी शादी की बात क्यों नहीं करता?’’

‘‘तू इतना भी नहीं समझती, मैं तो तुझ से प्यार करता हूं. फिर और किसी से अपनी शादी की बात क्यों करूं?’’

‘‘ये प्यारव्यार की बातें छोड़ो और मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना घास का गट्ठर तुम्हारे ऊपर फेंक दूंगी,’’ इतना सुनते ही बिरजू एक तरफ हो लिया और रूपा अपने रास्ते बढ़ चली.

शाम को जब सुमेर सिंह की हवेली से रामदीन अपने घर लौट रहा था, तो वह अपने होश में नहीं था. गांव वालों ने रूपा को बताया कि उस का बापू नहर के पास शराब के नशे में चूर पड़ा है.

‘‘इस ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. मैं अभी इसे ठीक करती हूं,’’ रूपा की मां बड़बड़ाते हुए गई और थोड़ी देर में रामदीन को घर ला कर टूटीफूटी चारपाई पर पटक दिया और पास में ही चटाई बिछा कर सो गई.

सुबह होते ही रूपा की मां रामदीन पर भड़क उठी, ‘‘रोज शराब के नशे में चूर रहते हो. सारा दिन सुमेर सिंह की मजदूरी करते हो और शाम होते ही शराब में डूब जाते हो. आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? रूपा भी सयानी होती जा रही है, उस की भी कोई चिंता है कि नहीं?’’

रामदीन चुपचाप उस की बातें सुनता रहा, फिर मुंह फेर कर लेट गया. रामदीन कई महीनों से सुमेर सिंह के पास मजदूरी का काम करता था. खेतों की रखवाली करना और बागबगीचों में पानी देना उस का रोज का काम था.

दरअसल, कुछ महीने पहले रामदीन का छोटा बेटा निमोनिया का शिकार हो गया था. पूरा शरीर पीला पड़ चुका था. गरीबी और तंगहाली के चलते वह उस का सही इलाज नहीं करा पा रहा था. एक दिन उस के छोटे बेटे को दौरा पड़ा, तो रामदीन फौरन उसे अस्पताल ले गया.

डाक्टर ने उस से कहा कि बच्चे के शरीर में खून व पानी की कमी हो गई है. इस का तुरंत इलाज करना होगा. इस में 10 हजार रुपए तक का खर्चा आ सकता है.

किसी तरह उसे अस्पताल में भरती करा कर रामदीन पैसे जुटाने में लग गया. पासपड़ोस से मदद मांगी, पर किसी ने उस की मदद नहीं की.

आखिरकार वह सुमेर सिंह के पास पहुंचा और उस से मदद मांगी, ‘‘हुजूर, मेरा छोटा बेटा बहुत बीमार है. उसे निमोनिया हो गया था. मुझे अभी 10 हजार रुपए की जरूरत है. मैं मजदूरी कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा. बस, आप मुझे अभी रुपए दे दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें अभी रुपए दिए दे देता हूं, लेकिन अगर समय पर रुपए नहीं लौटा सके, तो मजदूरी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. बोलो, मंजूर है?’’

‘‘हां हुजूर, मुझे सब मंजूर है,’’ अपने बच्चे की जान की खातिर उस ने सबकुछ कबूल कर लिया.

पहले तो रामदीन कभीकभार ही अपनी थकावट दूर करने के लिए शराब पीता था, लेकिन सुमेर सिंह उसे रोज शराब के अड्डे पर ले जाता था और उसे मुफ्त में शराब पिलाता था. लेकिन अब तो शराब पीना एक आदत सी बन गई थी. शराब तो उसे मुफ्त में मिल जाती थी, लेकिन उस की मेहनत के पैसे सुमेर सिंह हजम कर जाता था. इस से उस के घर में गरीबी और तंगहाली और भी बढ़ती गई.

रामदीन शराब के नशे में यह भी भूल जाता था कि उस के ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं. दिन पर दिन उस पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था. इस तरह कई महीने बीत गए. जब रामदीन ज्यादा नशे में होता, तो रूपा ही सुमेर सिंह का काम निबटा देती.

एक सुबह रामदीन सुमेर सिंह के पास पहुंचा, तो सुमेर सिंह ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कहा, ‘‘रामदीन, आज तुम हमारे पास बैठो. हमें तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हुजूर, आज कुछ खास काम है क्या?’’ रामदीन कहते हुए उस के पास बैठ गए.

‘‘देखो रामदीन, आज मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझ से जो कर्जा लिया है, वह तुम मुझे कब तक लौटा रहे हो? दिन पर दिन ब्याज भी तो बढ़ता जा रहा है. कुलमिला कर अब तक 15 हजार रुपए से भी ज्यादा हो गए हैं.’’

‘‘मेरी माली हालत तो बदतर है. आप की ही गुलामी करता हूं हुजूर, आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’

सुमेर सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘देख रामदीन, तू जितनी मेरी मजदूरी करता है, उस से कहीं ज्यादा शराब पी जाता है. फिर बीचबीच में तुझे राशनपानी देता ही रहता हूं. इस तरह तो तुम जिंदगीभर मेरा कर्जा उतार नहीं पाओगे, इसलिए मैं ने फैसला किया है कि अब अपनी जोरू को भी काम पर भेजना शुरू कर दे.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू यहां आ कर करेगी क्या?’’ रामदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक नौकरानी की जरूरत है. सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी. घर के कपड़ेलत्ते साफ करेगी. उस के महीने के हजार रुपए दूंगा. उस में से 5 सौ रुपए काट कर हर महीने तेरा कर्जा वसूल करूंगा.

‘‘अगर तुम यह भी न कर सके, तो तुम मुझे जानते ही हो कि मैं जोरू और जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लूंगा.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू पेट से है और उस की कमर में भी हमेशा दर्द रहता है.’’

‘‘बच्चे पैदा करना नहीं भूलते, पर मेरे पैसे देना जरूर भूल जाते हो. ठीक है, जोरू न सही, तू अपनी बड़ी बेटी रूपा को ही भेज देना.

‘‘रूपा सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी और दोपहर को हमारे खेतों से जानवरों के लिए चारा लाएगी. घर जा कर उसे सारे काम समझा देना. फिर दोबारा तुझे ऐसा मौका नहीं दूंगा.’’

अब रामदीन को ऐसा लगने लगा था, जैसे वह उस के भंवर में धंसता चला जा रहा है. सुमेर सिंह की शर्त न मानने के अलावा उस के पास कोई चारा भी नहीं बचा था.

शाम को रामदीन अपने घर लौटा, तो उस ने सुमेर सिंह की सारी बातें अपने बीवीबच्चों को सुनाईं.

यह सुन कर बीवी भड़क उठी, ‘‘रूपा सुमेर सिंह की हवेली पर बिलकुल नहीं जाएगी. आप तो जानते ही हैं. वह पहले भी कई औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर चुका है. मैं खुद सुमेर सिंह की हवेली पर जाऊंगी.’’

‘‘नहीं मां, तुम ऐसी हालत में कहीं नहीं जाओगी. जिंदगीभर की गुलामी से अच्छा है कि कुछ महीने उस की गुलामी कर के सारे कर्ज उतार दूं,’’ रूपा ने अपनी बेचैनी दिखाई.

दूसरे दिन से ही रूपा ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया. वह सुबहशाम उस की हवेली पर झाड़ूपोंछा करती और दोपहर में जानवरों के लिए चारा लाने चली जाती.

अब सुमेर सिंह की तिरछी निगाहें हमेशा रूपा पर ही होती थीं. उस की मदहोश कर देनी वाली जवानी सुमेर सिंह के सोए हुए शैतान को जगा रही थी. रूपा के सामने तो उस की अपनी बीवी उसे फीकी लगने लगी थी.

सुमेर सिंह की हवेली पर सारा दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन शाम को उस की निगाहें रूपा पर ही टिकी होती थीं.

रूपा के जिस्म में गजब की फुरती थी. शाम को जल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर अपने घर जाने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन सुमेर सिंह देर शाम तक कुछ और छोटेमोटे कामों में उसे हमेशा उलझाए रखता था. एक दोपहर जब रूपा पगडंडी के रास्ते अपने गांव की ओर बढ़ रही थी, तभी उस के सामने बिरजू आ धमका. उसे देखते ही रूपा ने अपना मुंह फेर लिया.

बिरजू उस से कहने लगा, ‘‘मैं जब भी तेरे सामने आता हूं, तू अपना मुंह क्यों फेर लेती है?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? तुम्हें सीने से लगा लूं? मैं तुम जैसे आवारागर्दों के मुंह नहीं लगना चाहती,’’ रूपा ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘देख रूपा, तू भले ही मुझ से नफरत कर ले, लेकिन मैं तो तुझ को प्यार करता ही रहूंगा. आजकल तो मैं ने सुना है, तू ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया है. शायद तुझे सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में पता नहीं. वह बिलकुल अजगर की तरह है. वह कब शिकारी को अपने चंगुल में फंसा कर निगल जाए, यह किसी को पता नहीं.

‘‘मुझे तो अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं वह तुम्हें नौकरानी से रखैल न बना ले, इसलिए अभी भी कहता हूं, तू मुझ से शादी कर ले.’’ यह सुन कर रूपा का मन हुआ कि वह बिरजू को 2-4 झापड़ जड़ दे, पर फिर लगा कि कहीं न कहीं इस की बातों में सचाई भी हो सकती है.

रूपा पहले भी कई लोगों से सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में सुन चुकी थी. इस के बावजूद वह सुमेर सिंह की गुलामी के अलावा कर भी क्या सकती थी. इधर सुमेर सिंह रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए बेचैन हो रहा था, लेकिन रूपा उस के झांसे में आसानी से आने वाली नहीं थी.

सुमेर सिंह के लिए रूपा कोई बड़ी मछली नहीं थी, जिस के लिए उसे जाल बुनना पड़े.

एक दिन सुमेर सिंह ने रूपा को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘देखो रूपा, तुम कई दिनों से मेरे यहां काम कर रही हो, लेकिन महीने के 5 सौ रुपए से मेरा कर्जा इतनी जल्दी उतरने वाला नहीं है, जितना तुम सोच रही हो. इस में तो कई साल लग सकते हैं.

‘‘मेरे पास एक सुझाव है. तुम अगर चाहो, तो कुछ ही दिनों में मेरा सारा कर्जा उतार सकती हो. तेरी उम्र अभी पढ़नेलिखने और कुछ करने की है, मेरी गुलामी करने की नहीं,’’ सुमेर सिंह के शब्दों में जैसे एक मीठा जहर था.

‘‘मैं आप की बात समझी नहीं?’’ रूपा ने सवालिया नजरों से उसे देखा.

सुमेर सिंह की निगाहें रूपा के जिस्म को भेदने लगीं. फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम्हें आज ही एक सौदा करना होगा. अगर तुम्हें मेरा सौदा मंजूर होगा, तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा माफ कर दूंगा और इतना ही नहीं, तेरी शादी तक का खर्चा मैं ही दूंगा.’’

रूपा बोली, ‘‘मुझे क्या सौदा करना होगा?’’

‘‘बस, तू कुछ दिनों तक अपनी जवानी का रसपान मुझे करा दे. अगर तुम ने मेरी इच्छा पूरी की, तो मैं भी अपना वादा जरूर निभाऊंगा,’’ सुमेर सिंह के तीखे शब्दों ने जैसे रूपा के जिस्म में आग लगा दी थी.

‘‘आप को मेरे साथ ऐसी गंदी बातें करते हुए शर्म नहीं आई,’’ रूपा गुस्से में आते हुए बोली.

‘‘शर्म की बातें छोड़ और मेरा कहा मान ले. तू क्या समझती है, तेरा बापू तेरी शादी धूमधाम से कर पाएगा? कतई नहीं, क्योंकि तेरी शादी के लिए वह मुझ से ही उधार लेगा.

‘‘इस बार तो मैं तेरे पूरे परिवार को गुलाम बनाऊंगा. अगर ब्याह के बाद तू मदद के लिए दोबारा मेरे पास आई भी तो मैं तुझे रखैल तक नहीं बनाऊंगा. अच्छी तरह सोच ले. मैं तुझे इस बारे में सोचने के लिए कुछ दिन की मुहलत भी देता हूं. अगर इस के बावजूद भी तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है.’’

सुमेर सिंह की कही गई हर बात रूपा के जिस्म में कांटों की तरह चुभती चली गई. सुमेर सिंह की नीयत का आभास तो उसे पहले से ही था, लेकिन वह इतना बदमाश भी हो सकता है, यह उसे बिलकुल नहीं पता था.

रूपा को अब बिरजू की बातें याद आने लगीं. अब उस के मन में बिरजू के लिए कोई शिकायत नहीं थी.

रूपा ने यह बात किसी को बताना ठीक नहीं समझा. रात को तो वह बिलकुल सो नहीं पाई. सारी रात अपने वजूद के बारे में ही वह सोचती रही.

रूपा को सुमेर सिंह की बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बात की ज्यादा चिंता होने लगी थी कि अगर अपना तन उसे सौंप भी दिया, तो क्या वह भी अपना वादा पूरा करेगा? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अपना सबकुछ गंवा कर भी बदनामी के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा.

इधर सुमेर सिंह भी रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो बस रूपा की हां का इंतजार था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था. लेकिन रूपा ने उसे अब तक कोई संकेत नहीं दिया था. सुमेर सिंह ने मन ही मन कुछ और सोच लिया था.

यह सोच कर रूपा की भी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसे खुद को सुमेर सिंह से बचा पाना मुश्किल लग रहा था. एक दोपहर जब रूपा सुमेर सिंह के खेतों में जानवरों के लिए चारा लाने गई, तो सब से पहले उस की निगाहें बिरजू को तलाशने लगीं, पर बिरजू का कोई अतापता नहीं था. फिर वह अपने काम में लग गई. तभी किसी ने उस के मुंह पर पीछे से हाथ रख दिया.

रूपा को लगा शायद बिरजू होगा, लेकिन जब वह पीछे की ओर मुड़ी, तो दंग रह गई. वह कोई और नहीं, बल्कि सुमेर सिंह था. उस की आंखों में वासना की भूख नजर आ रही थी.

तभी सुमेर सिंह ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘हुं, आज तुझे मुझ से कोई बचाने वाला नहीं है. अब तेरा इंतजार भी करना बेकार है.’’

‘‘मैं तो बस आज रात आप के पास आने ही वाली थी. अभी आप मुझे छोड़ दीजिए, वरना मैं शोर मचाऊंगी,’’ रूपा ने उस के चंगुल से छूटने की नाकाम कोशिश की.

पर सुमेर सिंह के हौसले बुलंद थे. उस ने रूपा की एक न सुनी और घास की झाड़ी में उसे पूरी तरह से दबोच लिया.

रूपा ने उस से छूटने की भरपूर कोशिश की, पर रूपा की नाजुक कलाइयां उस के सामने कुछ खास कमाल न कर सकीं.

अब सुमेर सिंह का भारीभरकम बदन रूपा के जिस्म पर लोट रहा था, फिर धीरेधीरे उस ने रूपा के कपड़े फाड़ने शुरू किए.

जब रूपा ने शोर मचाने की कोशिश की, तो उस ने उस का मुंह उसी के दुपट्टे से बांध दिया, ताकि वह शोर भी न मचा सके.

अब तो रूपा पूरी तरह से सुमेर सिंह के शिकंजे में थी. वह आदमखोर की तरह उस पर झपट पड़ा. इस से पहले वह रूपा को अपनी हवस का शिकार बना पाता, तभी किसी ने उस के सिर पर किसी मजबूत डंडे से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह ढेर हो गया.

रूपा ने जब गौर से देखा, तो वह कोई और नहीं, बल्कि बिरजू था. तभी वह उठ खड़ी हुई और बिरजू से लिपट गई. उस की आंखों में एक जीत नजर आ रही थी.

बिरजू ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘‘तुम्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इसी तरह तेरी हिफाजत जिंदगीभर करता रहूंगा.’’ रूपा ने बिरजू का हाथ थाम लिया और अपने गांव की ओर चल दी. Hindi Kahani

Hindi Romantic Story: कार पूल – शेयरिंग कैब में भिड़े दो दिल

Hindi Romantic Story: अर्पित अहमदाबाद एक संभ्रांत परिवार का लड़का था. लड़का क्या, नवयुवक था. सरकारी नौकरी करते हुए 6 माह हो चुके थे. उस के पास स्वयं की कार थी, लेकिन वह पूल वाली कैब से औफिस जाना पसंद करता था. शहर में कैब की सर्विस बहुत अच्छी थी.

अर्पित खुशमिजाज इनसान था. कैब में सहयात्रियों और कैब चालक से बात करना उस को अच्छा लगता था.

उस दिन भी वह औफिस से घर वापसी आते हुए रोज की तरह शेयरिंग वाली कैब से आ रहा था. रास्ते में श्रेया नाम की एक और सवारी उस कैब में सवार होनी थी.

अर्पित की आदत थी कि शेयरिंग कैब में वह पीछे की सीट पर जिस तरफ बैठा होता था, उस तरफ का गेट लौक कर देता था. उस दिन भी ऐसा ही था. श्रेया को लेने जब कैब पहुंची, तो उस ने अर्पित वाली तरफ के गेट को खोल कर बैठने की कोशिश की, पर गेट लौक होने के कारण उस का गेट खोलने में असफल रही श्रेया झल्ला कर कार की दूसरी तरफ से गेट खोल कर बैठ गई. युद्ध की स्थिति तुरंत ही बन गई और सारे रास्ते अर्पित और श्रेया लड़ते हुए गए.

घर आने पर अर्पित उतर गया. श्रेया के लिए ये वाकिआ बरदाश्त के बाहर था. असल में श्रेया को अपने लड़की होने का बहुत गुरूर था. आज तक उस ने लड़को को अपने आसपास चक्कर काटते ही देखा था. कोई लड़का इतनी बुरी तरह से उस से पहली बार उलझा था. श्रेया के तनबदन में आग लगी हुई थी.

अर्पित का घर श्रेया ने उस दिन देख ही लिया था. नामपते की जानकारी से श्रेया ने अर्पित के बारे में सबकुछ पता कर लिया और तीसरे ही दिन अर्पित के घर से 50 मीटर दूर आ कर लगभग उसी समय के अंदाजे के साथ कैब बुकिंग का प्रयास किया. जब अर्पित सुबह औफिस के लिए निकलता था.

श्रेया का भाग्य कहिए या अर्पित का दुर्भाग्य, श्रेया को अर्पित वाली कैब में ही बुकिंग मिल गई, एक कुटिल मुसकान कैब वाले एप पर ‘‘अर्पित के साथ पूल्ड‘‘ देख कर श्रेया के चेहरे पर तैर गई.

जिस तरफ श्रेया खड़ी थी, उसी तरफ कैब आती होने के कारण श्रेया को पिक करती हुई कैब अर्पित के घर के सामने रुकी. अर्पित बेखयाली में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर सवार हो गया, तभी उसे पीछे से खनकती हुई आवाज आई, ‘‘कैसे हो अर्पितजी ?”

अर्पित ने चैंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा, तो श्रेया सकपका गई, क्योंकि 3 दिन पुराना वाकिआ उसे याद आ गया लेकिन आज श्रेया के बात की शुरुआत करने का अंदाज ही अलग था, सो धीरेधीरे श्रेया और अर्पित की बातचीत दोस्ती में बदल गई.

दोनों का गंतव्य अभी बहुत दूर था. अर्पित कैब को रुकवा कर पीछे वाली सीट पर श्रेया के बगल में जा कर बैठ गया. एकदूसरे के फोन नंबर लिएदिए गए. अर्पित अपना औफिस आने पर उतर गया और श्रेया ने गरमजोशी से हाथ मिला कर उस को विदा किया.

अर्पित के मानो पंख लग गए. औफिस में अर्पित सारे दिन चहकाचहका रहा. दोपहर में श्रेया का फोन आया, तो अर्पित का तनबदन झूम उठा. श्रेया ने उस को लंच साथ करने का प्रस्ताव रखा, जो उस ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

दोपहर तकरीबन 1 बजे दोनों अर्पित के औफिस से थोड़ी दूर एक रेस्तरां में मिले और साथ लंच लिया.

अब तो यह लगभग रोज का ही किस्सा बन गया. औफिस के बाद शाम को भी दोनों मिलने लगे और साथसाथ घूमतेफिरते दोनों के बीच में जैसे प्यार के अंकुर फूट के खिलने लगे.

एक दिन श्रेया ने अंकुर को दोपहर में फोन कर के बताया कि शाम तक वह घर में अकेली है और अगर अर्पित उस के घर आ जाए, तो दोनों ‘अच्छा समय‘ साथ बिता सकते हैं. अर्पित के सिर पर प्यार का भूत पूरी तरह से चढ़ा हुआ था. अपने बौस को तबीयत खराब का बहाना बना कर अर्पित श्रेया के घर के लिए निकल पड़ा.

आने वाले किसी भी तूफान से बेखबर, मस्ती और वासना में चूर अर्पित श्रेया के घर पहुंचा और डोरबैल बजाई. एक मादक अंगड़ाई लेते हुए श्रेया ने अपने घर का दरवाजा खोला.

श्रेया के गीले और खुले बाल और नाइट गाउन में ढंका बदन देख कर अर्पित की खुमारी और परवान चढ़ गई. श्रेया ने अर्पित को अंदर ले कर गेट बंद कर दिया.

कुछ ही देर में दोनों एकदूसरे के आगोश में आ गए और एक प्यार भरे रास्ते पर निकल पड़े.

अर्पित ने श्रेया के बदन से कपड़े जुदा करने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. उस ने श्रेया के पूरे बदन पर मादकता से फोरप्ले करते हुए समूचे जिस्म को प्यार से सहलाया.

धीरेधीरे अब अर्पित श्रेया के बदन से कपड़े जुदा करने लगा. एकाएक ही श्रेया जोरजोर से चिल्लाने लगी. अर्पित को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह चिल्ला क्यों रही है. कुछ ही पलों में अड़ोसपड़ोस के बहुत से लोग जमा हो गए और श्रेया के घर के अंदर आ गए.

श्रेया ने चुपचाप मेन गेट पहले ही खोल दिया था. श्रेया ने सब को बताया कि अर्पित जबरदस्ती घर में घुस कर उस का बलात्कार करने की कोशिश कर रहा था. उन मे से एक आदमी ने पुलिस को फोन कर दिया. ये सब इतनी जल्दी हुआ कि अर्पित को सोचनेसमझने का मौका नहीं मिला. थोड़ी ही देर बाद अर्पित सलाखों के पीछे था.

श्रेया ने उस दिन की छोटी सी लड़ाई का विकराल बदला ले डाला था.

जेल में 48 घंटे बीतने के साथ ही अर्पित को नौकरी से सस्पैंड किया जा चुका था. अर्पित को अपना पूरा भविष्य अंधकरमय नजर आने लगा और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

कोर्ट में कई बार पेश किए जाने के उपरांत आज जज ने उस के लिए सजा मुकर्रर करने की तारीख रखी थी. अंतिम सुनवाई के उपरांत जज साहिबा जैसे ही अपना फैसला सुनाने को हुईं, अचानक ही इंस्पैक्टर प्रकाश ने कोर्ट मे प्रवेश करते हुए जज साहिबा से एक सुबूत पेश करने की इजाजत मांगी. मामला संगीन था और जज साहिबा बड़ी सजा सुनाने के मूड में थीं, इसलिए उन्होंने इंस्पैक्टर प्रकाश को अनुमति दे दी.

इंस्पैक्टर प्रकाश के साथ अर्पित का सहकर्मी विकास था और विकास के मोबाइल में अर्पित और श्रेया के बीच हुए प्रेमालाप की और श्रेया के मादक आहें भरने और अर्पित की वासना को और भड़काने के लिए प्रेरित करने की समूची औडियो रिकौर्डिंग मौजूद थी. दरअसल, जिस समय दोनों का प्रेमालाप शुरू होने वाला था, उसी समय विकास ने अर्पित की तबीयत पूछने के लिए उस को फोन मिलाया था और अर्पित ने गलती से फोन काटने के बजाय रिसीव कर के बेड के एक तरफ रख दिया था. विकास ने सारी काल रिकौर्ड कर ली थी.

श्रेया और अर्पित के बीच हुआ सारा वार्तालाप और श्रेया की वासना भरी आहें व अर्पित को बारबार उकसाने का प्रमाण उस सारी रिकौर्डिंग से सर्वविदित हो गया.

अदालत के निर्णय लिए जाने वाले दिन पूर्व में श्रेया द्वारा रूपजाल में फंसाए हुए अनिल ने भी अदालत में श्रेया के खिलाफ बयान दिया, जिस से श्रेया का ऐयाश होना और पुख्ता हो गया.

अदालत ने तमाम सुबूतों को मद्देनजर रखते हुए यह संज्ञान लिया कि श्रेया एक ऐयाश लड़की थी और भोलेभाले नौजवानों को अपने रूपजाल में फंसा कर उन के पैसों पर मौजमस्ती और ऐश करती थी. एक बेगुनाह नौजवान की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. श्रेया को चरित्रहीनता और झूठे आरोप लगा कर युवक को बरबाद करने का प्रयास करने का आरोपी करार देते हुए जज ने जम कर फटकार लगाई. जज ने श्रेया को भविष्य में कुछ भी गलत करने पर सख्त सजा की चेतावनी देते हुए अर्पित को बाइज्जत बरी करने के आदेश दिए.

अर्पित ने मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हुए भविष्य में एक सादगी भरी जिंदगी जीने का निर्णय लिया. Hindi Romantic Story

Family Story In Hindi: फुलमतिया – जब सौतन से हुआ सामना

Family Story In Hindi: शाम के 5 बज रहे थे. मेरी सास के श्राद्ध में आए सभी मेहमान खाना खा चुके थे. ननदें भी एकएक कर के विदा हो चुकी थीं.

सासू मां की मौत के बाद के इन 13 दिनों तक तो मु झे किसी की तरफ देखने का मौका ही नहीं मिला, पर आज सारा घर सासू मां के बगैर बहुत खाली लग रहा था.

मेरे पति शायद अपने दफ्तर के कुछ कागजात ले कर बैठे थे और बेटा अगले महीने होने वाले इम्तिहान की तैयारी कर रहा था. रसोई में थोड़ा काम बाकी था, जो बसंती कर रही थी.

मैं सासू मां के कमरे में आ कर थोड़ा सुस्ताने के लिए उन के पलंग पर बैठी ही थी कि फुलमतिया की आवाज सुनाई दी, ‘‘मेमसाहब, मैं जाऊं?’’

मैं ने पलट कर देखा, तो वह कमरे की चौखट के सहारे खड़ी थी. थकीथकी सी फुलमतिया आज कुछ ज्यादा ही बूढ़ी लग रही थी.

मेरे हिसाब से फुलमतिया की उम्र 40-45 से ज्यादा नहीं है, जबकि इस उम्र की मेरी सहेलियां तो पार्टी में यों फुदकती हैं कि उर्मिला मातोंडकर और माधुरी दीक्षित भी शरमा जाएं, पर यहां इस बेचारी को देखो.

वह फिर से बोली, ‘‘मेमसाहब, और कोई काम बाकी तो नहीं रह गया है? अच्छी तरह सोच लो.’’

‘‘नहीं फुलमतिया, अब जितना काम बाकी है, वह बसंती कर लेगी. वैसे भी तुम ने पिछले 10-12 दिनों से मेहमानों की देखभाल में बहुत मेहनत की है, अब घर जा कर आराम करो.

‘‘तुम ने खाना तो खा लिया था न ठीक से? मु  झे तो कुछ देखने का मौका ही नहीं मिला. एक तरफ श्राद्ध, दूसरी तरफ मेहमानों का आनाजाना. ऊपर से भंडार संभालना. लोग सिर्फ एकलौती बहू के सुख को देखते हैं, उस के   झं  झट और जिम्मेदारी को नहीं.’’

फुलमतिया जाने के बजाय मेरी सासू मां के पलंग से टिक कर वहीं जमीन पर बैठ गई, जहां मैं उसे पिछले 16 साल से बैठती देखती आ रही हूं.

उस दिन भी वह यहीं बैठी थी, जब मैं नईनवेली दुलहन के रूप में पहली बार इस कमरे में दाखिल हुई थी.

मेरे ससुराल वालों के सगेसंबंधी, सासननदों की सहेलियां, पड़ोसनें सब मु  झे देखने आ रही थीं और मेरी नजर घूमघूम कर फुलमतिया की खूबसूरती और जवानी पर ठहर रही थी.

आज भी फुलमतिया के कपड़ों में कोई खास बदलाव नहीं आया है. वही घाघरा, चोली. बस, सिर के अधपके बाल और चेहरे की  झुर्रियां उस के गुजरे वक्त की दास्तां सुनाती हैं.

मैं ने सासू मां के मुंह से सुना था कि फुलमतिया बिहार के किसी गरीब गांव से ब्याह करवा कर शहर आई थी. वह अपने मांबाप की 10वीं औलाद थी, इसलिए 11-12 साल की उम्र में जिस अधेड़ उम्र के आदमी के साथ ब्याही गई, वह शहर में मजदूर था. उस के गांव के पुश्तैनी मकान में बेटेबहू पहले से मौजूद थे, जो उस से उम्र में बड़े भी थे. उसे पूरे घर की नौकरानी बना दी गई. जब उस से न सहा गया, तो एक दिन जिद कर के अपने पति के साथ शहर चली आई. लेकिन गरीब की बेटी तो आसमान से गिरी और खजूर पर अटकी.

शहर की गंदी बस्ती के छोटे से कमरे में एक सौतन अपने 3 बच्चों के साथ पहले से मौजूद थी. शुरू हुआ लड़ाई  झगड़े का नया सिलसिला.

आखिरकार तंग आ कर एक दिन मजबूर पति ने पहले वाली औरत को उस के 2 बच्चों के साथ घर से बाहर निकाल दिया.

छोटी बच्ची फुलमतिया की चहेती बन गई थी, इसलिए फुलमतिया ने उसे अपने पास रख लिया.

कुछ दिन ठीक से गुजरे. फुलमतिया को भी 2 बच्चे हुए. पर गरीब को चैन कहां? इधर फुलमतिया पर मस्त जवानी आ रही थी और उधर उस का पति बूढ़ा और बीमार रहने लगा था.

आसपास के मनचले उस के इर्दगिर्द ही मंडराने लगे. पर पेट कहां किसी की सुनता है? आखिर में जब पति की बीमारी का दर्द और बच्चों की भूख न देखी गई, तो एक दिन वह मिल मालिक के कदमों पर जा पड़ी.

मिल मालिक ने भरोसा दिया, कुछ पैसे दिए और काम भी दिया, पर जितना दिया उस से कई गुना ज्यादा लूटा.

तब उसे सारे रिश्ते बिना मतलब के लगने लगे. जो चंद रुपए मिलते थे, वे तो पति की दवादारू और बच्चों की भूख मिटाने में ही खर्च हो जाते.

एक तो पेट की भूख, ऊपर से बारबार पेट गिरवाना. जब फुलमतिया मालिक के लिए बो  झ बन गई, तो छंटनी हो गई. फिर वही भूख, वही तड़प.

ऐसे में एक दिन जिस का हाथ थाम कर वह शहर आई थी, वही चल बसा. आगे की जिंदगी मुश्किलों भरी लग रही थी कि इलाके के दादा रघुराज ने उस के बच्चों के सिर पर हाथ रखा और उस की मांग में सिंदूर भर दिया.

उस बस्ती में ऐसी 4 और औरतें थीं, जिन की मांग में रघुराज का सिंदूर भरा था. वह इन सभी औरतों को कमाने का रास्ता देता और सिंदूर के प्रति जिम्मेदारी निभाने में महीने में 50 रुपए भी देता. बदले में जब जिस के पास मन होता, रात गुजारता.

अब तक फुलमतिया भी बस्ती के रिवाज की आदी हो चुकी थी. वह सम  झ गई थी कि भुखमरी की इस दुनिया में सारे रिश्ते बिना मतलब के हैं. जो पेट की आग बुझा दे, वही रिश्ते का है.

इस 50 रुपए वाले पति ने उसे मंदिर के पास थोड़ी जगह दिलवा दी थी, जहां वह मंदिर आने वालों को फूल बेचती.

मेरी सासू मां की उस से वहीं मुलाकात हुई थी, जो उन दिनों रोज मंदिर जाती थीं. फिर जब पैर के जोड़ों के दर्द से परेशान मेरी सासू मां ने बाहर आनाजाना बंद कर दिया, तो घर में ही पूजापाठ करना शुरू कर दिया.

अब फुलमतिया घर आ कर फूल दे कर जाने लगी. कुछ दिनों में उन दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई.

धीरेधीरे फुलमतिया न सिर्फ फूल देने आती, बल्कि मेरी सासू मां के पैरों की मालिश भी करती. वह घर के छोटेमोटे काम भी निबटाती और खाली समय में सासू मां के साथ बैठी बतियाती. हर काम में चुस्त फुलमतिया पूरे घर की फुलमतिया बन गई.

हमारे घर से भी उस का बिना मतलब का रिश्ता जुड़ गया, क्योंकि यहां से भी उसे खाना, कपड़े और जरूरत के मुताबिक पैसे भी मिलने लगे थे.

इस बीच रघुराज से उसे 2 बच्चे भी हुए. दूसरी तरफ उस की सौतन की छोटी बेटी, जिस को उस ने अपनी बेटी की तरह पाला था, किसी पराए मर्द के साथ भाग खड़ी हुई और उस का अपना बेटा मुंबई चला गया.

एक बार फुलमतिया 3 दिन तक नहीं आई. जब वह आई, तो पता चला कि उस के पति का किसी ने कत्ल कर दिया है. न तो उस के कपड़ों में कोई अंतर आया, न उस के बरताव में. सिर्फ सिंदूर की जगह खाली थी, लेकिन 6 महीने बाद एक बार फिर वहां सिंदूर चढ़ गया.

उस दिन मेरी सासू मां ने गुस्से में कहा था, ‘यह क्या फूलो, तू ने फिर ब्याह रचा लिया. कम से कम एक साल तक तो इंतजार किया होता.’

मेरी सासू मां की डांट को उस ने हंसी में उड़ाते हुए जवाब दिया था, ‘मरे के साथ थोड़े ही मरा जाता.’’

उस के इस जवाब के सामने सासू मां भी चुप हो गईं.

बाद में सासू मां के मुंह से ही सुना था कि फुलमतिया का यह पति अच्छा है. इस की 2 ही पत्नियां हैं. रिकशा चला कर वह जितना कमाता है, अपने दारू के खर्च के लिए रख कर बाकी दोनों पत्नियों में बांट देता है.

यह सुन कर हम सब हंस दिए थे. मेरे पास कभी इतना समय ही नहीं बचता था कि उस की कहानी सुनूं. हां, जब कभी उसे दारोगा के यहां हाजिरी देनी होती, तो सासू मां से कहने की हिम्मत नहीं होती, तब वह मु  झ से कहती.

एक दिन मैं ने उस से पूछा था कि वह दारोगा के पास क्यों जाती है? उस ने कहा था, ‘न जाऊं तो दारोगा मेरी दुकान किसी और को दे देगा.’

यह सुन कर मैं चुप रह गई थी. मेरे पास उसे इस जंजाल से निकालने का कोई उपाय नहीं था, तो उसे उस के बिना मतलब के रिश्तों के साथ छोड़ देना ही बेहतर था.

अचानक फुलमतिया की हिचकियों से मेरा ध्यान टूटा. इधर मैं अपने खयालों में गुम थी और उधर वह न जाने कब से रो रही थी.

पिछले कई दिनों से लोग आ रहे थे, रो रहे थे, पर इतने पवित्र आंसू कम ही बहे होंगे. कौन कहता है कि उस का चरित्र साफसुथरा नहीं है? अगर वह चरित्रहीन है, तो वह बाप क्या है, जो सिर्फ बच्चे पैदा करना जानता है, उन्हें पालता नहीं?

वह आदमी क्या है, जो बेटेबहू, पत्नी के रहते एक बच्ची को ब्याह कर शहर ले आता है? वह गुंडा क्या है, जो सिर्फ 50 रुपए के बदले औरत के तन से खेलता है? वह दारोगा क्या है, जो समाज की हिफाजत करने की तनख्वाह लेता है और औरत के जिस्म को भोगता है?

इन सवालों के जवाब ढूंढ़ते हुए मु  झे कुछ और थकान महसूस होने लगी.

मैं ने फुलमतिया से कहा, ‘‘रो मत, एक दिन तो सभी को जाना है.

‘‘बसंती, जरा फुलमतिया के बच्चों के लिए खाना पैक कर देना.’’

‘‘थोड़ा ज्यादा देना मेमसाहब, वह मेरी सौतन की बेटी है न, जो भाग गई थी, परसों अपने 3 बच्चों के साथ मर्द को छोड़ कर आ गई है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं, कह रही थी कि उस का मर्द दूसरी जोरू ले आया है और कहता है कि वह अब ढीली पड़ गई है, उस में कुछ बचा नहीं है.’’

मैं ने एक लंबी सांस छोड़ कर कहा, ‘‘ठीक है, रसोई में जाओ और बसंती से कह कर जितना खाना लेना चाहो, ले जाओ. एक टिफिन कैरियर लेती जाओ, पर कल वापस जरूर साथ लाना. कल सफाई का काम भी ज्यादा होगा, थोड़ा बसंती का हाथ बंटा देना.’’

‘‘कल सुबह तो मैं नहीं आ पाऊंगी मेमसाहब.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘दारोगाजी ने हाजिरी देने के लिए बुलाया है.’’

‘‘पर अब तो तुम बूढ़ी हो गई हो फुलमतिया.’’

‘‘मु  झे नहीं, दूसरी बेटी को ले कर जाना है.’’

‘‘वह तो अभी बहुत छोटी है.’’

‘‘मेमसाहब, हमारे यहां क्या छोटी और क्या बड़ी. माहवारी शुरू होते ही सलवार पहना दी. बस, वह सलवारसूट में बड़ी दिखने लगी और क्या…’’

‘‘पर तुम तो कहती थीं कि वह घर का काम संभालती है और तुम उसे बाहर ज्यादा निकलने भी नहीं देती हो?’’

‘‘पिछली पूर्णिमा को फूल ज्यादा बिकेंगे, सोच कर कुछ ज्यादा फूल ले लिए थे. एक पेटी उस के हाथ में थमा दी थी. सिपाही ने देख लिया, तो उस ने जा कर दारोगा से शिकायत कर दी.

‘‘आज सुबह दारोगा दुकान पर आया था और बोला, ‘सुना है कि तेरी बेटी कली से फूल बन गई है. उसे कब तक छिपा कर रखेगी, कल शाम को थाने में ले आना.’’’

मेरा जी चाहा कि उठ कर सीधी थाने जाऊं और उस दारोगा की सरकारी पिस्तौल से उसी पर गोली चलाऊं. सरकारी पिस्तौल का कभी तो सही इस्तेमाल होना चाहिए. फिर मैं बोली, ‘‘ठीक है फुलमतिया, कल तुम्हारी बेटी नहीं, मैं जाऊंगी तुम्हारे साथ.’’

वह घबरा कर बोली, ‘‘नहीं मेमसाहब, साहब बहुत नाराज होंगे. कहीं मेरा आना ही न रोक दें इस घर में. गरीब की बेटी है, कब तक वह खैर मनाएगी.’’

‘‘पर ऐसा कब तक चलता रहेगा? ऐसे तो एक और नई फुलमतिया तैयार हो जाएगी.’’

‘‘हमारे लिए आप कब तक और किसकिस से लड़ेंगी मेमसाहब. एक दारोगा जाएगा, दूसरा आएगा. दूसरा जाएगा, तो तीसरा आएगा. अगर इस बीच कभी कोई भला दारोगा आया भी तो उधर गुंडेमवाली की फौज खड़ी हो जाएगी.

‘‘आप इस महल में बैठ कर कुछ नहीं सम  झ सकतीं, कभी चल कर हमारी बस्ती में आइए, आप को हजारों फुलमतिया मिल जाएंगी.’’

मैं हैरान हो कर उस की बातें सुनती रही. वह उठ कर लड़खड़ाते हुए कदमों से जा रही थी. अचानक मैं ने उसे पुकारा, ‘‘फुलमतिया, अपनी बेटी को नहला कर कल सुबह यहां ले आना. मेरा घर बहुत बड़ा है. मु  झे फुरसत नहीं है. बसंती पूरा घर संभालते हुए थक जाती है.

‘‘वह बसंती का हाथ बंटाएगी और मैं उसे पढ़नालिखना सिखा कर कहीं काम पर लगा दूंगी.’’

इतना सुन कर फुलमतिया मेरे कदमों में लोट गई और उन्हें आंसुओं से भिगो दिया. मैं ने उसे गले लगा लिया. आंसू मेरी आंखों में भी थे, खुशी के आंसू. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: गृह प्रवेश – जगन्नाथ सिंह का दबदबा

Hindi Family Story: बरामदे में चारपाइयां पड़ी थीं. दक्षिण दिशा में एक तख्त था, जिस पर बिस्तर बिछा हुआ था. बरामदे से उत्तर दिशा में गोशाला थी. वहीं एक बड़ा सा आंगन था, जिसे एक आदमी बहुत देर से पानी की मोटर चला कर धो रहा था. उस के बदन पर एक बनियान थी और वह लुंगी लपेटे हुए था, जिसे घुटनों तक ला कर अपनी कमर में बांधा था.

वे थे कुशघर पंचायत के मुखिया जगन्नाथ सिंह. उन का समाज में काफी दबदबा था. उस पंचायत के लोग उन की इज्जत करते थे या डरते थे. शायद डर कर ही उन्हें लोग ज्यादा इज्जत देते थे.

‘‘मुखियाजी प्रणाम…’’ भीखरा उन के पास आते हुए बोला.

मुखियाजी ने पूछा, ‘‘भीखरा, आज इधर कैसे आना हुआ? सुना है, आजकल तू ब्लौक के चक्कर लगा रहा है… बीडीओ साहब बता रहे थे.’’

‘‘जी हां मालिक, उन्होंने ही मुझे आप के पास भेजा है,’’ भीखरा ने हाथ जोड़े हुए ही कहा.

‘‘किसलिए?’’

‘‘मालिक, सरकार गरीबों के लिए मकान बनाने के लिए पैसा दे रही है.’’

‘‘हां, तो तू इसीलिए बीडीओ साहब के पास गया था.’’

‘‘हां मालिक. अगर आप की मेहरबानी हो जाए, तो हमारा भी एक मकान बन जाए.

‘‘बरसात में तो झोंपड़ी टपकने लगती है और नाली का गंदा पानी ?ोंपड़ी में घुस जाता है.’’

‘‘पर, तू मेरे पास क्यों आया है?’’

‘‘बीडीओ साहब ने कहा है कि दरख्वास्त पर मुखियाजी से दस्तखत करा के लाओ, इसलिए मैं आप के पास आया हूं.’’

‘‘ठीक है, इस दरख्वास्त को मेरे बिस्तर पर रख दे. पहले तू गाड़ी धुलवाने में मेरी मदद कर,’’ मुखियाजी ने कहा. भीखरा ने वैसा ही किया. जब गाड़ी धुल गई, तब मुखियाजी ने कहा, ‘‘गाय का गोबर हटा दे.’’

भीखरा ने गोबर को हटा कर उस जगह को साफ कर दिया. हाथ धो कर वह उन के पास अपने कागज लेने गया.

मुखियाजी ने भीखरा से कहा, ‘‘देखो भीखरा, मैं इस पर दस्तखत तो कर दूंगा, लेकिन तुम्हें     4 हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे.

‘‘वह पैसा मैं नहीं लूंगा, बल्कि बीडीओ साहब को दे दूंगा. सब का अपनाअपना हिस्सा होता है. सरकारी मुलाजिम बिना हिस्सा लिए तुम्हारा काम जल्दी नहीं करेंगे.’’

‘‘मालिक, भला मैं इतना पैसा कहां से लाऊंगा?’’ भीखरा ने कहा.

‘‘यह तो तुम्हारी समस्या है, तुम ही जानो,’’ मुखियाजी ने कहा.

‘‘तब मालिक, आप ही दे दीजिए. मैं आप को धीरेधीरे चुका दूंगा.’’

‘‘देखो भीखरा, मेरे पास इस समय पैसा नहीं है. तुम देख ही रहे हो कि यह गाड़ी मैं ने साढ़े 6 लाख रुपए में खरीदी है और घर का खर्च… इसलिए मैं लाचार हूं. मेरे पास होता, तो मैं तुम्हें जरूर दे देता. तुम कहीं और से उपाय कर लो.’’

‘‘मैं कहां जाऊं मालिक. मैं तो आप के भरोसे यहां आया था. मेरे बापदादा ने इस घर की बहुत सेवा की है मालिक.’’

‘‘तुम कह तो ठीक ही रहे हो, पर इस समय चाह कर भी मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता.’’

मुखियाजी मंजे हुए खिलाड़ी थे. वे जानते थे कि अगले चुनाव में भीखरा की जाति के वोट बड़ी अहमियत रखेंगे और हर चुनाव में वे इन्हीं लोगों के वोट से जीतते आए हैं.

वे भीखरा को नाराज भी नहीं करना चाहते थे, साथ ही अपना कमीशन भी वसूल कर लेना चाहते थे.

इस समय भीखरा पर पक्का मकान बनाने का नशा सवार था, इसलिए वह कहीं न कहीं से उधार जरूर लेगा. बीडीओ साहब के हर आवंटन पर उन का 15 सौ रुपए कमीशन तय था और वे इसे जाने नहीं देना चाहते थे.

‘‘देखो भीखरा, अभी तो तुम कहीं और से कर्ज ले लो और अपना मकान बनवा लो.

‘‘सोचो, पक्का मकान बन जाएगा, तब तुम लोगों को कितना आराम हो जाएगा. बरसात में तुम्हारी ?ोंपड़ी में नाली का पानी नहीं घुसेगा और न झोपड़ी तेज बारिश में टपकेगी.’’

‘‘लेकिन मालिक, मैं रोजरोज मजदूरी करने वाला आदमी इतने पैसे कहां से लाऊंगा?’’ भीखरा ने कहा.

‘‘एक उपाय है. तुम बालमुकुंद पांडे के पास जाओ और मेरा नाम ले कर कहना कि मैं ने तुम्हें भेजा है. उन के पास पैसा है. वे जरूर तुम्हें दे देंगे,’’ मुखियाजी ने उसे समझाते हुए कहा.

भीखरा वहां से उठ कर बालमुकुंद पांडे के पास गया. वे बरामदे में कुरसी पर बैठ कर अपने पोते को खिला रहे थे. भीखरा की झोॆपड़ी और उन का मकान आमनेसामने था. बीच में गली पड़ती थी.

बालमुकुंद पांडे ने उस से बहुत बार कहा था कि वह अपनी जमीन उन्हें बेच दे. उस में वे अपनी गायों को बांधने के लिए गोशाला बनाना चाहते थे, लेकिन भीखरा ने मना कर दिया था.

वैसे, बालमुकुंद पांडे उस से जमीन खरीदना चाहते थे. भीखरा की झोंपड़ी से पांडेजी के मकान की खूबसूरती मिट रही थी. वे रोज सुबहसुबह एक दलित का मुंह भी नहीं देखना चाहते थे.

भीखरा ने जैसे ही उन के बरामदे के नीचे से ‘पंडितजी प्रणाम’ कहा, तभी उन का माथा ठनका कि भीखरा आज इधर कैसे? जरूर कोई बात है.

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘आओ भीखरा, आज तुम इधर कैसे आ गए?’’

‘‘पंडितजी, मुखियाजी ने भेजा है.’’

‘‘क्यों? कोई बात है क्या?’’

‘‘हां पंडितजी,’’ भीखरा ने उन्हें सारी बातें सचसच बता दीं.

बालमुकुंद पांडे बोले, ‘‘भीखरा,  यह मौका हाथ से जाने मत दो,’’ और मन ही मन वे सोचने लगे, ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.’

फिर उन्होंने पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

भीखरा ने कहा, ‘‘पंडितजी, मुझे   4 हजार रुपए उधार चाहिए. मैं धीरेधीरे कर के चुका दूंगा.’’

‘‘मैं कहां कह रहा हूं कि तुम नहीं दोगे? मैं तुम्हें पैसे जरूर दूंगा, जिस से तुम्हारे पास पक्का मकान हो जाए.’’

‘‘पंडितजी, आप की बड़ी मेहरबानी होगी. मेरे बच्चे जिंदगीभर आप का एहसान नहीं भूलेंगे.’’

‘‘लेकिन, देखो भीखरा…’’ पंडितजी ने पैतरा बदलते हुए कहा, ‘‘भाई, यह पैसे के लेनदेन का मामला है. इस के लिए तो तुम्हें कुछ गिरवी रखना पड़ेगा और इस पैसे का ब्याज मैं महीने का

8 रुपए प्रति सैकड़ा के हिसाब से लूंगा.’’

‘‘ब्याज तो मालिक हम हर महीने चुकाते जाएंगे, पर गिरवी रखने लायक मेरे पास है ही क्या?’’ भीखरा ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तुम्हारे पास जमीन है न, उसी को गिरवी रख दो. सरकार तुम्हें जो पैसा देगी, उसी में से तुम कुछ बचत कर के मु?ो लौटा देना और अपने कागज ले जाना,’’ पंडितजी ने  कहा.

भीखरा तैयार हो गया. उस ने एक सादा स्टांप पेपर पर अपने अंगूठे के निशान लगा दिए. पंडितजी ने गांव के ही 2 लोगों के गवाह के रूप में दस्तखत करा कर भीखरा को पैसे दे दिए.

भीखरा ने वह पैसे मुखियाजी को दे दिए. मुखियाजी ने उसे भरोसा दिलाया कि वे उस का काम बहुत जल्दी कराने की कोशिश करेंगे, पर उस का काम होतेहोते 2 साल लग गए.

आज उस के घर में गृह प्रवेश था. पंडितजी ने कहा, ‘‘अब तुम दोनों एकसाथ घर में प्रवेश करो. पहले मंगली जाएगी और उस के पीछेपीछे तुम.’’

उसी समय न जाने कहां से बालमुकुंद पांडे वहां पहुंच गए और जोर से बोले, ‘‘भीखरा, तुम गृह प्रवेश तब करोगे, जब मेरा पैसा चुका दोगे.’’

भीखरा ने कहा, ‘‘पंडितजी, हम आप का सारा पैसा दे देंगे. अभी तो हमें गृह प्रवेश कर लेने दीजिए.’’

‘‘नहीं, आज मैं किसी की नहीं सुनूंगा. जब से तुम ने पैसा लिया है, तब से एक रुपया भी नहीं दिया है. इस समय मूल पर ब्याज लगा कर 19,369 रुपए होते हैं. ये रुपए मु?ो दे दो और खुशीखुशी गृह प्रवेश करो.’’

‘‘पंडितजी, इतना पैसा कैसे हो गया?’’ भीखरा की पत्नी ने पूछा.

‘‘तुम्हारी सम?ा में नहीं आएगा. ऐ रामलोचन, तुम आओ… मैं तुम्हें सम?ाता हूं,’’ पंडितजी ने रामलोचन को आवाज दे कर कहा.

पंडितजी ने उसे समझाया, तो वह भी मान गया कि पंडितजी सही कह रहे हैं.

भीखरा ने बालमुकुंद पांडे से प्रार्थना की, पर वे नहीं माने. थोड़ी देर में मुखियाजी भी वहां पहुंच गए.

भीखरा ने उन से भी कहा, पर उन्होंने साफ कह दिया कि वे इस में उस की कोई मदद नहीं कर सकते. या तो पंडितजी के रुपए लौटा दो या जमीन छोड़ दो.

‘‘मालिक, लेकिन हम अपने बच्चों को ले कर कहां जाएंगे? अब तो मेरी झोंपड़ी भी नहीं रही,’’ भीखरा ने मुखियाजी से गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘वह तुम सोचो. जिस दिन पंडितजी से तुम ने रुपए उधार लिए थे, उस दिन नहीं सोचा था?’’ मुखियाजी ने कहा.

उस समय वहां पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सभी भीखरा को ही कुसूरवार ठहरा रहे थे.

भीखरा ने हाथ जोड़ कर पंडितजी से कहा, ‘‘पंडितजी, इस समय हम आप का पैसा देने में लाचार हैं. हम यह गांव छोड़ कर जा रहे हैं. अब यह मकान आप का है और आप ही इस में गृह प्रवेश कीजिए.’’

थोड़ी देर बाद अपनी आंखों में आंसू लिए दोनों पतिपत्नी अपने बच्चों के साथ गांव छोड़ कर चले गए. इधर पंडितजी अपनी पत्नी के साथ उस घर में हंसीखुशी गृह प्रवेश कर रहे थे. Hindi Family Story

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