Family Story In Hindi: देर आए दुरुस्त आए

Family Story In Hindi: रात का 1 बज रहा था. स्नेहा अभी तक घर नहीं लौटी थी. सविता घर के अंदर बाहर बेचैनी से घूम रही थी. उन के पति विनय अपने स्टडीरूम में कुछ काम कर रहे थे, पर ध्यान सविता की बेचैनी पर ही था. विनय एक बड़ी कंपनी में सीए थे. वे उठ कर बाहर आए. सविता के चिंतित चेहरे पर नजर डाली. कहा, ‘‘तुम सो जाओ, मैं जाग रहा हूं, मैं देख लूंगा.’’

‘‘कहां नींद आती है ऐसे. समझासमझा कर थक गई हूं. स्नेहा के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. क्या करूं?’’

तभी कार रुकने की आवाज सुनाई दी. स्नेहा कार से निकली. ड्राइविंग सीट पर जो लड़का बैठा था, उसे झुक कर कुछ कहा, खिलखिलाई और अंदर आ गई. सविता और विनय को देखते ही बोली, ‘‘ओह, मौम, डैड, आप लोग फिर जाग रहे हैं?’’

‘‘तुम्हारे जैसी बेटी हो तो माता पिता ऐसे ही जागते हैं, स्नेहा. तुम्हें हमारी हैल्थ की भी परवाह नहीं है.’’

‘‘तो क्या मैं लाइफ ऐंजौय करना छोड़ दूं? मौम, आप लोग जमाने के साथ क्यों नहीं चलते? अब शाम को 5 बजे घर आने का जमाना नहीं है.’’

‘‘जानती हूं, जमाना रात के 1 बजे घर आने का भी नहीं है.’’

‘‘मुझे तो लगता है पेरैंट्स को चिंता करने का शौक होता है. अब गुडनाइट, आप का लैक्चर तो रोज चलता है,’’ कहते हुए स्नेहा गुनगुनाती हुई अपने बैडरूम की तरफ बढ़ गई.

सविता और विनय ने एकदूसरे को चिंतित और उदास नजरों से देखा. विनय ने कहा, ‘‘चलो, बहुत रात हो गई. मैं भी काम बंद कर के आता हूं, सोते हैं.’’

सविता की आंखों में नींद नहीं थी. आंसू भी बहने लगे थे, क्या करे, इकलौती लाडली बेटी को कैसे समझाए, हर तरह से समझा कर देख लिया था. सविता ठाणे की खुद एक मशहूर वकील थीं.

उन के ससुर सुरेश रिटायर्ड सरकारी अधिकारी थे. घर में 4 लोग थे. स्नेहा को घर में हमेशा लाड़प्यार ही मिला था. अच्छी बातें ही सिखाई गई थीं पर समय के साथ स्नेहा का लाइफस्टाइल चिंताजनक होता गया था. रिश्तों की उसे कोई कद्र नहीं थी. बस लाइफ ऐंजौय करते हुए तेजी से आगे बढ़ते जाना ही उस की आदत थी. कई लड़कों से उस के संबंध रह चुके थे. एक से ब्रेकअप होता, तो दूसरे से अफेयर शुरू हो जाता. उस से नहीं बनती तो तीसरे से दोस्ती हो जाती. खूब पार्टियों में जाना, डांसमस्ती करना, सैक्स में भी पीछे न हटने वाली स्नेहा को जबजब सविता समझाने बैठीं दोनों में जम कर बहस हुई. सुरेश स्नेहा पर जान छिड़कते थे. उन्होंने ही लंदन बिजनैस स्कूल औफ कौमर्स से उसे शिक्षा दिलवाई. अब वह एक लौ फर्म में ऐनालिस्ट थी. सविता और विनय के अच्छे पारिवारिक मित्र अभय और नीता भी सीए थे और उन का इकलौता बेटा राहुल एक वकील.

एक जैसा व्यवसाय, शौक और स्वभाव ने दोनों परिवारों में बहुत अच्छे संबंध स्थापित कर दिए थे. राहुल बहुत ही अच्छा इनसान था. वह मन ही मन स्नेहा को बहुत प्यार करता था पर स्नेहा को राहुल की याद तभी आती थी जब उसे कोई काम होता था या उसे कोई परेशानी खड़ी हो जाती थी. स्नेहा के एक फोन पर सब काम छोड़ कर राहुल उस के पास होता था.

सविता और विनय की दिली इच्छा थी कि स्नेहा और राहुल का विवाह हो जाए पर अपनी बेटी की ये हरकतें देख कर उन की कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि वे इस बारे में राहुल से बात भी करें, क्योंकि स्नेहा के रंगढंग राहुल से छिपे नहीं थे. पर वह स्नेहा को इतना प्यार करता था कि उस की हर गलती को मन ही मन माफ करता रहता था. उस के लिए प्यार, केयर, मानवीय संवेदनाएं बहुत महत्त्व रखती थीं पर स्नेहा तो इन शब्दों का अर्थ भी नहीं जानती थी.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. स्नेहा अपनी मरजी से ही घर आतीजाती.  विनय और सविता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं था. जब भी दोनों कुछ डांटते, सुरेश स्नेहा को लाड़प्यार कर बच्ची है समझ जाएगी कह कर बात खत्म करवा देते. वे अब बीमार चल रहे थे. स्नेहा में उन की जान अटकी रहती थी. अपना अंतिम समय निकट जान उन्होंने अपना अच्छा खासा बैंक बैलेंस सब स्नेहा के नाम कर दिया.

एक रात सुरेश सोए तो फिर नहीं जागे. तीनों बहुत रोए, बहुत उदास हुए, कई दिनों तक रिश्तेदारों और परिचितों का आनाजाना लगा रहा. फिर धीरेधीरे सब का जीवन सामान्य होता गया. स्नेहा अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई. वैसे भी किसी भी बात को, किसी भी रिश्ते को गंभीरतापूर्वक लेने का उस का स्वभाव था ही नहीं. अब तो वह दादा के मोटे बैंक बैलेंस की मालकिन थी. इतना खुला पैसा हाथ में आते ही अब वह और आसमान में उड़ रही थी. सब से पहले उस ने मातापिता को बिना बताए एक कार खरीद ली.

सविता ने कहा, ‘‘अभी से क्यों खरीद ली? हमें बताया भी नहीं?’’

‘‘मौम, मुझे मेरी मरजी से जीने दो. मैं लाइफ ऐंजौय करना चाहती हूं. रात में मुझे कभी कोई छोड़ता है, कभी कोई. अब मैं किसी पर डिपैंड नहीं करूंगी. दादाजी मेरे लिए इतना पैसा छोड़ गए हैं, मैं क्यों अपनी मरजी से न जीऊं?’’

विनय ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तुम्हें ड्राइविंग सीखने में टाइम लगेगा, पहले मेरे साथ कुछ प्रैक्टिस कर लेती.’’

‘‘अब खरीद भी ली है तो प्रैक्टिस भी हो जाएगी. ड्राइविंग लाइसैंस भी बन गया है. आप लोग रिलैक्स करना सीख लें, प्लीज.’’

अब तो रात में लौटने का स्नेहा का टाइम ही नहीं था. कभी भी आती, कभी भी जाती. सविता ने देखा था वह गाड़ी बहुत तेज चलाती है. उसे टोका, ‘‘गाड़ी की स्पीड कम रखा करो. मुंबई का ट्रैफिक और तुम्हारी स्पीड… बहुत ध्यान रखना चाहिए.’’

‘‘मौम, आई लव स्पीड, मैं यंग हूं, तेजी से आगे बढ़ने में मुझे मजा आता है.’’

‘‘पर तुम मना करने के बाद भी पार्टीज में ड्रिंक करने लगी हो, मैं तुम्हें समझा कर थक चुकी हूं, ड्रिंक कर के ड्राइविंग करना कहां की समझदारी है? किसी दिन…’’

‘‘मौम, मैं भी थक गई हूं आप की बातें सुनतेसुनते, जब कुछ होगा, देखा जाएगा,’’ पैर पटकते हुए स्नेहा कार की चाबी उठा कर घर से निकल गई.

सविता सिर पकड़ कर बैठ गईं. बेटी की हरकतें देख वे बहुत तनाव में रहने लगी थीं. समझ नहीं आ रहा था बेटी को कैसे सही रास्ते पर लाएं.

एक दिन फिर स्नेहा ने किसी पार्टी में खूब शराब पी. अपने नए बौयफ्रैंड विक्की के साथ खूब डांस किया, फिर विक्की को उस के घर छोड़ने के लिए लड़खड़ाते हुए ड्राइविंग सीट पर बैठी तो विक्की ने पूछा, ‘‘तुम कार चला पाओगी या मैं चलाऊं?’’

‘‘डोंट वरी, मुझे आदत है,’’ स्नेहा नशे में डूबी गाड़ी भगाने लगी, न कोई चिंता, न कोई डर.

अचानक उस ने गाड़ी गलत दिशा में मोड़ ली और सामने से आती कार को भयंकर टक्कर मार दी. तेज चीखों के साथ दोनों कारें रुकीं. दूसरी कार में पति ड्राइविंग सीट पर था, पत्नी बराबर में और बच्चा पीछे. चोटें स्नेहा को भी लगी थीं. विक्की हकबकाया सा कार से नीचे उतरा. उस ने स्नेहा को सहारा दे कर उतारा. स्नेहा के सिर से खून बह रहा था. दोनों किसी तरह दूसरी कार के पास पहुंचे तो स्नेहा की चीख से वातावरण गूंज उठा. विक्की ने भी ध्यान से देखा तो तीनों खून से लथपथ थे. पुरुष शायद जीवित ही नहीं था.

विक्की चिल्लाया, ‘‘स्नेहा, शायद कोई नहीं बचा है. उफ, पुलिस केस हो जाएगा.’’

स्नेहा का सारा नशा उतर चुका था. रोने लगी, ‘‘विक्की, प्लीज, हैल्प मी, क्या करें?’’

‘‘सौरी स्नेहा, मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. प्लीज, कोशिश करना मेरा नाम ही न आए. मेरे डैड बहुत नाराज होंगे, सौरी, मैं जा रहा हूं.’’

‘‘क्या?’’ स्नेहा को जैसे तेज झटका लगा, ‘‘तुम रात में इस तरह मुझे छोड़ कर जा रहे हो?’’

विक्की बिना जवाब दिए एक ओर भागता चला गया. सुनसान रात में अकेली, घायल खड़ी स्नेहा को हमेशा की तरह एक ही नाम याद आया, राहुल. उस ने फौरन राहुत को फोन मिलाया. हमेशा की तरह राहुल कुछ ही देर में उस के पास था. स्नेहा राहुल को देखते ही जोरजोर से रो पड़ी. स्नेहा डरी हुई, घबराई हुई चुप ही नहीं हो रही थी.

राहुल ने उसे गले लगा कर तसल्ली दी, ‘‘मैं कुछ करता हूं, मैं हूं न, तुम पहले हौस्पिटल चलो, तुम्हें काफी चोट लगी है, लेकिन उस से पहले भी कुछ जरूरी फोन कर लूं,’’ कह उस ने अपने एक पुलिस इंस्पैक्टर दोस्त राजीव और एक डाक्टर दोस्त अनिल को फोन कर तुरंत आने के लिए कहा.

अनिल ने आकर उन 3 लोगों का मुआयना किया. तीनों की मृत्यु हो चुकी थी. सब सिर पकड़ कर बैठ गए. स्नेहा सदमें में थी. उस पर केस तो दर्ज हो ही चुका था. उसे काफी चोटें थीं तो पहले तो उसे ऐडमिट किया गया.

सरिता और विनय भी पहुंच चुके थे. स्नेहा मातापिता से नजरें ही नहीं मिला पा रही थी. कई दिन पुलिस, कोर्टकचहरी, मानसिक और शारीरिक तनाव से स्नेहा बिलकुल टूट चुकी थी. उस की जिंदगी जैसे एक पल में ही बदल गई थी. हर समय सोच में डूबी रहती. उस के लाइफस्टाइल के कारण 3 लोग असमय ही दुनिया से जा चुके थे. वह शर्मिंदगी और अपराधबोध की शिकार थी. 1-1 गलती याद कर, बारबार अपने मातापिता और राहुल से माफी मांग रही थी. राहुल और सविता ने ही उस का केस लड़ा. रातदिन एक कर दिया. भारी जुर्माने के साथ स्नेहा को थोड़ी आजादी की सांस लेने की आशा दिखाई दी. रातदिन मानसिक दबाव के कारण स्नेहा की तबीयत बहुत खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में ऐडमिट किया गया. अभी तो ऐक्सिडैंट की चोटें भी ठीक नहीं हुई थीं. उस की जौब भी छूट चुकी थी. पार्टियों के सब संगीसाथी गायब थे. बस राहुल रातदिन साए की तरह साथ था. हौस्पिटल के बैड पर लेटेलेटे स्नेहा अपने बिखरे जीवन के बारे में सोचती रहती. कार में 3 मृत लोगों का खयाल उसे नींद में भी घबराहट से भर देता. कोर्टकचहरी से भले ही सविता और राहुल ने उसे जल्दी बचा लिया था पर अपने मन की अदालत से वह अपने गुनाहों से मुक्त नहीं हो पा रही थी.

विनय, सविता, राहुल और उस के मम्मीपापा अभय और नीता भी अपने स्नेह से उसे सामान्य जीवन की तरफ लाने की कोशिश कर रहे थे. अब उसे सहीगलत का, अच्छेबुरे रिश्तों का, भावनाओं का, अपने मातापिता के स्नेह का, राहुल की दोस्ती और प्यार का एहसास हो चुका था.

एक दिन जब विनय, सविता, अभय और नीता चारों उस के पास थे, बहुत सोचसमझ कर उस ने अचानक सविता से अपना फोन मांग कर राहुल को फोन किया और आने के लिए कहा.

हमेशा की तरह राहुल कुछ ही देर में उस के पास था. स्नेहा ने उठ कर बैठते हुए राहुल का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘इस बार तुम्हें किसी काम से नहीं, सब के सामने बस इतना कहने के लिए बुलाया है, आई एम सौरी फौर ऐवरीथिंग, आप सब मुझे माफ कर दें और राहुल, तुम कितने अच्छे हो,’’ कह कर रोतेरोते स्नेहा ने राहुल के गले में बांहें डाल दीं तो राहुल वहां उपस्थित चारों लोगों को देख कर पहले तो शरमा गया, फिर हंस कर स्नेहा को अपनी बांहों के सुरक्षित घेरे में ले कर अपने मातापिता, फिर विनय और सविता को देखा तो बहुत दिनों बाद सब के चेहरे पर एक मुसकान दिखाई दी, सब की आंखों में अपनी इच्छा पूरी होने की खुशी साफसाफ दिखाई दे रही थी. Family Story In Hindi

Romantic Story: एक झूठ – इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का झूठ?

Romantic Story: इकबाल जल्दीजल्दी निभा के लिए केक बना रहा था. दरअसल, आज निभा का बर्थडे था. इकबाल ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी. वह निभा को सरप्राइज देना चाहता था.

उस ने निभा की पसंद का खाना बनाया था, पूरा घर सजाया था और निभा के लिए एक खूबसूरत सी ड्रैस भी खरीदी थी. आज की शाम वह निभा के लिए यादगार बना देना चाहता था.

शाम में जब निभा घर लौटी तो इकबाल ने दरवाजा खोला. निभा के अंदर कदम रखते ही इकबाल ने पंखा चला दिया और रंगबिरंगे फूल निभा के ऊपर गिरने लगे. निभा को बांहों में भर कर इकबाल ने धीरे से कहा,”जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान.”

इकबाल का हाथ थाम कर निभा ने कहा,”सच इकबाल, तुम मेरी जिंदगी की सच्ची खुशी हो. कितना प्यार करते हो मुझे. ख्वाहिशों का आसमान छू लिया है मैं ने तुम्हारे दम पर… अब तमन्ना यही है मेरा दम निकले तुम्हारे दर पर…”

इकबाल ने उस के होंठों पर उंगली रख दी,”दम निकलने की बात दोबारा मत करना निभा. तुम ने मेरी जिंदगी हो. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.”

केक काट कर और गिफ्ट दे कर जब इकबाल ने अपने हाथों से तैयार किया हुआ खाना डाइनिंग टेबल फर सजाया तो निभा की आंखों में आंसू आ गए,”इतना प्यार मत करो मुझ से इकबाल. हम लिवइन में रहते हैं मगर तुम तो मुझे पत्नी से ज्यादा मान देते हो. हमारा धर्म एक नहीं पर तुम ने प्यार को ही धर्म बना दिया. मेरे त्योहार तुम मनाते हो. मेरे रिवाज तुम निभाते हो. मेरा दिल हर बार तुम चुराते हो. कब तक चलेगा ऐसा?”

“जब तक धरती पर मैं हूं और आसमान में चांद है…”

दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए थे. धर्म, जाति, ऊंचनीच, भाषा, संस्कृति जैसे हर बंधन से आजाद उन का प्यार पिछले 5 सालों से परवान चढ़ रहा था.

5 साल पहले एक कौमन फ्रैंड की पार्टी में दोनों मिले थे. उस वक्त दोनों ही दिल्ली में नए थे और जौब भी नईनई थी. समय के साथसाथ दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से प्रभावित इकबाल और निभा धीरेधीरे करीब आने लगे थे. दोनों के बीच दूरियां सिमटने लगीं और फिर दोनों अलगअलग घर छोड़ कर एक ही घर में शिफ्ट हो गए. किराया तो बचा ही जीवन को नई खुशियां भी मिलीं.

जल्दी ही दोनों ने मिल कर एक फ्लैट किस्तों पर ले लिया. दोनों मिल कर मकान की किस्त भी देते और घर के दूसरे खर्चे भी करते. दोनों के बीच प्यार गहरा होता गया. रिश्ता गहरा हुआ तो दोनों ने घर वालों को बताने की सोची.

इकबाल के घर वालों में केवल मां थीं जो बहुत सीधी थीं. वह तुरंत मान गई थीं. मगर निभा के यहां स्थिति विपरीत थी. उस के पिता इलाहाबाद के जानेमाने उद्योगपति थे. शहर में अपनी कोठी थी. 3-4 फैक्ट्रियां थीं. 100 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. उन की शानोशौकत ही अलग थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी पर पतिपत्नी दोनों ही अव्वल दरजे के धार्मिक और कट्टरमिजाज थे. मां अकसर ही धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक हुआ करती थीं.

धर्म की तो बात ही अलग है. यहां तो जाति के साथसाथ गोत्र, वर्ण, कुंडली सब कुछ देखा जाता था. ऐसे में निभा को हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह घर वालों से कुछ कहे.

एक बार दीवाली की छुट्टियों में जब वह घर गई तो उसे शादी के लिए योग्य लड़कों की तसवीरें दिखाई गईं. निभा ने तब पिता से सवाल किया,”पापा क्या मैं अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती?”

पापा ने गुस्से से उस की तरफ देखा. तब तक मां ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बोलीं,” देख बेटा, तू अपनी पसंद की शादी करने को तो कर सकती है, पर इतना ध्यान रखना कि लड़का अपने धर्म, अपनी जाति और अपनी हैसियत का होना चाहिए. थोड़ा भी इधरउधर हम स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए प्यार करना भी है तो आंखें खोल कर. वरना तू तो जानती ही है गोलियां चल जाएंगी.”

“जी मां,” कह कर निभा खामोश हो गई.

उसे पता था कि इकबाल के बारे में बता कर वह खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारेगी. इसलिए उस ने रिश्ते का सच छिपाए रखना ही उचित समझा. वक्त इसी तरह बीतता रहा.

एक दिन सुबह निभा बड़ी परेशान सी बालकनी में खड़ी थी. इकबाल ने पीछे से उसे बांहों में भरते हुए पूछा,”हमारी बेगम के चेहरे पर उदासी के बादल क्यों छाए हुए हैं?”

निभा ने खुद को छुड़ाते हुए परेशान स्वर में कहा,”क्योंकि आप के शहजादे दुनिया में आने के लिए निकल चुके हैं.”

“क्या?”

“हां इकबाल. मैं मां बनने वाली हूं और यह जिम्मेदारी मैं अभी उठा नहीं सकती. एक तरफ घर वालों को कुछ पता नहीं और दूसरी तरफ मेरा कैरियर भी पीक पर है. मैं यह रिस्क अभी नहीं ले सकती.”

“तो ठीक है निभा गर्भपात करा लो. मुझे भी यही सही लग रहा है.”

“पर क्या यह इतना आसान होगा?”

“आसान तो नहीं होगा बट डोंट वरी, हम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करेंगे और कहेंगे कि एक बच्चा पहले से है और इसलिए अभी दूसरा बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहते.”

“देखो क्या होता है. शाम को आ जाना मेरे औफिस में. वहीं से लैडी डाक्टर के पास चलेंगे. ”

और फिर निभा ने वह बच्चा गिरा दिया. इस के 5-6 महीने बाद एक बार फिर गर्भपात कराना पड़ा. निभा को काफी अपराधबोध हो रहा था. शरीर भी कमजोर हो गया था. पर वह करती क्या…. उसे कोई और रास्ता ही समझ नहीं आया था. पर अब इस बात को ले कर वह काफी सतर्क हो गई थी और जरूरी ऐहतियात भी लेने लगी थी.

एक दिन औफिस में ही उस के पास खबर आई कि उस के पिता का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे काफी गंभीर अवस्था में हैं. निभा एकदम बदहवाश सी घर लौटी और जरूरी सामान बैग में डाल कर निकल पड़ी. अगली सुबह वह हौस्पिटल में थी. उस के पापा आखिरी सांसें ले रहे थे.

उसे देखते ही पापा ने कुछ बोलने की कोशिश की तो वह करीब खिसक आई और हाथ पकड़ कर कहने लगी,” बोलो पापा, आप क्या कहना चाहते हैं?”

“बेटा मैं चाहता हूं कि मेरा सारा काम तुम्हारा चचेरा भाई नहीं बल्कि तुम संभालो. वादा कर बेटा…”

निभा ने उन के हाथों पर अपना हाथ रख कर वादा किया. फिर कुछ ही देर बाद उन का देहांत हो गया. अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया कर वह 14 दिनों बाद दिल्ली लौटी. इकबाल भी औफिस से जल्दी आ गया था. निभा उस के गले लग कर बहुत रोई और फिर अपना सामान पैक करने लगी.

इकबाल चौंकता हुआ बोला,”यह क्या कर रही हो निभा?”

“मुझे हमेशा के लिए घर लौटना पड़ेगा इकबाल. पापा ने वादा लिया है मुझ से. उन का सारा कारोबार मुझे संभालना है.”

“वह तो ठीक है मगर एक बार मेरी तरफ भी तो देखो. मैं यहां अकेला तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? मकान की किस्तें, अकेलापन और तुम्हारे बिना जीने का दर्द कैसे उठा पाऊंगा? नहीं निभा नहीं. मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे…”

“रहना तो पड़ेगा ही इकबाल. अब मैं क्या करूं?”

“मत जाओ निभा. यहीं से संभालो अपना काम. कोई मैनेजर नियुक्त कर लो जो तुम्हें जरूरी जानकारी देता रहेगा.”

“इकबाल लाखोंकरोड़ों का कारोबार ऐसे नहीं संभलता. पापा अपने कारोबार के प्रति बहुत जनूनी थे. उन्होंने कोई भी काम मातहतों पर नहीं छोड़ा. हर काम में खुद आगे रहते थे. तभी आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्हें मेरे चचेरे भाई पर भी यकीन नहीं. मेरे भरोसे छोड़ कर गए हैं सब कुछ और मैं उन को दिया गया अंतिम वचन कभी तोड़ नहीं सकती.”

“और मुझ से किए गए प्यार के वादे? उन का क्या? उन्हें ऐसे ही तोड़ दोगी? नहीं निभा, तुम्हारे बिना मैं यहां 2 दिन भी नहीं रह सकता.”

“तो फिर चले आओ न…” आंखों में चमक लिए निभा ने कहा.

“मतलब?”

“देखो इकबाल, तुम एक बार मेरे पास इलाहाबाद आ जाओ. हमें एकदूसरे की कंपनी मिल जाएगी और फिर देखेंगे…कोई न कोई रास्ता भी निकाल ही लेंगे.”

फिर क्या था 10 दिन के अंदर ही इकबाल इलाहाबाद पहुंच गया. दोनों ने एक होटल में मुलाकात कर आगे की योजना तैयार की.

अगली सुबह इकबाल मैनेजर बन कर निभा के घर में खड़ा था. निभा ने अपनी मां से इकबाल का परिचय कराया,” मां यह बाला हैं. हमारे नए मैनेजर.”

इकबाल ने बढ़ कर मां के पैर छू लिए तो मां एकदम से अलग होती हुई बोलीं,”अरे नहीं बेटा. तुम मैनेजर हो. मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”

“क्योंकि बड़ों के आशीर्वाद से ही सफलता के रास्ते खुलते हैं मां.”

“बेटा अब तुम ने मुझे मां कहा है तो यही आशीष देती हूं कि तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो.”

बाला यानी इकबाल ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया और अपने काम में लग गया. निभा ने मां को बताया, “मां, दरअसल बाला कालेज में मेरा क्लासमैट था. इस ने एमबीए की पढ़ाई की हुई है. पढ़ाई के बाद कुछ समय से दिल्ली में काम कर रहा था. यहां मुझे अकेले इतना बड़ा कारोबार संभालना था तो मेरी हैल्प के लिए आया है. वैसे इस का घर तो जमशेदपुर में है. यहां बिलकुल अकेला है यह. मां, क्या हम इसे अपने बड़े से घर में रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दे सकते हैं?”

“क्यों नहीं बेटा? इसे गैस्टरूम में ठहरा दो. कुछ दिनों में यह खुद अपने लिए कोई घर ढूंढ़ लेगा.”

“जी मां…” कह कर निभा अपने कैबिन में चली गई. योजना का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था. इकबाल घर में आ भी गया था और मां को कोई शक भी नहीं हुआ था. मैनेजर के रूप इकबाल बाला बन कर निभा के साथ काम करने लगा.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. इकबाल और निभा ने मिल कर कारोबार अच्छी तरह संभाल लिया था. मां भी खुश रहने लगी थीं. इकबाल समय के साथ मां के संग काफी घुलमिल गया. वह मां की हरसंभव सहायता करता. हर मुश्किल का हल निकालता. बेटे की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाता. यही नहीं, कई बार उस ने अपने हाथों से बना कर मां को स्वादिष्ठ खाना भी खिलाया. उस के बातव्यवहार से मां बहुत खुश रहती थीं.

इस बीच दीवाली आई तो इकबाल ने उन के साथ मिल कर त्योहार मनाया. किसी को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह हिंदू नहीं है.

एक बार कारोबार के किसी काम के सिलसिले में निभा को दिल्ली जाना था. इकबाल भी साथ जा रहा था. तभी मां ने कहा कि वे भी दिल्ली घूमना चाहती हैं. बस फिर क्या था, तीनों ने काम के साथसाथ घूमने का भी कार्यक्रम बना लिया.

तीनों अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले. लेकिन नोएडा के पास हाईवे पर अचानक निभा की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उस वक्त निभा गाड़ी चला रही थी और मां बगल में बैठी थीं. ऐक्सीडैंट इतना भयंकर हुआ कि गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई. निभा को गहरी चोटें लगीं पर उतनी नहीं जितनी मां को लगीं. मां के सिर में कांच घुस गए थे और खून बह रहा था. वह बीचबीच में होश में आ रही थीं और फिर बेहोश हो जा रही थीं.

करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा अस्पताल था. निभा ने मां को वहीं ऐडमिट करने का फैसला लिया.

रात का समय था. हाईवे का वह इलाका थोड़ा सुनसान था. हाथ देने पर भी कोई भी गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. कोई और उपाय न देख कर इकबाल ने मां को गोद में उठाया और तेजी से अस्पताल की तरफ भागा. पीछेपीछे निभा भी भाग रही थी.

निभा ने ऐंबुलैंस वाले को काल किया मगर ऐंबुलैंस को आने में वक्त लग रहा था. इतनी देर में इकबाल खुद ही मां को गोद में उठाए अस्पताल पहुंच गया.

मां को तुरंत आईसीयू में ऐडमिट किया गया. उन्हें खून की जरूरत थी. संयोग था कि इकबाल का ब्लड ग्रुप ओ पौजिटिव था. उस ने मां को अपना खून दे दिया. मां को बचा लिया गया था. इस दौरान इकबाल लगातार दौड़धूप करता रहा.

इस घटना ने मां के दिल में इकबाल की जगह बहुत ऊंची कर दी थी. वापस घर लौट कर एक दिन मां ने इकबाल को सामने बैठाया और प्यार से उस के बारे में सब कुछ पूछने लगीं. पास ही निभा भी बैठी हुई थी.

निभा ने मां का हाथ पकड़ कर कहा,”मां मैं आज आप से एक हकीकत बताना चाहती हूं.”

“वह क्या बेटा?”

“मां यह बाला नहीं इकबाल है. हम ने झूठ कहा था आप से.”

इतना कह कर वह खामोश हो गई और मां की तरफ देखने लगी. मां ने गौर से इकबाल की तरफ देखा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गईं. दरवाजा बंद कर लिया. निभा और इकबाल का चेहरा फक्क पड़ गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब इस परिस्थिति से कैसे निबटें.

अगले दिन तक मां ने दरवाजा नहीं खोला तो निभा को बहुत चिंता हुई. वह दरवाजा पीटती हुई रोतीरोती बोली,”मां, माफ कर दो हमें. तुम नहीं चाहती हो तो मैं इकबाल को वापस भेज दूंगी. गलती मैं ने की है इकबाल ने नहीं. मैं ने ही उसे बाला बन कर आने को कहा था. प्लीज मां, माफ कर दो.”

मां ने दरवाजा खोल दिया और मुंह घुमा कर बोलीं,”गलती तुम्हारी नहीं. गलती बाला की भी नहीं. गलती तो मेरी है जो मैं उसे पहचान न सकी.”

निभा और इकबाल परेशान से एकदूसरे की तरफ देखने लगे. तभी पलटते हुए मां ने हंस कर कहा,”बेटा, मैं ही पहचान न सकी कि तुम दोनों के बीच कितना गहरा प्यार है. इकबाल कितना अच्छा इंसान है. धर्म या जाति से क्या होता है? यदि सोचो तो समझ आएगा. बेटा, पलभर में मेरा धर्म भी तो बदल गया न जब इकबाल ने मुझे अपना खून दिया. मेरे शरीर में उसी का खून तो बह रहा है. फिर क्या अंतर है हम में या उस में. इतने दिनों में जितना मैं ने समझा है इकबाल मुझे एक शरीफ, ईमानदार और साथ निभाने वाले लड़का लगा है. इस से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें और कौन मिलेगा?”

“सच मां, आप मान गईं…” कह कर खुशी से निभा मां के गले लग गई. आज उसे जिंदगी की सब से बड़ी खुशी मिल गई थी. पास ही इकबाल भी मुसकराता हुआ अपने आंसू पोंछ रहा था. Romantic Story

Social Story In Hindi: धमाका – क्यों शेफाली की जिंदगी बदल गई?

Social Story In Hindi: वह है शेफाली. मात्र 24-25 वर्ष की. सुंदर, सुघड़, कुंदन सा निखरा रूप एवं रंग ऐसा जैसे चांद ने स्वयं चांदनी बिखेरी हो उस पर. कालेघुंघराले बाल मानों घटाएं गहराई हों और बरसने को तत्पर हों. किंतु उस धमाके ने उसे ऐसा बना दिया गोया एक रंगबिरंगी तितली अपनी उड़ान भरना भूल गई हो, मंडराना छोड़ दिया हो उस ने.

मुझे याद है जब हम पहली बार पैरिस में मिले थे. उस ने होटल में चैकइन किया था. छोटी सी लाल रंग की टाइट स्कर्ट, काली जैकेट और ऊंचे बूट पहने बालों को बारबार सहेज रही थी. मेरे पति भी होटल काउंटर पर जरूरी औपचारिकता पूरी कर रहे थे. हम दोनों को ही अपनेअपने कमरे के नंबर व चाबियां मिल गई थीं. दोनों के कमरे पासपास थे. दूसरे देश में 2 भारतीय. वह भी पासपास के कमरों में. दोस्ती तो होनी ही थी. मैं अपने पति व 2 बच्चों के साथ थी और वह आई थी हनीमून पर अपने पति के साथ.

मैं ने कहा, ‘‘हाय, मैं रुचि.’’ उस ने भी हाथ बढ़ाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘आई एम शेफाली. आप की बेटी बहुत स्वीट है.’’ उस की मुसकराहट ऐसी थी गोया मोतियों की माला पिरोई हो 2 पंखुडि़यों के बीच. रात के खाने के समय बातचीत में मालूम हुआ कि उन्होंने भी वही टूर बुक किया था जो हम ने किया था. अगले ही दिन मैं अपने परिवार के साथ और वह अपने पति के साथ निकल पड़ी ऐफिल टावर देखने, जोकि पैरिस का मुख्य आकर्षण एवं 7 अजूबों में से एक है. वहां पहुंच वह तो बूट पहने भी खटखट करती सीढि़यां चढ़ गई, मगर मैं बस 2 फ्लोर चढ़ कर ही थक गई और फिर वहीं से लगी पैरिस के नजारे देखने और फोटो खिंचवाने. वह और ऊपर तक गई और फिर थोड़ी ही देर में अपने पति के कंधों पर अपने शरीर का बोझ डाल कर व उस की कमर पकड़े चलती हुई लौट आई. हमारे पास आ कर जब उस ने कहा कि क्या आप हमारे फोटो खींचेंगे तो मैं ने कहा हांहां क्यों नहीं?

वह अलगअलग पोज में फोटो खिंचवा रही थी और जब मन होता अपने डायमंड से सजे फोन से सैल्फी भी ले लेती. इस के बाद हम चले पैलेस औफ वर्साइल्स के लिए जोकि अब म्यूजियम में तबदील हो गया है. वहां के लिए स्पैशल ट्रेन चलती है. उस की कुरसियां मखमल के कपड़े से ढकी थीं और ट्रेन में पैलेस के चित्र बने थे. वे दोनों पासपास बैठे एकदूसरे से प्यार भरी छेड़छाड़ कर रहे थे. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान उन पर चला ही जाता. आरामदेह और एसी वाली ट्रेन से हम पैलेस औफ वर्साइल्स पहुंचे. इतना बड़ा पैलेस और उस का बगीचा देखते ही बनता था. बगीचे में लगे फुहारे उस की शान को दोगुना कर रहे थे. उस पैलेस की मशहूर चीज है मोनालिसा की पेंटिंग जिसे देखने भीड़ उमड़ी थी. वह उस भीड़ को चीरते हुए आगे जा कर पेंटिंग के फोटो ले आई और मिहिर को इतनी खुशी से दिखा रही थी गोया उस ने कोई किला जीत लिया हो.

पैलेस में यूरोपियन सभ्यता को दर्शाते सफेद पुतले भी हैं, जिन में पुरुष व स्त्रियां वैसे ही नग्न दिखाई गई हैं जैसेकि हमारे अजंताऐलोरा की गुफाओं में. कोई भी पुरुष उन्हें देख अपना नियंत्रण खो ही देगा. वही मिहिर के साथ हुआ और उस ने शेफाली के गालों और होंठों को चूम ही लिया. वैसे भी यूरोप में सार्वजनिक जगहों पर लिप किस तो आम बात है. पति के किस करने पर शेफाली इस तरह इधरउधर देखने लगी कि उन्हें ऐसा करते किसी ने देखा तो नहीं. फिर हम साइंस म्यूजियम, गार्डन आदि सभी जगहें घूम आए. अब था वक्त शौपिंग का. मैं तो हर चीज के दाम को यूरो से रुपए में बदल कर देखती. हर चीज बहुत महंगी लग रही थी. और शेफाली, वह तो इस तरह शौपिंग कर रही थी जैसे कल तो आने वाला ही न हो. हर पल को तितली की तरह मस्त हो कर जी रही थी वह. बस एक ही दिन और बचा था उस का व हमारा वहां पर. अत: शाम को मैट्रो स्टेशन, जोकि अंडरग्राउंड होते हैं और उन में दुकानें भी होती हैं, में भी वह शौपिंग करने लगी. फिर वापसी में जैसे ही हम ट्रेन पकड़ने को दौड़े तो वह पीछे रह गई. हम सब के ट्रेन में चढ़ते ही ट्रेन के दरवाजे बंद हो गए और वह रवाना हो गई. मैं चलती ट्रेन से उसे देख रही थी. एक बार को तो लगा कि अब क्या होगा? लेकिन अगले ही स्टेशन पर हम उतरे और उस का पति उलटी दिशा में जाती ट्रेन में चढ़ कर उसे 5 ही मिनट में ले आया.

मैं ने जब उस से पूछा कि तुम्हें डर नहीं लगा तो वह कहने लगी कि बिलकुल नहीं. उसे मालूम था कि मिहिर उसे लेने जरूर आएगा. मैं सोच रही थी कि कितने कम समय में वह अपने पति को पूरी तरह पहचान गई है. होटल में रात के खाने के समय वह हमारे पास आ कर कहने लगी कि भारत जा कर न जाने हम मिलें न मिलें, इसलिए चलिए आज साथ ही खाना खाते हैं. मेरी 7 वर्षीय बेटी उस से बहुत हिलमिल गई थी. अगले दिन सुबह हम वक्त से पहले तैयार हो गए. नाश्ता कर अपने पैरिस के अंतिम दिन का लुत्फ उठाने होटल से सड़क पर आ गए. अपने टूर की बस की राह देखते हुए चहलकदमी कर ही रहे थे कि तभी एक जोर के धमाके की आवाज आई और फिर न जाने कहां से कुछ लोग आ कर धायंधायं गोलियां बरसाने लगे. जिसे जहां जगह मिली छिप गया. मेरे पति बेटी को गोद में उठा कर भाग रहे थे और मेरा बेटा मेरे साथ भाग रहा था. मैं एक कार के पीछे छिप गई थी. तभी शेफाली का भागते हुए पैर मुड़ गया. उस का पति उसे गोद में ले कर भागा, किंतु इसी बीच 1 गोली उस के पैर में व 1 पीठ में लग गई. अगले ही पल शेफाली चीखचीख कर पुकार रही थी कि मिहिर उठो, मिहिर भागो. पर शायद मिहिर इस दुनिया को अलविदा कह चुका था. बाद में मालूम हुआ वह एक आतंकी हमला था. पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. बंदूकधारी वहां से भाग चुके थे. मैं यह सब कार के पीछे छिपी देख रही थी. पुलिस वाले मिहिर को अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

मैं शेफाली को संभालने की कोशिश कर रही थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. शाम को जिस विमान से हनीमून का जोड़ा लौटने वाला था उस तक सिर्फ शेफाली जीवित पहुंची और मिहिर की लाश. हम भारत अपने शहर मुंबई पहुंचे फिर अगले ही दिन दिल्ली शेफाली के घर पहुंचे. उस के घर मातम पसरा था. शेफाली तो पत्थर हो चुकी थी. न हंसती थी न बोलती थी. हां, मुझे देख कर मुझ से लिपट कर रो पड़ी. मैं उस से कह रही थी, ‘‘रो मत शेफाली. सब ठीक हो जाएगा.’’ किंतु मैं स्वयं अपनेआप को नहीं रोक पा रही थी. वह धमाका जो हम ने एकसाथ सुना था, शायद हम उसे हादसा समझ भूल जाएं, लेकिन शेफाली की तो उस ने दुनिया ही उजाड़ दी थी. तब से वह पत्थर की मूर्ति बन गई है. ऐसा लगता है जैसे एक तितली के पर कट गए हों और वह उड़ान भरना भूल गई हो. मैं अब भी सोचती रहती हूं कि काश, वह धमाका न हुआ होता. Social Story In Hindi

Hindi Romantic Story: देह से परे – मोनिका ने आरव से कैसे बदला लिया?

Hindi Romantic Story, लेखिका- निहारिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी.

इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई.

वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी.

इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह?

आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है?

आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है.

वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी.

निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’

मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई.

बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा.

आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी.

नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा.

कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

मोनिका आरव से बहुत प्यार करती थी. मगर उस ने ही उसे धोखा दिया. फिर आरव से बदला लेने के लिए मोनिका ने कौन सा रास्ता चुना…

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था. Hindi Romantic Story

Romantic Story In Hindi: रिस्क – क्यों रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क लिया

Romantic Story In Hindi: इस नए औफिस में काम करते हुए मुझे 3 महीने ही हुए हैं और अब तक मेरे सभी सहयोगी जान चुके हैं कि मैं औफिस की ब्यूटी क्वीन मानसी को बहुत चाहता हूं. मुझे इस बात की चिंता अकसर सताती है कि जहां मैं उस से शादी करने को मरा जा रहा हूं, वहीं वह मुझे सिर्फ अच्छा दोस्त ही बनाए रखना चाहती है.

मानसी और मेरे प्रेम संबंध में और ज्यादा जटिलता पैदा करने वाली शख्सीयत का नाम है, शिखा. साथ वाले औफिस में कार्यरत शोख, चंचल स्वभाव वाली शिखा अकेले में ही नहीं बल्कि सब के सामने भी मेरे साथ फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं चूकती है.

‘‘दुनिया की कोई लड़की तुम्हें उतनी खुशी नहीं दे सकती, जितनी मैं दूंगी. खासकर बैडरूम में तुम्हारे हर सपने को पूरा करने की गारंटी देती हूं,’’ शादी के लिए मेरी ‘हां’ सुनने को शिखा अकेले में मुझे अकसर ऐसे प्रलोभन देती.

‘‘तुम पागल हो क्या? अरे, किसी ने कभी तुम्हारी ऐसी बातों को सुन लिया, तो लोग तुम्हें बदनाम कर देंगे,’’ उस की बिंदास बातें सुन कर मैं सचमुच हैरान हो उठता.

‘‘मुझे लोगों की कतई परवा नहीं और यह साबित करना मेरे लिए बहुत आसान है कि मैं गलत लड़की नहीं हूं.’’

‘‘तुम यह कैसे साबित कर सकती हो?’’

‘‘तुम मुझ से शादी करो और अगर सुहागरात को तुम्हें मेरे वर्जिन होने का सुबूत न मिले तो अगले दिन ही मुझ से तलाक ले लेना.’’

‘‘ओ, पागलों की लीडर, तू मेरा पीछा छोड़ और कोई नया शिकार ढूंढ़,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़े, तो हंसतेहंसते उस के पेट में दर्द हो गया.

मानसी को शिखा फूटी आंख नहीं सुहाती है. मेरी उस पागल लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है, बारबार ऐसा समझाने पर भी मानसी आएदिन शिखा को ले कर मुझ से झगड़ा कर ही लेती.

उस ने पिछले हफ्ते से जिद पकड़ ली थी कि मैं शिखा को जोर से डांट कर सब के बीच एक बार अपमानित करूं, जिस से कि वह मेरे साथ बातचीत करना बिलकुल बंद कर दे.

‘‘मेरी समझ से वह हलकेफुलके मनोरंजन के लिए मेरे साथ फ्लर्ट करने का नाटक करती है. उसे सब के बीच अपमानित करना गलत होगा, क्योंकि वह दिल की बुरी नहीं है, मानसी,’’ मेरे इस जवाब को सुन मानसी ने 2 दिन तक मुझ से सीधे मुंह बात नहीं की थी.

मैं ने तंग आ कर दूसरे दिन शिखा को लंच टाइम में सख्ती से समझाया, ‘‘मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं कि तुम मुझ से दूर रहा करो.’’

‘‘क्यों,’’ उस ने आंखें मटकाते हुए कारण जानना चाहा.

‘‘क्योंकि तुम्हारा मेरे आगेपीछे घूमना मानसी को अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘उसे अच्छा नहीं लगता है तो मेरी बला से.’’

‘‘बेवकूफ, मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ से बड़े बेवकूफ, मानसी मुझ से जरा सी ज्यादा सुंदर जरूर है, पर मैं दावे से कह रही हूं कि मेरी जैसी शानदार लड़की तुम्हें पूरे संसार में नहीं मिलेगी.’’

‘‘देवी, तू मेरे ऊपर लाइन मारना छोड़ दे.’’

‘‘मैं अपने पापी दिल के हाथों मजबूर होने के कारण तुम से दूर नहीं रह सकती हूं, लव.’’

‘‘मुहावरा तो कम से कम ठीक बोल, मेरी जान की दुश्मन. पापी पेट होता है, दिल नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि मेरा पापी दिल सपनों में तुम्हारे साथ कैसेकैसे गुल खिलाता है,’’ इस डायलौग को बोलते हुए उस के जो सैक्सी हावभाव थे, उन्हें देख कर मैं ऐसा शरमाया कि उस से आगे कुछ कहते नहीं बना.

पिछले हफ्ते मानसी ने अब तक मुझ से शादी के लिए ‘हां’ ‘ना’ कहने के पीछे छिपे कारण बता दिए, ‘‘मेरे मम्मीपापा की आपस में कभी नहीं बनी. पापा अभी भी मम्मी पर हाथ उठा देते हैं. भाभी घर में बहुत क्लेश करती हैं. मेरी बड़ी बहन अपने 3 साल के बेटे के साथ मायके आई हुई है, क्योंकि जीजाजी किसी दूसरी के चक्कर में पड़ गए हैं, समाज में नीचा दिखाने वाले इन कारणों के चलते मुझे लगता था कि अपनी शादी हो जाने के बाद मैं अपने पति और ससुराल वालों से कभी आंखें ऊंची कर के बात नहीं कर पाऊंगी. अब अगर तुम्हें इन बातों से फर्क न पड़ता हो तो मैं तुम से शादी करने के लिए ‘हां’  कह सकती हूं.’’

‘‘मुझे इन सब बातों से बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता है. आई एम सो हैप्पी,’’ मानसी की ‘हां’ सुन कर मेरी खुशी का सचमुच कोई ठिकाना नहीं रहा था.

उस दिन के बाद मानसी ने बड़े हक के साथ मुझे शिखा से कोई संबंध न रखने की चेतावनी दिन में कईकई बार देनी शुरू कर दी थी. उसे किसी से भी खबर मिलती कि शिखा मुझ से कहीं बातें कर रही थी, तो वह मुझ से झगड़ा जरूर करती.

मैं ने परेशान हो कर एक दिन शिखा की सीट पर जा कर विनती की, ‘‘मानसी मुझ से शादी करने को राजी हो गई है और उसे हमारा ‘हैलोहाय’ करना तक पसंद नहीं है. तुम मुझ से दूर रहा करो, प्लीज.’’

‘‘जब तक मानसी के साथ तुम्हारी शादी के कार्ड नहीं छप जाते, मैं तो तुम से मिलती रहूंगी,’’ उस पागल लड़की ने मेरी विनती को तुरंत ठुकरा दिया था.

‘‘तुम मेरी प्रौब्लम को समझने की कोशिश करो, प्लीज.’’

‘‘और तुम मेरी प्रौब्लम को समझो. देखो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं और इसीलिए आखिरी वक्त तक याद दिलाती रहूंगी कि मुझ से बेहतर पत्नी तुम्हें…’’ उस पर अपनी बात का कोई असर न होते देख मैं उस का डायलौग पूरा सुने बिना ही वहां से चला आया था.

किसी झंझट में न फंसने के लिए मैं ने अगले हफ्ते छोटे से बैंकटहौल में हुई अपने जन्मदिन की पार्टी में शिखा को नहीं बुलाया, पर उसे न बुलाने का मेरा फैसला उसे पार्टी से दूर रखने में सफल नहीं हुआ था. वह लाल गुलाब के फूलों का सुंदर गुलदस्ता ले कर बिना बुलाए ही पार्टी में शामिल होने आ गई थी.

‘‘रवि डियर, मुझे यहां देख कर टैंशन मत लो, मैं ने तुम्हें फूल भेंट कर दिए, शुभकामनाएं दे दीं और अब अगर तुम हुक्म दोगे, तो मैं उलटे पैर यहां से चली जाऊंगी,’’ अपनी बात कहते हुए वह बिलकुल भी टैंशन में नजर नहीं आ रही थी.

‘‘अब आ ही गई हो तो कुछ खापी कर जाओ,’’ मुझ से पार्टी में रुकने का निमंत्रण पा कर उस का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था.

अचानक मानसी हौल में आई उसी दौरान शिखा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे डांस फ्लोर की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी.

मुझे उस के आने का तब पता चला जब उस ने पास आ कर शिखा को मेरे पास से दूर धकेला और अपमानित करते हुए बोली, ‘‘जब तुम्हें रवि ने पार्टी में बुलाया ही नहीं था, तो क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी मरजी, वैसे तुम होती कौन हो मुझ से यह सवाल पूछने वाली,’’ शिखा उस से दबने को बिलकुल तैयार नहीं थी.

‘‘तुझे मालूम नहीं कि हमारी शादी होने वाली है, घटिया लड़की.’’

‘‘तुम मुझ से तमीज से बात करो,’’ शिखा को भी गुस्सा आ गया, ‘‘रवि से तुम्हारी शादी होने वाली बात मैं उसी दिन मानूंगी जिस दिन शादी का कार्ड अपनी आंखों से देख लूंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी जबरदस्ती गले पड़ने वाली बेशर्म लड़की मैं ने दूसरी नहीं देखी. कहीं तुम किसी वेश्या की बेटी तो नहीं हो?’’

‘‘मेरी मां के लिए अपशब्द निकालने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’’ वह मानसी की तरफ झपटने को तैयार हुई, तो मैं ने फौरन उस का हाथ मजबूती से पकड़ कर उसे रोका.

‘‘इसे इसी वक्त यहां से जाने को कहो, रवि,’’ मानसी ऊंची आवाज में कह कर उसे बेइज्जत कर रही थी.

‘‘तुम जरा चुप करो,’’ मैं ने मानसी को जोर से डांटा और फिर हाथ छुड़ाने को मचल रही शिखा से कहा, ‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में करो. क्या तुम दोनों ही मेरी पार्टी का मजा खराब करना चाहती हो?’’

शिखा ने फौरन अपने गुस्से को पी कर कुछ शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘नहीं, और तभी मैं इस बेवकूफ को अपने साथ बदतमीजी करने के लिए माफ करती हूं.’’

मेरे द्वारा डांटे जाने से बेइज्जती महसूस कर रही मानसी ने मुझे अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘रवि, तुम इसे अभी पार्टी से चले जाने को कहो, नहीं तो मैं इसी पल यहां से चली जाऊंगी.’’

‘‘मानसी, छोटे बच्चे की तरह जिद मत करो.’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी धमकी दोहरा दी, ‘‘अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो तुम मेरे साथ घर बसाने के सपने देखना भूल जाना.’’

‘‘तुम अपना घर बसने की फिक्र न करो, माई लव, क्योंकि मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ शिखा ने बीच में ही यह डायलौग बोल कर बात को और बिगाड़ दिया था.

‘‘तुझ जैसी कई थालियों में मुंह मारने की शौकीन लड़की से कोई इज्जतदार युवक शादी नहीं करेगा,’’ मानसी उसे अपमानित करने वाले लहजे में बोली, ‘‘तुम जैसी आवारा लड़कियों को आदमी अपनी रखैल बनाता है, पत्नी नहीं.’’

अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करते हुए शिखा ने मुझे सलाह दी, ‘‘रवि, तुम इस कमअक्ल से तो शादी मत ही करना. इस का चेहरा जरूर खूबसूरत है, पर मन के अंदर बहुत ज्यादा जहर भरा हुआ है.’’

‘‘तुम इसे फौरन पार्टी से चले जाने को कह रहे हो या नहीं,’’ मानसी ने चिल्ला कर अपना अल्टीमेटम एक बार फिर दोहराया, तो मेरी परेशानी व उलझन बहुत ज्यादा बढ़ गई.

मेरी समस्या सुलझाने की पहल शिखा ने की.

‘‘रवि, तुम टैंशन मत लो. पार्टी में हंसीखुशी का माहौल बना रहे, इस के लिए मैं यहां से चली जाती हूं. हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन,’’ मेरे कंधे को दोस्ताना अंदाज में दबाने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने को तैयार हो गई थी.

‘‘मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ने चलूंगा. जरा 2 मिनट के लिए रुक जाओ, प्लीज.’’

’’तुम इसे बिलकुल भी बाहर तक छोड़ने नहीं जाओगे,’’ मानसी के चहरे की खूबसूरती को गुस्से के हावभावों ने विकृत कर दिया था.

मैं ने गहरी सांस ली और मानसी के पास जा कर बोला, ’’मेरी जिंदगी से निकल जाने की तुम्हारी धमकी को नजरअंदाज करते हुए मैं अपने इस पल दिल में पैदा हुए ताजा भाव तुम से जरूर शेयर करूंगा. सच यही है कि आजकल मेरी जिंदगी में सारी टैंशन तुम्हारे और सारा हंसनामुसकराना शिखा के कारण हो  रहा है. तुम्हारी खूबसूरती के सम्मोहन से निकल कर अगर मैं निष्पक्ष भाव से देखूं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि यह जिंदादिल लड़की मेरी जिंदगी की रौनक बन गई है.’’

’’गो, टू हैल,’’ मेरी बात सुन कर आगबबूला  हो उठी मानसी को जन्मदिन की बिना शुभकामनाएं दिए दरवाजे की तरफ जाता देख कर भी मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

मैं शिखा का हाथ पकड़ कर मुसकराते हुए बोला, ’’ओ, पगली लड़की, मुझे साफ नजर आ रहा है कि अगर तुम मेरी जिंदगी से निकल गई, तो वह रसहीन हो जाएगी. तुम अगर मुझे आश्वासन दो कि तुम अपने जिंदादिल व्यक्तित्व को कभी नहीं मुरझाने दोगी, तो मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगा?’’

’’माई डियर रवि, मैं तुम्हारे प्यार में हमेशा ऐसी ही पागल बनी रहूंगी. प्लीज जल्दी से वह खास सवाल पूछो न,’’ वह उस छोटी बच्ची की तरह खुश नजर आ रही थी, जिसे अपना मनपसंद उपहार मिलने की आशा हो.

’’अपने बहुत से शुभचिंतकों की चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं तुम्हारे जैसी बिंदास लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का रिस्क लेने को तैयार हूं. क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

’’हुर्रे, मैं तुम से शादी करने को बिलकुल तैयार हूं, माई लव,’’ जीत का जोरदार नारा लगाते हुए उस ने सब के सामने मेरे होंठों पर चुंबन अंकित कर हमारे नए रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी. Romantic Story In Hindi

Family Story In Hindi: पानी पानी – आखिर समता क्यों गुमसुम रहने लगी?

Family Story In Hindi: अमित अपनी मां के साथ दिल्ली के पटेल नगर वाले मकान में था कि इतने में उस का फोन बजता है. सामने फोन पर प्राची है. अमित कुछ कह पाता, उस से पहले उस की भावभंगिमा बंद होने लगती  है. उस के हाथ कांपने लगते हैं. चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है. वह घबरा कर अपनी मां की तरफ देख कर कहता है, ‘‘चिंकू कौन है मां? किस की बात कर रही हैं प्राची दी?’’

बेटे के चेहरे की उड़ी रंगत देख सुलक्षणा घबरा गई. बिस्तर से उठते हुए बेचैन हो कर वह बोली, ‘‘अरे, तेरा बेटा ही तो है चिंकू. और किसी चिंकू को तो मैं जानती नहीं. क्या हुआ, क्या कहा प्राची ने चिंकू के बारे में? कुछ तो बता.’’

‘‘मां, वह नहीं रहा. मेरा बच्चा चिंकू चला गया,’’ कह कर अमित बच्चों की तरह रोने लगा.

‘‘क्या हुआ उसे? ला मेरा फोन दे. शायद प्राची किसी और से बात करना चाह रही थी और तेरा नंबर मिल गया. मैं समता का नंबर लगा लेती हूं. बहू से ही पूछ लेती हूं इस फोन के बारे में. जरूर कुछ गड़बड़ हुई है. हो सकता है तुझ से सुनने में कुछ गलती हुई हो.’’ सुलक्षणा लगातार बोले जा रही थी. टेबल से अपना मोबाइल उठा कर उस ने अपनी बहू समता का नंबर मिला लिया. मोबाइल समता के जीजाजी ने उठाया. सुलक्षणा के कान जो नहीं सुनना चाह रहे थे वही सुनना पड़ा. सचमुच, अमित का 2 वर्षीय बेटा चिंकू इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका था.

पिछले सप्ताह ही तो समता अपनी बहन प्राची के घर लखनऊ गई थी. शादी के बाद अमित की व्यस्तता के कारण वह प्राची के पास जा ही नहीं पाई थी. प्राची ही एक बार आ गई थी उस से मिलने. मातापिता तो थे नहीं, इसलिए दोनों बहनें ही एकदूसरे का सहारा थीं. कुछ दिनों पहले फोन पर प्राची ने समता से कहा था कि इस बार अपने बच्चों के स्कूल की छुट्टियों में वह कहीं नहीं जाएगी और समता को उस के पास आना ही पड़ेगा.

समता और चिंकू को लखनऊ छोड़ अमित कल ही दिल्ली वापस आया था. वह गुड़गांव में एक जरमन एमएनसी में मैनेजर के पद पर था. उसे कंपनी का मैनेजमैंट संभालना था, इसलिए वह लखनऊ रुक नहीं पाया और जल्द ही वापस दिल्ली आ गया. घर पहुंच कर उस ने जब समता को फोन किया था तो चिंकू ने समता के हाथ से मोबाइल छीन लिया था. उस की नन्हीं सी ‘एलो’ सुन कर रोमरोम खिल उठा था अमित का. प्यार से उसे ‘लव यू बेटा’ कह कर वह मुसकरा दिया था. चिंकू ने भी अपनी तोतली भाषा में ‘लब्बू पापा’ कह कर जवाब दे दिया था. आखिरी बार अमित ने तभी आवाज सुनी थी चिंकू की. और अब, वह कभी चिंकू की आवाज नहीं सुन पाएगा. कैसे हो गया यह सब.

दुख में डूबा अमित समता के पास जल्दी ही पहुंचना चाहता था. इसलिए उस ने बिना देरी किए फ्लाइट का टिकट बुक करवा लिया और लखनऊ के लिए रवाना हो गया.

अगले दिन ही वह समता को ले कर घर आ गया. उन के घर पहुंचते ही सुलक्षणा फूटफूट कर रोने लगी. अमित मां को कैसे सांत्वना देता, वह तो स्वयं ही टूट गया था. समता चुपचाप जा कर एक कोने में गुमसुम सी हो कर बैठ गई. उस की तो जैसे सोचनेसमझने की शक्ति ही चली गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. वह लोगों के साथ घुलनामिलना पसंद करती थी. लेकिन अब न जाने उस की दुनिया ही लुट गई हो.

धीरेधीरे पड़ोसी एकत्र होने लगे. चिंकू के इस तरह अचानक मौत के मुंह में जाने से सब बेहद दुखी थे.

‘‘कैसा लग रहा होगा समता को. खुद स्विमिंग की चैंपियन थी, अपने कालेज में… और बेटे की छोटी सी टंकी में डूब कर मौत,’’ समता की पुरानी सहेली वंदना दुखी स्वर में बोली.

‘‘बच्चे जब इकट्ठे होते हैं, मनमानी भी तो बहुत करने लगते हैं,’’ ठंडी आह भरते हुए सामने के मकान में रहने वाले मृदुल बोले.

‘‘हम लोग भी तो एकदूसरे में कभीकभी इतना खो जाते हैं कि बच्चों की सुध लेना ही भूल जाते हैं,’’ समता के पड़ोस में रहने वाली मनोविज्ञान की अध्यापिका, मृदुल को जवाब देने के अंदाज में बोल उठी.

‘‘असली बात तो यह है कि मौत के आगे आज तक किसी की नहीं चली. बाद में बस अफसोस ही तो कर सकते हैं. इस के सिवा कुछ नहीं,’’ एक बुजुर्ग महिला के कहने पर सभी कुछ देर के लिए मौन हो गए.

रिश्तेदारों को जब इस दुर्घटना के विषय में पता लगा तो वे प्राची से जानना चाह रहे थे कि आखिर यह सब हुआ कैसे? शोक में डूबी प्राची स्वयं को कुसूरवार समझ रही थी. न ही वह बच्चों को छत पर जाने देती और न ही यह दुर्घटना घटती. क्यों वह समता के साथ बातों में इतनी मशगूल हो गई कि छत पर खेल रहे बच्चों को झांक कर भी नहीं देखा. उस के बच्चे भी तो छोटे ही हैं. बेटी सौम्या 7 वर्ष की और बेटा सार्थक 5 वर्ष का. तभी तो वे समझ ही न पाए कि पानी की टंकी में गिरने के बाद चिंकू हाथपैर मार कर खेल नहीं रहा, बल्कि छटपटा रहा है. खेलखेल में ही क्या से क्या हो गया.

छत के फर्श पर रखी पानी की टंकी का ढक्कन खोल, प्राची के बच्चे उस में हाथ डाल कर मस्ती कर रहे थे. चिंकू ने भी उन की नकल करनी चाही, किंतु वह छोटा था और जब उचक कर उस ने पानी में दोनों हाथ डालने की कोशिश की तो उस का संतुलन बिगड़ गया और अपने को संभाल न पाने के कारण टंकी में ही गिर गया.

प्राची और समता के तब होश उड़ गए थे जब सौम्या ने नीचे आ कर कहा था, ‘‘चिंकू, बहुत देर से पानी में  है, आप निकालो बाहर’’, बेतहाशा दौड़ते हुए वे दोनों छत पर पहुंचीं. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अपनी बहन समता के दुख में दुखी प्राची के पास आंसुओं के सिवा कुछ नहीं था.

पड़ोसी और रिश्तेदारों का अमित के घर आनाजाना लगातार जारी था. सब की नम आंखें हृदय का दुख व्यक्त कर पा रही थीं. मन को हलका करने के लिए एकदूसरे से बातें भी कर रहे थे वे. किंतु समता सब से दूर बैठी थी. जब कोई पास जा कर उस से बात करना शुरू करता तो वह अपना चेहरा दूसरी ओर मोड़ लेती. न आंखों में आंसू थे और न ही चेहरे पर कोई भाव. चिंकू का नाम सुनते ही वह कानों पर हाथ रख लेती और सब की बातों को अनसुना कर देती थी.

सब की यही राय थी कि समता को रोना चाहिए, ताकि उस का मन हलका हो पाए और वह भी सब के साथ अपना दुख साझा कर पाए, पर समता तो भावहीन चेहरा लिए एकटक शून्य में ताकती रहती थी.

समता की मानसिक स्थिति को देखते हुए अमित ने मनोचिकित्सक से सलाह ली. मनोचिकित्सक ने बताया कि ऐसे समय में कई बार व्यक्ति की चेतना दुख को स्वीकार नहीं करना चाहती, किंतु अवचेतन मन जानता है कि कुछ बुरा घट चुका है. सो, व्यक्ति का मस्तिष्क कुछ भी सोचना नहीं चाहता. समता के विषय में उस ने कहा कि यदि कुछ और दिनों तक उस की यही हालत रही तो उस के दिमाग के सोचनेसमझने की शक्ति हमेशा के लिए खत्म हो सकती है. चिकित्सक ने सलाह दी कि समता को चिंकू के कपड़े दिखा कर रुलाने का प्रयास करना चाहिए.

डाक्टर की सलाह अनुसार, अमित ने समता को चिंकू के कपड़े, खिलौने और फोटो दिखाए. चिंकू के विषय में जानबूझ कर बातें भी करने लगा वह. सुलक्षणा ने भी चिंकू की शैतानियों के किस्से समता को याद दिलाए और उन शैतानियों का नतीजा ही चिंकू की मौत का कारण बना, कह कर रुलाना भी चाहा पर समता पर किसी प्रकार का असर होता दिखाई नहीं दिया.

सुलक्षणा ने अमित को सलाह दी कि सब साथ में अपने गांव चलते हैं. वहां जा कर कुछ दिन इस वातावरण से दूर होने पर समता शायद सबकुछ नए सिरे से सोचने लगे और चिंकू की अनुपस्थिति खलने लगे उसे. संभव है फिर उस के मन का गुबार आंसुओं में निकल जाए. मां की बात मान अमित समता और सुलक्षणा के साथ कुछ दिनों के लिए गांव चला गया.

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के नजदीक ही गांव में उन का बड़ा सा पुश्तैनी मकान था. पास ही आम के बगीचे भी थे. उन सब की देखभाल रणजीत किया करता था. रणजीत बचपन से ही उन के परिवार के साथ जुड़ा हुआ था. यों तो उस की उम्र 40 वर्ष के ऊपर थी, पर परिवार के नाम पर पत्नी रज्जो और 4 वर्षीय इकलौटा बेटा सूरज ही थे. सूरज को उस ने पास के स्कूल में दाखिल करवा दिया था. विवाह के लगभग 20 वर्षों बाद सूरज का जन्म हुआ था. रज्जो और रणजीत चाहते थे कि उन की आंखों का तारा सूरज खूब पढ़ेलिखे और बड़ा हो कर कोई अच्छी नौकरी करे.

अमित का परिवार गांव आ रहा है, यह सुन कर रणजीत ने उन के आने की तैयारी शुरू कर दी. घर खूब साफसुथरा कर, बाजार जा कर जरूरी सामान ले आया. चिंकू के विषय में जान कर वह भी बेहद दुखी था.

गांव पहुंच कर अमित और सुलक्षणा का मन तो कुछ हलका हुआ, पर समता की भावशून्यता वहां भी कम न हुई. अमित उसे इधरउधर ले कर जाता. सुलक्षणा भी गांव की पुरानी बातें बता कर उस का ध्यान दूसरी ओर लगाने का प्रयास करती, पर समता तो जैसे जड़ हो गई थी. न वह ठीक से खातीपीती और न ही ज्यादा कुछ बोलती थी.

उस दिन अमित सुलक्षणा के साथ घर के नजदीक बने तालाब के किनारे टहल रहा था. समता घास पर चुपचाप बैठी थी. कुछ देर बाद पास के खाली मैदान पर बच्चे आ कर क्रिकेट खेलने लगे. उन के पास जो गेंद थी, वह प्लास्टिक की थी, इसलिए अमित ने समता को वहां से हटाना आवश्यक नहीं समझा.

बच्चे गेंद पर तेजी से बल्ला मार, उसे दूर फेंकने का प्रयास कर रहे थे, ताकि गेंद दूर तक जाए और उन्हें अधिक से अधिक रन बनाने का अवसर मिले. उन बच्चों की टोली में एक छोटा सा बच्चा हर बार फुरती से जा कर गेंद ले कर आ रहा था. छोटा होने के कारण बच्चों ने उसे बैंटिंग या बौलिंग न दे कर, फेंकी हुई गेंद वापस ला कर देने का काम सौंपा हुआ था.

इस बार एक बच्चे ने कुछ ज्यादा ही तेजी से बल्ला चला दिया और गेंद तीव्र गति से लुढ़कने लगी. छोटा बच्चा भागता हुआ गेंद को पकड़ने की कोशिश करता रहा, पर गेंद तो खूब तेजी से लुढ़कते हुए तालाब में गिर कर ही रुकी. प्लास्टिक की होने के कारण वह गेंद पानी पर तैरने लगी. गेंद तालाब से निकालने के लिए उस बच्चे ने जमीन पर पड़ी पेड़ की पतली सी टहनी उठाई और गेंद को टहनी से खिसका कर करीब लाने की कोशिश करने लगा. पेड़ की डंडी गेंद तक तो पहुंच रही थी, पर इतनी बड़ी नहीं थी कि गेंद को आगे की ओर धकेल पाए. इधर बच्चा कोशिश कर रहा था, उधर साथी ‘जल्दीजल्दी’ का शोर मचाए हुए थे. गेंद को तेजी से आगे की ओर धकेलने के लिए उस पर डंडी मारते हुए अचानक ही वह बच्चा तालाब में गिर गया.

इस से पहले कि वहां खेल रहे बच्चे कुछ समझ पाते, समता तेजी से दौड़ती हुई वहां पहुंची और तालाब में कूद पड़ी. बच्चे को झटके से पकड़ कर उस ने गोदी में उठा लिया. अमित और सुलक्षणा दूर से यह दृश्य देख रहे थे. अमित भी भागता हुआ वहां पहुंच गया और तालाब के किनारे बैठ कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. बच्चे को शीघ्र ही उस ने अपने घुटने पर पेट के बल लिटा दिया, ताकि थोड़ा सा पानी भी अंदर गया हो तो बाहर निकल सके. तब तक सभी बच्चे चिल्लाते हुए वहां पहुंच गए. शोर सुन कर आसपास के घरों से भी लोग वहां इकट्ठे होने लगे.

तालाब से बाहर निकलते ही समता अमित के पास आई और उस बच्चे को सकुशल देख अपने गले लगा कर फूटफूट कर रोने लगी. तभी भीड़ को चीरता हुआ रणजीत वहां पहुंच गया. अपने बेटे सूरज को मौत के मुंह से निकला हुआ देख उस की जान में जान आई. गदगद हो कर वह समता से बोला, ‘‘आज आप ने नया जीवन दिया है मेरे बच्चे को. कितने सालों बाद संतान का मुंह देखा था. अगर आज इसे कुछ हो जाता तो… आप का एहसान तो मैं इस जीवन में कभी नहीं चुका पाऊंगा.’’

भावविभोर समता बाली, ‘‘एहसान कैसा, भैया? मुझे तो लग रहा है जैसे मैं ने अपने चिंकू को बचा लिया हो.’’ और सूरज को गले लगा कर समता फिर से रोने लगी.

घर वापस आते हुए सूरज का हाथ थामे वह उस से बातें कर रही थी. समता में आए इस परिवर्तन से अमित और सुलक्षणा बेहद खुश थे. कुछ दिन गांव में गुजारने के बाद वे तीनों वापस दिल्ली लौट आए.

घर वापस आ कर समता नया जीवन जीने को तैयार थी. अनजाने में ही उसे यह एहसास हो गया था कि जिंदगी में गम और खुशी दोनों को ही गले लगाना पड़ता है.

उस के अवचेतन मन ने उसे समझा ही दिया था कि सुख और दुख के तानेबाने को गूंथ कर ही जिंदगी की बुनाई होती है. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: याददाश्त – भूलने की आदत से क्यों छूटकारा नहीं मिलता

Family Story In Hindi: याददाश्त इतनी कमजोर नहीं थी कि घर भूल जाऊं. पत्नीबच्चों को भूल जाऊं. जैसा कि लोग कहते थे कि यदि भूलने की आदत है तो खानापीना, सोना, घनिष्ठ संबंध क्यों नहीं भूल जाते. अब मैं क्या करूं यदि रोजमर्रा की चीजें भी दिमाग से निकल जाती थीं. तो वहीं ऐसी बहुत सारी छोटीछोटी बातें हैं जो मैं नहीं भूलता था और ऐसी भी बहुत सी चीजें, बातें थीं जो मैं भूल जाता था और बहुत कोशिश करने के बाद भी याद नहीं आती थीं और याद करने की कोशिश में दिमाग लड़खड़ा जाता.

खुद पर गुस्सा भी आता. तलाश में घर का कोनाकोना छान मारता. समय नष्ट होता. खूब हलकान, परेशान होता और जब चीज मिलती तो ऐसी जगह मिलती कि लगता, अरे, यहां रखी थी. हां, यहीं तो रखी थी. पहले भी इस जगह तलाश लिया था, तब क्यों नजर नहीं आई? उफ, यह कैसी आदत है भूलने की. इसे जल्दबाजी कहें, लापरवाही कहें या क्या कहें? अभी इतनी भी उम्र नहीं हुई थी कि याद न रहे.

कल बाजार में एक व्यक्ति मिला, जिस ने गर्मजोशी से मुझ से मुलाकात की और वह पिछली बहुत सी बातें करता रहा और मैं यही सोचता रहा कि कौन है यह? मैं उस की हां में हां मिला कर खिसकने का बहाना ढूंढ़ रहा था. मैं यह भी नहीं कह पा रहा था, उस का अपनापन देख कर कि भई माफ करना मैं ने आप को पहचाना नहीं. हालांकि, इतना मैं समझ रहा था कि इधर पांचसात सालों में मेरी इस व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. उस के जाने के बाद मुझे अपनी याददाश्त पर बहुत गुस्सा आया. मैं सोचता रहा, दिमाग पर जोर देता रहा कि आखिर कौन था यह? लेकिन दिमाग कुछ भी नहीं पकड़ पा रहा था.

घर से जब बाहर निकलता तो कुछ न कुछ लाना भूल जाता था. यह भी समझ में आता था कि कुछ भूल रहा हूं लेकिन  क्या? यह पकड़ में नहीं आता था. अब मैं कागज पर लिख कर ले जाने लगा था कि क्याक्या खरीदना है बाजार से. इस बार मैं तैयार हो कर घर से बाहर निकला और बाहर निकलते ही ध्यान आया कि चश्मा तो पहना ही नहीं है. घर के अंदर गया तो जहां चश्मा रखता था, वहां चश्मा नहीं था. तो कहां गया चश्मा?

इस चक्कर में पूरा घर छान मारा. पत्नी को परेशान कर दिया. उसे उलाहना देते हुए कहा, ‘‘मेरी चीजें जगह पर क्यों नहीं मिलतीं? यहीं तो रखता था चश्मा. कहां गया?’’

पत्नी भी मेरे साथ चश्मा तलाश करने लगी और कहने भी लगी गुस्से में, ‘‘खुद ही कहीं रख कर भूल गए होगे. याद करो, कहां रखा था?’’

‘‘वहीं रखा था जहां रखता हूं हमेशा.’’

‘‘तो कहां गया?’’

‘‘मुझे पता होता, तो तुम से क्यों पूछता?’’

फिर हमारी गरमागरम बहस के साथ   हम दोनों ही पूरा घर छानने लगे चश्मे की तलाश में. काफी देर तलाशते रहे. लेकिन चश्मा कहीं नहीं मिल रहा था. मैं याद करने की कोशिश भी कर रहा था कि मैं ने यदि चश्मे को उस के नियत स्थान से उठाया था तो फिर कहांकहां रख सकता था? जैसे कि मैं ने चश्मा उठाया. उस के कांच साफ किए. फिर गाड़ी की चाबी उठाई. इस बीच, मैं ने आईने के सामने जा कर कंघी की. फिर पानी पिया, फिर…

तो मैं सभी संभावित स्थानों पर गया. जैसे ड्रैसिंग टेबल के पास, फ्रिज के पास वगैरह. लेकिन चश्मा नहीं मिला. मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर चश्मा गया कहां? उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया. याद क्यों नहीं आ रहा है?

चश्मे की आदत सी पड़ गई थी. न भी पहनूं तो जेब में रख लेता था बाजार जाते समय. जैसे घड़ी का पहनना होता था. मोबाइल रखना होता था. बहुत जरूरी न होते भी जरूरी होना. न रखने पर लगता था कि जैसे कुछ जरूरी सामान छूट गया हो. खालीखाली सा लगता. आदत की बात है.

चश्मा तलाश रहा हूं. पत्नी अपने काम में लगी हुई है. उस ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि नहीं मिल रहा तो परेशान मत हो. घर में होगा, मिल जाएगा. बिना चश्मे के बाजार जा सकते हो. मुझे उस की बात ठीक लगी. लेकिन दिमाग में यही चल रहा था कि आखिर चश्मा कहां रख कर भूल गया. तभी कोचिंग से बेटा घर आया. मेरा चेहरा देख कर समझ गया. उस ने पूछा, ‘‘क्या नहीं मिल रहा, अब?’’

उस की बात पर मुझे गुस्सा आ गया. ‘अब’ लगाने का क्या मतलब हुआ? यही कि मैं हमेशा कुछ न कुछ भूल जाता हूं. अकसर तो भूल जाता हूं, लेकिन हमेशा… यह तो हद हो गई. खुद तो कोचिंग के नाम पर व्यर्थ रुपया खर्च कर रहा है. कोचिंग ही जाना था तो स्कूल की क्या जरूरत थी? फैशन सा हो गया है आजकल कोचिंग जाना. कोचिंग जा कर छात्र साबित करते हैं कि वे बहुत पढ़ाकू हैं. दिनभर स्कूल, फिर कोचिंग. मैं इसे कमजोर दिमाग मानता हूं. जैसे पहले कमजोर को ट्यूशन दी जाती थी. लेकिन अब जमाना बदल गया है. कोचिंग जाने वालों को पढ़ाकू माना जाता है. मैं ने गुस्से से बेटे की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘जा कर अपना काम करो.’’ बेटे तो फिर बेटे ही होते हैं. तुरंत मुंह घुमा कर अंदर चला गया और मैं बिना चश्मे के बाहर निकल गया.

किराना दुकानदार को सामान की लिस्ट दी. वह सामान निकालता रहा. मैं इधरउधर सड़कों पर नजर घुमाता रहा.

दुकानदार आधा सामान दुकान के बाहर रखे हुए हैं.

तंबाकू खाते हुए मुझे भी थूकने की इच्छा हुई. मैं ने काफी देर पीक को मुंह में रखा और नाली, सड़क का किनारा तलाशता रहा. अंत में मुझे भी सड़क पर ही थूकना पड़ा. दुकानदार ने बिल देते हुए कहा, ‘‘चैक कर लीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई, आज मैं अपना चश्मा लाना भूल गया.’’ उस ने मेरे चेहरे पर इस तरह दृष्टि डाली जैसे मैं ने शराब पी रखी हो. फिर कहा, ‘‘लगा तो है.’’ मेरा हाथ आंखों पर गया और… अरे, यह तो पहले से ही लगा हुआ था और मैं पूरे घर में तलाश रहा था. लेकिन मुझे समझ क्यों नहीं आया. शायद आदत पड़ जाने पर उस चीज का भार महसूस नहीं होता.

पत्नी तो खैर मेरे कहने पर ढूंढ़ने लगी थी. उसे विश्वास था कि नहीं मिल रहा होगा. लेकिन बेटे को तो पता होगा कि चश्मा लगाया हुआ है मैं ने. लेकिन मैं ने कहां बताया था गुस्से में कि चश्मा नहीं मिल रहा है. बताता तो शायद वह बता देता और इतनी मानसिक यंत्रणा न झेलनी पड़ती. न ही दुकानदार के सामने शर्मिंदा होना पड़ता. बच्चों से प्रेम से ही बात करनी चाहिए. वह पूछता. मैं बताता कि चश्मा नहीं मिल रहा है तो वह बता देता.

मांबाप की डांट या गुस्से में बात करने से बच्चे और चिढ़ जाते हैं. नए खून नए मस्तिष्क पर भरोसा करना सीखना चाहिए. उन के बाप ही न बने रहना चाहिए. मित्र भी बन जाना चाहिए जवान होते बच्चों के पिता को.

बेटे को पता तो चल ही गया होगा कि चश्मा तलाश रहा था मैं और अब तक उस ने अपनी मां को बता भी दिया होगा कि चश्मा पिताजी पहने हुए थे. दोनों मांबेटे हंस रहे होंगे मुझ पर. अब भविष्य में कोई चीज गुम होने पर शायद उतनी संजीदगी से तलाशने में मदद भी न करें.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मुझे समझ में क्यों नहीं आया कि मैं चश्मा लगाए हुए था.

अब दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था कि नियत स्थान से चश्मा उठा कर मैं ने लगाया कब था? तैयार होने के बाद. गाड़ी की चाबी उठाने के बाद या पानी पीने के बाद या इस सब के पहले या उस से भी बहुत पहले. कहीं ऐसा तो नहीं कि सुबह समाचारपत्र पढ़ते समय.

यह भी संभव है कि रात में पहन कर ही सो गया था. दिमाग पर काफी जोर डालने के बाद भी पक्का नहीं कर पाया कि चश्मा लगाया कब था और मैं अभी भी उसी सोच में डूबा हुआ था. और यह सोच तब तक नहीं निकलने वाली थी जब तक कोई दूसरी चीज न मिलने पर उस की खोज में दिमाग न उलझे. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: ख्वाहिशें

 Hindi Family Story, लेखक – मनोज शर्मा

जो मुझे ठीक लगता है वही ठीक है, वही सच है. जिंदगी मेरी है, मैं जैसे चाहे जियूं, किसी का क्या जाता है. फिर यह सब मुझे पिछली जिंदगी से बेहतर लगता है. यों घिसटघिसट कर जीने से तो अच्छा है कि सोसाइटी में कुछ बन कर जिया जाए.

कल तक कोई साथ नहीं था, आज चार लोग साथ हैं. हर आदमी को पैसे की भूख है और शायद यही सच है, क्योंकि पैसे के बिना कुछ नहीं, कुछ भी नहीं. एक दिन भी नहीं जिया जा सकता. हां सच में, एक दिन भी नहीं.

जसपाल ने सिगरेट के धुएं को हवा में फेंकते हुए गाड़ी का दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘ओह, कम औन गौरी…’’

गौरी ने शरारतभरी नजरों से जसपाल को देखा और उस के बगल में बैठ गई. कार धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़ने लगी. साइड मिरर में गौरी ने खुद को निहारा. वह लाल फूलों वाली साड़ी में आज काफी खूबसूरत दिख रही थी.

‘‘अच्छा गौरी, कल तो आ रही हो न?’’ जसपाल ने गौरी की आंखों में ?ांकते हुए पूछा.

‘‘वैसे, कल तुम कर क्या रही हो?’’ जसपाल ने हौर्न देते हुए उस से दोबारा पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं. पर कल रितु के स्कूल जाना है… वह पैरेंट मीटिंग हैं न कल स्कूल में,’’ गौरी ने बालों के जूड़े को ठीक करते हुए जवाब दिया.

गौरी का पूरा जिस्म मीठी खुशबू से महक रहा था. जसपाल उसे मुसकराते हुए देखता रहा. गाड़ी स्पीड ब्रेकर पर थोड़ा उछली. जसपाल ने गियर बदलते हुए गाड़ी को दाईं ओर मोड़ दिया. गौरी का बदन हलका सा ठिठका.

सड़क पर अलसाई शाम की उदासी के बीच लोग दफ्तरों से घर लौट रहे थे. कुछ छोटी गाडि़यां, मोटरें और सड़क के किनारे पैदल चलते लोग.

इन पैदल चलने वाले लोगों की भी क्या जिंदगी है, जसपाल ने उन की तरफ देख कर तेज हौर्न दिया और भोंड़ी सी हंसी हंस कर उस ने गाड़ी को सड़क के किनारे पार्क किया.

जसपाल सिगरेट का पैकेट खरीदने के लिए बाहर निकला. दरवाजा बंद होते ही गाड़ी में अकेली गौरी मिरर में खुद को बड़े प्यार से देखती रही. उस ने महसूस किया कि आज वह सच में ही खूबसूरत दिख रही है. उस ने बाईं कलाई में बंधी घड़ी में समय देखा, साढ़े 8 हो चुके थे.

गौरी ने बंद गाड़ी के काले शीशों में से बाहर देखा. जसपाल सिगरेट की टपरी पर बतिया रहा था. गौरी उसे पीली रोशनी में बाहर देखती रही. उसे लगा कि असलियत में यही जिंदगी है. गाड़ी, बंगला और सभी सुखसुविधाएं. अब कोई दुखदर्द नहीं. न घर की चिंता, न खानेपीने की, बस मौज ही मौज. शायद यही जिंदगी है और यही सचाई है.

4 साल पहले तक जैसे नरक में जी रही थी गौरी. वह मुफलिसी भरी जिंदगी जहां दो रोटियां भी वक्त पर नसीब नहीं होती थीं. घर वालों ने नीरज में क्या देखा था मेरे लिए, जो उस के साथ मुझे ब्याह दिया था. जसपाल की काली आकृति शीशों में हिलडुल रही थी.

नीरज अपने साथ एक गरीब परिवार लिए था, जिस में उस की बूढ़ी मां और विधवा बहन थी, जो पुराने सिद्धांतों पर जीते थे. घर के नाम पर वह टूटाफूटा कोठरा था, जहां पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता था. पहले मां मर गई और फिर खुद नीरज भी और बहन भी गौरी को ऐसे हालात में तनहा छोड़ कर भाग गई.

उस घर में गौरी के सारे सपने चकनाचूर होते गए. काश, नीरज से शादी न हुई होती तो…

गौरी ने फ्रंट मिरर की लाइट जला कर खुद को देखा और वह अपने कानों में पहनी बड़ीबड़ी बालियों को देखने लगी. हलकी पीली लाइट में बालियां चमक रही थीं.

रितु का जन्म न हुआ होता तो बात दूसरी ही होती. गौरी ने अपने नरम गालों पर उंगली फिराते हुए बाहर देखा. जसपाल वापस लौट रहा था. वह उसे ऐसे देख रही थी, जैसे जसपाल ही उस के लिए सबकुछ हो.

जसपाल ने दरवाजा खोला. उस की आंखों में मीठी चमक थी. गौरी हलका सा खिसक कर बाहर की ओर देखने लगी. स्ट्रीट लाइट की सड़क पर तेज चमक थी.

एक पियक्कड़ गाड़ी के पास से गुजरा. वह शीशे को बजाते हुए कुछ बोलता रहा.

जसपाल ने उसे गुस्से से देखा और गाड़ी दौड़ा दी. पियक्कड़ कुछ देर गाड़ी के पीछे भागता रह गया. गाड़ी चली गई. आसपास की सब चीजें और वह पियक्कड़, जो बाहर सड़क पर दिखाई दे रहा थे, पलभर में ही सब ओ?ाल होते गए.

जसपाल ने गौरी को गंभीरता से देखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ गौरी, तुम इतनी चुप क्यों हो? कम औन डियर. यही जिंदगी है. बदलाव का नाम ही जिंदगी है. जिंदगी में तुम्हारी अगर कोई भी ख्वाहिश, हो तो मुझे बताओ.

‘‘मैं ने तुम्हें नीरज के चले जाने के बाद कहा था न कि तुम अगर अच्छी जिंदगी और ऐश चाहती हो, तो रहनसहन और खानपान में थोड़ा बदलाव करो और मेरा साथ दो. फिर देखो, असली जिंदगी जीने का मजा.’’

गौरी गंभीर थी. वह चुप ही रही.

‘‘अरे, तुम कहां फिर पुराने दिनों में चली जाती हो. अच्छा, सचसच बताओ कि यह जिंदगी बेहतर है या वह, जिसे तुम ने 4 साल पहले जिया है? आज तुम समाज में चाहे एक विधवा हो, पर क्या यह जिंदगी उस जिंदगी से ज्यादा मजेदार नहीं है? सफेद साड़ी में जिंदगी इतनी बड़ी और नीरस दिखाई देती. तुम तो जानती ही हो कि मेरा तो जिंदगी में एक ही उसूल है, ख्वाहिशों को पूरा करना सीखो, चाहे जिस भी रास्ते से, वरना जीना छोड़ दो.

‘‘आज तुम्हारे पास नौकरचाकर और रितु के लिए आया है. अपना बंगला है. न किराया देने की टैंशन.

‘‘तुम्हारी सारी परेशानियां अब मेरी हैं. फिर जवानी जीने की चीज है, यों ही रो कर गंवा देने की नहीं. जितनी ऐश अब है तुम्हारी, शायद ही इस की कल्पना भी तुम कर पाती. और सच बताऊं तो तुम्हारा साथ मुझे और हम सब को खूब भाता है. फिर कुदरत ने एक ही तो जिंदगी दी है, वह भी रोधो कर जीनी पड़े, तो उस का क्या फायदा. ऐसे जीने से तो मरना ही अच्छा. सच बताऊं तो अच्छा ही हुआ, जो नीरज…’’ जसपाल बोलतेबोलते चुप हो गया और गौरी के चेहरे को देखता रहा.

गौरी भी जसपाल की नशीली नीली आंखों को देखती रही. जसपाल पैसे वाला रईस है, जिस के लिए जिंदगी केवल और केवल ऐश करने के लिए है. यों तिलतिल कर खत्म करने के लिए नहीं. लंबा और गठीला बदन, आंखों पर काला चश्मा, सिगरेट का शौकीन.

नीरज एक वक्त जसपाल के कारखाने में काम करता था. 15-20 हजार रुपए की सैलरी थी उस की. इतने रुपए में क्या ऐश की जा सकती है, बस जी ही लिया जाए, वही काफी है.

गौरी ने नीरज के जीतेजी जसपाल को 2-3 बार ही देखा था. जसपाल तेजतर्रार और आकर्षक मर्द है, जिसे जीना आता है. उस की ही बदौलत आज गौरी के पास उसी की कंपनी में अच्छी नौकरी है, घर है और सच कहें तो ऐश ही ऐश है.

‘‘कहां जा रहे हो, घर नहीं चलना क्या? जानते हो, पौने 9 बज चुके हैं,’’ गौरी ने जसपाल को देखते हुए पूछा, ‘‘और फिर रितु को भी तो देखना है.’’

‘‘अरे, चली जाना. घर पर ही तो जाना है. बस आधा घंटा और… तुम्हें अपना नया बंगला दिखाना है,’’ जसपाल की आंखों में नशीली शरारत थी.

‘‘अरे, चलो भी तो. मैं हूं न तुम्हारे साथ. तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे पहली बार जा रही हो,’’ और वह एक आंख बंद कर मुसकराने लगा.

जसपाल की गाड़ी भीनीभीनी महक से भरी थी. गौरी ने गाड़ी के भीतर के कमजोर अंधेरे में उस की नीली आंखों को देखा, जो बारबार उसे ही देख रही थीं. वह पलभर में उस के इशारे को सम?ा गई.

‘‘ओके, रितु की आया सावित्री को फोन लगाओ,’’ गौरी बोली.

जसपाल ने जेब से अपना मोबाइल निकाला और गौरी के घर पर नंबर मिलाया.

दूसरी ओर से आया सावित्री की आवाज आई, ‘हैलो..’

‘‘हां सावित्री, रितु ने खाना खाया या नहीं?’’ गौरी इस ओर से फोन पर

बोलने लगी.

‘हां मेमसाब, रितु बिटिया ने खाना खा लिया है. बस अभीअभी सोई है. क्या जगाऊं?’ सावित्री पूछने लगी.

‘‘नहींनहीं, कोई जरूरत नहीं… ऐसा करो, तुम भी कुछ खा कर अभी वहीं रुको. मैं अभी जसपाल साहब के साथ हूं, थोड़ा टाइम और लगेगा. और हां, अगर इस बीच रितु उठ जाए, तो बोलना कि मैं 10 बजे तक पहुंच जाऊंगी. तुम संभाल लेना प्लीज उसे.

‘‘अच्छा, मैं अभी बहुत बिजी हूं. फोन रखती हूं,’’ कह कर उस ने फोन कट कर दिया.

जसपाल कंधे उचका कर मुसकराने लगा. यह जसपाल के लिए कोई नई बात नहीं थी और अब शायद गौरी के लिए भी. अब उन्हें इस जिंदगी में ज्यादा मजा आता है.

‘‘कहो, खुश तो हो न गौरी?’’ जसपाल ने गौरी की कलाई को छूते हुए पूछा.

गौरी चुप रही, पर उस के होंठों पर नरम हंसी थी, जिस का मतलब जसपाल खूब समझता था. गाड़ी सड़क पर दौड़ती रही. जसपाल ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाते हुए गौरी की ओर देखा और कहा, ‘‘चलो, तुम्हें आज एक और सरप्राइज देता हूं…’’

गौरी सरप्राइज की बात सुन कर मंदमंद मुसकराने लगी मानो उस की एक और ख्वाहिश आज पूरी होने वाली हो, क्योंकि जब भी जसपाल ने कोई सरप्राइज दिया, उसे जिंदगी में कोई न कोई नई सौगात ही मिली है.

फिर इस शरीर का क्या है, अगर इस के सहारे कुछ मिलता भी है, तो गलत ही क्या है. जिंदगी में ऐसे दिन फिर कहां… आज जवानी है तो सब मिल रहा है, कल जब शरीर ही काम का नहीं रहेगा, फिर कौन साथ होगा. न जसपाल और न दूसरे सब. ओ जसपाल कितने अच्छे हैं, सच में,आज गौरी नई कार पा कर बहुत खुश थी. यह शौर्टकट सच में उसे खूब भाने लगा था.

10 बजे गौरी अपनी नई गाड़ी में घर पहुंची. तेज ठंडी हवा में उस के उलझे बिखरे बाल कंधे की ओर ढुलक रहे थे. आज उस ने फिर से वाइन भी पी थी. वह दरवाजे पर पहुंची. उस ने अंगड़ाई लेते हुए सावित्री की तरफ देखा. सावित्री का पीला और उदास चेहरा गौरी को देखता रहा.

‘‘कहो सावित्री, कुछ कहना चाहती हो?’’

‘‘मेमसाब, कुछ पैसे चाहिए,’’ कहते हुए वह खामोश हो गई और घर के बाहर फैले सन्नाटे को देखने लगी.

सावित्री क्योंकि इस महीने की सैलरी ले चुकी थी, इसलिए उस की पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

‘‘सैलरी तो तुम ले चुकी हो न,’’ गौरी ने सावित्री की आंखों में ?ांकते

हुए कहा.

‘‘जी मेमसाब, मेरा मरद बहुत बीमार है. अब उस की नौकरी भी छूट गई है. केवल मैं ही थोड़ा गुजरबसर कर रही हूं,’’ उस की आवाज में गहरा दुख था.

‘‘अच्छा, कितने पैसे चाहिए?’’ गौरी ने सावित्री के कंधे पर हाथ रख कर पूछा.

‘‘बस, 1,000 रुपए दे दीजिए, मैं बहुत जल्दी आप को लौटा दूंगी. आप यकीन कीजिए, उन के इलाज के लिए चाहिए… और हां, मैं कल केवल शाम को ही आ सकूंगी. मुझे कल उन के ऐक्सरे करवाने हैं,’’ वह असहाय सी हो कर बोली.

‘‘ठीक है. अब तुम जाओ और ये लो 5,000 रुपए,’’ गौरी ने नोटों की एक गड्डी से कुछ नोट निकाल कर सावित्री की ओर बढ़ा दिए.

‘‘नहीं मेमसाब, 1,000 रुपए ही काफी हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, अभी तुम रख लो, तुम्हें जरूरत होगी,’’ गौरी सावित्री की रोती आंखों को देखती रही.

सावित्री कुछ देर रुकी, फिर वह नोट गिनते हुए वहां से लौट गई.

फोन की घंटी बजी. जसपाल था, ‘कहो डियर, पहुंच गई. ओ सौरी, मैं तो आज बिलकुल ही टूट गया था, पर यकीन करो मजा आ गया.

‘और हां, मेरा सरप्राइज कैसा लगा? गाड़ी को सही से पार्किंग में लगा दिया न? और हां, मैं ने उस का टैंक फुल करवा दिया है. तेल की कोई टैंशन न लेना तुम. कहो तो एक ड्राइवर रखवा दूं तुम्हारे लिए?

‘डियर, तुम यकीन करो, मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूं. अच्छा अभी कामिनी का फोन आ रहा है… रखता हूं,’ फोन कट हो गया था.

गौरी अकेले में सोचते हुए, ‘मैं कितनी खुशनसीब हूं. सबकुछ तो है मेरे पास. बस, एक पति ही तो नहीं. फिर ऐसे पति का मुझे करना ही क्या, जो न ढंग का खिला सके. बिना घर, बिना गाड़ी के भी क्या जिंदगी. आज नीरज नहीं भी है तो क्या हुआ, बाकी सबकुछ तो है मेरे पास…’ और वह अकेले में पागलों की तरह हंसने लगी.

‘मुझे लगता है कि हमें जिंदगी की प्राथमिकताओं को समझना चाहिए. जो हमारे लिए जरूरी है और जिस काम से हमें मजा मिलता है, संतुष्टि मिलती है, हकीकत में वही सच्ची जिंदगी है, बाकी सब बेकार है.

‘आज मैं बड़ी सोसाइटी में जी रही हूं. यह मेरी जिंदगी है, केवल मेरी. मैं जैसे चाहे जीयूं,’ उस ने सिगरेट जलाई और बालकनी में जा कर दूर अंधेरे में देखती रही, मानो अंधेरे में सब छिप जाता है. इच्छाएं, सपने और ख्वाहिशें भी.

‘आज जिंदगी में जो उजाला है, वह मेरी ही बदौलत है…’ उस ने लंबा कश खींचते हुए आसमान में झिलमिलाते तारों को देखा और सोचने लगी, ‘कितनी चमक है इन तारों में. जो दिखाई दे रहा है, वही चमक रहा है. वैसे तो आसमान में अनगिनत सितारे हैं, पर चमक उन्हीं की नजर आती है, जो चमकना चाहते हैं.

‘जिंदगी में शायद कुछ भी गलत नहीं, केवल सोच या नजरिया ही किसी भी चीज को गलत या सही ठहराता है. आज जो मेरी नजर में सही है, वह मेरे लिए सही है और अगर मैं दूसरों के नजरिए से जीने लगूं, तो सावित्री की तरह जीना होगा.

‘ये गरीब लोग गरीब नहीं, बल्कि पागल हैं, कमजोर हैं, जो जिंदगी की सचाई से कोसों दूर हैं. अगर मैं अपनी जिंदगी में इस तरह का बदलाव न करती, तो शायद मुझे भी सावित्री की तरह दरदर की ठोकरें ही खानी पड़तीं…’

‘‘1,000 रुपए के लिए, केवल 1,000 के लिए…’’ गौरी हंस रही थी और उस की जबान लड़खड़ा रही थी, ‘‘ये लोग अपनी सोच नहीं बदल सकते तो जिएं ऐसे ही नरक में…’’

धीरेधीरे आसपास के बंगलों की लाइट कम होने लगी थी. गौरी पार्किंग में खड़ी सफेद चमचमाती कार को देख कर मंदमंद मुसकरा रही थी, मानो उस की जिंदगी का कोई बड़ा सपना आज पूरा हो गया हो.

नींद गौरी की आंखों से कोसों दूर थी. वह कुछ देर आसमान के तारों को ताकती रही. अंदर कमरे में मखमली गद्दे पर रितु गहरी नींद में सोई हुई थी. गौरी उस के नरम गालों को चूमते हुए उस के पास लेट गई. Hindi Family Story

Comedy Story: वोटर केयर सैंटर में आपका स्वागत है

Comedy Story: एक दिन मेरे मोबाइल फोन पर किसी अनजान नंबर से काल आई. जैसे ही मैं ने काल रिसीव की, दूसरी ओर से आवाज आई, ‘नमस्कार, वोटर केयर सैंटर में आप का स्वागत है.’

वह कंप्यूटराइज्ड आवाज सुन कर मेरे दिमाग के सैरेब्रल हैमिस्फीयर में दबाव बढ़ने लगा. कालर ट्यून, बैंकिंग लोन काल, क्रेडिट कार्ड देने वाले कस्टमर केयर या आधारकार्ड नंबर और ओटीपी मांगने वाले फ्राड काल के बारे में तो सुना था, पर अब यह वोटर केयर सैंटर कौन सी नई बला है.

इसी ऊहापोह में मैं फोन काटने ही वाला था कि तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘चूंकि यह काल जनहित में जारी है, इसलिए पूरी जानकारी लिए बिना कृपया फोन काटने की हिमाकत न करें.’

वह चेतावनी सुन कर मैं थोड़ा हड़क गया और बगैर किसी बाधा के फोन की लाइन को जारी रखा.

‘नमस्कार, हम वोटर केयर हैल्पलाइन से बोल रहे हैं. आप के क्षेत्र में चुनाव की घोषणा हो चुकी है. क्षेत्रीय उम्मीदवार के चयन को सुविधाजनक बनाने के लिए अगर आप उन के चालचलन के बारे में जानना चाहते हैं, तो कृपया 1 दबाएं, वरना 2 दबाएं.’

मैं मन ही मन सोचने लगा, ‘यह कैसा वोटर केयर सैंटर है… पहले तो कस्टमर केयर काल में हिंदी, इंगलिश, बंगला, भोजपुरी वगैरह भाषा के चयन का औप्शन पूछा जाता था…’

तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘आप भाषा चयन को ले कर कतई परेशान न हों. हमें पता है कि आप हिंदी के जानकार हैं. वैसे भी इंगलिश में आप कच्चे हैं और दूसरी क्षेत्रीय भाषा को समझना आप की औकात और ज्ञान से बाहर है. तो एकदूसरे का समय बरबाद किए बिना वोटर केयर प्रक्रिया को जारी रखते हुए अपने क्षेत्रीय उम्मीदवार का चालचलन जानने के लिए कृपया 1 दबाएं, वरना 2 दबाएं.’

वोटर केयर सैंटर वालों की बात सुन कर मैं हैरान रह गया. बहरहाल, मैं ने सवाल पर फोकस किया. चूंकि नेताओं के चालचलन के बारे में बिहार से ब्रह्मांड तक सब को पता है, इसलिए समय की बरबादी से बचने के लिए मैं ने बटन नंबर 2 दबा दिया.

‘माफ करें, यह जनहित में जारी काल है और मजबूत वोटर होने के नाते आप लोकतंत्र के निर्माता हैं, इसलिए आप को नेता चयन संबंधित प्रक्रिया हर हाल में पूरी करनी है.

‘लोकलुभावन भाषण और आश्वासन देने वालों के लिए 1 दबाएं, शिलान्यास के बाद योजना पैंडिंग रख दुर्लभ दर्शन वालों के लिए 2 दबाएं, दबंग, आपराधिक चरित्र वालों के लिए 3 दबाएं, घोटालेबाज भ्रष्ट माननीय के लिए 4 दबाएं, वादा भूलने वाले दलबदलू के लिए 5 दबाएं, सर्वसुलभ कमीशनखोर खादीमानव के लिए 6 दबाएं और सच्चे जनसेवक के लिए 7 दबाएं या दोबारा सुनने के लिए स्टार दबाएं.’

पलभर विचार कर के मैं ने 7 का बटन दबा दिया.

‘आप ने चुना है 7 यानी सच्चा जनसेवक. इस की तसदीक के लिए हैश दबाएं वरना दोबारा सुनने के लिए स्टार दबाएं.’

मैं ने हैश बटन दबा दिया.

‘माफ कीजिए, अखिल भारतीय स्तर पर इस प्रजाति का लोप हो जाने के चलते फिलहाल आप के क्षेत्र में यह सेवक उपलब्ध नहीं है. दोबारा सुनने के लिए स्टार दबाएं, मेन मैन्यू में जाने के लिए 8 दबाएं.’

मैं ने स्टार दबा कर दोबारा सुना और इस बार 6 का बटन दबाया.

‘आप ने चुना है 6 यानी सर्वसुलभ कमीशनखोर खादीमानव. तसदीक के लिए हैश दबाएं.’

मैं ने हैश दबा दिया.

‘राहत योजना में लूटखसोट की भागीदारी हेतु बाढ़, महामारी, आपदा के दौरान जनता के बीच आसानी से उपलब्ध जनसेवक के लिए 1 दबाएं, मुआवजा दे कर मीडिया में छाए रहने वालों के लिए 2 दबाएं, सिर्फ चुनाव के समय दर्शन देने वालों के लिए 3 दबाएं और ज्यादा समय उपलब्ध रहने वाले मार्गदर्शक नेता के लिए 4 दबाएं.’

मैं ने बिना समय गंवाए 4 दबा कर हैश बटन से तसदीक भी कर दी. मंदिर निर्माता, गौरक्षक, सर्वसुलभ मार्गदर्शक नेता के लिए 1 दबाएं, सर्वव्यापी हिजाब और जिहाद समर्थक के लिए 2 दबाएं, गांवगांव उपलब्ध जातपांत खेलने वालों के लिए 3 दबाएं और खालिस धर्मनिरपेक्ष नेता के लिए 4 दबाएं.’

मैं ने 4 दबाया, साथ ही हैश बटन भी दबा दिया. ‘एक बार फिर से माफ करें, मार्केट में फिलहाल यह टाइप भी मुहैया नहीं है… फिर से सुनने के लिए स्टार दबाएं, मेन मैन्यू में जाने के लिए 8 दबाएं या अपने क्षेत्र के पढ़ेलिखे, कर्मठ, लगनशील, काबिल उम्मीदवार से संबंधित सभी तरह की छोटीबड़ी जानकारी हेतु हमारे वोटर केयर ऐक्जिक्यूटिव से बात करने के लिए 9 दबाएं.’

मैं ने कंप्यूटराइज्ड आवाज से उलझने के बजाय 9 दबा कर सीधेसीधे वोटर केयर ऐक्जिक्यूटिव से बात कर क्षेत्र के काबिल उम्मीदवार के बारे में जान लेना उचित समझ .

‘आप की काल हमारे लिए खास है. जल्दी ही आप की बात हमारे वोटर केयर ऐक्जिक्यूटिव से होने वाली है, कृपया लाइन पर बने रहें,’ की आवाज के साथ शास्त्रीय संगीत की रिंगटोन पर पूरे 15 मिनट तक लटकाए रखने के बाद दूसरी ओर से आवाज आई, ‘माफ कीजिए, आप ने गलत औप्शन चुना है…’ और आखिरकार दूसरी ओर से फोन डिस्कनैक्ट कर दिया गया. Comedy Story

Hindi Kahani: पाई को सलाम – एक सच्चे दोस्त की कहानी

Hindi Kahani: सऊदी अरब के एक अस्पताल में काम करते हुए मुझे अलगअलग देशों के लोगों के साथ काम करने का मौका मिला. मेरे महकमे में कुल 27 मुलाजिम थे, जिन में 13 सऊदी, 5 भारतीय, 6 फिलीपीनी और 3 पाकिस्तानी थे.

यों तो सभी आपस में अंगरेजी में ही बातें किया करते थे, लेकिन हम भारतीयों की इन तीनों पाकिस्तानियों से खूब जमती थी. एक तो भाषा भी तकरीबन एकजैसी थी और हम लोगों का खानापीना भी एकजैसा ही था.

हमारे महकमे का सब से नापसंद मुलाजिम एक पाकिस्तानी कामरान था, जिसे सभी ‘पाई’ के नाम से बुलाते थे.

क्या सऊदी, क्या फिलीपीनी, यहां तक कि बाकी दोनों पाकिस्तानी भी उस को पसंद नहीं करते थे.

वैसे तो ‘पाई’ हमारे साथ ही रहता और खातापीता था, लेकिन कोई भी उस की हरकतें पसंद नहीं करता था. काम में तो वह अच्छा था, लेकिन जानबूझ कर सब से आसान काम चुनता और मुश्किल काम को कम ही हाथ लगता.

अब मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन है ही ऐसा काम, जिस में मुश्किल फाइल करना कोई भी पसंद नहीं करता, लेकिन चूंकि काम तो खत्म करना ही होता है, तो सभी लोग मिलबांट कर मुश्किल काम कर लेते. लेकिन मजाल है, जो ‘पाई’ किसी मुश्किल फाइल को हाथ में ले ले.

‘पाई’ कुरसी पर बैठ कर आसान फाइल का इंतजार करता रहता और जैसे ही कोई आसान फाइल आती, झट से उस को अपने नाम कर लेता. उस की इसी हरकत की वजह से सभी उस से चिढ़ने लगे थे.

भारतीय पवन हो या फिलीपीनी गुलिवर या फिर सऊदी लड़की सैनब, सभी उस की इस बात पर उस से नाराज रहते.

इस के अलावा ‘पाई’ एक नंबर का कंजूस था. कभीकभार सभी लोग मिल कर किसी साथी मुलाजिम को कोई पार्टी देते, तो ‘पाई’ एक पैसा भी न देता.

वह बोलता, ‘‘मैं यहां क्या इन लोगों के लिए कमाने आया हूं?’’

पार्टी के लिए एक पैसा भले ही न देता हो, पार्टी में खानेपीने में सब से आगे रहता. ‘पाई’ खुद भी जानता था कि कोई उस को पसंद नहीं करता, लेकिन इस से उस को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

शुक्रवार को सऊदी अरब में छुट्टी रहती है. मैं भी उस दिन अपने घर में ही था कि पवन का फोन आया.

फोन पर उस के रोने की आवाज सुन कर मैं परेशान हो गया. उस की सिसकियां कुछ कम हुईं, तो उस ने बताया कि उस का 10 साल का बेटा घर से गायब है. पता नहीं, किसी ने उस को किडनैप कर लिया है या वह खुद ही कहीं चला गया है, किसी को भी नहीं पता था.

मैं तुरंत पवन के कमरे में पहुंचा. जल्दी ही सरफराज, गुलिवर और नावेद भी वहां पहुंच गए. सभी पवन को तसल्ली दे रहे थे.

तभी पवन के घर से फोन आया. किसी ने उस के घर खबर दी कि उस का बेटा कोचीन जाने वाली बस में देखा गया है. सभी की राय थी कि पवन को तुरंत भारत जाना चाहिए.

मैनेजर सुसान से बात की गई. उन्होंने तुरंत पवन के जाने के लिए वीजा का इंतजाम किया. सरफराज अपनी गाड़ी में पवन और मुझे ले कर हैड औफिस गए और वीजा ले आए.

अब बड़ा सवाल था भारत जाने के लिए टिकट का इंतजाम करना. महीने का आखिरी हफ्ता चल रहा था और हम सभी अपनीअपनी तनख्वाह अपनेअपने देश को भेज चुके थे. सभी के पास थोड़ेबहुत पैसे बचे हुए थे, जो कि टिकट की आधी रकम भी नहीं होती.

मैं और सरफराज अपनेअपने जानने वालों को फोन कर रहे थे कि तभी वहां ‘पाई’ आ गया. हम में से किसी ने भी उस को पवन के बारे में नहीं बताया था. एक तो शायद इसलिए कि ‘पाई’ और पवन की कुछ खास बनती नहीं थी, दूसरे, इसलिए भी कि उस से हमें किसी मदद की उम्मीद भी नहीं थी.

‘पाई’ पवन से उस के बेटे के बारे में पूछताछ कर रहा था. बातोंबातों में उस को पता चला कि भारत जाने के लिए टिकट के पैसे कम पड़ रहे हैं. हम लोग अपनेअपने फोन पर मसरूफ थे और पता ही नहीं चला कि कब ‘पाई’ उठ कर वहां से चला गया.

‘‘उस को लगा होगा कि उस से कोई पैसे न मांग ले,’’ फिलीपीनी गुलिवर ने अपने विचार रखे.

तकरीबन 10 मिनट बाद ‘पाई’ आया और पवन के हाथ में 5 हजार रियाल रख दिए और कहने लगा, ‘‘जाओ, जल्दी से टिकट ले लो, ताकि आज की ही फ्लाइट मिल जाए. अगर और पैसों की जरूरत हो, तो बेझिझक बता देना. मैं अपने पैसे इकट्ठा 2-3 महीने में ही भेजता हूं, इसलिए अभी मेरे पास और भी पैसे हैं.’’

यह सुन कर पवन भावुक हो गया और ‘पाई’ को गले लगा लिया, ‘‘शुक्रिया ‘पाई’, मुसीबत के समय में मेरी मदद कर के तुम ने मुझे जिंदगीभर का कर्जदार बना लिया है.’’

‘‘कर्ज कैसा, हम सब एक परिवार ही तो हैं. मुसीबत के समय अगर हम एकदूसरे की मदद नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?’’

‘पाई’ का यह रूप देख कर मेरे मन में उस के प्रति जितनी भी बुरी भावनाएं थीं, तुरंत दूर हो गईं.

किसी ने सच ही कहा है कि दोस्त की पहचान मुसीबत के समय में ही होती है. और मुसीबत की इस घड़ी में पवन की मदद कर के ‘पाई’ ने अपने सच्चे दोस्त होने का सुबूत दे दिया.

‘पाई’ के इस अच्छे काम से मेरा मन उस के लिए श्रद्धा से भर गया. Hindi Kahani

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