Bollywood का नया स्टार: साल 2019 आयुष्मान खुराना के नाम

न कोई खान और न ही कोई कपूर. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का साल 2019 उस हीरो के नाम रहा, जिस ने कभी हिंदी के बड़े लेखक धर्मवीर भारती के नाटक ‘अंधा युग’ में अश्वत्थामा का किरदार निभाने के लिए बैस्ट हीरो का अवार्ड जीता था. चंडीगढ़ में जन्मे और पले-बढ़े इस कलाकार का नाम है आयुष्मान खुराना, जिनकी इस साल आई इस की 3 फिल्मों ‘आर्टिकल 15’, ‘ड्रीम गर्ल’ और ‘बाला’ ने कामयाबी के नए झंडे गाड़ दिए.

रेडियो जौकी से लेकर बौलीवुड हीरो तक का सफर…

आयुष्मान खुराना से मेरी पहली मुलाकात साल 2010 में तब हुई थी, जब मैं आईपीएल 2010 के दिल्ली में हुए मैचों को बतौर खेल संवाददाता कवर कर रहा था. वहां आयुष्मान खुराना ‘एक्स्ट्रा इनिंग्स टी 20’ की एंकरिंग टीम का हिस्सा थे. तब मैं ने उन की अपने काम के प्रति लगन देखी थी कि किस तरह वे इंटरवल के दौरान अपनी स्क्रिप्ट याद करते थे. वहां डिनर टेबल पर ‘मुक्ता’ पत्रिका के लिए हम दोनों में उन के वीडियो जौकी के कैरियर पर लंबी बातचीत हुई थी.

उस समय आयुष्मान खुराना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. उन की मेहनत साल 2012 में तब रंग लाई, जब उन्हें फिल्म ‘विकी डोनर’ मिली थी, जो बड़ी हिट भी साबित हुई.

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इस के बाद आयुष्मान खुराना के आने वाले 2 साल बतौर हीरो ज्यादा अच्छे नहीं थे, पर साल 2015 में आई फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ से उन्हें एक नई हिट मिली. इस के बाद अगर साल 2017 में आई फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदु’ को अलग कर दिया जाए तो बाकी सभी फिल्मों ने खूब कमाई की और देखते ही देखते आयुष्मान खुराना बड़े और कामयाब कलाकार बन गए.

‘आर्टिकल 15’ ने की तिगुनी कमाई…

साल 2019 की बात करें तो आयुष्मान खुराना की पहली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ आई थी. 28 जून को बड़े परदे पर आई यह एक ऐसे गंभीर मुद्दे पर बनी फिल्म थी जिस में आयुष्मान खुराना को देखना अपने आप में रोचक था, क्योंकि इस से पहले उन्होंने कभी किसी पुलिस वाले का ऐसा संजीदा किरदार नहीं निभाया था.

इस फिल्म ने भारतीय समाज में गहरे तक फैली जातिवाद की बुराई पर करारी चोट की थी. इस की कहानी में राजनीति और पुलिस को भी लपेटा गया था. बताया गया था कि ऊंची जाति और नीची जाति के फर्क पर कई राजनीतिक पार्टियां रोटी सेंक रही हैं और चाहती हैं कि यह फर्क बना रहे, तो दूसरी ओर ‘ब्राह्मण दलित एक हैं’ जैसे नारे भी राजनीतिक पार्टियां देती हैं. फिल्म में दलित नेताओं को भी नहीं छोड़ा गया था.

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आयुष्मान खुराना ने अपना किरदार इतने दमदार तरीके से निभाया था कि कहीं लगा ही नहीं कि वे ऐक्टिंग कर रहे थे. 29 करोड़ रुपए में बनी इस फिल्म ने 93 करोड़ रुपए की बढि़या कमाई की थी.

‘ड्रीम गर्ल’ ने तोड़े सक्सेस के रिकौर्ड…

फिर आई फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’. कौमेडी का भरपूर तड़का. इस जोनर में आयुष्मान खुराना खुद को सहज पाते हैं. इस फिल्म में उन्होंने एक छोटे से शहर में रहने वाले लड़के कर्मवीर का किरदार निभाया था, जो बचपन से ही लड़की की आवाज निकालने में माहिर है. धीरे-धीरे ऐसे हालात बनते हैं कि उसे एक काल सैंटर में ऐसी नौकरी मिलती है, जहां पर वह लड़की पूजा की आवाज में दुनियाभर से बातें करता है.

बाद में इसी पूजा के प्यार में पूरा शहर पड़ जाता है, लेकिन मामला वहां गड़बड़ा जाता है, जहां पर उस के आसपास के लोग भी पूजा से प्यार करने लगते हैं.

13 सितंबर को रिलीज हुई यह फिल्म भी दर्शकों के दिल में उतर गई थी. 30 करोड़ रुपए में बनी इस छोटे बजट की फिल्म ने बौक्स औफिस पर तहलका मचाते हुए 200 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की कमाई की थी.

‘बाला’ ने जीता बौलीवुड का दिल…

साल के आखिर में आई फिल्म ‘बाला’. एक ऐसे लड़के बाला की कहानी, जो अपनी घनी जुल्फों का दीवाना है और खुद को शाहरुख खान से कम नहीं समझता है. लेकिन जवानी की दहलीज पार करते ही वह अपने सिर के बाल खोने लगता है और धीरेधीरे गंजा हो जाता है. बाला की तो मानो दुनिया ही उजड़ जाती है.

यह फिल्म भी कमाई के मामले में आयुष्मान खुराना के लिए मलाई साबित हुई. 7 नवंबर को रिलीज हुई और 25 करोड़ से 30 करोड़ रुपए में बनी इस फिल्म ने भी नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते तक 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर ली थी.

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आने वाले साल में भी आयुष्मान खुराना कुछ ऐसी रोचक फिल्मों से जुड़े हैं जो उन्हें और ज्यादा कामयाब हीरो बना सकती हैं. इस की एक वजह यह भी है कि अब आयुष्मान खुराना आम आदमी से जुड़ी ऐसी कहानियों को ज्यादा चुनने लगे हैं, जो छोटे शहरों, कस्बों और गांव की होती हैं. इन की फिल्मों में कहानी किरदारों से बड़ी होती है. संवाद रोचक और कस्बाई पहचान लिए होते हैं. हीरो किसी सुपर पावर से लैस नहीं होता है, बल्कि एक ऐसा अदना इनसान होता है, जिस में अपनी कमियों पर रोने की हिम्मत होती है. वह सलमान खान जैसे किसी सुपर स्टार की तरह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर नहीं ढोता है, बल्कि दूसरे किरदारों के चमकने के लिए आसमान धरती की ओर खींच लाता है.

‘गुलाबो सिताबो’ और  ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ से मचाएंगे धमाल…

साल 2020 में आयुष्मान खुराना फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ में अमिताभ बच्चन के साथ दिखाई देंगे. इस के अलावा वे फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में काम कर रहे हैं, जिस में वे एक समलैंगिक आदमी का किरदार निभा सकते हैं.

अपने नाम से ये दोनों फिल्में रोचक लग रही हैं. अमिताभ बच्चन उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, वहां वे बहुत सोचसमझ कर कोई फिल्म साइन करते हैं. फिर इस फिल्म में तो शूजित सिरकार भी बतौर डायरैक्टर शामिल हैं, जिन्होंने फिल्म ‘विकी डोनर’ बनाई थी.

फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में आयुष्मान खुराना के साथ जितेंद्र कुमार भी स्क्रीन शेयर करेंगे. यह फिल्म साल 2017 में आई हिट फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ का सीक्वल बताई जा रही है.

कुलमिलाकर आने वाला समय भी आयुष्मान खुराना के फिल्म कैरियर को नई ऊंचाइयां दे सकता है, जो उन के चाहने वालों के लिए अच्छी खबर है.

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जानें क्या है आयुष्मान खुराना की नई फिल्म “बाला” की सबसे खास बात

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः दिनेश वीजन

निर्देशकः अमर कौशिक

कलाकारः आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, दीपिका चिखालिया, धीरेंद्र कुमार, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, सौरभ शुक्ला, अभिषेक बनर्जी व अन्य.

अवधिः दो घंटे सत्रह मिनट

हमारे यहां शारीरिक रंगत,  मोटापा,  दुबलापन, छोटे कद आदि के चलते लड़कियों को जिंदगी भर अपमान सहना पड़ता है. वह हीनग्रंथि कर शिकार होकर खुद को बदलने यानी कि चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए कई तरह की फेअरनेस क्रीम लगाती हैं, कद बढ़ाने के उपाय, मोटापा कम करने के उपाय करती रहती है. तो वही लड़के अपने सिर के गंजेपन से मुक्ति पाने के उपाय करते नजर आते हैं.

फिल्मकार अमर कौशिक ने इन्ही मुद्दों को फिल्म ‘बाला’ में गंजेपन को लेकर कहानी गढ़ते हुए जिस अंदाज में उठाया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. अंततः वह सदियों से चली आ रही इन समस्यओं से मुक्ति का उपाय देते हुए कहते हैं कि ‘खुद को बदलने की जरुरत क्यों? अपनी कहानी में वह काली लड़की के प्रति समाज के संकीर्ण रवैए को बताने में वह पीछे नही रहते.

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कहानीः

यह कहानी कानपुर निवासी बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला (आयुष्मान खुराना) के बचपन व स्कूल दिनों से शुरू होती है. जब उसके सिर के बाल घने और सिल्की होते थे और वह अपने बालों पर इस कदर घमंड करता था कि स्कूल में हर खूबसूरत लड़की उसकी दीवानी थी. वह भी श्रुति का दीवाना था. मगर गाहे बगाहे बाला अपनी सबसे अच्छी दोस्त लतिका के काले चेहरे को लेकर उसका तिरस्कार भी करता रहता था. स्कूल में कक्षा के बोर्ड पर वह अपने गंजे शिक्षक की तस्वीर बनाकर उसे तकला लिखा करता था. मगर पच्चीस साल की उम्र तक पहुंचते ही बाला के सिर से बाल इस कदर झड़े कि वह भी गंजे हो गए.

उनकी बचपन की प्रेमिका श्रुति ने अन्य युवक से शादी कर ली. समाज में उसका लोग मजाक उड़ाने लगे हैं. बाला अब एक सुंदर बनाने वाली क्रीम बनाने वाली कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. इसके प्रचार के लिए वह औरतों के बीच अपने अंदाज में बातें कर प्रोडक्ट बेचते हैं. एक बार लतिका (भूमि पेडणेकर) भी अपनी मौसी के साथ पहुंच जाती है. और बाला के सिर से टोपी हटाकर कर लोगों के सामने उसका गंजापन ले आती है. बाला का मजाक उड़ता है. प्रोडक्ट नही बिकता. परिणामतः नौकरी मे उसे मार्केटिंग से हटाकर आफिस में बैठा दिया जाता है.

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लतिका ने ऐसा पहली बार नही किया. लतिका स्कूल दिनों से ही बाला को बार-बार आईना दिखाने की कोशिश करती रही है, वह कहती रही है कि खुद को बदलने की जरुरत क्यों हैं. मगर बाला लतिका से चिढ़ता है. पेशे से जानी- मानी दबंग वकील लतिका काले रंग के कारण नकारी जाती रही है.मगर उसने कभी खुद को हीन महसूस नहीं किया.

बाला के माता (सीमा पाहवा) व पिता (सौरभ शुक्ला) भी परेशान हैं. क्योंकि बाला की शादी नहीं हो रही है. बालों को सिर का ताज समझने वाला बाला, बालों को उगाने के लिए सैकड़ों नुस्खे अपनाता है, वह हास्यास्पद व घिनौने हैं. मगर बाला को यकीन है कि उसके बालों की बगिया एक दिन जरूर खिलेगी. पर ऐसा नहीं होता. अंततः वह बाल ट्रांसप्लांट कराने के लिए तैयार होता है, पर उसे डायबिटीज है और डायबिटीज के कारण पैदा हो सकने वाली समस्या से डरकर वह ऐसा नही कराता.

अपने बेटे को निराश देखकर उनके पिता (सौरभ शुक्ला) बाला के लिए दिल्ली से विग मंगवा देते हैं. विग पहनने से बाला का आत्म विश्वास लौटता है. इसी आत्मविश्वास के बल पर लखनउ की टिक टौक स्टार व कंपनी की ब्रांड अम्बेसेडर परी (यामी गौतम) को अपने प्रेम जाल में  फंसाकर उससे शादी कर लेता है. मगर सुहागरात  से पहले ही परी को पता चल जाता है कि उसका पति बाला गंजा है. परी तुरंत ससुराल छोड़कर मायके पहुंच जाती है. अपनी मां (दीपिका चिखालिया) की सलासह पर वह अदालत में बाला पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए शादी को निरस्त करने की गुहार लगाती है.बाला अपना मुकदमा लड़ने के लिए वकील के रूप में लतिका को ही खड़ा करता है. पर अदालती काररवाही के दौरान बाला को सबसे बड़ा ज्ञान मिलता है.

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लेखन व निर्देशनः

अमर कौशिक ने लगभग हर लड़की के निजी जीवन से जुड़ी हीनग्रथि और समाज के संकीर्ण रवैए को हास्य के साथ बिना उपदेशात्मक भाषण के जिस शैली में फिल्म में पेश किया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. मगर इंटरवल के बाद भाषणबाजी पर जोर देकर फिल्म को थोड़ा कमजोर कर डाला. फिल्म के संवाद कहीं भी अपनी मर्यादा नहीं खोते और न ही अश्लील बनते हैं. कुछ संवाद बहुत संदर बने हैं. अमर कौशिक ने महज फिल्म बनाने के लिए गंजेपन का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि वह इस मुद्दे को गहराई से उठाते हुए इसकी तह तक गए हैं.

अमूमन फिल्म की कहानी व किरदार जिस शहर में स्थापित होते हैं, वहां की बोलचाल की भाषा को फिल्मकार मिमिक्री की तरह पेश करते रहे हैं, मगर इस फिल्म में कानपुर व लखनउ की बोलचाल की भाषा को यथार्थ के धरातल पर पेश किया गया है. फिल्मकार ने अपरोक्ष रूप से ‘टिकटौक स्टारपना’ पर भी कटाक्ष किया है. फिल्मकार ने इमानदारी के साथ इस सच को उजागर किया है कि जो लड़की महज दिखावे की जिंदगी जीती है, वह जिंदादिल नही हो सकती.

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अभिनयः

बाला के किरदार में आयुष्मान खुराना ने शानदार अभिनय किया है. दर्शक गंजेपन को भूलकर सिर्फ बाला के गम का हिस्सा बनकर रह जाता है. बाला की गंजेपन के चलते जो हताशा है, उसे दर्शकों के दिलों तक पहंचाने  में आयुष्मान खुराना पूरी तरह से सफल रहे हैं. पर बौलीवुड के महान कलाकारों की मिमिक्री करते हुए कुछ जगह वह थकाउ हो गए हैं. भूमि ने साबित कर दिखाया कि सांवले /काले रंग के चहरे वाली लड़की लतिका के किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता था.

कई दृश्यों में वह चिंगारी पैदा करती हैं. टिकटौक स्टार परी के किरदार में यामी गौतम सुंदर जरुर लगी हैं, मगर कई दृश्यों में उन्होंने ओवर एक्टिंग की है. छोटे से किरदार में दीपिका चिखालिया अपनी उपस्थिति दर्ज करा जाती हैं. सौरभ शुक्ला, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, धीरेंद्र कुमार ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

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