सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) ने फिल्मों में आने से पहले काफी संघर्ष झेला था. सुशांत की ऐक्टिंग की पहली कमाई सिर्फ 250 रुपये थी. फिल्मों में स्थापित होते ही सुशांत सिंह राजपूत ने अपना बचपन का ख्वाब पूरा किया सुशांत ने सन् 2018 में “चांद” पर जमीन क्रय की थी. यही नहीं, सुशांत सिंह राजपूत ने चांद पर स्थित अपने प्लॉट पर नजर रखने के लिए एक आला दर्जे की “दूरबीन” भी खरीदी और अक्सर चांद को देखते देखते सितारों में डूब जाते थे.
सुशांत के पास आज की एडवांस टेलिस्कोप 14LX00 थी. अब समझने वाली बात यह है कि जो शख्स चांद की कल्पनाशीलता और सितारों में डूबता उतरता था जो चांद पर जमीन खरीदने का माद्दा रखता था, उसने आत्महत्या जैसा कदम क्यों और कैसे उठा लिया.सुशांत अगर कोई एक चिट्ठी लिख जाता या फिर डायरी लिखते होते, तो दुनिया को पता चलता कि एक सितारा आखिर क्यों डूब गया ? आज हमारे पास सिर्फ कयास लगाने के अलावा और कुछ भी नहीं है. कोई ऐसी ठोस चीज जिसके बूते यह पता चल सकता कि आखिर सुशांत सिंह जैसे सितारे की आत्महत्या की मनो ग्रंथि आखिर क्या थी?
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उम्र में छोटा, एक बड़ा सितारा
बिहार के एक छोटे शहर से सेलयूलाइड का बड़ा सितारा बनने के सफर में सुशांत सिंह राजपूत ने शहर व राज्य छोड़ते वक्त कितना बड़ा सपना पाला होगा. ..लाखों लोग ऐसे ही सपने संजोकर फिल्मी दुनिया में आते है. बहुतेरे यहाँ की चकाचौंध में खो जाते है और कोई संघर्ष से थक कर हार मान जाता है. कहा भी जाता है बॉलीवुड की चकाचौंध में सपने रोज पलते और रोज टूट के बिखर जाते है.
मगर यह भी सच है कि सुशांत सिंह राजपूत जैसा लाखों में कोई एक होता है जो हार को, हराकर जीने की कला सिखाता हैं.उनका बहुचर्चित टीवी सीरियल “पवित्र रिश्ता” उनके प्रशंसकों ने देखा है की “मानव” की भूमिका निभाते हुए दर्शकों के ह्रदय पर सुशांत कैसे अपने अभिनय की मुहर लगा गया था . कम समय में ही सफलता को संस्पर्श कर चुके सुशांत का अंतिम फैसला आत्म हत्या होगा, यह भला किसने सोचा होगा.
लोग ऐश्वर्य के पीछे दौड़ते हैं और इस अंधी दौड़ में
आलीशान बंगला, गाड़ियां पास होने मात्र से कोई सुखी व खुश नही हो सकता. खुश रहने के लिए और भी बहुत कुछ जरूरी होता है. एक शीर्ष फिल्मी दुनिया के सितारे सुशांत कथित आत्महत्या ने उनके चाहने वालों को सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर सब कुछ होने के बाद भी सुशांत के पास ऐसी क्या चीज थी जो नहीं थी ?
यहां याद आता है सुशांत सिंह का डायलॉग -“ज़िंदगी में कामयाब होने के बाद का प्लान सबके पास है, लेकिन फेल हो गए, तो क्या करेंगे, किसी को नहीं पता.”
युवाओं को लेना होगा यह सबक
दरअसल, सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने यह जगजाहिर कर दिया है कि आदमी चाहे बड़ा सितारा हो या आम आदमी उसका बढ़ता हुआ मानसिक तनाव , इच्छाओं का अधूरापन और अति महत्वकांक्षाओं का खोखलापन जब मन मस्तिष्क पर हावी हो जाता है तो उसे सारी दुनिया अंधकारमय दिखाई देने लगती है . और जब व्यक्ति पूर्ण रूप से एकाकी हो जाता है तो धीरे धीरे वह डिप्रेसन या कहें अवसाद का शिकार हो जाता है. यही वह टर्निंग पॉइंट है जहां उसे किसी के स्नेह और संबल की जरूरत पड़ती है. अगर कोई उसे यहां सहारा दे दे तो ठीक, अन्यथा सारी सकारात्मक ऊर्जा नकारात्मकता में बदलने लगती है. ऐसे में वह कुछ भी कर सकता है. मन इतना अधिक आवेशित हो जाता है कि वह बिना कुछ सोचे समझे आत्महत्या जैसे आत्म घाती कदम उठाने से भी नहीं चुकता. फिल्म स्टार सुशांत सिंह राजपूत के साथ यही कुछ हुआ और उन्होंने अपनी ईहलीला समाप्त कर ली.
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लोग आज की भागमभाग और दिनचर्या वाले जीवन में तेजी से फैलते मानसिक रोग डिप्रेसन के शिकार होते जा रहें हैं. नौकरी के तनाव में घरों से दूर रहने को विवश लोग तेजी से बनते एकल परिवारों का अंग बनते जा रहा है . रोजाना बारह घंटे काम में लगा रहना और घर पर आने के बाद भी इलेक्ट्राॅनिक डिवाईसों टी वी , मोबाइल , लैपटाप पर समय बिताना फिर पारिवारिक सदस्यों से सुख दुख बाँटने , हँसने बोलने का सर्वथा अभाव, आधुनिक समाज को इस मानसिक रोग डिप्रेसन की ओर तेजी से ले जा रहा है.
छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध डॉक्टर जीआर पंजवानी कहतें हैं कि किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोग एकांत में न रहें अपनी छोटी सी खुशी व ग़म को अपने परिवार, दोस्तों, से बाँटें. वहीं डॉ आशीष अग्रवाल के अनुसार- आत्मघाती कदम से बचने के लिए अपनी दिनचर्या को ऐसा कर दें कि उसमें खूब मस्ती हो.आप समय निकालकर एक्सरसाईस,योगा ,सैर करें और हो सके तो खूब हँसें, चिल्लाएँ. कम से कम एक या डेढ़ घंटे के लिए तनाव को दूर रखें. सुबह शाम मनभावन संगीत सुनें , पेंटिंग बनाएँ , कविता ,कहानियाँ पढें , टीवी- सीरियल या फिल्में देखें. आप अपने आप में कुछ शौक पैदा करें और उसमें समय बिताएं.
कवि घनश्याम तिवारी कहते हैं – मेरे एक परिचित चाचाजी ने कहा है- बेटा! डाॅक्टर , वैज्ञानिक जो कहते हैं उन्हें कहने दो! मेरी मानों तो बस एक ही तरीका है इस नई बीमारी डिप्रेसन से बचने का .अरे यार! धन ,दौलत, गाडी़ कुछ बनाओं न बनाओं मग़र दो चार दोस्त ज़रूर बना लेना. कोई काम आए न आए वो ज़रूर तुम्हारा साथ देंगे जीवन के हर मोड़ पर. किसी चौक चौराहे पर या टिपरी , ठेले पर जो़र जो़र से ठहाके लगाते हुए जब चाय की चुस्कियाँ लगाई जाएंगी तो डिप्रेसन तो क्या कोई भी खतरनाक बीमारी पास नहीं फटकेगी.