अपनी सहेली की शादी के पार्टी से लौटकर 11 बजे रात्रि को ज्योंहि शिवानी अपने घर का कॉलवेल बजाती है. उसके पापा की ऑंखें गुस्से से लाल है. दरवाजा खोलते ही बोलने लगते हैं.अय्यासी करके आ गयी.घर आने का यही समय है. जबकि बेटा हर रोज शराब और सड़कों पर दोस्तों के साथ आवारागर्दी करके घर में बारह बजे रात्रि तक भी आता है. उसे पापा कुछ भी नहीं बोलते.

पिछड़े और दलित वर्ग की महिलाएं सदियों से आज तक उपेक्षित लांक्षित और शोषित हैं. अपने ऊपर हो रहे शोषण की आवाज तो हम उठाते रहें हैं. लेकिन इस समुदाय से जुड़े लोग स्वयं लड़कियों और औरतों पर शोषण कई माध्यमों से करते रहते हैं. अशिक्षित से लेकर इस समुदाय के शिक्षित लोग भी किसी न किसी रूप में शामिल हैं. शिवानी रहती तो एक बड़े शहर की एक बस्ती में पर उसके पिता की रगों में अभी भी गांव के रीति-रिवाज भरे पड़े हैं.

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आज भी लड़के और लड़कियों में अधिकांशतः घरों में फर्क समझा जाता है. लड़का और लड़की के साथ भेदभाव किया जाता है. पहली चाहत आज भी लोगों के अंदर लड़के की है. तीन चार लड़की होने या लड़के की चाहत में छिप छिपाकर लड़की को पेट में ही गिरवा देते हैं. लड़के लड़की में खान पान ,पढ़ाई लिखाई सभी मामले में भेदभाव किया जाता है. लड़का है तो उसे दूध और लड़की है तो उसे छांछ पीने को मिलेगा. लड़की सरकारी विद्यालय में और लड़का प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए जाएगा.

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