फूलबतिया को कालू डकैत उठा कर ले गया था. उस की ससुराल वाले कालू का कुछ नहीं बिगाड़ पाए. पर कालू के ऐनकाउंटर के बाद फूलबतिया वहां से भाग गई. फिर वह रमेसरा से मिली और उस की घरवाली के रूप में रहने लगी. आगे क्या हुआ?
‘‘र मेसरा ने फूलबतिया से घर कर लिया है,’’ कंटीर मिसर अपने पड़ोसी देवेन को बता रहे थे.
‘‘अच्छा, मगर रमेसरा तो सीधासादा है,’’ देवेन बोले.
‘‘तभी तो फूलबतिया ने उसे फंसा लिया होगा. कौन नहीं जानता कि फूलबतिया को कालू डकैत उठा ले गया था,’’ कंटीर मिसर बोल रहे थे.
पूरे गांव के लोग परेशान थे. वजह, 2 महीने पहले कालू डकैत और उस के गिरोह के 4 सदस्य पुलिस ऐनकाउंटर में मारे गए थे. पूरा गिरोह ही खत्म हो गया था.
फूलबतिया को वही कालू 4 साल पहले उठा ले गया था. वह उसी की मंगेतर थी. कालू ने जीभर कर उसे भोगा और ऐनकाउंटर के बाद फूलबतिया रमेसरा से घर कर बैठी.
रमेसरा सीधासादा मजदूर था, जो दिल्ली में मजदूरी करता था. साल में एक बार घर आता था. उस के पिताजी सालों पहले गुजर चुके थे. उस ने पिछले साल अपनी मां को भी खो दिया था. वह 35-36 साल का होगा, जबकि फूलबतिया भी 30-32 साल के पास की होगी.
फूलबतिया के बाकी सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थी. सो, वह आराम से रमेसरा से ब्याह कर बैठी.
काली और दोहरे बदन की अंगूठाछाप फूलबतिया खुद को कालू डकैत से कम नहीं समझती थी. वह तो अच्छा था कि पुलिस को सबक सिखाने वालों की टीम में वह नहीं शामिल थी.
‘चलो, उस पुलिस वाले साहब ने हमारा अड्डा और धंधा चौपट कर दिया है. उसे सबक सिखाना है. उसे बीवीबच्चों के सामने ही निबटा देना है,’ ऐनकाउंटर पर जाने से पहले कालू डकैत अपने साथियों से बोला था.
‘यही ठीक रहेगा. कल शाम को शैतान सिंह के घर धावा बोलना है,’ दूसरे साथी ने कहा था.
‘मैं भी साथ चलूंगी,’ फूलबतिया कालू के सामने ऐंठते हुए बोली थी.
‘तू यहीं रह. उस के लिए हम 4 ही काफी हैं. तू अच्छा सा मुरगाभात बना कर रखना,’ कालू डकैत ने कहा था.
‘अरे हरिया, शैतान सिंह को कल शाम का समय बोल दे. देख लें उस के पुलिस बल में कितनी औकात है?’ कालू दहाड़ा था.
पुलिस आखिर पुलिस होती है. वे चारों फिल्मी अंदाज में वहां गए और शैतान सिंह ने तो नहीं, हां सिर्फ 2 पुलिस वालों ने उन्हें ही निबटा दिया था.
उन चारों का अंतिम संस्कार हो, उस के पहले ही फूलबतिया वहां से भाग गई थी. उसे रमेसरा अच्छा मुरगा लगा था, जिस से आसानी से हलाल किया जा सकता था. इधर फूलबतिया के घर वालों ने उस से नाता ही तोड़ लिया था.
हुआ यह था कि भारी बरसात में फूलबतिया डाकुओं के अड्डे से भाग निकली थी और साड़ी में भीगती भागी जा रही थी. अचानक रेलवे स्टेशन पर जो गाड़ी दिखी, उस में चढ़ गई. उसी गाड़ी से रमेसरा भी अपने गांव से जा रहा था.
‘अरे, आप तो भीग गई हैं. आइए, बैठ जाइए,’ रमेसरा ने एक तरफ फूलबतिया को अपने पास सरकते हुए उसे बिठाया था.
‘यह गाड़ी कहां जा रही है?’ फूलबतिया धीरे से पूछ बैठी थी.
‘दिल्ली… आप को कहां जाना है?’ रमेसरा ने इनसानियत के नाते पूछा था.
‘मेरा कोई ठिकाना नहीं है. आप कहां से आ रहे हैं?’
‘बिहार से,’ रमेसरा बोला.
‘कहीं आप सतीश के लड़के रामेश्वर यानी रमेसरा तो नहीं है?’ फूलबतिया उसे पहचानते हुए बोली थी.
‘बिलकुल ठीक पहचाना. मैं वही रमेसरा हूं. दिल्ली में काम करता हूं. मगर आप…?’ रमेसरा ने हैरानी से पूछा था.
‘मैं फूलबतिया हूं, पास वाले गांव के सुगना की बेटी,’ वह जवाब देते हुए बोली थी.
‘अच्छा…’ कह कर रमेसरा सोचने लगा था, मगर जब कुछ याद नहीं आया, तो वह शांत बैठ गया था. अचानक उस का ध्यान फूलबतिया के कपड़ों पर गया. भीगी चोली में बड़े व लटके दोनों उभार अजीब दिख रहे थे.
‘आप को कहां जाना है?’ रमेसरा ने पूछा था.
इस पर फूलबतिया रोने लगी थी. अपनी पहचान का समझ कर वह उस के साथ दिल्ली पहुंच गई थी. फिर तो 15 दिनों के अंदर ही उस ने रमेसरा का घर संभाल लिया था.
दिल्ली में फूलबतिया सरल भाव से रह रही थी, जबकि सब उसे रमेसरा की पत्नी बता रहे थे. वह भी पत्नी जैसा ही बरताव कर रही थी.
‘आप मेरे से शादी कर लो,’ एक दिन फूलबतिया रमेसरा से सीधे बोली थी.
‘देख रही हो, लोग आप को मेरी लुगाई समझ रहे हैं. आप को बुरा नहीं लगता?’ रमेसरा ने हैरान होते हुए पूछा था.
‘कैसा बुरा? मुझे कुछ भी खराब नहीं लगता. आप मुझ लाचार और बेबस औरत को अपने घर में रखे हैं, मेरा पूरा ध्यान रखते हैं,’ फूलबतिया मुसकराते हुए बोली थी.
‘मगर, आप का पति और परिवार वाले…’ रमेसरा ने पूछा था.
‘कोई नहीं है. मेरा परिवार मुझे कालू डकैत को सौंप कर अलग हो चुका है. कालू और उस की टीम मारी जा चुकी है.’
‘तुम तो डकैत रह चुकी हो. किसी बात पर नाराज हुई तो मेरा भी खात्मा कर डालोगी. कोई भरोसा नहीं है तुम्हारा,’ रमेसरा डरते हुए बोला था.
‘अरे नहीं, मैं एक औरत हूं. पत्नी के रूप में घर चलाती हूं. फिर डकैत की जिंदगी बेकार की है. पुलिस की गोली से या आपस में ही खत्म हो जाती है,’ फूलबतिया समझाते हुए बोली थी.
‘फिर तुम कैसे वहां पहुंच गई?’ रमेसरा ने पूछा था.
‘आज से 6 साल पहले मेरी शादी मोहित मंडल से करवाई गई थी. शादी के बाद एक साल तो ठीक बीता, पर फिर कालू डकैत मुझे उठा ले गया. ससुराल और पीहर वालों में से किसी ने भी मेरी हिफाजत नहीं की.
‘मेरा पति भी कुछ नहीं कर सका और बाद में एक सड़क हादसे में चल बसा. तब से मैं कालू के साथ ही थी. वह गिद्ध की तरह मुझे नोचताखसोटता था. अभी कुछ दिन पहले उस के सारे लोग मारे गए.’
‘तुम तो मोस्ट वांटेड होगी?’ रमेसरा पूछ बैठा था.
‘नहीं, मैं अलग थी. कालू के किसी कारोबार या डकैती से मेरा कुछ भी लेनादेना नहीं था. पुलिस कभी भी मेरे पास नहीं आई, न ही मुझ से कोई मतलब है,’ फूलबतिया रोते हुए बोली थी.
‘मुझ से क्या चाहती हो? मैं तुम्हारे किस काम आ सकता हूं,’ रमेसरा ने पूछा था.
‘तुम मुझ से शादी कर लो. शादी क्या चादर डाल दो,’ फूलबतिया थोड़ा शरमाते हुए बोली थी.
‘‘ठीक है, मेरा तो कोई है नहीं. तुम्हारे घर वालों को तो कोई एतराज नहीं होगा न?’ रमेसरा बोला था.
‘कौन घर वाले? जो डकैत के हवाले कर गए या जो मुझे कभी झांकने नहीं आए? तुम ईमानदार हो, मुझे कभी हाथ नहीं लगाया. गलत नजर से नहीं देखा. तुम एक अबला समझ कर मुझे अपने पास रखे हो और इतना मान दे रहे हो.’
अब रमेसरा शांत भाव से फूलबतिया को देखने लगा था. वह एक घरेलू अनपढ़ लग रही थी. इस तरह वह अपनी वीरान जिंदगी में एक मौका समझ बैठा था.
फिर एक रात तकरीबन 8 बजे रमेसरा काम से घर वापस आया. घर में आते ही फूलबतिया पर नजर पड़ी. वह खाना बना रही थी. उस ने हाथपैर धोए और खाना खाया. वह भी खाने लगी. खा कर जब दोनों लेटे तो वह न जाने क्यों उसे छूने लगा.
फूलबतिया हंसते हुए उस से सट गई और पूरा सुख दिया. रमेसरा को खूब मजा आ रहा था. वह भी पूरा साथ दे रही थी. पहली बार दोनों जीभर कर खेल रहे थे.
‘आओ, आप आराम से अपनी इच्छा शांत करो,’ फूलबतिया ने कहा था.
‘नहीं, यह पाप था,’ रमेसरा शांत होने पर पछताते हुए बोला था.
‘कोई पाप नहीं था. यह मजा है. फिर मैं तेरी जोरू हूं. सब पत्नी से सब सोते हैं, फिर पाप कैसा?’ वह बोली थी.
रमेसरा उस के बाद काम में खो गया. सुबह से शाम तक का काम और फिर अपने घर पर पत्नी तो अद्भुत थी ही. जब भी इच्छा होती जैसी भी इच्छा होती, वह अपनी इच्छा शांत करता. पत्नी हमेशा साथ देती थी.
डकैत भी प्यार के भूखे होते हैं. फूलबतिया एक पत्नी की तरह घर संभाल रही थी, समय पर भोजन, पानी, सबकुछ संभाल रखा था.
हद तो तब हो गई, जब फूलबतिया ने 70,000 रुपए का आटोरिकशा खरीद कर रमेसरा को चलाने के लिए दे दिया.
‘रोज 500 रुपए घरखर्च के और बाकी बैंक की किस्त,’ रमेसरा फूलबतिया के हाथ में पैसे देते हुए बोला था.
‘काहे की किस्त? मैं ने अपनी जमा रकम से आटोरिकशा लिया है. तुम घरखर्च के जो पैसे देते थे, उसी में से बचा कर पूरे एक लाख में से 70,000 रुपए की खरीदी है. बाकी कभी परेशानी, बीमारी या आफत के लिए.’
अब रमेसरा फूलबतिया को पूरी तरह से बांहों में भर कर चूमने लगा.
‘कौन कहता है कि तुम ऐसीवैसी हो. तुम तो किसी भी पत्नी से अच्छी हो.’
‘दिनरात काम करने की जरूरत नहीं है. आराम से जितना काम हो उतना करना. मुसीबत के लिए पैसे जोड़ रखे हैं. जल्दी ही यह झुग्गी भी अपनी होगी.’
‘क्या?’ रमेसरा ने हैरान हो कर कहा.
‘अरे, 70,000 रुपए इस के दे दिए हैं. 2 लाख की झुग्गी है. सालभर में अपनी हो जाएगी,’ फूलबतिया खुशी से झूम कर बोली.
रमेसरा निश्चिंत भाव से फूलबतिया को देख रहा था.