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लेखक- रमेश चंद्र सिंह

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा  था : रजनी की बड़ी बहन संध्या को ब्रेन हैमरेज हो गया था. एक अनजान लड़के हितेश की मदद से रजनी अस्पताल पहुंची थी. वहां नीलेश उस की बहन की देखभाल कर रहा था, जो हितेश का बौस भी था. नीतेश का संध्या के साथ नाजायज संबंध था. रजनी नीतेश की पत्नी से मिलना चाहती थी, पर नीलेश ने टाल दिया था. अब पढि़ए आगे...

अब यह पक्का हो गया था कि नीलेश जानबूझ कर रजनी को अपने घर पर नहीं ले जाना चाहता था. अब किसी से कुछ पूछने का कोई मतलब नहीं था. रजनी इतनी भी बेवकूफ नहीं थी, जो यह न समझती कि उस की दीदी का नीलेश से नाजायज रिश्ता था. वह तो बस इस बात की तसदीक करना चाहती थी, जिस की अब जरूरत नहीं थी.

लेकिन रजनी के मन में एक विचार जरूर आ रहा था कि नीलेश जैसे लंपट के साथ दीदी का आगे रिश्ता बना  कर रखना उन की जिंदगी को बरबाद कर सकता था और ज्यों ही इस की भनक नीलेश की पत्नी को लगेगी, उस की पारिवारिक जिंदगी में भी संग्राम छिड़ जाएगा.

रजनी अपनी दीदी से सीधे तो कुछ नहीं कह सकती थी, क्योंकि वे उस से उम्र में काफी बड़ी थीं और उस ने दीदी में बहन ही नहीं, मां का भी रूप देखा था. फिर वे खुद लैक्चरर थीं, इसलिए समाज को उन से बहुत उम्मीदें थीं.

अस्पताल लौट कर रजनी ने दीदी को उन की चैकबुक और एटीएम कार्ड सौंप दिया, लेकिन संध्या ने उसे इन्हें अपने पास ही रखने के लिए कहा.

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