लेखक- रमेश चंद्र सिंह
हितेश अपनी मोटरसाइकिल से औफिस जा रहा था कि तभी एक लड़की, जिस का नाम रजनी था, ने उसे हाथ दे कर रोका.
हितेश ने अपने सिर से हैलमैट उतार कर पूछा, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘मुझे अपोलो अस्पताल जाना है. मेरी बड़ी दीदी को ब्रेन हैमरेज हो गया है. वे आईसीयू में भरती हैं. मैं काफी देर से आटोरिकशा का इंतजार कर रही हूं. अब तक कोई नहीं मिला. मेरा वहां तुरंत पहुंचना जरूरी है. प्लीज, क्या तुम मुझे वहां तक छोड़ दोगे?’’
‘‘लेकिन, मेरा औफिस दूसरे रास्ते पर है. तुम्हें अपोलो अस्पताल छोड़ने में मुझे औफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’
रजनी कुछ न बोली, सिर्फ गुजारिश भरी नजरों से उसे देखती रही. तब हितेश ने कहा, ‘‘अच्छा चलो, छोड़ देता हूं.’’
सच तो यह था कि रजनी इतनी खूबसूरत थी कि उस के निराश और उदास चेहरे पर भी एक गजब का खिंचाव था और उस ने जब हितेश को देखा तो वह कुछ पलों तक एकटक देखता ही रह गया. वह उसे मना नहीं कर पाया.
जब हितेश अपोलो अस्पताल के गेट पर पहुंचा, तो रजनी उस से बोली, ‘‘तुम मुझे यहीं पर छोड़ दो, अब मैं खुद ही चली जाऊंगी.’’
‘‘अब मैं अस्पताल तक तो आ ही गया हूं, तो तुम्हारी बीमार बहन से मिल भी लेता हूं,’’ हितेश बोला और मोटरसाइकिल को स्टैंड पर लगाने लगा.
‘‘रहने दो, तुम्हें औफिस जाने में देर हो जाएगी.’’
‘‘बौस के किसी रिश्तेदार की तबीयत खराब है. वे आजकल रोज लेट से औफिस आते हैं, इसलिए लेट होने से डांट नहीं पड़ने वाली,’’ कह कर हितेश मुसकराया और रजनी के साथ हो लिया.