लेखक- रमेश चंद्र सिंह
रजनी ने बाथरूम में जल्दी से स्नान किया और होटल के वेटर से नीलेश द्वारा मंगाए खाने के लिए बैठी, तो नीलेश ने कहा, ‘‘इधर कई दिनों से सुबह ही घर से अस्पताल के लिए चल पड़ता हूं, इसलिए मैं भी लंच यहीं लेता हूं.’’
लंच लेते समय रजनी ने एक बार फिर नीलेश का दीदी के साथ संबंध पूछने के बारे में सोचा, लेकिन जब नीलेश खुद कुछ न बोला, तो उस ने भी इस वक्त इस बारे में ज्यादा कुरेदना सही नहीं समझा. सोचा, अब दीदी के होश आने पर ही वह इस बारे में उन्हीं से पूछ लेगी.
लंच खत्म करने के बाद वे दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए बैठे ही थे कि नीलेश को उस के चपरासी के भाई ने फोन पर बताया कि उस की दीदी को अब होश आ गया है. यह सुनते ही रजनी का चेहरा खुशी से चमक उठा.
नीलेश खुश हो कर बोला, ‘‘तुम्हारे आने से संध्या को एक नई जिंदगी मिली?है, रजनी. तुम्हारी बहन जितनी तुम्हारे लिए खास हैं, उतनी ही मेरे लिए भी हैं. चलो, चल कर उन से मिलें. तुम्हें देख कर वे बहुत खुश होंगी.’’
‘‘लेकिन, मुझे अब तक यह समझ में नहीं आया कि तुम मेरी दीदी के लिए इतना कुछ क्यों कर रहे हो?’’
‘‘तुम सब्र रखो. कुछ दिनों के बाद तुम खुद ही सबकुछ जान जाओगी. अभी हमें जल्द से जल्द चल कर संध्या से मिलना चाहिए. ब्रेन हैमरेज के दिन से ही वह कोमा में है.’’
रजनी आगे कुछ न बोली. वैसे भी उस ने तय किया था कि दीदी से ही वह इस बारे में जानने की कोशिश करेगी.