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मनीष की मम्मी बेटे का विवाह कहीं और करना चाहती थीं परंतु मनीष ने स्वाति को पसंद कर लिया. बेटे के हठ के आगे मां को झुकना पडा़, पर उन्होंने कभी दिल से बहू को स्वीकार नहीं किया. वह पहले दिन से ही स्वाति का विरोध करती रहीं. स्वाति जब कभी उन का कोई काम करती, वह उस में कमी अवश्य निकालतीं. स्वाति के ससुर जब भी उस का पक्ष लेते वह उन्हें भी डांट देती थीं.

विवाह के 2-3 दिन बाद उन्होंने सारे काम का दायित्व स्वाति को सौंप दिया था. धीरेधीरे स्वाति ने चुप्पी साध ली. इस बीच वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी फिर भी घर में उस का कोई महत्त्व नहीं था. मनीष स्वाति के साथ होते हुए अन्याय को देख कर भी अनदेखा कर देता था. मनीष की उदासीनता ने स्वाति को इस घर से चले जाने के लिए प्रेरित किया. वह सोचती, जहां रह कर उस का खुद का व्यक्तित्व कुुंठित हो रहा हो, वहां वह किस प्रकार अपने बच्चों की उचित परवरिश कर सकती है. इसलिए उस ने श्रीकांत को पत्र लिखा ताकि उस के पास रह कर वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करे. श्रीकांत ने स्वाति को बताया, फिलहाल, वह 7-8 दिन बडौ़दा में रुकने वाला था.

एक रात श्रीकांत और स्वाति छत पर जा कर बैठ गए थे. छत पर ठंडी हवा चल रही थी कितु स्वाति बहुत अधीर थी. अब तक श्रीकांत ने उस से चलने के बारे में कुछ नहीं कहा था. श्रीकांत के बैठते ही स्वाति ने उस का हाथ पकड़ लिया और रुंधे गले से बोली, फ्भैया, मुझे यहां से ले चलो. मैं अब और यहां नहीं रह सकती.

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