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कुछ दिनों तक स्वाति भैया की बातों पर विचार करती रही और अपने मन को तैयार करती रही, उस युú के लिए जिस में वह खुद अर्जुन थी और भैया के वाक्य उस के लिए गीता के उपदेशों के समान थे.

2-3 दिन बाद स्वाति के मामाजी का पत्र आया. उन की लड़की की बडौ़दा में रह रहे एक इंजीनियर लड़के से रिश्ते की बात चल रही थी. उन्होंने पत्र में स्वाति और मनीष से लड़का देखने का आग्रह किया था.

सुबह का समय था. मनीष आफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे. तौलिए से हाथ पोंछते हुए वह रसोई घर में आए और स्वाति से बोले, फ्शाम को लड़का देखने जाना है, तैयार रहना.

स्वाति ने मुड़ कर देखा. मम्मी फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल रही थीं. उस ने कहा, फ्मम्मी, शाम को आप को और पापा को हमारे साथ लड़का देखने जाना है.

फ्हम लोग जा कर क्या करेंगे? तुम दोनों देख आओ, मम्मी ने पानी गिलास में डालते हुए कहा.

फ्जितनी अच्छी तरह आप लड़के और उस के परिवार की जांचपरख कर लेंगी, हम दोनों नहीं कर पाएंगे.

फ्और यदि हमारी राय भिन्नभिन्न हुई तब? मम्मी ने पूछा.

फ्स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में आप की राय ही मानी जाएगी. मातापिता बच्चों से अधिक अनुभवी और समझदार होते हैं. उन का निर्णय गलत नहीं होता है, स्वाति ने विनम्रता से उत्तर दिया. मम्मी और मनीष कुछ आश्चर्यचकित हो कर स्वाति की ओर देखने लगे. शाम को वे चारों लड़का देखने चले गए थे.

अगले दिन रात में पायल स्वाति से कहानी सुनाने की जिद कर रही थी. स्वाति उस से बोली, फ्बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनते हैं. मैं छोटी थी, तब मुझे भी मेरी दादी अच्छीअच्छी कहानियां सुनाती थीं.

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