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लेखक: शकीला एस हुसैन

जब उस ने मां से शिकायत की तो मां ने उलटा उसे ही मुजरिम ठहराया. तंग आ कर जबीन घर से भाग निकली. जब वह ट्रेन से इस तरफ आ रही थी तो उसे महसूस हुआ कि एक आदमी उस का पीछा कर रहा है. घबरा कर वह अंजान स्टेशन पर उतर गई. वहीं उस की मुलाकात गुलशन से हुई.

गुलशन उसे अपनी मीठी बातों के जाल में फंसा कर अपने घर ले आई. 2 दिन उस की खूब खातिर की और फिर नौकरी दिलाने के बहाने कादिर के पास बेच कर आ गई. उस मासूम को इस छलकपट की खबर ही नहीं लगी.

मैंने गुस्से से कहा, ‘‘तुम दुनिया की सब से कमीनी औरत हो. जिस इज्जत की हिफाजत के लिए जबीन ने अपना घर छोड़ा था, तुम ने झूठी मोहब्बत का फरेब दे कर उस की इज्जत को नीलाम कर दिया. मैं तुम्हें कठोर सजा दिलवाऊंगा.’’

वो मगरमच्छ के आंसू बहाने लगी, जिस का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ.

‘‘तुम ने क्या कह कर उसे कादिर के हाथ बेचा था?’’

‘‘मैं ने कहा था यह मेरा भाई है. इस के 3-4 बच्चे हैं. इसे बच्चे संभालने के लिए एक औरत चाहिए. यह कह कर मैं ने उसे कादिर के हवाले कर दिया था. वह खुशीखुशी उस के साथ चली गई थी.’’

‘‘अब तुम्हारे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है. मैं तुम्हें मासूम लड़कियों की जिंदगी बरबाद करने के जुर्म में लंबे अरसे के लिए अंदर कर दूंगा.’’

दूसरे दिन मैं वजीराबाद रवाना हो गया. वहां मैं ने जबीन के सौतेले बाप और मां से मुलाकात की. उन लोगों को जबीन के बारे में कुछ पता नहीं था, न ही उन्हें उस की कोई फिक्र थी. उन लोगों ने उसे ढूंढने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. पूछताछ कर के मैं वापस गुजरांवाला आ गया.

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