पु त्तन कोई भी हो सकता है. आप का पड़ोसी, दीदी का देवर या फिर आप के मामामौसी के बेटे का साला या फिर हमारा पुत्तन. बात नाम को ले कर नहीं है, बात है उस के प्रेम को ले कर, जिस की शुरुआत 15 साल की उम्र से हो जाती है. अपने मांबाप का एकलौता सपूत, सरकारी टीचर का बेटा और पढ़ने में औसत.

अब औसत पढ़ाई करने वाला आप का बालक प्रेम कर बैठे तो यह प्रेम उसे कैसेकैसे दिन दिखा सकता है, यह तो  कहने की जरूरत ही नहीं है. 15 साल

की उम्र से शुरू होने वाला इस का प्रेम 25 साल की उम्र पर आ कर कब थम गया, उसे खुद को भी पता नहीं चला.

10वीं जमात की गरमियों की बात है. पुत्तन स्कूल के बाहर साइकिल की चेन ठीक कर रहा था कि तभी उस की नजर एक लड़की पर पड़ी और बिना कुछ जानेसम   झे पुत्तन तो जैसे इसे ही प्रेम सम   झ बैठा. अब इसे कौन बताए कि भैया पढ़ाई कर वरना पिताजी के कितने बेंत बरसेंगे, यह तो तुम्हें पता ही होगा.

पुत्तन से एक गलती भी हो गई. वह गलती थी प्रेमपत्र लिखने की. प्रेमपत्र लिखा भी गया और एक बच्चे के जरीए उसे मंजिल तक पहुंचाया भी गया, लेकिन लड़की इतनी बेवफा निकली कि वह प्रेमपत्र उस ने सीधे क्लास टीचर को दे दिया. क्लास टीचर ने प्रिंसिपल को और प्रिंसिपल ने सीधे पिताजी तक पहुंचा दिया.

घर आने पर पिताजी की सुताई से अक्ल ठिकाने आनी थी, वह सिर्फ 5 दिन तक आई और फिर छठे दिन पुत्तन अपनी पुरानी प्रेमिका

को भूलते हुए नए प्रेम की तलाश में निकल पड़ा.

नया प्रेम ज्यादा दूर नहीं था. पड़ोस के शर्माजी के यहां उन की भतीजी पढ़ने आई थी. तेजतर्रार और होशियार. काम निकालने की कला में माहिर. पुत्तन के भोंदूपन को देखते ही ताड़ लिया था.

प्रेमभरे शब्दों से जैसे ही उस ने पुत्तन को साइकिल पर स्कूल छोड़ने जाने को कहा, तो जैसे पुत्तन के तो हवा लग गई.

अब तो रोज पुत्तन साइकिल से शर्माजी की भतीजी को स्कूल छोड़ने जाता और ले कर आता. घर के बाहर से लेने की तो उस की हिम्मत कभी नहीं हुई, क्योंकि पिताजी और शर्माजी गहरे दोस्त थे.

पुत्तन का एकतरफा प्रेम परवान चढ़ता चला गया, लेकिन पुत्तन सिर्फ साइकिल से लड़की को छोड़ता और चुपचाप ले कर भी आ जाता. 2 साल निकल गए, पता ही नहीं चला. पुत्तन अब 17 साल का होगा, उस से थोड़ी  बड़ी उस की प्रेमिका 18 साल की.

तभी अचानक एक दिन जोश में आ कर पिताजी खबर लाए, ‘‘कल शर्माजी की भतीजी की सगाई है, हम को वहां चलना है.’’

यह सुन कर पुत्तन को तो जैसे काटो तो खून नहीं. क्या करे और क्या न करे. फिर उसे दोष दे तो कैसे दे? उसे कभी कुछ कहा भी तो नहीं.

खैर, सगाई वाला दिन भी आया. सारे मेहमानों को खाना खिलाना, पानी पिलाना, नाश्ता… सब काम पुत्तन अंदर ही अंदर रोता हुआ कर रहा था.

दूल्हादुलहन के हंसीमजाक के बीच में दुल्हन के मौसाजी पुत्तन को साइड में ले जा कर बोले, ‘‘अब तो जो होना था वह हो गया, अब तो सिर्फ पत्तलें उठाओ.’’

पुत्तन हैरान हो गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि पूरी दुनिया को तो पता चला नहीं, इन्हें कैसे पता है?

मौसाजी फिर धमक पड़े और बोल पड़े, ‘‘तुम सोच रहे होगे कि मु   झे

कैसे पता? धूप में बाल थोड़े ही सफेद किए हैं… और हम भी तो लड़की की खूबसूरत मां पर फिदा थे, लेकिन इन का तो खानदान ही ऐसा है. शादी उस की मां से करनी थी, मिल गई मां की चचेरी बहन. मेरे साथ भी नाइंसाफी हो गई भैया.’’

मौसाजी की बात से जैसे पुत्तन के घाव पर मरहम लगा हो और उसे लगा कि उस की तरह और भी लोग हैं.

इस के बाद पहले 4 दिन पुत्तन ने 15 घंटे पढ़ाई की, जो अपनेआप में एक रिकौर्ड था, फिर उस ने खुद का रिकौर्ड खुद ही तोड़ना शुरू कर दिया. अगले हफ्ते के आतेआते वही मटरगश्ती, दोस्तों के साथ साइकिल पर जाना, टैलीविजन देखना शुरू कर दिया.

अब तो जैसे पुत्तन को किसी की परवाह नहीं थी. ग्रैजुएशन की पढ़ाई में

2 बार फेल हो गया. परेशान हो कर पिताजी ने दुबे मास्टर के यहां पढ़ने भेज दिया.

पुत्तन को वाकई नहीं पता था कि यहां उस की जिंदगी का नया चैप्टर शुरू होगा. दुबे मास्टर की एक लड़की थी. उस का नाम था सुमन. पुत्तन की जिंदगी में अब तक आई लड़कियों में सब से अलग.

जब दुबे मास्टर बिजी होते, तो पुत्तन को सुमन ही पढ़ाती थी. पुत्तन को एक बार फिर से प्रेम हो गया, लेकिन इस बार प्रेम एकतरफा न हो कर दोतरफा था. वे जानते थे कि दोनों के घर वाले इस प्रेम को स्वीकार नहीं करेंगे, तो पुत्तन ने किसी तरह से उस लड़की को घर से भागने को राजी कर लिया.

पर जैसा कि आप जानते हो कि पुत्तन एकदम बेरोजगार, खयालीपुलाव नौजवान. उसे तो खुद को ही पता नहीं था कि वह क्या करेगा, तो फिर बेचारी उस लड़की को क्या खिलाता. शाम

तक दोनों के होश ठिकाने आ गए. लड़के के भी और लड़की के भी. लड़की ने फिर कभी न मिलने की कसम खा कर ‘बायबाय’ कर दिया.

पुत्तन 4 दिन तक कमरे में पड़ा रहा. वह तो भला हो किसी को पता नहीं चला, नहीं तो महल्लेपड़ोस में रहना मुश्किल हो जाता.

अब की बार पुत्तन को आटेदाल का भाव पता चल गया. पुत्तन ने तय कर लिया कि अब वह किसी के भी प्रेमजाल में नहीं फंसेगा. हर प्रेमिका बेवफा निकली.

खैर, आगे चल कर पुत्तन ने एक छोटी सी नौकरी ढूंढ़ निकाली. पिताजी के रोजरोज के तानों से तंग आ कर उस ने अपने बेरोजगार मिशन को विराम दिया. पिताजी के द्वारा मिलने वाला

भत्ता तकरीबन खत्म हो चुका था और माताजी की नजर अब पुत्तन का ब्याह करने पर थी.

एक तो सरकारी टीचर का बेटा, वह भी छोटे से मकान के साथ. छोटी सी नौकरी करने वाला. भला किस पिता की हिम्मत होती कि पुत्तन को अपनी लड़की दे. माता पक्ष के किसी रिश्तेदार की सांवलीसलोनी कन्या से उस का ब्याह तय हो गया.

कन्या घर तो आ गई, पर पुत्तन अभी भी अपनी पुरानी प्रेमिकाओं  के दिमाग, खूबसूरती और स्मार्टनैस में खो जाता. उस की गरीबी के बीच उस की प्रेमिकाएं किसी ठंडी हवा के    झोंके से कम नहीं थीं.

एक दिन बीच बाजार में तीनों देवियों के एकसाथ दर्शन हो गए. उस की ये प्रेमिकाएं अब काफी उम्र वाली और मोटी हो गई थीं. उन का ऐसा हाल देख कर उसे बड़ी हैरानी हुई.

पुत्तन का बरताव अपनी पत्नी और बच्चों के साथ काफी तल्ख था, घर आ कर अपनी दुबलीपतली लेकिन विनम्र पत्नी को देख कर उस को अपनी कामयाबी पर गर्व हुआ और उसे लगा जैसे उस ने किला फतेह कर लिया हो. उस की हालत तो घर में उन सभी लोगों से अच्छी है, जो बाहर प्रदर्शन ज्यादा करते हैं. आज पुत्तन को वाकई प्रेम हो गया.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...