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डा. हिमांशु अकसर उस से कहते, ‘‘अदिती, तुम्हें पीएचडी करनी है. मैं तुम्हारे नाम के आगे डाक्टर लिखा देखना चाहता हूं.’’

फिर तो कभीकभी अदिती बैठी पढ़ रही होती, तो कागज पर लिख देती, डा. अदिती हिमांशु. फिर शरमा कर उस कागज पर इतनी लाइनें खींचती कि वह नाम पढ़ने में न आता. परंतु बारबार कागज पर लिखने की वजह से यह नाम अदिती के हृदय में इस तरह रचबस गया कि वह एक भी दिन डा. हिमांशु को न देखती, तो उस का समय काटना मुश्किल हो जाता.

पिछले 2 सालों में अदिती डा. हिमांशु के घर का एक हिस्सा बन गई थी. सुबह घंटे डेढ़ घंटे डा. हिमांशु के घर काम कर के वह उन के साथ यूनिवर्सिटी जाती. फिर 5 बजे उन के साथ ही उन के घर आती, तो उसे अपने घर जाने में अकसर रात के 8-9 बज जाते. कभीकभी तो 10 भी बज जाते. डा. हिमांशु मूड के हिसाब से काम करते थे. अदिती को भी कभी घर जाने की जल्दी नहीं होती थी. वह तो डा. हिमांशु के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी.

इन 2 सालों में अदिती ने देखा था कि डा. हिमांशु को जानने वाले तमाम लोग थे. उन से मिलने भी तमाम लोग आते थे. अपना काम कराने और सलाह लेने वालों की भी कमी नहीं थी. फिर डा. हिमांशु एकदम अकेले थे. घर से यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी से घर... यही उन की दिनचर्या थी.

वे कहीं बाहर जाना या किसी गोष्ठी में भाग लेना पसंद नहीं करते थे. बड़ी मजबूरी में ही वे

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