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डा. हिमांशु जब भी अदिती से यह कहते, तो कुछ बनने की लालसा अदिती में जोर मारने लगती. उन्होंने अदिती को अपनी लाइब्रेरी में पार्टटाइम नौकरी दे रखी थी. डा हिमांशु जानेमाने नाट्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार थे. उन की हिंदी की तमाम पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगी हुई थीं. उन का लैक्चर सुनने और मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी. वे यूनिवर्सिटी से घर आते, तो रात 10 बजे तक उन से मिलने वालों की लाइन लगी रहती. नवोदित लेखकों से ले कर नाट्य जगत, साहित्य जगत और फिल्मी दुनिया के लोग भी उन से मिलने आते थे.

अदिती यूनिवर्सिटी में डा. हिमांशु को मात्र अपने प्रोफैसर के रूप में जानती थी. डा. हिमांशु पूरी क्लास को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, यह भी उसे पता था. उसी क्लास में अदिती भी तो थी. अदिती डा. हिमांशु की क्लास कभी नहीं छोड़ती थी.

लंबे, स्मार्ट, सुदृढ़ शरीर वाले डा. हिमांशु की आंखों में एक अजीब सा तेज था. सामान्य रूप से वे हलके रंग की शर्ट और ब्लू डैनिम पहनने वाले डा. हिमांशु पढ़ने के लिए सुनहरे फ्रेम वाला चश्मा पहनते, तो अदिती मुग्ध हो कर उन्हें ताकती ही रह जाती. जब वे अदिती के नोट्स या पेपर्स की तारीफ करते, तो उस दिन अदिती हवा में उड़ने लगती.

फाइनल ईयर में जब डा. हिमांशु की क्लास खत्म होने वाली थी, तो एक दिन प्रोफैसर साहब ने उसे मिलने के लिए डिपार्टमैंट में बुलाया.

अदिती उन के कक्ष में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘अदिती मैं देख रहा हूं कि इधर तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है. तुम अकसर मेरी क्लास से गायब रहती हो. पहले 2 सालों में तुम फर्स्ट क्लास आई हो. यदि तुम्हारा यही हाल रहा, तो इस साल तुम पिछले दोनों सालों की मेहनत पर पानी फेर दोगी.’’

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