‘‘अच्छी बात है,’’ सहसा महाराज ने आवाज में नरमी के साथ कहा. दासी नि:शब्द वहीं हाथ जोड़े खड़ी रही.
‘‘हमें बेगम का दीदार करवाओ, हम तुम्हें मुंहमांगा इनाम देंगे.’’
‘‘जरूर दीदार करवाऊंगी, तब आप को मुझ पर यकीन हो जाएगा कि हमारी मालकिन हकीकत में हुस्न और इल्म की मलिका हैं.’’ दासी अदब के साथ बोली.
इस पर महाराजा ने तुरंत उसे एक अंगूठी बतौर बख्शीश दे दी.
बादशाह के दरबार में गजसिंह का बहुत ही मानसम्मान था. शाहजहां उन की खूब इज्जत करते थे. आनबान का विशेष खयाल रखते थे. खातिरदारी में कोई शिकायत नहीं आने देना चाहते थे. साथ ही मन ही मन डरते भी थे कि गजसिंह किसी बात को ले कर नाराज न हो जाएं.
गजसिंह दासी जरीन का बेसब्री से इंतजार में करने लगे थे. नवाब साहब से उन्होंने खूब दोस्ती गांठ रखी थी. कभी उन के यहां जाना, तो कभी उन को अपने यहां बुलाना. यह सिलसिला चलता रहता था.
फिर एक दिन दासी जरीन आई. वह बहुत खुश थी. एकांत में गजसिंह से मिल कर बोली, ‘‘हुजूर, आज ही दोपहर को बेगम साहिबा आप का दीदार करना चाहती हैं.’’
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‘‘मगर कहां?’’ गजसिंह ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘यमुना के उस पार, पेड़ों के पीछे झुरमुट में.’’ जरीन ने महाराजा साहब से धीमे से कहा.
गजसिंह ने अपनी खुशी को बेकाबू होने से रोकते हुए कहा, ‘‘उन्हें हमारी ओर से पूरा यकीन दिला देना.’’
उस के बाद वह अपने विश्वस्त अंगरक्षकों के साथ यमुना नदी के पार समय रहते पहुंच गए. तेज धूप से रात में ठिठुरे पेड़ों और झाडि़यों को राहत मिल रही थी. यमुना का पानी भी छोटीछोटी लहरों के साथ तट से टकरा रहा था. गजसिंह ने एक घने झुरमुट में अपने सभी अंगरक्षकों को सावधान कर दिया. उस के बाद उन्होंने विशेष दासी देवली को एकांत में आने का इशारा किया.
उस के आने पर निर्देश दिया, ‘‘तुम बेगम की नाव के पास चली जाना. बेहद सावधानी से इस बात का ध्यान रखना कि आसपास कोई संदिग्ध व्यक्ति न हो.’’
‘‘आप निश्चिंत रहिए, हुजूर.’’ देवली इतना कह कर चली गई.
थोड़ी देर में एक नाव धीमी गति से आती दिखाई दी. छोटी सी नाव के तट के पास आने से पहले गजसिंह एक बड़े वृक्ष के मोटे तने के पीछे छिप गए. वह निकट आती नाव को अपलक देखने लगे. देखते ही देखते नाव तट पर आ लगी. उसे 2 मल्लाह खेव रहे थे.
उस में सवार जरीन नीचे उतरी. उस के साथ बुरके में एक और औरत थी. निश्चित तौर पर वही अनारा बेगम थी. जरीन ने इधरउधर देखा, तभी वहां देवली आ गई. जरीन के कुछ बोलने से पहले ही बोल पड़ी, ‘‘बेगम साहिबा, मैं महाराजा गजसिंह राठौड़ की खास बंदी हूं. आप मेरे साथ चलिए.’’
‘‘नहीं जरीन, हम इन्हें नहीं जानते.’’ बुरके में आई अनारा सुमधुर आवाज में बोली.
जरीन के कुछ कहनेसुनने से पहले ही गजसिंह तेजी से वृक्ष की ओट से बाहर निकल आए, ‘‘जरीन, हम यहां हैं.’’
जरीन ने इधरउधर देखा और बेगम साहिबा को ले कर एक झुरमुट में घुस गई. झुरमुट क्या था, वह पूरी तरह झाडि़यों और लताओं से चारों ओर से घिरी शांत एकांत जगह थी.
घनी लताओं में छोटेछोटे फूल भी खिले थे. वे गंधहीन थे, किंतु उन की खास किस्म की खूबसूरती सुगंधित होने का एहसास देने जैसी थी.
जरीन ने तुरंत अदब बजा कर कहा, ‘‘महाराज, मेरा ईनाम?’’
महाराजा ने भी झट से अपने गले का एक बड़ा हार उतार कर उसे सौंप दिया. जरीन थोड़ी दूर चली गई. रह गई बुरके में बेगम. अनारा बेगम. बुरके में तराशी गई प्रतिमा की तरह खड़ी सामने आई.
गजसिंह उस के समीप जा कर धीमी आवाज में बोले, ‘‘इस परदे को दूर कीजिए बेगम साहिबा.’’
कुछ पल में जैसे ही सामने खड़ी बेगम ने बुरका उतारा, उस के अद्वितीय सौंदर्य और कोमलांगी काया को देख कर गजसिंह सहसा बोल पड़े, ‘‘अति सुंदर. हम नहीं जानते थे कि यह प्यार किस किस्म का है, पर इतना जरूर है कि हम आप से मिलने को तड़प रहे थे. रातदिन बेचैनी की सांसें चल रही थीं..’’
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बेगम चुपचाप निस्तब्ध गजसिंह की बातें सुनती रही और वह लगातार बोलते जा रहे थे, ‘‘शायद इसीलिए प्रेममोहब्बत प्यार करने वालों के बारे में लोगों ने कहा है कि वे जन्मजन्मांतर से प्रेम करते आए हैं.’’
अनारा जवाब में कुछ भी नहीं बोली. तब गजसिंह उस के और समीप आ गए. बेगम का चेहरा धूपछांह वाली रोशनी में और भी चमक रहा था. हाथ में बुरका थामे खड़ी बेगम की ओर महाराजा ने हाथ बढ़ाया. थोड़ा पीछे हटती हुई अनारा बोल पड़ी, ‘‘ओह!’’
महाराजा स्तब्ध खड़े उसे निहारते रहे. बेगम साहिबा की आवाज सुनने का इंतजार करते रहे. जब वह कुछ नहीं बोली, तब वह खुद ही बोल पड़े, ‘‘जरीन सच में ही कहती थी कि हमारी अनारा बेगम साहिबा चांद का टुकड़ा हैं. उस ने आप के बारे में इस तरह बताया था कि मानो वह नहीं आप ही खुद हम से बातचीत कर रही हों. इस पहली मुलाकात में हम सब कुछ नहीं कहते हैं, सिर्फ इतना ही वादा करते हैं कि हम आप के लिए सब कुछ न्यौछावर कर सकते हैं.’’
इतना सुनने के बाद अनारा बेगम ने अपनी पंखुडि़यों सी पलकों को आहिस्ता से खोला. बहुत ही मद्धिम स्वर में बोली, ‘‘आप के बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हूं, हम भी वफा नहीं छोड़ेंगे, आप यकीन रखें.’’
इतना सुनना था कि महाराजा का मन दहक उठा. उन्होंने बढ़ कर अनारा बेगम के हाथ थाम लिए. और उन्हें चूम कर कहा, ‘‘विदा.’’
बेगम ने सिर्फ खामोशी से सलाम किया.
उस के बाद दिनप्रतिदिन उन का प्यार बढ़ता चला गया. महाराजा गजसिंह अपना सारा धैर्य, संस्कार, सरोकार, गौरव, मानमर्यादा और अपनी आनबान को भूल कर अनारा बेगम के प्यार में खो गए.
अनारा बेगम ने भी किसी की परवाह न कर के गजसिंह को अपना तनमन समर्पित कर दिया. उन का इश्क परवान चढ़ने लगा.
वे खुलेआम मिलने लगे. उन के प्यार के चर्चे भी शुरू हो गए. मुसलमानों को यह अनुचित लगा. उन्होंने नवाब फजल से इस की शिकायत कर दी. पहले तो नवाब को विश्वास नहीं हुआ, पर बाद में जब उन्हें भी सच्चाई मालूम हुई, तब वह भी सजग हो गए.
फिर क्या था, उन्होंने अनारा पर प्रतिबंध लगा दिया. अनारा बेगम कहीं आजा नहीं सकती थीं. ड्योढ़ी पर भी कड़ा पहरा बिठा दिया गया था.
एक बार जरीन ने देवली को अपने यहां बुलवाया. बेगम ने दर्द भरे स्वर में कहा, ‘‘मैं महाराजा के पास आऊंगी. मैं उन के बिना रह नहीं सकती. उन्हें मेरी ओर से हाथ जोड़ कर कहना कि वह मुझे यहां से आजाद करवा लें.’’
देवली ने बेगम को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘महाराजा तो स्वयं आप के प्यार में बेचैन हैं. उन्होंने कहा है कि आप उन से एक बार मिल लें, सिर्फ एक बार. क्या आप उन से मिल नहीं सकतीं?’’
‘‘कैसे मिल सकती हूं देवली, नवाब साहब खुद बादशाह सलामत के खास आदमी हैं. मुझे डर इस बात का है कि कहीं मेरी वजह से कोई बड़ा खूनखराबा न हो जाए.’’
‘‘मैं इस का क्या जवाब दूं? आप किसी भी तरह उन से एक बार बस मिल लीजिए.’’
कुछ क्षणों तक सन्नाटा छाया रहा. बेगम सोचती रहीं. सहसा चेहरे पर प्रसन्न्नता की रेखा उभरी. वह बोली, ‘‘महाराजा गजसिंह महल के पश्चिमी झरोखे में आ सकते हैं क्या? उन्हें कहना कि मैं वहां उन का इंतजार करूंगी.’’
देवली ने आ कर यह बात महाराजा गजसिंह को बताई. सुन कर महाराजा और भी व्याकुल हो गए. उन्हें लगा कि बेगम के बिना यह जीवन, यह भोगविलास, यह शौर्य और शानोशौकत सब व्यर्थ है. अनारा बेगम का प्यार और साहस देख कर वह बेचैन हो उठे.
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‘‘मैं आऊंगा देवली, तू बेगम से जा कर कह दे कि वह झरोखे में रस्सी की सीढि़यां बना कर डाल दें. मैं उस रस्सी से झरोखे में पहुंच जाऊंगा.’’
देवली चली गई. निश्चित समय पर महाराजा अपने व्यक्तित्व की महत्ता को भूल कर साधारण प्रेमी की भांति चल पड़े. वह हाथी पर थे. जैसे ही हाथी झरोखे के नीचे पहुंचा वैसे ही बेगम ने रस्सी की सीढि़यां लटका दीं. महाराजा पलक झपकते उस पर चढ़ गए.
‘‘बेगम!’’ गजसिंह अनारा का हाथ थामते हुए बोले.
‘‘महाराजा, आप कुछ भी कहिए, पर यह सच है कि हम मोहब्बत की राह में बहुत आगे बढ़ गए हैं. अब मैं आप के बगैर जिंदा नहीं रह सकूंगी. पता नहीं आप क्या सोचते हैं.’’ बेगम ने भी राजा का हाथ थामते हुए कहा.