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महाराजा ने उस के नाजुक हाथ को चूमते हुए कहा, ‘‘बेगम, मैं बहुत ही अय्याश रहा हूं, लेकिन आप से प्यार होने के बाद मेरा दिल बदल गया है. मैं भी बदल गया हूं. मुझे लगता है कि वह गजसिंह जो औरतों को खेल और भोग विलास की वस्तु समझता था, मर गया है.’’

प्रकाश धीमा था. बेगम रुंधे गले से बोली, ‘‘कुछ कीजिए न, मुझ से अब अलगाव नहीं सहा जाता. मैं कब तक मोहब्बत की झूठी बातों से नवाब को भरमाए रखूंगी. जिंदगी जीने का असली लुत्फ तो आप के साथ है. सच, मैं आप के इश्क के साए में इन बलिष्ठ भुजाओं में ही दम लेना और तोड़ना चाहती हूं. मैं नवाब के साथ हरगिज नहीं रह सकती.’’

गजसिंह बाहर फैले अंधेरे को देखते रहे, बेगम खिड़की की चौखट पर सिर रख कर लंबीलंबी सांसें ले रही थी. गज सिंह ने तभी कहा, ‘‘अनारा मेरी जान, चिंता मत करो, मैं आप के लिए संसार की सारी खुशियां छोड़ सकता हूं. मैं आप को वचन देता हूं कि आप को प्राण रहते नहीं छोड़ूंगा. मैं राजपूताने का वीर हूं. क्षत्रिय हूं. क्षत्रियों में राठौड़ हूं. हम राजपूत अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए सिर कटने के बाद भी धराशाई नहीं होते. आप को अपनी तलवार पर हाथ रख कर भरोसा देता हूं कि आप का वही ओहदा होगा, जो हमारे महलों में पटरानी का होता है.’’

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‘‘फिर आप मुझे यहां से ले चलिए,’’ अनारा बेगम ने कहा.

‘‘मैं आप को अभी ले जा सकता हूं.’’

‘‘फिर देरी क्यों?’’

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