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राजामहाराजे का एक दौर था, जब जोधपुर में जोधाणे की ख्यातिप्राप्त रियासत थी. वहां के महाराजा गजसिंह राठौड़ की आगरा, लखनऊ, और दिल्ली के नवाबों के बीच भी काफी चर्चा होती थी.

एक रोज वह आगरा के नवाब फजल के घर शयनकक्ष में मखमली बिस्तर पर नींद में थे. वह जहां सो रहे थे, वहीं समीप जल रहे एक दीपक की मद्धिम रोशनी में बिस्तर पर बिछी जरीदार गद्दे चमक रहे थे.

कल रात शराब ज्यादा पीने से महाराजा अलसाए हुए अनिद्रा में थे. चाह कर भी नहीं उठ पा रहे थे. जबकि सुबह होने वाली थी. नौकर कई बार आ कर देख चुका था. वह चिंता में था कि महाराजा साहब समय पर क्यों नहीं उठे हैं. मगर वह उन्हें जगाना नहीं चाहता था.

रात की खुमारी जैसे उन की आंखों की पलकों पर जमी बैठी थी. मानो वह पलकों की बोझिलता के साथ एक अनोखी दुनिया में होने जैसे सपनीली मादकता के एहसास में हों. रेशमी जरीदार कमरबंद, किनारी में झूलती हुई स्वर्णिम जरी, गले में चमकता अमूल्य हार, कानों में लौंग और हाथों में सोने के कड़े.

वह कल रात मुगल सम्राट शाहजहां के विशेष कृपापात्र नवाब फजल के घर आमंत्रित किए गए थे. नवाब फजल ने गजसिंह के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. जबरदस्त महफिल जमी थी. कुछ अन्य सरदार और रसूखदार वहां बैठे थे. सभी को उम्दा शराब परोसी गई थी. सुरा के साथ सुंदरी का भी इंतजाम किया गया था.

ईरानी हसीन नर्तकी ने हुस्न के जलवे बिखेरे थे. और फिर नृत्य, गायनवादन से शमा परवाने की रातें रंगीन होने लगी थीं. देर रात तक जश्न चला था. सुंदरी ने सभी अतिथियों को शराब के मनुहार से संतुष्ट किया था.

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