अब सोचती हूं कि जिस से मैं ने सालों पहले कैलिफोर्निया में कुत्ता रखने के बारे में बात की थी, उसे नहीं पता कि वह क्या कह रही थी. उस ने मुझे साफ मना कर दिया था. उस के विचार से कुत्ता मुझ से किसी भी हालत में जुड़ नहीं सकता क्योंकि मैं उस की देखभाल नहीं कर सकती. मैं तो उसे खाना तक नहीं दे सकती हूं. ऐसी हालत में कुत्ता मुझ से बिलकुल नहीं जुड़ेगा. पर वह गलत थी क्योंकि टौमी को तो मुझ से जुड़ने में जरा भी समय नहीं लगा.
टौमी के लिए यह कोई मसला ही नहीं था कि कौन उस के लिए खाना रखता है. जब तक मैं न कह दूं, वह खाने को छूता तक नहीं था. मेरी कुरसी के बायीं ओर उस का एक छोेटा व लचीला पट्टा बंधा होता था. वह जानता था कि छोटा पट्टा काम का पट्टा है और लचीला, छोटाबड़ा होने वाला आराम से घूमने वाला पट्टा है. वह मेरे स्वामी होने के एहसास को अच्छी तरह जानता था. उसे पता था कि घर का मालिक कौन है, चाहे उसे खाना कोईर् भी परोसे.
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टौमी मेरी असमर्थताओं को भी जान गया था. उस ने समाधान निकाल लिया था कि मैं कैसे उसे सहला सकती हूं, उसे कैसे अपना प्यारदुलार दे सकती हूं. अपनी परिचारिका की सहायता से सुबहसुबह मैं थोड़ाथोड़ा अपनी बाहों को फैलाने की चेष्टा करती थी. हमारे रिश्ते की शुरुआत में ही टौमी, जब मेरी बाहें अधर में, हवा में होतीं, मेरे सीने पर आ जाता और मेरी गरदन चाटने लगता और फिर अपने शरीर को मेरे हाथों के नीचे स्थापित कर लेता. उस का यह प्रयास हर रोज सुबह के नाश्ते से पहले उस के आखिरी दम तक बना रहा.
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