मित्र के सुझाव पर फिर यह विचार पनपने लगा क्योंकि उस के साथसाथ मैं ने भी महसूस किया कि सचमुच मुझे कुत्ते की आवश्यकता है. मैं स्वयं को अकेला, असुरक्षित सा महसूस करने लगी थी. स्टोर का या थोड़ा सा बाहर घूमने जाने का काम, जो मैं अकेले कर सकती थी, उस के लिए भी मैं अपनी परिचारिका को साथ घसीटे रहती थी यह जानते हुए भी कि मुझे उस की जरूरत नहीं. कोईर् भी व्यक्ति मेरी दशा देख कर अपनेआप ही मेरे लिए दरवाजा खोल देता या दुकान वाले मेरी पसंद की चीज मुझे अपनेआप काउंटर से उठा कर दे देते व मेरे पर्स से यथोचित पैसे निकाल लेते. मैं मन ही मन सोचती कि ऐसी कई बातों के लिए मुझे किसी भी परिचारिका की जरूरत नहीं है. मैं स्वयं ही यह सब कर सकती हूं, फिर भी नहीं कर रही हूं.
एक दिन तो बाजार से आते हुए फुटपाथ पर कठपुतली का नाच देखने के लिए रुक तो गई, मजा भी आया पर फिर पता नहीं क्यों, बस घर जाने का ही मन करता रहा और वहां रुक न सकी. हालांकि मैं परिचारिका की छुट्टी कर स्वयं घर जाने में सक्षम थी. रुकने का मन भी था और घर में ऐसा कुछ नहीं था जिस के लिए मुझे वहां जल्दी पहुंचने की विवशता हो.
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कई बार मित्रों के साथ फुटबौल देखने जाने का आमंत्रण या अन्य कार्यक्रमों के आमंत्रण भी स्थगित करती रही. पता नहीं क्यों, असुरक्षा की भावना से ग्रसित रही.
एक दिन गरमी की छुट्टियों में अपनी कौटेज में थी तब फिर पालतू कुत्ता रखने की भावना ने जोर पकड़ा. हुआ यों कि दोपहर के समय मेरे भाईबहन के बच्चे पास के बाजार में घूमने के लिए चले गए और मेरी परिचारिका मेरे साथ बैठेबैठे झपकी लेने लगी. मैं ने उसे अंदर जा कर सोने के लिए कहा. बाद में मैं बोर होने लगी और बिना किसी को बताए घूमने के लिए चल दी.
ड्राइववे के आगे थोड़ी सी ढलान थी. चेयर को संभाल न सकी और मैं घुटनों के बल गिर गई. चिल्लाने की कोशिश की, यह जानते हुए भी कि वहां सुनने वाला कोई नहीं है. तब सोचा, काश, मेरे पास कुत्ता होता. परिचारिका की नींद खुलने पर मुझे अपनी जगह न पा वह मेरा नाम पुकारतेपुकारते ढूंढ़ने निकली. मेरी दर्दभरी आवाज सुन वह मुझ तक पहुंची.
मैं ने अब मेरे जैसे लोगों की सहायता करने वाले ‘वर्किंग डौग’ की सक्रिय रूप से खोज करनी शुरू की. नैशनल सर्विस डौग्स संस्था के माध्यम से मैं ने टौमी को चुना. या यों कहें कि टौमी ने मुझे चुना. वहां के कार्यकर्ता टौमी के साथ मुझे जोड़ने से पहले यह देखना चाहते थे कि वह मेरी व्हीलचेयर के साथ कैसा बरताव करता है, मेरी चेयर के प्रति उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी. मुझे टौमी के बारे में कुछ भी बताए बिना उन्होंने मुझे टोटांटो स्पोर्ट्स सैंटर में आमंत्रित किया जहां 6 कुत्तों से मेरा परिचय कराया. टौमी मेरी चेयर के पास ही सारा समय लेटा रहा.
बेला, जिस ने टौमी को पालापोसा था, ने बताया था, ‘टौमी शुरू से ही अलग किस्म का था. छोटा सा पिल्ला बड़ेबड़े कुत्तों की तरह गंभीर था. इस की कार्यप्रणाली अपनी उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व थी. लगता था कि उसे पता था कि वह इस संसार में किसी महत्त्वपूर्ण काम के लिए आया है.
टौमी को स्वचालित दरवाजों के बटन दबा कर खोलना, रस्सी को खींच कर कार्य करना, फेंकी हुई चीज को उठा कर लाना या बताने पर कोई वस्तु लाना, जिपर खोलना, कोट पकड़ कर खींचना, बत्ती का बटन दबा कर जलाना या बुझाना, बोलने के लिए कहने पर भूंकना आदि काम सिखाए गए थे. टौमी हरदम काम को बड़े करीने से करता था.’
‘पर, हां, वह शैतान भी कम नहीं था. एक दिन बचपन में उस ने 7 किलो का अपने खाने का टिन खोल डाला और उस में से इतना खाया कि उस का पेट फुटबौल की तरह फूल गया था. और फिर उस के बाद इतनी उलटी की कि बच्चू को दिन में भी तारे नजर आने लगे. लेकिन फिर कभी उस ने ऐसा नहीं किया.
‘टौमी को मेरे फ्लैट और पड़ोस में प्रशिक्षित किया गया. रोज प्रशिक्षित करते समय उसे बैगनी रंग की जैकेट पहनाईर् जाती. जैकेट जैसे उस का काम पर जाते हुए व्यक्ति का बिजनैस सूट था. उस की जैकेट उस के लिए व बाकी लोगों के लिए इस बात का संकेत थी कि वह इस समय काम पर तैनात है. लोगों के लिए यह इस बात का भी संकेत था कि वे ‘वर्किंग डौग’ के काम में उसे थपथपा कर, पुचकार कर उस के काम में वे बाधा न डालें.’
शुरू में मुझे यह अच्छा लगा कि टौमी फर्श पर अपने बिस्तरे में सोए. पहली
2 रातें तो यह व्यवस्था ठीकठाक चली. तीसरी सुबह टौमी ने मेरे बिस्तरे के पास आ कर मेरे चेहरे के पास अपना मुंह रख दिया. मैं भी उस का विरोध न कर पाई और उसे अपने बिस्तरे पर आमंत्रित कर बैठी. उस ने एक सैकंड की भी देरी नहीं की और मेरे बिस्तरे पर आ गया. जब मुझे बिस्तर से मेरी व्हीलचेयर पर बैठाया गया तो वह मेरे शरीर द्वारा बिस्तर पर बनाए गए निशान पर लोटने लगा. मुझे कुत्तों के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था, फिर भी मेरे विचार से वह मेरे शरीर की खुशबू में स्वयं को लपेट रहा था. उस दिन से वह हर समय मेरे साथ ही सोने लगा था, फिर कभी वह फर्श पर नहीं सोया.
टौमी ने जल्दी ही सीख लिया था कि मेरी व्हीलचेयर कैसे काम करती है. पहले हफ्ते गलती से व्हीलचेयर के नीचे उस का पंजा आतेआते बचा था. उस के बाद से वह कभी भी मेरी व्हीलचेयर के नीचे नहीं आया. चेयर की क्लिक की आवाज पर वह तुरंत उस से नियत फासले पर काम की तैनाती मुद्रा में खड़ा हो जाता. आरंभ से ही लोगों ने मेरे प्रति उस की प्रतिक्रिया की तारीफ करनी शुरू कर दी थी. वह शुरू से अपनी प्यारीप्यारी आंखों द्वारा मेरे चेहरे को देखते हुए मेरे आदेश, निर्देश व आज्ञा की कुछ इस तरह प्रतीक्षा करता था कि मेरा मन स्वयं ही उस पर पिघल जाता था.
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अधिकतर लोग कुत्तों को प्यार करते हैं और टौमी को देख तो वैसे ही प्यार उमड़ पड़ता था. पहले महीने जब मैं एक सरकारी रिसैप्शन में गई तो मुख्यमंत्री ने मुझ से हाथ मिलाने के बाद पूछा, ‘क्या मैं इसे सहला सकता हूं?’ मैं ने कहा कि अभी यह काम पर तैनात है. मुझ से बात करने के बाद जब वे अगले व्यक्ति से बात करने लगे तो टौमी जल्दी से उन की टांगों पर अपना भार डाल उन के पैरों पर बैठ गया. मुख्यमंत्री हंस कर बोले, ‘अरे, मुझे इसे सहलानेदुलारने का मौका मिल ही गया.’
गोल्डन रिट्रीवर और लैब्राडोर अच्छी नस्ल के और अपने खुशनुमा स्वभाव के कारण सब से अच्छे वर्किंग डौग होते हैं. काम इन के लिए सचमुच आनंददायी होता है. टौमी तो हरदम ऐसा पूछता हुआ लगता कि बताओ, अब मैं और क्या करूं? ये खाने के भी शौकीन होते हैं. मैं काम करते समय अपने उस स्टैंड के पास, जिस पर मेरी ‘माउथस्टिक’ होती थी, जिस से मैं काम करने के लिए बटन दबाया करती थी, उस के लिए बिस्कुट रखती थी और उसे उस के हर अच्छे काम पर इनामस्वरूप बिस्कुट नीचे गिरा देती थी. कुछ ही दिनों में टौमी इतना कुशल हो गया था कि वह उन्हें बीच रास्ते में हवा में ही पकड़ लेता था.