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राजनीति में एक परंपरा सी बन गई है. आकर्षक नारा दे कर जीतो और उस के बाद उस नारे का खून कर दो. चौधरीजी के विचार इस से इतर न थे. परंपरा का निर्वाह करना वह बखूबी जानते थे. राजनीति का चस्का ही ऐसा होता है कि कुरसी के लिए लोग अपनी बीवीबच्चों तक को दांव पर लगा देते हैं. स्वार्थ और लोभ राजनीति को कठोर व बेशर्म बना देते हैं.

इधर चौधरीजी चुनाव जीते उधर योजना के अनुसार कल्पना को खत्म करने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए. पर हर बार वह साफ बच गई. उसे खरोंच तक न लगी. चौधरीजी का परिवार तो यही सोचता कि पता नहीं कौन सा रहस्यमयी चमत्कार हो जाता है जो वह बच जाती है पर हकीकत तो यह थी कि पुलिस में सालों नौकरी कर कल्पना यह तो जान ही गई थी कि उस के खिलाफ घर में षड्यंत्र रचा गया है अत: वह अपना हर कदम फूंकफूंक कर रखती थी.

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एक बार उस को छत पर सूख रहे कपड़ोें को लाने भेजा गया और पीछे सीढि़यों पर मोबिल आयल डाल दिया गया पर वह कपड़ों का गट्ठर सुरक्षित ले कर उतर आई. यहां भी कल्पना की सूझबूझ काम आई. इसी प्रकार टांड़ पर आगे 10 लिटर का भारी कूकर रख बाहर से एग्जास्ट फैन के छेद से डंडे द्वारा कुकर को जोर से ठेला गया ताकि सीधे नीचे खड़ी कल्पना के सिर पर गिरे जो उस समय रोटी बना रही थी पर जैसे ही डंडे को कुकर की तरफ बढ़ते उस ने देखा अपने हाथ की लोई गिरा कर उसे उठाने के लिए वह आगे सरक गई. इतने में कुकर ठीक उसी जगह गिरा जहां वह खड़ी थी.

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