प्यारे मियां 13 वर्ष के थे. वह मेरे साथ ही नवीं कक्षा में पढ़ते थे. पढ़ते तो क्या थे, बस, हर समय खेलकूद में ही उन का मन लगा रहता. जब अध्यापक पढ़ाते तो वह खिड़की से बाहर मैदान में झांकते रहते, जहां लड़के फुटबाल, कबड्डी या गुल्लीडंडा खेलते होते.

अपनी इन हरकतों पर वह रोज ही पिटते थे, स्कूल में और घर पर भी. उन के पिता बड़े कठोर आदमी थे. खेलकूद के नाम से उन्हें नफरत थी. उन के सामने खेल का नाम लेना भी पाप था. वह चाहते थे कि प्यारे मियां बस दिनरात पढ़ते ही रहें. अगर वह कभी खेलने चले जाते तो बहुत मार पड़ती थी. यही कारण था कि प्यारे मियां स्कूल में जी भर कर खेलना चाहते थे. अंत में वही हुआ जो होना था. वह परीक्षा में उत्तीर्ण न हो पाए. पिता ने जी भर कर उन्हें मारा.

प्यारे मियां हर खेल में सब से आगे थे. स्वास्थ्य बड़ा अच्छा था. उन का शरीर भी बलिष्ठ था. एक दिन उन की मां उन्हें पीर साहब के पास ले गईं. पीर साहब नगर से बाहर एक खानकाह में रहते थे. नगर के लोग उन के चमत्कारों की कहानियां सुनसुन कर उन के पास जाया करते थे. कोई किसी रोग का इलाज कराने जाता, कोई संतान के लिए और कोई मुकदमा जीतने के लिए. पीर साहब किसी को तावीज देते, किसी को फूंक मार कर पानी पिलाते. पीर साहब का खलीफा हर आने वाले से 11 रुपए ले लेता था.

प्यारे मियां की मां को भी पीरों पर बड़ा विश्वास था. उन का कहना था कि पीरों में इतनी शक्ति होती है कि वह सबकुछ कर सकते हैं. जिसे जो चाहे दे दें और जिसे चाहें बरबाद कर दें.

मां ने पीर साहब से हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘इस का पढ़ाई में मन नहीं लगता. आप कुछ कीजिए.’’

पीर साहब ने आंखें बंद कीं. कुछ बुदबुदाए, फिर बोले, ‘‘मुर्गे के खून से एक तावीज लिखा जाएगा. काले रंग का एक मुर्गा लाओ. 40 दिन लड़के को हम अपना फूंका हुआ पानी पिलाएंगे.’’

अगले दिन प्यारे मियां के गले में तावीज पड़ गया.

प्यारे मियां रोज पीर साहब का दम किया हुआ पानी पी रहे थे.

मां खुश थीं कि अब वह खेलकूद में अधिक ध्यान नहीं देते थे. कक्षा में चुपचाप बैठे रहते. घर जाते तो कमरे में जा कर पड़ जाते. वह कुछ थकेथके से लगते थे. उन्हें हलकाहलका बुखार रहने लगा था और खांसी भी.

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मैं ने उन की मां को समझाया, ‘‘पीर साहब और तावीज के चक्कर में न पड़ें. प्यारे मियां का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है. उन्हें डाक्टर को दिखाएं.’’

मां ने तुरंत कहा, ‘‘बेटा, हमारा पीर साहब पर विश्वास है. तुम ने देखी नहीं उन की करामात. प्यारे से खेलकूद सब छुड़वा दिया. वही प्यारे को ठीक भी कर देंगे.’’

मैं ने फिर कहा, ‘‘प्यारे मियां का खेलकूद में इतना ध्यान देना कोई गंभीर बात नहीं थी. अगर उन्हें खेलकूद से इतनी सख्ती से न रोका जाता तो वह भी केवल इतना ही खेलते जितना और सब लड़के. अधिक प्रतिबंध लगाने का प्रभाव उलटा ही हुआ. जितना उन्हें खेल से रोका गया वह उतना ही खेल के दिवाने होते गए. दोष आप का है. और फिर पीर साहब का चक्कर. आप देखतीं नहीं कि प्यारे मियां बीमार हैं? इसी कारण वह खेलकूद भी नहीं रहे हैं.’’

परंतु मां ने मेरी बात अनसुनी कर दी.

एक दिन प्यारे मियां को खांसी के साथ खून आया. उन्हें डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने तपेदिक का रोग बताया. उसी डाक्टर से पीर साहब भी अपना इलाज करा रहे थे. 40 दिन तक फूंका हुआ पानी पिला कर पीर साहब ने अपनी तपेदिक की बीमारी के कीड़े प्यारे मियां के शरीर में पहुंचा दिए थे. यह भी उन की करामात थी.

प्यारे मियां के मांबाप सिर पीट रहे थे. वे अपनेआप को और अपने अंध- विश्वास को बारबार कोस रहे थे.

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