अंतिम भाग

पूर्व कथा

शोभना अब भी बच्चों की पुरानी चीजों, उन से जुड़ी हर बात से मोह नहीं छोड़ पाई थी. उन से जुड़ी बातों को याद करकर के मन को बहला लेती जबकि नरेंद्र अकसर उस के ऐसा करने पर उसे रोका करते. बेटों के पास जा कर रहने से भी अब शोभना कतराने लगी थी.

वह बीती बात भूली नहीं थी जब मोहित के बेटे मयूर के जन्मदिन पर उन के पास जाने की उस ने पूरी तैयारी कर ली थी लेकिन रिजर्वेशन करवाने से पहले मोहित से बात की तो उस ने कहा कि हम मयूर का जन्मदिन मना ही नहीं रहे. नरेंद्र ने शोभना को समझाया कि वह उन्हें घर आने के लिए मना नहीं कर रहा लेकिन शोभना का तर्क था कि आने के लिए भी तो नहीं कहा. अब आगे...

गतांक से आगे...

शोभना की बात सुन नरेंद्र ने बात बदल देने में ही खैरियत समझी, ‘क्यों न हम कुछ दिनों के लिए मयंक के पास चलें...’ मेरे प्रस्ताव से सहमत थी वह, पर हां या ना कुछ नहीं कहा.

मयंक से बात भी हुई, ‘नहीं, डैडी, इतनी गरमी में आप लोग प्रोग्राम न ही बनाएं तो बेहतर होगा...’

‘वह भला क्यों, बेटा? आखिर तुम सब भी तो रह रहे हो वहां,’ थोड़ा विचलित हो उठा था मैं...अपने लिए नहीं, शोभना के लिए...क्या सोचेगी अब वह...?

‘हम लोगों की बात छोडि़ए, डैड, हम सब को तो आदत पड़ गई है, पर आप लोग परेशान हो जाएंगे...एक तो पावर कट की प्राब्लम, उस पर से इन्वर्टर भी बीच में बोल जाता है.

सोच रहा हूं एक जेनरेटर ले ही लूं. पर उस का भी शोर सहना आप दोनों के वश का नहीं,’ स्पीकर आन था...कुछ भी कहना नहीं पड़ा मुझे, सब कुछ खुद ही सुन लिया था शोभना ने...थोड़ी देर के लिए खामोशी पसर गई हमारे बीच.

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