पूर्व कथा

ज्योत्स्ना अपनी बेटी डा. भावना से शादी में आने वाले मेहमानों की लिस्ट के बारे में पूछती हैं तो वह अपने खास दोस्त को बुलाने की बात कह कर कार में बैठ कर अस्पताल चली जाती है. कार ड्राइव करते हुए उस की आंखों के सामने बीमार पिता का चेहरा घूमने लगता है जो उसे और उस की मां को छोड़ कर चला गया था. अस्पताल में उस की मुलाकात डा. आर्या से होती है. मरीज निबटाने के बाद चाय पीते हुए वह अतीत में खो जाती है. अपने पापा के यों घर छोड़ कर जाने के बाद से वह शादी न करने का फैसला करती है और डा. अमन के प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर देती है. ज्योत्स्ना भी समझा कर हार जाती हैं.

लगभग 6 महीने पहले उस के अस्पताल में एक नए मरीज के आने पर वह उसे जानापहचाना लगता है कि कहीं वह उस के पापा तो नहीं. नर्स से पूछने पर मालूम पड़ता है कि मरीज का नाम आशीश शर्मा है.

एक दिन अस्पताल पहुंचने पर वह उस मरीज को न पा कर नर्स से पूछती है तो वह भावना को एक पत्र देती है. जिस में वह उन मांबेटी से माफी मांगता है. उस के मन में विवाह के प्रति जो कड़वाहट होती है वह समाप्त हो जाती है. वह डा. अमन से शादी करने को तैयार हो जाती है और ज्योत्स्ना जुट जाती है उस की शादी की तैयारी में.

एक दिन आधी रात को भावना की नींद खुलती है तो ज्योत्स्ना को न पा कर वह बालकनी में आती है और मां से पूछती है कि यदि पापा आ जाएं तो क्या उन्हें माफ कर दोगी. ज्योत्स्ना कुछ नहीं कहतीं. तभी डा. आर्या की आवाज सुन कर भावना वर्तमान में लौट आती है और अपने आंसू पोंछती हुई बैग और कार्ड ले कर पत्र वाले पते पर जा पहुंचती है. भावना को अपने घर पर देख आशीश शर्मा चौंक जाता है.

और अब आगे…

आशीश शर्मा का पता ढूंढ़तेढूंढ़ते जब भावना उन के घर पहुंची तो शाम गहरा रही  थी. धड़कते हृदय से उस ने घंटी बजा दी. अंदर की आवाज पास आती हुई लग रही थी. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुल गया. आशीश शर्मा उसे आश्चर्य व खुशी से भौचक हो निहार रहे थे.

‘‘तुम…तुम डा. भावना हो न?’’

‘‘हां, पापा,’’ वह कठिनाई से बोल पाई. बरसों बाद पापा बोलने के लिए उसे काफी प्रयास करना पड़ा.

‘‘आओ…अंदर आओ, बेटी…’’ आशीश शर्मा की खुशी का वेग उन के हावभाव से संभल नहीं पा रहा था. शायद वह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें और क्या न करें.

हृदय में उठते तूफान को थामते हुए हाथ का कार्ड पकड़ाते हुए वह बोली,   ‘‘यह मेरी शादी का कार्ड है. आप जरूर आइएगा.’’

‘‘तुम्हारी शादी हो रही है…’’ वह खुशी से बोले. फिर कार्ड पकड़ते हुए धीरे से बोले, ‘‘तुम्हारी मम्मी जानती हैं सबकुछ…’’

‘‘हां…’’ वह झूठ बोल गई, ‘‘आप जरूर आइएगा,’’ कह कर वह बिना एक क्षण भी रुके वापस मुड़ गई.

आशीश शर्मा अंदर आ गए, थके हुए से वह कुरसी में धंस गए.

भावना एक आशा की किरण उन के दिल में जगा कर गुम हो गई थी. वह ही जानते हैं कि अपने परिवार से बिछड़ कर वह कितना तड़पे हैं…अपनी बड़ी होती बेटी को देखने के लिए उन्होंने कितनी कोशिश नहीं की…कितना कोसा उन्होंने खुद को, जब वह दामिनी के चंगुल में फंस गए थे…कैसा जाल फेंका दामिनी ने उन्हें फंसाने के लिए…उन की पत्नी एक शांत नदी की तरह थी और दामिनी थी बरसाती उफनता नाला, जो अपने सारे कगारों को तोड़ कर उन की तरफ बढ़ता रहा और वह स्वयं भी उस में बह गए.

उस समय तो बस, दामिनी को पाना ही जैसे उन का एकमात्र लक्ष्य रह गया था. क्यों इतना आकर्षित हो गए थे वह उस समय दामिनी की तरफ…दामिनी की तड़कभड़क, अपने में समा लेने वाले उद्दाम सौंदर्य के पीछे वह उस की चरित्रहीनता और बददिमागी को नहीं देख पाए.

दामिनी के सामने उन्हें अपनी शांत सौम्य पत्नी बासी व श्रीहीन लगी थी. लगा, उस के साथ जीने में कोई मजा ही नहीं है. एकरस दिनचर्या…तनमन का एकरस साथ…तब नहीं समझा अपनी सीमाओं में रहने वाली नदी की तरह ही उन की पत्नी ने भी उन के जीवन को व उन के परिवार को सीमाओं में बांधा हुआ है.

दामिनी का साथ बहुत लंबे समय तक नहीं रह पाया. शुरू में तो वह दामिनी के सौंदर्य के सागर में डूब गए, लेकिन दामिनी के रूप का तिलिस्म अधिक नहीं रह पाया. धीरेधीरे प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत दामिनी का असली चेहरा उन के सामने खुलने लगा. अपनी जिस तनख्वाह में पत्नी व बेटी के साथ वह सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे, उसी तनख्वाह में दामिनी के साथ गृहस्थी की गाड़ी खींचना मुश्किल ही नहीं दूभर हो रहा था. उस के सैरसपाटे, बनावशृंगार व साडि़यों के खर्चे से वह परेशान हो गए थे. बात इतनी ही होती तो भी ठीक था. दामिनी परले दर्जे की झगड़ालू व बददिमाग थी. उन को हर पल दामिनी की  तुलना में ज्योत्स्ना याद आ जाती. धीरेधीरे उन के बीच की दूरियां बढ़ने लगीं. वह कब, कहां और क्यों जा रही है यह पूछना भी उन के बस की बात नहीं रह गई थी. पति की तरह वह उस पर कोई भी अधिकार नहीं रख पा रहे थे.

वे दोनों लगभग 5 साल तक एकसाथ रहे. इन 5 सालों में वह इस बात को अच्छी तरह समझ गए थे कि दामिनी के जीवन में फिर कोई आ गया है. वह उस को रोकना चाह कर भी रोक नहीं पाए या फिर शायद उन्होंने रोकना ही नहीं चाहा. तब पहली बार नकारे जाने का दर्द उन की समझ में आया था. सामाजिक मानमर्यादा के लिए इतने सालों तक वह किसी तरह दामिनी से बंधे रहे थे, लेकिन जब दामिनी ने उन्हें खुद ही छोड़ दिया तो उन्होंने भी रिश्ते को बचाने की कोई कोशिश नहीं की…दामिनी ने उन्हें तलाक दे दिया.

पिछले 5 साल तक उन्होंने कितनी बार कोशिश की ज्योत्स्ना के पास वापस लौटने की. वह ज्योत्स्ना के बारे में सबकुछ पता करते रहते थे. ज्योत्स्ना के जीवन में आतेजाते उतारचढ़ाव से वह अनभिज्ञ नहीं थे. कई बार दिल करता कि भाग कर जाएं ज्योत्स्ना के आंसू पोंछने… उन की बेटी डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी, जब वह मेडिकल में निकली थी तब उन्हें हार्दिक खुशी हुई थी…गर्व हो आया था बेटी पर…दामिनी ने तो कभी मां बनना चाहा ही नहीं था.

बेटी जब डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर के आ गई तब न जाने कितनी बार उस अस्पताल के गेट पर खड़े रहे थे पागलों की तरह, बेटी की एक झलक पाने के लिए, लेकिन कारों व लोगों की भीड़ में वह कभी भावना को देख नहीं पाए.

तभी उन के जीवन में यह दुखद मोड़ आया. आफिस में ही उन्हें पक्षाघात का अटैक पड़ा. उन के आफिस के दोस्त जब उन्हें अस्पताल ले जाने लगे तब वह बहुत मुश्किल से उन्हें उस अस्पताल का नाम समझा पाए, जहां उन की बेटी काम करती थी, इस उम्मीद में कि शायद उन की अपनी बेटी से अंतिम समय में मुलाकात हो जाए…और ऐसा हुआ भी पर भावना ने उन्हें पहचाना नहीं या फिर पहचानने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

वह तो भावना को चिट्ठी लिख कर भी भूल गए थे, लेकिन आज भावना को अपने सामने देख कर उन का अपने परिवार के पास लौटने का सपना अंगड़ाई लेने लगा था. उन की सुप्त भावनाएं फिर जोर पकड़ने लगीं, लेकिन पता नहीं ज्योत्स्ना उन्हें माफ कर पाएगी या नहीं…

तभी बाहर सड़क पर किसी गाड़ी के हार्न की तेज आवाज सुन कर वह अपने अतीत से बाहर निकल आए. न जाने वह कब से ऐसे ही बैठे थे. उन्होंने कार्ड उठा कर उसे उलटापलटा और मन में निश्चय किया कि बेटी की शादी में अवश्य जाएंगे. परिणाम चाहे कुछ भी हो. ज्योत्स्ना उन का अपमान भी कर देगी तब भी वह उस दुख से कम ही होगा जो उन्होंने उसे दिया है और जो उन्हें अपने परिवार से अलग रह कर मिल रहा है. सोच कर उन का हृदय शांत हो गया.

उधर घर आ कर भावना अपने हृदय को शांत नहीं कर पा रही थी. पता नहीं उस ने अच्छा किया या बुरा…मम्मी पर इस की क्या प्रतिक्रिया होगी…मम्मी से कुछ भी कहने की उस की हिम्मत नहीं थी…अब तो जो भी होगा देखा जाएगा, यह सोच कर उस ने अपने दिलोदिमाग को शांत कर लिया.

आखिर विवाह का दिन आ पहुंचा. दुलहन बनी भावना खुद को शीशे में निहार रही थी. मम्मी पसीने से लस्तपस्त इधरउधर सब संभालने में लगी हुई थीं. बरात आने वाली थी. उस के डाक्टर मित्र मम्मी की थोड़ीबहुत मदद कर रहे थे, तभी बैंडबाजे की आवाज आने लगी. ‘बरात आ गई… बरात आ गई’ कहते सब बाहर भाग गए. वह कमरे में अकेली खड़ी रह गई.

पापा अभी तक नहीं आए…पता नहीं आएंगे भी या नहीं…काश, उस की कोशिश कामयाब हो जाती. तभी मम्मी उस को लेने कमरे में आ पहुंचीं.

‘‘चल, भावना…जयमाला के लिए चल,’’ तो वह मम्मी के साथ मंच की तरफ चल दी. जयमाला हुई, खाना खत्म हुआ, फेरे शुरू हो गए…खत्म भी हो गए, उस की निगाहें गेट की तरफ लगी रहीं. उस को ऐसा खोया देख कर मम्मी ने एकदो बार टोका भी पर उस के दिमाग में क्या ऊहापोह चल रही है, उन्हें क्या पता था.

फेरे के बाद उस के डाक्टर मित्र, रिश्तेदार सब अपनेअपने घर चले गए. सुबह विदाई के वक्त कुछ बहुत नजदीकी रिश्तेदार ही रह गए. उस की विदाई की तैयारियां हो रही थीं पर उस का हृदय उदास था. पापा ने यह अवसर खो दिया. इस खुशी के मौके व अकेलेपन के मोड़ पर मम्मी, पापा को माफ कर देतीं.

तभी डा. आर्या अंदर आ कर बोली, ‘‘भावना, तुम्हें कोई पूछ रहा है.’’

‘‘मुझे…’’

‘‘हां, कोई आशीश शर्मा हैं…’’

‘‘आशीश शर्मा…’’ वह खुशी के अतिरेक में डा. आर्या का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेरा एक काम कर दो डाक्टर… उन्हें यहां ले आओ, मेरे कमरे में.’’

‘‘यहां…’’ डा. आर्या आश्चर्य से बोली, ‘‘कौन हैं वह.’’

‘‘सवाल मत करो. बस, उन्हें यहां ले आओ…’’

थोड़ी देर बाद डा. आर्या, आशीश शर्मा को ले कर कमरे में आ गई.

‘‘आप कल शादी में क्यों नहीं आए, पापा,’’ वह उलाहने भरे स्वर में बोली. उस के स्वर के अधिकार से बरसों की दूरी पल भर में छिटक गई. आशीश शर्मा ठगे से खडे़ रह गए. मन किया बेटी को गले लगा लें पर अपने किए अपराध ने पैरों में बेडि़यां डाल दीं. बाप का अधिकार उन के वजूद से छिटक कर अलग खड़ा हो गया.

‘‘बेटी, मैं ने सोचा, तुम्हारी मम्मी की न जाने क्या प्रतिक्रिया हो…तुम्हारी शादी है…उन का मूड मुझे देख कर खराब न हो जाए…मैं जश्न में विघ्न नहीं डालना चाहता था.’’

‘‘मम्मी कहां हैं डा. आर्या…’’ वह आश्चर्यचकित खड़ी डा. आर्या से बोली.

‘‘शायद अंदर वाले कमरे में विदाई की तैयारी कर रही हैं.’’

‘‘चलिए, पापा,’’ वह आशीश शर्मा का हाथ पकड़ कर अंदर जा कर मम्मी के सामने खड़ी हो गई. अचानक इतने वर्षों बाद अपने सामने आशीश शर्मा को यों लाठी के सहारे खड़ा देख कर ज्योत्स्ना संज्ञाशून्य सी देखती रह गईं.

‘‘तुम…’’

‘‘मम्मी, पापा आप से कुछ कहना चाहते हैं…बोलिए न पापा, जो कुछ आप ने पत्र में लिखा था.’’

‘‘मुझे माफ कर दो ज्योत्स्ना…जिस के लिए तुम्हें इतने दुख दिए वह तो वर्षों पहले मुझे छोड़ कर चली गई. मैं जानता हूं कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है, इसी कारण मैं इतने सालों तक वापस आने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया…मैं ने कोशिश तो बहुत की…मैं ही जानता हूं, कितना तड़पा हूं तुम दोनों के लिए… भावना की एक झलक पाने के लिए अस्पताल के गेट पर पागलों की तरह खड़ा रहता था…तुम्हें देखने के लिए स्कूल के चक्कर काटा करता था. कभी तुम दिख भी जातीं तो अपनेआप में मगन… फिर सोचता, कितने दुख दिए हैं तुम्हें… बहुत मुश्किल से संभली हो…कहीं मेरे कारण तुम्हारी मुश्किल से संभली जिंदगी फिर से बिखर न जाए…

‘‘यही सब सोच कर मेरी कोशिश कमजोर पड़ जाती. अपनी बीमारी में भी उसी अस्पताल में इसीलिए भरती हुआ कि जिंदगी के आखिरी दिनों में बेटी को जी भर कर देख लूंगा.

‘‘मुझे माफ कर दो ज्योत्स्ना…आज भी अगर भावना जोर नहीं देती तो मैं तुम से माफी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाता,’’ लाठी को बगल के सहारे टिका कर आशीश शर्मा ने दोनों हाथ जोड़ दिए.

ज्योत्स्ना का मन किया कि वह फूटफूट कर रो पडे़. बेटी की विदाई, आशीश का यों माफी मांगना, इतने वर्षों का संघर्ष…उन की रुलाई गले में आ कर मचलने लगी. आंखें बरसने से पहले उन्होंने बापबेटी की तरफ अपनी पीठ फेर दी, लेकिन हिलती पीठ से भावना समझ गई कि मम्मी रो रही हैं.

मम्मी के दोनों कंधों को पकड़ कर भावना बोली, ‘‘पापा को माफ कर दीजिए…गलती उन से हुई है पर उस की सजा भी उन को मिल चुकी है… अकेलापन उन्होंने भी झेला है, भले ही अपनी गलती से…प्लीज मम्मी…मेरी खातिर…’’ उस ने मम्मी का चेहरा धीरे से अपनी तरफ किया.

‘‘बहुत बड़ी हो गई है तू यह सब करने के लिए…’’ मम्मी रुंधी आवाज में बोलीं पर उन की आवाज में गुस्सा नहीं बल्कि हार कर जीत जाने का एहसास था.

‘‘मम्मी, मैं इस घर को, अपने परिवार को पूर्ण देखना चाहती हूं,’’ कहते हुए भावना ने पापा का हाथ पकड़ कर उन्हें पास खींच लिया. ज्योत्स्ना ने भरी नजरों से आशीश की तरफ देखा, जैसे कह रही हों, तुम मेरी जगह होते तो क्या माफ कर देते, जो मैं करूं. लेकिन आशीश शर्मा ने हिम्मत कर के ज्योत्स्ना के कंधों के चारों तरफ अपनी बांहें फैला दीं. रोती हुई वह पति आशीश के कंधे से लग गईं. दोनों को अपनी बांहों के घेरे से बांध कर भावना भी रो रही थी.

विदाई की बेला पर कार में बैठते हुए भावना आंसू भरी नजरों से गेट पर एकसाथ खडे़ मम्मीपापा की छवि को जैसे अपनी आंखों में समा लेना चाहती थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...