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मोहन ने तय कर लिया कि अब वह यहां नहीं रहेगा. अपनी रोली को ले कर कहीं दूर चला जाएगा. अपना बोरियाबिस्तर समेट कर आंखों में हजारों सपने लिए मोहन अपनी रोली के साथ दिल्ली की ट्रेन पर चढ़ गया. इधर रोली भी अपने सपनों को पंख लगाए, पति का हाथ पकड़े ट्रेन में जा कर बैठ गई.

दिल्ली आ कर मोहन ने मजदूरी का काम पकड़ लिया और एक कच्ची बस्ती में एक कमरा ले कर रोली के साथ रहने लगा. अब न तो यहां कोई उसे कुछ बोलने वाला था और न ही रोली से मिलने पर रोकटोक ही लगाने वाला. अपनी पत्नी के साथ उस की जिंदगी बड़े मजे से गुजर रही थी.

रोली भी दिल्ली जैसे बड़े शहर में आ कर साड़ी से सलवारकमीज पर उतर आई थी. जब कभी मोहन काम से जल्दी लौट आता, रोली को यहांवहां घुमा आता था.

मोहन ने कहीं से सस्ते दामों पर एक टैलीविजन खरीद लिया था, जिसे देखदेख कर रोली अपना पूरा दिन बिताने लगी थी. लेकिन फिर उस का मन ऊबने लगा था. उस का मन करता कि मोहन उसे पूरी दिल्ली घुमाए, खूब खरीदारी करवाए, फिल्म दिखाए, होटलों में खाना खिलाए. लेकिन मोहन के पास इतना पैसा ही कहां था, जो उस के इतने सारे अरमान पूरे कर पाता.

यहीं बस्ती के पास वाली जमीन पर बिल्डिंग बनने का काम चालू था और जिस की देखरेख रितेश कर रहा था. वह वहां खड़ा हो कर देखता कि सारे मजदूर ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं. हट्टाकट्टा रितेश जब फोन पर किसी से बात कर रहा होता, तब रोली तिरछी निगाहों से उसे देखती और जैसे ही वह इधर देखने लगता, तो मुंह फेर लेती थी.

अब मछली खुदबखुद जाल में फंसने को तैयार थी, तो शिकारी क्यों पीछे हटता. सो, एक दिन पानी मांगने के बहाने रितेश रोली की कोठरी में घुस गया और जब वह उसे पानी देने लगी तो कस कर उस का हाथ पकड़ लिया.

कसमसाई सी रोली हाथ छुड़ा कर भागी. मगर अब रोज दोनों की आंखों ही आंखों में बात होने लगी और एक दिन जब मोहन घर पर नहीं था, तब रोली ने इशारों से उसे अपनी कोठरी में बुला लिया.

उस दिन के बाद से अब रोज यही होने लगा. मोहन के जाते ही रोली रितेश की बांहों में समा जाती और जीभर कर मजे लेती. बदले में रितेश उसे साड़ी ला कर देता, बाहर घुमाने ले कर जाता, होटलों में खाना खिलाता, फिल्म दिखाता.

रितेश ने रोली को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दिया था, ताकि जब मोहन घर पर न हो, तो वह फोन कर उसे बता सके.

रोली के दिन अब रितेश की बांहों में गुजरते और रात मोहन के आगोश में. लेकिन मोहन में अब उस की जरा भी दिलचस्पी नहीं रह गई थी. उसे तो रितेश का साथ ही भाता था, इसलिए वह मोहन से छिटकने लगी थी.

रितेश गुजरात के छोटा उदयपुर का रहने वाला था और यहां वह बिल्डर के साथ काम कर के अच्छा पैसा कमा लेता था. रितेश शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. उस के बीवीबच्चे सब छोटा उदयपुर में ही रहते थे और वह उन के खर्चे के लिए पैसे भेजता रहता था.

रितेश एक साधारण परिवार का, मगर ऊंची जाति का था और वहीं रोली एक छोटी जाति की थी. रोली का तो मन होता था कि वह अपनी रातें भी अब रितेश की बांहों में गुजारे, इसलिए बिना बात के ही वह मोहन से झगड़ती, उस पर चिल्लाती और कहती कि उस ने दिया ही क्या है उसे सिवा दो जोड़ी कपड़े और दो वक्त की रोटी के? इस से अच्छा तो वह अपने मांबाप के घर ही थी.

मोहन समझ ही नहीं पाता था कि अब क्या करे वह रोली के लिए? जितनी हैसियत है कर ही तो रहा है, फिर यह खुश क्यों नहीं है उस से? रोली का बरताव अब मोहन की समझ से बाहर होने लगा था. जितना ही वह उसे पुचकारता था, उतना ही वह उस पर चिल्लाती थी.

एक दिन जब पड़ोस की मौसी के मुंह से मोहन ने रोली और रितेश के किस्से सुने तो वह सन्न रह गया. पूछने पर शर्मिंदा होने के बजाय बेशर्मों की तरह रोली कहने लगी कि हां, है उस का रिश्ता रितेश से. तो क्या कर लेगा वह? जब बीवी को खुश नहीं रख सकता, तो फिर शादी ही क्यों की उस से?

मोहन के पास रोली के सवालों का कोई जवाब नहीं था सिवा इस के कि वह अपनी रोली को बहुत प्यार करता है. लेकिन रोली कहती कि सिर्फ प्यार से ही जिंदगी नहीं चलती. और भी बहुतकुछ चाहिए होता है, जिसे देने की उस की कूवत नहीं है.

असल बात तो यह थी कि रोली अब मोहन के साथ मैली चादर में नहीं, बल्कि रितेश के साथ नरम बिस्तर पर सुख भोगना चाहती थी, इसलिए एक दिन वह मोहन का घर छोड़ कर उस रितेश के साथ रहने चली गई.

 

बेचारा मोहन रोयागिड़गिड़ाया और बोला था कि वह जो कहेगी करेगा, पर वह उस के साथ चले, मगर रोली अपनी खूबसूरती के घमंड में इतनी चूर थी कि कहां उसे मोहन का दर्द दिखाई पड़ा था.

देखने में भोलीभाली और बला की खूबसूरत रोली ने अपनी जवानी के दम पर ही तो रितेश को फंसाया था, ताकि उसे वह सबकुछ मिल सके, जिस का सपना लिए वह यहां दिल्ली आई थी.

जिस रोली के कहने पर मोहन अपने घरपरिवार को छोड़ आया था, जिस रोली की खुशी के लिए मोहन मेहनत कर रहा था, जिस रोली की खुशी के लिए वह एक पैर पर खड़ा रहता था, उसी रोली ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा. उस की परवाह न कर वह क्षणिक देह सुख के लिए रितेश के घर रहने चली गई.

यह बात मोहन को घुन की तरह खाए जा रही थी कि अब वह अपने परिवार और रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाएगा? क्या कहेगा कि उस की बीवी उसे छोड़ कर किसी और के साथ भाग गई? नामर्द नहीं कहेंगे लोग उसे?

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